दिव्य रश्मि न्यूज़ चैनल |
- भादो की बात
- गुलदस्ते का फूल
- नई दिल्ली को शिक्षा लेनी होगी कि गंधार अपनी गलतियों से जल रहा है
- चेतन शक्ति और भक्ति आश्रयदाता त्र्यम्बकेश्वर
- फिर चलो स्कूल पढ़ने !
- क्रूर मुगल आक्रांता ‘राष्ट्र निर्माता’; तो प्रभु श्रीराम से लेकर छत्रपति शिवाजी महाराज तक हुए हिन्दू राजा कौन थे ? - हिन्दू जनजागृति समिति का कबीर खान से प्रश्न
- मुजफ्फरपुर में बनेगा रिंग रोड |
- साहस का नव संचार
- ईसाइयों के लिए मई का महिना मडोना की उपासना का महिना होता है।
- तुलसी जी , पौधा नहीं जीवन का अंग है
- कर्म और साधना का स्थल हेमकुण्ड
- साहित्य चेतना के साधक पंडित सुरेश दत्त मिश्र
- दुनिया का एकलौता मंदिर, जहां राजा राम को दिन में चार बार दिया जाता है गार्ड ऑफ ऑनर!!!!!
- कैसा गांव?
- जीकेसी की प्रस्तुति ‘एक प्यार का नगमा है’ हुआ सम्पन्न , संगीत प्रेमी मुकेश की आवाज का आज भी दीवाना है : राजीव रंजन प्रसाद
- मुख्यमंत्री के समक्ष वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से मोईनुलहक स्टेडियम के नवनिर्माण से संबंधित प्रस्तुतीकरण दिया गया
- मुख्यमंत्री के समक्ष वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से ‘बापू टावर’ के प्रदर्श डिजाइन के प्रारंभिक परिकल्पना का दिया गया प्रस्तुतीकरण
- आज 28 अगस्त 2021, शनिवार का दैनिक पंचांग एवं राशिफल - सभी १२ राशियों के लिए कैसा रहेगा आज का दिन ? क्या है आप की राशी में विशेष ? जाने प्रशिद्ध ज्योतिषाचार्य पं. प्रेम सागर पाण्डेय से |
- जू सफारी राजगीर में जारी विकास कार्यों का मुख्यमंत्री ने किया निरीक्षण, अधिकारियों को दिये कई दिशा-निर्देश
- ब्रह्माण्ड के प्रथम संवादप्रेषक देवर्षि नारद
- विकास के दम पर नये भारत की बदलती तस्वीर
- जलियांवाला बाग - अमिट स्मृति
- भारतीय जन महासभा ने 'दिव्य रश्मि' के संस्थापक सुरेश दत्त मिश्र की श्रधान्जली सभा आयोजित की |
- सुप्रसिद्ध साहित्यकार, मग-समाज के पुरोधा डॉ भगवती शरण मिश्र अब हमारे बीच नहीं रहे
- धर्मक्षेत्रे दुष्कृति क्षेत्रे
Posted: 27 Aug 2021 11:38 PM PDT भादो की बातसुनिए सुनाता हूँ भादो की बात सजधज कर आई थी पूनम की रात, छुटभइए बादल थे नभ में विचरते खोज रहे मिलकर थे नूतन सौगात। लुकाछिपी खेल रहा चंदा बेचारा रूप देख प्रेयसी का दिल गया हारा, सलमा सितारों की चूनर थी प्यारी सुंदर सी रजनी का कांत प्यारा प्यारा। हरी हरी घासों के गीले थे गाल हाथों में शोभ रही शबनम की माल, शांत क्लांत प्रकृति की शोभा थी न्यारी कजरारे मेघा थे जी के जंजाल। निरख रहा शोभा कोई प्रेम का पुजारी तीसरे प्रहर में विदाई की तैयारी, मिलना बिछुड़ना तो तय है जगत में चिंतन गजब का था प्रज्ञा भी हारी। रजनीकांत। दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com |
Posted: 27 Aug 2021 11:32 PM PDT गुलदस्ते का फूल --:भारतका एक ब्राह्मण. संजय कुमार मिश्र "अणु" मैनें नहीं देखा किसी गुलदस्ते में सजे हुए सेमर,थेथर के फूल। क्या देखा है आपने हाँ तो कर लो एकबार कबूल।। लेकिन कह न पाओगे केवल हंगामा मचाओगे कि अच्छे सौंदर्य और गंध वाले छिन लिए सेमर,थेथर ने निवाले वह विरान में फांक रहा है धूल।। उसमें भी सुंदरता है रंग है अपना गंध है फिर भी वह है उपेक्षित उसे नहीं चाहता शिक्षित अक्षित उसे क्यों नहीं करते हो कबूल।। आज भी गुलदस्ते में सजी रहती है बेला,गुलाब, जूही, गुलमोहर,कमल,केवडा क्या यूंही नहीं --- नहीं -- है कुछ इसका विशेष पहचान तभी तो सज संवर कर वह लुटा रही है मुस्कान ऐसा देखकर नहीं कहना चाहिए कि ये है लोगों की बडी भूल।। तुम भी वही करोगे जो आजतक देखते आए हो गमले में कभी थेथर लगाए ह़ो बताओ बात बिना दिए तुल।। जानकर बेकार और सस्ते उससे नहीं बना सकते गुलदस्ते बनने के लिए गुलदस्ता सिर्फ फूल होना हीं नहीं है गुलदस्ते की योग्यता उसके लिए होना चाहिए बहुत कुछ निर्विवाद स्थूल।। ---------------------------------------- वलिदाद,अरवल(बिहार)804402. दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com |
नई दिल्ली को शिक्षा लेनी होगी कि गंधार अपनी गलतियों से जल रहा है Posted: 27 Aug 2021 11:15 PM PDT नई दिल्ली को शिक्षा लेनी होगी कि गंधार अपनी गलतियों से जल रहा हैआज कंधार जल रहा है । संभवत: अपनी पुरानी गलतियों का हिसाब चुकता कर रहा है। जब कंधार ने वैदिक धर्म त्याग कर बौद्ध धर्म स्वीकार किया तो यह अहिंसावादी हो गया । जब इसके अहिंसावादी स्वरूप के सामने इस्लाम की नंगी तलवार आकर खड़ी हुई तो यह उसका सामना नहीं कर पाया। बहुत जल्दी अफगानिस्तान के भारतीय क्षेत्र का इस्लामीकरण हो गया। यदि अफगानिस्तान के निवासी बौद्ध धर्म की अहिंसा के दीवाने ना होते तो बहुत संभव था कि वे इस्लाम की तलवार के शिकार भी ना होते। इसी को कहते हैं कि ''लम्हों ने खता की थी सदियों ने सजा पाई।'' आज के भारत को अफगानिस्तान के इस सच से बहुत सीखने की आवश्यकता है । यदि 'अहिंसा परमो धर्म:' - का गीत गाते गाते हमने भी अफगानिस्तान के मूल निवासियों जैसी मूर्खता को गले लगाया तो कल को हमारे लिए भी कोई यही कहेगा कि 'दिल्ली जल रही है।' आज कई लोग ऐसे हैं जो देश की केंद्रीय सरकार पर यह दबाव बना रहे हैं कि अफगानिस्तान में आयी मानवीय समस्या के दृष्टिगत वहां के मुस्लिम शरणार्थियों को शरण दी जाए। हमारा मानना है कि जो लोग ऐसी मांग मांग कर रहे हैं वह इतिहास से कोई शिक्षा न लेकर एक बड़ी मूर्खता करवाने की तैयारी केंद्र सरकार से करवाना चाहते हैं। इस संदर्भ में केंद्र सरकार से हमारा विनम्र आग्रह है कि किसी भी स्थिति में किसी भी अफगानिस्तानी मुस्लिम को यहां शरण ना दी जाए। क्योंकि शरण मांगने वाले विदेशी ही इस देश के लिए गद्दार सिद्ध हुए हैं। हमें इतिहास को अपने सामने एक आईने के रूप में रखना चाहिए और उसमें अपना चेहरा देखकर ही काम करने का आदी होना चाहिए। देश के प्रधानमंत्री माननीय मोदी जी और उनके सभी रणनीतिकारों के लिए यह समझना आवश्यक है कि एक बार कंधार के तत्कालीन शासक अमीर अली खान पठान को किसी कारण से जैसलमेर राज्य में शरण लेनी पड़ी। तब यहां के महारावल लूणकरण थे। वे महारावल जैतसिंह के ज्येष्ठ पुत्र होने के कारण उनके बाद यहां के शासक बने। महारावल लूणकरण भाटी बहुत ही देशभक्त, संस्कृति और धर्म के प्रति अनुराग रखने वाले महान शासक थे। पर विदेशियों के अनुरोध पर शरण देने की भारत की परंपरागत बीमारी के वह भी शिकार थे। जब उनके सामने अफगानिस्तान के इस शासक का शरण देने संबंधी प्रस्ताव आया तो उन्होंने उसे सहर्ष स्वीकार कर लिया। क्योंकि वह मानते थे कि जिस विदेशी शासक की ओर से यह प्रस्ताव आया है वह तो उनका पहले से ही मित्र है और मित्र भविष्य में कभी भी गद्दारी नहीं कर सकता । बस, इसी भूल में महारावल ने विदेशी गद्दार को अपने यहां शरण दे दी, जिसके भविष्य में उन्हें भयंकर परिणाम भुगतने पड़े। जब तक महारावल लूणकरण भाटी के किले और उनके सुरक्षा चक्र का इस विदेशी तथाकथित अतिथि को सही ज्ञान नहीं हुआ तब तक तो वह शांत बैठा रहा , पर जैसे-जैसे उसे महारावल के विषय में जानकारी होती गई वैसे-वैसे उसके भीतर गद्दारी का भाव विकसित होने लगा । लम्बे समय से दुर्ग में रहते हुए अमीर अली खान पठान को किले की व्यवस्था और गुप्त मार्ग की सारी जानकारी मिल चुकी थी। अब उसके मन में दिन रात एक ही योजना बनने लगी कि कैसे इस किले पर अपना अधिकार स्थापित किया जाए और लूणकरण भाटी व उसके परिवार का अंत कर हिंदुस्तान में अपनी सल्तनत कायम की जाए ? अपने विदेशी अतिथि के इस गद्दारी भाव से पूर्णतया बेखबर राजा लूणकरण भाटी उसके प्रति प्रेम और अनुराग का भाव प्रकट करते रहे और आस्तीन के सांप को दूध पिलाते रहने का कार्य करते रहे। उन्हें तनिक भी यह ज्ञान और भान नहीं हो पाया कि इस विदेशी अतिथि के मन मस्तिष्क में उनके प्रति कैसी योजनाएं बन रही हैं ? वे अंधे होकर अपने इस विदेशी अतिथि की बातों पर विश्वास करते थे और उसके साथ अपनी कूटनीतिक व रणनीतिक योजनाओं पर भी विचार विमर्श कर लिया करते थे। महारावल को सपने में भी यह विचार कभी नहीं आया कि यह विदेशी अतिथि उनके विनाश की योजनाएं बना रहा है। इधर राजकुमार मालदेव अपने कुछ मित्रों और सामंतों के साथ शिकार पर निकल पड़े। अमीर अली खान पठान ने इस अवसर को अपने लिए सर्वथा अनुकूल समझा। उसने देख लिया कि अब महारावल और उसकी महारानी इस समय महल में उतने सुरक्षित नहीं है, जितने होने चाहिए । अतः उसने अपनी योजना को गंभीरता से लागू करने की दिशा में कदम बढ़ा दिया। वह पहले से ही यह योजना बना चुका था कि जब उचित अवसर आएगा तो महारावल लूणकरण भाटी को किस प्रकार अपने विश्वास में लेकर उसके किले को छीनने की योजना पर काम किया जाएगा? अब उसने महारावल लूणकरण भाटी को संदेश भिजवाया कि यदि महारावल उसे आज्ञा दें तो उसकी पर्दानशीन बैगमें रनिवास में जाकर महारानी और रनिवास की अन्य महिलाओं से मुलाकात कर लें। उसने महारावल को भ्रमित करते हुए और उसे अपने विश्वास में लेते हुए कहा कि इस प्रकार की मेल मुलाकातों से दोनों राज्य परिवारों की महिलाएं एक दूसरे के निकट आ सकेंगी और एक दूसरे को समझ सकेंगी । महारावल पठान की बातों में आ गए और उन्होंने बिना आगा पीछा सोचे अपने विदेशी अतिथि को इस बात की अनुमति दे दी कि उसकी महिलाएं रनिवास में जाकर महारानी और राजपरिवार की अन्य महिलाओं से भेंट कर लें। महारावल की अनुमति प्राप्त करते ही पठान की बांछें खिल गई। उसने ऊपर से तो विनम्रता का नाटक किया परंतु भीतर ही भीतर उसे इस बात की असीम खुशी हो रही थी कि महारावल लूणकरण भाटी उसकी बातों में आ गए हैं और आज वह अपने सपने को साकार होते देखेगा। अपनी योजना को क्रियान्वित करते हुए पठान ने बहुत सारी पर्दे वाली पालकी दुर्ग के भीतर भिजवानी आरंभ कर दीं। उन पालकियों में इस विदेशी गद्दार अतिथि ने अपने सशस्त्र सैनिकों को बैठा रखा था। कुछ देर में ही महल के मुख्यद्वार पर खड़े प्रहरियों को इस बात का आभास होने लगा कि दाल में कुछ काला है। अपनी बात की पुष्टि के लिए उन प्रहरियों ने एक पालकी का पर्दा हटा दिया। पर्दा हटते ही उन्हें भीतर किसी बेगम के दर्शन ना होकर दो तीन सशस्त्र सैनिकों के दर्शन हुए। जिन्हें देखकर वह सारी स्थिति को समझ गए। अब क्या था ? उन सैनिकों को देखते ही किले के भीतर मारकाट आरंभ हो गई। हमारे वीर योद्धाओं ने उन षड्यंत्रकारी राक्षसों का संहार करना आरंभ कर दिया। सबको महारावल और राज परिवार की महिलाओं की सुरक्षा की चिंता थी, इसलिए अपने प्राणों की परवाह न कर सब वीर योद्धा उन विदेशी राक्षसों का विनाश करने में जुट गए। चारों ओर अफरा -तफरी मच गई किसी को भी अमीर अली खान पठान के इस विश्वासघात की पहले भनक तक नहीं थी। कोलाहल सुनकर दुर्ग के सबसे ऊंचे बुर्ज पर बैठे प्रहरियों ने संकट के ढोल-नगाड़े बजाने आरम्भ कर दिए। जिसकी घुर्राने की आवाज दस-दस कोश तक सुनाई देने लगी। महारावल ने रनिवास की सब महिलाओं को बुला कर अचानक आए हुए संकट के बारे में बताया। अब अमीर अली खान पठान से आमने-सामने युद्ध करने के सिवाय और कोई उपाय नहीं था। राजकुमार मालदेव और सांमत पता नहीं कब तक लौटेंगे। दुर्ग से बाहर निकलने के सारे मार्ग पहले ही बंद किए जा चुके थे। राजपरिवार की स्त्रियों को अपना सम्मान बचाने के लिए जौहर के सिवाय कुछ और उपाय नहीं दिखाई दे रहा था। अचानक से किया गया आक्रमण बहुत ही भंयकर था और महल में जौहर के लिए लकड़ियां भी बहुत कम थी। इसलिए सब महिलाओं ने महारावल के सामने अपने अपने सिर आगे कर दिये और सदा सदा के लिए बलिदान हो गयीं। महारावल केसरिया बाना पहन कर युद्ध करते हुए रणभूमि में बलिदान हो गए । महारावल लूणकरण भाटी को अपने परिवार सहित चार भाई, तीन पुत्रों के साथ, कई विश्वास पात्र वीरों को खोकर मित्रता की कीमत चुकानी पड़ी। इधर रणदुंन्दुभियों की आवाज सुनकर राजकुमार मालदेव दुर्ग की तरफ दौड़ पड़े। वे अपने सामंतों और सैनिकों को लेकर महल के गुप्त द्वार से किले में प्रवेश कर गए और अमीर अली खान पठान पर प्रचण्ड आक्रमण कर दिया।अमीर अली खान पठान को इस आक्रमण की बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी। अंत में उसे पकड़ लिया गया और चमड़े के बने कुड़िए में बंद करके दुर्ग के दक्षिणी बुर्ज पर तोप के मुँह पर बांध कर उड़ा दिया गया। इस क्रूर घटना को इतिहास ने बड़ी निकटता से देखा और उसे अपने मर्म में छुपा भी लिया, पर दुर्भाग्य कि इससे इतिहास ने कोई शिक्षा नहीं ली। आज जब इतिहास के दोबारा लिखे जाने की बातें हो रही हैं तो हमें इतिहास की इन घटनाओं को इसलिए पुन: लिखित करना चाहिए कि हमारा वर्तमान अतीत से शिक्षा लेकर भविष्य की उज्जवलता का निर्माण करे। देश की वर्तमान सरकार और प्रधानमंत्री मोदी जी को इतिहास की इस प्रकार की क्रूर घटनाओं को एक नजीर के रूप में देखना चाहिए। उन्हें समझना चाहिए कि विदेशी गद्दार कभी भी हमारे अतिथि या शरणार्थी नहीं हो सकते। विशेष रूप से वे लोग जिनके लिए हम काफिर हैं। वे हमें चारे के रूप में तो प्रयोग कर सकते हैं भाईचारे के रूप में कभी नहीं। कुल मिलाकर गंधार अपनी गलतियों से जल रहा है और हमें वे गलतियां नहीं दोहरानी हैं जिनका अंतिम परिणाम जलना या गलना होता है। डॉ राकेश कुमार आर्य संपादक : उगता भारत दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com |
चेतन शक्ति और भक्ति आश्रयदाता त्र्यम्बकेश्वर Posted: 27 Aug 2021 11:06 PM PDT चेतन शक्ति और भक्ति आश्रयदाता त्र्यम्बकेश्वर सत्येन्द्र कुमार पाठक भारतीय संस्कृति और पुरणों के अनुसार त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग का दर्शन और महामृत्जुंजय की उपासना का महत्वपुर्ण उल्लेख है शिव पुराण के कोटिरुद्रसंहिता का अध्याय 24 , 25 , 26 के अनुसार ऋषि गौतम और अहिल्या के तप करने के कारण भगवान शिव , ब्रह्मा और विष्णु के रूप में त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिङ्ग स्थापित हुए थे । ऋषि गौतम द्वारा अपने ऊपर दुष्टों द्वारा लगाए गए मिथ्या दोष गौ हत्या के प्रयाश्चित करने के लिये ब्रह्मगिरि की 101 बार परिक्रमा , 03 बार पृथिवी की परिक्रमा , एक करोड़ पार्थिव लिंग की पूजा तथा 11 बार गंगा जल से स्नान कर भगवान शिव की आराधना की थी ।पत्नी अहिल्या सहित ऋषि गौतम की उपासना से संतुष्ट हो कर भगवान शिव और शिव ऋषि गौतम दर्शन , गोदावरी गंगा का प्रकट जिसे गौतमी गंगा , वृस्पति के सिह राशि आर् गोदावरी का प्रकट होने और भगवान शिव का त्रयम्बक शिवलिंग के रूप में प्रकट हो कर आशीर्वचन पप्राप्त किये थे । महाराष्ट्र राज्य का नासिक जिले में त्रयंबक के ब्रह्मगिरि से उद्गम गोदावरी नदी के किनारे त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थापित हैं। यहां के निकटवर्ती ब्रह्म गिरि नामक पर्वत से गोदावरी नदी का उद्गम है। गौतम ऋषि तथा गोदावरी के उपासना से प्रसन्न हो कर गौतम ऋषि तथा गोदावरी की उपासना स्थल पर भगवान शिव निवास करने के कारण त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग से विख्यात हुए है । त्र्यम्बकेश्वर मंदिर के गर्भगृह में ब्रह्मा, विष्णु और शिव लिंग के रूप में देवों के प्रतीक हैं। शिवपुराण के अनुसार ब्रह्मगिरि पर्वत पर जाने के लिये सात सौ सीढ़ियों पर चढ़ने के बाद 'रामकुण्ड' और 'लक्षमण कुण्ड' मिलने के बाद और ब्रह्मगिरि शिखर के ऊपर गोमुख से प्रवाहित होने वाली भगवती गोदावरी के दर्शन होते हैं। त्र्यंबकेश्वर ज्योर्तिलिंग मंदिर में ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों ही विराजित होने के कारण ज्योतिर्लिंग की सबसे बड़ी विशेषता है। गोदावरी नदी के किनारे स्थित त्र्यंबकेश्वर मंदिर काले पत्थरों से निर्मित होने के कारण मंदिर की स्थापत्य अद्भुत है। मंदिर के पंचक्रोशी में कालसर्प शांति, त्रिपिंडी विधि और नारायण नागबलि की पूजा संपन्न होती है। प्राचीन मंदिर का पुनर्निर्माण नाना साहब पेशवा द्वारा 1755 में प्रारम्भ किया गया और 1786 में पूर्ण किया गया था । त्र्यंबकेश्वर मंदिर की भव्य इमारत सिंधु-आर्य शैली का उत्कृष्ट नमूना है। मंदिर के अंदर गर्भगृह में प्रवेश करने के बाद शिवलिंग की केवल आर्घा दिखाई देती है, लिंग नहीं। गौर से देखने पर अर्घा के अंदर एक-एक इंच के तीन लिंग दिखाई देते हैं। इन लिंगों को त्रिदेव- ब्रह्मा-विष्णु और महेश का अवतार माना जाता है। भोर के समय होने वाली पूजा के बाद इस अर्घा पर चाँदी का पंचमुखी मुकुट चढ़ा दिया जाता है।