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Thursday, September 2, 2021

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मुख्यमंत्री ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से खरीफ विपणन वर्ष 2021-22 के अंतर्गत धान अधिप्राप्ति हेतु की जा रही तैयारियों की समीक्षा की

Posted: 01 Sep 2021 08:51 AM PDT

मुख्यमंत्री ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से खरीफ विपणन वर्ष 2021-22 के अंतर्गत धान अधिप्राप्ति हेतु की जा रही तैयारियों की समीक्षा की 

मुख्यमंत्री के निर्देश :-

  • धान अधिप्राप्ति का कार्य ससमय शुरु होने से अधिक से अधिक धान की अधिप्राप्ति होगी और किसानों को इसका फायदा होगा।
  • इस बार जो लक्ष्य निर्धारित करें उसका जिलावार, क्षेत्र के अनुसार वास्तविक आकलन करा लें क्योंकि हर क्षेत्र की अलग-अलग उत्पादन क्षमता है।
  • धान अधिप्राप्ति की शुरुआत अलग-अलग जिलों में चरणबद्ध ढंग से शुरु करें। जिन जिलों में धान की कटनी पहले हो जाती है वहां धान अधिप्राप्ति पहले शुरु करें।
  • अनुमानित उपज के आधार पर धान अधिप्राप्ति का लक्ष्य जिलावार निर्धारित करें।
  • बिहार में उसना चावल की ज्यादा मांग है। उसना चावल मिलों की संख्या बढ़ाने को लेकर काम करें।

मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार ने 1 अणे मार्ग स्थित संकल्प में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से खरीफ विपणन वर्ष 2021-22 के अंतर्गत धान अधिप्राप्ति हेतु की जा रही तैयारियों की समीक्षा की।
खाद्य एवं उपभोक्ता संरक्षण विभाग के सचिव श्री विनय कुमार ने प्रस्तुतीकरण के माध्यम से खरीफ विपणन वर्ष 2021-22 के अंतर्गत धान अधिप्राप्ति हेतु की जा रही तैयारियों को लेकर विस्तृत जानकारी दी। उन्होंने न्यूनतम समर्थन मूल्य, अधिप्राप्ति के लक्ष्य, अवधि के साथ-साथ इससे संबंधित अन्य बिंदुओं की जानकारी दी। सहकारिता विभाग की सचिव श्रीमती बंदना प्रेयसी ने भी धान अधिप्राप्ति को लेकर अपने विभाग से संबंधित तैयारियों, पैक्सों की क्रियाषीलता, भंडारण क्षमता, षिकायतों के त्वरित निपटारे एवं अन्य बिन्दुओं के संबंध में विस्तृत जानकारी दी। 
समीक्षा के दौरान मुख्यमंत्री ने कहा कि धान अधिप्राप्ति का कार्य ससमय शुरु होने से अधिक से अधिक धान की अधिप्राप्ति होगी और किसानों को इसका फायदा होगा। इस बार जो लक्ष्य निर्धारित करें उसका जिलावार, क्षेत्र के अनुसार वास्तविक आकलन करा लें, क्योंकि हर क्षेत्र की अलग-अलग उत्पादन क्षमता है। बाढ़ को देखते हुए जिलावार धान की खेती का सही आंकलन कर लें। बिहार में ज्यादातर लोग उसना चावल की मांग करते हैं, उसना चावल मिलों की संख्या बढ़ाने को लेकर काम करें। उसना चावल के साथ-साथ अरवा चावल की भी तैयारी रखें। उन्होंने कहा कि धान अधिप्राप्ति को लेकर सहकारिता विभाग, कृषि विभाग एवं खाद्य एवं उपभोक्ता संरक्षण तीनों एक साथ सर्वेक्षण कराकर सभी चीजों के वास्तविक आकलन कर काम करें। 
मुख्यमंत्री ने कहा कि धान अधिप्राप्ति की शुरुआत अलग-अलग जिलों में चरणबद्ध ढंग से शुरु करें। जिन जिलों में धान की कटनी पहले हो जाती है वहां धान अधिप्राप्ति पहले शुरु करें। अनुमानित उपज के आधार पर धान अधिप्राप्ति का लक्ष्य जिलावार निर्धारित करें। 
बैठक में मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव श्री दीपक कुमार, मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव श्री चंचल कुमार, मुख्यमंत्री के सचिव श्री अनुपम कुमार एवं मुख्यमंत्री के विशेष कार्य पदाधिकारी श्री गोपाल सिंह उपस्थित थे, जबकि वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से कृषि मंत्री श्री अमरेन्द्र प्रताप सिंह, खाद्य एवं उपभोक्ता संरक्षण मंत्री श्रीमती लेशी सिंह, मुख्य सचिव श्री त्रिपुरारी शरण, विकास आयुक्त श्री आमिर सुबहानी, कृषि विभाग के सचिव श्री एन0 सरवन कुमार, खाद्य एवं उपभोक्ता संरक्षण विभाग के सचिव श्री विनय कुमार एवं सहकारिता विभाग की सचिव श्रीमती बंदना प्रेयसी जुड़ी हुई थी।  

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आज 2 सितम्बर 2021, गुरुवार का दैनिक पंचांग एवं राशिफल - सभी १२ राशियों के लिए कैसा रहेगा आज का दिन ? क्या है आप की राशी में विशेष ? जाने प्रशिद्ध ज्योतिषाचार्य पं. प्रेम सागर पाण्डेय से |

Posted: 01 Sep 2021 08:42 AM PDT

आज 2 सितम्बर 2021, गुरुवार का दैनिक पंचांग एवं राशिफल - सभी १२ राशियों के लिए कैसा रहेगा आज का दिन ? क्या है आप की राशी में विशेष ? जाने प्रशिद्ध ज्योतिषाचार्य पं. प्रेम सागर पाण्डेय से |

श्री गणेशाय नम: !!

दैनिक पंचांग

 2 सितम्बर 2021, गुरुवार

पंचांग   

🔅 तिथि  एकादशी  रात्रिशेष  05:26:12

🔅 नक्षत्र  आर्द्रा  दिन  02:03:26

🔅 करण :

           विष्टि  06:24:23

           बव  19:10:25

🔅 पक्ष  कृष्ण 

🔅 योग  सिद्धि  10:07:45

🔅 वार  गुरूवार 

सूर्य व चन्द्र से संबंधित गणनाएँ

🔅 सूर्योदय  05:44:12

🔅 चन्द्रोदय  26:00:00 

🔅 चन्द्र राशि  मिथुन 

🔅 सूर्यास्त  18:16:07

🔅 चन्द्रास्त  15:37:59 

🔅 ऋतु  शरद 

हिन्दू मास एवं वर्ष

🔅 शक सम्वत  1943  प्लव

🔅 कलि सम्वत  5123 

🔅 दिन काल  12:42:49 

🔅 विक्रम सम्वत  2078 

🔅 मास अमांत  श्रावण 

🔅 मास पूर्णिमांत  भाद्रपद 

शुभ और अशुभ समय

शुभ समय   

🔅 अभिजित  11:55:15 - 12:46:07

अशुभ समय   

🔅 दुष्टमुहूर्त :

                    10:13:33 - 11:04:24

                    15:18:40 - 16:09:32

🔅 कंटक  15:18:40 - 16:09:32

🔅 यमघण्ट  06:50:08 - 07:40:59

🔅 राहु काल  13:56:02 - 15:31:23

🔅 कुलिक  10:13:33 - 11:04:24

🔅 कालवेला या अर्द्धयाम  17:00:23 - 17:51:14

🔅 यमगण्ड  05:59:16 - 07:34:38

🔅 गुलिक काल  09:09:59 - 10:45:20

दिशा शूल   

🔅 दिशा शूल  दक्षिण 

चन्द्रबल और ताराबल

ताराबल 

🔅 अश्विनी, कृत्तिका, मृगशिरा, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, मघा, उत्तरा फाल्गुनी, चित्रा, स्वाति, विशाखा, अनुराधा, मूल, उत्तराषाढ़ा, धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद 

चन्द्रबल 

🔅 मेष, मिथुन, सिंह, कन्या, धनु, मकर 

🌹विशेष जया एकादशी व्रत (स्मार्तानाम), पयुषण पर्वारम्भ (जैन)। 🌹

पं.प्रेम सागर पाण्डेय्

राशिफल 2 सितम्बर 2021, गुरुवार

मेष (Aries):  आज के दिन आप अपने शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बनाए रखेंगे। आर्थिक लाभ प्राप्त कर सकेंगे। किसी तीर्थयात्रा पर जाएंगे। सगे संबंधियों और मित्रों के आगमन से मन खुश रहेगा। दांपत्यजीवन में निकटता और मधुरता रहेगी। मान-प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी। स्वादिष्ट भोजन का स्वाद लेने का आनंद प्राप्त होगा।

शुभ रंग  =  पीला

शुभ अंक  :  9

वृषभ (Tauras): कार्य सफलता में विलंब और शारीरिक अस्वस्थता के कारण आप हताशा की भावना का अनुभव करेंगे। अत्यधिक काम के बोझ से थकान और मानसिक बेचैनी रहेगी। प्रवास में विघ्न आने की संभावना है। नए कार्य आरंभ न करने की सलाह देते हैं। खानपान में ध्यान रखें। योग और ध्यान से आप मानसिक रुप से स्वस्थ्य रह सकते हैं।

शुभ रंग  =  उजला

शुभ अंक  :  4

मिथुन (Gemini): शारीरिक व मानसिक ताजगी और प्रफुल्लता का अनुभव होगा। कुटुंबीजनों और मित्रों के साथ प्रवास और पार्टी का आयोजन होगा। मनोरंजन के लिए सभी सामग्री आज आपको उपलब्ध होगी। सुंदर वस्त्र, उत्तम भोजन और वाहन सुख प्राप्त होगा। विपरीत लिंगीय पात्रों की तरफ अधिक आकर्षण होगा।

शुभ रंग  =  फीरोजा़

शुभ अंक  :  6

कर्क (Cancer):  आज के दिन आपको खुशी और सफलता मिलेगी। पारिवारिक सदस्यों के साथ घर में सुख-शांति से दिन बिताएंगे। नौकरी करनेवालों को लाभ होगा। प्रतिस्पर्धियों को परास्त कर सकेंगे। कार्य में यश मिलेगा। स्त्री मित्रों के साथ मुलाकात आनंद देगी। अपने अधीनस्थ व्यक्तियों और सहकर्मियों का सहयोग प्राप्त कर सकेंगे। स्वास्थ्य अच्छा रहेगा।

शुभ रंग  =  पीला

शुभ अंक  : 9

सिंह (Leo): लेखन, साहित्य के क्षेत्र में कुछ नए सृजन करने की आपको प्रेरणा मिलेगी। विद्यार्थी अध्ययन में उत्तम प्रदर्शन कर सकेंगे। प्रणय में सफलता और प्रिय व्यक्तियों के साथ की गई मुलाकात आपका मन हर्षित करेगा। स्त्री मित्रों का सहयोग अधिक मिलेगा। शारीरिक स्वास्थ्य बना रहेगा। आप धार्मिक परोपकार का कार्य करके धन्यता का अनुभव करेंगे।

शुभ रंग  =  गुलाबी

शुभ अंक  :  1

कन्या (Virgo): आज के दिन हर कार्य में प्रतिकूलता का अनुभव करेंगे। स्वास्थ्य खराब होगा। मन चिंताग्रस्त रहेगा। पारिवारिक सदस्यों के साथ अनबन होने से अशांति रहेगी। सार्वजनिक रूप से मानहानि होने की संभावना है। पानी से भय रहेगा इसलिए जलाशय के पास न जाएं। स्थायी संपत्ति, वाहन आदि के कागज पर हस्ताक्षर करने से पहले विचार करने की आवश्यकता है।

शुभ रंग  =  केशरी

शुभ अंक  :  9

तुला (Libra): शुभ या धार्मिक अवसरों पर यात्रा प्रवास का आयोजन होगा। भाई-बंधुओं के साथ सौहार्दपूर्ण वातावरण में घरेलू प्रश्नों की चर्चा होगी। व्यवहारिक अवसर पर बाहर जाएंगे। विदेश से अच्छे समाचार आएंगे। आज नए कार्यों का आरंभ कर सकते हैं। धन लाभ का योग है। पूंजी निवेश के लिए अनुकूल दिन है। शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य बना रहेगा। भाग्य वृद्धि होगी।

