जनवादी पत्रकार संघ |
- नए भारत में बदली लोकतंत्र की परिभाषा
- विभिन्न जन समस्याओं को लेकर 5 दिन तक माकपा ने चलाया आंदोलन
- कामथ साहब के जन्मदिन पर विशेष/ चने में लगी इल्ली :कामथ को भेजो दिल्ली
- जिसने मंजिल को तलाशा उसे बाजार मिले
- संपादकीय- दो हजार करोड़ के वेंटीलेटरो की कहानी वेंटिलेटर पर
नए भारत में बदली लोकतंत्र की परिभाषा Posted: 13 Jul 2020 03:01 AM PDT सरकार आपकी तो आप राजा NITIN DUBEY ✍️9630130003 देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने भारत में कई बदलाव किए। कुछ बदलाव देश हित में हैं तो कुछ भारत के लोकतंत्र,भारत के संबंध और देश की एकता अखंडता के लिए घातक साबित हो रहे हैं। आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक और भारत की एकता में एक बड़ा दाग़ इस देश को दिया है। इस कोरोना महामारी के दौरान सरकार का पूरा ध्यान हिन्दू- मुस्लिम और अपनी पार्टी कैसे पूरी तरह देश में स्थापित हो,इस बात पर रहा। इस बदलाव में सबसे बड़ा नुक़सान भारत और भारत के लोकतंत्र का हुआ है। माना कि मध्य प्रदेश में कांग्रेस की आपसी कलह पार्टी की दुर्गति कराने के लिए जिम्मेदार है लेकिन इसकी कथा कहीं ओर से लिखी गई थी। अब "धूम 2" की तरह ही राजस्थान में भी राजनीतिक फिल्म रिलीज हो रही है। ये भी मध्य प्रदेश की कथा पर ही आधारित है। " लगता है अब लोकतंत्र कब्जे में है" वोटर पर प्रभाव और खुद से प्रभावित करने के लिए हिन्दू- मुस्लिम, ब्राह्मण-हरिजन, जहां जिस मामले की जरूरत पड़ी उसे उठा दिया। "इंदिरा गांधी का बदला पूरे देश से कैसे ले सकतें हैं आप? बात देश के संबंधों की करें तो आज़ हम अपने पड़ोसियों से भी असुरक्षित हैं। ये कैसा बदलाव? लगता है ये बदलाव किसी दल,व्यक्ति धर्म और सम्प्रदाय का क्षणिक भला तो कर सकता है लेकिन लंबे समय के लिए हितकर नहीं है। "जो मजा समग्रता में है वो खुद में नहीं जो बात सबसे प्यारे करने में है वो दीवानगी में कहां" |
विभिन्न जन समस्याओं को लेकर 5 दिन तक माकपा ने चलाया आंदोलन Posted: 12 Jul 2020 11:56 PM PDT विभिन्न जनसमस्याओं को लेकर 5 दिन तक माकपा ने चलाया आंदोलन। ==== सबलगढ़= जनता के विभिन्न तबकों विभिन्न तबको ,क्षेत्रों की मांगों व समस्याओं को लेकर मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने 5 दिन तक विभिन्न स्थानों व कार्यालयों पर आंदोलन चलाए। निरंतर चलाए गए आंदोलन जनता के मुद्दों के प्रति सरकार व प्रशासन को हल करने के लिए एक चेतावनी है। पहले दिन बस स्टैंड पर कीचड़ में खड़े होकर किया प्रदर्शन। ============ नगर के एकमात्र बस स्टैंड पर न बसों के खड़े होने के लिए कोई इंतजाम है, और न यात्रियों की प्रतीक्षालय में बैठने का कोई बंदोबस्त ,यहां तक कि प्रेयजल ,बिजली की हुई भी कोई व्यवस्था नहीं है। जिसके चलते यात्रियों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है । माकपा ने इस मुद्दे पर प्रदेश सरकार और नगरीय प्रशासन का ध्यान आकृष्ट करने के लिए कीचड़ में खड़े होकर जुझारू प्रदर्शन किया । इस प्रदर्शन में पार्टी कार्यकर्ताओं के अलावा स्थानीय नागरिकों, बस स्टैंड के दुकानदारों व मजदूरों ने भागीदारी की । आंदोलन कादूसरा दिन =============== नगर के विभिन्न वार्डों की पेयजल समस्या को लेकर बेनीपुरा ,तालाब बस्ती, पुराना बाजार, रामपुर डगरिया आदि क्षेत्रों में पेयजल की व्यवस्था की मांग को लेकर गंदे पानी की समस्या दूर करने टूटी लाइनों को बदलने व दुरस्त करने सहित पेयजल से जुड़ी विभिन्न मांगों को लेकर माकपा व मोहल्ला वासियों ने एकत्रित होकर नगर पालिका कार्यालय पर प्रदर्शन किया । मुख्य नगरपालिका अधिकारी महेंद्र गुप्ता को ज्ञापन प्रस्तुत किया गया। उनके द्वारा समस्याओं के निराकरण का आश्वासन दिया है। परंतु माकपा नेताओं ने चेतावनी भी दी है कि यदि समस्याओं का समाधान नहीं किया गया तो आंदोलन जारी रहेगा। आंदोलन का तीसरा दिन ===============जनपद पंचायत कार्यालय पर प्रवासी श्रमिकों के मुद्दों व समस्याओं को लेकर प्रदर्शन किया। सबलगढ़ क्षेत्र में बड़ी संख्या में प्रवासी श्रमिक वापिस आए हैं। उनको न तो मनरेगा के अंतर्गत काम मिल रहा है और नहीं खाद्यान्न उपलब्ध है ,न किसी तरह किया विशेष पैकेज व राहत उपलब्ध है। ऐसे में उनके परिवारों की हालत अत्यंत दयनीय हो रही है । माकपा ने ग्रामीण क्षेत्रों में मनरेगा के अंतर्गत कार्य शुरू कराए जाने ,प्रति व्यक्ति 10 किलो मुफ्त खाद्यान्न देने, 75 सो रुपए प्रति परिवार प्रदाय किए जाने , नगरीय क्षेत्रों में भी काम शुरू करने, मजदूरी बढ़ाने , कार्य दिवस बढ़ाने आदि मांगों को लेकर जनपद कार्यालय पर प्रदर्शन कर मुख्य कार्यपालन अधिकारी को ज्ञापन प्रस्तुत किया । आंदोलन का चौथा दिन =============== अघोषित बिजली कटौती, फर्जी व अनाप-शनाप बिल दिए जाने ,लाइन व ट्रांसफार्मर स्ट्रीट लाइट्स आदि की समस्याओं को लेकर माकपा के कार्यकर्ताओं ने मध्य प्रदेश विद्युत वितरण कंपनी के स्थानीय कार्यालय पर प्रदर्शन कर ज्ञापन प्रस्तुत किया। आंदोलन का पांचवा और अंतिम दिन ===============आखिरी दिन सभी समस्याओं को जोड़ते हुए अन्य जन मुद्दों को शामिल करते हुए अनुविभागीय अधिकारी के कार्यालय पर प्रदर्शन कर ज्ञापन प्रस्तुत किया गया। इसके अलावा आखिरी दिन नगर परिषद झुंडपुरा के कार्यालय पर भी प्रवासी श्रमिकों की समस्याओं को लेकर प्रदर्शन कर ज्ञापन प्रस्तुत किया। उपरोक्त सभी आंदोलनों का नेतृत्व माकपा के तहसील सचिव पूर्व नपाध्यक्ष अध्यक्ष मुरारी लाल धाकड़ ,अशोक राठौर ,इसराइल खान, प्रभु दयाल सगर, फरीद खान ,महेंद्र सिंह सोलंकी, अरविंद सगर, कोक सिंह, रामजी लाल राठौर झुंडपुरा इकाई के सचिव आदि राम आर्य पूर्व पार्षद व स्थानीय कार्यकर्ता गणों ने किया। |