त्र्यंबकेश्वर मंदिर और गाँव ब्रह्मगिरि नामक पहाड़ी की तलहटी में स्थित है। इस गिरि को शिव का साक्षात रूप माना जाता है। ब्रह्म गिरि पर्वत पर पवित्र गोदावरी नदी का उद्गमस्थल है। त्रयम्बक में अपने ऊपर लगे गोहत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए गौतम ऋषि ने कठोर तप कर शिव से गंगा को यहाँ अवतरित करने का वरदान माँगा। फलस्वरूप दक्षिण की गंगा गोदावरी नदी का उद्गम हुआ।गोदावरी के उद्गम के साथ ही गौतम ऋषि के अनुनय-विनय के उपरांत शिवजी ने मंदिर में विराजमान होना स्वीकार कर लिया। तीन नेत्रों वाले शिवशंभु के त्रयम्बक स्थल पर विराजमान होने के कारण गौतम ऋषि की तपोभूमि को त्र्यंबक (तीन नेत्रों वाले) कहा जाने लगा है । त्र्यम्बक का राजा भगवान त्र्यम्बकेश्वर है । प्रत्येक सोमवार को त्रयम्बक का राजा भगवान त्र्यंबकेश्वर अपनी प्रजा तथा भक्तों की रक्षा करते हैं। महर्षि गौतम के तपोवन में रहने वाले ब्राह्मणों की पत्नियाँ किसी बात पर उनकी पत्नी अहिल्या से नाराज हो गईं। उन्होंने अपने पतियों को ऋषि गौतम का अपमान करने के लिए प्रेरित किया। उन ब्राह्मणों ने इसके निमित्त भगवान् श्रीगणेशजी की आराधना की। उनकी आराधना से प्रसन्न हो गणेशजी ने प्रकट होकर उनसे वर माँगने को कहा उन ब्राह्मणों ने कहा- 'प्रभो! यदि आप हम पर प्रसन्न हैं । किसी प्रकार ऋषि गौतम को आश्रम से बाहर निकाल दें।' उनकी यह बात सुनकर गणेशजी ने उन्हें ऐसा वर न माँगने के लिए समझाया। किंतु वे अपने आग्रह पर अटल रहे।अंततः गणेशजी को विवश होकर उनकी बात माननी पड़ी। अपने भक्तों का मन रखने के लिए वे एक दुर्बल गाय का रूप धारण करके ऋषि गौतम के खेत में जाकर रहने लगे। गाय को फसल चरते देखकर ऋषि बड़ी नरमी के साथ हाथ में तृण लेकर उसे हाँकने के लिए लपके। उन तृणों का स्पर्श होते ही वह गाय वहीं मरकर गिर पड़ी। अब तो बड़ा हाहाकार मचा। सारे ब्राह्मण एकत्र हो गो-हत्यारा कहकर ऋषि गौतम की भर्त्सना करने लगे। ऋषि गौतम इस घटना से बहुत आश्चर्यचकित और दुःखी थे। अब उन सारे ब्राह्मणों ने कहा कि तुम्हें यह आश्रम छोड़कर अन्यत्र कहीं दूर चले जाना चाहिए। गो-हत्यारे के निकट रहने से हमें भी पाप लगेगा। विवश होकर ऋषि गौतम अपनी पत्नी अहिल्या के साथ वहाँ से एक कोस दूर जाकर रहने लगे। किंतु उन ब्राह्मणों ने वहाँ भी उनका रहना दूभर कर दिया। वे कहने लगे- 'गो-हत्या के कारण तुम्हें अब वेद-पाठ और यज्ञादि के कार्य करने का कोई अधिकार नहीं रह गया।' अत्यंत अनुनय भाव से ऋषि गौतम ने उन ब्राह्मणों से प्रार्थना की कि आप लोग मेरे प्रायश्चित और उद्धार का कोई उपाय बताएँ।तब उन्होंने कहा- 'गौतम! तुम अपने पाप को सर्वत्र सबको बताते हुए तीन बार पूरी पृथ्वी की परिक्रमा करो। फिर लौटकर यहाँ एक महीने तक व्रत करो। इसके बाद 'ब्रह्मगिरी' की 101 परिक्रमा करने के बाद तुम्हारी शुद्धि होगी अथवा यहाँ गंगाजी को लाकर उनके जल से स्नान करके एक करोड़ पार्थिव शिवलिंगों से शिवजी की आराधना करो। इसके बाद पुनः गंगाजी में स्नान करके इस ब्रह्मगीरि की 11 बार परिक्रमा करो। फिर सौ घड़ों के पवित्र जल से पार्थिव शिवलिंगों को स्नान कराने से तुम्हारा उद्धार होगा। ब्राह्मणों के कथनानुसार महर्षि गौतम वे सारे कार्य पूरे करके पत्नी के साथ पूर्णतः तल्लीन होकर भगवान शिव की आराधना करने लगे। इससे प्रसन्न हो भगवान शिव ने प्रकट होकर उनसे वर माँगने को कहा। महर्षि गौतम ने उनसे कहा- 'भगवान् मैं यही चाहता हूँ कि आप मुझे गो-हत्या के पाप से मुक्त कर दें।' भगवान् शिव ने कहा- 'गौतम ! तुम सर्वथा निष्पाप हो। गो-हत्या का अपराध तुम पर छल पूर्वक लगाया गया था। छल पूर्वक ऐसा करवाने वाले तुम्हारे आश्रम के ब्राह्मणों को मैं दण्ड देना चाहता हूँ।'इस पर महर्षि गौतम ने कहा कि प्रभु! उन्हीं के निमित्त से तो मुझे आपका दर्शन प्राप्त हुआ है। अब उन्हें मेरा परमहित समझकर उन पर आप क्रोध न करें।' बहुत से ऋषियों, मुनियों और देव गणों ने वहाँ एकत्र हो गौतम की बात का अनुमोदन करते हुए भगवान् शिव से सदा वहाँ निवास करने की प्रार्थना की। वे उनकी बात मानकर वहाँ त्र्यम्बक ज्योतिर्लिंग के नाम से स्थित हो गए। गौतमजी द्वारा लाई गई गंगाजी भी वहाँ पास में गोदावरी नाम से प्रवाहित होने लगीं। यह ज्योतिर्लिंग समस्त पुण्यों को प्रदान करने वाला है।इस भ्रमण के समय त्र्यंबकेश्वर महाराज के पंचमुखी सोने के मुखौटे को पालकी में बैठाकर गाँव में घुमाया जाता है। फिर कुशावर्त तीर्थ स्थित घाट पर स्नान कराया जाता है। इसके बाद मुखौटे को वापस मंदिर में लाकर हीरेजड़ित स्वर्ण मुकुट पहनाया जाता है। यह पूरा दृश्य त्र्यंबक महाराज के राज्याभिषेक-सा महसूस होता है। इस यात्रा को देखना बेहद अलौकिक अनुभव है।'कुशावर्त तीर्थ की जन्मकथा काफी रोचक है। कहते हैं ब्रह्मगिरि पर्वत से गोदावरी नदी बार-बार लुप्त हो जाती थी। गोदावरी के पलायन को रोकने के लिए गौतम ऋषि ने एक कुशा की मदद लेकर गोदावरी को बंधन में बाँध दिया। उसके बाद से ही इस कुंड में हमेशा लबालब पानी रहता है। इस कुंड को ही कुशावर्त तीर्थ के नाम से जाना जाता है। कुंभ स्नान के समय शैव अखाड़े इसी कुंड में शाही स्नान करते हैं।'शिवरात्रि और सावन सोमवार के दिन त्र्यंबकेश्वर मंदिर में भक्तों का ताँता लगा रहता है। भक्त भोर के समय स्नान करके अपने आराध्य के दर्शन करते हैं। यहाँ कालसर्प योग और नारायण नागबलि नामक खास पूजा-अर्चना होती है । श्री त्रंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग तीन छोटे-छोटे लिंग ब्रह्मा, विष्णु और शिव प्रतीक स्वरूप, त्रि-नेत्रों वाले भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। मंदिर के अंदर गर्भगृह में प्रायः शिवलिंग दिखाई नहीं देता है, गौर से देखने पर अर्घा के अंदर एक-एक इंच के तीन लिंग दिखाई देते हैं। सुवह होने वाली पूजा के बाद इस अर्घा पर चाँदी का पंचमुखी मुकुट चढ़ा दिया जाता है।त्र्यंबकेश्वर मंदिर का निर्माण पेशवा बालाजी बाजीराव तृतीय ने पुराने मंदिर स्थल पर ही करवाया था। मंदिर का निर्माण कार्य 1755 में प्रारंभ होकर 31 साल के लंबे समय के बाद सन् 1786 में पूर्ण हुआ। त्र्यंबकेश्वर मंदिर तीन पहाड़ियों ब्रह्मगिरी, नीलगिरि और कालगिरि के बीच स्थित है। त्रंबकेश्वर को सोमवार को चाँदी के पंचमुखी मुकुट को पालकी में बैठाकर गाँव में प्रजा का हाल जानने हेतु भ्रमण कराया जाता है। कुशावर्त तीर्थ स्थित घाट पर स्नान के उपरांत वापस मंदिर में शिवलिंग पर पहनाया जाता है। त्र्यंबक महाराज के राज्याभिषेक है, तथा इस अलौकिक यात्रा में सामिल होना अत्यंत सुखद अनुभव है।कालसर्प शांति, त्रिपिंडी विधि और नारायण नागबलि पूजन केवल श्री त्रंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग पर ही संपन्न किया जाता है। मंदिर के गर्भ-ग्रह में स्त्रियों का प्रवेश पूर्णतया वर्जित है। शिव ज्योतिर्लिंग!शिवरात्रि / त्रयोदशी सावन के सोमवारश्री रुद्राष्टकम् , श्री गोस्वामितुलसीदासकृतं शिव आरती श्री शिव चालीसा , महामृत्युंजय मंत्र, संजीवनी मंत्र मंदिर में निरंतर होते है । स्वयंभू द्वारा सतयुग में त्र्यम्बकेश्वर की स्थापना कर भगवान शिव को समर्पित किया था । त्रयम्बकेश्वर मंदिर का हेमाडपंती शैली में निर्मित है। त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग का दर्शन तथा गोदावरी नदी में स्नान ,उपासना करने और गोदावरी के किनारे शयन करने से समस्त मनोकामना की पूर्ति , काल सर्प दोष , सभी ऋणों से मुक्ति तथा जीवन सुखमय होता है ।महामृत्युञ्जय मन्त्र - "मृत्यु को जीतने वाला महान मंत्र" को त्रयम्बकम मन्त्र कहा जाता है, यजुर्वेद के रूद्र अध्याय में, भगवान शिव की स्तुति हेतु की गयी एक वन्दना है। मन्त्र में शिव को 'मृत्यु को जीतने वाला' बताया गया है। यह गायत्री मन्त्र के समकक्ष सनातन धर्म का सबसे व्यापक रूप से जाना जाने वाला मन्त्र है।भगवान शिव के तीन आँखों की ओर इशारा करते हुए त्रयंबकम मन्त्र और मृत-संजीवनी मन्त्र के रूप में जाना जाता है । कठोर तपस्या पूरी करने के बाद ऋषि शुक्र को प्रदान की गई है। ऋषि-मुनियों ने महा मृत्युंजय मन्त्र को वेद का ह्रदय कहा है। ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्।।है "त्रिनेत्रों वाला", रुद्र ! तीनों कालों में हमारी रक्षा करने वाले भगवान को हम पूजते हैं, सम्मान करते हैं, हमारे श्रद्देय मीठी महक वाला,सुगन्धित एक सुपोषित स्थिति, फलने-फूलने वाली, समृद्ध जीवन की सुपोषित स्थिति, फलने-फूलने वाली, समृद्ध जीवन की परिपूर्णता वह जो पोषण करता है, शक्ति देता है, (स्वास्थ्य, धन, सुख में) वृद्धिकारक; जो हर्षित करता है, आनन्दित करता है और स्वास्थ्य प्रदान करता है, एक अच्छा माली की तरह तना मृत्यु से हमें स्वतन्त्र करें, मुक्ति दें नहीं वंचित होएँ अमरता, मोक्ष के आनन्द से परिपूर्ण करें । ऋषि मृकण्ड की तपस्या से मार्कण्डेय पुत्र हुआ। ज्योतिर्विदों ने मार्कण्डेय शिशु के लक्षण देखकर ऋषि के हर्ष को चिंता में परिवर्तित कर दिया। उन्होंने कहा यह बालक अल्पायु और बारह वर्ष है। मृकण्ड ऋषि ने अपनी पत्नी को आश्वत किया-देवी, चिंता मत करो। विधाता जीव के कर्मानुसार आयु दे सकते हैं । भाग्यलिपि को स्वेच्छानुसार परिवर्तित कर देना भगवान शिव के लिए विनोद मात्र है। ऋषि मृकण्ड के पुत्र मार्कण्डेय का शैशव बीता और कुमारावस्था के प्रारम्भ में पिता ने उन्हें शिव मन्त्र की दीक्षा तथा शिवार्चना की शिक्षा दी। पुत्र मार्कण्डेय को उसका भविष्य बता कर समझा दिया कि त्रिपुरारी उसे मृत्यु से बचा सकते हैं। माता-पिता दिन गिन रहे थे। मार्कंडेय ऋषि ने मृत्युंजय मन्त्र त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धन्म। उर्वारुकमिव बन्धनामृत्येर्मुक्षीय मामृतात्॥ से भगवान शिव की उपासना की थी । काल किसी की भी प्रतीक्षा नहीं करता। यमराज के दूत समय पर आए और संयमनी लौट गए। यमदूतों ने अपने स्वामी यमराज से जाकर निवेदन किया- हम मार्कण्डेय तक पहुँचने का साहस नहीं पाए। इस पर यमराज ने कहा कि मृकण्ड को पुत्र को मैं स्वयं लाऊँगा। दण्डधर यमराज जी महिषारूढ़ हुए और क्षण भर में मार्कण्डेय के पास पहुँच गये। बालक मार्कण्डेय ने उन कज्जल कृष्ण, रक्तनेत्र पाशधारी को देखा सम्मुख की लिंगमूर्ति से लिपट गया। अद्भुत अपूर्व हुँकार और मन्दिर, दिशाएँ जैसे प्रचण्ड प्रकाश से चकाचौंथ हो गईं। शिवलिंग से तेजोमय त्रिनेत्र चन्द्रशेखर प्रकट हो गए और उन्होंने त्रिशूल उठाकर यमराज से बोले, हे! यमराज तुमने मेरे आश्रित पर पाश उठाने का साहस कैसे किया है ? यमराज ने उससे पूर्व ही हाथ जोड़कर मस्तक झुका लिया था और कहा कि हे! त्रिनेत्र मैं आपका सेवक हूँ। कर्मानुसार जीव को इस लोक से ले जाने का निष्ठुर कार्य प्रभु ने इस सेवक को दिया है। भगवान चन्द्रशेखर ने कहा कि यह संयमनी नहीं जाएगा। इसे मैंने अमरत्व दिया है। मृत्युंजय प्रभु की आज्ञा को यमराज अस्वीकार कैसे कर सकते थे? यमराज खाली हाथ लौट गए। मार्कण्डेय ने यह देख कर भोलेनाथ को सिर झुकाए और उनकी स्तुति करने लगे। उर्वारुमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्। वृन्तच्युत खरबूजे के समान मृत्यु के बन्धन से छुड़ाकर मुझे अमृतत्व प्रदान करें। मन्त्र के द्वारा चाहा गया वरदान उस का सम्पूर्ण रूप से उसी समय मार्कण्डेय को प्राप्त हो गया। कलौकलिमल ध्वंयस सर्वपाप हरं शिवम्। येर्चयन्ति नरा नित्यं तेपिवन्द्या यथा शिवम्।। स्वयं यजनित चद्देव मुत्तेमा स्द्गरात्मवजै:। मध्यचमा ये भवेद मृत्यैतरधमा साधन क्रिया।।देव पूजा विहीनो य: स नरा नरकं व्रजेत। यदा कथंचिद् देवार्चा विधेया श्रध्दायान्वित।। जन्मचतारात्र्यौ रगोन्मृदत्युतच्चैरव विनाशयेत्। दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com |
Posted: 27 Aug 2021 10:32 PM PDT फिर चलो स्कूल पढ़ने !खुल गए 'स्कूल' फिर से चलो पढ़ने अभी तक मस्ती बहुत की 'लाकड़ाउन' में रह रहे थे साथ में सब गेह 'गाउन' में समय की घण्टी बजी भाग्य गढ़ने खुल गए 'स्कूल' फिर से चलो पढ़ने पढ़ रहे थे घर घुसे सभी 'आन-लाइन' मिल न पाया ज्ञान का शुभ एक 'साइन' समय है नाजुक बहुत राह कढ़ने खुल गए 'स्कूल' फिर से चलो पढ़ने खोलकर आंखे हंसी कापी-किताबें रबर-पेंसिल कर रहीं आपस में बातें कखगघ एबीसीडी शब्द मढ़ने खुल गए 'स्कूल' फिर से चलो पढ़ने पहन कर 'ड्रेस-टाई' पीठों पे बस्ते चल पड़े हैं 'शूज'सज 'स्कूलों' के रस्ते खिलखिलाकर डग बढ़े 'क्लास' चढ़ने खुल गए 'स्कूल' फिर से चलो पढ़ने * 27/08/2021 ~जयराम जय 'पर्णिका'बी-11/1,कृष्ण विहार,आवास विकास, कल्याणपुर,कानपुर-208017(उ.प्र.) दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com |
Posted: 27 Aug 2021 10:22 PM PDT इस्लामी अफगानिस्तान में जाकर कबीर खान राष्ट्रनिर्माण करें !क्रूर मुगल आक्रांता 'राष्ट्र निर्माता'; तो प्रभु श्रीराम से लेकर छत्रपति शिवाजी महाराज तक हुए हिन्दू राजा कौन थे ? - हिन्दू जनजागृति समिति का कबीर खान से प्रश्नविगत सप्ताह ही अफगानिस्तान में तालिबान द्वारा सत्ता नियंत्रण में लेने पर वहां की जनता पर किए जा रहे अत्याचार और देश से पलायन करने हेतु नागरिकों द्वारा किया जा रहा संघर्ष दिखाई दे रहा है । 12 वर्ष की बच्चीयों को ढूंढकर बलपूर्वक ले जाने से लेकर पत्रकार और नागरिकों की हत्या करने तक का सत्य आधुनिक माध्यम विश्व के सामने प्रस्तुत कर रहे हैं । विगत सत्ताकाल में तालिबानियों ने बामियान की प्राचीन बुद्धमूर्ति किस प्रकार उद्ध्वस्त की, यह सभी ने देखा है । वर्तमान आधुनिक काल में अल्पसंख्यक और अन्य पंथियों के श्रद्धास्थानों पर इतने अत्याचार किए जा रहे हो, तो 700-800 वर्षों पूर्व भारत पर आक्रमण करनेवाले मुगल आक्रांताओं ने कितने अत्याचार किए होंगे, इसकी कल्पना भी हम नहीं कर सकते ! यह सभी सत्य छुपाने के लिए भारत का एक विशिष्ट गुट प्रयासरत है । टीपू सुल्तान को 'देशभक्त' घोषित करने से लेकर औरंगजेब को 'सूफी संत' बताने हेतु उनके प्रयास चल रहे हैं । भारत का बॉलीवुड तो इसमें प्रथम स्थान पर है । पाकिस्तान द्वारा भारत पर आक्रमण कर सैनिकों की हत्या करने का दुःख उन्हें नहीं होता; परंतु वे पाकिस्तानी कलाकारों को भारत में लाकर उनसे भाईचारा दर्शाकर उन्हें रोजगार उपलब्ध करवाते हैं । इसी कडी में 'दी एम्पायर' नामक बाबर का माहिमामंडन करनेवाली वेबसीरीज प्रदर्शित हो रही है, उसी समय बॉलीवुड के एक दिग्दर्शक कबीर खान को मुगल ही खरे 'राष्ट्र निर्माता' होने का बोध हुआ है । उन्होंने कहा 'मुगल और मुसलमान शासकों को खलनायक दिखाना चिंताजनक है ।' ऐसे में प्रश्न निर्माण होता है कि 'आक्रांता मुगल यदि 'राष्ट्र निर्माता' है, तो फिर प्रभु श्रीराम से लेकर छत्रपति शिवाजी महाराज तक भारत भूमि में जन्मे हिन्दू राजा कौन थे ?' 17 बार सोमनाथ मंदिर, 18 बार जगन्नाथ मंदिर किसने लूटा ? हिंदुओं के अयोध्या-मथुरा-काशी के भव्य मंदिरों को किसने उद्ध्वस्त किया ? सिख गुरुओं पर अमानवीय अत्याचार कर उनकी हत्या किसने की ? 30 वर्षों पूर्व कश्मीर में इस्लामी राष्ट्रनिर्माण का कार्य करने के लिए हिन्दू पंडितों पर किए गए अत्याचारों के कारण विस्थापित एक भी हिन्दू पंडित आज तक कश्मीर में वापस नहीं गया । इतना सब होते हुए भी भारत में असुरक्षित एवं भय अनुभव करने का ढोंग करनेवालों को अब भारत में निराश होकर रहने की अपेक्षा जहां अब संपूर्ण इस्लामी शरीयत लागू है, उस अफगानिस्तान में जाकर राष्ट्र निर्माण का कार्य करना चाहिए, ऐसा सुझाव हिन्दू जनजागृति समिति ने कबीर खान को दिया है । मुगल आक्रांताओं के वास्तविक अत्याचारों से भरे इतिहास पर परदा डालकर तालिबान का समर्थन करने का यह षडयंत्र है । वास्तव में इन आक्रमणकारियों की क्रूरता का वर्णन उन्हीं के अखबार इत्यादि इतिहासग्रंथों में है । इन इतिहासग्रंथो में हिन्दुओं को बलपूर्वक मुसलमान बनाना, मंदिरों का विध्वंस करना, महिलाओं को गुलाम बनाने हेतु दिए आदेश आज भी उपलब्ध है । ऐसे में मुसलमानों को खलनायक दिखाने के विषय में खेद व्यक्त करनेवालों पर आश्चर्य होता है । सिख गुरु, स्वयं के भाई दारा शिकोह, छत्रपति संभाजी महाराज की तडपा-तडपाकर हत्या करनेवाला क्रूर औरंगजेब क्या 'राष्ट्र निर्माता' था ? तालिबानी विचारधारा की सहायता करनेवाले कबीर खान को सबक सीखाने के लिए उसके आगामी सभी फिल्मों पर, साथ ही क्रूर बाबर का महिमामंडन करनेवाली 'दी एम्पायर' वेबसीरीज प्रदर्शित करनेवाली 'डीजनी-हॉटस्टार' का हिन्दू बहिष्कार करें, ऐसा आवाहन समिति ने किया है । दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com |
