दिव्य रश्मि न्यूज़ चैनल - 🌐

Breaking

Home Top Ad

Post Top Ad

Tuesday, January 12, 2021

दिव्य रश्मि न्यूज़ चैनल

दिव्य रश्मि न्यूज़ चैनल


12 जनवरी का महत्व

Posted: 11 Jan 2021 09:05 PM PST

12 जनवरी का महत्व 

आशुतोष कुमार सिंह
प्रधानाचार्य
सरस्वती शिशु मंदिर स्टेशन रोड़ बाढ             

विश्वविजेता स्वामी विवेकानंद


यदि कोई यह पूछे कि वह कौन युवा संन्यासी था, जिसने विश्व पटल पर भारत और हिन्दू धर्म की कीर्ति पताका फहराई, तो सबके मुख से निःसंदेह स्वामी विवेकानन्द का नाम ही निकलेगा। 

विवेकानन्द का बचपन का नाम नरेन्द्र था। उनका जन्म कोलकाता में 12 जनवरी, 1863 को हुआ था। बचपन से ही वे बहुत शरारती, साहसी और प्रतिभावान थे। पूजा-पाठ और ध्यान में उनका मन बहुत लगता था। 

नरेन्द्र के पिता उन्हें अपनी तरह प्रसिद्ध वकील बनाना चाहते थे; पर वे धर्म सम्बन्धी अपनी जिज्ञासाओं के लिए इधर-उधर भटकते रहते थे। किसी ने उन्हें दक्षिणेश्वर के पुजारी श्री रामकृष्ण परमहंस के बारे में बताया कि उन पर माँ भगवती की विशेष कृपा है। यह सुनकर नरेन्द्र उनके पास जा पहुँचे।

वहाँ पहुँचते ही उन्हें लगा, जैसे उनके मन-मस्तिष्क में विद्युत का संचार हो गया है। यही स्थिति रामकृष्ण जी की भी थी; उनके आग्रह पर नरेन्द्र ने कुछ भजन सुनाये। भजन सुनते ही परमहंस जी को समाधि लग गयी। वे रोते हुए बोले, नरेन्द्र मैं कितने दिनों से तुम्हारी प्रतीक्षा में था। तुमने आने में इतनी देर क्यों लगायी ? धीरे-धीरे दोनों में प्रेम बढ़ता गया। वहाँ नरेन्द्र की सभी जिज्ञासाओं का समाधान हुआ। 

उन्होंने परमहंस जी से पूछा - क्या आपने भगवान को देखा है ? उन्होंने उत्तर दिया - हाँ, केवल देखा ही नहीं उससे बात भी की है। तुम चाहो तो तुम्हारी बात भी करा सकता हूँ। यह कहकर उन्होंने नरेन्द्र को स्पर्श किया। इतने से ही नरेन्द्र को भाव समाधि लग गयी। अपनी सुध-बुध खोकर वे मानो दूसरे लोक में पहुँच गये।

अब नरेन्द्र का अधिकांश समय दक्षिणेश्वर में बीतने लगा। आगे चलकर उन्होंने संन्यास ले लिया और उनका नाम विवेकानन्द हो गया। जब रामकृष्ण जी को लगा कि उनका अन्त समय पास आ गया है, तो उन्होंने विवेकानन्द को स्पर्श कर अपनी सारी आध्यात्मिक शक्तियाँ उन्हें दे दीं। अब विवेकानन्द ने देश-भ्रमण प्रारम्भ किया और वेदान्त के बारे में लोगों को जाग्रत करने लगे।

उन्होंने देखा कि ईसाई पादरी निर्धन ग्रामीणों के मन में हिन्दू धर्म के बारे में तरह-तरह की भ्रान्तियाँ फैलाते हैं। उन्होंने अनेक स्थानों पर इन धूर्त मिशनरियों को शास्त्रार्थ की चुनौती दी; पर कोई सामने नहीं आया। इन्हीं दिनों उन्हें शिकागो में होने जा रहे विश्व धर्म सम्मेलन का पता लगा। उनके कुछ शुभचिन्तकों ने धन का प्रबन्ध कर दिया। स्वामी जी भी ईसाइयों के गढ़ में ही उन्हें ललकारना चाहते थे। अतः वे शिकागो जा पहुँचे।