कामथ साहब के जन्मदिन पर विशेष/ चने में लगी इल्ली :कामथ को भेजो दिल्ली Posted: 12 Jul 2020 10:48 PM PDT --------------------------------------------------- गोपाल राठी जी की कलम से। क्या आज कोई विश्वास कर सकता है कि होशंगाबाद नरसिंहपुर लोकसभा क्षेत्र से हरिविष्णु कामथ जैसे व्यक्ति ने बार-बार प्रतिनिधित्व किया है जिसका अपना कोई घर नहीं था , कोई निजी संपत्ति नहीं थी ,जिसके बेग में मात्र दो जोड़ी कपड़े होते थे l खादी की पेंट घुटने तक कुर्ता और टोपी बस यही उनकी वेशभूषा थी l यह था असली फकीर जो झोला उठाकर देश में कहीं भी निकल जाता था l 1977 में जब चुनाव घोषित हुआ तो चुनाव लड़ने के लिए कामथ साब को देश मे अलग अलग ठिकाने पर खोजा गया अंततः वे हरिद्वार में मिल गए l उनसे चुनाव लड़ने का अनुरोध किया गया किसी तरह वे तैयार हो गए l कामथ साब की मंजूरी मिलते ही कार्यकर्ताओ और जनता में खुशी की लहर दौड़ गई l इस खुशी में एक किशोर के रूप में मैं भी शामिल था l कामथ साब का कार्यकर्ताओं और आम जनता में काफी आदर था l समाजवादी लोग तो कांग्रेस के खिलाफ उन्हें तुरुप का इक्का मानते थे l जिनका पूरा चुनाव जनता लड़ती थी वे नहीं l वे चुनाव में जनता से वोट ही नहीं नोट भी मांगते थे l वे जिस पार्टी PSPसे चुनाव लड़ते थे उसमें ऊपर कही से फंड नहीं आता था और ना कोई धन्ना सेठ फंडिंग करता था l हर नगर - हर गांव - हर मोहल्ले के कार्यकर्ता अपने अपने स्तर पर चंदा एकत्रित कर प्रचार कार्य करते थे l कोई प्रत्याशी से एक रुपया ना तो मांगता था और ना अपेक्षा करता था l यह बात होशंगाबाद नरसिंहपुर क्षेत्र से लोकसभा का प्रतिनिधित्व करने वाले हरिविष्णु कामथ की है l कामथ साब नरसिंहपुर जिले के कलेक्टर थे जिन्होंने सुभाष बाबू के आव्हान पर अपने पद से स्तीफा दिया और आज़ादी के आंदोलन में शामिल हो गए थे l स्वतंत्र भारत मे वे संविधान सभा के सदस्य बनाये गए l संविधान निर्माण में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही l दिल्ली में संसद की कैंटीन में कामथ साहब की मेज सुरक्षित रहती थी l प्रसिद्ध अभिनेता पृथ्वीराज कपूर को नेहरू जी ने संसद में मनोनीत सदस्य बनाया था l वे कैंटीन में आये l कामथ सा. उनको देखकर कहा -आओ पृथ्वी के राजा l पृथ्वीराज कपूर ने कहा - साब हम तो नाचने - गाने वाले हैं ,आपके पैरों की धूल बराबर l यह प्रसंग आज के हालात में और भी महत्वपूर्ण है जब सभी पार्टियों में फिल्मी सितारों को सिर पर बैठाने की होड़ लगी है l कामथ साब जब भी आते तो लोग अपनी समस्याओं को लेकर उन्हें आवेदन देते थे l वे सारी दरख्वास्त इकट्ठी करके बाद में भी एक - एक को पढ़वा कर समस्या सुनते थे l पिपरिया रेस्ट हाउस में समाजवादी नेता स्व.नारायणदास मौर्य और उनके पुत्र स्व.