शुभ रंग  =  फीरोजा़

शुभ अंक  :  6

वृश्चिक (Scorpio): पारिवारिक कलह-द्वेष का अवसर न आए, इसका ध्यान रखें। पारिवारिक सदस्यों के साथ गलतफहमियों से बचें। मन में उत्पन्न नकारात्मक विचारों को दूर भगाने की सलाह देते हैं। विद्या प्राप्ति में विद्यार्थियों को अवरोध आएगा। अनावश्यक धन खर्च न हो, इसका ध्यान रखें। शारीरिक और मानसिक अस्वस्थता आपको बेचैन करेगी।

शुभ रंग  =  गुलाबी

शुभ अंक  : 1

धनु (Sagittarius):  आज के दिन आप अपने शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बनाए रखेंगे। आर्थिक लाभ प्राप्त कर सकेंगे। किसी तीर्थयात्रा पर जाएंगे। सगे संबंधियों और मित्रों के आगमन से मन खुश रहेगा। दांपत्यजीवन में निकटता और मधुरता रहेगी। मान-प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी। स्वादिष्ट भोजन का स्वाद लेने का आनंद प्राप्त होगा।

शुभ रंग  =  पीला

शुभ अंक  :  9

मकर (Capricorn): आज सावधानी से चलने की सलाह है। अधिक परिश्रम में कम सफलता मिलने से निराशा की भावना पैदा होगी। पारिवारिक वातावरण भी अशांत रहेगा। स्वास्थ्य संबंधी शिकायत रहेगी। दुर्घटना से बचें। व्यावसायिक कार्यों में सरकारी हस्तक्षेप बढ़ेगा। कोर्ट-कचहरी के कार्यों में संभलकर कदम उठाएं। धार्मिक और सामाजिक कार्यों में भाग लेंगे। धन खर्च भी होगा।

शुभ रंग  =  उजला

शुभ अंक  :  4

कुंभ (Aquarius): आज आप नए कार्य की शुरुआत या उसकी योजना बना सकेगें। नौकरी या व्यवसाय में लाभ की प्राप्ति होगी। स्त्री मित्र आपकी प्रगति में सहायक बनेगी। आर्थिक लाभ की दृष्टि से आज का दिन बहुत अच्छा रहेगा। रमणीय स्थलों पर पर्यटन का आयोजन करेंगे। पत्नी और पुत्र की तरफ से आनंद का समाचार मिलेगा। अविवाहितों के लिए विवाह का योग है।

शुभ रंग  =  पीला

शुभ अंक  :  9

मीन (Pisces):  नौकरी या व्यवसाय में सफलता पाने से तथा उच्च पदाधिकारियों के प्रोत्साहक व्यवहार से आप अत्यंत प्रसन्नता का अनुभव करेंगे। व्यापारियों के व्यापार में वृद्धि होगी और बकाया राशि प्राप्त होगी। पिता तथा बुजुर्गों की तरफ से लाभ मिलेगा। आय की मात्रा बढ़ेगी। कौटुंबिक माहौल आनंदमय रहेगा। मान सम्मान या उच्च पद की प्राप्ति होगी।

शुभ रंग  =  पीला

शुभ अंक  :  9

 प्रेम सागर पाण्डेय् ,नक्षत्र ज्योतिष वास्तु अनुसंधान केन्द्र ,नि:शुल्क परामर्श -  रविवार , दूरभाष  9122608219  /  9835654844
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मटकी फोड़ प्रतियोगिता आयोजित

Posted: 01 Sep 2021 07:20 AM PDT

मटकी फोड़ प्रतियोगिता आयोजित 

हमारे संवाददाता जितेन्द्र कुमार सिन्हा की खास रिपोर्ट 
 प्रखंड के सिकंदरपुर पंचायत के रामनगर गांव में राधे कृष्ण युवा कल्ब द्वारा मटकी फोड़ प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। प्रतियोगिता का उद्घाटन पटना जिला परिषद अध्यक्ष ज्योति सोनी ने की। 
प्रतियोगिता में गांव के युवाओं ने भाग लिया, जिसको देखने के लिए गांव के बड़े बुजुर्ग महिलाएं काफी संख्या में एकत्रित थी। 
उक्त अवसर पर गांव के ग्रामीणों को संबोधित करते हुए पटना जिला परिषद अध्यक्ष ज्योति सोनी ने कहा कि इस तरह के आयोजन से समाज में एकता, सद्भावना एवं समरसता का भाव उत्पन्न होता है। 
मौके पर समाजसेवी राम ईश्वर एवं आयोजक मंडली में बिक्की, विवेक, दिलीप, संदीप, सुजीत, गोलु, विकाश सहित अन्य सहयोगी सदस्य उपस्थित थे। 
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वेदनाओं के भंवर में

Posted: 01 Sep 2021 07:05 AM PDT

वेदनाओं के भंवर में

कब तलक उलझे रहेंगे
भूली बिसरी यादों संग
क्या यूं ही जलते रहेंगे?

जीवन क्या मृत्यु क्या
बैठकर इस पर विचारें
जो दिया ईश्वर ने हमको
आभार कह उसको पुकारें।

ज़िन्दगी एक सफर है
साथ चलते राही अनेकों
सबकी मन्जिल जुदा जुदा
मुकाम आया बिछड़े अनेकों।

हैं सफर के अनुभव अपार
खुशी गम अवसाद प्यार
सीखते हैं हम सफर में
जो अच्छा लगा उसका आभार।

यह सफर की परिणीति है
फूल बगिया में महकते
सुख दुःख खुशी और क्रंदन
बच्चों से ही घर चहकते।

जी रहे बुढ़ापे में बचपन
याद आता सारा लड़कपन
आभार उस सहयात्री का
जिसने सजाया मेरा जीवन।

कब हुए थे इतने व्यथित
कब सफर में थे थकित
निराशा भाव से मिला क्या
सोच कर कहना पथिक।

जब जब फंसी कश्ती डगर में
हौसलों की पतवार संग थी
निकाल लाये तूफां से कश्ती
जब कभी वह बीच भंवर थी।

हैं बहुत सी मधुर यादें
उनको ही सम्बल बना लो
तन्हाइयों को कर दो जुदा
स्वप्न में उनसे विदा लो।

है बहुत मुश्किल लगेगा
धार के विपरीत चलना
जो मिला उसमें बहुत कुछ
जो बचा सब मृगतृष्णा।

अ कीर्ति वर्द्धन
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मुख्यमंत्री के समक्ष वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से दिया गया इको टूरिज्म पॉलिसी से संबंधित प्रस्तुतीकरण

Posted: 01 Sep 2021 06:59 AM PDT

मुख्यमंत्री के समक्ष वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से दिया गया इको टूरिज्म पॉलिसी से संबंधित प्रस्तुतीकरण

मुख्यमंत्री के निर्देश :-

  • प्रकृति से सामंजस्य रखते हुए पर्यटन को बढ़ावा देना है। इस बात का ध्यान रखना है कि प्रकृति को किसी प्रकार से नुकसान न हो।
  • इको टूरिजम के विकास से राज्य में आने वाले पर्यटकों की संख्या तो बढ़ेगी ही, साथ ही स्थानीय लोगों की आमदनी भी बढ़ेगी।
  • इको टूरिज्म का प्रबंधन और मेंटेनेंस विभाग अपने द्वारा ही करे।
  • अधिकारी विशेषज्ञों के साथ जाकर जमीनी मुआयना भी करें और वहां की परिस्थिति के अनुसार व्यवहारिक चीजों पर गौर करते हुए इको टूरिज्म के विकास पर काम करें।

मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार के समक्ष आज एक अणे मार्ग स्थित संकल्प में पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग द्वारा वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से इको टूरिज्म पॉलिसी से संबंधित प्रस्तुतीकरण दिया गया।
पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग के प्रधान सचिव श्री दीपक कुमार सिंह ने इको टूरिज्म पॉलिसी से संबंधित प्रस्तुतीकरण में इको टूरिज्म को बढ़ावा देने को लेकर विस्तृत जानकारी दी। उन्होंने इको टूरिज्म प्लान, इंप्लीमेंटेशन स्ट्रेटजी आदि के संबंध में जानकारी दी।
प्रस्तुतीकरण के पश्चात् मुख्यमंत्री ने कहा कि पर्यावरण संरक्षण को लेकर हमलोगों ने कई कदम उठाये हंै। राज्य में इको टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए इको टूरिज्म पॉलिसी बनायी जा रही है। प्रकृति से सामंजस्य रखते हुए पर्यटन को बढ़ावा देना है। इस बात का ध्यान रखना है कि प्रकृति को किसी प्रकार से नुकसान न हो। इससे राज्य के लोगों में पर्यावरण एवं जीव जंतुओं के संरक्षण के प्रति जागरुकता बढ़ेगी और प्रकृति का संरक्षण भी बेहतर तरीके से होगा। उन्होंने कहा कि क्षेत्र की जैव विविधता, परंपरागत ज्ञान एवं हेरिटेज को भी सुरक्षित रखना है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि वाल्मीकिनगर अपने आप में यूनिक जगह है जहां एक तरफ गंडक नदी है तो दूसरी तरफ वन एवं पहाड़ हंै। यह इको टूरिज्म का बेहतर स्थल बनेगा।
वाल्मीकिनगर पहुंचने के लिए आवागमन सुगम बनाया गया है। वहां लोगों के रहने के साथ ही मनोरंजन की अन्य गतिविधियों की भी व्यवस्था की जा रही है। वाल्मीकिनगर में एक कॉन्वेंशन सेंटर का निर्माण भी कराया जाएगा जहां कई प्रकार के कार्यक्रम आयोजित करने में सहुलियत हो जाएगी। इको टूरिजम के विकास से राज्य में आने वाले पर्यटकों की संख्या तो बढ़ेगी ही, साथ ही स्थानीय लोगों की आमदनी भी बढ़ेगी। उन्होंने कहा कि इको टूरिज्म का प्रबंधन और मेंटेनेंस विभाग अपने द्वारा ही करे। अधिकारी विशेषज्ञों के साथ जाकर जमीनी मुआयना भी करें और वहां की परिस्थिति के अनुसार व्यवहारिक चीजों पर गौर करते हुए इको टूरिज्म के विकास पर काम करें।
बैठक में मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव श्री दीपक कुमार, मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव श्री चंचल कुमार, मुख्यमंत्री के सचिव श्री अनुपम कुमार एवं मुख्यमंत्री के विशेष कार्य पदाधिकारी श्री गोपाल सिंह उपस्थित थे, जबकि वीडियो कन्फ्रेंसिंग के माध्यम से पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री श्री नीरज कुमार सिंह, पर्यटन मंत्री श्री नारायण प्रसाद, मुख्य सचिव श्री त्रिपुरारी शरण, विकास आयुक्त श्री आमिर सुबहानी, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग के प्रधान सचिव श्री दीपक कुमार सिंह एवं पर्यटन विभाग के सचिव श्री संतोष कुमार मल्ल जुड़े हुए थे।

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भारतीय जन महासभा नेअफगानिस्तान के मुद्दे पर वर्चुअल मीटिंग के द्वारा अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी की

Posted: 01 Sep 2021 06:52 AM PDT

भारतीय जन महासभा नेअफगानिस्तान के मुद्दे पर वर्चुअल मीटिंग के द्वारा अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी की

