दिव्य रश्मि न्यूज़ चैनल |
- झारखंड के रामगढ़ के पास प्राचीन शिव मंदिर है
- श्रावणी संकल्प का पर्व है।
- सबके हित सधते हैं
- कजरी तीज और दिव्य ज्ञान
- तिरंगा फहर फहर फहराए ।
- संस्कृत दिवस आयोजित
- आज 24 अगस्त 2021, मंगलवार का दैनिक पंचांग एवं राशिफल - सभी १२ राशियों के लिए कैसा रहेगा आज का दिन ? क्या है आप की राशी में विशेष ? जाने प्रशिद्ध ज्योतिषाचार्य पं. प्रेम सागर पाण्डेय से |
- पश्चिमी सभ्यता- पतन का रास्ता डॉ सच्चिदानन्द प्रेमी
- गांधी, खादी और आत्मनिर्भर भारत
झारखंड के रामगढ़ के पास प्राचीन शिव मंदिर है Posted: 23 Aug 2021 10:34 PM PDT झारखंड के रामगढ़ के पास प्राचीन शिव मंदिर हैप्राचीन रहस्यमयी शिव मंदिर की जानकारी मिलते ही श्रावण पूर्णिमा संवत २०७८ तदनुसार दिनांक 22 अगस्त 2021 (रविवार) को आनन-फानन में कार्यक्रम बना और भगवान शंकर के अद्भुत मंदिर के दर्शन के लिए वहां जाना हो सका । प्राचीन शिव मंदिर टूटी झरना के बारे में जानकारी देते हुए भारतीय जन महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष धर्म चंद्र पोद्दार ने बताया कि झारखंड के रामगढ़ के पास प्राचीन शिव मंदिर है । उस मंदिर में भगवान विष्णु की प्रतिमा है और उस प्रतिमा की नाभि से जो गंगा निकल रही है वह सीधे भगवान शंकर का जलाभिषेक करती है । कहा कि अंग्रेजों ने भी इस रहस्य को जानने का बहुत प्रयास किया था । अनेकों बार प्रयास किए जा चुके हैं लेकिन कोई नहीं जान सका । यह रहस्यमयी मंदिर है और यहां चौबीसों घंटे और साल में 365 दिन बराबर मां गंगा भगवान शिव का जलाभिषेक करते रहती है । कहा कि यहां जो लोग भी अपनी मन्नत मांगते हैं वह पूरी होती है । पोद्दार ने बताया कि यह हमारा सौभाग्य रहा कि हम श्रावण पूर्णिमा के दिन इस मंदिर में पहुंच सके और यहां इस अद्भुत दृश्य को देख सकें और भगवान शंकर का दर्शन कर सकें । कहते हैं यहां नाग-नागिन का जोड़ा भी आता है और लोगों को उनके भी दर्शन होते हैं । लेकिन ऐसा कभी-कभी ही हो पाता है । बताया कि वहां जो देखा वह अचंभित कर देने वाला है । पोद्दार ने कहा कि हम इस मामले को झारखंड सरकार के पास उठा रहे है जिससे इस मंदिर का अधिकाधिक प्रचार-प्रसार हो सके और फिर यहां टूरिस्ट के आने से यहां की गरीब आदिवासी जनता का भला हो सकेगा और उन्हें रोजगार के अवसर मिल सकेगे । कहा कि उन्हें मिली जानकारी के अनुसार वर्तमान में जो मंदिर की कमेटी है उसके अध्यक्ष भुवनेश्वर महतो जी है । कहा कि किसी भी सरकार ने इस ओर ध्यान नहीं दिया । यह राज्य व क्षेत्र के निवासियों का दुर्भाग्य है । कहा कि लोग देहरादून , मसूरी आदि स्थानों पर जाते हैं , उसी प्रकार लोग यहां भी आएंगे । इस प्रकार इस क्षेत्र के लोगों की रोजी-रोटी की समस्या समाप्त होगी । ठहरने के लिए होटल में खुल जाएंगे । खाने पीने की दुकानें खुल जाएगी । यहां के गरीब आदिवासी व पिछड़े वर्ग के लोगो को रोजगार मिल सकेगा । छोटी-छोटी दुकानें भी करेंगे तो उससे अपना जीवन यापन कर सकेंगे । पोद्दार ने कहा कि यह लुभावना व दर्शनीय स्थल है । यहां दृश्यावली भी बहुत सुंदर है । इस प्रकार से क्षेत्र के लोगों को रोजगार मिल सकेगा । उपरोक्त सारी जानकारी बिल्कुल सत्य है और इस बारे में मंदिर के पुजारी शैलेश कुमार पांडेय जी से भी बात हुई जिन्होंने इस सारी जानकारी की पुष्टि की है । पोद्दार ने यह भी बताया कि शीघ्र ही वे स्थानीय सांसद श्री विद्युत वरण महतो जी से मिलकर इस मामले को पार्लियामेंट में उठवाएंगे और फिर भारतीय पुरातत्व विभाग एवं पर्यटन विभाग इस पर काम कर सकेगा । यह जानकारी भारतीय जन महासभा के द्वारा जारी की गई एक विज्ञप्ति में दी गई है । दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com |
Posted: 23 Aug 2021 07:30 PM PDT श्रावणी संकल्प का पर्व है। संस्कृत दिवस भी है। श्रवण होने से सुनने की क्षमता बढ़ाने का प्रेरक पर्व भी। इस अवसर पर समयबद्ध संस्कृत के स्वाध्याय का संकल्प लेना चाहिए। हमारा यह एक संकल्प विवेक के उदय, चिंतन की प्रतिष्ठा और चेतना के संचलन में सहायक हो सकता है। संस्कृत में क्या नहीं है? संस्कृत से क्या नहीं है? दुनिया भर के ज्ञानियों ने संस्कृत से बहुत कुछ पाया है और हमने? यह बड़ा सच है कि बढ़ती आयु के साथ खेद होगा कि हम भारतीय होकर संस्कृत नहीं पढ़े! यह भी सच है कि संस्कृत स्वयं और सहज सीखी जा सकती हैं। बस, कोई भी संस्कृत ग्रन्थ पढ़ना आरम्भ कीजिए ( व्याकरण से शुरू किया तो भाग छूटेंगे, वह बाद में ) ! मैं भी एक उदाहरण हो सकता हूं! विलम्ब क्यों? हिचक क्यों? ज्ञानान्मुक्ति:। बन्धो विपर्ययात् । (सांख्य• 3.23, 24) ज्ञान द्वारा ही उलझनों से मुक्ति सम्भव है अज्ञान से बन्धन ही होता है। पाणिनि का एक संकल्प उन्हें वैयाकरण बना गया! 🦚 सावन पूर्णिमा श्रावणी पर्व पर संस्कृत दिवस भी है। सभी भाषा प्रेमियों, संस्कृत अनुरागियों और संस्कृति के प्रहरियों को बधाई।.... यह सभी भाषाओं की जननी है। नियमित भाषा, व्याकरण को देने वाली भाषा। संस्कृत इसलिए है कि यह संस्कारित है। एकदम संस्कारों से ओतप्रोत। टकसाली। कल्चर्ड। प्योर। गुणवाली। इसलिए इसको देवभाषा भी कहा गया है- गीर्वाणवाणी। भारत के साथ इसका संबंध कभी टूट नहीं सकता। 1835 में जब मैकाले ने आंग्लभाषा को देश में उतारा तब कलिकाता संस्कृत विद्यालय के श्री जयगोपाल तर्कालंकारजी ने उक्त विद्यालय के संस्थापक प्रो. एच. एच. विल्सन (कालिदास के नाटकों के अनुवादक, विष्णुपुराण, मत्स्यपुराण के संपादक, अनुवादक) को लिखा : मैकाले रूपी शिकारी आ गया है, वह हम भाषा के मानसरोवर में विचरण करने वाले हंस रूपी संस्कृतजीवियों पर धनुष ताने हुए हैं और हमें समाप्त कर देने का संकल्प किए हुए है। हे रक्षक! इन व्याधों से इन अध्यापक रूपी हंसों की यदि आप रक्षा करें तो आपकी कीर्ति चिरायु होगी : अस्मिनसंस्कृत पाठसद्मसरसित्वत्स्थापिता ये सुधी हंसा: कालवशेन पक्षरहिता दूरं गते ते त्वयि। तत्तीरे निवसन्ति संहितशरा व्याधास्तदुच्छित्तये तेभ्यस्त्वं यदि पासि पालक तदा कीर्तिश्चिरं स्थास्यति।। इस पर प्रो. विल्सन ने जो पत्र लिखा, वह आज भी भारतीयों के लिए एक आदर्श है - विधाता विश्वनिर्माता हंसास्तत्प्रिय वाहनम्। अतः प्रियतरत्वेन रक्षिष्यति स एव तान्।। अमृतं मधुरं सम्यक् संस्कृतं हि ततोSधिकम्। देवभोग्यमिदं यस्माद्देवभाषेति कथ्यते।। न जाने विद्यते किन्तन्माधुर्यमत्र संस्कृते। सर्वदैव समुन्नत्ता येन वैदेशिका वयम्।। पंडितों की चिंता दूर करते हुए विल्सन ने यह भी लिखा : "हमें घबराने की जरूरत नहीं है.. संस्कृत भारत के रक्त में बसी है... बकरियों के पांव तले रौंदाने से कभी घास के बीज खत्म नहीं हो जाते- "दूर्वा