अजय मौर्य व अन्य कार्यकर्ता आये हुए आवेदनों को पढ़कर चर्चा कर ही रहे थे कि एक आवेदन ने सबको खूब हंसाया l आवेदन एक युवक का था l कामथ सा. से उसने प्रार्थना की थी कि उसकी शादी नहीं हो रही है! उसकी शादी करवा दें l कामथ सा ने सभी से पूछा क्या किया जाय और सब देर तक हंसते रहे l कामथ सा स्वयं जीवन भर अविवाहित रहे l कामथ सा.अपने पास आने वाली समस्याओं और आवेदन के बारे में स्पष्ट कहते थे कि नगरपालिका और राज्य स्तर की किसी समस्या के लिए अपने स्तर पर कार्यवाही करें मुझे सिर्फ केंद्र सरकार से सम्बंधित समस्याओं के आवेदन दें l बहुत से लोग समस्याओं को इस तरह अलग अलग बांट कर नहीं देखते उन्हें कामथ सा का यह व्यवहार ठीक नहीं लगता था l कामथ साब के पिपरिया प्रवास के समय भाई राधेश्याम गुप्ता ने कामथ साब को चिढ़ाने के लिए एक आवेदन दिया जिसमें लिखा था कि सीमेंट रोड स्थित मंगलवारा पोस्ट आफिस में कोई गेट नहीं लगा है इसलिए रात में गाय वहां आकर गोबर कर देती है पर यहां आकर विश्राम करती है l जिसके कारण ग्राहकों को परेशानी होती है l चूंकि पोस्ट आफिस केंद्र सरकार का होता है इसलिए राधे भाई ने इसे इस तरह पेश किया l कामथ साब ने आवेदन पढ़कर हंसते हुए राधे भाई की पीठ पर धोल जमाई और कहा सच में बहुत समझदार हो गए हो तुम लोग l 1962 के चुनाव में श्री कामथ ने कांग्रेस के रघुनाथ सिंह किलेदार रामराज्य परिषद की प्रभावती राजे और जनसंघ के उम्मीदवार वाणी विलास शास्त्री को पराजित किया था l बिना धन और संसाधनों के प्रजा समाजवादी पार्टी ने यह संग्राम जीता था l क्षेत्र में उन दिनों चने की फसल में इल्ली लग गई थी इसलिए गांव गांव में किसान नारा लगा रहे थे - चने में लगी इल्ली - कामथ को भेजो दिल्ली l श्री हरिविष्णु कामथ निर्भय निष्पक्ष और विचारों के अटल थे l उन्हें कोई प्रलोभन या विपत्ति अपने पथ से विचलित नहीं कर सकी l जन्मदिन पर राजनैतिक संत कामथ साहब को नमन 1962 में इटारसी में श्री कामथ की जीत के जश्न का दुर्लभ चित्र , चित्र में समाजवादी नेता स्व.शीतल प्रसाद मिश्र और पूर्व सांसद सरताज सिंह दिखाई दे रहे हैं l चित्र सौजन्य :सुधांशु मिश्र |
जिसने मंजिल को तलाशा उसे बाजार मिले Posted: 12 Jul 2020 08:40 PM PDT ***************************************** कुर्सी के लिए घुड़दौड़ से खरीद-फरोख्त का कारोबार बहुत बदनाम हो गया है .लेकिन इसमें न बाजार का दोष है और न बिकने वाले घोड़ों का .दरअसल जब सियासत ही कारोबार हो गयी है इसलिए अब खरीद-फरोख्त को कोई दोष दे भी तो कैसे दे ?कारोबार की पहली शर्त ही खरीद -फरोख्त है . हमारे राम अवतार त्यागी अपनी जिंदगी से हमेशा पूछते रहे कि-तेरा इरादा क्या है ? उनकी हसरत 'आँचल का प्यार ' थी लेकिन जब भी उन्होंने इसे तलाशा उन्हें बाजार मिले .त्यागी जी की ही तरह अब हर विधायक को बाजार मिल रहा है .जो जिस दाम पर बिकना चाहे ,बिक सकता है .खरीददार हाजिर हैं .देश का कोई हिस्सा ऐसा नहीं है जहां विधायक न बिकते हों ! कहीं कम में बिकते हैं तो कहीं ज्यादा में .