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Saturday, July 18, 2020

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आरएसएस संपर्क विभाग ग्वालियर द्वारा कोरोना के सामाजिक व सांस्कृतिक परिणाम विषय पर ऑनलाइन परिचर्चा आयोजित

Posted: 17 Jul 2020 09:00 AM PDT


संपर्क विभाग राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ग्वालियर द्वारा कोरोना के सामाजिक व सांस्कृतिक परिणाम विषय पर एक ऑनलाइन परिचर्चा का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय संपर्क प्रमुख प्रोफ़ेसर अनिरुद्ध देशपांडे मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित रहे। कार्यक्रम का सफल संचालन ग्वालियर के सुप्रसिद्ध चिकित्सक डॉ जगजीत नामधारी द्वारा किया गया। इस दौरान ग्वालियर अचल के प्रमुख प्रबुद्ध जन उपस्थित रहे एवं उन्होंने भी अपने विचार एवं सुझाव इस कार्यक्रम के दौरान रखे। कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में अपने उद्बोधन में प्रोफेसर अनिरुद्ध देशपांडे ने कहा कि लगभग 4 माह से भारत सहित पूरे विश्व में कोरोना की चर्चा है। अभी भी यह नहीं कहा जा सकता कि यह कब तक रहेगा। कोरोना संक्रमण काल के इस दौर में भय का माहौल तो निर्मित हुआ ही है, साथ ही साथ सामान्य वर्ग कुंठित भी हुआ, किन्तु जो अब धीरे-धीरे सामान्य हो रहा है। कोरोना का प्रभाव समाज के हर क्षेत्र में हुआ है और सभी क्षेत्रों में इसके निराकरण के भिन्न-भिन्न मार्ग हैं। 

प्रोफेसर देशपांडे ने कहा कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है जिस की प्रवृत्ति धार्मिक है। मनुष्य को संस्कृति, साहित्य, कला इत्यादि प्रिय हैं। लेखन, वाचन, पर्यटन इत्यादि हमारे समाज का प्रमुख अंग है, परंतु कोरोना के चलते वर्तमान में यह सब ठप्प पड़ा हुआ है। वर्तमान में इन सभी क्षेत्रों की जो स्थिति है वह कोरोना के इस काल में आवश्यक भी है परंतु यह नैसर्गिक नहीं है, अपितु मजबूरी बस है। इस पर चिंतन की आवश्यकता है। आज चारों ओर भय का माहौल है। एक सर्वे में यह बात सामने आई है कि महिलाओं में इस कोरोना काल के दौरान भयंकर निराशा का भाव उत्पन्न हुआ है। सर्वे के अनुसार बड़ी मात्रा में महिलाएं अपने बच्चों को विद्यालय में पढ़ाना ही नहीं चाहती। कोरोना के प्रभाव से मंदिर भी अछूते नहीं है। हमारी हजारों सालों से चली आ रही परंपरा कोरोना के कारण स्थगित हुई है, इसके लिए किसी को दोष नहीं दिया जा सकता, यह सब परिस्थिति वश करना पड़ रहा है। कोरोना का असर हमारे सांस्कृतिक, व्यापारिक, पर्यटन आदि क्षेत्रों पर भी पड़ा है, जिसके चलते समाज में चिड़चिड़ापन बढा है। वृद्ध जनरेशन गैप के कारण कुंठित हैं। कुल मिलाकर यह एक आक्रमण की स्थिति प्रतीत होती है। समाज के अंदर रिश्ते आसामान्य हो रहे हैं, चोरी- आत्महत्या की घटनाएं बढ़ी हुई दिखाई दे रही है। अभी शहरों से गांव की ओर माइग्रेशन देखने को मिल रहा है जो आगे भविष्य में बदला हुआ दिखाई देगा। इन सभी समस्याओं पर हम क्या कुछ कर सकते हैं इस पर चर्चा एवं उपाय खोजना आवश्यक है। 