शिकागो का सम्मेलन वस्तुतः दुनिया में ईसाइयत की जयकार गुँजाने का षड्यन्त्र मात्र था। इसलिए विवेकानन्द को बोलने के लिए सबसे अन्त में कुछ मिनट का ही समय मिला; पर उन्होंने अपने पहले ही वाक्य 'अमरीकावासियो भाइयो और बहिनो' कहकर सबका दिल जीत लिया। तालियों की गड़गड़ाहट से सभागार गूँज उठा। यह 11 सितम्बर, 1893 का दिन था। उनका भाषण सुनकर लोगों के भ्रम दूर हुए। इसके बाद वे अनेक देशों के प्रवास पर गये। इस प्रकार उन्होंने सर्वत्र हिन्दू धर्म की विजय पताका लहरा दी।

भारत लौटकर उन्होंने श्री रामकृष्ण मिशन की स्थापना की, जो आज भी विश्व भर में वेदान्त के प्रचार में लगा है। जब उन्हें लगा कि उनके जीवन का लक्ष्य पूरा हो गया है, तो उन्होंने 4 जुलाई, 1902 को महासमाधि लेकर स्वयं को परमात्म में लीन कर लिया।
......................................

12 जनवरी/जन्म-दिवस
विज्ञान और परम्परा के महर्षि महेश योगी


सम्पूर्ण विश्व में वेद विज्ञान तथा भावातीत ध्यान के माध्यम से भारतीय आध्यात्मिक ज्ञान को पुनर्स्थापित करने वाले महर्षि महेश योगी का जन्म 12 जनवरी, 1918 को जबलपुर (मध्य प्रदेश) में हुआ था। यह स्वामी विवेकानन्द का भी जन्म दिन है; और इन दोनों ही संन्यासियों ने विश्व भर में हिन्दू धर्म, दर्शन एवं संस्कृति की पताका को फहराने का पुण्य कार्य किया।

महर्षि का प्रारम्भिक नाम महेश प्रसाद वर्मा था। उन्होंने प्रयाग विश्वविद्यालय से गणित और भौतिकी की पढ़ाई की थी। इसके साथ ही उन्होंने हिन्दू धर्म ग्रन्थों का भी गहन अध्ययन किया। अध्यात्म की ओर उनकी रुचि बचपन से ही थी। संन्यास लेने के बाद वे इस पथ पर और तीव्रता से बढ़ते गये। 

हिमालय और ऋषिकेश में उन्होंने लम्बी साधना की। ज्योर्तिमठ के शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानन्द के बाद उन्हें ही इस पीठ पर प्रतिष्ठित किया जाने वाला था; पर किसी कारण से यह हो नहीं पाया। कुछ लोगों का मत है कि उनके जन्म से ब्राह्मण न होने के कारण ऐसा हुआ।

पर इससे महेश योगी की साधना में कोई अन्तर नहीं आया। उन्होंने भारत के साथ ही विदेशों में अपना ध्यान केन्द्रित किया और नीदरलैण्ड में अपना केन्द्र बनाया। यहाँ उन्होंने ध्यान, प्राणायाम और साधना के अपने अनुभवों को 'भावातीत ध्यान' के रूप में प्रसारित किया। 

इससे मानव बहुत आसानी से अपनी आन्तरिक चेतना की उच्चतम अवस्था में पहुँच जाता है। यह भौतिकता, भागदौड़ और उन्मुक्त यौनाचार की चकाचौंध में डूबे खण्डित परिवार वाले पश्चिमी जगत के लिए नयी चीज थी। इसलिए उनके पास आने वालों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ने लगी। 

महर्षि महेश योगी के साथ भावातीत ध्यान करने वाले अनुभव करते थे कि वे हल्के होकर धरती से कुछ ऊपर उठ गये हैं। उनका मत था कि ध्यान का उपयोग केवल अध्यात्म में ही नहीं, तो दैनिक जीवन में भी है। इससे मानव की आन्तरिक शक्तियाँ जाग्रत होती है, जिससे वह हर कार्य को अधिक सक्रियता से करता है। 

इससे जहाँ एक ओर उसका जीवन उत्कृष्ट बनता है, वहाँ उसे अपने निजी कार्य में भी आशातीत सफलता मिलती है। कुछ ही समय में ध्यान की यह विधि अत्यधिक लोकप्रिय हो गयी। 1960-70 के दशक में विश्व प्रसिद्ध बैण्ड वादक बीटल्स, रोलिंग स्टोन्स, मिक जैगर और प्रसिद्ध लेखक दीपक चोपड़ा आदि ने महर्षि के सान्निध्य में इस विधि को सीखा। इससे महर्षि की ख्याति चहुँ ओर फैल गयी। 