कहीं दस करोड़ मिलते हैं तो कहीं पैंतीस करोड़.बाजार ठंडा हो तो पच्चीस करोड़ में भी विधायक बिक जाते हैं .विधायकों की कीमत मांग और आपूर्ति पर निर्भर करती है . एक गांधीवादी विधायक हमारे भी मित्र हैं.आजकल बड़े परेशान हैं इस खरीद-फरोख्त की वजह से .कहते हैं कि हमारी हालत तो मकानों ,जैसी हो गयी है.हमारी और जो निगाह उठती है किसी खरीददार की तरह ही उठती है .अब उन्हें कौन समझाये कि इसमें उनका कोई दोष नहीं है.सारा दोष तो विधायकी का है जो अब एक जिंस में तब्दील हो गयी है .विधायक क्या हमारे यहां तो सांसद तक खरीदे जाते हैं ,कोई बिकने को तैयार हो ? सियासत के बाजार में आजकल न माल की कमी है और न आपूर्ति की .सियासत के बाजार तीन तरह के हैं .एक साधारण बाजार,दूसरा काला बाजार,तीसरा चोर बाजार .खरीददार जो चीज जहाँ से मिलती है खरीद लेता है .अब इसे आप चाहे हार्स ट्रेडिंग कहिये या कोई और नाम दे दीजिये .अब लोग खामखां भाजपा को इस कारोबार के लिए बदनाम करते हैं. भाजपा है ही बनियों-व्यापारियों की पार्टी .व्यापार जिसके खून में हो वो खरीद-फरोख्त नहीं करेगा तो क्या जामुन तोड़ेगा ?जरूरत पड़ने पर हर सियासी दल खरीद-फरोख्त करता है.कोई न दूध का धुला है और न टिनोपाल का .सब एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं . बिकने के मामले में हमारा अपना सूबा भी कम नहीं है. हमारे यहां गधे-घोड़े ही नहीं हाथी तक बिक जाते हैं .आजकल यहां सामंत खूब बिक रहे हैं .कुंवर से लेकर राजे-महाराजे तक नहीं बचे बिकने से .जो बिक गए वे मीर हो गए और जो नहीं बिके वे फकीर के फकीर रहे .बाजार में आजकल कीमत नगद के अलावा दूसरे रूप में भी मिलती है.आप की जैसी हैसियत होगी दाम भी वैसे ही मिलेंगे .आप राज्य सभा के सदस्य बन सकते हैं,मंत्री बन सकते हैं किसी निगम के अध्यक्ष बन सकते हैं .कहीं ,कोई रोक-टोक नहीं है .आप होशियार हैं तो बिजनिस डव्हलपमेंट मैनेजर भी बन सकते हैं . खबरें गर्म हैं कि इन दिनों राजस्थान की घोड़ा मंडी में बिकने के लिए बहुत सा माल उपलब्ध है .खरीददार मोल-भाव में लगे हैं .देखना होगा कि कौन सा माल कितने में बिकता है !हमारा अपना अनुभव है कि यदि माल बिकाऊ हो तो दाम हमेशा अच्छे मिलते हैं .खरीददार तो सब कुछ खरीद लेता है .आपने गुलाबो-सिताबो देखी है ! उसमें तो मिर्जा चोरी के बल्ब तक बाजार में बेच आता है भाई . भारत में विधायकों के अलावा मीडिया की बिकवाली भी खूब हुई .बिकते-बिकते मीडिया इतना बिका कि अब बाजार में उसका कोई खरीददार नहीं बचा.अब तो मीडिया वाले फकीरों की तरह भटक रहे हैं,गरीबों को आत्महत्याएं करना पड़ रहीं हैं लेकिन बाजार में उनका कोई दाम ही नहीं बचा ,जो बच गए हैं वे भौंपू बने फिर रहे हैं .बेचारों की विश्वसनीयता का दीवाला पिट चुका है .हमारी तरह के कुछ लोग हैं जो इस बाजार में उतरने के लिए कभी राजी ही नहीं हुए .हमेशा पीठ पर 'नॉट फॉर सेल' की तख्ती लटकाये घूमते रहे,भले घर में चूल्हा बुझा पड़ा रहा हो .