जमशेदपुर भारतीय जन महासभा के द्वारा जारी की गई एक विज्ञप्ति के माध्यम से सुचना दी गई । महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष धर्म चंद्र पोद्दार ने बताया कि दुनिया के देशों ने अफगानिस्तान को तालिबान के द्वारा कब्जा हो जाने दिया और इस मामले पर चुप्पी जैसी ही बनाए रखी । यह बहुत ही दुखद , निंदनीय और दुर्भाग्यपूर्ण है ।इस प्रकार की घटना से आतंकवाद को बढ़ावा ,मिलेगा और दहशतगर्दी का साम्राज्य सम्पूर्ण विश्व में कायम हो जायेगा जो चिंतनीय है | 
मीटिंग में अनेक वक्ताओं ने अपने विचार रखे और जो विचार सामने आए उनके अनुसार अफगानिस्तान को तालिबानी आतंक से बचाने के लिए अमेरिका ने 20 वर्ष पूर्व अपनी सेना अफगानिस्तान भेजी थी । 4 राष्ट्रपति बदल गए और वर्तमान के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने सेना वापस बुलाकर अफगानिस्तान को मौत के मुंह में धकेलने का काम किया है ।
अमेरिका ने सारे विश्व में आतंक को बढ़ावा देने वाले तालिबान को सर उठाने का मौका देकर भारी भूल की है । इसकी सारे विश्व के देश भत्सर्ना  कर रहे हैं ।
मीटिंग में यह भी विचार आया कि अगर अपने पड़ोस के मकान को कोई और लोग आकर कब्जा कर ले और जो आस-पास के पड़ोसी है , वह सभी इस मामले पर चुप्पी साधे रहे तो क्या यह उचित है ? इस पर विचार होना चाहिए ।
अफगानिस्तान के आसपास के जितने भी देश है , उन सब को चाहिए था कि तालिबान के द्वारा  अफगानिस्तान को कब्जा ना होने दें और तालिबान के खिलाफ युद्ध छेड़ कर अफगानिस्तान की सरकार को बचाना था । लेकिन ऐसा नहीं ऐसा हुआ । यह बहुत ही दुखद रहा ।
सबसे अधिक दुखदाई तो यह बात रही कि पाकिस्तान ने तालिबान को समर्थन दिया और अफगान सरकार को पदच्युत करने में अहम भूमिका निभाई ।
पाकिस्तान यह भूल गया कि जिस तालिबान का आज उसने साथ दिया है , कल वह उसको भी सत्ता से बेदखल करेगा और वहां भी शरिया कानून के बहाने मुस्लिम औरतों पर अत्याचार करेगा ।
मीटिंग में यह भी विचार आया कि अफगानिस्तान की सीमा ईरान , पाकिस्तान , कजाकिस्तान , चीन और तुर्कमेनिस्तान के साथ लगी हुई है ।
इस प्रकार चीन भी आतंक से अछूता नहीं रहेगा ।
पोद्दार ने यह भी कहा  कि कजाकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान यह दोनों देश कभी सोवियत संघ में घटक रहे हैं । इनके बहाने रूस को भी इस आतंक से जूझना पड़ सकता है ।

अफगानिस्तान मुद्दे पर भारत सीधे दखलंदाजी से बचे, लेकिन काफी सतर्क रहे ।
तालिबान बाद में चीन और पाकिस्तान को तो डसेगा ही ,  उससे पहले पाकिस्तान तालिबान की मदद से भारत को बड़ा नुकसान पहुंचा सकता है ।
ध्यान देने योग्य है कि भारत पर हमले में चीन की अप्रत्यक्ष भागीदारी हो सकती है ।

इस मीटिंग के द्वारा भारतीय जन महासभा ने दुनिया के सभी देशों से अपील की हैं कि तालिबान को कोई भी देश मान्यता न दे । उसके साथ व्यापारिक संबंध न रखें । आयात-निर्यात को बंद रखें ।
इस प्रकार का कुछ करें कि वह वापस अफगानिस्तान के लोगों को सत्ता सौंप दें । तभी दुनिया के देश सुख-चैन से रह सकेगे ।

इस गूगल मीटिंग में देश-विदेश के अनेक लोगों ने हिस्सा लिया जिसमें जमशेदपुर से श्री पोद्दार के अलावे प्रमोद कुमार खीरवाल ,पाकुड़ से कृष्णा कुमार साहा,गोड्डा झारखंड से वासुदेव पंडित ,गिरिडीह से डॉ ममता बनर्जी 'मंजरी',सिंगापुर से श्रीमती बिदेह नंदनी चौधरी ,नागपुर से अनुसूया अग्रवाल , जींद (हरियाणा) से पवन कुमार सिंगला , बेंगलुरु से प्रमिला अय्यर , प्रयागराज से आशुतोष गोयल , रानीगंज (प० बं०) से गणेश कुमार भरतिया ,
नई दिल्ली से आनंद मधुकर एवं अन्य लोग सम्मिलित थे ।

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सियार मतलब?

Posted: 01 Sep 2021 03:36 AM PDT

सियार मतलब?

          ---:भारतका एक ब्राह्मण.
           संजय कुमार मिश्र "अणु"
----------------------------------------
एक बात पुछता हूं,
सही कहना तुम मुझे-
कर खूब सोच विचार।
     ये बात कभी सुने हो तुम,
     कि जंगल में कोई सियार-
     किया हो अपने लिए शिकार।।
न अबतक सुने हो,
न कभी सुन हीं पाओगे।
इस जनम क्या?
गर अगली बार भी आओगे।
तो नहीं सुनोगे ऐसा समाचार।।
   उसमें नहीं है वो क्षमता,
   जो खुद शिकार कर पेट भरता-
   सियार मतलब?
   दूसरे का शिकार देख-
   जो टपकता हो लार।।
पर जंगल का राजा शेर,
लगा देता है मांस का ढेर
और उसी ढेर पर बैठकर
वह बनता है होशियार।।
    वह होता है लालची डरपोक,
    संघर्ष से वह खुदको देता रोक-
    हुआँ... हुआँ करता हर बार।।
----------------------------------------
वलिदाद,अरवल(बिहार)804402.
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सोशियालॉजी का विकास

Posted: 01 Sep 2021 03:27 AM PDT

सोशियालॉजी का विकास

प्रो रामेश्वर मिश्र पंकज
वैसे तो आधुनिक यूरोप अपनी हर विचारशैली के लिये ग्रीक दार्शनिकों का संदर्भ लेता है परंतु यह सदंर्भ लेने का काम 19वीं शताब्दी ईस्वी में ही शुरू किया गया।उसके पहले 17 वी शताब्दी ईस्वी तक तो ग्रीक दार्शनिकों का नाम लेना भी सभी चर्च में प्रतिबंधित ही था।
पर फिर हर नया विचार उनसे प्रेरित बताया जाने लगा।तदनुसार पुरानी हास्य कविताओं को सोशियालॉजी का उद्गम बताया जाता है। इसके साथ ही प्लेटो और अरस्तू ने 'सर्वे' जैसे शब्दों का जो प्रयोग किया है उसे भी इसके उद्गम का स्रोत बताया जाता है। 11वीं शताब्दी ईस्वी (1086 ईस्वी) में 'डूम्स डे बुक' छपी, उसे भी सोशियालॉजी का स्रोत बता दिया जाता है। इसी प्रकार चीनी विद्वान कनफ्यूशियस ने कतिपय सामाजिक व्यवहारों की चर्चा की तो उन्हें भी सोशियालॉजी का स्रोत बताया जाता है और ट्यूनिशिया के मुस्लिम विद्वान इब्न-खालदून को भी यही बताया जाता है यद्यपि वस्तुतः यूरोप में सोशियालॉजी की किसी भी पुस्तक में उनके किसी भी ग्रंथ या कथन का उद्धरण या संदर्भ नहीं दिया जाता, तब भी उनके लिखे 'मुकद्दमा' को समाजचिन्तन से जुड़ा मानते हैं।
1780 ईस्वी में फ्रेंच लेखक इमेनुअल जोसफ सीएस ने एक लेख में 'सोशियालॉजी' शब्द का पहली बार उल्लेख किया परंतु उस विषय में कोई विचार नहीं किया। तब भी उसे इस विषय के संदर्भ में याद किया जाता है। 1838 ईस्वी में आगस्त कोम्ते ने बाद में समाजशास्त्र शब्द को परिभाषित किया। पहले उन्होंने इसके लिये 'सोशल फिजिक्स' शब्द का प्रयोग किया और बाद में सोशियालॉजी का। कार्ल मार्क्स ने 19वीं शताब्दी ईस्वी में ही 'साइंस ऑफ सोसायटी' की चर्चा की।
कोम्ते ने फ्रेंच क्रांति को समाज की बुराईयांे से उपजे विक्षोभ से जोड़कर विश्लेषित किया और कहा कि 'पॉजिटिविज्म' के द्वारा इन बुराईयों का समाधान संभव है। कोम्ते के बाद अल्बर्ट स्पेन्सर और एमिले दुर्खाइम ने 19वीं शताब्दी में ही सोशियालॉजी पर चर्चा की। उनका लक्ष्य था मानव व्यवहार की व्याख्या वैज्ञानिक तर्कबुद्धि से करना। इसके लिये उन्होंने 1895 ईस्वी में 'दि रूल्स ऑफ सोशियालॉजिकल मेथड' नामक एक लेख लिखा। बाद में यूरोप में पॉजिटिविज्म के विरोध में कई विचारक उभरे। हीगल ने पॉजिटिविज्म को यांत्रिक विचार बताया। कार्ल मार्क्स ने भी पॉजिटिविज्म को रिजेक्ट कर दिया। अंत में वैचारिक घात-प्रतिघातों के साथ सोशियालॉजी का विकास होता रहा और 20वीं शताब्दी ईस्वी में ही पहली बार उसका एक स्वरूप स्पष्ट हुआ है। जो 1892 ईस्वी में शिकागो यूनिविर्सिटी में एक छोटे से विभाग के साथ शुरू हुआ था। दुर्खाइम ने सोशियालॉजी को
संस्थाओं की साइंस (साइंस ऑफ इन्स्टीच्यूशन्स) कहा। उन्होंने 1897 ईस्वी में कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट ईसाइयों द्वारा बड़े पैमाने पर की जा रही आत्महत्याओं का विश्लेषण करते हुये 'सुसाइडे' नामक एक मोनोग्राफ लिखा। हर्बर्ट स्पेन्सर ने 19वीं शताब्दी ईस्वी के अंत में 'सर्वाइवल ऑफ दि फिटेस्ट' (जो परिवेश में सर्वाधिक फिट हो, वही बच रहता है और बढ़ता है) का एक नारा दिया और इंग्लैंड तथा संयुक्त राज्य अमेरिका में 'कंजरवेटिव पॉलिटिक्स' के पक्ष में विचार व्यक्त किये।
20वीं शताब्दी ईस्वी में इसका भली-भांति विकास हुआ। विशेषकर जर्मन समाजशास्त्री एवं ईसाई पादरी मैक्सीमिलियन कार्ल एमिल वेबर ने आधुनिक पश्चिम यूरोपीय समाज के विकास की व्याख्या की जिसे सोशियालॉजी में महत्वपूर्ण योगदान माना जाता है। उन्होंने प्रोटेस्टेंट ईसाइयों के नीतिसंबंधी विचारों को पूंजीवाद की आत्मा बताते हुये 1905 ईस्वी में एक पुस्तक लिखी। उन्होंने ही पहली बार तर्कबुद्धि आधारित राष्ट्रराज्य के पश्चिमी यूरोप में विकास की भरपूर प्रशंसा करते हुये पूंजीवाद (कैपिटलिज्म) को प्रोटेस्टेंट ईसाइयत का फलितार्थ बताया और इसके पक्ष में अनेक लेख लिखे। जिसके विरूद्ध कार्ल मार्क्स सहित अनेक यूरोपीय लेखकों ने कई लेख लिखे और मार्क्स ने 'दस केपिटल' (पूंजी) नामक पुस्तक फ्रेंच भाषा में लिखी। जिसमें कैपिटलिज्म के विरोध में सोशलिज्म की अवधारणा प्रस्तुत करते हुये उस दिशा में विकास को ही ऐतिहासिक नियति बताया। इस प्रकार कैपिटलिज्म एवं सोशलिज्म दोनों ही ईसाई समाजों के भीतर विकसित हो रही प्रवृत्तियों के लिये प्रयुक्त समाजशास्त्रीय अवधारणायें हैं। वस्तुतः विश्व के गैर ईसाई समाजों से इन शब्दों का कोई संबंध नहीं है परंतु ईसाइयों के अधीन रहे सभी राष्ट्र राज्यों में इन शब्दों को सार्वभौम सत्य की तरह पढ़ाया और लिखा बोला तथा पढ़ा जाता है।
प्रो रामेश्वर मिश्र पंकज
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अपने बेटे पर भी अंगुली उठाइये