न म्रियते कृशापि सततं धातुर्दया दुर्बले।" जब तक गंगा का प्रवाह इस भूमितल पर रहेगा, जन-जन में देश प्रेम प्रवाहित होता रहेगा, संस्कृत का महत्व बना रहेगा। वह कभी समाप्त नहीं होगी बल्कि मौका पाकर फलेगी, फूलेगी।" मेरा मानना है कि संस्कृत सबसे बड़ी और सबसे पुरानी तकनीकी शब्दावली की व्यवहार्य भाषा है। इसके शब्द यथा रूप विश्व ने स्वीकारे हैं। जब तक संसार में पारिभाविक और पारिभाषिक शब्दों की जरूरत होती रहेगी, संस्कृत के कीर्ति कलश उनकी पूर्ति करते रहेंगे। संसार की कोई भी भाषा हो, उसके नियम संस्कृत से अनुप्राणित रहेंगे। ( राग, रंग, शृंगार : श्रीकृष्ण) प्रो. विल्सन ने तब जैसा कहा, वैसा आज तक कोई नहीं कह पाया। संस्कृत साहित्य का संपादन, अनुवाद का जो कार्य विल्सन ने किया, वह आज तक दुनिया की 234 यूनिवर्सिटीज के स्कोलर्स के लिए मानक और अनुकरण के योग्य बना हुआ है। और हाँ, उनके बाद दुनियाभर में 134 विदेशियों ने संस्कृत के लिये जो काम किया, उसकी बदौलत संस्कृत के अधिकांश ग्रन्थ और उसकी जानकारी विदेशी भाषाओं में पहले मिलती है। और, हम उन मान्यताओं को दोहराते रहे! संस्कृत दिवस हमारी संस्कृत की संस्कृति को धारण करने के संकल्प का अवसर है, यह संभाषण और अध्यापन ही नहीं हमारा कालजयी दायित्व तय करने का भी अनूठा अवसर है। ✍🏻श्रीकृष्ण "जुगनू" संस्कृत का विरोध करनेवाले कभी संस्कृत को आधुनिक-भाषाओं के विरोध में खडा कर देते हैं, तो कभी समतावादी-समाज के विरोध में , कभी सेकुलरवाद के विरोध में खडा कर देते हैं । जबकि स्थिति ठीक इसके उलट है । संस्कृत आधुनिक-भाषाओं के संपोषण की भूमिका निभाती है , जब-जब कोई रचनाकार शब्द की गहराई में जाना चाहता है , वह संस्कृत की ओर सतृष्ण दृष्टि से निहारता है, वहीं से उसे शब्द की नई-नई संभावना की उद्भावना मिलती है । जब वैज्ञानिक को किसी वस्तु-निरीक्षण के लिये पद-रचना करनी होती है , तब वह संस्कृत की ओर दृष्टि डालता है । संस्कृत स्वयं समीपवर्ती आधुनिक-भाषाओं से शब्द और लय लेती रही है ।जहां कहीं मूल्य की चर्चा करनी होती है , वहां संस्कृत के वाक्य लिये जाते हैं ,संस्कृत-विरोधी लोग भी अपने बच्चों के नामकरण के लिये संस्कृत का सहारा लेते हैं । संस्कृत-साहित्य ने जिस सत्य की प्रतिष्ठा की है , वह मानुष-भाव है ! ✍🏻पं.विद्यानिवासमिश्र एक समय था, जब भारत सम्पूर्ण विश्व में प्रत्येक क्षेत्र सबसे आगे था । प्राचीन काल में सभी भारतीय बहुश्रुत,वेद-वेदाङ्गज्ञ थे । राजा भोज को तो एक साधारण लकडहारे ने भी व्याकरण में छक्के छुडा दिए थे ।व्याकरण शास्त्र की इतनी प्रतिष्ठा थी की व्याकरण ज्ञान शून्य को कोई अपनी लड़की तक नही देता था ,यथा :- "अचीकमत यो न जानाति,यो न जानाति वर्वरी।अजर्घा यो न जानाति,तस्मै कन्यां न दीयते" यह तत्कालीन लोक में ख्यात व्याकरणशास्त्रीय उक्ति है 'अचीकमत, बर्बरी एवं अजर्घा इन पदों की सिद्धि में जो सुधी असमर्थ हो उसे कन्या न दी जाये" प्रायः प्रत्येक व्यक्ति व्याकरणज्ञ हो यही अपेक्षा होती थी ताकि वह स्वयं शब्द के साधुत्व-असाधुत्व का विवेकी हो,स्वयं वेदार्थ परिज्ञान में समर्थ हो, इतना सम्भव न भी हो तो कम से कम इतने संस्कृत ज्ञान की अपेक्षा रखी ही जाती थी जिससे वह शब्दों का यथाशक्य शुद्ध व पूर्ण उच्चारण करे :- यद्यपि बहु नाधीषे तथापि पठ पुत्र व्याकरणम्। स्वजनो श्वजनो माऽभूत्सकलं शकलं सकृत्शकृत्॥ अर्थ : " पुत्र! यदि तुम बहुत विद्वान नहीं बन पाते हो तो भी व्याकरण (अवश्य) पढ़ो ताकि 'स्वजन' 'श्वजन' (कुत्ता) न बने और 'सकल' (सम्पूर्ण) 'शकल' (टूटा हुआ) न बने तथा 'सकृत्' (किसी समय) 'शकृत्' (गोबर का घूरा) न बन जाय। " भारत का जन जन की व्याकरणज्ञता सम्बंधित प्रसंग "वैदिक संस्कृत" पेज के महानुभव ने भी आज ही उद्धृत की है जो महाभाष्य ८.३.९७ में स्वयं पतञ्जलि महाभाग ने भी उद्धृत की हैं । सारथि के लिए उस समय कई शब्द प्रयोग में आते थे । जैसे---सूत, सारथि, प्राजिता और प्रवेता । आज हम आपको प्राजिता और प्रवेता की सिद्धि के बारे में बतायेंगे और साथ ही इसके सम्बन्ध में रोचक प्रसंग भी बतायेंगे । रथ को हाँकने वाले को "सारथि" कहा जाता है । सारथि रथ में बाई ओर बैठता था, इसी कारण उसे "सव्येष्ठा" भी कहलाता थाः----देखिए,महाभाष्य---८.३.९७ सारथि को सूत भी कहा जाता था , जिसका अर्थ था----अच्छी प्रकार हाँकने वाला । इसी अर्थ में प्रवेता और प्राजिता शब्द भी बनते थे । इसमें प्रवेता व्यकारण की दृष्टि से शुद्ध था , किन्तु लोक में विशेषतः सारथियों में "प्राजिता" शब्द का प्रचलन था । भाष्यकार ने गत्यर्थक "अज्" को "वी" आदेश करने के प्रसंग में "प्राजिता" शब्द की निष्पत्ति पर एक मनोरंजक प्रसंग दिया है । उन्होंने "प्राजिता" शब्द का उल्लेख कर प्रश्न किया है कि क्या यह प्रयोग उचित है ? इसके उत्तर में हाँ कहा है । कोई वैयाकरण किसी रथ को देखकर बोला, "इस रथ का प्रवेता (सारथि) कौन है ?" सूत ने उत्तर दिया, "आयुष्मन्, इस रथ का प्राजिता मैं हूँ ।" वैयाकरण ने कहा, "प्राजिता तो अपशब्द है ।" सूत बोला, देवों के प्रिय आप व्याकरण को जानने वाले से निष्पन्न होने वाले केवल शब्दों की ही जानकारी रखते हैं, किन्तु व्यवहार में कौन-सा शब्द इष्ट है, वह नहीं जानते । "प्राजिता" प्रयोग शास्त्रकारों को मान्य है ।" इस पर वैयाकरण चिढकर बोला, "यह दुरुत (दुष्ट सारथि) तो मुझे पीडा पहुँचा रहा है ।" सूत ने शान्त भाव से उत्तर दिया, "महोदय ! मैं सूत हूँ । सूत शब्द "वेञ्" धातु के आगे क्त प्रत्यय और पहले प्रशंसार्थक "सु" उपसर्ग लगाकर नहीं बनता, जो आपने प्रशंसार्थक "सूत" निकालकर कुत्सार्थक "दुर्" उपसर्ग लगाकर "दुरुत" शब्द बना लिया । सूत तो "सूञ्" धातु (प्रेरणार्थक) से बनता है और यदि आप मेरे लिए कुत्सार्थक प्रयोग करना चाहते हैं, तो आपको मुझे "दुःसूत" कहना चाहिए, "दुरुत" नहीं । उपर्युक्त उद्धरण से यह स्पष्ट है कि सारथि, सूत और प्राजिता तीनों शब्दों का प्रचलन हाँकने वाले के लिए था । व्याकरण की दृष्टि से प्रवेता शब्द शुद्ध माना जाता था । इसी प्रकार "सूत" के विषय में भी वैयाकरणों में मतभेद था । इत्यलयम् 🌺 संलग्न कथानक के लिये "वैदिक संस्कृत" पृष्ठ के प्रति कृतज्ञ हूँ।💐 म्लेच्छभाषा किसे कहते हैं? समाधानम्... संस्कार रहित (असंस्कृत) कुत्सित तथा अपशब्दों से युक्त भाषा को म्लेच्छभाषा कहा जाता है। तथा प्रकृति-प्रत्यय विभागपुरस्सर नियतार्थबोधक शब्दयुक्त भाषा को संस्कृत भाषा कहते हैं। इसीलिए संस्कृत को सुरभाषा कहा जाता है,तद् भिन्ना भाषा....