मुजफ्फरपुर में बनेगा रिंग रोड | Posted: 27 Aug 2021 10:17 PM PDT मुजफ्फरपुर में बनेगा रिंग रोड |हमारे संवाददाता पियूष रंजन की खास खबर रिंग रोड़ बनाने को मंजूरी दे दी गई है जिसकी कुल लंबाई 17.5 किलोमीटर होगी और यह रोड़ दरभंगा फोरलेन मोड़ से लेकर मधौल होते हुए बायपास से सदातपुर फोरलेन तक बनाया जाएगा। कांटी, कुढ़नी और मुशहरी अंचल के अंतर्गत आने वाले 38 गांव से इसके निर्माण के लिए भूमि अधिग्रहण किया जाएगा। रिंग रोड के निर्माण के संबंध में भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण, मुजफ्फरपुर के प्रस्ताव पर रोड ट्रांसपोर्ट एंड हाईवे मंत्रालय ने अधिसूचना जारी कर दिया है। भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) की ओर से कहा गया है कि इस 17.5 किलोमीटर लंबे रिंग रोड़ के निर्माण के लिए भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया जल्द शुरू की जाएगी। बुधवार को जिला अधिकारी की अध्यक्षता में हुई प्रोजेक्ट माॅनिटरिंग कमेटी की बैठक में एनएचएआई मुजफ्फरपुर के पीडी ने जानकारी देते हुए बताया कि एनएचएआई की ओर से रिंग रोड के निर्माण को मंजूरी दे दी गई है। जिसके लिए इसपर आने वाले खर्च को लेकर जल्द ही एस्टीमेट तैयार किया जाएगा। इस रिंग रोड़ के निर्माण कर क्रम मर बूढ़ी गंडक नदी पर रजवाड़ा के पास पुल निर्माण की भी आवश्यकता पड़ सकती है। इसके अलावा मुजफ्फरपुर-बरौनी और मुजफ्फरपुर-सोनबरसा टू लेन का विस्तार कर फोरलेन बनाने को भी मंजूरी दे दी गई है। दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com |
Posted: 27 Aug 2021 10:13 PM PDT साहस का नव संचार --:भारतका एक ब्राह्मण. संजय कुमार मिश्र "अणु" ---------------------------------------- सा -- साहचर्य सुखद संवाद करे नीत, हि -- हितकर हर बात विचार करे। त् -- त्याग करे विश्वास समर्पित मन- य -- यश देकर जीवन में प्रकाश भरे।। साहित्य यही कहते जन हैं, जो हितकर हो संताप हरे। दे धर्म,अर्थ औ काम,मोक्ष- जन मानस से संवाद करे।। है "मिश्र-अणु" कहता सबसे, आओ मिल हम उद्धार करें। शोषित,दलित,पीछडे जन में- साहस का नव संचार करें। दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com |
ईसाइयों के लिए मई का महिना मडोना की उपासना का महिना होता है। Posted: 27 Aug 2021 08:51 PM PDT ईसाइयों के लिए मई का महिना मडोना की उपासना का महिना होता है।संकलन अश्विनी कुमार तिवारी ईसाइयों के लिए मई का महिना मडोना की उपासना का महिना होता है। अगर मडोना नाम अलग लगे, कम सुना हुआ हो तो ऐसे समझ लीजिये कि वो जो चर्च में मदर मैरी की गोद में बच्चा लिए तस्वीरें-मूर्तियाँ दिखती हैं, उसे मडोना कहते हैं। कभी कभी उसे गोद में बच्चे के बिना भी दर्शाया जाता है। मुंबई के बांद्रा में जो बासीलीक ऑफ़ आवर लेडी ऑफ़ द माउंट है, वो भी वर्जिन मैरी यानि मडोना का ही है। विश्व भर में तीस बड़े मडोना के रिलीजियस सेण्टर हैं जैसे नाजरेथ, इसराइल का बासीलीक ऑफ़ एनानसीएशन, या फिर पुर्तगाल का आवर लेडी ऑफ़ फ़ातिमा। इस महीने की शुरुआत में कैथोलिक पोप ने घोषणा की थी कि इन सब में पूरे महीने कोरोना संकट से लोगों को मुक्ति दिलाने के लिए प्रार्थनाएँ चलेंगी। किसी चर्च में दिवंगत लोगों के लिए प्रार्थना होगी, कहीं गर्भवती स्त्रियों और छोटे बच्चों के लिए होगी, कहीं प्रवासियों के लिए, कहीं बुजुर्गों के लिए, तो कहीं वैज्ञानिकों और शोध संस्थानों और कहीं डॉक्टर और नर्सों के लिए प्रार्थना की जाएगी। इसकी शुरुआत करते हुए पोप ने प्रार्थना कर के रोजरी यानि जप वाली मालाएं इन सभी जगहों पर भेजी हैं। इस विशेष प्रार्थना के लिए 5 मई को ही, शाम छह बजे का समय भी निर्धारित कर दिया गया था। भारत में वैसे तो "कोम्परिटिव रिलिजन" यानि धर्म को तुलनात्मक रूप से पढ़ने-समझने का अब चलन बहुत कम ही बचा है (अगर कहीं बचा भी हो तो), फिर भी इसे एक अच्छे उदाहरण के तौर पर देखा जा सकता है। माला के जरिये जप करने की परम्परा हिन्दुओं से पहले से किसी में भी नहीं होगी। ऐसा भी नहीं कि आज इस परंपरा का लोप हो गया है। कई लोग अभी भी गोमुखी में हाथ डाले, माला जपते दिख जायेंगे। इसका प्रभाव वैज्ञानिक तौर पर भी माना जाता है। ये एकाग्रता – कंसन्ट्रेशन बढ़ाने का एक अच्छा उपाय होता है। अकाल मृत्यु जैसे भय से बचाने के लिए महा मृत्युंजय मन्त्र का जप किया जाता है, ये भी आबादी के एक बड़े हिस्से को पता होता है। इसके बाद भी क्या ऐसा कोई प्रयास हुआ? अरे नहीं! ऐसा करने से तो अनर्थ ही हो जाता ना! कहीं जो घर के लोग माला जपने से साधू हो गए तो क्या होगा? वैसे किसी ने माला जपने वालों को साधू हो जाते नहीं देखा है मगर फिर भी रिस्क क्यों लेना? मेरे ही घर कोई हो गया तो? इसके अलावा जो बड़े पीठ हैं, मठाधीश हैं, उनकी ओर से ऐसा कुछ करने का कोई आह्वान भी नहीं सुनाई दिया। घरों में धर्म से जुड़ी किसी रीति का पालन होते देखने पर घर के लोगों की, विशेष कर नयी पीढ़ी की उसमें रूचि जाग सकती थी, लेकिन साधू हो गया तो? रिस्क क्यों लेना? इसलिए न तो आपने खुद किया, ना मठाधीशों ने कोई आह्वान ही किया। ऐसे ही धीरे-धीरे आपके पास से आपके रीति-रिवाज खिंचकर दूसरों के पास जाते हैं। जैसे वो क्रिसमस ले गए, जप की माला भी बीस-तीस वर्षों में रोजरी हो ही जाएगी। प्रकृति खाली जगह बिलकुल बर्दाश्त नहीं करती। गड्ढा होते ही वो और किसी से नहीं तो पानी से भरने लगता है। वैसे तो गड्ढों को हम लोग कचरे से भर ही देते हैं। बिलकुल वैसे ही जो जगह धर्म से खाली होगी, वो रिलिजन से भरेगी। उसके बाद आप शिकायत करेंगे कि "कूल डूड" की पीढ़ी तो हर महीने बर्थडे मनाती है, मोमबत्ती फूंक कर केक काटती है! इसके लिए खाली जगह आपने ही तो बनाई है! बाकी खाली जगह हमने-आपने और हमसे-आपसे पहले की पीढ़ियों ने छोड़ी ही क्यों, ये जवाब हमें और आपको खुद ही सोचना है। जो गलतियाँ पहले हो गयी उन्हें दोहराते जाना है, या कम से कम एक माला जुटा लेना है, ये भी खुद ही सोच लीजियेगा! जैसे जैसे कथावाचकों के अहो-महो वाले आयोजनों का प्रभाव बढ़ा, वैसे वैसे उत्तरी भारत से घरों में कथा-कहानियां सुनाने की परंपरा भी जाने लगी। इसके अपने नुकसान होने थे, वो हुए भी। इससे सबसे पहले जो नुकसान हुआ वो ये हुआ कि कहानियों से जो नैतिक सन्देश जाता था, उसके बारे में किसी ने पूछा ही नहीं। दूसरा कि आप अगर शुरूआती बातें नहीं जानते तो आगे के प्रमेय-सिद्धांत भी समझ में नहीं आयेंगे। इसका एक अच्छा सा उदाहरण है "फल श्रुति"। अचानक अगर पूछ लिया जाए तो थोड़ा सोचकर लोग बता देंगे की इसका मोटे तौर पर अर्थ "सुनने का फल" होगा। अब सवाल है कि सिर्फ सुन लेने का कैसा फल? या सिर्फ किसी की बात, कोई कथा-कहानी सुन लेने का कोई फल क्यों मिले? इसके जवाब में सबसे पहला तो होता है "मनोरंजन"। अगर कथा मनोरंजक न हो तो आप उसे पूरी सुनेंगे ही क्यों? बीच में ही छोड़कर कुछ और करने, व्हाट्स एप्प या सोशल मीडिया चलाने के, टीवी देख लेने के, कितने ही विकल्प तो हैं ही। दूसरे फायदे के लिए हमें फिर से एक कथा ही देखनी होती है। ये कथा एक कामचोर व्यक्ति की है जो कभी कहीं किसी गाँव में रहता था। कामचोर था तो रोटी-दाल का प्रबंध कैसे होता? तो थोड़े ही दिनों में इस आदमी ने चोरी करना शुरू किया। रात गए किसी वक्त वो निकलता और आस पास के गाँव में किसी खेत से कुछ अनाज काट लाता। जीवन ऐसे ही चलता रह। इस चोर का विवाह हुआ, एक बच्चा भी हुआ। बच्चा भी पिता जैसा, मुफ्त के माल के चक्कर में पड़ गया। गाँव में ही एक मंदिर था। वहाँ पंडित जी कथा सुनाने के बाद बताशे बांटते थे। शाम की आरती के बाद बच्चा रोज वहाँ जाकर बैठ जाता और बताशे के लालच में पूरी कथा भी सुन आता। बच्चा थोड़ा बड़ा हुआ तो चोर ने सोचा इसे अपना काम भी सिखा दिया जाए। एक रात वो बच्चे को साथ लिए चला। एक खेत के पास पहुंचकर चोर ने इधर उधर देखा। जब कोई रखवाला नहीं दिता तो वो बेटे से नजर रखने को कहकर फसल काटने में जुट गया। अचानक बच्चा बोला, पिताजी आपने एक ओर तो देखा ही नहीं। घबराकर चोर ने अपना झोला और हंसिया हथौड़ा फेंका। जल्दी से वो बेटे के पास आया और बोला, क्या हुआ? कहीं से कोई आता हुआ दिखता है क्या? बेटे ने कहा, अरे नहीं पिताजी! आपने सब तरफ देखा मगर ऊपर की ओर तो देखा ही नहीं! ईश्वर तो अभी भी आपको देख ही रहे हैं। बच्चे ने रोज मंदिर की कथाओं में सुन रखा था कि ईश्वर ऊपर से सभी के कर्म देखते रहते हैं। चोर हिचकिचाया, मगर उसकी समझ में बात आ गयी थी। जब कोई नहीं देखता, तो भी आप स्वयं को तो देखते ही हैं। इसलिए आपकी हरकत सबकी नजरों से छुप गयी ऐसा कभी नहीं होता। अगर "अहं ब्रह्मास्मि" के सिद्धांत को मान लिया जाए, जिसके लिए मंसूर-सरमद जैसे लोग काट दिए गए, तो आपने स्वयं को देखा, यानी ईश्वर ने भी देख लिया है। केवल सुनने से जो असर बेटे पर हुआ था, वो इस कथा में फैलकर चोर पर भी अपना प्रभाव डालता है। इसे "फल श्रुति" कहते हैं। आप जो बार बार सुनते हैं, देखते हैं, उसका आपके जीवन पर भी प्रभाव पड़ता है। अगर समाचारों में बैंक डकैतों का पकड़ा जाना पढ़ा होगा, तो ये भी पढ़ा होगा कि कई बार ये लोग फिल्मों से प्रभावित होते हैं। उसकी नक़ल में ये डाका डालने, या ऐसे दूसरे अपराध करने निकले थे। पहले देखा-सुना, फिर विचारों में वो आया, फिर वो कर्म में उतरा और अंततः कर्म का फल भी भोगना पड़ा। इसे भगवद्गीता के हिसाब से देखें तो दूसरे अध्याय में इसपर जरा सी चर्चा है – ध्यायतो विषयान्पुंसः सङ्गस्तेषूपजायते। सङ्गात् संजायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते।।2.62 क्रोधाद्भवति संमोहः संमोहात्स्मृतिविभ्रमः। स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति।।2.63 इसका अर्थ है - विषयोंका चिन्तन करनेवाले मनुष्यकी उन विषयोंमें आसक्ति पैदा हो जाती है। आसक्तिसे कामना पैदा होती है। कामनासे क्रोध पैदा होता है। क्रोध होनेपर सम्मोह (मूढ़भाव) हो जाता है। सम्मोहसे स्मृति भ्रष्ट हो जाती है। स्मृति भ्रष्ट होनेपर बुद्धिका नाश हो जाता है। बुद्धिका नाश होनेपर मनुष्यका पतन हो जाता है। विषयों के बारे में जानकारी सुनने-देखने से ही आएगी। भारत में रहने वाले किसी व्यक्ति का चमगादड़ या कुत्ता खाने का मन करे, इसकी संभावना कम है। चीन में जिन लोगों ने ऐसे जीव चख रखे हों, उनको पता है की इनका स्वाद कैसा है, उनका मन कर सकता है। किसी जापानी ने रसगुल्ले या पूड़ी का नाम सुना ही नहीं, तो उसका खाने का मन क्यों करेगा? भारत में प्रेमचंद अपनी कहानी "कफ़न" में लिख जाते हैं कि उसके मुख्य पात्र किसी भोज में खायी पूड़ी को याद कर रहे थे। उसे सुनने वाला सोच सकता है कि ये क्या होगा? "फल श्रुति" भी इसी तरह काम करती है। इसे लेकर सोशल मीडिया पर चलने वाला मजाक भी आपने खूब देखा है। कई बार आप "इसे पढ़कर डिलीट करने वाले का ये व्यापार में भारी नुकसान हुआ, इसे दस लोगों को भेजने वाले को नौकरी में सफलता मिली" जैसे वाक्य आप मजाक में पढ़ चुके हैं। इसे आप "हिन्दूफोबिया" की श्रेणी में डाल सकते हैं। ऐसे मजाक करने के लिए किसी को कोई सजा नहीं मिलती मगर तुलनात्मक रूप से "हालेलुइया" मजाकिया लिहाज में कहने के लिए तो हृतिक रौशन भी माफ़ी मांग चुके हैं! कभी जब "फल श्रुति" के बारे में सोचिये तो "हिन्दूफोबिया" के बारे में भी सोच लीजियेगा। बाकी घरों में कथा न कहने के कारण बच्चों को पता नहीं होता कि अयोध्या किसी सरयू नाम की नदी के किनारे है, या वाराणसी, गंगा के अलावा किन्ही वरुणा और असी जैसी नदियों के किनारे भी होती है। हो सके तो कथाओं की परंपरा दोबारा जीवित करने पर भी सोचिये! ✍🏻आनन्द कुमार जी की पोस्टों से संग्रहित दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com |
तुलसी जी , पौधा नहीं जीवन का अंग है Posted: 27 Aug 2021 08:44 PM PDT तुलसी जी , पौधा नहीं जीवन का अंग है1. तुलसी जी को नाखूनों से कभी नहीं तोडना चाहिए,। 2.सांयकाल के बाद तुलसी जी को स्पर्श भी नहीं करना चाहिए । 3. रविवार को तुलसी पत्र नहीं तोड़ने चाहिए । 4. जो स्त्री तुलसी जी की पूजा करती है। उनका सौभाग्य अखण्ड रहता है । उनके घर सुख शांति व समृद्धि का वास रहता है घर का आबोहवा हमेशा ठीक रहता है। 5. द्वादशी के दिन तुलसी को नहीं तोडना चाहिए । 6. सांयकाल के बाद तुलसी जी लीला करने जाती है। 7. तुलसी जी वृक्ष नहीं है! साक्षात् राधा जी का स्वरूप है । 8. तुलसी के पत्तो को कभी चबाना नहीं चाहिए। तुलसी के पौधे का महत्व धर्मशास्त्रों में भी बखूबी बताया गया है. तुलसी के पौधे को माता लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है.। हिंदू धर्म में तुलसी के पौधे से कई आध्यात्मिक बातें जुड़ी हैं.। शास्त्रीय मान्यता के अनुसार भगवान विष्णु को तुसली अत्यधिक प्रिय है.।वहीं संदीप शर्मा के अनुसार तुलसी के पत्तों के बिना भगवान विष्णु की पूजा अधूरी मानी जाती है. । क्योंकि भगवान विष्णु का प्रसाद बिना तुलसी दल के पूर्ण नहीं होता है. । तुलसी की प्रतिदिन का पूजा करना और पौधे में जल अर्पित करना हमारी प्राचीन परंपरा है.। मान्यता है कि जिस घर में प्रतिदिन तुलसी की पूजा होती है, वहां सुख-समृद्धि, सौभाग्य बना रहता है. कभी कोई कमी महसूस नहीं होती.। - जिस घर में तुलसी का पौधा होता है उस घर की कलह और अशांति दूर हो जाती है. घर-परिवार पर मां की विशेष कृपा बनी रहती है. - धार्मिक मान्यताओं के अनुसार तुलसी के पत्तों के सेवन से भी देवी-देवताओं की विशेष कृपा प्राप्त होती है. जो व्यक्ति प्रतिदिन तुलसी का सेवन करता है, उसका शरीर अनेक चंद्रायण व्रतों के फल के समान पवित्रता प्राप्त कर लेता है. - तुलसी के पत्ते पानी में डालकर स्नान करना तीर्थों में स्नान कर पवित्र होने जैसा है. मान्यता है कि जो भी व्यक्ति ऐसा करता है वह सभी यज्ञों में बैठने का अधिकारी होता है. - भगवान विष्णु का भोग तुलसी के बिना अधूरा माना जाता है. इसका कारण यह बताया जाता है कि तुलसी भगवान विष्णु को बहुत प्रिय हैं. - कार्तिक महीने में तुलसी जी और शालीग्राम का विवाह किया जाता है. कार्तिक माह में तुलसी की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। शास्त्रों में कहा गया है कि तुलसी पूजन और उसके पत्तों को तोड़ने के लिए नियमों का पालन करना अति आवश्यक है. तुलसी पूजन के नियम - तुलसी का पौधा हमेशा घर के आंगन में लगाना चाहिए. आज के दौर में में जगह का अभाव होने की वजह तुलसी का पौधा बालकनी में लगा सकते है. - रोज सुबह स्वच्छ होकर तुलसी के पौधे में जल दें और एवं उसकी परिक्रमा करें. - सांय काल में तुलसी के पौधे के नीचे घी का दीपक जलाएं, शुभ होता है. - भगवान गणेश, मां दुर्गा और भगवान शिव को तुलसी न चढ़ाएं. - आप कभी भी तुलसी का पौधा लगा सकते हैं लेकिन कार्तिक माह में तुलसी लगाना सबसे उत्तम होता है. - तुलसी ऐसी जगह पर लगाएं जहां पूरी तरह से स्वच्छता हो. - तुलसी के पौधे को कांटेदार पौधों के साथ न रखें तुलसी की पत्तियां तोड़ने के भी कुछ विशेष नियम हैं- - तुलसी की पत्तियों को सदैव सुबह के समय तोड़ना चाहिए. अगर आपको तुलसी का उपयोग करना है तो सुबह के समय ही पत्ते तोड़ कर रख लें, क्योंकि तुलसी के पत्ते कभी बासी नहीं होते हैं. - बिना जरुरत के तुलसी को की पत्तियां नहीं तोड़नी चाहिए, यह उसका अपमान होता है. - तुलसी की पत्तियां तोड़ते समय स्वच्छता का पूरा ध्यान रखें. - तुलसी के पौधे को कभी गंदे हाथों से न छूएं. - तुलसी की पत्तियां तोड़ने से पहले उसे प्रणाम करेना चाहिए और इस मंत्र का उच्चारण करना चाहिए- महाप्रसाद जननी, सर्व सौभाग्यवर्धिनी, आधि व्याधि हरा नित्यं, तुलसी त्वं नमोस्तुते. - बिना जरुरत के तुलसी को की पत्तियां नहीं तोड़नी चाहिए, यह उसका अपमान होता है. - रविवार, चंद्रग्रहण और एकादशी के दिन तुलसी नहीं तोड़ना चाहिए. "तुलसी वृक्ष ना जानिये। गाय ना जानिये ढोर।। गुरू मनुज ना जानिये। ये तीनों नन्दकिशोर।। अर्थात- तुलसी को कभी पेड़ ना समझें गाय को पशु समझने की गलती ना करें और गुरू को कोई साधारण मनुष्य समझने की भूल ना करें, क्योंकि ये तीनों ही साक्षात भगवान रूप हैं। आलेख:--- पंडित कन्हैया तिवारी (वास्तु, कर्मकाण्ड व कुंडली परामर्श)मीठापुर पटना दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com |