प्रोफेसर देशपांडे ने कहा कि हमारे समाज में संस्कृति का विशेष महत्व है। इसके द्वारा समाज की बड़ी से बड़ी कठिनाइयों को समाप्त किया जा सकता है। कोरोना काल में संस्कृति के महत्व को समझते हुए भारत सरकार ने दूरदर्शन पर पुनः रामायण महाभारत जैसे धारावाहिकों को प्रारंभ किया, जिसने कोरोना का में भी प्रसिद्धि के सभी रिकॉर्ड तोड़े। इस तृष्णा को निरंतर जारी रखने की आवश्यकता है। प्रोफेसर देशपांडे ने सोशल नेटवर्किंग के महत्व पर बोलते हुए कहा कि सोशल नेटवर्किंग भी एक बड़ा सशक्त माध्यम है, जिसका उपयोग कर हम छोटे-छोटे समूह बनाकर परंपरागत बातों को प्रसारित कर सकते हैं। शिक्षा के क्षेत्र में ऑनलाइन लर्निंग के द्वारा पाठ्यक्रम से अलग अतिरिक्त जानकारियां बच्चों को दे सकते हैं। छोटी पुस्तकों का प्रकाशन व खेलों के माध्यम से सभी परिस्थितियों को ध्यान में रखकर सकरात्मकता के साथ आगे बढ़ने की आवश्यकता है। इसके लिए आवश्यक है कि हर व्यक्ति इसे अपनी जिम्मेदारी मानते हुए अपने स्तर पर अपने कार्य क्षेत्र में कार्य प्रारंभ करें।

कार्यक्रम के दौरान प्रबुद्ध जनों ने भी अपने विचार प्रस्तुत किए। वरिष्ठ पत्रकार राकेश अर्चन ने कहा कि पिछले दिनों गहराये संकट के समय में सांस्कृतिक पक्ष को छोड़ दिया गया है, जिस पर चिंतन आवश्यक है। समाज में नीरसता की स्थिति निर्मित ना हो उसके लिए कलाकारों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। प्रोफेसर आलोक शर्मा ने थिएटर एवं पर्यटन को सुरक्षा प्रदान करने की बात कही। प्रोफेसर अरुण त्यागी ने कहा कि वर्तमान में ऐसी स्थिति है कि एक बच्चे के शोर करने पर पूरी कक्षा को दंडित किया जा रहा है। भूखे पेट भजन न होय गोपाला समाज को ही आगे आकर जो समाज में कानून तोड़ने वाले लोग हैं उन्हें समझाइश या दंड देना चाहिए। श्योपुर एसडीएम रूपेश उपाध्याय ने छोटे देव स्थलों के पुजारियों की दुर्दशा पर प्रकाश डाला। सबलगढ़ हिंदी विभाग अध्यक्ष भूपेंद्र हरदेनिया ने कहा कि कोरोना काल में नकरात्मकता के साथ सकारात्मकता भी आई है, लोग प्रयोग धर्मी भी हुए हैं। डॉ राजेंद्र सिंह ने सुझाव दिया कि भारत सरकार को अवसाद के मामलों को ध्यान में रखते हुए दूरदर्शन पर 10 कदम जैसे धारावाहिक दिखाना चाहिए व्यक्ति को स्वेच्छा से प्रतिदिन व्यायाम करना चाहिए एवं कल्चर एक्टिविस्ट को समूह बनाकर विद्यालयों में कार्यक्रम करने चाहिए। पत्रकार अजय तिवारी ने निराशा का माहौल खत्म करने की बात कही। डॉक्टर गोविंद शर्मा ने सोशल डिस्टेंसिंग को प्रोत्साहित करने की बात कही। डॉक्टर सुविज्ञा अवस्थी ने कहा कि जब कार्य की योजना सही हो तो समस्या समाप्त हो जाती है भारतीयता का मूल मंत्र लेकर अपने क्षेत्र में कार्य करने की आवश्यकता है।

कार्यक्रम के अंत में डॉ नामधारी ने उपस्थित सभी प्रबुद्ध जनों का आभार व्यक्त किया। इस दौरान कार्यक्रम में वरिष्ठ पत्रकार राकेश अर्चन, प्रोफेसर आलोक शर्मा, प्रोफेसर आरपी पांडेय, प्रो एनके सिंह, प्रोफेसर शीला माहौर, प्रोफ़ेसर विलफेज वाज, डॉक्टर सुविज्ञ अवस्थी, डॉक्टर गोविंद प्रकाश शर्मा, अनिल डागा, नवल जी यूको बैंक, पत्रकार सुमित नरूला, पत्रकार दिवाकर शर्मा, प्रोफेसर राजेंद्र सिंह साहू, प्रोफेसर अरुण त्यागी, श्योपुर एसडीएम रूपेश उपाध्याय, प्रोफेसर भूपेंद्र हरदेनिया, पत्रकार अजय तिवारी आदि उपस्थित रहे

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