स्वयं कल्पना करें। *********** पाणिनि व्याकरणानुसार म्लेछँ (धातु चुरादि) अव्यक्तायां वाचि =म्लेच्छयति म्लेछँ (भ्वादि) अव्यक्तशब्दे =म्लेच्छति अव्यक्तशब्द का अर्थ है अपशब्दना म्लेच्छति म्लेच्छयति =असंस्कृतं वदतीति अपभाषणं करोतीति म्लेच्छः। इसीलिए कहा जाता है कि "धृतव्रतो विद्वान् न म्लेच्छयति/म्लेच्छति परन्तु मूढो मूर्खस्तु म्लेच्छयति/म्लेच्छति एव।" महाभाष्य पस्पशाह्निक में व्याकरणाध्ययन् के प्रयोजन प्रकरण में लिखा है.. "तस्मात् ब्राह्मणेन न म्लेच्छितवै नापभाषितवै म्लेच्छो ह वा एष यदपशब्दः।" कैयट कहते हैं म्लेच्छितवै का अर्थ है अपभाषितवै।। साभार: समर्थ श्री ✍🏻पवन शर्मा की वॉल से संस्कृत से सम्बद्ध महत्वपूर्ण 24 तथ्य- 1. संस्कृत भाषा के दो स्वरूप दिखाई देते हैं, प्रथम - सरल "समझने में सहज" बोली जाने वाली संस्कृत भाषा और द्वितीय - विद्वतापूर्ण, आलंकारिक "समझने में कठिन" साहित्यिक संस्कृत भाषा। उनके दोनों स्वरूपों के बीच कोई व्याकरणात्मक, संरचनात्मक या उच्चारण सम्बन्धी भेद नहीं है। दोनों ही व्याकरण की दृष्टि से पाणिनीय हैं। प्रथम सरल मानक संस्कृत है जिसमें न्यूनतम शब्दावली, न्यूनतम संरचनाएँ और अधिकतर वे संस्कृत शब्द विद्यमान हैं जो भारतीय भाषाओं में सामान्यतः उपलब्ध होते हैं। 2. संस्कृत भाषा बृहत्तर भारत में बोली जाने वाली एक लोकप्रिय भाषा थी। जिसके पर्याप्त प्रमाण पतंजलि के व्याकरण महाभाष्य में उपलब्ध हैं। 3. संस्कृत भाषा और साहित्य का अध्ययन जाति एवं लिंग भेद के बिना सभी लोगों द्वारा किया जाता था। इस तथ्य को प्रोफेसर धर्म पाल द्वारा विरचित "द ब्यूटीफुल ट्री" नामक पुस्तक में दिए गए आँकड़ों से जाना जा सकता है। 4. ब्रह्मा द्वारा बोली गई आद्य भाषा संस्कृत है। इसलिए इसे देववाणी के अतिरिक्त "चतुर्मुख-मुखोद्भव" भी कहा जाता है। 5. विश्व में संस्कृत ही एकमात्र ऐसी भाषा है जिसमें शास्त्रीयता, परिष्कृतता, प्राचीनता और निरंतरता की अप्रतिम और अविच्छिन्न परम्परा है। 6. वस्तुतः प्रत्येक भारतीय भाषा एक सांस्कृतिक भाषा है। संस्कृत को सम्पूर्ण भारत के प्रत्येक जन सामान्य व्यक्ति की सर्वमान्य सांस्कृतिक भाषा के रूप में स्वीकार किया जाता है । 7. संस्कृत भाषा और साहित्य ने सर्वदा समावेशी विचारों को बढ़ावा दिया है। संस्कृत भारतवर्ष की सर्व-समावेशी संस्कृति के लिए मुख्य रूप से कारणभूत है। 8. संस्कृत साहित्य अधिकांश भारतीय भाषाओं के साहित्य के लिए प्राचीन काल से ही प्रेरणा एवं विषय का मूल स्रोत रहा है। 9. सम्पूर्ण भारत में अधिकांश भारतीय भाषाओं में प्रयुक्त होने वाली सामान्य संस्कृत शब्दावली, पूजा और कर्मकांड के लिए संस्कृत स्तोत्र और मंत्र, शास्त्रोक्त जीवन पद्धति और समय के परिवर्तन के अनुरूप धार्मिक दृष्टि से संस्कृत में उनकी नवीन व्याख्याएँ, पुराण एवं इतिहास द्वारा स्थापित मानवमूल्य प्रणाली को आत्मसात् करना आदि विषयों के कारण राष्ट्र की एकता और समरसता आज भी अक्षुण्ण हैं । 10. संस्कृत भाषा की शब्द निर्माण शक्ति विश्व में अद्वितीय है। क्रिया, उपसर्ग, प्रत्यय, सामासिक-शब्द और उत्तम व्याकरण आदि के समृद्ध भण्डार के कारण संस्कृत अनन्त-कोटि शब्दों का निर्माण करने में समर्थ है। 11. संस्कृत भाषा उतनी ही प्राचीन है जितनी कि सृष्टि, क्योंकि सृष्टि के समय सृष्टिकर्ता ब्रह्मा के मुख से ही संस्कृत का आविर्भाव हुआ था। 12. तथ्य यह है कि संस्कृत योग की भाषा, आयुर्वेद की भाषा, वेदांत की भाषा, भगवद्गीता की भाषा, नाट्यशास्त्र की भाषा, भारतीय गणित की भाषा, भारतीय खगोल विज्ञान की भाषा, भारतीय अर्थशास्त्र की भाषा, भारतीय राजनीति विज्ञान की भाषा, न्याय (तर्क) आदि की भाषा है। इस तथ्य को ठीक से समझते हुए प्रकाशित करना चाहिए। 13. संस्कृत उन तीन भाषाओं में से एक है (अंग्रेजी और हिंदी अन्य दो भाषाएँ) जिसका सम्पूर्ण भारत में विद्यालयीय शिक्षा और उच्च शिक्षा दोनों में अध्ययन एवं अध्यापन किया जाता है। अन्य भाषाओं का क्षेत्रीय स्तर पर अध्ययन अध्यापन किया जाता है। 14. वर्तमान समय में विद्यालयस्तर पर संस्कृत-भाषा-शिक्षण में प्रयुक्त शिक्षण पद्धति, जिसे व्याकरण-अनुवाद-पद्धति कहा जाता है, वह एक विदेशी पद्धति है और यह पद्धति संस्कृत भाषा के ह्रास का मुख्य कारण है। भारत में अंग्रेजी माध्यम आरम्भ होने से पूर्व संस्कृत को संस्कृत के माध्यम से ही पढ़ाया जाता था। संस्कृत को छोड़कर विश्व की प्रत्येक भाषा लक्ष्य भाषा के माध्यम से पढ़ाई जाती है। जब तक इस विदेशी पद्धति को परिवर्तित नहीं किया जाएगा और संस्कृत को संस्कृत के माध्यम से नहीं पढ़ाया जाएगा, तब तक संस्कृत भाषा का विकास सम्भव नहीं है। 15. भारत की सात भाषाओं में से प्रत्येक भाषा के लिए एक-एक भाषा-विश्वविद्यालय हैं, जबकि संस्कृत के लिए सत्रह विश्वविद्यालय स्थापित हैं। 16. भारत और विदेशों में लगभग 3800 पुस्तकालयों और वैयक्तिक संग्रहालयों में उपलब्ध लगभग 40 लाख पांडुलिपियों में से 80% से अधिक पाण्डुलिपियाँ संस्कृत भाषा में हैं और उनमें से अधिकांश असम्पादित एवं अप्रकाशित हैं। 17. वस्तुतः अधिकांश भारतीय भाषाओं की शब्दावली का 50% से अधिक भाग संस्कृत है और ध्वनि प्रणाली, वाक्य संरचना और उनमें अंतर्निहित व्याकरण भी संस्कृत पर आधारित है, अतः किसी भी भारतीय भाषा को जानने वाले व्यक्ति के लिए संस्कृत सीखना कोई नवीन भाषा सीखने जैसा नहीं है। यह केवल उसके परोक्ष ज्ञान को प्रत्यक्ष करने जैसा है। 18. भारत और विदेशों में हजारों बच्चे हैं जिनकी मातृभाषा संस्कृत है। जिनका घर में पालन पोषण संस्कृत माध्यम से ही किया जाता है। वैश्विक जगत् से उनका परिचय भी संस्कृत माध्यम से ही हुआ। उनका चिन्तन एवं मनन संस्कृत में होता है एवं वे संस्कृत बोलते हैं। 19. जहां तक भारत में विद्यालयीय स्तर पर विभिन्न भाषाओं का चयन करने वाले छात्रों की संख्या का संबंध है, अंग्रेजी और हिंदी के बाद संस्कृत के छात्रों की तीसरी सबसे बड़ी संख्या है। 20. डॉ भीम राव अम्बेडकर संस्कृत को भारत संघ की राजभाषा बनाना चाहते थे। वास्तव में, उन्होंने इस संबंध में संविधान सभा में एक प्रस्ताव प्रस्तुत किया था लेकिन दुर्भाग्य से वह प्रस्ताव पारित नहीं हो सका। 21. अंग्रेजी भाषा के भारत में आने से पूर्व, संस्कृत अखिल भारतीय संपर्क भाषा रूप में प्रचलित थी तथा शिक्षा, संचार, वाणिज्य, बौद्धिक परिचर्चा आदि की माध्यम भाषा भी थी, जैसे कि वर्तमान परिप्रेक्ष्य में अंग्रेजी भारत में विद्यमान है। अखिल भारतीय जन सामान्य संपर्क भाषा के रूप में इसे पुनः स्थापित करना हमारे संकल्प - हमारी राष्ट्रीय इच्छा शक्ति पर निर्भर करता है। 22. संस्कृत - १) भारत की एकता का आधारभूत स्तम्भ है, २) भारतभूमि की समग्रता एवं सर्व-समावेशी संस्कृति की गुणवत्ता एवं स्वरूप की प्रदात्री है, ३) विश्व धर्म, समृद्धि, स्थिरता और शांति का सर्वश्रेष्ठ मार्ग दर्शाने वाला है। इस तथ्य से बहुत कम लोग परिचित हैं। 23. संस्कृत भाषा और संस्कृत ज्ञान प्रणाली भारत की महत्तम मृदु-शक्ति (soft power) है। 24. वस्तुतः योग, आयुर्वेद, वेदांत, भगवद्गीता, ध्यान, भक्ति आदि सम्पूर्ण विश्व में लोकप्रिय हो रहे हैं और संस्कृत इन सभी विषयों का मूल स्रोत है, इसलिए संस्कृत भाषा धीरे-धीरे विश्व भाषा के रूप में उभर रही है।✍🏻साभार- श्री चमूकृष्णशास्त्री दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com |