वैसे हमारा मानना है कि जो नहीं बिके वे अव्यावहारिक हैं. सबको बिकना चाहिए .जिसके पास जो है उसे बेच दे तभी कोरोनाकाल में बचा जा सकता है .आपके पास और कुछ नहीं है बेचने के लिए तो अपना जमीर बेच दीजिये! खरीददार हाजिर हैं .आप एक बार हाँ तो कीजिये ! हकीकत तो ये है कि लोकतंत्र में सबसे ज्यादा बिकाऊ तो मतदाता होता है.उस बिछाकर को पता ही नहीं चलता और वो बिक जाता है .कभी जाति के नाम पर,कभी धर्म के नाम पर और आजकल तो देश के नाम पर उसे खरीदा-बेचा जा रहा है .इसे इमोशनल कारोबार कहते हैं .मतदाता अगर बिकना बंद कर दे तो देश की बड़ी -बड़ी मंडियां,बाजार बंद हो जाएँ लेकिन बदनसीबी कि मतदाता जाने-अनजाने बिकता ही है और बेचारे को मुफ्त के राशन के अलावा कुछ मिलता भी नहीं है .मौक़ा है आप भी देखिये कि आपके पास बेचने या खरीदनेके लिए क्या है ?हाथ आजमा लीजिये शायद थोड़ा-बहुत मुनाफ़ा हो जाये .! अपने देश की सरकार ने तो जो हाथ लगा सो आनन-फोन में बेच दिया .न कोई शर्म की और न लिहाज.बड़े- बूढ़े कहते हैं कि बाजार शर्म और लिहाज से नहीं चलता .बाजार की पहली शर्त है कीमत .सरकार ने इस बात को समझा और जो हाथ लगा उसे चुपचाप बेच दिया .फिर चाहे वो नवरत्न रहे हों या एयर इंडिया .सरकार तो रेलें तक बेचने पर आमादा है ,कुछ तो बेच भी दीं हैं ,बाक़ी भी एक न एक दिन बिक ही जाएँगी .मै सरकार की इस सूझबूझ का कायल हूँ . @ राकेश अचल |
संपादकीय- दो हजार करोड़ के वेंटीलेटरो की कहानी वेंटिलेटर पर Posted: 12 Jul 2020 07:04 PM PDT १३ ०७ २०२० *२००० करोड़ के "वेंटीलेटरों " की कहानी "वेंटीलेटर" पर* कोरोना के कारण सबसे ज्यादा लाभ बाज़ार को मिला है | सरकार और जनता दोनों से बाज़ार ने लाभ उठाया है | बाज़ार ने इस बात की परवाह नहीं की उसके इस कदम का का क्या लाभ है और क्या हानि बाज़ार ने सिर्फ अपना हित देखा | देश में 'वेंटीलेटर निर्माण' एक ऐसी ही कहानी है जिसमे बाज़ार ने सरकार को तो चूना लगाया सस्ते उत्पाद के नाम पर जो वेंटीलेटर बनाये उन्हें अंत में कबाड़ में जाना पड़ा| मई के मध्य में सरकार ने 'मेड इन इंडिया' वेंटिलेटर के लिए पीएम केयर्स फंड से २००० करोड़ रुपये आवंटित किए थे । महामारी से प्रभावित देश में जीवन रक्षक प्रणाली बनाने में आत्मनिर्भर बनने की पहल, देश की मेक इन इंडिया परियोजना की सबसे बड़ी सफलता हो सकती थी, लेकिन अब यह सफलता कई विवादों में घिर गई है। वेंटिलेटर की कम लागत विशेषकर छोटे अस्पतालों के लिए एक वरदान थी, लेकिन गुणवत्ता एवं सुरक्षा के सवाल ने स्थानीय स्तर पर निर्मित वेंटिलेटर के उपयोग पर गंभीर चिंताएं जताई हैं। मुंबई के जेजे अस्पताल एवं सेंट जॉर्ज अस्पताल आदि अस्पतालों से करीब १०० वेंटिलेटर लौटाए गए और कहा गया कि ये वेंटिलेटर कोरोना के गंभीर रोगियों के लिए ऑक्सीजन के स्तर को आवश्यक मानकों तक बढ़ाने में