उन्होंने विश्व में भारतीय संस्कृति, वेद और अध्यात्म पर आधारित रामराज्य की स्थापना का लक्ष्य लेकर काम किया। उनके अनुयायी भी राम ही कहलाते हैं। उन्होंने 'राम मुद्रा' का भी प्रचलन किया। महर्षि ने भारत और शेष दुनिया में हजारों विद्यालय और विश्वविद्यालयों की स्थापना की, जहाँ सामान्य शिक्षा के साथ योग एवं ध्यान की शिक्षा भी दी जाती है।

महर्षि महेश योगी एक सच्चे वेदान्ती थे। वे अतीत को स्वयं पर हावी होने देने की बजाय वर्तमान और भविष्य पर अधिक ध्यान देने को कहते थे। वे लोगों से सदा हँसते हुए मिलते थे। इसलिए उन्हें 'हँसता हुआ गुरु' भी कहा जाता था। 6 फरवरी, 2008 को नीदरलैण्ड में ही उनका देहान्त हुआ। उनके पार्थिव शरीर को प्रयाग लाकर उनके अरैल स्थित उसी आश्रम में अन्त्येष्टि की गयी, जहाँ से उन्होंने अपनी अध्यात्म-यात्रा प्रारम्भ की थी।
......................................

12 जनवरी/जन्म-दिवस
शिवाजी की निर्माता माँ जीजाबाई 


यों तो हर माँ अपनी सन्तान की निर्माता होती है; पर माँ जीजा ने अपने पुत्र शिवाजी के केवल शरीर का ही निर्माण नहीं किया, अपितु उनके मन और बुद्धि को भी इस प्रकार गढ़ा कि वे आगे चलकर भारत में मुगल शासन की चूलें हिलाकर हिन्दू साम्राज्य की स्थापना में सफल हुए।

जीजा का जन्म महाराष्ट्र के सिन्दखेड़ ग्राम में 12 जनवरी, 1602 (पौष शुक्ल पूर्णिमा) को हुआ था। उनके पिता लखूजी जाधव अन्य मराठा सरदारों की तरह निजामशाही की सेवा करते थे। इन सरदारों को निजाम से जमींदारी तथा उपाधियाँ प्राप्त थीं; पर ये सब एक-दूसरे को नीचा दिखाने का प्रयास करते रहते थे। इनमें परस्पर युद्ध भी होते रहते थे।

एक बार रंगपंचमी पर लखूजी के घर में उत्सव मनाया जा रहा था। अनेक सरदार वहाँ सपरिवार आये थे। लखूजी की पुत्री जीजा तथा उनके अधीन कार्यरत शिलेदार मालोजी के पुत्र शहाजी आपस में खूब खेल रहे थे। लखूजी ने कहा - वाह, इनकी जोड़ी कितनी अच्छी लग रही है। मालोजी ने लखूजी से कहा, इसका अर्थ है कि हम आपस में समधी हो गये। 

इस पर लखूजी बिगड़ गये। उन्होंने कहा कि मैंने तो यह मजाक में कहा था। मेरे जैसे सरदार की बेटी तुम्हारे जैसे सामान्य शिलेदार की बहू कैसे बन सकती है ? इस पर मालोजी नाराज हो गये। उन्होंने कहा, अब मैं यहाँ तभी आऊँगा, जब मेरा स्तर भी तुम जैसा हो जाएगा। मालोजी ने लखूजी की नौकरी भी छोड़ दी।

अब वे अपने गाँव आ गये; पर उनका मन सदा उद्विग्न रहता था। एक रात उनकी कुलदेवी जगदम्बा ने स्वप्न में उन्हें आशीर्वाद दिया। अगले दिन जब वे अपने खेत में खुदाई कर रहे थे, तो उन्हें स्वर्ण मुद्राओं से भरे सात कलश मिले। इससे उन्होंने 2,000 घोड़े खरीदे और 1,000 सैनिक रख लिये। उन्होंने ग्रामवासियों तथा यात्रियों की सुविधा के लिए अनेक मन्दिर, धर्मशाला तथा कुएँ बनवाये। इससे उनकी ख्याति सब ओर फैल गयी।

यह देखकर निजाम ने उन्हें 'मनसबदार' का पद देकर शिवनेरी किला तथा निकटवर्ती क्षेत्र दे दिया। अब वे मालोजी राव भोंसले कहलाने लगे। उधर लखूजी की पत्नी अपने पति पर दबाव डाल रही थी कि जीजा का विवाह मालोजी के पुत्र शहाजी से कर दिया जाये। लखूजी ने बड़ी अनिच्छा से यह सम्बन्ध स्वीकार किया। कुछ समय बाद मालोजी का देहान्त हो गया और उनके बदले शहाजी निजाम के अधीन सरदार बनकर काम करने लगे।