Posted: 23 Aug 2021 07:03 PM PDT सबके हित सधते हैंसबकी अपनी समीकरण, सबके हित सधते हैं, रूस चीन पाक अमेरिका, सबके हित सधते हैं। कोई चाहता खनिज सम्पदा, कोई सैनिक अड्डा, वर्चस्व के इस महायुद्ध में, सबके हित सधते हैं। कहां गया संयुक्त राष्ट्र, कहां छुपे मानवाधिकारी, निर्दोषों पर गोली चलती, गली गली बलात्कारी। बहन बेटियों और बच्चों की, सरेराह बोली लगती, लूट रहे घर जिस्म- सम्पदा, सड़कों पर व्यभिचारी। खामोश सभी बुद्धिजीवी, मौन राष्ट्र इस्लामिक हैं, बात बात में फतवे वाले, मौन मौलवी इस्लामिक हैं। माल लूट का समझ रहे, सब औरत की अस्मत को, नहीं शरण मिलेगी जिनमें, मुल्क सभी इस्लामिक हैं। अ कीर्ति वर्द्धन दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com |
Posted: 23 Aug 2021 06:58 PM PDT कजरी तीज और दिव्य ज्ञानसत्येन्द्र कुमार पाठक भारतीय संस्कृति में दिव्य ज्ञान एवं सामाजिक जीवन को सफलता का विशेष उल्लेख किया गया है । कजरी तीज स्त्रियों की संकल्पित और मनोकामनाएं पूर्ण भावनाएं समर्पित है । कजरी तीज के दिन विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी आयू के लिए व्रत रखती है और अविवाहित लड़कियां इस पर्व पर अच्छा वर पाने के लिए व्रत रख कर जौ, चने, चावल और गेंहूं के सत्तू में घी और मेवा मिलाकर भोजन बनाते हैं। चंद्रमा की पूजा करने के बाद उपवास तोड़ते हैं। कजरी तीज के दिन गायों की पूजा की जाती है। साथ ही इस दिन घर में झूले लगाते है और महिलाएं इकठ्ठा होकर नाचती है और गाने गाती हैं। कजरी उत्सव पर नीम की पूजा कर चाँद को अर्घ्य देने की परंपरा हैं । भाद्रपद कृष्ण पक्ष तृतीय को कजरी तीज , बड़ी तीज, सातुड़ी तीज , कृष्ण तीज महिलाएं एवं लड़कियों द्वारा मनाई जाती है । माता पार्वती की पूजा कर महिलाएं कजरी तीज पर अखंड सौभाग्यवती एवं कुँवारी लड़कियां अच्छे वर के लिये , चतुर्दिक विकास प्राप्ति के लिए ब्रत रखती है । 108 जन्म लेने के बाद देवी पार्वती भगवान शिव से शादी करने में सफल हुई। कजरी तीज निस्वार्थ प्रेम के सम्मान के रूप में मनाया जाता है ।पौराणिकता के अनुसार, कजली घने जंगल क्षेत्र का राजा दादूरई द्वारा शासित था। कजली के लोग कजली गाने गाते थे ।कजली का राजा दादूरई का निधन होने के बाद उनकी पत्नी रानी नागमती ने खुद को सती में अर्पित कर दिया। नागमती द्वारा अपने पति कजली का राजा दादुरई के सती होने के स्थान कजली स्थान पर लोगों ने रानी नागमती को सम्मानित करने के लिए राग कजरी मनाना प्रारम्भ कर दिया था ।माता पार्वती भगवान् शिव की उपासना की थी। भगवान शिव ने पार्वती की भक्ति साबित करने के लिए कहा। पार्वती ने शिव द्वारा स्वीकार करने से पहले, 108 साल एक तपस्या करके माता पार्वती द्वारा भक्ति साबित की गयी थी ।भगवन शिव और पार्वती का दिव्य ज्ञान भाद्रपद महीने के कृष्णा पक्ष के दौरान हुआ था। बूंदी रियासत में गोठडा के राजा ठाकुर बलवंत सिंह के भरोसे वाले जांबाज सैनिक भावना से ओतप्रोत थे। राजा ठाकुर बलवंत सिंह द्वारा जयपुर के चहल-पहल वाले मैदान से तीज की सवारी, शाही तौर-तरीकों से निकल रही थी। ठाकुर बलवंत सिंह हाडा अपने जांबाज साथियों के पराक्रम से जयपुर की तीज को गोठडा ले आए थे ।कजली तीज माता की सवारी गोठडा में निकलने लगी। ठाकुर बलवंत सिंह की मृत्यु के बाद बूंदी के राव राजा रामसिंह उसे बूंदी ले आए और केवल से उनके शासन काल में तीज की सवारी भव्य रूप से निकलने लगी। इस सवारी को भव्यता प्रदान करने के लिए शाही सवारी भी निकलती थी। सैनिकों द्वारा शौर्य का प्रदर्शन किया गया था। सुहागिनें सजी-धजी व लहरिया पहन कर तीज महोत्सव में चार चाँद लगाती थीं। इक्कीस तोपों की सलामी के बाद नवल सागर झील के सुंदरघाट से तीजाइड प्रमुख रेस्तरां से होती हुई रानी जी की बावड़ी तक जाती थी। वहाँ पर सांस्कृतिक कार्यक्रम होते थे। नृत्यांगनाएँ अपने नृत्य से दर्शकों का मनोरंजन करती थीं। करतब दिखाने वाले कलाकारों को सम्मानित किया जाता था और प्रशिक्षण का आत्मीय स्वागत किया जाता था। मान-सम्मान और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के बाद तीज सवारी वापिस राजमहल में लौटती थी। दो दिवसीय तीज सवारी के अवसर पर विभिन्न प्रकार के जन मनोरंजन कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते थे, जिनमें दो मदमस्त हाथियों का युद्ध होता था, जिसे देखने वालों की भीड़ उमड़ती थी। पार्वतीजी स्वरूप कजली तीज माता का आशीर्वाद मिलता रहा।श्रही सवारी भी निकलती थी। इसमें बूंदी रियासत के जागीरदार, ठाकुर व धनाढय लोग अपनी परम्परागत पोशाक पहनकर पूरी शानो-शौकत के साथ भाग लिया करते थे। सैनिकों द्वारा शौर्य का प्रदर्शन किया गया था।सुहागिनें सजी-धजी व लहरिया पहन कर तीज महोत्सव में चार चाँद लगाती थीं। इक्कीस तोपों की सलामी के बाद नवल सागर झील के सुंदरघाट से तीजाइड प्रमुख रेस्तरां से होती हुई रानी जी की बावड़ी तक जाती थी। वहाँ पर सांस्कृतिक कार्यक्रम होते थे। नृत्यांगनाएँ अपने नृत्य से दर्शकों का मनोरंजन करती थीं। करतब दिखाने वाले कलाकारों को सम्मानित किया जाता था और प्रशिक्षण का आत्मीय स्वागत किया जाता था। मान-सम्मान और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के बाद तीज सवारी वापिस राजमहल में लौटती थी। दो दिवसीय तीज सवारी के अवसर पर विभिन्न प्रकार के जन मनोरंजन कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते थे । कजरी तीज व्रत में शाम के समय में चद्रंमा को अर्ध्य देने के बाद ही कुछ खाया पीया जाता हैं। व्रत को सुहागन स्त्रियां अपने पति की लंबी उम्र के लिए एवं कुंवारी कन्याएं सुयोग्य वर पाने के लिए करती हैं। पौराणिक कथा के अनुसार भारत के मध्य भाग में कजली नाम का एक वन का राजा दादुरै था। राज्य में लोग अपने राज्य के नाम कजली पर गीत गाया करते थे। राज दादुरै की मृत्यु हो गई।जिसके बाद रानी नागमती सती हो गई। राजा और रानी के बाद उनकी प्रजा पूरी तरह से दुख में डूब गई। इसी कारण कजली के गीत पति और पत्नि के जन्म- जन्म के साथ के लिए गाए जाते हैं। लोकप्रिय कथा के अनुसार माता पार्वती भगवान शिव को पति रूप में पाना चाहती थी।