Posted: 01 Sep 2021 03:22 AM PDT

अपने बेटे पर भी अंगुली उठाइये

     गीता देवी रामपुर की एक दबंग एवं कड़क  महिला थी। उसके आगे उसके पति,परिवार एवं मोहल्ले के निवासियों की एक भी नहीं चलती थी।
      गीता देवी अपने बड़े बेटे महेश की शादी के लिए एक सुंदर,सुशील एवं कामकाजी लड़की की तालाश कर रही थी इसके लिये वह एक से एक लड़की को छाँट चुकी थी। किसी को यह कहकर छाँट देती थी कि इसकी,नाक,कान,आँख अच्छी नहीं है तो किसी को यह कहकर कि यह गोरी,लम्बी एवं सुडौल नहीं है । 
     देखते-देखते उसके बेटे महेश की उम्र अब 35 साल हो रही थी,जो गीता देवी की चिंता बढ़ा रही थी।
      गीता ने अपनी मंझली भौजाई रीता से कहा कि महेश के लिये कोई लड़की बताईये भाभी जी। रीता ने कहा कि हम अपने भाई आनन्द से बात करके देखते हैं । रीता ने अपने भाई आनन्द से कहा कि तुम्हारे नजर में महेश के लायक कोई लड़की है तो मुझे बताओ।
   कुछ दिन बाद आनन्द ने अपने किसी परिचित रिश्तेदार की एक सुंदर एवं सुशील लड़की सोनिया से महेश की शादी धूमधाम से करवा दी।
     महेश की शादी हो जाने के बाद गीता देवी ने अपनी भौजाई के भाई आनन्द को खुब खरी- खरी सुनायी कि लड़की बहुत दुबली-पतली है ।शादी में लड़की वाले ने झुमका नहीं दिया,बर्तन नहीं दिया।
      शादी के तीन चार साल बाद जब सोनिया माँ नहीं बनी तो गीता देवी ने अपनी बड़ी बहू सोनिया पर यह संगीन आरोप लगाये कि"यह  लड़की बाँझ है,माँ बनने लायक नहीं है । हम अपने बेटे महेश की दुसरी शादी करवा देंगे "।
   गीता देवी द्वारा सोनिया पर संगीन आरोप लगाये जाने से आनन्द काफी दुखित एवं व्यथित हुआ।
      आनन्द ने गीता देवी  को समझाते हुये कहा कि आप कैसे कह सकते हैं कि सोनिया बाँझ है,माँ बनने लायक नहीं है। अपने बेटे की स्पर्म जाँच कराये बिना यह कैसे कह सकते हैं कि हम अपने बेटे महेश कि दुसरी शादी करा देंगे। 
     आनन्द ने गीता देवी को समझाते हुये कहा कि क्या कभी आपने अपने बेटे पर अंगुली उठाया है यदि नहीं तो अपने बेटे पर भी अंगुली उठाइये। क्या कभी आपने अपने बेटे महेश का मेडिकल टेस्ट करवाया है कि इसके स्पर्म में एक बाप बनने लायक क्षमता है या नहीं। हम आज दोनों सोनिया एवं महेश का मेडिकल टेस्ट करवाते हैं तब यह बताते हैं कि किसमें कितनी क्षमता है और किसमें नहीं है।
   आनन्द ने जब दोनों का मेडिकल टेस्ट कराया तो पता चला कि लड़का महेश में ही कमी है लड़की सोनिया में कोई कमी नहीं है।
    इस मेडिकल जाँच के बाद गीता देवी एवं महेश के चेहरे का रंग उतर चुका था। दोनों के मुख से एक भी शब्द नहीं निकल रहे थे। 
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         अरविन्द अकेला
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कुश : सुख समृद्धि का द्योतक

Posted: 01 Sep 2021 03:19 AM PDT

कुश : सुख समृद्धि का द्योतक 

सत्येन्द्र कुमार पाठक 
वेदों तथा स्मृतियों और पुरणो में पौधों , वृक्षों टाटा कुश का महत्त्वपूर्ण स्थान दिया गया है । कुश शांति और सुख-समृद्धि का वास होता है। सनातन धर्म संस्कृति एवं पितृपक्ष में श्राद्ध के दौरान कुशा का उपयोग जरूरी है । कुशा की अंगूठी बनाकर तीसरी उंगली में पहनी जाती है। वेदों और पुराणों में कुश घास को पवित्र माना गया है। कुश को पवित्री , कुशा, दर्भ ,  डाभ कहा गया है। मत्स्य पुराण के अनुसार भगवान विष्णु के वराह अवतार के शरीर से कुशा की उत्पत्ति  है।  कुश का  उपयोग से मानसिक और शारीरिक पवित्रता होती है। पूजा-पाठ के लिए जगह पवित्र करने के लिए कुश से जल छिड़का जाता है। ग्रहण काल के दौरान खाना खराब न हो और पवित्र बना रहे, इसलिए ऐसा किया जाता है। तमिलनाडु की शास्त्र  एकेडमी की रिसर्च के अनुसार कुश  नेचुरल प्रिजर्वेटिव के कारण  उपयोग दवाईयों में  किया जाता है।  अथर्ववेद, मत्स्य पुराण और महाभारत में कुशा का उल्लेख है ।अथर्ववेद में कुश  उपयोग से गुस्से पर कंट्रोल और  अशुभ निवारक औषधि कहा गया है। चाणक्य के अनुसार कुश का तेल निकाला जाता था और उसका उपयोग दवाई के तौर पर किया जाता था। मत्स्य पुराण में उल्लेख है कि कुश घास भगवान विष्णु के शरीर से बनी होने के कारण पवित्र मानी गई है।मत्स्य पुराण की कथा के अनुसार भगवान विष्णु ने वराह अवतार लेकर हिरण्याक्ष का वध कर के पृथ्वी को स्थापित किया। उसके बाद अपने शरीर पर लगे पानी को झाड़ा तब उनके शरीर से बाल पृथ्वी पर गिरे और कुशा के रूप में बदल गए थे ।महाभारत  के अनुसार, गरुड़देव स्वर्ग से अमृत कलश लेकर आए तब उन्होंने वह कलश थोड़ी देर के लिए कुशा पर रख दिया। कुशा पर अमृत कलश रखे जाने से कुशा को पवित्र माना जाने लगा। महाभारत के आदि पर्व के अनुसार राहु की महादशा में कुशा वाले पानी से नहाना चाहिए।  राहु के अशुभ प्रभाव से राहत मिलती है। कर्ण  अपने पितरों का श्राद्ध में कुश का उपयोग किया था । कुश पहनकर किया गया श्राद्ध पितरों को तृप्त करता है।ऋग्वेद में बताया गया है कि अनुष्ठान और पूजा-पाठ के दौरान कुश के आसन का इस्तेमाल होता था। बौद्ध ग्रंथों के अनुसार बोधि वृक्ष के नीचे बुद्ध ने कुश के आसान पर बैठकर तप किया और ज्ञान प्राप्त किया। श्री कृष्ण ने कुश के आसन को ध्यान के लिए आदर्श माना है। शरीर की ऊर्जा को जमीन में जाने से रोकने का कार्य एवं पूजा-पाठ और ध्यान के दौरान  शरीर में ऊर्जा पैदा होती है। कुश के आसन पर बैठकर पूजा-पाठ और ध्यान किया जाए तो वो उर्जा पैर के जरिये जमीन में नहीं जा पाती है। इसके अलावा धार्मिक कामों में कुश की अंगूठी बनाकर तीसरी उंगली में पहनने का विधान है। आध्यात्मिक शक्ति पुंज दूसरी उंगलियों में न जाए। रिंग फिंगर यानी अनामिका के नीचे सूर्य का स्थान होने के कारण यह सूर्य की उंगली है। सूर्य से हमें जीवनी शक्ति, तेज और यश मिलता है। दूसरा कारण इस ऊर्जा को पृथ्वी में जाने से रोकना भी है। कर्मकांड के दौरान यदि भूल से हाथ जमीन पर लग जाए, तो बीच में कुशा आ जाएगी और ऊर्जा की रक्षा होगी। इसलिए कुशा की अंगूठी बनाकर हाथ में पहनी जाती है ।
कुश की पत्तियाँ नुकीली, तीखी और कड़ी होती है। धार्मिक दृष्टि से यह बहुत पवित्र समझा जाता है और इसकी चटाई पर राजा लोग भी सोते थे। वैदिक साहित्य में इसका अनेक स्थलों पर उल्लेख है। अर्थवेद में इसे क्रोधशामक और अशुभनिवारक बताया गया है। आज भी नित्यनैमित्तिक धार्मिक कृत्यों और श्राद्ध आदि कर्मों में कुश का उपयोग होता है। कुश से तेल निकाला जाता था, ऐसा कौटिल्य के उल्लेख से ज्ञात होता है। भावप्रकाश के मतानुसार कुश त्रिदोषघ्न और शैत्य-गुण-विशिष्ट है। उसकी जड़ से मूत्रकृच्छ, अश्मरी, तृष्णा, वस्ति और प्रदर रोग को लाभ होता है। गरुड़ जी अपनी माता की दासत्व से मुक्ति के लिए स्वर्ग से अमृत कलश लाये थे, उसको उन्होंने कुशों पर रखा था। अमृत का संसर्ग होने से कुश को पवित्री कहा जाता है(महाभारत आदिपर्व के अध्याय 23 में जब जातक के जन्म कुंडली या लग्न कुण्डली में राहु महादशा की कुश के पानी मे ड़ालकर स्नान करने से राहु की कृपा प्राप्त होती है ।पितृपक्ष में लोग अपने पूर्वजों को प्रसन्न करने के लिए उन्हें तर्पण और भोग लगाते हैं। पितृपक्ष में पितरों को बिना तर्पण दिए श्राद्ध कर्म पूरा नहीं होता है। पितरों को तर्पण देने में कुश का विशेष महत्व होता है। कुशा एक प्रकार की घास होती है  शास्त्रों में कुश को बहुत ही पवित्र माना गया है। हिंदू धर्म में किसी भी शुभ कार्य या धार्मिक अनुष्ठान को संपन्न करते समय कुशा का प्रयोग जरूर किया जाता है।पितृपक्ष में किए जाने वाले श्राद्ध में तिल और कुश की महत्ता इस मंत्र के द्वारा बताई गई है। जिसमें भगवान विष्णु के पसीने से तील और शरीर के रोम से कुश  उत्पन्न हुए हैं। कुश का मूल ब्रह्मा, मध्य विष्णु और अग्रभाग शिव का जानना चाहिए। ये देव कुश में प्रतिष्ठित माने गए हैं। ब्राह्मण, मंत्र, कुश, अग्नि और तुलसी बार-बार प्रयोग किया जाता है ।
दर्भ मूले स्थितो ब्रह्मा मध्ये देवो जनार्दनः। दर्भाग्रे शंकरं विद्यात त्रयो देवाः कुशे स्मृताः।।
विप्रा मन्त्राः कुशा वह्निस्तुलसी च खगेश्वर। नैते निर्माल्यताम क्रियमाणाः पुनः पुनः।।
तुलसी ब्राह्मणा गावो विष्णुरेकाद्शी खग। पञ्च प्रवहणान्येव भवाब्धौ मज्ज्ताम न्रिणाम।।
विष्णु एकादशी गीता तुलसी विप्रधनेवः। आसारे दुर्ग संसारे षट्पदी मुक्तिदायनी।।
 कुश को अनुष्ठान करते समय उसे अंगूठी की भांति तैयार कर हथेली की बीच वाली उंगली में पहनी जाती है। अंगुठी के अलावा कुश से पवित्र जल का छिडकाव भी किया जाता है। मानसिक और शारीरिक पवित्रता के लिए कुश का उपयोग पूजा में बहुत ही जरूरी होता है। कुश का प्रयोग ग्रहण के दौरान भी उपयोग में लाया जाता है। ग्रहण से पहले और ग्रहण के दौरान खाने-पीने की चीजों में कुश डाल कर रख दिया जाता है। ताकि खाने की चीजों की पवित्रता और उसमें किसी भी तरह के कीटाणु प्रवेश न कर सके। कुश घास को लेकर रिसर्च में भी पाया गया है कि कुश घास प्राकृतिक रूप से छोटे-छोटे कीटाणुओं को दूर करने में बहुत ही सहायक होती है। कुश एक तरह से प्यूरिफिकेशन का काम करता है। पानी में कुश रखने से छोटे- छोटे सूक्ष्म कीटाणु  कुश घास के समीप एकत्रित हो जाते है ।सनातन धर्म में धार्मिक अनुष्ठान में कुश निर्मित पवित्री धारण करने का विधान है।  इस लेख में हम कुश की उत्पत्ति एवं उसके महत्व के बारें मैं जानेंगे। शास्त्रों में दस प्रकार के कुशों का वर्णन मिलता है-कुशा: काशा यवा दूर्वा उशीराच्छ सकुन्दका:। गोधूमा ब्राह्मयो मौन्जा दश दर्भा: सबल्वजा:।। मत्स्य पुराण(22/89) में ऐसा वर्णित है की  कुशा भगवान् विष्णु के शरीर से उत्पन्न से उत्पन्न हुई है , इसी कारणवश कुश को अत्यन्त पवित्र हैं। उसमे उल्लेखित एक कथा के अनुसार जब भगवान् श्रीहरि ने वराह अवतार धारण किया, तब हिरण्याक्ष का वध करने के बाद जब पृथ्वी को जल से बाहर निकाला और उसको अपने निर्धारित स्थान पर स्थापित किया, उसके बाद वराह भगवान् ने भी पशु प्रवृत्ति के अनुसार अपने शरीर पर लगे जल को झाड़ा तब उंके शरीर के रोम (बाल) पृथ्वी पर गिरे और कुश के रूप में बदल गये। कुश की उत्त्पत्ति को ले करके एक मान्यता यह भी है कि जब सीता जी पृथ्वी में समाई थीं, तो श्री राम जी ने जल्दी से दौड़ कर उन्हें रोकने का प्रयास किया, किन्तु उनके हाथ में केवल सीता जी के केश ही आ पाए। यह केश  ही कुशा के रूप में परिणत हो गई। शास्त्र में कहा गया है कि,"दर्भो य उग्र औषधिस्तं ते बध्नामि आयुषे",अर्थात कुशा या दर्भ तत्काल फल देने वाली औषधि है,उसे आयु वृद्धि के निमित्त धारण करना चाहिये।मनुष्य दर्भ धारण कर कल्याण युक्त कार्य करता है,उसके बाल नहीं झड़ते और ह्रदय में आघात नहीं पहुँचता है। दर्भ दैवी गुणों से उत्पन्न एवं युक्त है,इसलिए दैवी कार्यों में दैवी वातावरण की प्राप्ति कराता है। दायें हाथ में दो कुशा से निर्मित पवित्री धारण करनी चाहिये। बायें हाथ में तीन कुशा से निर्मित पवित्री धारण करनी चाहिये। कुशा यज्ञोपवीत में,एक कुशा शिखा में और दोनो पावों के नीचे कुशा रखना चाहिये।कुशा ऋतुओं से सूर्य चन्द्रमा पृथ्वी और अंतरिक्ष से होने वाले गर्मी सर्दी आदि के प्रभाव से हाथ,पाँव और मस्तिष्क की रक्षा करता है। वैज्ञानिक भाषा में कुशा को विद्युत् प्रवाह के संक्रमण में बाधक बताया गया है,अर्थात यह बाहरी विद्युत् प्रवाह से शरीर की रक्षा करता है। शरीर के पञ्च भागों अर्थात दोनों हाथ,पाँव और मस्तिष्क की विद्युत्  प्रभाव से रक्षा करता है ।सनातन धर्म में धार्मिक अनुष्ठान में कुश निर्मित पवित्री धारण करने का विधान है। 
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महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग : जीवन का चतुर्दिक विकास