कर्म और साधना का स्थल हेमकुण्ड Posted: 27 Aug 2021 08:47 PM PDT कर्म और साधना का स्थल हेमकुण्डभारतीय वाङ्गमय साहित्य और संस्कृति में हेमकुण्ड का स्थल कर्म और साधना के संबंध का उल्लेख किया है । सप्त ऋषियों के द्वारा सिंचित और साधना से परिपूर्ण स्थल शांति , धैर्य और उन्नति का मार्ग प्रसस्त करता हेमकुण्ड स्थल है । सतयुग में शेषनाग , त्रेतायुग में लक्ष्मण और कलियुग में सर्वदमन गुरु गोविंद सिंह का पूर्व जन्म और साधना स्थल हेमकुण्ड है । उत्तराखंड, के चमोली जिले का हेमकुंट पर्वत पर हेमकुण्ड के किनारे हेमकुंड साहिब स्थित सिखों का प्रसिद्ध तीर्थ स्थान है। हिमालय पर्वतमाला की हेमकूट सात पहाड़ियों से घिरा 4632 मीटर अर्थात 15,200 फुट की ऊँचाई पर बर्फ़ीली झील के हेमकुण्ड साहिब गुरुद्वारा और लोक पाल लक्षमण जी का मंदिर स्थित है। सात पहाड़ों पर निशान साहिब झूलते हैं। हेमकुण्ड साहिब तक ऋषिकेश-बद्रीनाथ रास्ता पर पड़ते गोबिन्दघाट से केवल पैदल चढ़ाई के द्वारा पहुँचा जाता है।हेमकुण्ड में गुरुद्वारा श्री हेमकुंड साहिब सुशोभित है। हेमकुण्ड स्थान का उल्लेख सिख धर्म के 10 वें गुरु गोबिंद सिंह द्वारा रचित दसम ग्रंथ में है। संस्कृत में हेमकुण्ड को हेम का अर्थ "बर्फ़"और कुंड का अर्थ तलाव , कटोरा है। दसम ग्रंथ के अनुसार हेमकुण्ड का राजा पाँडु राजो द्वारा हेम कुंड स्थापित किया गया था। त्रेतायुग में भगवान राम के अनुज लक्ष्मण ने हेमकुण्ड की स्थापना करवाया था। सिखों के दसवें गुरु गोबिन्द सिंह ने यहाँ पूजा अर्चना की थी। गुरूद्वारा हेमकुण्ड घोषित कर दिया गया। दर्शनीय तीर्थ में चारों ओर से बर्फ़ की ऊँची चोटियों का प्रतिबिम्ब विशालकाय झील में अत्यन्त मनोरम एवं रोमांच से परिपूर्ण है। हेम झील में हाथी पर्वत और सप्तऋषि पर्वत श्रृंखलाओं से पानी का जलधारा हेम झील से प्रविहित होने वाला जल को हिमगंगा कहै जाता हैं। झील के किनारे स्थित लक्ष्मण मंदिर अत्यन्त दर्शनीय है। अत्याधिक ऊँचाई पर होने के कारण वर्ष में छ: महीने यहाँ झील बर्फ में जम जाती है। फूलों की घाटी यहाँ का निकटतम पर्यटन स्थल है ।हिमालय में स्थित गुरुद्वारा हेमकुंड साहिब सिखों के सबसे पवित्र स्थानों में से एक माना जाता है यहाँ पर सिखों के दसवें और अंतिम गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह ने अपने पिछले जीवन में ध्यान साधना की थी । स्थानीय निवासियों द्वारा बहुत असामान्य, पवित्र, विस्मय और श्रद्धा का स्थान माना जाता है । हेम झील और इसके आसपास के क्षेत्र को लोग लक्ष्मण जी को "लोकपाल" से जानते हैं । हेमकुंड साहिब का गुरु गोबिंद सिंह की आत्मकथा में उल्लेख किया गया था ।सिख इतिहासकार-भाई संतोख सिंह द्वारा 1787-1843 हेमकुण्ड जगह का विस्तृत वर्णन दुष्ट दमन की कहानी में उल्लेख किया गया था । उन्होंने गुरु का अर्थ शाब्दिक शब्द 'बुराई के विजेता' है ।हेमकुंड साहिब को गुरुद्वारा श्री हेमकुंड साहिब के रूप में जाना जाता है । सिखों के दसवें गुरु, श्री गुरु गोबिंद सिंह जी (1666-1708) के लिए समर्पित होने का उल्लेख दसम ग्रंथ में स्वयं गुरुजी ने किया है । सर्वे ऑफ इंडिया के अनुसार, ये सात पर्वत चोटियों से घिरा हुआ एक हिमनदों झील के साथ 4632 मीटर (15,197 फीट) की ऊंचाई पर हिमालय में स्थित है. इसकी सात पर्वत चोटियों की चट्टान पर निशान साहिब सजा हुआ है ।हेमकुण्ड पर गोविन्दघाट से होते हुए ऋषिकेश-बद्रीनाथ राजमार्ग पर जाया जता है ।गोविन्दघाट के पास मुख्य शहर जोशीमठ है ।राजा पांडु का अभ्यास योग स्थल था । , दसम ग्रंथ में उल्लेख है कि पाण्डु हेमकुंड पहाड़ पर गहरे ध्यान में भगवान ने उन्हें सिख गुरु गोबिंद सिंह के रूप में यहाँ पर जन्म लेने का आदेश दिया था । पंडित तारा सिंह नरोत्तम जो उन्नीसवीं सदी के निर्मला विद्वान द्वारा कहा गया है कि हेमकुंड की भौगोलिक स्थिति का पता लगाने वाले पहले सिख थे । श्री गुड़ तीरथ संग्रह में 1884 में प्रकाशित संलेख में हेमकुण्ड का वर्णन 508 सिख धार्मिक स्थलों में से एक के रूप में किया है । सिख विद्वान भाई वीर सिंह ने हेमकुंड के विकास के बारे में खोजकर महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी ।भाई वीर सिंह का हेमकुण्ड वर्णन पढ़कर संत सोहन सिंह रिटायर्ड आर्मीमैन ने हेमकुंड साहिब को खोजने का फैसला किया और वर्ष 1934 में सफलता प्राप्त की है ।पांडुकेश्वर में गोविंद घाट के पास संत सोहन सिंह ने स्थानीय लोगों के पूछताछ के बाद वो जगह ढूंढ ली जहां राजा पांडु ने तपस्या की थी और बाद में झील को भी ढूंढ निकला जो लोकपाल के रूप विख्यात थी । 1937 ई. में गुरु ग्रंथ साहिब को स्थापित किया गया । दुनिया में सबसे ज्यादा माने जाने वाले गुरुद्वारे का स्थल है । 1939 ई. में संत सोहन सिंह ने अपनी मौत से पहले हेमकुंड साहिब के विकास का काम जारी रखने के मिशन को मोहन सिंह को सौंप दिया था । गोबिंद धाम में गुरुद्वारा को मोहन सिंह द्वारा निर्मित कराया गया था । 1960 में अपनी मृत्यु से पहले मोहन सिंह ने एक सात सदस्यीय कमेटी बनाकर इस तीर्थ यात्रा के संचालन की निगरानी प्रदान किया है । गुरुद्वारा श्री हेमकुंड साहिब के अलावा हरिद्वार, ऋषिकेश, श्रीनगर, जोशीमठ, गोबिंद घाट, घांघरिया और गोबिंद धाम में गुरुद्वारों में सभी तीर्थयात्रियों के लिए भोजन और आवास उपलब्ध कराने का प्रबंधन हेमकुण्ड साहिब कमिटि द्वारा किया जाता है । बर्फीले पहाड़ों के बीचों-बीच बसा अद्भुत लक्ष्मण मंदिर है । उत्तराखंड के चमोली जिले का हेमकुण्ड में स्थित सिक्खों के पवित्र धाम हेमकुंड साहिब गुरुद्वारा और लक्ष्मण मंदिर है । हेमकुंड साहिब की यात्रा की शुरुआत अलकनंदा नदी के किनारे समुद्र तल से 1828 मीटर उचाई पर जोशीमठ से बद्रीनाथ रोड के किनारे स्थित गोविंदघाट गुरुद्वारा है । गोविंदघाट से घांघरिया तक 13 किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई है । गोविंद घाट से आगे का 6 किलोमीटर का सफ़र ज्यादा मुश्किलों से भरा है। उत्तराखंड के पावन स्थल पर हिंदू धर्म का लक्ष्मण मंदिर है ।, जिसका नाम लक्ष्मण लोकपाल मंदिर के नाम से ख्याति है। पौराणिक आलेख के अनुसार भगवान राम के भाई लक्ष्मण ने श्री राम के साथ 14 साल का वनवास काटा था। प्राचीन समय में हेमकुण्ड स्थान पर लक्ष्मण मंदिर स्थापित हैं । हेमकुण्ड में शेषनाग ने तपस्या की थी। जिसके बाद शेषनाग ने त्रेता युग में राजा दशरथ की भार्या सुमित्रा के पुत्र लक्ष्मण के रूप में जन्म मिला था। लक्ष्मण मंदिर में भ्यूंडार गांव के ग्रामीण पूजा करते हैं। यह मंदिर हेमकुंड के परिसर में है। हेमकुंड आने वाले तीर्थयात्री लक्ष्मण मंदिर में मत्था टेकना नहीं भूलते। लक्ष्मण मंदिर हेमकुंड झील के तट पर स्थित है। लक्ष्मण ने रावण के पुत्र मेघनाद को मारने के बाद लक्ष्मण ने अपनी शक्ति वापस पाने के लिए कठोर तप हेम कुंड में किया था। सिख धर्म के 10 वे गुरु गोबिंद सिंह ने पूर्व जन्म में तपस्या की थी तपस्या, नॉर्दन इंडिया के हिमालयन रेंज में 15,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित हेमकुंड साहिब सिखों का मशहूर तीर्थस्थान है। गर्मियों के महिनों में हेमकुण्ड हर साल दुनियाभर से हजारों लोग पहुंचते हैं। सिखों के दसवें गुरु, गोबिंद सिंह की ऑटोबायोग्राफी 'बछित्तर नाटक' के अनुसार गुरु गोबिंद सिंह ने अपने पिछले जन्म में तपस्या की थी। ईश्वर के आदेश के बाद गुरु गोविंद सिंह ने पटना सिटी बिहार में पौष शुक्ल सप्तमी 1728 दिनांक 22दिसंबर 1666 ई . को धरती पर दूसरा जन्म लिया, ताकि वे लोगों को बुराइयों से बचाने का रास्ता दिखा सकें। सात पहाड़ों से घिरा हेमकुंड हसि उत्तराखण्ड के चमोली जिले में है हेमकुंड साहिब। 15,200 फीट की ऊंचाई पर सात बर्फीले पहाड़ों से घिरी इस जगह पर एक बड़ा तालाब भी है, जिसे लोकपाल कहते हैं। यहां भगवान लक्ष्मण का एक मंदिर भी है।लक्ष्मण का पुराना अवतार सप्त सिर वाला शेषनाग था । शेषनाग लोकपाल झील में तपस्या करते थे और विष्णु भगवान उनकी पीठ पर आराम करते थे। मेघनाथ के साथ युद्ध में घायल होने पर लक्ष्मण को लोकपाल झील के किनारे लाया गया था। यहां हनुमान ने लक्ष्मण जी को संजीवनी बूटी दी और वे ठीक हो गए। लक्षमण जी के ठीक होने पर देवताओं ने आसमान से फूल बरसाए थे ।देवों द्वारा फूल बरसाने का स्थान को फूलों की घाटी कहा गया है । वैली ऑफ फ्लॉवर्स' फूलों की घाटी के नाम है। वास्तविक रूप में स्थल का स्वर्ग हेमकुण्ड है । हेमकुण्ड की यात्रा के दौरान साहित्यकार व इतिहासकार सत्येन्द्र कुमार पाठक द्वारा 30 सितंबर 2017 को हेमकुण्ड भ्रमण किया है । उन्होंने गोविंद घाट से फॉरविलर से पुलांग तक , पुलांग से घोड़े की सवारी से गोविंद धाम घांघरिया जा कर विश्राम किया तथा 01 अक्टूबर 2017 को घांघरिया गुरुद्वारा में माथा टेकने के बाद घोड़े की सवारी से 07 किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद हेमकुण्ड स्थित हेमकुण्ड में स्नान ध्यान करने के बाद लक्षमण मंदिर में जाकर पूजा अर्चना तथा हेमकुण्ड साहिब गुरुद्वारा में माथा टेक टेक कर उपासना किया । हेमकुण्ड में स्थित सप्तऋषि पर्वत की वादियां मनमोहक और शांति और नीले जल युक्त हेमकुण्ड का जल पवित्र , लक्षमण जी , भगवान शिव लिंग , शेषनाग , माता दुर्गा , ऋषियों द्वारा उत्पन्न दुष्टदामन का स्थल , तथा हेमकुण्ड साहिब गुरुद्वारा का दर्शन किया । हेमकुण्ड से पदयात्रा करने के बाद गोविंद घाट का गुरु द्वारा में गुरुगोविंद सिंह का दर्शन , माथा टेकने के बाद 02 अक्टूबर 2017 को जोशी मठ का गुरुद्वारा में विश्राम किया । जोशीमठ स्थित आदिशंकराचार्य द्वारा निर्मित मठ , भगवान नरसिंह , भगवान सूर्य , गणेश , हनुमान जी , वासुदेव , माता काली का दर्शन और उपासना करने के बाद 15500 फ़ीट की ऊँचाई पर स्थित ओली पर्वत की श्रंखला पर भ्रमण करने के दौरान नंदा देवी , त्रिशूल , धौला गिरी और द्रोण पर्वत का अवलोकन किया । बिहार ग्रामीण जीविकोपार्जन प्रोत्साहन समिति मुजफ्फरपुर के ट्रेनिंग ऑफिसर प्रवीण कुमार पाठक के साथ 03 अक्टूबर 2017 को ऋषिकेश गुरुद्वारा में विश्राम करने के पश्चात 04 अक्टूबर 2017 को ऋषिकेश स्थित गंगा में स्नान ध्यान और भगवान शिव का दर्शन , गीता भवन भ्रमण करने के बाद ऋषिकेश गुरुद्वारा में माथा टेका तथा संग्रहालय का भ्रमण किया है । दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com |
साहित्य चेतना के साधक पंडित सुरेश दत्त मिश्र Posted: 27 Aug 2021 08:31 PM PDT साहित्य चेतना के साधक पंडित सुरेश दत्त मिश्रजहानाबाद ( बिहार ) । साहित्य चेतना के साधक पंडित सुरेश दत्त मिश्र की साहित्य कीर्तियाँ यादगार है । जिला हिंदी साहित्य सम्मेलन जहानाबाद के उपाध्यक्ष साहित्यकार व इतिहासकार सत्येन्द्र कुमार पाठक ने कहा कि पंडित सुरेश दत्त मिश्र साहित्यिक कृतियों और बिहार राजभाषा विभाग बिहार सरकार में पदाधिकारी के पद पर हिंदी सेवी बन कर अमूल्य कार्य किया है । सूर्यपूजा परिषद के संस्थापक एवं मागही साहित्य के पुरोधा तथा रामायण का मगही भाषा में अनुवादित कर पंडित मिश्र की कीर्ति अमर रहेगी ।गया जिला का टेकारी प्रखंड के स्यानन्दपुर में जन्मे और पटना में कर्मभूमि रखने वाले पंडित मिश्र की कर्तव्यनिष्ठ व्यक्तित्व सदैव यादगार रहेगा । दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com |
दुनिया का एकलौता मंदिर, जहां राजा राम को दिन में चार बार दिया जाता है गार्ड ऑफ ऑनर!!!!! Posted: 27 Aug 2021 08:27 PM PDT दुनिया का एकलौता मंदिर, जहां राजा राम को दिन में चार बार दिया जाता है गार्ड ऑफ ऑनर!!!!!सुमन कुमार मिश्र देश में राजा राम चंद्र का एक ऐसा मंदिर है जहां राम की पूजा भगवान के तौर पर नहीं बल्कि राजा के रूप में की जाती है। अब राजा राम हैं तो उन्हें सिपाही सलामी भी देते हैं। हम बात कर रहे हैं मध्य प्रदेश के निवाड़ी जिले में स्थित ओरछा के राजा राम मंदिर की। यहां राजा राम को सूर्योदय के उपरांत और सूर्यास्त के पश्चात सलामी दी जाती है। इस सलामी के लिए मध्य प्रदेश पुलिस के जवान तैनात होते हैं। राजा राम का मंदिर देखने में किसी राज महल सा प्रतीत होता है। मंदिर की वास्तुकला बुंदेला स्थापत्य का सुंदर नमूना नजर आता है। कहा जाता है कि राजा राम की मूर्ति स्थापना के लिए चतुर्भुज मंदिर का निर्माण कराया जा रहा ता। पर मंदिर बनने से पहले इसे कुछ समय के लिए महल में स्थापित किया गया। लेकिन मंदिर बनने के बाद कोई भी मूर्ति को उसके स्थान से हिला नहीं पाया। इसे ईश्वर का चमत्कार मानते हुए महल को ही मंदिर का रूप दे दिया गया और इसका नाम रखा गया राम राजा मंदिर। आज इस महल के चारों ओर शहर बसा है। हर रोज आते हैं राजा राम यहां पर कहा जाता है कि यहां राजा राम हर रोज अयोध्या से अदृश्य रूप में आते हैं रात्रि में शयन के लिये अयोध्या जाते हैं ओरछा शहर के मुख्य चौराहा के एक तरफ राजा राम का मंदिर है तो दूसरी तरफ ओरछा का प्रसिद्ध किला। मंदिर में राजा राम, लक्ष्मण और माता जानकी की मूर्तियां स्थापित हैं। इनका श्रंगार अद्भुत होता है। मंदिर का प्रांगण काफी विशाल है। चूंकि ये राजा का मंदिर है इसलिए इसके खुलने और बंद होने का समय भी तय है। सुबह में मंदिर नो बजे से दोपहर एक बजे तक आम लोगों के दर्शन के लिए खुलता है। इसके बाद शाम को मंदिर सात बजे दुबारा खुलता है। रात को साढ़े दस बजे राजा शयन के लिए चले जाते हैं। मंदिर में प्रातःकालीन और सांयकालीन आरती होती है जिसे आप देख सकते हैं। देश में अयोध्या के कनक मंदिर के बाद ये राम का दूसरा भव्य मंदिर है। मंदिर परिसर में फोटोग्राफी निषेध है। मंदिर का प्रबंधन मध्य प्रदेश शासन के हवाले है। पर लोकतांत्रिक सरकार भी ओरछा में राजाराम की हूकुमत को सलाम करती है। यहां पर लोग राजा राम के डर से रिश्वत नहीं लेते भ्र्ष्टाचार से डरते हैं महारानी लाई थीं राजा राम को – कहा जाता है कि संवत 1600 में तत्कालीन बुंदेला शासक महाराजा मधुकर शाह की पत्नी महारानी कुअंरि गणेश राजा राम को अयोध्या से ओरछा लाई थीं। एक दिन ओरछा नरेश मधुकरशाह ने अपनी पत्नी गणेशकुंवरि से कृष्ण उपासना के इरादे से वृंदावन चलने को कहा। लेकिन रानी तो राम की भक्त थीं। उन्होंने वृंदावन जाने से मना कर दिया। गुस्से में आकर राजा ने उनसे यह कहा कि तुम इतनी राम भक्त हो तो जाकर अपने राम को ओरछा ले आओ। रानी ने अयोध्या पहुंचकर सरयू नदी के किनारे लक्ष्मण किले के पास अपनी कुटी बनाकर साधना आरंभ की। इन्हीं दिनों संत शिरोमणि तुलसीदास भी अयोध्या में साधना रत थे। संत से आशीर्वाद पाकर रानी की आराधना और दृढ़ होती गई। लेकिन रानी को कई महीनों तक राजा राम के दर्शन नहीं हुए। वह निराश होकर अपने प्राण त्यागने सरयू की मझधार में कूद पड़ी। यहीं जल की अतल गहराइयों में उन्हें राजा राम के दर्शन हुए। रानी ने उनसे ओरछा चलने का आग्रह किया। उस समय मर्यादा पुरुशोत्तम श्रीराम ने शर्त रखी थी कि वे ओरछा तभी जाएंगे, जब इलाके में उन्हीं की सत्ता रहे और राजशाही पूरी तरह से खत्म हो जाए। तब महाराजा शाह ने ओरछा में 'रामराज' की स्थापना की थी, जो आज भी कायम है। मंदिर के प्रसाद में पान का बीड़ा – राजा राम मंदिर में प्रशासन की ओर से प्रसाद का काउंटर है। यहां 20रुपये का प्रसाद मिलता है। प्रसाद में लड्डू और पान का बीड़ा दिया जाता है। हालांकि मंदिर के बाहर भी प्रसाद की तमाम दुकाने हैं जहां से आप फूल प्रसाद आदि लेकर मंदिर में जा सकते हैं। मंदिर के बाहर जूते रखने के लिए निःशुल्क काउंटर बना है। राजा राम मंदिर में रामनवमी बड़ा त्योहार होता है। बेल्ट लगाकर नहीं जा सकते- आप राजा राम के मंदिर के अंदर बेल्ट लगाकर नहीं जा सकते हैं। इसके पीछे बड़ा रोचक तर्क ये दिया जाता है कि राजा के दरबार में कमर कस कर नहीं जाया जा सकता है। यहां सिर्फ राजा राम की सेवा में तैनात सिपाही ही कमरबंद लगा सकते हैं। आप जूता घर में अपना बेल्ट जमा करके फिर मंदिर में प्रवेश कर सकते हैं। राजा राम के मंदिर की मूर्तियों के बारे में कहा जाता है कि ये अयोध्या से लाई गई हैं। महारानी की कहानी के मुताबिक उनकी तपस्या के कारण राजा राम अयोध्या से ओरछा चले आए थे। पर स्थानीय बुद्धिजीवी मानते हैं कि बाबर के आदेश पर अयोध्या में राम मंदिर तोड़े जाने के बाद अयोध्या के बाकी मंदिरों की सुरक्षा का सवाल उठने लगा। ऐसी स्थित में कई मंदिरों की बेशकीमती मूर्तियों को ओरछा में लाकर सुरक्षित किया गया। ऐसा कहा जाता है कि ओरछा के ज्यादातर मंदिरों में जो मूर्तियां हैं वे अयोध्या से लाई गई हैं। जय सियाराम,,,,,,,,, दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com |