जीजाबाई के मन में यह पीड़ा थी कि उसके पिता और पति दोनों मुसलमानों की सेवा कर रहे हैं; पर परिस्थिति ऐसी थी कि वह कुछ नहीं कर सकती थी। जब वह गर्भवती हुई, तो उन्होंने निश्चय किया कि वे अपने पुत्र को ऐसे संस्कार देंगी, जिससे वह इस परिस्थिति को बदल सके। 

शहाजी प्रायः युद्ध में व्यस्त रहते थे, इसलिए उन्होंने जीजाबाई को शिवनेरी दुर्ग में पहुँचा दिया। वहाँ उन्होंने रामायण और महाभारत के युद्धों की कथाएँ सुनीं। इससे गर्भस्थ बालक पर वीरता के संस्कार पड़े।

19 फरवरी,  1630 को शिवाजी का जन्म हुआ। आगे चलकर छत्रपति शिवाजी ने मुगल राजशाही को परास्त कर 6 जून, 1674 को भारत में हिन्दू पद पादशाही की स्थापना की। जीजाबाई मानो इसी दिन के लिए जीवित थीं। शिवाजी को सिंहासन पर विराजमान देखने के बारहवें दिन 17 जून, 1674 (ज्येष्ठ कृष्ण 9) को उन्होंने आँखें मूँद लीं।
....................................
दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com

आज 12 - जनवरी - 2021, मंगलवार को क्या है आप की राशी में विशेष ?

Posted: 11 Jan 2021 07:08 AM PST

 दैनिक पंचांग एवं  राशिफल - सभी 12 राशियों  के लिए कैसा रहेगा आज का दिन जाने प्रशिद्ध  ज्योतिषाचार्य पं. प्रेम सागर पाण्डेय से    

श्री गणेशाय नम:

दैनिक पंचांग  12 - जनवरी - 2021, मंगलवार  

पंचांग

तिथि                चतुर्दशी                 दिन  12:02:56

नक्षत्र                मूल  दिन (प्रातः)     07:07:12  तदुपरांत

                       पूर्वाषाढ़ा  रात्रिशेष          06:20:08

करण :              शकुन                    12:24:29

                       चतुष्पाद                23:25:27

पक्ष                  कृष्ण

योग                 व्याघात  26:46:45

वार                 मंगलवार

सूर्य व चन्द्र से संबंधित गणनाएँ

सूर्योदय                                       06:44:15

चन्द्रोदय                                      चन्द्रोदय नहीं

चन्द्र राशि                                    धनु

सूर्यास्त                                        05:16:10

चन्द्रास्त                                       16:48:59

ऋतु                                            शिशिर

हिन्दू मास एवं वर्ष

शक सम्वत                                    1942  शार्वरी

कलि सम्वत                                   5122 

दिन काल                                     10:28:13

विक्रम सम्वत                                 2077 

मास अमांत                                   मार्गशीर्ष  

मास पूर्णिमांत                                पौष  

शुभ और अशुभ समय

शुभ समय  :- 

                       अभिजित           12:08:30 - 12:50:23

अशुभ समय   :-

               दुष्टमुहूर्त :                  09:20:58 - 10:02:51

                  कंटक                     07:57:12 - 08:39:05

               यमघण्ट                    10:44:44 - 11:26:37

               राहु काल                  15:06:30 - 16:25:02

               कुलिक                      13:32:16 - 14:14:09

               कालवेला या अर्द्धयाम  09:20:58 - 10:02:51

               यमगण्ड                    09:52:23 - 11:10:55

                गुलिक काल              12:29:26 - 13:47:58

               दिशा शूल                  उत्तर

चन्द्रबल और ताराबल

ताराबल

अश्विनी, भरणी, कृत्तिका, मृगशिरा, पुनर्वसु, आश्लेषा, मघा, पूर्वा फाल्गुनी, उत्तरा फाल्गुनी, चित्रा, विशाखा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा, धनिष्ठा, पूर्वाभाद्रपद, रेवती

चन्द्रबल 

मिथुन, कर्क, तुला, धनु, कुम्भ, मीन

 

 

 आज का दैनिक राशिफल  12 - जनवरी - 2021, मंगलवार  

1.    

मेष (Aries):

आज आप घर की बातों के प्रति अधिक ध्यान देंगे। परिजनों के साथ बैठकर अहम चर्चा करेंगे। आज आपको अपने कार्य में संतोष का अनुभव होगा। स्त्रियों की ओर से सम्मान मिल सकता है। माता के साथ संबंध अच्छे रहेंगे। निरुत्साही न हों।

शुभ रंग  =  लाल

शुभ अंक  :  8

2.    