लेकिन भगवान शिव ने उनके सामने एक शर्त रखी। जिसके अनुसार माता पार्वती को अपनी भक्ति और प्रेम सिद्ध करना था।जिसके बाद माता पार्वती ने 108 सालों तक भगवान शिव की तपस्या की और भगवान शिव को परीक्षा दी।जिसके बाद भगवान शिव ने माता पार्वती को इसी तीज पर अपनी पत्नी स्वीकार किया था। इसी कारण से इसे कजरी तीज भी कहा जाता है। शास्त्रों के अनुसार बुढ़ी तीज पर सभी देवी- देवता माता पार्वती और भगवान शिव की आराधना करते हैं। कजरी तीज में महिलाएं झूला झूलकर अपनी खुशी व्यक्त करती हैं। कजरी तीज के दिन सभी औरतें एक साथ होकर नाचती है और कजरी तीज के गीत गाती हैं। वाराणासी और मिर्जापुर में कजरी तीज के गीतों को वर्षागीतों के साथ गाया जाता है। राजस्थान के बूंदी शहर में तो इसे बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस दिन ऊंट और हाथी की सवारी की जाती है। इसके साथ ही यहां पर लोक गीत कजरी तीज के दिन विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी आयू के लिए व्रत रखती है और अविवाहित लड़कियां इस पर्व पर अच्छा वर पाने के लिए व्रत रखती हैं। इस दिन जौ, चने, चावल और गेंहूं के सत्तू बनाये जाते है और उसमें घी और मेवा मिलाकर कई प्रकार के भोजन बनाते हैं। चंद्रमा की पूजा करने के बाद उपवास तोड़ते हैं। कजरी तीज के दिन गायों की पूजा की जाती है। साथ ही इस दिन घर में झूले लगाते है और महिलाएं इकठ्ठा होकर नाचती है और गाने गाती हैं। कजरी उत्सव पर नीम की पूजा कर चाँद को अर्घ्य देने की परंपरा हैं । भाद्रपद कृष्ण पक्ष तृतीय को कजरी तीज , बड़ी तीज, सातुड़ी तीज , कृष्ण तीज महिलाएं एवं लड़कियों द्वारा मनाई जाती है । माता पार्वती की पूजा कर महिलाएं कजरी तीज पर अखंड सौभाग्यवती एवं कुँवारी लड़कियां अच्छे वर के लिये , चतुर्दिक विकास प्राप्ति के लिए ब्रत रखती है । 108 जन्म लेने के बाद देवी पार्वती भगवान शिव से शादी करने में सफल हुई। कजरी तीज निस्वार्थ प्रेम के सम्मान के रूप में मनाया जाता है ।पौराणिकता के अनुसार, कजली घने जंगल क्षेत्र का राजा दादूरई द्वारा शासित था। कजली के लोग कजली गाने गाते थे ।कजली का राजा दादूरई का निधन होने के बाद उनकी पत्नी रानी नागमती ने खुद को सती में अर्पित कर दिया। नागमती द्वारा अपने पति कजली का राजा दादुरई के सती होने के स्थान कजली स्थान पर लोगों ने रानी नागमती को सम्मानित करने के लिए राग कजरी मनाना प्रारम्भ कर दिया था ।माता पार्वती भगवान् शिव की उपासना की थी। भगवान शिव ने पार्वती की भक्ति साबित करने के लिए कहा। पार्वती ने शिव द्वारा स्वीकार करने से पहले, 108 साल एक तपस्या करके माता पार्वती द्वारा भक्ति साबित की गयी थी ।भगवन शिव और पार्वती का दिव्य ज्ञान भाद्रपद कृष्ण तृतीया पक्ष को हुआ था। बूंदी रियासत में गोठडा के राजा ठाकुर बलवंत सिंह के भरोसे वाले जांबाज सैनिक भावना से ओतप्रोत थे। राजा ठाकुर बलवंत सिंह द्वारा जयपुर के चहल-पहल वाले मैदान से तीज की सवारी, शाही तौर-तरीकों से निकल रही थी। ठाकुर बलवंत सिंह हाडा अपने जांबाज साथियों के पराक्रम से जयपुर की तीज को गोठडा ले आए थे ।कजली तीज माता की सवारी गोठडा में निकलने लगी। ठाकुर बलवंत सिंह की मृत्यु के बाद बूंदी के राव राजा रामसिंह उसे बूंदी ले आए और केवल से उनके शासन काल में तीज की सवारी भव्य रूप से निकलने लगी। इस सवारी को भव्यता प्रदान करने के लिए शाही सवारी भी निकलती थी। सैनिकों द्वारा शौर्य का प्रदर्शन किया गया था। सुहागिनें सजी-धजी व लहरिया पहन कर तीज महोत्सव में चार चाँद लगाती थीं। इक्कीस तोपों की सलामी के बाद नवल सागर झील के सुंदरघाट से तीजाइड प्रमुख रेस्तरां से होती हुई रानी जी की बावड़ी तक जाती थी। वहाँ पर सांस्कृतिक कार्यक्रम होते थे। नृत्यांगनाएँ अपने नृत्य से दर्शकों का मनोरंजन करती थीं। करतब दिखाने वाले कलाकारों को सम्मानित किया जाता था और प्रशिक्षण का आत्मीय स्वागत किया जाता था। मान-सम्मान और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के बाद तीज सवारी वापिस राजमहल में लौटती थी। बूंदी रियासत के जागीरदार, ठाकुर व धनाढय लोग अपनी परम्परागत पोशाक पहनकर पूरी शानो-शौकत के साथ भाग लिया करते थे। सैनिकों द्वारा शौर्य का प्रदर्शन किया गया था।सुहागिनें सजी-धजी व लहरिया पहन कर तीज महोत्सव में चार चाँद लगाती थीं। इक्कीस तोपों की सलामी के बाद नवल सागर झील के सुंदरघाट से तीजाइड प्रमुख रेस्तरां से होती हुई रानी जी की बावड़ी तक जाती थी। नृत्यांगनाएँ अपने नृत्य से दर्शकों का मनोरंजन करती थीं। मान-सम्मान और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के बाद तीज सवारी वापिस राजमहल में लौटती थी। कजरी तीज व्रत में शाम के समय में चद्रंमा को अर्ध्य देने के बाद अन्न ग्रहण किया जाता हैं। व्रत को सुहागन स्त्रियां अपने पति की लंबी उम्र के हेतु एवं कुंवारी कन्याएं सुयोग्य वर पाने के लिए करती है ।शास्त्रों के अनुसार बुढ़ी तीज पर देवी- देवता माता पार्वती और भगवान शिव की आराधना करते हैं। कजरी तीज में महिलाएं झूला झूलकर खुशी व्यक्त करती हैं। कजरी तीज के दिन औरतें एक साथ होकर नाचती है और कजरी तीज के गीत गाती हैं। कजली गानों को विशेष महत्व दिया जाता है। कजली गीत के गाने ढोलक और मंजीरे के साथ गाए जाते हैं। कजरी तीज के दिन गाय की विशेष पूजा और आंटे की 7 रोटियां बनाकर गाय को गुड़ और चने के साथ खिलाई जाती है । राजस्थान , झारखंड ,छत्तीसगढ़ , उतरप्रदेश,बिहार, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड ,आदि राज्यों में मनाया जाता है। बिहार और उत्तर प्रदेश में कजरी गीत को नाव पर एवं वाराणासी और मिर्जापुर में कजरी तीज के गीतों को वर्षागीतों के साथ गाया जाता है। राजस्थान में कजरी त्यौहार को बूंदी शहर में ऊंट और हाथी की सवारी एवं लोक गीत और नृत्य किया जाता है । दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com |
Posted: 23 Aug 2021 07:24 AM PDT शांति समन्वय लिए तिरंगा फहर फहर फहराए । निर्भय होकर आसमान में विश्व विजयी लहराए । तीन रंग गुण तीन लिए यह भारत का अभिमानी, यह स्वदेश का प्यारा झंडा विश्व विजयी अभियानी; आंचल में अमरत्व लिए है कहता ऊपर चढ़ना , पहुंच हिमालय के शृंगों पर नया हिमालय गढ़ना ; पीछे मुड़कर कभी न देखो यह संदेश सुनाए । निर्भय होकर आसमान में विश्व विजयी लहराए । केसरिया बल पौरुष भरता लौह भुजा में शक्ति. करे समन्वय रंग हरा यह हरी भरी है धरती ; सत्य अहिंसा संयम करुणा रंग प्रतीक धवल है , चक्र सदा है चलता रहता गाता गीत नवल है; हमें प्यार है इस झंडे से मर कर गले लगाएँ । निर्भय होकर आसमान में विश्व विजयी फहराए। राष्ट्रभक्ति में राष्ट्र शक्ति का यह संदेश सुनाता , जन गण मन सब मुक्त कंठ से वंदे मातरम् गाता ; नहीं चाहते हम विवाद विस्तार अमन्वय कारी , पर जो मेरा रहे सदा वह हम जिसके अधिकारी ; सन्मुख सुफलम् शास्त्र पीठपर तरकस बाण गिनाए, निर्भय होकर आसमान में विश्व विजयी फहराए। नहीं चाहते हम दुनिया में अपना राज बढ़ाना , नहीं चाहते औरों के धन बरबस घर में लाना ; शांति समन्वय प्रणय लोकहित सब कुछ स्वयं सहेंगे, पर छेड़ा तो पटक वक्ष मस्तक पर लात धरेंगे ; करुण पलायन नहीं सहेंगे दारूण गान सुनाए । निर्भय होकर आसमान में विश्व विजयी फहराए॥ डॉ सच्चिदानन्द प्रेमी दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com |