Posted: 01 Sep 2021 03:14 AM PDT

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग : जीवन का चतुर्दिक विकास 

सत्येन्द्र कुमार पाठक 
भारतीय संस्कृति और सभ्यता मानवीय जीवन के लिए चतुर्दिक विकास का स्रोत है । पुरणों , वेदों तथा उपनिषदों में भगवान शिव के ज्योतिर्लिंगों का महत्वपूर्ण उल्लेख किया गया है । क्षिप्रा नदी के किनारे उज्जैन का महाकाल इंसान का आरंभ और अंत का रूप है ।शिव पुराण कोटिरुद्रसंहिता अध्याय 1 , 15, 16 के अनुसार मालवा प्रदेश की राजधानी अवंतिका में महाकाल है । अवंति में ब्राह्मणों द्वारा अग्नि की स्थापना कर अग्निहोत्र और भगवान शिव की पार्थिव शिवलिंग बना कर उपासना करते थे । वेद प्रिय ब्राह्मण वेदप्रिय ब्राह्मण के पुत्रों में देवप्रिय ,प्रियमेघा ,सुकृत और सुब्रत के प्रभाव से अवंति ब्रह्मतेज से परिपूर्ण हो गयी थी ।ब्रह्मतेज से परिपूर्ण अवनति पर रत्नमाला पर्वत पर असुरराज दूषण ने ब्रह्मा जी से वर प्राप्त करने के बाद शिब भक्त पर चढ़ाई कर दी । भगवान शिव द्वारा अधर्मी असुर राज दूषण सहित असुरों को ब्राह्मणों द्वारा स्थापित एवं पूजित पार्थिव शिवलिंग से प्रकट हो कर असुरों को भष्म कर अवंति सुरक्षित किया  । पार्थिव शिव लिंग के स्थान से भगवान शिव की बड़ी आवाज से गड्डा होने पर भगवान शिव ज्योतिर्लिंग प्रगट हो गए थे और असुरों , दैत्यों को भष्म कर अवंति की रक्षा की गई । अवनति का राजा चंद्रसेन महाकाल का भक्त और उपासक थे ।शिव पार्षदों में प्रधान मणिभद्र चंद्रसेन के मित्र थे । भगवान शिव का ज्योतिर्लिंग महाकाल के नाम से विख्यात है । से कर  मध्यप्रदेश राज्य के उज्जैन नगर में स्थित, महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग   मंदिर है। पुराणों, महाभारत और कालिदास और महाकवियों की रचनाओं में महाकाल मंदिर का मनोहर वर्णन मिलता है। स्वयंभू, भव्य और दक्षिणमुखी होने के कारण महाकालेश्वर महादेव की अत्यन्त पुण्यदायी  है। महाकवि कालिदास ने मेघदूत में उज्जयिनी की चर्चा करते हुए  मंदिर की प्रशंसा की है।  १२३५ ई. में इल्तुत्मिश के द्वारा ममहाकाल मंदिर का विध्वंस किए जाने के बाद से यहां के शासक ने महाकालेश्वर मंदिर के जीर्णोद्धार और सौन्दर्यीकरण किया है । उज्जैन में सन् ११०७ से १७२८ ई. तक यवनों का शासनकाल में अवंति की लगभग ४५०० वर्षों में स्थापित हिन्दुओं की प्राचीन धार्मिक परंपराएं प्राय: नष्ट हो चुकी थी। १६९० ई. में मराठों ने मालवा क्षेत्र में आक्रमण कर दिया और २९ नवंबर १७२८ को मराठा शासकों ने मालवा क्षेत्र में  अधिपत्य स्थापित कर लिया। इसके बाद उज्जैन का खोया हुआ गौरव पुनः लौटा और सन १७३१ से १८०९ तक यह नगरी मालवा की राजधानी बनी थी ।, महाकालेश्वर मंदिर का पुनिर्नर्माण और ज्योतिर्लिंग की पुनर्प्रतिष्ठा तथा सिंहस्थ पर्व स्नान की स्थापना हुई  थी। राजा भोज ने महाकालेश्वर मंदिर का विस्तार कराया है ।
मंदिर एक परकोटे के भीतर स्थित है। गर्भगृह तक पहुँचने के लिए एक सीढ़ीदार रास्ता है। इसके ठीक उपर एक दूसरा कक्ष है जिसमें ओंकारेश्वर शिवलिंग स्थापित है। मंदिर का क्षेत्रफल १०.७७ x १०.७७ वर्गमीटर और ऊंचाई २८.७१ मीटर है। वक्र: पंथा यदपि भवन प्रस्थिताचोत्तराशाम, सौधोत्संग प्रणयोविमखोमास्म भरूज्जयिन्या:। विद्युद्दामेस्फरित चकितैस्त्र पौराड़गनानाम, लीलापांगैर्यदि न रमते लोचननैर्विंचितोसि॥ - कालिदास । शिप्रा नदी के किनारे बसे और मंदिरों से उज्जैन  नगरी को सदियों से महाकाल की नगरी के तौर पर जाना जाता है।उज्जयिनी और अवन्तिका से नगरी प्राचीनकाल में जानी जाती थी। स्कन्दपुराण के अवन्तिखंड में अवन्ति प्रदेश का उल्लेख है। उज्जैन के अंगारेश्वर मंदिर को मंगल गृह का जन्मस्थान माना जाता है, और कर्क रेखा  गुजरती है। मध्य प्रदेश का उज्जैन एक प्राचीनतम शहर  शिप्रा नदी के किनारे स्थित और शिवरात्रि, कुंभ और अर्ध कुंभ  प्रमुख मेलों के लिए प्रसिद्ध है। प्राचीनकाल में उज्जैन को उज्जयिनी के नाम से  जाना जाता है "उज्जयिनी" का अर्थ  गौरवशाली विजेता है ।   उज्जैन नगरी को  अवंतिका ,  कनकश्रृंगा , कुशस्थली ,  भोगस्थली , अमरावती नामों से जाना गया है ।   उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में महाकाल के रूप में विराजमान और  दक्षिणमुखी है।  दक्षिण दिशा मृत्यु यानी काल की दिशा है और काल को वश में करने वाले महाकाल हैं।दक्षिण दिशा का स्वामी भगवान यमराज है। दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग के दर्शन  से जीवन स्वर्ग तथा मृत्यु के उपरांत  यमराज के दंड से मुक्ति पाता है। महाकालेश्वर द्वादश ज्योतिर्लिंगों में दक्षिणमुखी होने के कारण प्रमुख स्थान रखता है, महाकालेश्वर मंदिर में अनेकों मंत्र जप जल अभिषेक एवं पूजा होती है । महाकालेश्वर मंदिर एक विशाल परिसर में स्थित है ।मंदिर में प्रवेश करने के लिए मुख्य द्वार से गर्भगृह तक की दूरी तय करनी पड़ती है। 
महाकाल की भूमि उज्जैन को लेकर रहस्य मौजूद हैं।  उज्जैन पूरे आकाश का मध्य स्थान आकाश और  पृथ्वी का  केंद्र  है ।  महाकाल की महिमा का वर्णन किया  गया है – आकाशे तारकं लिंगं पाताले हाटकेश्वरम् ।भूलोके च महाकालो लिंड्गत्रय नमोस्तु ते ॥ आकाश में तारक लिंग, पाताल में हाटकेश्वर-लिंग और पृथ्वी पर महाकालेश्वर ही मान्य शिवलिंग है।शास्त्रों के अनुसार महाकाल पृथ्वी लोक के अधिपति हैं, साथ ही तीनों लोकों के और सम्पूर्ण जगत के अधिष्ठाता  है।   पुराणों में कालखंड, काल सीमा और काल विभाजन जन्म लेता है और उन्हीं से इसका निर्धारण होता है। इसका अर्थ ये है कि उज्जैन से ही समय का चक्र चलता है, पूरे ब्रह्माण्ड में सभी चक्र यहीं से चलते हैं ।
शिव महापुराण के 22वें अध्याय के अनुसार दूषण नमक एक दैत्य से भक्तो की रक्षा करने के लिए भगवान शिव ज्योति के रूप में उज्जैन में प्रकट हुए थे । दूषण संसार का काल था और शिव शंकर ने उसे खत्म कर दिया इसलिए शंकर भोलेनाथ महाकाल के नाम से पूज्य हुए। अतः दुष्ट दूषण का वध करने के पश्चात् भगवान शिव कहलाये कालों के काल महाकाल उज्जैन में महाकाल का वास होने से पुराने साहित्य में उज्जैन को महाकालपुरम भी कहा गया है। उज्जैन में एक कहावत प्रसिद्ध है "अकाल मृत्यु वो मरे जो काम करे चांडाल का, काल भी उसका क्या बिगाड़े जो भक्त हो महाकाल का" ।पुराणों में मोक्ष देनेवाली यानी जीवन और मृत्यु के चक्र से छुटकारा दिलाने वाली जिस सप्तनगरी का ज़िक्र है और उन सात नगरों में एक नाम उज्जैन का भी है। जबकि दूसरी तरफ महादेव का वो आयाम में  मुक्ति की ओर ले जाता है। उज्जैन में कालभैरव व गढ़कालिका  हैं । काल यानी समय स्वामी  महाकाल है । उज्जैन में भस्म से स्नान करनेवाले महाकाल की विशिष्ट आराधना  होती है। आदिदेव शंकर को भस्म रमाना बेहद पसंद है, इसके पीछे का राज़ भी बेहद गहरा है। एक तरफ महाकाल रूप में अगर शिव समय के स्वामी हैं, तो काल भैरव के रूप में वो समय के विनाशक हैं। इन्ही सब के आसपस वो रहस्य छिपा है जिसमें पता चलता है कि महादेव को राख या भस्म क्यों पसंद है, क्यों उनकी आराधना में भस्म का स्नान या भस्म का तिलक इस्तेमाल होता है। नाथ संप्रदाय  मच्छेन्द्र नाथ और गोरखनाथ से होते हुए नवनाथ के रूप में प्रचलित हुआ। नाथ  संप्रदाय के साधक अक्सर भस्म रमाये मिलते हैं। शिव की पसंदीदा भस्म  सन्यासियों के लिए प्रसाद और वो अपनी जटाओं से लेकर पूरे शरीर में धुणे की भस्म लगाए मिलते हैं। भगवान शंकर की पहली पत्नी सती के पिता ने भगवान शंकर का अपमान किया जिससे आहत होकर सती यज्ञ के हवनकुंड में कूद गईं, जिससे शिव क्रोधित हो गए थे । शिव सती के मृत शरीर को लेकर पूरे ब्रह्माण्ड में घूमने लगे। ऐसा लगा कि शिव के क्रोध से ब्रह्माण्ड का अस्तित्व खतरे में है।  श्री हरि विष्णु ने शिव को शांत करने के लिए सती को भस्म में बदल दिया और शिव ने अपनी पत्नी को हमेशा अपने साथ रमा लेने के लिए भस्म को अपने तन पर मल लिया है ।महादेव की पत्नी सती को लेकर  श्री हरि विष्णु ने देवी सती के शरीर को भस्म में नहीं बदला, बल्कि उसे छिन्न भिन्न कर दिया।  पृथ्वी पर 51 जगहों पर उनके अंग गिरे, इन्हीं स्थानों पर शक्तिपीठों की स्थापना हुई। जिसमें से एक शक्तिपीठ उज्जैन में भी है। जिसे वर्तमान काल में हरिसिद्धी माता के मंदिर के नाम से जाना जाता है।शिव अपने शरीर पर चिता की राख मलते हैं और संदेश देते हैं कि आखिर में सब कुछ राख हो जाना है, ऐसे में सांसारिक चीज़ों को लेकर मोह-माया के वश में नही  रहें और भस्म की तरह बनकर स्वयं को प्रभु को समर्पित कर दें। भस्म विध्वंस का भी प्रतीक है। क्योंकि ब्रह्मा अगर सृष्टि के निर्माणकर्ता हैं और विष्णु पालनकर्ता तो महेश को सृष्टि का विनाशक माना जाता है। मान्यता के अनुसार जब सृष्टि में नकारात्मकता बहुत ज़्यादा बढ़ जाती है तो शिव संहारक के रूप में आते हैं और सब कुछ विध्वंस कर डालते हैं। इससे एक अन्य मान्यता ये भी है कि भस्म उस विध्वंस का प्रतीक है जिसकी याद शिव सबको दिलाते हैं कि सभी सद्कर्म करें अन्यथा अंत में वो सब राख कर देंगे। भस्म से शिव का ये रिश्ता सिर्फ मान्यताओं में है, क्योंकि इसका रहस्य आज भी बरकरार है, हालांकि महाकाल को उज्जैन नगरी का राजा मानते हैं और इसे भी लेकर एक ऐसा राज़ है जिसे आज भी अवंतिका के लोग महसूस करते हैं । विक्रम- बेताल और सिंहासन बत्तीसी की प्रचलित कथा में भी उज्जैन के राजा विक्रमादित्य से जुड़े ऐसे कई रहस्यों को इस नगरी ने समेट रखा है। कहा जाता है कि राजा विक्रमादित्य ने जब से 32 बोलने वाली पुतलियों से जड़े हुए अपने सिंहासन को छोड़ा था ।उनके शासन के बाद से यहां कोई भी राजा रात में रुक नहीं सकता।उज्जैन के  राजा और  कालों के काल महाकाल  का नही आरम्भ और  नही अंत है । 
महाकाल स्तोत्रं - ॐ महाकाल महाकाय महाकाल जगत्पत। महाकाल महायोगिन महाकाल नमोस्तुते।। महाकाल महादेव महाकाल महा प्रभो। महाकाल महारुद्र महाकाल नमोस्तुते।।
अवन्तिकायां विहितावतारं , मुक्ति प्रदानाय च सज्जनानाम्‌ ,अकालमृत्योः परिरक्षणार्थं ,वन्दे महाकाल महासुरेशम॥ अवन्तिका नगरी (उज्जैन) में संतजनों को मोक्ष प्रदान करने के लिए भगवान  अवतार धारण किया है, अकाल मृत्यु से बचने हेतु मैं उन 'महाकाल' नाम से सुप्रतिष्ठित भगवान आशुतोष शंकर की आराधना, अर्चना, उपासना, वंदना करता हूँ। स्कंद पुराण के अनुसार चारों वेदों के रचियता ब्रह्मा ने जब पांचवें वेद की रचना करने का फैसला किया तो परेशान देवता उन्हें रोकने के लिए महादेव की शरण में गए। उनका मानना था कि सृष्टि के लिए पांचवे वेद की रचना ठीक नहीं है, लेकिन ब्रह्मा जी ने महादेव की  बात नहीं मानी। भगवान शिव क्रोधित हो गए। गुस्से के कारण उनके तीसरे नेत्र से एक ज्वाला प्रकट हुई। इस ज्योति ने कालभैरव का रौद्ररूप धारण किया, और ब्रह्माजी के पांचवे सिर को धड़ से अलग कर दिया। कालभैरव ने ब्रह्माजी का घमंड तो दूर कर दिया लेकिन उन पर ब्रह्महत्या का दोष लग गया. इस दोष से मुक्ति पाने के लिए भैरव दर दर भटके लेकिन उन्हें मुक्ति नहीं मिली. फिर उन्होंने अपने आराध्य शिव की आराधना की। शिव ने उन्हें शिप्रा नदी में स्नान कर तपस्या करने को कहा. ऐसा करने पर कालभैरव को दोष से मुक्ति मिली और भगवान शिव  सदा के लिए उज्जैन में ही विराजमान हो गए है ।कालभैरव को ग्रहों की बाधाएं दूर करने के लिए ख्याति  है । भगवान माहकाल भक्तों के रक्षक और दुष्टों के संहारकर्ता है । भगवान शिव ने अवनति का राजा चंद्रसेन की रक्षा के लिये भक्त शिरोमणि हनुमान जी तत्पर रहने के लिए भेजे थे । महाकाल दुष्टों का सर्वथा हनन और भक्तों का आश्रयदाता है ।
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चेतन शक्ति और भक्ति आश्रयदाता त्र्यम्बकेश्वर