असफल रहे। यूँ तो ये वेंटिलेटर मारुति सुजूकी के सहयोग से एक स्टार्टअप ऐगवा द्वारा बनाए गए थे। उजाला सिग्नस हेल्थकेयर ने ऐगवा के कुछ वेंटिलेटर को मान्य किया था और कंपनी को सुधार के लिए जरूरी प्रतिक्रिया दी थी। उन्होंने पाया कि ये वेंटिलेटर घरेलू उपयोग, ऐंबुलेंस और कम गंभीर रोगियों के लिए बेहतर हैं लेकिन गंभीर मरीजों के लिए इसमें कुछ सुधार करने की आवश्यकता है। ऐगवा वेंटिलेटर के बेसिक मॉडल की कीमत करीब १.५ लाख रुपये थी । इसकी तुलना में एक आयातित वेंटिलेटर की कीमत लगभग १०-१५ लाख रुपये होती है। विशेषज्ञों का कहना है कि गंभीर रोगियों के लिए ऐगवा वेंटिलेटर पर्याप्त नहीं हो सकते लेकिन उनका उपयोग कम गंभीर रोगियों के लिए किया जा सकता है |देश में जब कोरोना के मरीजों की संख्या में तेजी आनी शुरू हुई तो यहां वेंटिलेटर बनाने की कुल क्षमता मार्च में ३०० वेंटिलेटर के मुकाबले एक माह में बढ़कर ३० ००० इकाई हो गई।लेकिन गुणवत्ता में अपेक्षित सुधार नहीं हुआ | अब कोरोना रोगियों में से बहुत कम को वेंटिलेटर की आवश्यकता है, इसलिए सरकार ने अब और वेंटिलेटर खरीदने बंद कर दिए हैं। वेंटिलेटर निर्माण के लिए निजी क्षेत्र में भी बहुत सी अतिरिक्त क्षमता उपलब्ध है। डॉक्टर कोरोना मरीजों के इलाज के लिए ऑक्सीजन मास्क तथा उच्च सीमा तक ऑक्सीजन प्रवाह वाले वेंटिलेटर का उपयोग कर रहे हैं। हालांकि इस बात की संभावना बहुत कम है कि वेंटिलेटर की मांग जल्द ही बढ़ेगी लेकिन चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े लोगों का कहना है कि युद्धस्तर पर स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे में वृद्धि होना महामारी का एक सकारात्मक पक्ष रहा। भारत की मांग पूरी होने के साथ ही निर्माता उम्मीद कर रहे हैं कि उन्हें निर्यात की अनुमति दी जाएगी। पीपीई एवं मास्क के विपरीत, इन उन्नत मशीनों के लिए निरंतर मांग नहीं रहती है। इसलिए, पिछले दो महीनों में क्षमता निर्माण करने वाले स्थानीय निर्माताओं द्वारा अब अंतरराष्ट्रीय बाजारों में जाने की अनुमति की मांग हो रही है | चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े पेशेवरों का कहना है कि मरीजों का विवरण दर्ज करने वाले एक लैपटॉप से लेकर ग्लूकोमीटर, थर्मामीटर, अल्ट्रासाउंड मशीनें सहित अस्पतालों में उपयोग किए जाने वाले अधिकांश उपकरण भारत में नहीं बनाए जाते हैं जिससे ये उत्पाद काफी महंगे होते हैं। कोरोना से पहले देश में केवल १०००० वेंटिलेटर की मांग होती थी और घरेलू बाजार होते हुए भी इनमें से ९००० वेंटिलेटर बाहर से आयात किए जाते थे। इस कहानी में एक और झोल है ऑर्डर देने के बाद सरकार द्वारा विशिष्टताओं तथा मानकों में बदलाव और सरकार द्वारा पर्याप्त प्रशिक्षण न देना | इस सब ने वेंटीलेटर की कहानी को वेंटीलेटर पर पहुंचा दिया है | |
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