Posted: 23 Aug 2021 06:42 AM PDT संस्कृत दिवस आयोजितभोजपुर जिले के अंधारी गांव में संस्कृतप्रेमियों ने संस्कृत दिवस का आयोजन किया। इस आयोजन को बिहार संस्कृत शिक्षा बोर्ड की अध्यक्ष डॉ भारती मेहता ने ऑनलाइन सम्बोधित करते हुए नीति निर्धारण में संस्कृत भाषा की उपेक्षा और मौजूदा हाल पर कई बातें रखीं। ऑनलाइन सम्बोधन में ग्रामीण विकास संस्थान हैदराबाद के पूर्व अध्यापक डॉ विजय प्रकाश शर्मा ने अपने सम्बोधन में कहा कि संस्कृत से भारतीयों की संस्कृति जुड़ी हुई है। जी वी पंत सामाजिक शोध संस्थान नैनीताल के निदेशक और लेखक बद्रीनारायण ने इस मौके पर संस्कृत प्रेमियों को उत्साहित किया और गांवों की गोष्ठियों की परंपरा को जीवित और लगातार आयोजित करने पर बल दिया। बनारस के डॉ सत्यगोपाल पांडेय और आरा से चितरंजन पांडेय ने भी गोष्ठी को सम्बोधित किया और संस्कृत भाषा और साहित्य के कई विषयों पर जानकारियां दीं। अंत में संस्कृत भाषा के प्रति सम्मान और उसके ज्ञान को समाज के बीच बनाये रखने का सामूहिक संकल्प लिया गया। दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com |
Posted: 23 Aug 2021 06:37 AM PDT आज 24 अगस्त 2021, मंगलवार का दैनिक पंचांग एवं राशिफल - सभी १२ राशियों के लिए कैसा रहेगा आज का दिन ? क्या है आप की राशी में विशेष ? जाने प्रशिद्ध ज्योतिषाचार्य पं. प्रेम सागर पाण्डेय से |श्री गणेशाय नम: !! दैनिक पंचांग ☀ 24 अगस्त 2021, मंगलवार ☀ पंचांग 🔅 तिथि द्वितीया दिन 04:06:24 🔅 नक्षत्र पूर्वाभाद्रपद रात्रि 09:05:42 🔅 करण : गर 16:07:13 वणिज 28:08:57 🔅 पक्ष कृष्ण 🔅 योग सुकर्मा 06:58:40 🔅 वार मंगलवार ☀ सूर्य व चन्द्र से संबंधित गणनाएँ 🔅 सूर्योदय 05:38:28 🔅 चन्द्रोदय 20:19:59 🔅 चन्द्र राशि कुम्भ - 13:38:57 तक 🔅 सूर्यास्त 18:22:23 🔅 चन्द्रास्त 07:26:00 🔅 ऋतु शरद ☀ हिन्दू मास एवं वर्ष 🔅 शक सम्वत 1943 प्लव 🔅 कलि सम्वत 5123 🔅 दिन काल 12:57:18 🔅 विक्रम सम्वत 2078 🔅 मास अमांत श्रावण 🔅 मास पूर्णिमांत भाद्रपद ☀ शुभ और अशुभ समय ☀ शुभ समय 🔅 अभिजित 11:57:26 - 12:49:15 ☀ अशुभ समय 🔅 दुष्टमुहूर्त 08:30:09 - 09:21:58 🔅 कंटक 06:46:31 - 07:38:20 🔅 यमघण्ट 10:13:48 - 11:05:37 🔅 राहु काल 15:37:40 - 17:14:50 🔅 कुलिक 13:41:04 - 14:32:54 🔅 कालवेला या अर्द्धयाम 08:30:09 - 09:21:58 🔅 यमगण्ड 09:09:01 - 10:46:11 🔅 गुलिक काल 12:23:20 - 14:00:30 ☀ दिशा शूल 🔅 दिशा शूल उत्तर ☀ चन्द्रबल और ताराबल ☀ ताराबल 🔅 भरणी, रोहिणी, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, आश्लेषा, पूर्वा फाल्गुनी, हस्त, स्वाति, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, पूर्वाषाढ़ा, श्रवण, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद, रेवती ☀ चन्द्रबल 🔅 मेष, वृषभ, सिंह, कन्या, धनु, कुम्भ 🌹विशेष ~ भद्रा रात्रिशेष 04:15:32 उपरान्त, भीमचण्डी विन्ध्याचली देव्योर्जयन्ती।🌹 पं.प्रेम सागर पाण्डेय् राशिफल 24 अगस्त 2021, मंगलवार मेष (Aries): सकारात्मक यात्रा के योग हैं। सक्रियता और प्रभावशीलता बनी रहेगी। स्वयं लक्ष्य तय करें और उन्हें पूरा करने का प्रयास करें। दिन सफलता कारक। शुभ रंग = गुलाबी शुभ अंक : 8 वृषभ (Tauras): रिश्तों में करीबी बनी रहेगी। सभ्यता और भव्यता पर जोर रहेगा। खर्च पर नियंत्रण कठिन होगा। कला दक्षता बढ़ेगी। शुभ निवेश से नई राह खोल सकते हैं। शुभ रंग = आसमानी शुभ अंक : 7 मिथुन (Gemini): उम्मीद से अच्छा लाभ बना रह सकता है। शॉर्ट टर्म गेन पर जोर दे सकते हैं। संतान शिक्षा और प्रतिस्पर्धा पक्ष बेहतर रहेंगे। कामकाज में अधिकाधिक समय दें। शुभ रंग = उजला शुभ अंक : 4 कर्क (Cancer): पेशेवरता बढ़त पर रहेगी। महत्वपूर्ण चर्चाओं में आपकी प्रस्तुति और प्रस्ताव प्रभावकारी रहेंगे। सभी की उम्मीदों पर खरे उतरेंगे। दिन उन्नतिकारक। शुभ रंग = लाल शुभ अंक : 5 सिंह (Leo): अच्छे समय का प्रतिपल दोहन करने की सोच रहें। भाग्य की प्रबलता बनी रहेगी। मनोबल ऊंचा रहेगा। मनोरंजन में आगे रहेंगे। लक्ष्यों को पूरा करने जुटे रहें। दिन श्रेष्ठ। शुभ रंग = लाल शुभ अंक : 5 कन्या (Virgo): कम बोलें ज्यादा करें की नीति पर अमल करें। आकस्मिकता और अप्रत्याशितता से बचने के लिए अनुशासन पर जोर दें। परिजन सहयोगी बने रहेंगे। घर में शुभकार्य होंगे। शुभ रंग = आसमानी शुभ अंक : 7 तुला (Libra): दाम्पत्य में ऊर्जा और उत्साह का संचार रहेगा। महत्वपूर्ण निर्णय ले सकते हैं। मित्रों का सहयोग मनोबल ऊंचा रखेगा। अहम् से बचें। श्रेष्ठ प्रस्ताव प्राप्त हो सकते हैं। शुभ रंग = उजला शुभ अंक : 4 वृश्चिक (Scorpio): मेहनत करने वाला ही सुख का अधिकारी होता है। अतार्किक प्रस्तावों और प्रलोभनों से बचें। खर्च बढ़ा हुआ रहेगा। लेन देन में सतर्कता आवश्यक है। दिन सामान्य शुभ। शुभ रंग : गुलाबी शुभ अंक : 8 धनु (Sagittarius): बौद्धिकता को बल मिलेगा। पठन पाठन में रुचि बढ़ेगी। प्रेम और प्रतिस्पर्धा में अपना श्रेष्ठ देंगे। आर्थिक अवसरों की अधिकता बनी रह सकती है। दिन श्रेष्ठ। शुभ रंग = लाल शुभ अंक : 5 मकर (Capricorn): सही होने पर भी अपनों की खातिर चुप रहना सीखें। अपनों से बहस में जीतना समझदारी की बात नहीं मानी जा सकती। सुख संसाधन पर्याप्त रहेंगे। यात्रा संभव है। शुभ रंग = केशरी शुभ अंक : 1 कुंभ (Aquarius): साहस के साथ आगे बढ़ते रहिए अधिकांश कठिनाईयां स्वत: दूर हो जाएंगी। पद प्रतिष्ठा को बल मिलेगा। संपर्क और सूचना तंत्र मजबूत रहेगा। दिन श्रेष्ठ। शुभ रंग = पीला शुभ अंक : 9 मीन (Pisces): रहन सहन संवार पर रहेगा। घर परिवार में मांगलिक कार्य होंगे। सुख संसाधन बढ़त पर रहेंगे। धनधान्य में वृद्धि होगी। वाणी व्यवहार मधुर रहेगा। दिन श्रेष्ठ। शुभ रंग = लाल शुभ अंक : 5 दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com |