Posted: 27 Aug 2021 08:23 PM PDT कैसा गांव?न पनघट है न पनिहारिन न ग्वाल बचे न ही ग्वालिन। दूध दही की बात करें क्या मट्ठा मक्खन हुआ पुरातीन। शाम ढले चौपालों पर, एक मेला सा लगता था, गांव गली का घर घर का सुख दुख साझा हो जाता था। सावन का मदमस्त महीना घर घर झूले पड़ते थे, पैंग बढ़ाकर झूला करते गीतों में जीवन रचते थे। बात हुयी सब भूली बिसरी कुछ को तो कुछ याद नहीं, नये दौर की पीढ़ी को तो, साझा संस्कृति ज्ञात नहीं। दादी नानी के किस्से अब भूली बिसरी बात हुयी, आधुनिक बनकर रह भी तो मोबाइल टीवी की दास हुयी। बचे नहीं हैं आंगन में अब नीम आम पीपल के पेड़, जिनकी छाया में रहकर समय बिता देते थे लोग। भरी दोपहरी जेठ मास की पीपल की शीतल छांव सावन में अमुवा पर झूला सखियों की होती थी ठांव। सखी सहेली व्यस्त हो गयी बन्द घरों में- त्रस्त हो गयी, जबसे छूटा साझा चूल्हा निज घर में ही सिमटा गांव। नहीं बची रह पगडंडी जो खेतों से घर तक आती थी भरी दोपहरी चाची ताई रोटी मट्ठा खेतों तक लाती थी। खत्म हो गई बैलों से खेती आधुनिकता विस्तार हुआ बैलगाड़ियां छकडा बुग्गी बात पुरानी ट्रैक्टर अब आधार हुआ। अब तो चुल्हा चक्की भी बस संग्रहालय की चीज बनी सिलबट्टा या ओखल भी तो बहुत पुरानी रीत बनी। पक्की सड़कें गाड़ी दौड़ें पक्के घर सब गांव में, फूंस मड़ैया छप्पर से रिश्ते नहीं दिखते गांव में। साझा सबकी बेटी होती साझा चाची ताई थी समय बदल गया नफरत पनपी गांव गली घर के भीतर नागफनी उग आई है। नहीं बची अब खाट खटौली नहीं कहीं मूढ़े दिखते सीख सिखाते बच्चों को नहीं गांव में बूढ़े दिखते। नहीं खोर पर गैया बंधती न ही बैलों का राज है गौधूली क्या समझ सके ना नया यह अन्दाज है। अ कीर्ति वर्द्धन दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com |
Posted: 27 Aug 2021 07:34 AM PDT जीकेसी की प्रस्तुति 'एक प्यार का नगमा है' हुआ सम्पन्न , संगीत प्रेमी मुकेश की आवाज का आज भी दीवाना है : राजीव रंजन प्रसाद संगीत जगत को अपनी दिलकश आवाज से सुशोभित किया था मुकेश ने डा. नम्रता आनंद जितेन्द्र कुमार सिन्हा, पटना, जीकेसी (ग्लोबल कायस्थ कॉन्फ्रेंस) कला-संस्कृति प्रकोष्ठ बिहार के सौजन्य से महान पार्श्वगायक मुकेश (मुकेश चंद्र माथुर) की पुण्यतिथि 27 अगस्त के अवसर पर संगीतमय संध्या 'एक प्यार का नगमा है' का आयोजन किया गया जिसमें नामचीन कलाकारों ने उनके गाये गानों के द्वारा उन्हें श्रद्धांजलि सुमन अर्पित की। संगीतमय कार्यक्रम 'एक प्यार का नगमा है ' का संयोजन जीकेसी बिहार की प्रदेश अध्यक्ष डा. नम्रता आनंद, जीकेसी कला-संस्कृति प्रकोष्ठ के वरिष्ठ राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रेम कुमार, कला-संस्कृति प्रकोष्ठ बिहार के उपाध्यक्ष दिवाकर कुमार वर्मा, कला-संस्कृति प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय सचिव अनुराग समरूप ने किया। कार्यक्रम का संचालन जीकेसी बिहार कला-संस्कृति प्रकोष्ठ के उपाध्यक्ष अखौरी योगेश कुमार ने किया। कार्यक्रम की शुरुआत मुकेश की तस्वीर पर माल्यार्पण और पुष्प अर्पित करके की गयी। उक्त अवसर पर जीकेसी के ग्लोबल अध्यक्ष राजीव रंजन प्रसाद ने कहा कि मुकेश ने अपने मधुर गीतों और अपनी सुरीली आवाज से फिल्म इंडस्ट्री में खास पहचान बनाई थी। अपनी जादुई आवाज से श्रोताओ को मंत्रमुग्ध करने वाले महान पार्श्वगायक मुकेश आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन फिजां के कण-कण में उनकी आवाज गूंजती महसूस होती है, हिंदुस्तान का हर संगीत प्रेमी मुकेश की आवाज का दीवाना है। मुकेश ने वैश्विक गायक के रूप में अपनी पहचान भी बनाई। विदेशों में खासे लोकप्रिय थे, रूस में तो आज भी वे लोकप्रिय हैं। जीकेसी की प्रबंध न्यासी रागिनी रंजन ने कहा कि सुरों के बादशाह मुकेश को भारतीय संगीत उद्योग के सबसे सफल और प्रसिद्ध गायकों में से एक माना जाता है। मुकेश ना केवल एक गायक बल्कि एक अच्छे इंसान के रूप में भी जाने जाते थे। जीकेसी बिहार की प्रदेश अध्यक्ष और दीदीजी फाउंडेशन की संस्थापक डा. नम्रता आनंद ने बताया कि मुकेश को फिल्म जगत में उनकी अलग तरह की आवाज के लिए हमेशा याद किया जाता है और उनके गीत आज भी लोगों को सुकून देते हैं।उन्होंने अपनी दर्दभरी सुरीली आवाज से सबके दिल में अपना खास मुकाम बनाया। प्रेम कुमार ने बताया खूबसूरत नगमों के सरताज मुकेश हिन्दी सिनेमा के उन गायकों में से एक रहे हैं जिन्होंने संगीत जगत में महत्वपूर्ण योगदान दिया। मुकेश को शो मैन राज कपूर कीआवाज कहा जाता था। राजकपूर का भी मानना था कि उनकी सफलता में मुकेश की आवाज का महत्वपूर्ण योगदान था। दिवाकर कुमार वर्मा ने बताया कि मुकेश ने अपने सदाबहार नगमों के जरिये श्रोताओं के दिलों पर अमिट पहचान बनायी थी। मुकेश भले ही हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन आज भी उनके गाने उनकी यादों के रूप में हमारे बीच हमेशा मौजूद है। गायकी के क्षेत्र में उनके योगदान को कोई भूला नहीं सकता। अनुराग समरूप ने कहा कि मुकेश ने अपनी दर्दभरी सुरीली आवाज में एक से एक बढ़कर गीत गाकर लोगों का दिल जीता था। इसीलिए उनके नगमें आज भी भारतीय सिनेमा जगत में सर्वाधिक लोकप्रिय है। संगीतमय कार्यक्रम में मनीष वर्मा, दिवाकर कुमार वर्मा, कुमार संभव, कुंदन तिवारी, रत्ना गांगुली, डा. नम्रता आनंद, प्रेम कुमार, संपन्नता वरूण, मेघाश्री अंजू, पल्लवी सिन्हा प्रवीण बादल, सुबोध नंदन सिन्हा ने सदाबहार गीतों के माध्यम से उन्हें श्रद्धांजली अर्पित की। उक्त कार्यक्रम में सभी कलाकारों को जीकेसी के ग्लोबल अध्यक्ष राजीव रंजन प्रसाद और दीदीजी फाउंडेशन की संस्थापिका डा. नम्रता आनंद ने मोमेंटो और अभिनंदन पत्र देकर सम्मानित किया। उक्त अवसर पर जेकेसी के दीपक अभिषेक, संजय कुमार, जितेन्द्र कुमार सिन्हा, मुकेश महान, रंजना कुमारी सहित अनेको सदस्य उपस्थित रहकर कलाकारों की हौसला अफजाई किया। दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com |
Posted: 27 Aug 2021 06:14 AM PDT मुख्यमंत्री के समक्ष वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से मोईनुलहक स्टेडियम के नवनिर्माण से संबंधित प्रस्तुतीकरण दिया गयामुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार के समक्ष 1 अणे मार्ग स्थित संकल्प में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से कला, संस्कृति एवं युवा विभाग ने मोईनुलहक स्टेडियम के नवनिर्माण से संबंधित प्रस्तुतीकरण दिया। कला, संस्कृति एवं युवा विभाग की सचिव श्रीमती बंदना प्रेयसी ने राजेंद्र नगर, पटना स्थित मोईनुलहक स्टेडियम के बैक ग्राउंड एवं वर्तमान स्थिति की जानकारी दी। इनके नवनिर्माण से जुड़े आर्किटेक्ट ने अपने प्रस्तुतीकरण में पी0पी0आर0, नक्षा एवं प्राक्कलन की विस्तृत जानकारी दी। उन्होंने बताया कि यहां वल्र्ड क्लास इंटरनेशनल स्टेडियम बनाने को लेकर डिजाइन तैयार की गयी है, जिसमें क्रिकेट के साथ-साथ 10 अन्य खेलों के आयोजन की सुविधा होगी। वल्र्ड क्लास ड्रेनेज सिस्टम होगा। बेहतर पार्किंग की व्यवस्था, रेस्टोरेंट एवं होटल के साथ-साथ अन्य सुविधाओं की भी व्यवस्था होगी। प्रस्तुतीकरण के पष्चात् मुख्यमंत्री ने कहा कि इसका डिजाइन बेहतर है। राजगीर में अंतर्राष्ट्रीय स्तर का क्रिकेट स्टेडियम बनाया जा रहा है। अधिकारी, विशेषज्ञ वहां जाकर हो रहे निर्माण से संबंधित जानकारी लें और उसके आधार पर यहां भी निर्माण कार्य की योजना बनायें ताकि इसका निर्माण भी बेहतर हो सके। बैठक में मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव श्री दीपक कुमार, मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव श्री चंचल कुमार, मुख्यमंत्री के सचिव श्री अनुपम कुमार, मुख्यमंत्री के विशेष कार्य पदाधिकारी श्री गोपाल सिंह उपस्थित थे, जबकि वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से कला, संस्कृति एवं युवा मंत्री श्री आलोक रंजन, मुख्य सचिव श्री त्रिपुरारी शरण, विकास आयुक्त श्री आमिर सुबहानी, नगर विकास एवं आवास विभाग के प्रधान सचिव श्री आनंद किशोर, कला, संस्कृति एवं युवा विभाग की सचिव श्रीमती बंदना प्रेयसी, भवन निर्माण विभाग के सचिव श्री कुमार रवि उपस्थित थे। दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com |
Posted: 27 Aug 2021 06:10 AM PDT मुख्यमंत्री के समक्ष वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से 'बापू टावर' के प्रदर्श डिजाइन के प्रारंभिक परिकल्पना का दिया गया प्रस्तुतीकरणमुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार के समक्ष 1 अणे मार्ग स्थित संकल्प में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से भवन निर्माण विभाग ने 'बापू टावर' के प्रदर्श डिजाइन के प्रारंभिक परिकल्पना का प्रस्तुतीकरण दिया। भवन निर्माण विभाग के सचिव श्री कुमार रवि ने 'बापू टावर' के भौतिक प्रगति की जानकारी दी। इसके निर्माण कार्य से जुड़े आर्किटेक्ट ने अपनी प्रस्तुति में प्रोजेक्ट बैकग्राउंड, प्रोजेक्ट स्टेटस, एक्जीविट डिजाइनिंग आदि के संबंध में विस्तृत जानकारी दी। प्रस्तुतीकरण के पश्चात् मुख्यमंत्री ने कहा कि इसका बेहतर डिजाइन बनाया गया है। 'बापू टावर' के निर्माण से हमारा उद्देश्य है कि आनेवाली पीढ़ी को बापू के विचारों को समझने में सहुलियत हो। बिहार बापू के जीवन में विषेष स्थान रखता है। बिहार भ्रमण के दौरान गांधी जी पर यहां की स्थिति का विषेष प्रभाव पड़ा और गांधी जी के विचारों से यहां के लोग काफी प्रभावित हुये। बापू के चम्पारण आगमन के 30 वर्ष के अंदर ही देष को आजादी मिल गयी इसलिये चंपारण सत्याग्रह का विशेष महत्व है। इससे जुड़े इन सभी स्थानों को इसमें प्रमुखता से प्रदर्शित की जाए। उन्होंने कहा कि 10 अप्रैल 2017 को गांधी जी के चंपारण आगमन के 100 साल पूर्ण होने पर ज्ञान भवन में दो दिनों का राष्ट्रीय विमर्श का आयोजन किया गया, जिसमें चिंतक, विचारक, बुद्धिजीवी, राजनेता, युवा शामिल हुए और विमर्ष के आधार पर एक दस्तावेज तैयार किया गया। देश भर के स्वतंत्रता सेनानियों को भी हमलोगों ने सम्मानित किया था। मुख्यमंत्री ने कहा कि 10 से 15 प्रतिशत लोग भी अगर बापू के विचारों को अपना लें तो देश और समाज बदल जाएगा। बापू ने कहा था कि मेरा जीवन ही मेरा संदेश है। बापू ने सात सामाजिक पाप- सिद्धांत के बिना राजनीति, काम के बिना धन अर्जन, विवेक के बिना सुख, चरित्र के बिना ज्ञान, नैतिकता के बिना व्यापार, मानवता के बिना विज्ञान एवं त्याग के बिना पूजा की चर्चा की है। पर्यावरण संरक्षण को लेकर भी बापू ने कहा था कि पृथ्वी हमारी आवश्यकताओं को पूरा करने में सक्षम है, लालच को नहीं। बापू के इन सभी विचारों को विशेष तौर पर इसमें प्रदर्शित करें। शराबबंदी के संबंध में भी बापू के विचार को प्रदर्शित करें। हमने महिलाओं की मांग पर वर्ष 2016 में बिहार में पूर्ण शराबबंदी लागू की, यह बापू का भी सिद्धांत था। मुख्यमंत्री ने कहा कि बापू के विचारों को ध्यान में रखते हुए बिहार के लोगों की सेवा कर रहे हैं। लोगों की सेवा करना ही हमारा धर्म है, इस सिद्धांत पर हमलोग काम कर रहे हैं। 'बापू आपके द्वार' कार्यक्रम के तहत घर-घर तक बापू के संदेश को पहुंचाया गया। हमारा उद्देश्य है कि बापू की सारी बातों की जानकारी लोगों को हो। तीसरी से आठवीं कक्षा के छात्र-छात्राओं के लिए 'बापू की पाती' तथा 9वीं से 12वीं कक्षा के छात्र-छात्राओं के लिए 'एक था मोहन' पुस्तक का प्रतिदिन स्कूलों में पाठ कराया जाता है ताकि छात्र-छात्राएं बापू के विचारों को समझ सकें और आत्मसात कर सकें। बापू के विचारों को अपनाकर हमलोगों ने महिला उत्थान, शराबबंदी के साथ-साथ सामाजिक कुरीति उन्मूलन कार्य किये है, इसे भी प्रदर्शित करें। उन्होंने कहा कि बापू टावर जल्द से जल्द बनकर तैयार हो जाए यह मेरी अपेक्षा है। बैठक में मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव श्री दीपक कुमार, मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव श्री चंचल कुमार, मुख्यमंत्री के सचिव श्री अनुपम कुमार, मुख्यमंत्री के विशेष कार्य पदाधिकारी श्री गोपाल सिंह उपस्थित थे, जबकि वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से मुख्य सचिव श्री त्रिपुरारी शरण, विकास आयुक्त श्री आमिर सुबहानी, भवन निर्माण विभाग के सचिव श्री कुमार रवि उपस्थित थे। दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com |
Posted: 27 Aug 2021 06:01 AM PDT आज 28 अगस्त 2021, शनिवार का दैनिक पंचांग एवं राशिफल - सभी १२ राशियों के लिए कैसा रहेगा आज का दिन ? क्या है आप की राशी में विशेष ? जाने प्रशिद्ध ज्योतिषाचार्य पं. प्रेम सागर पाण्डेय से |श्री गणेशाय नम: !! दैनिक पंचांग ☀ 28 अगस्त 2021, शनिवार ☀ पंचांग 🔅 तिथि षष्ठी रात्रि 08:13:42 🔅 नक्षत्र भरणी रात्रिशेष 04:07:25 🔅 करण : गर 07:52:00 वणिज 20:59:22 🔅 पक्ष कृष्ण 🔅 योग घ्रुव पूर्ण रात्रि 🔅 वार शनिवार ☀ सूर्य व चन्द्र से संबंधित गणनाएँ 🔅 सूर्योदय 05:41:30 🔅 चन्द्रोदय 22:22:59 🔅 चन्द्र राशि मेष 🔅 सूर्यास्त 18:19:25 🔅 चन्द्रास्त 11:07:59 🔅 ऋतु शरद ☀ हिन्दू मास एवं वर्ष 🔅 शक सम्वत 1943 प्लव 🔅 कलि सम्वत 5123 🔅 दिन काल 12:50:56 🔅 विक्रम सम्वत 2078 🔅 मास अमांत श्रावण 🔅 मास पूर्णिमांत भाद्रपद ☀ शुभ और अशुभ समय ☀ शुभ समय 🔅 अभिजित 11:56:32 - 12:47:55 ☀ अशुभ समय 🔅 दुष्टमुहूर्त : 05:56:46 - 06:48:09 06:48:09 - 07:39:33 🔅 कंटक 11:56:32 - 12:47:55 🔅 यमघण्ट 15:22:07 - 16:13:30 🔅 राहु काल 09:09:30 - 10:45:52 🔅 कुलिक 06:48:09 - 07:39:33 🔅 कालवेला या अर्द्धयाम 13:39:19 - 14:30:43 🔅 यमगण्ड 13:58:36 - 15:34:58 🔅 गुलिक काल 05:56:46 - 07:33:08 ☀ दिशा शूल 🔅 दिशा शूल पूर्व ☀ चन्द्रबल और ताराबल ☀ ताराबल 🔅 अश्विनी, भरणी, कृत्तिका, रोहिणी, आर्द्रा, पुष्य, मघा, पूर्वा फाल्गुनी, उत्तरा फाल्गुनी, हस्त, स्वाति, अनुराधा, मूल, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा, श्रवण, शतभिषा, उत्तराभाद्रपद ☀ चन्द्रबल 🔅 मेष, मिथुन, कर्क, तुला, वृश्चिक, कुम्भ 🌹विशेष ~ हलषष्टी (ललही छठ) व्रत। 🌹 पं.प्रेम सागर पाण्डेय् राशिफल 28 अगस्त 2021, शनिवार मेष (Aries):कार्य रफ्तार तेज रखें। भाग्य की प्रबलता और आत्मविश्वास से सफलता अर्जित करेंगे। धर्म एवं मनोरंजन में रुचि रहेगी। आगामी कुछ करियर कारोबार के लिए हितकर। शुभ रंग = पीला शुभ अंक : 9 वृषभ (Tauras): सक्रियता और समझ बेहतर बनी रहेगी। गरिमा गोपनीयता पर जोर दें। आकस्मिकता बढ़ सकती है। अपनों का सहयोग बना रहेगा। दिन सामान्य से शुभ। शुभ रंग = श्याम शुभ अंक : 6 मिथुन (Gemini):निजी जीवन में शुभता का संचार रहेगा। दाम्पत्य में विश्वास बढ़ेगा। स्थायित्व को बल मिलेगा। साझेदारी उपलब्धि में सहायक होगी। दिन उत्तम। शुभ रंग = नीला शुभ अंक : 3 कर्क (Cancer):विनम्रता और विवेक व्यक्ति के सबसे बड़े सहयोगी हैं। विपक्ष को कमजोर न आंकें। भौतिक संसाधनों में रुचि रह सकती है। खर्च पर अंकुश रखें। दिन सामान्य। शुभ रंग = पींक शुभ अंक : 1 सिंह - प्रेम और निज संबंधों को बल मिलेगा। मन-बुद्धि के श्रेष्ठ संयोजन से सभी क्षेत्रों में बेहतर करेंगे। आर्थिक सहजता बनी रहेगी। दिन शुभ फलकारक। शुभ रंग = उजला शुभ अंक : 4 कन्या (Virgo):बोलने से बेहतर है कर दिखाना. बड़ों के सामंजस्य बनाए रखने पर जोर दें। कामकाज के सिलसिले में दूर देश जाना पड़ सकता है। दिन सामान्य फलकारक। शुभ रंग = श्याम शुभ अंक : 6 तुला (Libra):संपर्क और सूचना तंत्र को बल मिलेगा। भाग्य के सहयोग श्रेष्ठ कार्याें को आगे बढ़ा सकेंगे। धर्म मनोरंजन में रुचि रहेगी। आलस्य से बचें। दिन शुभ। शुभ रंग = नीला शुभ अंक : 3 वृश्चिक (Scorpio):श्रेष्ठ कार्याें एवं योजनाओं को आगे बढ़ा सकेंगे। अपनों का साथ सफलता दर ऊंची रखेगा। खानपान बेहतर होगा। उत्सव आयोजन में भाग लेंगे। दिन उत्तम। शुभ रंग = पींक शुभ अंक : 1 धनु (Sagittarius):निवेशों पर संकल्प के साथ जुटे रहने का समय है। सफलता का प्रतिशत बेहतर बना रहेगा। निजी जीवन में शुभता का संचार रहेगा। सृजनात्मकता बढ़ेगी। दिन शुभ। शुभ रंग = उजला शुभ अंक : 4 मकर (Capricorn):दिखावे और आत्मप्रशंसा से बचें। खर्च पर अंकुश कठिन होगा। रिश्तों को बेहतर बनाएंगे। लेन देन में सतर्क रहें। सफेदपोश ठगों से बचें। दिन सामान्य। शुभ रंग = नीला शुभ अंक : 3 कुंभ (Aquarius):आर्थिक पक्ष बेहतर रहेगा। करियर कारोबार को अधिकाधिक समय देने का प्रयास करें। प्रतिभा संवार पर रहेगी। शिक्षा प्रेम और संतान पक्ष शुभकर रहेंगे। शुभ रंग = श्याम शुभ अंक : 6 मीन (Pisces):मान सम्मान में बढ़ोत्तरी होगी। सभी का साथ कार्यक्षेत्र में शुभता बढ़ाएगा। पैतृक मामलों में गति आएगी। सुख सौख्य में वृद्धि होगी। दिन श्रेष्ठ फलकारक। शुभ रंग = गुलाबी शुभ अंक : 5 दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com |