Posted: 01 Sep 2021 03:13 AM PDT

चेतन शक्ति और भक्ति आश्रयदाता त्र्यम्बकेश्वर

                  सत्येन्द्र कुमार पाठक 
 भारतीय संस्कृति और पुरणों के अनुसार त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग का दर्शन और महामृत्जुंजय की उपासना का महत्वपुर्ण उल्लेख है  शिव पुराण के कोटिरुद्रसंहिता का अध्याय 24 , 25 , 26  के अनुसार ऋषि गौतम और अहिल्या के तप करने के कारण भगवान शिव  , ब्रह्मा और विष्णु के रूप में त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिङ्ग स्थापित हुए थे । ऋषि गौतम द्वारा अपने ऊपर दुष्टों द्वारा लगाए गए मिथ्या दोष गौ हत्या के प्रयाश्चित करने के लिये ब्रह्मगिरि की 101 बार परिक्रमा , 03 बार पृथिवी की परिक्रमा , एक करोड़ पार्थिव लिंग की पूजा तथा 11 बार गंगा जल से स्नान कर भगवान शिव की आराधना की थी ।पत्नी अहिल्या सहित ऋषि गौतम की उपासना से संतुष्ट हो कर भगवान शिव और शिव ऋषि गौतम दर्शन , गोदावरी गंगा का प्रकट जिसे गौतमी गंगा  , वृस्पति के सिह राशि आर् गोदावरी का प्रकट होने और भगवान शिव का त्रयम्बक शिवलिंग के रूप में प्रकट हो कर आशीर्वचन पप्राप्त किये थे । महाराष्ट्र राज्य का  नासिक जिले में त्रयंबक के ब्रह्मगिरि से उद्गम गोदावरी नदी के किनारे त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थापित  हैं। यहां के निकटवर्ती ब्रह्म गिरि नामक पर्वत से गोदावरी नदी का उद्गम है। गौतम ऋषि तथा गोदावरी के उपासना से प्रसन्न हो कर गौतम ऋषि तथा गोदावरी की उपासना स्थल पर भगवान शिव निवास  करने के कारण  त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग से विख्यात हुए है । त्र्यम्बकेश्वर मंदिर के गर्भगृह   में  ब्रह्मा, विष्णु और शिव लिंग के रूप में  देवों के प्रतीक  हैं। शिवपुराण के अनुसार ब्रह्मगिरि पर्वत पर जाने के लिये सात सौ सीढ़ियों पर चढ़ने के बाद 'रामकुण्ड' और 'लक्षमण कुण्ड' मिलने के बाद और ब्रह्मगिरि शिखर के ऊपर  गोमुख से प्रवाहित होने वाली भगवती गोदावरी के दर्शन होते हैं। त्र्यंबकेश्‍वर ज्योर्तिलिंग मंदिर  में ब्रह्मा, विष्‍णु और महेश तीनों ही विराजित होने के कारण ज्‍योतिर्लिंग की सबसे बड़ी विशेषता है। गोदावरी नदी के किनारे स्थित त्र्यंबकेश्‍वर मंदिर काले पत्‍थरों से निर्मित होने के कारण मंदिर की  स्‍थापत्‍य अद्भुत है। मंदिर के पंचक्रोशी में कालसर्प शांति, त्रिपिंडी विधि और नारायण नागबलि की पूजा संपन्‍न होती है।  प्राचीन मंदिर का पुनर्निर्माण नाना साहब पेशवा द्वारा  1755 में प्रारम्भ किया गया और 1786 में पूर्ण किया गया था । त्र्यंबकेश्वर मंदिर की भव्य इमारत सिंधु-आर्य शैली का उत्कृष्ट नमूना है। मंदिर के अंदर गर्भगृह में प्रवेश करने के बाद शिवलिंग की केवल आर्घा दिखाई देती है, लिंग नहीं। गौर से देखने पर अर्घा के अंदर एक-एक इंच के तीन लिंग दिखाई देते हैं। इन लिंगों को त्रिदेव- ब्रह्मा-विष्णु और महेश का अवतार माना जाता है। भोर के समय होने वाली पूजा के बाद इस अर्घा पर चाँदी का पंचमुखी मुकुट चढ़ा दिया जाता है।त्र्यंबकेश्वर मंदिर और गाँव ब्रह्मगिरि नामक पहाड़ी की तलहटी में स्थित है। इस गिरि को शिव का साक्षात रूप माना जाता है। ब्रह्म गिरि  पर्वत पर पवित्र गोदावरी नदी का उद्गमस्थल है। 
   त्रयम्बक में  अपने ऊपर लगे गोहत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए गौतम ऋषि ने कठोर तप कर शिव से गंगा को यहाँ अवतरित करने का वरदान माँगा। फलस्वरूप दक्षिण की गंगा  गोदावरी नदी का उद्गम हुआ।गोदावरी के उद्गम के साथ ही गौतम ऋषि के अनुनय-विनय के उपरांत शिवजी ने  मंदिर में विराजमान होना स्वीकार कर लिया। तीन नेत्रों वाले शिवशंभु के त्रयम्बक स्थल पर विराजमान होने के कारण गौतम ऋषि की तपोभूमि को त्र्यंबक (तीन नेत्रों वाले) कहा जाने लगा है । त्र्यम्बक  का राजा भगवान त्र्यम्बकेश्वर  है । प्रत्येक सोमवार को त्रयम्बक का राजा भगवान  त्र्यंबकेश्वर  अपनी प्रजा तथा भक्तों  की रक्षा करते  हैं। महर्षि गौतम के तपोवन में रहने वाले ब्राह्मणों की पत्नियाँ किसी बात पर उनकी पत्नी अहिल्या से नाराज हो गईं। उन्होंने अपने पतियों को ऋषि गौतम का अपमान करने के लिए प्रेरित किया। उन ब्राह्मणों ने इसके निमित्त भगवान्‌ श्रीगणेशजी की आराधना की। उनकी आराधना से प्रसन्न हो गणेशजी ने प्रकट होकर उनसे वर माँगने को कहा उन ब्राह्मणों ने कहा- 'प्रभो! यदि आप हम पर प्रसन्न हैं । किसी प्रकार ऋषि गौतम को आश्रम से बाहर निकाल दें।' उनकी यह बात सुनकर गणेशजी ने उन्हें ऐसा वर न माँगने के लिए समझाया। किंतु वे अपने आग्रह पर अटल रहे।अंततः गणेशजी को विवश होकर उनकी बात माननी पड़ी। अपने भक्तों का मन रखने के लिए वे एक दुर्बल गाय का रूप धारण करके ऋषि गौतम के खेत में जाकर रहने लगे। गाय को फसल चरते देखकर ऋषि बड़ी नरमी के साथ हाथ में तृण लेकर उसे हाँकने के लिए लपके। उन तृणों का स्पर्श होते ही वह गाय वहीं मरकर गिर पड़ी। अब तो बड़ा हाहाकार मचा। सारे ब्राह्मण एकत्र हो गो-हत्यारा कहकर ऋषि गौतम की भर्त्सना करने लगे। ऋषि गौतम इस घटना से बहुत आश्चर्यचकित और दुःखी थे। अब उन सारे ब्राह्मणों ने कहा कि तुम्हें यह आश्रम छोड़कर अन्यत्र कहीं दूर चले जाना चाहिए। गो-हत्यारे के निकट रहने से हमें भी पाप लगेगा। विवश होकर ऋषि गौतम अपनी पत्नी अहिल्या के साथ वहाँ से एक कोस दूर जाकर रहने लगे। किंतु उन ब्राह्मणों ने वहाँ भी उनका रहना दूभर कर दिया। वे कहने लगे- 'गो-हत्या के कारण तुम्हें अब वेद-पाठ और यज्ञादि के कार्य करने का कोई अधिकार नहीं रह गया।' अत्यंत अनुनय भाव से ऋषि गौतम ने उन ब्राह्मणों से प्रार्थना की कि आप लोग मेरे प्रायश्चित और उद्धार का कोई उपाय बताएँ।तब उन्होंने कहा- 'गौतम! तुम अपने पाप को सर्वत्र सबको बताते हुए तीन बार पूरी पृथ्वी की परिक्रमा करो। फिर लौटकर यहाँ एक महीने तक व्रत करो। इसके बाद 'ब्रह्मगिरी' की 101 परिक्रमा करने के बाद तुम्हारी शुद्धि होगी अथवा यहाँ गंगाजी को लाकर उनके जल से स्नान करके एक करोड़ पार्थिव शिवलिंगों से शिवजी की आराधना करो। इसके बाद पुनः गंगाजी में स्नान करके इस ब्रह्मगीरि की 11 बार परिक्रमा करो। फिर सौ घड़ों के पवित्र जल से पार्थिव शिवलिंगों को स्नान कराने से तुम्हारा उद्धार होगा।
ब्राह्मणों के कथनानुसार महर्षि गौतम वे सारे कार्य पूरे करके पत्नी के साथ पूर्णतः तल्लीन होकर भगवान शिव की आराधना करने लगे। इससे प्रसन्न हो भगवान शिव ने प्रकट होकर उनसे वर माँगने को कहा। महर्षि गौतम ने उनसे कहा- 'भगवान्‌ मैं यही चाहता हूँ कि आप मुझे गो-हत्या के पाप से मुक्त कर दें।' भगवान्‌ शिव ने कहा- 'गौतम ! तुम सर्वथा निष्पाप हो। गो-हत्या का अपराध तुम पर छल पूर्वक लगाया गया था। छल पूर्वक ऐसा करवाने वाले तुम्हारे आश्रम के ब्राह्मणों को मैं दण्ड देना चाहता हूँ।'इस पर महर्षि गौतम ने कहा कि प्रभु! उन्हीं के निमित्त से तो मुझे आपका दर्शन प्राप्त हुआ है। अब उन्हें मेरा परमहित समझकर उन पर आप क्रोध न करें।' बहुत से ऋषियों, मुनियों और देव गणों ने वहाँ एकत्र हो गौतम की बात का अनुमोदन करते हुए भगवान्‌ शिव से सदा वहाँ निवास करने की प्रार्थना की। वे उनकी बात मानकर वहाँ त्र्यम्बक ज्योतिर्लिंग के नाम से स्थित हो गए। गौतमजी द्वारा लाई गई गंगाजी भी वहाँ पास में गोदावरी नाम से प्रवाहित होने लगीं। यह ज्योतिर्लिंग समस्त पुण्यों को प्रदान करने वाला है।