पश्चिमी सभ्यता- पतन का रास्ता डॉ सच्चिदानन्द प्रेमी Posted: 23 Aug 2021 06:19 AM PDT पश्चिमी सभ्यता- पतन का रास्ता डॉ सच्चिदानन्द प्रेमीपरिवार समाज की प्राथमिक संस्था है ।परिवार से घर बनता है ,परिवार से समाज बनता है, परिवार से गांव बनता है, परिवार से राष्ट्र बनता है। हमारे आर्ष ग्रंथों ने तो डंके की चोट पर घोषणा की है कि परिवार से विश्व की रचना होती है -वसुधैव कुटुंबकम ।सारी सृष्टि ही परिवार है। इसीलिए हमारे ऋषियों ने परिवार बसाने और बचाने के लिए ग्रंथों की रचना की थी ।परंतु दुर्भाग्य है कि हमने उन ग्रंथों को दीमक के हवाले कर दिया और निश्चिंत होकर एकल् परिवार का जाप करने लगे ।जहां परिवार है वहां एकल् कैसे हो सकता है ? पश्चिमी सभ्यता में लोग शादी करना पसंद नहीं करते। इससे अवैध संबंधों को बढ़ावा मिल रहा है। फिर लिव इन रिलेशनशिप नाम की एक नई कुरीति समाज में आ गई है। इससे परिवार श्रृंखला टूटती जा रही है ।अवैध बच्चों की संख्या बढ़ रही है ।चर्च में सेवा भाव से ऐसे बच्चे रख दिए जाते हैं जो भविष्य में क्रिश्चियनिटी के शिकार करवाए जाते हैं। इससे उनकी संख्या बढ़ रही है । हिंदू धर्म समाज के पतन का कारण यही परिवार है ।जनसंख्या की बढ़ती प्रवृत्ति के भय के कारण परिवार विखंडित हो रहा है । हिंदू परिवार का अर्थ होता है रक्त पर आधारित रिश्ते। इसमें पिता -माता ,चाचा-चाची, बुआ -फूफा ,मामा -मामी ,मौसी-मौसा, बहन -बहनोई ,पत्नी, साले(श्याला ),ससुर -सास सभी होते हैं ,परंतु आज हम -दो हमारे -दो के नारे में यह परिवार श्रृंखला लुप्तप्राय हो गया है ।इसे इस प्रकार समझा जा सकता है - पुत्र -दो +पुत्री दो =बचे रिश्ते 5 पुत्र दो +पुत्री एक =बचे रिश्ते 4 (इसमें मौसी नहीं होगी ) पुत्र एक +पुत्री दो =बचे रिश्ते 3 (चाचा ,ताऊ नाम के कोई जंतु नहीं होंगे) पुत्र एक +पुत्री एक =बचे रिश्ते 2( चाचा ,ताऊ ,मौसा ,मौसी नहीं ,सभी गायब) पुत्र एक+ पुत्री नहीं =परिवार में कोई नहीं पुत्र नहीं +पुत्री एक =परिवार में कोई नहीं तीसरी पीढ़ी तक आते-आते सिंगल चाइल्ड फैमिली परिवार को पूरा प्रभावित करेगा ।यह विश्लेषण सरकारी आंकड़े के आधार पर किया गया है। आपका पौत्र परिवार में अकेला खड़ा नजर आएगा ।परिवार में रक्त से संबंधित रिश्तेदार कोई कहीं नहीं बचेगा ।वह अकेला जीवन जीने को मजबूर होगा ।यह स्थिति हिंदू परिवार की है और हिंदू परिवार के कमजोर होने का या हिंदू धर्म के पतन का भी यही कारण बनेगा । दूसरी और इस्लाम के मौजूद परिवारिक श्रृंखला के कारण वह बलवान हो रहा है ।वह अपनी परिवार -पद्धति को मजबूर एवं अविभाजित बनाए हुए है और यही कारण है कि पश्चिमी दुनिया फैमिली सिस्टम के टूटने के कारण तबाह हो रही है और इस्लामिक देशों से लगातार हार रही है ।डेबिट सेंलबॉर्न ने एक किताब लिखी है -लुजिंग बैटल विद इस्लाम (The losing battle with Islam ) । इसमें मात्र इसी की व्याख्या है -पश्चिमी दुनिया इस्लाम से हार रही है ।इसी से संदर्भित विलबार्नर ने भी एक पुस्तक लिखी है ।इसमें लिखा है कि देर सबेर पश्चिम इस मजबूत फैमिली सिस्टम के अभाव में इस्लाम से हार जाएगा ।देर सवेर हार के कई कारण हैं इसमें परिवार का विखंडन भी एक कारण है ।" ओल्ड एज होम "इसी की देन है । अब तो राजनीतिक पार्टियां परिवार को बचाने का वादा चुनावी घोषणा पत्र में भी करने लगी हैं । आस्ट्रेलिया में तो फैमिली फर्स्ट नाम की एक पॉलीटिकल पार्टी ही बना ली गई है । यह रोग हिंदुओं में भी घुस गया है।जो बच्चे पढ़ने घर से दूर जाते हैं ,उनमें से प्रायः (कुछ) लिव इन रिलेशनशिप को अपना लेते हैं । वे इस भारतीय पद्दति को विवाह शादी के नाम पर व्यर्थ का अर्थ दोहन समझ रहे हैं । इस माध्यम से असांस्कृतिक परिवेश तथा असंवैधानिक संबन्धों को बढ़ावा दिया जा रहा है । प्री वेडिंग सिरोमणी भी इसी का एक नवीनतम महा रोग है ।इसलिए इस महारोग की जानकारी लोगों को चौक चौराहे ,पान की गुमटी ,चाय स्टॉल पर भी उसी तरह देनी चाहिए जैसे कोविड -19 की दी जा रही है । नासमझ लोग तो हंसी उड़ा सकते हैं परंतु कुछ लोगों की इस जानकारी की आवश्यकता है , ऐसा भी हो सकता है ।इसलिए - एक बार जाल फिर फेंक रे मछेरे, जाने किस मछली को बंधन की चाह हो ! दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com |
गांधी, खादी और आत्मनिर्भर भारत Posted: 23 Aug 2021 04:03 AM PDT गांधी, खादी और आत्मनिर्भर भारत*नेहा विपुल भारत की आजादी की लड़ाई के महानायक महात्मा गांधी ने बहुत जल्दी ही यह समझ लिया था कि ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ लड़ाई सिर्फ हौसले का मामला नहीं है। उन्हें यह साफ दिखाई दे रहा रहा था कि साम्राज्यवाद की विचारधारा पर आधारित एक विदेशी सत्ता को उखाड़ फेंकने के लिए एक वैकल्पिक विचारधारा की जरूरत होगी। और इस वैकल्पिक विचारधारा को सिर्फ राजनितिक स्तर पर ही सीमित नहीं रहना होगा, बल्कि इसका फैलाव आर्थिक और सामाजिक स्तर पर भी करना होगा। अंग्रेजों के उपनिवेशवाद की आर्थिक वैचारिकी के बरक्स आत्मनिर्भरता की बुनियाद पर महात्मा गांधी द्वारा खड़ा किया गया स्वदेशी आर्थिक विकल्प ही 'खादी' के नाम से मशहूर हुआ। यही वजह रही कि बापू ने हमेशा इस बात का उद्घोष किया कि 'खादी केवल वस्त्र नहीं, बल्कि विचार है'। इस अर्थ में गांधी, खादी और आजादी का आपस में एक गहरा नाता रहा। खादी के जरिए महात्मा गांधी ने सारी दुनिया को यह बता दिया कि स्वावलंबन और आत्मसम्मान की भूख ने अब हर भारतवासी के मन में आजादी हासिल करने के हौसले को बढ़ा दिया है। बापू के 1915 में दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटने के समय अंग्रेजी कपड़ा उद्योग अपने चरम पर था। अंग्रेज भारत से कच्चा माल ले जाकर कपड़े तैयार करते और फिर उन तैयार कपड़ो को भारत में बेचते थे। अंग्रेजों के इस कदम से स्थानीय उद्योग बर्बाद हो चुका था और स्थानीय लोग बेहद परेशान थे। उन दिनों देश में एक स्वदेशी आन्दोलन चल तो रहा था, लेकिन स्वदेशी की भावना को परवान चढ़ाने की जरूरत को गंभीरता से बापू ने महसूस किया। आजादी की लड़ाई में पूरी तरह उतरने से पहले देश भ्रमण के दौरान देश में आम लोगों की स्थिति देखकर उन्होंने यह अंदाजा लगा लिया गया था कि खादी ही वह कारगर हथियार है जिसके जरिए एक शासित मुल्क को उसके शासक के बराबर ताल ठोककर खड़ा किया जा सकता है। उनकी नजर में स्थानीय खादी को बढ़ावा देना अंग्रेजी उद्योग से मुकाबला करने का एक अचूक अहिंसात्मक हथियार था। यही नहीं, खादी उनके लिए धर्म और जात-पात में बंटे भारतीय समाज को जोड़ने का भी एक सटीक नुस्खा था। खादी के जोर पकड़ने से स्थानीय लोगों को रोजगार मिलने जैसे जरूरी फायदे तो होने ही थे। महात्मा गांधी के बारे में विस्तार से अध्ययन करने वाले विद्वानों की अगर मानें तो चंपारण सत्याग्रह के समय के एक वाकये से औपनिवेशिक