Posted: 27 Aug 2021 04:08 AM PDT जू सफारी राजगीर में जारी विकास कार्यों का मुख्यमंत्री ने किया निरीक्षण, अधिकारियों को दिये कई दिशा-निर्देशमुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार ने आज जू सफारी राजगीर में जारी विकास कार्यों का निरीक्षण किया। निरीक्षण के क्रम में अधिकारियों ने मुख्यमंत्री को पर्यटकों के आवगमन, पशुओं के आवासन एवं खुले में उनके विचरण करने के स्थल, बॉउंड्री वॉल, आगंतुकों के लिए उपलब्ध कराई जा रही जरूरी सुविधाएं एवं उनकी सुरक्षा, जू सफारी के प्रवेश द्वार, एनिमल केज सहित अन्य सभी आवश्यक जानकारी दी। जू सफारी प्रांगण में पर्यटकों हेतु परिचालित होने वाले वाहन से मुख्यमंत्री ने विकास कार्यों का जायजा लिया। इस दौरान उन्होंने केज के अंदर विश्राम कर रहे शेर, भालू, तेंदुआ आदि जानवरों के भोजन, इलाज एवं उनके रखरखाव के संबंध में पूरी जानकारी ली। वाहन से भ्रमण के क्रम में मुख्यमंत्री ने जू सफारी परिसर में खुले में विचरण कर रहे बाघ एवं हिरण को काफी निकट से देखा। अधिकारियों को निर्देश देते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि जू सफारी के अंदर पशुओं की चिकित्सा के लिए जो चिकित्सक रहेंगे, उनके आवासन का प्रबंध भी सुनिश्चित करें ताकि पशुओं के स्वास्थ्य का निरंतर ख्याल रखा जा सके। उन्होंने कहा कि लोगों को जानवरों से किसी प्रकार का नुकसान न हो, इसके लिए जानवरों को नियंत्रित रखने के लिए पुख्ता प्रबंध भी होना चाहिए। उन्होंने कहा कि 10 प्रतिशत लोग गड़बड़ी करने वाले होते हंै इसलिए यहां की सुरक्षा चाक-चैबंद होनी चाहिए ताकि गड़बड़ी की कोई गुंजाइश न रहे। छोटी सी गलती भी दुर्घटना का कारण बन सकती है। इस अवसर पर मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव श्री दीपक कुमार, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन के प्रधान सचिव श्री दीपक कुमार सिंह, मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव श्री चंचल कुमार, मुख्यमंत्री के सचिव श्री अनुपम कुमार, आयुक्त पटना प्रमंडल श्री संजय कुमार अग्रवाल, मुख्यमंत्री के विशेष कार्य पदाधिकारी श्री गोपाल सिंह, नालंदा के जिलाधिकारी श्री योगेंद्र सिंह, नालंदा के पुलिस अधीक्षक श्री हरि प्रसाथ एस0, डी0एफ0ओ0 नालंदा डॉ0 नेशमणि सहित अन्य वरीय अधिकारी उपस्थित थे। इस अवसर पर पत्रकारों से बात करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि राजगीर में जू और नेचर सफारी बनकर तैयार हो गया है। जू सफारी में प्रवेश के लिए बिल्डिंग बन रही है। उसी को हम देखने आये थे। यह बिल्डिंग जब बन कर तैयार हो जायेगी तो जू सफारी को आम जनता के लिए खोल दिया जायेगा। जू सफारी में कई बाघ और शेर को लाया जा चुका है। आने वाले समय में कुछ और बाघ और शेर लाये जायेंगे। आज हमलोगों ने बाघ और शेर को देखा है। उन्होंने कहा कि जू सफारी को लेकर आज हमने कई सुझाव अधिकारियों को दिये हंै। जू सफारी में जानवर खुले में घूमते रहेंगे और यहां की गाड़ी में बैठकर लोग उसका आनंद उठा सकेंगे। इसको लेकर जू सफारी में सभी तरह की सुरक्षा के प्रबंध किये जा रहे हंै। आने वाले लोगों के लिए भोजन और आपात स्थिति में इलाज की भी व्यवस्था यहां की गई है। मुख्यमंत्री ने कहा कि हम तो चाहते हैं कि लोग जल्द से जल्द यहां आकर जू सफारी का आनंद ले सकें। पटना एयरपोर्ट को लेकर केंद्रीय उड्डयन मंत्री के पत्र के संबंध में पत्रकारों के सवाल का जवाब देते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि अभी उन्हें इस संबंध में कोई पत्र नहीं मिला है। जातीय जनगणना को लेकर भाजपा नेता श्री सी0पी0 ठाकुर के बयान के संबंध में पत्रकारों के सवाल का जवाब देते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि कोई क्या बयान देता है उससे हमें कोई मतलब नहीं है। सबको मालूम है कि बिहार विधानसभा और विधान परिषद में सर्वसम्मति से जातीय जनगणना को लेकर प्रस्ताव पास किया गया था। जातीय जनगणना को लेकर व्यक्तिगत किसी की कोई राय हो सकती है, वह एक अलग बात है। लोगों की अलग-अलग सोच होती है उस पर हमारी किसी प्रतिक्रिया की जरुरत नहीं है। जातीय जनगणना को लेकर सभी पार्टी के नेताओं ने सर्वसम्मति से विधानसभा और विधान परिषद से प्रस्ताव पास किया और प्रधानमंत्री जी से मिलने के लिये भी सभी पार्टी के लोग एक साथ गये थे। दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com |
ब्रह्माण्ड के प्रथम संवादप्रेषक देवर्षि नारद Posted: 27 Aug 2021 04:02 AM PDT ब्रह्माण्ड के प्रथम संवादप्रेषक देवर्षि नारद सत्येन्द्र कुमार पाठक पुरणों और शास्त्रों में देवर्षि को नारद ब्रह्मांड और भू - लोक , विश्व में समन्वय कार्य और संबाद प्रेषण का प्रवर्तक की उल्लेख किया गया है । भगवान विष्णु के महान भक्त , ब्रह्मा जी का मानस पुत्र और भगवान शिव का प्रिय है । पुराणों के अनुसार ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष प्रतिपदा को ब्रह्मा जी का मानस पुत्र नारद जी का जन्म हुआ है । ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार ब्रह्मा सृष्टि का निर्माण करने के पश्चात सात मानस पुत्रों में नारद सबसे चंचल स्वभाववाले थे । ब्रह्मा जी ने नारद से सृष्टि के निर्माण में सहयोग करने के लिए विवाह करने की चर्चा के दौरान नारद ने अपने पिता ब्रह्मा जी को साफ मना कर दिया। भगवान ब्रह्मा ने क्रोधित होते हुए नारद जी को आजीवन अविवाहित रहने का श्राप दे दिया। नारद मुनि को श्राप देते हुए ब्रह्मा ने कहा नारद हमेशा अपनी जिम्मेदारियों से भागते हो अब पूरी जिंदगी इधर उधर भागते रहोगे। देवर्षि नारद धर्म के प्रचार तथा लोक कल्याण हेतु सदैव प्रयत्नशील रहने के कारण ईश्वर का मन कहा गया है। युगों में, लोकों में, विद्याओं में, समाज के वर्गो में नारदजी का सदा से प्रवेश रहा है। देवताओं ने , दैत्यों , राक्षसों , आर्यो ,अनार्यों दानवों ने देवर्षि नारद जी को सदैव आदर तथा समय-समय पर सभ परामर्श लिया है। श्रीमद्भगवद्गीता के दशम अध्याय के 26 वें श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि देवर्षीणाम्चनारद:। देवर्षियों में मैं नारद हूं। श्रीमद्भागवत महापुराण के अनुसार सृष्टि में भगवान विष्णु ने देवर्षि नारद के रूप में अवतार ग्रहण किया और सात्वततंत्र का उपदेश देकर सत्कर्मो के द्वारा भव-बंधन से मुक्ति का मार्ग दिखाया है। वायुपुराण में उल्लेख किया गया है कि देवलोक में प्रतिष्ठा प्राप्त करनेवाले ऋषिगण देवर्षिनाम से जाने जाते हैं। भूत, वर्तमान एवं भविष्य-, कालों के ज्ञाता, सत्यभाषी, स्वयं का साक्षात्कार करके स्वयं में सम्बद्ध, कठोर तपस्या से लोकविख्यात, गर्भावस्था में ही अज्ञान रूपी अंधकार के नष्ट हो जाने से जिनमें ज्ञान का प्रकाश हो चुका है, ऐसे मंत्रवेत्तातथा अपने सिद्धियों के बल से सब लोकों में सर्वत्र पहुँचने में सक्षम, मंत्रणा हेतु मनीषियोंसे घिरे हुए देवता, द्विज और देवर्षि नारद कहे जाते हैं। धर्म, पुलस्त्य, क्रतु, पुलह, प्रत्यूष, प्रभास और कश्यप के पुत्रों को देवर्षिका पद प्राप्त हुआ है । धर्म के पुत्र नर एवं नारायण, क्रतु के पुत्र बालखिल्यगण, पुलह के पुत्र कर्दम, पुलस्त्यके पुत्र कुबेर, प्रत्यूषके पुत्र अचल, कश्यप के पुत्र नारद और पर्वत देवर्षि माने गए है । वायुपुराण मे उल्लेख किया गया है कि देवर्षि के सारे लक्षण नारदजी में पूर्णत:घटित होते हैं। महाभारत के सभापर्व के पांचवें अध्याय में उल्लेख है कि देवर्षि नारद वेद और उपनिषदों के मर्मज्ञ, देवताओं के पूज्य, इतिहास-पुराणों के विशेषज्ञ, पूर्व कल्पों की बातों को जानने वाले, न्याय एवं धर्म के तत्त्वज्ञ, शिक्षा, व्याकरण, आयुर्वेद, ज्योतिष के प्रकाण्ड विद्वान, संगीत-विशारद, प्रभावशाली वक्ता, मेधावी, नीतिज्ञ, कवि, महापण्डित, बृहस्पति महाविद्वानों की शंकाओं का समाधान करने वाले, धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष के यथार्थ के ज्ञाता, योगबलसे समस्त लोकों के समाचार जान सकने में समर्थ, सांख्य एवं योग के सम्पूर्ण रहस्य को जानने वाले, देवताओं-दैत्यों को वैराग्य के उपदेशक, कर्त्तव्य-अकर्त्तव्य में भेद करने में दक्ष, समस्त शास्त्रों में प्रवीण, सद्गुणों के भण्डार, सदाचार के आधार, आनंद के सागर, परम तेजस्वी, सभी विद्याओं में निपुण, सबके हितकारी और सर्वत्र गति वाले हैं। नारदोक्त पुराण; बृहन्नारदीय पुराण प्रख्यात है। मत्स्यपुराण के अनुसार देवर्षि नारदजी का बृहत्कल्प-प्रसंग मे धर्म-आख्यायिकाओं को , 25,000 श्लोकों का महाग्रन्थ नारद महापुराण है। वर्तमान समय में उपलब्ध नारदपुराण 22,000 श्लोकों में नारदपुराण में 750 श्लोक ज्योतिषशास्त्र हैं। ज्योतिष के तीनों स्कन्ध-सिद्धांत, होरा और संहिता की सर्वागीण विवेचना की गई है। नारदसंहिता से उपलब्ध तथा अन्य ग्रन्थ में ज्योतिषशास्त्र के विषयों का सुविस्तृत वर्णन मिलता है। देवर्षि नारद भक्ति के साथ-साथ ज्योतिष के प्रधान आचार्य हैं। भगवान की अधिकांश लीलाओं में नारदजी उनके अनन्य सहयोगी बने हैं। वे भगवान के पार्षद होने के साथ देवताओं के प्रवक्ता हैं। देवर्षि नारद द्वारा भक और भगवान से जुड़ाव कराने के लिये सेतु का काम करते है । अथर्ववेद के अनुसार नारद ऋषि है ।।ऐतरेय ब्राह्मण के अनुसार हरिशचंद्र के पुरोहित सोमक, साहदेव्य के गुरु तथा आग्वष्टय एवं युधाश्रौष्ठि को अभिशप्त करने वाले नारद थे।मैत्रायणी संहिता में नारद के आचार्य हुए हैं। सामविधान ब्राह्मण में बृहस्पति के शिष्य के रूप में नारद है । छान्दोग्यपनिषद् में नारद सनत्कुमारों के साथ है। महाभारत में मोक्ष धर्म के नारायणी आख्यान में नारद की उत्तरदेशीय यात्रा का विवरण के अनुसार देवर्षि नारद ने नर-नारायण ऋषियों की तपश्चर्या देखकर उनसे प्रश्न किया और बाद में उन्होंने नारद को पांचरात्र धर्म का श्रवण कराया। नारद पंचरात्र के वैष्णव ग्रन्थ है जिसमें दस महाविद्याओं की कथा है। नारद पंचतंत्र के अनुसार हरी का भजन ही मुक्ति का परम कारण माना गया है।नारद पुराण के पूर्वखंड में 125 अघ्याय और उत्तरखण्ड में 182 अघ्याय हैं। स्मृतिकारों ने नारद का नाम सर्वप्रथम स्मृतिकार के रू प में माना है।नारद स्मृति में व्यवहार मातृका यानी अदालती कार्रवाई और सभा अर्थात न्यायालय सर्वोपरि माना गया है। स्मृति में ऋणाधान ऋण वापस प्राप्त करना, उपनिधि यानी जमानत, संभुय, समुत्थान यानी सहकारिता, दत्ताप्रदानिक यानी करार करके भी उसे नहीं मानने, अभ्युपेत्य-असुश्रुषा यानी सेवा अनुबंध को तोड़ना है। वेतनस्य अनपाकर्म यानी काम करवाके भी वेतन का भुगतान नहीं करना शामिल है। नारद स्मृति में अस्वामी विक्रय यानी बिना स्वामित्व के किसी चीज का विक्रय कर देने को दंडनीय अपराध माना है। विक्रिया संप्रदान यानी बेच कर सामान न देना भी अपराध की कोटि में है। इसके अतिरिक्त क्रितानुशय यानी खरीदकर भी सामान न लेना, समस्यानपाकर्म यानी निगम श्रेणी आदि के नियमों का भंग करना, सीमाबंद यानी सीमा का विवाद और स्त्रीपुंश योग यानी वैवाहिक संबंध के बारे में भी नियम-कायदों की चर्चा मिलती है। नारद स्मृति में दायभाग यानी पैतृक संपत्ति के उत्तराधिकार और विभाजन की चर्चा भी मिलती है। इसमें साहस यानी बल प्रयोग द्वारा अपराधी को दंडित करने का विधान भी है। नारद स्मृति वाक्पारूष्य यानी मानहानि करने, गाली देने और दण्ड पारूष्य यानी चोट और क्षति पहुँचाने का वर्णन भी करती है। नारद स्मृति के प्रकीर्णक में विविध अपराधों और परिशिष्ट में चौर्य एवं दिव्य परिणाम का निरू पण किया गया है। देवर्षि नारद को वेदों के संदेशवाहक , देवताओं के संवाद वाहक और वीणा का आविष्कारक कहा गया है । ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार मेरू के बीस पर्वतों में नारद पर्वत है।मत्स्य पुराण के अनुसार वास्तुकला विशारद अठारह आचार्यो में नारद वही शक्ति देवियों में से एक शक्ति देवी नारदा है।रघुवंश के अनुसार लोहे के बाण को नाराच , जल के हाथी को नाराच , स्वर्णकार की तराजू अथवा कसौटी का नाराची है।मनुस्मृति के अनुसार ऋषि का नारायण नर के साथी थे। नारायण ने अपनी जंघा से उर्वशी को उत्पन्न किया था। नारद मुनि निरंतर नारायण नारायण का मंत्र जपते रहते थे। राजा दक्ष की पत्नी आसक्ति ने 10 हज़ार पुत्रों को जन्म दिया था। नारद जी ने आसक्ति के पुत्रों को मोक्ष की राह पर चलना सीखा दिया था। दक्ष ने पंचजनी से विवाह किया और उन्होंने एक हजार पुत्रों को जन्म दिया। नारद जी ने दक्ष के पंचजनी के पुत्रों को मोह माया से दूर रहना सीखा दिया। नारद जी द्वारा आसक्ति के 10 हजार पुत्रों को मोक्ष और पंचजनी के एक हजार पुत्रों को माया की शिक्षा तथा दीक्षा दिए जाने के कारण नारद जी पर राजा दक्ष को बहुत क्रोध में नारद को हमेशा इधर-उधर भटकते रहने का शाप दिया ।ब्रह्मा जी की सभा में सभी देवता और गन्धर्व भगवान्नाम का संकीर्तन करने के लिये आये। गंधर्व के देव देवर्षि नारद जी अपनी स्त्रियों के साथ सभा में संकीर्तन में विनोद करते हुए देखकर ब्रह्मा जी द्वारा शुद्र के शाप के प्रभाव से नारद जी का जन्म एक शूद्रकुल में हुआ। नारद जी का शुद्र में जन्म लेने के बाद इनके पिता की मृत्यु हो गयी। नारद की माता दासी का कार्य करके नारद को भरण-पोषण करने लगी थी ।महात्मा आये और चातुर्मास्य बिताने के लिये नारद जी के जन्म भूमि पर ठहर गये। नारद जी बचपन से अत्यन्त सुशील थे। वे खेलकूद छोड़कर उन साधुओं के पास बैठे रहते थे और उनकी छोटी-से-छोटी सेवा बड़े मन से करते थे। संत-सभा में भगवत्कथा तन्मय होकर सुना करते थे । नारद को संतों द्वारा अपना बचा हुआ भोजन खाने के लिये दिया जाता था । नारद के मन मे साधुसेवा और सत्संग अमोघ फल प्रदान करने वाला विचार होता है। संतो के प्रभाव से नारद जी का हृदय पवित्र समस्त पाप मुक्त होने पर महात्माओं ने प्रसन्न होकर नारद जी को भगवन्नाम का जप एवं भगवान के स्वरूप के ध्यान का उपदेश दिया। नारद जी वन में बैठकर भगवान के स्वरूप का ध्यान कर रहे थे,अचानक इनके हृदय में भगवान प्रकट हो गये और थोड़ी देर तक अपने दिव्यस्वरूप की झलक दिखाकर अन्तर्धान हो गये। भगवान का दोबारा दर्शन करने के लिये नारद जी के मन में परम व्याकुलता पैदा हो गयी।वे बार-बार अपने मन को समेटकर भगवान के ध्यान का प्रयास करने लगे,किन्तु सफल नहीं हुए। उसी समय आकाशवाणी हुई- ''हे नारद तुम मेरे पार्षद रूप में मुझे पुन: प्राप्त करोगे।'' ॐ नमो भगवते वासुदेवाय। ॐ विष्णवे नम: । का मंत्र दिया गस्य । ननारद जी ने कठिन तपस्या से देवर्षि पद प्राप्त किया । देवर्षि नारद भगवान विष्णु के अनन्य भक्त है। देवर्षि नारद समाचार के देवता , संबाद प्रेषण देव का निवास ब्रह्मलोक में पिता ब्रह्मा जी और माता सरस्वती है ।इनका अस्त्र और सस्त्र वीणा , भाई दक्ष और सनक , सनातन , सनत , कुमार वाहन मायावी बादल तथा ?