इस भ्रमण के समय त्र्यंबकेश्वर महाराज के पंचमुखी सोने के मुखौटे को पालकी में बैठाकर गाँव में घुमाया जाता है। फिर कुशावर्त तीर्थ स्थित घाट पर स्नान कराया जाता है। इसके बाद मुखौटे को वापस मंदिर में लाकर हीरेजड़ित स्वर्ण मुकुट पहनाया जाता है। यह पूरा दृश्य त्र्यंबक महाराज के राज्याभिषेक-सा महसूस होता है। इस यात्रा को देखना बेहद अलौकिक अनुभव है।'कुशावर्त तीर्थ की जन्मकथा काफी रोचक है। कहते हैं ब्रह्मगिरि पर्वत से गोदावरी नदी बार-बार लुप्त हो जाती थी। गोदावरी के पलायन को रोकने के लिए गौतम ऋषि ने एक कुशा की मदद लेकर गोदावरी को बंधन में बाँध दिया। उसके बाद से ही इस कुंड में हमेशा लबालब पानी रहता है। इस कुंड को ही कुशावर्त तीर्थ के नाम से जाना जाता है। कुंभ स्नान के समय शैव अखाड़े इसी कुंड में शाही स्नान करते हैं।'शिवरात्रि और सावन सोमवार के दिन त्र्यंबकेश्वर मंदिर में भक्तों का ताँता लगा रहता है। भक्त भोर के समय स्नान करके अपने आराध्य के दर्शन करते हैं। यहाँ कालसर्प योग और नारायण नागबलि नामक खास पूजा-अर्चना होती है । श्री त्रंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग तीन छोटे-छोटे लिंग ब्रह्मा, विष्णु और शिव प्रतीक स्वरूप, त्रि-नेत्रों वाले भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। मंदिर के अंदर गर्भगृह में प्रायः शिवलिंग दिखाई नहीं देता है, गौर से देखने पर अर्घा के अंदर एक-एक इंच के तीन लिंग दिखाई देते हैं। सुवह होने वाली पूजा के बाद इस अर्घा पर चाँदी का पंचमुखी मुकुट चढ़ा दिया जाता है।त्र्यंबकेश्वर मंदिर का निर्माण पेशवा बालाजी बाजीराव तृतीय ने पुराने मंदिर स्थल पर ही करवाया था। मंदिर का निर्माण कार्य 1755 में प्रारंभ होकर 31 साल के लंबे समय के बाद सन् 1786 में पूर्ण हुआ। त्र्यंबकेश्वर मंदिर तीन पहाड़ियों ब्रह्मगिरी, नीलगिरि और कालगिरि के बीच स्थित है। त्रंबकेश्वर को सोमवार को चाँदी के पंचमुखी मुकुट को पालकी में बैठाकर गाँव में प्रजा का हाल जानने हेतु भ्रमण कराया जाता है।  कुशावर्त तीर्थ स्थित घाट पर स्नान के उपरांत वापस मंदिर में शिवलिंग पर पहनाया जाता है। त्र्यंबक महाराज के राज्याभिषेक  है, तथा इस अलौकिक यात्रा में सामिल होना अत्यंत सुखद अनुभव है।कालसर्प शांति, त्रिपिंडी विधि और नारायण नागबलि पूजन केवल श्री त्रंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग पर ही संपन्‍न किया जाता है। मंदिर के गर्भ-ग्रह में स्त्रियों का प्रवेश पूर्णतया वर्जित है। शिव ज्योतिर्लिंग!शिवरात्रि / त्रयोदशी सावन के सोमवारश्री रुद्राष्टकम्  ,  श्री गोस्वामितुलसीदासकृतं शिव आरती श्री शिव चालीसा , महामृत्युंजय मंत्र, संजीवनी मंत्र मंदिर में निरंतर होते है । स्वयंभू द्वारा  सतयुग में त्र्यम्बकेश्वर की स्थापना कर भगवान शिव को समर्पित किया था । त्रयम्बकेश्वर मंदिर का हेमाडपंती  शैली में निर्मित है। त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग का दर्शन तथा गोदावरी नदी में स्नान ,उपासना करने और गोदावरी के किनारे शयन करने से समस्त मनोकामना की पूर्ति , काल सर्प दोष , सभी ऋणों से मुक्ति तथा जीवन सुखमय होता है ।महामृत्युञ्जय मन्त्र - "मृत्यु को जीतने वाला महान मंत्र"  को  त्रयम्बकम मन्त्र  कहा जाता है, यजुर्वेद के रूद्र अध्याय में, भगवान शिव की स्तुति हेतु की गयी एक वन्दना है। मन्त्र में शिव को 'मृत्यु को जीतने वाला' बताया गया है। यह गायत्री मन्त्र के समकक्ष सनातन धर्म का सबसे व्यापक रूप से जाना जाने वाला मन्त्र है।भगवान शिव के तीन आँखों की ओर इशारा करते हुए त्रयंबकम मन्त्र और मृत-संजीवनी मन्त्र के रूप में जाना जाता है । कठोर तपस्या पूरी करने के बाद ऋषि शुक्र को प्रदान की गई है। ऋषि-मुनियों ने महा मृत्युंजय मन्त्र को वेद का ह्रदय कहा है। ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्‌। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्।।है "त्रिनेत्रों वाला", रुद्र  ! तीनों कालों में हमारी रक्षा करने वाले भगवान को हम पूजते हैं, सम्मान करते हैं, हमारे श्रद्देय मीठी महक वाला,सुगन्धित एक सुपोषित स्थिति, फलने-फूलने वाली, समृद्ध जीवन की  सुपोषित स्थिति, फलने-फूलने वाली, समृद्ध जीवन की परिपूर्णता वह जो पोषण करता है, शक्ति देता है, (स्वास्थ्य, धन, सुख में) वृद्धिकारक; जो हर्षित करता है, आनन्दित करता है और स्वास्थ्य प्रदान करता है, एक अच्छा माली की तरह तना मृत्यु से  हमें स्वतन्त्र करें, मुक्ति दें नहीं वंचित होएँ  अमरता, मोक्ष के आनन्द से परिपूर्ण करें । ऋषि मृकण्ड की तपस्या से मार्कण्डेय पुत्र हुआ।  ज्योतिर्विदों ने मार्कण्डेय  शिशु के लक्षण देखकर ऋषि के हर्ष को चिंता में परिवर्तित कर दिया। उन्होंने कहा यह बालक अल्पायु और बारह वर्ष है। मृकण्ड ऋषि ने अपनी पत्नी को आश्वत किया-देवी, चिंता मत करो। विधाता जीव के कर्मानुसार  आयु दे सकते हैं । भाग्यलिपि को स्वेच्छानुसार परिवर्तित कर देना भगवान शिव के लिए विनोद मात्र है। ऋषि मृकण्ड के पुत्र मार्कण्डेय का शैशव बीता और कुमारावस्था के प्रारम्भ में पिता ने उन्हें शिव मन्त्र की दीक्षा तथा शिवार्चना की शिक्षा दी। पुत्र मार्कण्डेय  को उसका भविष्य बता कर समझा दिया कि त्रिपुरारी  उसे मृत्यु से बचा सकते हैं। माता-पिता दिन गिन रहे थे।  मार्कंडेय ऋषि ने मृत्युंजय मन्त्र त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धन्म। उर्वारुकमिव बन्धनामृत्येर्मुक्षीय मामृतात्॥ से भगवान शिव की उपासना की थी । काल किसी की भी प्रतीक्षा नहीं करता। यमराज के दूत समय पर आए और संयमनी लौट गए।  यमदूतों ने अपने स्वामी यमराज से जाकर निवेदन किया- हम मार्कण्डेय तक पहुँचने का साहस नहीं पाए। इस पर यमराज ने कहा कि मृकण्ड को पुत्र को मैं स्वयं लाऊँगा। दण्डधर यमराज जी महिषारूढ़ हुए और क्षण भर में मार्कण्डेय के पास पहुँच गये। बालक मार्कण्डेय ने उन कज्जल कृष्ण, रक्तनेत्र पाशधारी को देखा  सम्मुख की लिंगमूर्ति से लिपट गया। अद्भुत अपूर्व हुँकार और मन्दिर, दिशाएँ जैसे प्रचण्ड प्रकाश से चकाचौंथ हो गईं। शिवलिंग से तेजोमय त्रिनेत्र चन्द्रशेखर प्रकट हो गए और उन्होंने त्रिशूल उठाकर यमराज से बोले, हे! यमराज तुमने मेरे आश्रित पर पाश उठाने का साहस कैसे किया है  ? यमराज ने उससे पूर्व ही हाथ जोड़कर मस्तक झुका लिया था और कहा कि हे! त्रिनेत्र मैं आपका सेवक हूँ। कर्मानुसार जीव को इस लोक से ले जाने का निष्ठुर कार्य प्रभु ने इस सेवक को दिया है। भगवान चन्द्रशेखर ने कहा कि यह संयमनी नहीं जाएगा। इसे मैंने अमरत्व दिया है। मृत्युंजय प्रभु की आज्ञा को यमराज अस्वीकार कैसे कर सकते थे? यमराज खाली हाथ लौट गए। मार्कण्डेय ने यह देख कर भोलेनाथ को सिर झुकाए और उनकी स्तुति करने लगे। उर्वारुमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्। वृन्तच्युत खरबूजे के समान मृत्यु के बन्धन से छुड़ाकर मुझे अमृतत्व प्रदान करें। मन्त्र के द्वारा चाहा गया वरदान उस का सम्पूर्ण रूप से उसी समय मार्कण्डेय को प्राप्त हो गया। कलौकलिमल ध्वंयस सर्वपाप हरं शिवम्। येर्चयन्ति नरा नित्यं तेपिवन्द्या यथा शिवम्।। स्वयं यजनित चद्देव मुत्तेमा स्द्गरात्मवजै:। मध्यचमा ये भवेद मृत्यैतरधमा साधन क्रिया।।देव पूजा विहीनो य: स नरा नरकं व्रजेत। यदा कथंचिद् देवार्चा विधेया श्रध्दायान्वित।। जन्मचतारात्र्यौ रगोन्मृदत्युतच्चैरव विनाशयेत्।
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साठ के बाद चुनाव लड़ने पर लगे रोक