सत्ता पर महात्मा की खादी और स्वदेशी की इस अवधारणा के असर को आसानी से समझा जा सकता है। बापू जब चंपारण आए, तो उस दौरान उन्होंने खादी ही पहना। उनके इस कदम के बारे में इरविन नाम के एक पत्रकार ने 'दी पायनियर' नाम के एक अखबार में उनपर नौटंकी करने और आम जनता को मूर्ख बनाने का आरोप लगाते हुए एक पत्र लिखा। अपने पत्र में उसने लिखा कि सच्चाई यह है कि हर पढ़ा-लिखा रईस भारतीय औरों से खुद को बेहतर समझने के लिए पाश्चात्य संस्कृति वाले कपड़े ही पहनता है। इसके जवाब में, 30 जून, 1917 को महात्मा गांधी ने इसी अखबार में एक पत्र लिखा। उन्होंने लिखा कि पहनावे के असर से वो अब ठीक से वाकिफ हुए हैं। उन्होंने आगे लिखा कि मैंने यह तय किया है कि अब खुद या अपने साथियों द्वारा बुने हुए खादी ही पहनूंगा, जो कि पूरी तरह से स्वदेशी होगा। उन्होंने इरविन के पत्र का हवाला देते हुए आगे कहा कि मैंने यह राष्ट्रीय वस्त्र इसलिए पहना क्योंकि एक भारतीय बनने का यही सबसे अच्छा तरीका है और मैं यह मानता हूँ कि अंग्रेजी तरीके का कपड़ा पहनना हमारे पतन और कमजोरी को दर्शाता है। अंग्रेजी कपड़े पहनकर हमलोग एक राष्ट्रीय पाप करने के साथ - साथ उस कपड़े को नजरअंदाज कर रहे हैं जो एक आम भारतीय की जरूरतों के अनुरूप है। खादी सस्ता और साफ-सफाई के लिहाज से भारतीय परिवेश के लिए पूरी तरह से अनुकूल है। साफ है कि भारतीय होने का यह एहसास और उस पर गर्व करने की सोच ब्रिटिश हुक्मरानों के लिए एक बड़ा झटका जैसा था। लिहाजा बापू खादी को अपनाने के विचार पर जोर देते चले गए। इसी दौरान वर्ष 1919 में 'दी आल इंडिया स्पिनर्स एसोसिएशन' की स्थापना हुई। वर्ष 1920 आते-आते खादी और महात्मा गांधी एक दूसरे के पर्याय हो गए। उन्होंने यह कहना शुरू कर दिया कि अंग्रेज अपनी ताकत की वजह से नहीं, बल्कि हमारी कमजोरी की वजह से इस देश पर शासन कर रहे हैं। खादी इस कमजोरी से उबरकर मजबूत बनने का एक रास्ता है। उन्होंने 'यंग इंडिया' में 8 दिसंबर 1921 को लिखा कि चरखा इस देश की समृद्धि के साथ - साथ उसकी स्वतंत्रता का प्रतीक है। उनके इस ऐलान के बाद अब हर घर खादी से जुड़ने लगा। उन्होंने 1927 में खादी यात्रा भी निकली। कुल मिलाकर, आजादी की लड़ाई के सफर में खादी महात्मा गांधी की वैचारिक लाठी बनकर चला और इसके व्यापक फलक के भीतर वस्त्र उद्योग से परे जाकर भारत के समग्र आर्थिक स्वावलंबन का सपना पला। बापू की इस वैचारिक लाठी को आजादी के बाद आत्मनिर्भर भारत के मूलमंत्र के तौर पर आगे की ओर बढ़ना था। इस हकीकत को अच्छी तरह समझते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने इस दिशा में कदम बढ़ाया है। ऐसा करते हुए इस सरकार ने वर्तमान वैश्वीकरण के युग में आत्मनिर्भरता की परिभाषा में बदलाव की जरूरत को ठीक से पकड़ा है। इसमें कोई दो राय नहीं कि आत्मनिर्भरता का मतलब आत्म-केंद्रित होना कतई नहीं है। खासकर वैश्वीकरण के वर्तमान युग में तो बिल्कुल भी नहीं। अब जरूरत आत्मनिर्भरता को 'वसुधैव कुटुंबकम्' की भारतीय अवधारणा के साथ जोड़ने की है। वर्तमान सरकार का मानना है कि दुनिया के एक हिस्से के तौर पर भारत अगर प्रगति करता है, तो ऐसा करके वह दुनिया की प्रगति में भी योगदान देता है। इस सरकार के नजरिए के अनुरूप 'आत्मनिर्भर भारत' के निर्माण में वैश्वीकरण का बहिष्कार नहीं, बल्कि दुनिया के विकास में अपनी भूमिका के निर्वहन का भाव है। उपरोक्त तथ्यों के मद्देनजर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश के 130 करोड़ लोगों को आत्मनिर्भर बनाने के लक्ष्य के साथ 12 मई 2020 को आत्मनिर्भर भारत अभियान योजना की घोषणा की। इस योजना में देश में रोजगार सृजन पर अधिक ध्यान दिया जायेगा। इस योजना के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने 20 लाख करोड़ रूपए का आर्थिक पैकेज घोषित किया, जोकि देश की जीडीपी का 10 प्रतिशत है। इस सरकार ने आत्मनिर्भर भारत की परिकल्पना को पांच स्तंभों पर टिकाया है। पहला स्तंभ एक ऐसी अर्थव्यवस्था का है, जोकि सिर्फ वृद्धिशील परिवर्तन नहीं बल्कि लंबी छलांग सुनिश्चित करे। दूसरा स्तंभ एक ऐसे बुनियादी ढांचा का है, जो न सिर्फ भारत की एक अलग पहचान बनाए बल्कि बड़े पैमाने पर निवेश को भी आकर्षित करे। तीसरा स्तंभ एक ऐसी प्रणाली (सिस्टम) का है, जो 21वीं सदी की अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी संचालित व्यवस्थाओं पर आधारित हो। चौथा स्तंभ उत्साह से लबरेज एक ऐसी आबादी का है, जो आत्मनिर्भर भारत के लिए ऊर्जा का स्रोत बन सके। पांचवां और अंतिम स्तंभ मांग और उससे जुड़ी एक ऐसी व्यवस्था का है, जिसके तहत एक मजबूत आपूर्ति श्रृंखला (सप्लाई चेन) का उपयोग पूरी क्षमता से मांग बढ़ाने के साथ-साथ उसे पूरा करने के लिए किया जा सके। आत्मनिर्भर भारत अभियान के लाभार्थियों में किसान, गरीब नागरिक, काश्तगार, प्रवासी मजदूर, कुटीर उद्योग में काम करने वाले लोग, लघु एवं मध्यम उद्यमों में लगे लोग, मछुआरे, पशुपालक और संगठित व असंगठित क्षेत्र में कार्य करने वाले लोग शामिल होंगे। इस योजना को दो चरणों में लागू किया जाएगा। पहले चरण में चिकित्सा, वस्त्र, इलेक्ट्रॉनिक, प्लास्टिक, खिलौने जैसे क्षेत्रों को तवज्जो देकर स्थानीय विनिर्माण और निर्यात को बढ़ावा दिया जाएगा। जबकि दूसरे चरण में फर्नीचर, फुटवियर, एयर कंडीशनर, पूंजीगत सामान, मशीनरी, मोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक, रत्न एवं आभूषण, फार्मास्यूटिकल्स, वस्त्र उद्योग पर ध्यान केन्द्रित किया जाएगा। इस योजना के क्रियान्वयन से देश में औद्योगिक विकास के साथ-साथ उत्पादन के स्वरूप और कंपनियों / उद्योगों की कार्यशैली में भी बड़े बदलाव होंगे। विशेषज्ञों का मानना है कि इन बदलावों के अनुरूप कृषि एवं सहायक क्षेत्रों को तैयार कर ग्रामीण अर्थव्यवस्था में भी योगदान दिया जा सकता है। मसलन, अलग – अलग किस्म के कृषि उत्पादों की पैकेजिंग या कृषि उत्पादों से तैयार होने वाले अन्य उत्पादों के उत्पादन के लिए स्थानीय स्तर पर छोटी औद्योगिक इकाइयों की स्थापना को बढ़ावा देकर देश की औद्योगिक उत्पादन श्रृंखला में ग्रामीण क्षेत्रों की भागीदारी सुनिश्चित की जा सकती है। यह सही है कि आत्मनिर्भर भारत अभियान योजना के क्रियान्वयन के क्रम में सरकार को कई चुनौतियों से निपटना होगा, लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि इस योजना के जरिए वैश्विक स्तर पर भारत के एक मजबूत आर्थिक शक्ति के रूप में उभरने की पुरजोर संभावना है। *कंटेंट लेखक(स्वतंत्र पत्रकार) दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com |
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