मंत्र नारायण , नारायण है । देवर्षि नारद धर्म के प्रचार तथा लोक-कल्याण हेतु सदैव प्रयत्नशील रहते हैं। शास्त्रों में इन्हें भगवान का मन कहा गया है। इसी कारण सभी युगों में, सभी लोकों में, समस्त विद्याओं में, समाज के सभी वर्गो में नारद जी का सदा से एक महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। मात्र देवताओं ने ही नहीं, वरन् दानवों ने भी उन्हें सदैव आदर किया है। समय-समय पर सभी ने उनसे परामर्श लिया है। श्रीमद्भगवद्गीता के दशम अध्याय के २६वें श्लोक में स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने इनकी महत्ता को स्वीकार करते हुए कहा है - देवर्षीणाम् च नारद:। देवर्षियों में मैं नारद हूं। श्रीमद्भागवत महापुराणका कथन है, सृष्टि में भगवान ने देवर्षि नारद के रूप में तीसरा अवतार ग्रहण किया और सात्वततंत्र (जिसे नारद-पांचरात्र भी कहते हैं) का उपदेश दिया जिसमें सत्कर्मो के द्वारा भव-बंधन से मुक्ति का मार्ग दिखाया गया है। नारद जी मुनियों के देवता थे और इस प्रकार, उन्हें ऋषिराज के नाम से भी जाना जाता था। वायुपुराण में देवर्षि के पद और लक्षण का वर्णन है- देवलोक में प्रतिष्ठा प्राप्त करने वाले ऋषिगण देवर्षि नाम से जाने जाते हैं। भूत, वर्तमान एवं भविष्य-तीनों कालों के ज्ञाता, सत्यभाषी, स्वयं का साक्षात्कार करके स्वयं में सम्बद्ध, कठोर तपस्या से लोकविख्यात, गर्भावस्था में अज्ञान रूपी अंधकार के नष्ट हो जाने से जिनमें ज्ञान का प्रकाश हो चुका है, ऐसे मंत्रवेत्ता तथा अपने ऐश्वर्य (सिद्धियों) के बल से सब लोकों में सर्वत्र पहुँचने में सक्षम, मंत्रणा हेतु मनीषियों से घिरे हुए देवता, द्विज और देवर्षि नारद कहे जाते हैं। पुराण में उल्लेख है कि धर्म, पुलस्त्य, क्रतु, पुलह, प्रत्यूष, प्रभास और कश्यप - इनके पुत्रों को देवर्षि का पद प्राप्त हुआ। धर्म के पुत्र नर एवं नारायण, क्रतु के पुत्र बालखिल्यगण, पुलह के पुत्र कर्दम, पुलस्त्य के पुत्र कुबेर, प्रत्यूष के पुत्र अचल, कश्यप के पुत्र नारद और पर्वत देवर्षि माने गए, जनसाधारण देवर्षि के रूप में नारद जी को जानता है। देवर्षि नारद की प्रसिद्धि को नहीं मिली। वायुपुराण में देवर्षि नारदजी का उल्लेख हैं। महाभारत के सभापर्व के पांचवें अध्याय में नारद जी के व्यक्तित्व का परिचय इस प्रकार दिया गया है - देवर्षि नारद वेद और उपनिषदों के मर्मज्ञ, देवताओं के पूज्य, इतिहास-पुराणों के विशेषज्ञ, पूर्व कल्पों की बातों को जानने वाले, न्याय एवं धर्म के तत्त्वज्ञ, शिक्षा, व्याकरण, आयुर्वेद, ज्योतिष के प्रकाण्ड विद्वान, संगीत-विशारद, प्रभावशाली वक्ता, मेधावी, नीतिज्ञ, कवि, महापण्डित, बृहस्पति जैसे महाविद्वानों की शंकाओं का समाधान करने वाले, धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष के यथार्थ के ज्ञाता, योगबल से समस्त लोकों के समाचार जान सकने में समर्थ, सांख्य एवं योग के सम्पूर्ण रहस्य को जानने वाले, देवताओं-दैत्यों को वैराग्य के उपदेशक, कर्त्तव्य-अकर्त्तव्य में भेद करने में दक्ष, समस्त शास्त्रों में प्रवीण, सद्गुणों के भण्डार, सदाचार के आधार, आनंद के सागर, परम तेजस्वी, सभी विद्याओं में निपुण, सबके हितकारी और सर्वत्र गति वाले हैं। अट्ठारह महापुराणों में एक नारदोक्त पुराण; बृहन्नारदीय पुराण के नाम से प्रख्यात है। मत्स्यपुराण में वर्णित है कि श्री नारद जी ने बृहत्कल्प-प्रसंग में जिन अनेक धर्म-आख्यायिकाओं को कहा है, २५,००० श्लोकों का वह महाग्रन्थ ही नारद महापुराण है। नारदपुराण २२,००० श्लोकों में नारदपुराण में लगभग ७५० श्लोक ज्योतिषशास्त्र पर हैं। ज्योतिष के तीनों स्कन्ध-सिद्धांत, होरा और संहिता की सर्वांगीण विवेचना की गई है। नारदसंहिता के नाम से उपलब्ध इनके एक अन्य ग्रन्थ में भी ज्योतिषशास्त्र के सभी विषयों का सुविस्तृत वर्णन है। देवर्षिनारद भक्ति के साथ-साथ ज्योतिष के भी प्रधान आचार्य हैं। भगवान की अधिकांश लीलाओं में नारद जी उनके अनन्य सहयोगी बने हैं। वे भगवान के पार्षद होने के साथ देवताओं के प्रवक्ता हैं। अथर्ववेद के अनुसार नारद नाम के एक ऋषि हुए हैं। ऐतरेय ब्राह्मण के अनुसार हरिशचंद्र के पुरोहित सोमक, साहदेव्य के गुरु तथा आग्वष्टय एवं युधाश्रौष्ठि को अभिशप्त करने वाले नारद थे। मैत्रायणी संहिता में नारद आचार्य , सामविधान ब्राह्मण में बृहस्पति के शिष्य , छान्दोग्यपनिषद् में सनत्कुमारों के मित्र , महाभारत में मोक्ष धर्म के नारायणी आख्यान में नारद की उत्तरदेशीय यात्रा का विवरण है। महाभारत अनुसार नारद ने नर-नारायण ऋषियों की तपश्चर्या देखकर उनसे प्रश्न किया और बाद में उन्होंने नारद को पांचरात्र धर्म का श्रवण कराया।नारद पंचरात्र के नाम से एक प्रसिद्ध वैष्णव ग्रन्थ भी है जिसमें दस महाविद्याओं की कथा विस्तार से कही गई है। इस कथा के अनुसार हरी का भजन ही मुक्ति का परम कारण माना गया है। नारद पुराण के पूर्वखंड में 125 अघ्याय और उत्तरखण्ड में 182 अघ्याय हैं।स्मृतिकारों ने नारद का नाम सर्वप्रथम स्मृतिकार के रू प में माना है। नारद स्मृति में व्यवहार मातृका यानी अदालती कार्रवाई और सभा अर्थात न्यायालय सर्वोपरि माना गया है। स्मृति में ऋणाधान ऋण वापस प्राप्त करना, उपनिधि यानी जमानत, संभुय, समुत्थान यानी सहकारिता, दत्ताप्रदानिक यानी करार करके भी उसे नहीं मानने, अभ्युपेत्य-असुश्रुषा यानी सेवा अनुबंध को तोड़ना है। वेतनस्य अनपाकर्म यानी काम करवाके वेतन का भुगतान नहीं करना शामिल है। नारद स्मृति में अस्वामी विक्रय यानी बिना स्वामित्व के किसी चीज का विक्रय कर देने को दंडनीय अपराध माना है। विक्रिया संप्रदान यानी बेच कर सामान न देना भी अपराध की कोटि में है। इसके अतिरिक्त क्रितानुशय यानी खरीदकर भी सामान न लेना, समस्यानपाकर्म यानी निगम श्रेणी आदि के नियमों का भंग करना, सीमाबंद यानी सीमा का विवाद और स्त्रीपुंश योग यानी वैवाहिक संबंध के बारे में भी नियम-कायदों की चर्चा मिलती है। नारद स्मृति में दायभाग यानी पैतृक संपत्ति के उत्तराधिकार और विभाजन की चर्चा भी मिलती है। इसमें साहस यानी बल प्रयोग द्वारा अपराधी को दंडित करने का विधान भी है। नारद स्मृति वाक्पारूष्य यानी मानहानि करने, गाली देने और दण्ड पारूष्य यानी चोट और क्षति पहुँचाने का वर्णन भी करती है। नारद स्मृति के प्रकीर्णक में विविध अपराधों और परिशिष्ट में चौर्य एवं दिव्य परिणाम का निरू पण किया गया है। नारद स्मृति की इन व्यवस्थाओं पर मनु स्मृति का पूर्ण प्रभाव दिखाई देता है। श्रीमद्भागवत और वायुपुराण के अनुसार देवर्षि नारद का नाम दिव्य ऋषि के रू प में भी वर्णित है। ये ब्रह्मधा के मानस पुत्र थे। नारद का जन्म ब्रह्मधा की जंघा से हुआ था। इन्हें वेदों के संदेशवाहक के रू प में और देवताओं के संवाद वाहक के रू प में भी चित्रित किया गया है। नारद देवताओं और मनुष्यों में कलह के बीज बोने से कलिप्रिय अथवा कलहप्रिय कहलाते हैं। मान्यता के अनुसार वीणा का आविष्कार भी नारद ने ही किया था।ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार मेरू के चारों ओर स्थित बीस पर्वतों में से एक का नाम नारद है।मत्स्य पुराण के अनुसार वास्तुकला विशारद अठारह आचार्यो में से एक का नाम भी नारद है। चार शक्ति देवियों में से एक शक्ति देवी का नाम नारदा है।रघुवंश के अनुसार लोहे के बाण को नाराच कहते हैं। जल के हाथी को भी नाराच कहा जाता है। स्वर्णकार की तराजू अथवा कसौटी का नाम नाराचिका अथवा नाराची है।मनुस्मृति के अनुसार एक प्राचीन ऋषि का नाम नारायण है जो नर के साथी थे। नारायण ने ही अपनी जंघा से उर्वशी को उत्पन्न किया था। विष्णु के एक विशेषण के रू प में भी नारायण शब्द का प्रयोग किया जाता है। देवर्षि नारद ब्रह्मांड , लोको , त्रिभुवनो , मानव की प्रवृत्तियों में समन्वय स्थापित करने की ओर प्रेरित करते है । मानवीय मूल्यों में चेतना जागृत और समाधान कराने का मूल देवर्षि नारद है । सत्य की कसौटी पर , भक्ति , समन्वय स्थापित करने , संबाद , कूटनीति और ज्योतिष , संगीत के प्रवर्तक देवर्षि नारद जी है । दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com |
विकास के दम पर नये भारत की बदलती तस्वीर Posted: 27 Aug 2021 03:42 AM PDT विकास के दम पर नये भारत की बदलती तस्वीर-(विनय कुमार, वरिष्ठ पत्रकार) देश इन दिनों आजादी के 75 साल का अमृत महोत्सव मना रहा है। वाकई में देश आजादी के इस सफर में विकास के अनगिनत कीर्तिमान गढ़ते हुए दुनिया में अपनी धाक जमा रहा है। आज भारत दुनिया की 6 बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में शुमार है। यह अनुमान लगाया जा रहा है कि 2030 तक भारत टॉप थ्री अर्थव्यवस्था वाला देश होगा। यह बदलते भारत की नई तस्वीर है, जिसकी पूरी दुनिया कायल है। वर्तमान कोरोना काल की ही बात करें तो भारत ने इस दौरान अमेरिका, इंग्लैड जैसे बड़े मुल्कों को जिस तरीके से महामारी के दौर में मदद की, उसने हमारी विश्व गुरु और सेवा परमोधर्म की छवि को और मजबूत किया है। पूरी दुनिया में, चाहे विकसित देश हों या फिर विकासशील, हर कोई कोरोना महामारी से बुरी तरह प्रभावित हुआ। शुरुआती दौर में भारत ने सभी जरुरतमंद मुल्कों को दवा मुहैय्या कराई और फिर भारत ने रिकार्ड समय में कोरोनारोधी टीके बनाकर पूरी दुनिया को अपनी तकनीक और मानव संपदा का परिचय दिया। इस दौरान भारत ने दुनिया के साथ अपनी सौहार्द और मैत्रीपूर्ण छवि का परिचय देते है जरुरतमंद मुल्कों को टीका मुहैय्या कराया और पूरे दुनिया को कोरोना से मुकाबले में सहयोग दिया। ये 75 साल में दृढ़ और मजबूत होते नये भारत की तस्वीर है जो अब हर क्षेत्र में नजर आती है। इतना ही नहीं जेनरिक दवाओं और टीकों के उत्पादन में आज भारत दुनिया के टॉप देशों में शुमार है। और यह सब हमारे वैज्ञानिकों की असीम मेहनत और मेधा का कमाल है। भारत ने इन 75 सालों में शिक्षा, स्वास्थ्य, विज्ञान, तकनीक, शोध, कृषि, महिला विकास समेत ज्यादातर मानव विकास सूचकांकों में अपनी स्थिति बेहतर की है। आदिवासी बहुल इलाके हों या ग्रामीण या फिर शहरी, हर जगह लोगों के जीने का तरीका बदला है और किसी भी विषम परिस्थिति से निपटने में देश आज सक्षम होता नजर आता है। जल, थल और वायु हर तरफ सीमा सुरक्षा से लेकर रक्षा के सभी क्षेत्रों में भी देश ने आत्मनिर्भरता की राह तैयार की है। पिछले कुछ सालों में देश ने जिस तरीके से सुरक्षा को लेकर अपनी आत्मरक्षा का परिचय दिया है, वो नये भारत के नये तेवर की झलक भी है, जिसने आतंकवाद को करारा जवाब देने के साथ दुनिया को अपनी दक्षता का भी परिचय दिया है। चाहे सर्जिकल स्ट्राईक हो या फिर लद्दाख में चीन के साथ सीमा विवाद हर जगह मजबूत भारत और बदलते भारत की तस्वीर देखने को मिली। इसका नतीजा यह रहा कि भारत कूटनीति के साथ साथ दुनिया में अपनी सामरिक मजबूती का भी परिचय देने में पूरी तरह सफल रहा और आज इसकी झलक दुनिया के हर बड़े मंच पर साफ दिखता है। भारत ने आज आजादी के 75 साल बाद खाद्य सुरक्षा जैसे महत्वपूर्ण पहलुओं पर भी काफी प्रगति की है और देश की बढ़ती आबादी की चुनौतियों के बीच आत्मनिर्भरता की राह तैयार करते हुए किसानों की आमदनी को दोगुना करने के लक्ष्य के साथ दूसरी कृषि क्रांति की दिशा में आगे बढ़ रहा है। भारत ने जहां अपनी सवा सौ करोड़ से ज्यादा की आबादी को खाद्य सुरक्षा गारंटी का कवच दिया है वहीं दुनिया के जरुरतमंद मुल्कों को सस्ते दर पर अनाज भी निर्यात करने का काम किया है। सूचना, विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में भी भारत ने इन 75 सालो में पूरी दुनिया से अपना लोहा मनवाया है। भारत आज परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र है। हमारे वैज्ञानिकों की मेहनत का ही नतीजा है कि भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन, इसरो की गिनती दुनिया के शीर्ष अंतरिक्ष अनुंसधान संगठनों में होती है। इसरो को आज न केवल किफायती बल्कि सटीक और दक्ष मिशनों के लिए जाना जाता है। यही कारण है कि दुनिया के तमाम विकसित देश भी अपने उपग्रहों को प्रक्षेपित करने के लिए इसरो की शरण में आते हैं। एक बार 104 छोटे-बड़े उपग्रहों को प्रक्षेपित करने का कीर्तिमान भी इसरो जैसे संस्थान ने बनाया है। हमारे मंगलयान और चंद्रयान जैसे अभियान ने हमारे अंतरिक्ष अनुसंधान में चार चांद लगाए हैं और सबसे बड़ी बात यह है कि अधिकाशं उपलब्धिया स्वदेशी तकनीक के दम पर हासिल की है। देश ने 100 फीसदी घरों तक बिजली पहुंचाने का लक्ष्य हासिल किया और लगातार केंद्र सरकार की ओर से यह प्रयास किया जा रहा है कि 2022 तक देश के हर परिवार के सर पर अपना छत हो। इस दिशा में प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी और ग्रामीण) के जरिये युद्ध स्तर पर काम किया जा रहा है। इतना ही नहीं प्रधानमंत्री उज्जवला योजना के जरिये हर परिवार को गैस चुल्हा देने का काम किया जा रहा है, ताकि महिलाओं को चुल्हे के धुएं से मुक्ति मिले और पर्यावरण की रक्षा हो। इस अभियान का एक बड़ा फायदा महिलाओं के स्वास्थ्य में भी देखने को मिल रहा है। खुले में शौच भारत के लिए एक अभिशाप की तरह था, जिसे अब लगभग खत्म कर दिया गया है। देश के हर परिवार के पास अपना शौचालय है और स्वच्छता की दिशा में भी देश में जनआंदोलन के जरिए एक बड़ा बदलाव दिख रहा है। शिक्षा के क्षेत्र में भी भारत के कई संस्थानों ने दुनिया के बड़े विश्वविद्यालयों के सामने अपनी पहचान स्थापित की है और आज हमारे कई संस्थान टॉप 100 की सूची में जगह बना रहे हैं। कई क्षेत्र अभी ऐसे हैं जिनमें काफी कुछ किया जाना बाकी है। लेकिन एक बात तो साफ है कि भारत ने आजादी के सफर को संघर्ष के साथ चलते हुए सुहाना बनाया है और आने वाले दिनों में एक बार फिर कहा जा सकेगा कि भारत सोने की चिड़िया है। ***दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com |
Posted: 27 Aug 2021 03:38 AM PDT जलियांवाला बाग - अमिट स्मृतिअश्विनी अग्रवाल, पूर्णकालिक सदस्य, राष्ट्रीय स्मारक प्राधिकरण प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इस साल 28 अगस्त को अमृतसर में पुनर्निर्मित जलियांवाला बाग स्मारक का उद्घाटन करेंगे।अंग्रेजों द्वारा किये गए भीषण नरसंहार की घटना के एक सदी से भी अधिक समय बीत जाने के बाद, देश इसकी प्रासंगिकता पर सवाल उठा सकता है। भारत ने सदियों से बहुत सारे आक्रमणों का सामना किया है, जिनमें हजारों निर्दोष लोगों की मौत हुई थी।प्रत्येक आक्रमण के बाद जिन्दगी चलती रही। यह दृष्टिकोण लोकप्रिय पंजाबी कहावत - खादा पीता लहे दा, बाकी अहमद शाहे दा (जो कुछ भी उपलब्ध है, खाते-पीते रहो;शेष को अहमद शाह अब्दाली लूट ले जाएगा)में परिलक्षित होता है।लेकिन यह कहावत जलियांवाला बाग त्रासदी को लेकर सिद्ध नहीं हो पाई, क्योंकि इसे लोग कभी भुला नहीं पायेंगे।जलियांवाला बाग हत्याकांड में लगभग एक हजार निर्दोष लोगों को ब्रिटिश ब्रिगेडियर-जनरल रेजिनाल्ड डायर ने बेरहमी से गोलियों से भून डाला था।ये लोग 13 अप्रैल 1919 को खुशी के त्योहार,बैसाखी को मनाने के लिए इकट्ठा हुए थे। इस नरसंहार ने घायल राष्ट्र की स्मृति पर एक दुखद व अमिट छाप छोड़ी है। इतिहास की इस त्रासदी के बारे में विभिन्न विद्वानों द्वारा कई पुस्तकें लिखी गयी हैं। मार्च 1919 में रॉलेट एक्ट अधिनियम को लागू करना, पंजाब में मार्शल लॉ की घोषणा, पंजाब के तत्कालीन लेफ्टिनेंट-गवर्नर माइकल ओ'डायर की भूमिका, रेजिनाल्ड डायर द्वारा हत्याकांड को अंजाम देना और उसके बाद गठित हंटर समिति द्वारा सभी दोषियों को दोषमुक्त करना आदि ऐसी घटनाएं हैं, जिनके बारे में सभी जानते हैं और जिनकी पुनरावृत्ति की आवश्यकता नहीं है। यह अंग्रेजों की एक सुनियोजित गहरी साजिश थी, जिसके तहत भारतीयों को कुचलने के लिएअमानवीय कृत्यों के माध्यम से आतंक का राज स्थापित किया गया,जो किसी भी सभ्य देश के लिए अकल्पनीय रूप से शर्मनाक स्थिति थी। अंग्रेजों के कार्यों के पीछे के कारणों का पता लगाने के लिए तत्कालीन ब्रिटिश प्रशासन के मनोविज्ञान को समझना होगा। तभी यह स्पष्ट हो पायेगा कि आकस्मिक रूप से होने वाली यह अकेली घटना नहीं थी,जो एक रुग्ण दिमाग के अविचारित कार्यों के कारण घटित हुई थी। भारत के 1857 के पहले स्वतंत्रता आन्दोलन बाद से, अंग्रेज बुरी तरह भयभीत हो गए थे। उनके शासन के खिलाफ क्रांतिकारी गतिविधियों की किसी भी पुनरावृत्ति की संभावना ने उन्हें बहुत डरा दिया था। 