Posted: 01 Sep 2021 03:02 AM PDT

साठ के बाद चुनाव लड़ने पर लगे रोक 

फतुहा-  प्रेम यूथ फाउंडेशन की ओर से युवा चेतना शिविर का आयोजन रायपुरा फतुहा में किया गया । शिविर को संबोधित करते हुये फाउंडेशन के संस्थापक गांधीवादी प्रेम जी ने कहा कि भारत विश्व का सबसे युवा देश है लेकिन अफसोस युवाओ के लिए मौका न के बराबर है । हैरत के बात है कि साठ के बाद चपरासी,किरानी,सिपाही,शिक्षक सेवा में नही रह सकता लेकिन साठ के बाद मुखिया, प्रमुख,विधायक, सांसद,मंत्री,मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री, राज्यपाल और राष्ट्पति बन सकता है सेवा दे सकता है वो भी वैतनिक ।सभी जनप्रतिनिधियों के लिए योग्यता का निर्धारण हो एवं अपराधी छवि के लोगो पर चुनाव लड़ने से रोक लगाना होगा । अनैतिक रूप से जमा सम्पति को गरीवों में वितरण किया जाए । उन्होंने बताया कि  युवाओ के हाथों में ऊंची डिग्र्री है मन मे कुछ कर दिखाने की हसरत है परंतु अवसर नगण्य है । आज युवा रातों रात अमीर बनने के चक्कड़ में अपराधियों एवं अराजक तत्वों के हाथों का खिलौना बन रहा है । सरकार सिर्फ युवा विकास के राग तो अलापती है परंतु वहाँ कोई सार्थकता नजर नही आती है । सभी राजनीतिक दल सिर्फ युवाओं का इस्तेमाल झंडा ढोने और नारा लगाने के लिए करते है । नेताओ को कोई लेना देना नही है युवाओ की समस्याओं से सभी लोग सिर्फ ठग रहे है । 
युवाओ को जात पात एवं धर्म के भावना से ऊपर उठकर स्वरोजगार की ओर अग्रसर होना होगा । इस मौके राहुल कुमार, दिलीप कुमार, देवांन्द, चांदनी,सुल्ताना, प्रेरणा अनुरागनी ने भी अपना विचार प्रकट किया ।
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पितरः केन तुष्यंति मर्त्यामल्पचेतसाम्।

Posted: 01 Sep 2021 02:55 AM PDT

पितरः केन तुष्यंति मर्त्यामल्पचेतसाम्।

महर्षि व्यास के द्वारा प्रणीत अठारह पुराणों मे से अधिकांश में गयाश्राद्ध से संबंधित विवेचन मिलता है।इसके अतिरिक्त वाल्मीकि रामायण,आनंद रामायण आदि अन्य ग्रंथों में भी गयाश्राद्ध की महिमा बताई गयी है।सनातन परम्परा में जिस प्रकार जीवित अवस्था में हम अपने परिजनों का सम्मान करते हैं दिवंगत होने के बाद भी उन संबंधों का हम निर्वहन करें यही इन सद्ग्रंथों का ध्येय है।कारण यह है कि हमारी भारतीय संस्कृति में संबंध जन्मजन्मांतर तक माने जाते हैं।यही कारण है गयाश्राद्ध के क्रम में 
आब्रह्मस्तंबपर्यंतं देवर्षि पितृमानवाः और अतीत कुल कोटिनाम् का मंत्रोच्चार होता है।हो भी क्यों नहीं आखिर हमारे पितृगण भी तो इसी उद्देश्य की पूर्ति हेतु "बहवः पुत्राः"की कामना करते हैं।द्रष्टव्य है यह श्लोक महाभारत से.....
एष्टव्या बहवः पुत्रा यद्याप्येको गयां व्रजेत्।
यत्रासौ प्रथितो लोकेष्वक्षाय करणो वटःः।।
अर्थात् हमारे कुल में बहुत से पुत्र हों।इनमें से कोई एक भी गयाजी में आकर हमारे लिये श्रद्धा पूर्वक श्राद्ध संपन्न करे।
अब विचारणीय प्रश्न यह है कि क्या हमारे पितरों की यह संकल्पना आनलाईन श्राद्ध पैकेज से पूर्ण हो पायेगी?क्या जिस पुत्र से श्रद्धा पूर्वक गयाजी में सदेह उपस्थित होकर श्राद्ध संपन्न करने की कामना की गई है वह पूर्ण हो पायेगा?जवाब न में ही मिलेगा।यदि सनातन परंपरावादी हैं तो।नास्तिकों की या गयायात्रा को मात्र टूर समझने वालों की तो बात ही अलग है।उनके तो जन्मदाता माता पिता भी संदेह के घेरे में ही होते हैं।
अंत में....
सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया।
सर्वे भद्राणि पश्यंतु मा कश्चिद् दुःखभाग् भवेत्।की कामना के साथ गयापालक भगवान विष्णु से प्रार्थना है इन मार्गभ्रष्टों को सद्बुद्धि प्रदान करें ।
जय श्री हरि।
.........मनोज कुमार मिश्र "पद्मनाभ"।
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2 सितंबर को विश्व नारियल दिवस समारोह संपन्न होगा

Posted: 01 Sep 2021 12:52 AM PDT

2 सितंबर को विश्व नारियल दिवस समारोह संपन्न होगा

23वें विश्व नारियल दिवस के अवसर पर 2 सितंबर को नारियल विकास बोर्ड, कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार के एमआईडीएच प्रभाग के सहयोग से 'कोविड 19 महामारी के बीच और उसके उपरांत सुरक्षित, समावेशी, सुदृढ और सुस्थिर नारियल समुदाय का विनिर्माण' विषय पर वेबिनार का आयोजन होने जा रहा है। इस वर्ष के 'विश्व नारियल दिवस' को भारत की स्वतंत्रता के 75वें वर्षगाँठ के स्मरणोत्सव 'आज़ादी का अमृत महोत्सव' कार्यक्रम में शामिल किया गया है।

'कोविड-19 महामारी की वर्तमान परिस्थिति में राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित वेबिनार को मुख्य अतिथि के रूपमें केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर संबोधित करेंगे। केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री शोभा करंदलाजे व कैलाश चौधरी और कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के सचिव संजय अग्रवाल भी संबोधित करेंगे। इस समारोह में सारे नारियल उत्पादक राज्यों से लगभग 500 प्रगतिशील नारियल किसान, कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारीगण, राज्य कृषि /बागवानी विभागों से प्रतिनिधिगण एवं नारियल आधारित उद्यमी भाग लेंगे। वेबिनर के तकनीकी सत्र में नारियल के कीट-प्रबंधन पर हाल में हुई प्रगति एवं नारियल पानी के मूल्यवर्धन की संभावनाओं पर परिचर्चा होगी। सहभागी किसानों के लिए विचार-विमर्श सत्र की व्यवस्था भी की गई है।

नारियल विकास बोर्ड के तत्वाधान में हर वर्ष विश्व नारियल दिवस मनाया जाता है और इसमें नीति निर्माता, प्रगतिशील किसान, उद्यमी, निर्यातक, केंद्रीय मंत्रालय से वरिष्ठ अधिकारीगण, राज्य कृषि / बागवानी विभागों के प्रतिनिधिगण एवं अन्य हितधारक की सक्रिय सहभागिता होती है। विश्व के सारे नारियल उत्पादक देश 2सितंबर को विश्व नारियल दिवस मनाते हैं जो वर्ष 1969 में संयुक्‍त राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक आयोग (यूएन- ईएससीएपी) के तत्‍वावधान में स्थापित नारियल उत्पादक देशों का एक अंतरशासकीय संगठन, इंटरनैशनल कोकनट कम्यूनिटी (आईसीसी) का स्थापना दिवस है।

नारियल दिवस मनाने का उद्देश्य नारियल पर जागरूकता पैदा करना है और इसके ज़रिए इस फसल पर राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय ध्यान केंद्रित कराना है।
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