20वीं सदी की शुरुआत में लाला हरदयाल, लाला लाजपत राय और अजीत सिंह जैसे नेताओं को निर्वासित कर दिया गया था, लेकिन इससे भी अंग्रेजों का भय कम नहीं हुआ। कुछ राजनीतिक नेताओं के अपेक्षाकृत नरम रवैये के आधार पर उन्होंने सोचा कि अत्यधिक प्रताड़ना के उपाय से वे राष्ट्रीय भावनाके उदय को आसानी से दबा सकते हैं, ताकि उनका शासन निरंतर जारी रहे। भारतीयों में राष्ट्रीय भावना के जागृत होने से अंग्रेजपूरी तरह बेखबर रहे।प्रथम विश्व युद्ध (1914-1918) के दौरान ब्रिटेन तथा इसके सहयोगी देशों के पक्ष में भारतीय जनता और भारतीयसैनिकों की बहादुरी के प्रति भी अंग्रेज पूरी तरह कृतघ्न बने रहे। एक छोटा-सा बहाना, यहां तक कि हड़ताल जैसा एक शांतिपूर्ण विरोध भी उनकी बर्बर कार्रवाई के लिए पर्याप्त था। अंग्रेजों की भयावह साजिश की झलक पंजाब के तत्कालीन लेफ्टिनेंट-गवर्नर माइकल ओ'डायर के कार्यों में दिखाई पड़ती है, जिसने लोगों के अधिकारों को दबाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। पढ़े-लिखे वर्ग का अपमान किया गया, सैकड़ों को सलाखों के पीछे डाला गया और प्रेस का गला घोंट दिया गया। अप्रैल,1919 के शुरू होने के साथ ही घटनाओं की शुरुआत हुई। लाहौर और अमृतसर में शांतिपूर्ण हड़तालों को बलपूर्वक तोड़ा गया और शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों पर गोलियां चलाई गईं। अधिकांश प्रमुख स्थानीय नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया और निर्वासित कर दिया गया। लाहौर और अमृतसर के साथ-साथ कसूर और गुजरांवाला जैसी जगहों पर भी अत्याचार हुए। अंग्रेजों ने शांतिपूर्ण लोगों को भड़काने का कोई मौका नहीं गंवाया। स्थिति तब तनावपूर्ण हो गई जब अमृतसर में हुई फायरिंग के परिणामस्वरूप पांच यूरोपीय लोगों की मौत हो गयी और कुछ भारतीय छात्रों को पढ़ाने जाते समय शेरवुड नाम की एक महिला को गली में पीटा गया। ऐसा लगता है कि इससे ब्रिटिश सम्मान बुरी तरह आहत हुआ, क्योंकि इसके बाद गांवों में भी पुलिस द्वारा निर्दोष लोगों को क्रूर तरीके से पीटा गया और खुह कोरियन वाली गली (कोड़े मारे जाने वाली सड़क) में रेंगने के आदेश दिए गए। घटना से ठीक एक दिन पहले ब्रिगेडियर जनरल रेजिनाल्ड डायर को जालंधर से अमृतसर स्थानांतरित किया गया था। आने के बाद उन्होंने सार्वजनिक समारोहों पर प्रतिबंध लगा दिया।प्रतिबंध की बारे में आम लोगों को जानकारी नहीं मिल पायी। 13 अप्रैल को बैसाखी मनाने के लिए बड़ी संख्या में आस-पास के ग्रामीण इलाकों के किसान पहले ही अमृतसर में जमा हो गए थे। डायर दोपहर में अपने सैनिकों, जिनमें से कोई भी ब्रिटिश नहीं था, के साथ जलियांवाला बाग के मुख्य द्वार पर पहुंचाऔर बिना किसी चेतावनी के उसने गोली चलाने का आदेश दे दिया।मिनटों में 1650 राउंड फायरिंग की गई, जिसमें बड़ी संख्या में लोग मारे गए और घायल हो गए, जो तितर-बितर होने की कोशिश कर रहे थे। सटीक संख्या का कभी पता नहीं चल पाया,क्योंकि आधिकारिक और अनौपचारिक आंकड़ों के बीच एक बड़ा अंतर था। घावों पर नमक छिड़कने के लिए डायर ने आने-जाने पर पूर्ण प्रतिबंध के साथ कर्फ्यू लगा दिया, ताकि घायलों की देखभाल न हो सके और मृतकों को वहाँ से हटाया न जा सके। डायर द्वारा हत्याकांड की जांच के लिए नियुक्त हंटर कमेटी के सामने दिए गए जवाब न केवल अपराधी की मनःस्थिति को, बल्कि पूरे प्रशासनिक ढांचे के दृष्टिकोण को भी दर्शाते हैं। समिति को यह बताते हुए डायर को खुशी हुई कि उनके कार्य पूरी तरह से सचेत रहते हुए और पूर्व नियोजित रणनीति के परिणाम थे। अगर जगह की बनावट ने उसे रोका नहीं होता, तो वह अधिक लोगों को गोली मारने के लिए बख्तरबंद वाहनों को मशीनगनों के साथ ले जाता। तत्कालीन सरकार द्वारा डायर के खिलाफ की गई एकमात्र कार्रवाई थी - उसे अपने सक्रिय कर्तव्यों से मुक्त करना, जबकि माइकल ओ'डायर और चेम्सफोर्ड पूरी तरह से सभी अपराधों से मुक्त किये गए।अंग्रेजों की नजर में डायर एक नायक था।अंग्रेजों ने द्वारा उसकी बहाली के बहुत प्रयास किये जा रहे थे,लेकिन भारतीय पीड़ा बहुत अधिक थी। अंग्रेज भारतीयों की मनोदशा और दुखद घटना के दूरगामी परिणामों का आकलन करने में विफल रहे। युवा भारतीय, क्रूरता के इन कृत्यों का बदला लेने के लिए तैयार थे। महान क्रांतिकारी उधम सिंह ने 13 मार्च,1940 को लंदन में माइकल ओ'डायर की गोली मारकर हत्या कर दी। भगत सिंह और चंद्रशेखर आजाद जैसे युवा देशभक्त क्रांतिकारियों को जलियांवाला बाग और उसके बाद की घटनाओं के प्रत्यक्ष परिणाम के तौर पर देखा जा सकता है। हम अपनी स्वतंत्रता के लिए उनके सर्वोच्च बलिदान के प्रति ऋणी हैं। अमृतसर स्थित स्मारक हमेशा एक ऋणी राष्ट्र को, मातृभूमि के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वालेकी याद दिलाएगा।यह राष्ट्रीय गौरव का एक स्मारक है और स्वतंत्रता के लिए एक प्रेरणा स्रोत है। दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com |
भारतीय जन महासभा ने 'दिव्य रश्मि' के संस्थापक सुरेश दत्त मिश्र की श्रधान्जली सभा आयोजित की | Posted: 27 Aug 2021 03:10 AM PDT भारतीय जन महासभा ने 'दिव्य रश्मि' के संस्थापक सुरेश दत्त मिश्र की श्रधान्जली सभा आयोजित की |भारतीय जन महासभा के द्वारा जारी की गयी एक विज्ञप्ति में बताया गया है कि प्रशिद्ध साहित्यकार और दिव्य रश्मि के संस्थापक सुरेश दत्त मिश्र के सम्मान में एक शोक सभा का आयोजन भारतीय जन महा सभा के समस्त कार्यालयों में किया गया श्री पोद्दार ने बताया कि पटना से प्रकाशित होने वाले प्रमुख समाचार पत्र 'दिव्य रश्मि' के संपादक एवं भारतीय जन क्रांति दल (डेमो०) के राष्ट्रीय महासचिव डॉ राकेश दत्त मिश्र जी के पिता सुरेश दत्त मिश्र जी का आकस्मिक निधन दिनांक 20 अगस्त 2021 को हो गया था ।इस बारे में जानकारी देते हुए भारतीय जन महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष धर्म चन्द्र पोद्दार ने कहा कि श्री सुरेश दत्त मिश्र जी 85 वर्ष के थे । कहा कि कई दिनों से उनका इलाज पटना के अस्पताल में चल रहा था । संयोग से वे हम सभी को छोड़कर इहलोक से चले गए । उन्हों ने कहा कि इस दु:खद समाचार को जानकर भारतीय जन महासभा के लोग मर्माहत है । भारतीय जन महासभा के देश-विदेश के अनेक लोगो ने शोक संवेदना प्रकट कर अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की और ईश्वर से प्रार्थना की कि दिवंगत आत्मा को अपने श्री चरणों में स्थान दे एवं शोक संतप्त परिवार को इस वज्राघात को सहन करने की शक्ति प्रदान करे । श्रद्धांजलि अर्पित करने वालों में जमशेदपुर से श्री पोद्दार के अलावे संरक्षक श्री राजेंद्र कुमार अग्रवाल , संतोष मिश्रा , कमल कुमार नरेड़ी , विमल जालान , प्रमोद खीरवाल , अरुण कुमार झा , अंजना पांडेय , प्रिया दत्ता , सुजीत कुमार ,आदित्यपुर जिला सरायकेला-खरसावां से बसंत कुमार सिंह ,नई दिल्ली से अदिति दुबे , कोलकाता से श्रीमती शालिनी सोंथालिया , सिंगापुर से श्रीमती बिदेह नंदनी चौधरी , बेंगलुरु से लाभेश जैन ,मेरठ से श्रीमती लक्ष्मी गुंसाई,मेघालय से डॉ अवधेश कुमार अवध , नागपुर से श्रीमती अनुसूया अग्रवाल ,रानीगंज (प० बंगाल) से गणेश भरतिया एवं अन्य के नाम सम्मिलित हैं । दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com |
सुप्रसिद्ध साहित्यकार, मग-समाज के पुरोधा डॉ भगवती शरण मिश्र अब हमारे बीच नहीं रहे Posted: 27 Aug 2021 03:02 AM PDT सुप्रसिद्ध साहित्यकार डॉ.भगवतीशरण मिश्र,आई.ए.एस.(अ.प्रा.) अब हमारे बीच नहीं रहे। कल रात ( 26/08/2021) नयी दिल्ली स्थित अपने आवास पर उनका निधन हो गया। भारतीय प्रशासनिक अधिकारी, आख्यायिनी साहित्यिक मासिकी के सुधी सम्पादक और शताधिक कृतियों के कृतिकार (डॉ०) भगवतीशरण मिश्र का महाप्रयाण मग-समाज, साहित्य, तन्त्रविद्या और राष्ट्र के लिए अपूरणीय क्षति है। ज्ञातव्य है कि पिछले वर्ष (अप्रैल, 2020) में ही उनकी धर्मपत्नी श्रीमती कौशल्या देवी का दिल्ली में ही निधन हो गया था। महासंघ-परिवार ने इनके निधन पर श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए शोक-संवेदना व्यक्त की है। इनमें सार्वभौम शाकद्वीपीय ब्राह्मण के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री दीपक उपाध्याय, मुख्य संरक्षक श्री ब्रजबिहारी पाण्डेय, आचार्य लक्ष्मीनारायण पांडेय, आचार्य देवनाथ शास्त्री, श्री प्रकाश कुमार मिश्र, प्रवक्ता श्री चंदन मिश्र, स्वामी दिव्यज्ञान मिश्र, आचार्य कृष्ण, श्री संजीव कुमार मिश्र, डॉ सुधांशु शेखर मिश्र, श्री रवींद्र कुमार मिश्र, डॉ बृज बिहारी पाठक, श्री मनोज कुमार मिश्र, श्री सीताराम पाठक, पंडित मृत्युंजय पाठक, श्री एम. के.मिश्र, संतोष मिश्र, अमरीष पाठक, जीतेश मिश्र के अलावे महासंघ के अन्य पदाधिकारी-गण शामिल थे। डॉ. भगवती शरण मिश्र जी के निधन से महासंघ-परिवार मर्माहत है। वे अपने पीछे पुत्रों एवं पुत्रियों का भरा-पूरा परिवार छोड़ गए हैं। हम प्रार्थना करते हैं कि भगवान भास्कर दिवंगत आत्माओं को शांति प्रदान करें एवं उन सभी के पुरजन-परिजनों को इस दारुण दुःख सहने की शक्ति प्रदान करने की कृपा करें। ॐ शांति। यह जानकारी मगबन्धु पत्रिका के सम्पादक एवं महासंघ के महासचिव डॉ सुधांशु शेखर मिश्र ने दी। दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com |
धर्मक्षेत्रे दुष्कृति क्षेत्रे Posted: 27 Aug 2021 02:30 AM PDT धर्मक्षेत्रे दुष्कृति क्षेत्रेगया को कई नामों से जाना जाता है। औरंगज़ेब काल में आलमगीर पुर , अंग्रेज़ो के काल मे साहेब गंज,प्राचीन कालिक गयाजी एवं गयाधाम भी।प्राचीन काल में मूल गया बहुत सिमटी थी जो चार फाटकों के भीतर किले में सुरक्षित की तरह ।किंतु अभी तो इसके विस्तार और विकास का क्रम गतिमान है। प्राय:किसी स्थान विशेष में रहने वाले लोगों को उस स्थान के नाम से संबोधित किया जाता है। उसी तरह गया धाम में रहने वालों को धामी कहा जाना चाहिए किंतु ऐसा है नहींं। गयाजी के पंडा समाज ने अपने को गयापाल(गयवाल) घोषित कर दिया पर इन्ही से जुड़े कुछ लोग है ं जिन्हे ं धामी कहा जाता है। कुछ पिंड वेदियाँ जो दूर हैं उनका स्वामित्व जैसा भाग इन्हे दिया गया है जिससे इनकी जीविका चलती है।गया के मध्य कोतवाली से पश्चिम , पुरानी गोदाम से पूरब,के पी रोड(कृष्ण प्रकाशपथ) सेउत्तर और टिकारीरोड के दक्षिण का भाग धामी टोला के नाम से जाना जाता है।यहीं धामी पंडों का निवास है।इसी महल्ले में के पी रोड के उत्तरी भाग में एक नीम का पेड़ प्रसिद्ध है। यहाँ आनंदी माई का विग्रह स्थापित है जो अत्यन्त प्रतिष्ठित है।इसी के ठीक दक्षिण सड़क के किनारे नगर के प्रसिद्ध वस्त्र व्यवसायी डालमिया निवास तथा व्यापारिक संस्थान है।यह स्थान धामी टोला नीम तर से जाना जाता है। इस मुहल्ले में ऐसा परिवार भी है जिसका योगदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम से जुडा है।भोलाजी और जमुना जी दोनों भाई थे।स्वभाव और शरीर से भिन्न थे।एक बार स्वतंत्रता आंदोलन मे किसी चलती जूलूस के आगे-आगे माला पहने चल रहे थे पुलिस के साथ चल रहे अफसर ने उनकी माला छूकर कहा ,यह क्या है? भोलाजी ने कहा, यह भोला का हार है,तुरंत उसने आदेश दिया लिखो, ऐसका नाम भोलाकाहार , तब से सरकार में भोलाकहार रहे।जमुना थे क्रांतिकारी,देश की स्वतंत्रता के बहुत बाद जब पेशन का इनाम बँटने लगा तो इन्होने लेने से मना कर दिया।कहा,देश की सेवा का मूल्य नहीं चाहिए।।भोलाजी की जीविका के नाम पर एक बिजली बत्ती,माइक आदि सामान को भाड़े पर लगाने और बेचने की दूकान थी।उनके साथ कई सहायक भी रहते थे जिनकी जीविका इनके सहारे चलती थी। नीम के पेड़ के नीचे दस/दस का एक खुला चबूतरा था जिस पर दशहरा दिवाली में मूर्तियाँ बैठाई जातीं और पूजन होता। यह स्थान कथावाचन के लिए उपयुक्त था।यहाँ प्राय,: कोई न कोई संत महात्मा अथवा प्रवचन करनेवाले आते उन्हे उचित सम्मान मिलता।आम जन से नहीं तो डालमिया जी से तो जरूर मिलता,उनके यहाँ से को ई खाली हाथ लौटा हो ऐसा सुना नहीं। विशेष अवसरों पर जैसे गीता जयन्ति, तुलसी जयन्ति आदि में सप्ताह भर प्रवचन चलता।हालाकि श्रोताओं की संख्या अपेक्षाकृत कम होती, कभी-कभी तो छ: सात गौएँ अवश्य बैठ पागुर करती रहती मानों भावी जीवन के लिए उपदेश हृदय में उतार रही हों। यह सब तब होता जब शाम आठ बजे से दूकानें बंद होने लगतींं। सुबह आठ बजे से दूकाने सजने लगतीं फूटपाथ पर भी ।वही ऊपर में त्रिपाल डाल कर जुए की दूकान भी सज जाती, एक का दो-एक का दो,एक लगाओ दो पाओ की पुकार के साथ कारवार शुरू हो जाता।इस कारोवार मे साथ देने केलिए कुछ कमीशन एजेंट भी रहते जो ग्राहकों की तरह घेर कर खडे हो जाते।ये एजेंट ग्राहकों के सलाहकार की भूमिका में रहकर उन्हें चूना लगाते।जो भलेमानुष लोभ के जाल में फँसे होते उन्हे शिक्षा तो मिल ही जाती।कोई-कोई उज्जठ हारने पर झगडने लगता तो वहाँ के एजेंट ही उसकी धुलाई कर देते। ऐसे कई खेल चलते। तिनतशिया में भी वही सब होता ।एक बार मैरे शिक्षक मित्र भी मेरे मना करने पर भी जुट गये।परीणाम वही हुआ।सौ सौ के नोट तीन बार हारने केबाद मुह लटकाए निकल गये।इस भीड़ मे जेबकतरों का भी अपना दाँव होता है। कुछ ऐसे कलाकार मुझे जानते थे सो मुझे हट जाने का इशारा कर देते।एक बार एक ने मुझे अलग बुला कर कहा,बाबा आप जेब में दसे पैसा रखते हैं?मैने पूछा ,तुमको कैसे मालूम ।उसने कहा तीन बार निकाल कर रख दिया।आप इतने लापरवाह हैं?उस समय लज्जित होने के सिवा क्या करता। लेकिन वह था सचमूच कलाकार।एक बार तमाशा दिखाने लगा फूंक से आग की लंपट निकाल कर चकित कर दिया। कोई चमत्कार नहीं बस सफाई ट्रिक।मेररी उत्सुकता शांत करने केलिए उसनें बताया--मुह में थोड़ा सा किरासन तेल रखिए,,एक तीली जला कर मुह से एक बित्ता दूर रखिए और हलके फूक मारिए हवा में फुहारे की तरह आगे की लपट उठ जाएगी।ऐसा प्रयोग करने की हहिम्मत नहीं हुई।वह छाता मरम्मत तथा चाभी बनानेे का भी काम करता था।वह स्प्रिट भी पीता था लेकिन पानी मिला कर।यहाँ से पूरब चौराहे के पास साँप लड़ाने कभी नचाने के बहाने भीड़ जुटाकर साँप बिच्छू के काटने की दवा बेच कर पेट पालने वाले का उद्यम करत।उनमे एक थे, केशव प्रसाद चंदेल, देव के रहने वाले थे।अपना पता ठिकाना बड़े गर्व से बतलाते।उनकी बेचने की शैली मुझे अच्छी लगतीं।पहल मुफ्त मे दो चार बाँटो जब और हाथ बढ़ने लगे सबसे वापस लेकर कहना कि इसका एक ररुपया दाम रखते हैं अब माँगो तो कौन मूछ व वाल माँगतता है।इतना कहना ,रुपया बाहर आने लगा । गया में वह किराए पर एक कमरा लेकर रहता था ।जाति से पक्का चदेल क्षत्री ।अपना कोई नहीं,पर महीने छमाहे गाँव जरूर जाता ।कुछमिठाई ,लेमनचूह बिसकुट ले जाता अपने साथ और बच्चों को ढूंढ कर बाँट देता। एक भले आदमी मजमा लगा कर दाँत दर्द की दवा बेचता।जब उसके ददाँता मे दर्द होता तब बुल्लूवैद्य के पास जाता। इन्द्रजाल वाले भी खखूब कमाई कर जजाते। इस जगह। दशहरा में कानपुर के गुलाब बाई की नौटंकी पार्टी हीआती रात के दसरराज्यपबजे से भोर तकनक्कारे की आवाज गडगड़ाती रहती। यह सिलसिला अनेक वर्ष तक चला।एक दिन ऐसा आया कि भोलाजी काभी मन पलट गया और फिर ड्डालमिया सहित क ई लोगोने सममिति बनाई तथा प्रति वर्ष रामचरितमानस का नवाह परायण,प्रवचन के विचार ऐसे दृढ़ हुए कि अब तक चल रहे हैं। पहली बार मे उद्घाटन के लिए बिहर के तत्कालीन महामहिम राज्यपाल डा अनंतशयनमांयगरर महोदय के कर कमलों ं से सम्पन्न हुआ था।यह वर्ष था 1970 आश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि गया के लिए ऐतिहासिक दिन और तिथि बन गई जिसमें गंगाधर डालमिया ,शिव कुमार डालमिया शिवराम डालमिया, चौबेजी(श्री कृष्ण भंडार) आदि का सहर्ष सहयोग रहा।पं शिव कुमार व्यास की वाचन शैली अद्भुद आकर्षक थी जिनके नेतर्त्व में 108 सथानीय रामचरित मानसपाठी ब्र्राह्मणों के द्बारा नवाह्न पारायण यज्ञ सम्पन्न हहुआ था।तब से आज तक यह सिलसिला जारी है।इन पचास वर्षों में भौतिक और गुणात्मक परिवर्तन भी बहुत हुए । लोग बदले,विचार और आचार में भी परिवर्तन हुआ है। फिर भी यतो धर्मस्ततो जय:। डा रामकृष्ण दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com |
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