वृषभ (Tauras):

विदेश में स्थित स्नेहीजन तथा मित्रों के समाचार आपको आनंद प्रदान करेंगे। विदेश जाने के इच्छुक व्यक्तियों के लिए अच्छा अवसर है। लंबे प्रवास का आयोजन हो सकता है। एक-दो धार्मिक स्थल की यात्रा से आपका मन प्रफुल्लित होगा। कार्यालय या व्यापार के स्थल पर कार्यभार अधिक रहेगा। फिर भी आर्थिक लाभ होने की संभावना है।

शुभ रंग  =  फीरोजा

शुभ अंक  :  6

3.    

मिथुन (Gemini):

निषेधात्मक विचारों से दूर रहने की सूचना देते हैं। नए कार्य का प्रारंभ तथा रोग उपचार प्रारंभ करना उचित नहीं होगा। क्रोध को संयम में रखें अन्यथा अनिष्टकर प्रसंग होने की संभावना है। खर्च अधिक होगा। धन के संकट का अनुभव होगा। आध्यात्मिकता और ईश्वर की प्रार्थना से राहत मिलेगी।

शुभ रंग  =  आसमानी

शुभ अंक  :  2

4.    

कर्क (Cancer):

वैभवी जीवनशैली तथा मनोरंजक प्रवृत्तियों से आज आप आनंदित रहेंगे। व्यवसायिक क्षेत्र में आपको लाभ होगा। आरोग्य अच्छा रहेगा। मान-प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी। यात्रा या प्रवास का आयोजन कर सकेंगे।

शुभ रंग  =  पीला

शुभ अंक  :  9

5.    

सिंह (Leo):

आपका आज का दिन मध्यम फलदायी होगा। पारिवारिक सदस्यों के साथ वाणी में संयम बरतें जिससे संघर्ष टाल सकेंगे। दैनिक कार्य में विघ्न आ सकते हैं। इसलिए कार्य संपन्न होने में देर होगी। अधिक परिश्रम के बाद भी प्राप्ति कम होने से हताशा का अनुभव हो सकता है।

शुभ रंग  =  पींक

शुभ अंक  :  5

6.    

कन्या (Virgo):

आज के दिन आपको किसी भी तरह के कलह और चर्चा से दूर रहने की सूचना देते हैं। आकस्मिक खर्च की संभावना है। विद्यार्थियों को पढाई में बाधा आएगी। प्रियजन के साथ हुई मुलाकात से मन आनंदित होगा। पेट से संबंधित पीड़ा हो सकती है। शेयर-सट्टे में निवेश करने में सावधानी बरतें।

शुभ रंग  =  फीरोजा

शुभ अंक  :  6

7.    

तुला (Libra):

आपके लिए समय शुभ है। मन में संवेदनशीलता की मात्रा अधिक रहेगी। शारीरिक स्फूर्ति का अभाव रहेगा। मानसिक व्यग्रता भी रहेगी। धन और कीर्ति की हानि होगी। माता के स्वास्थ्य की चिंता रहेगी। निकट के सम्बंधियो के साथ झगड़े या विवाद के कारण मन को चोट पहुंचने के प्रसंग बनेंगे।

शुभ रंग  =  क्रीम

शुभ अंक  :  7

8.    

वृश्चिक (Scorpio):

नए कार्य के प्रारंभ के लिए आज का दिन शुभ है। दिनभर मन की प्रसन्नता बनी रहेगी। भाई-बंधुओं के साथ आवश्यक चर्चा करेंगे। आर्थिक लाभ तथा भाग्यवृद्धि के योग हैं। छोटे प्रवास का आयोजन हो सकता है। मित्रों के साथ भेंट होने से मन प्रफुल्लित होगा। कार्य में सफलता मिलेगी।

शुभ रंग  =  लाल

शुभ अंक  :  8

9.    

धनु (Sagittarius):

आपका दिन मिश्र फलदायी है। असमंजस के कारण निर्णय लेना कठिन होगा। मन में व्यग्रता रहेगी। परिजनों के साथ मनमुटाव न हो इसका ध्यान रखें। कार्य में अपेक्षित सफलता न मिलने से निराशा होगी। कार्यभार भी बढ़ सकता है। निरर्थक खर्च होगा।

शुभ रंग  =  गुलाबी

शुभ अंक  :  1

10.       

मकर (Capricorn):

आज आपका प्रत्येक कार्य सरलता से पूर्ण होगा। कार्यालय में तथा व्यवसायिक स्थल पर आपकी प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी। पदोन्नति के योग हैं। गृहस्थ जीवन में आनंद का वातावरण रहेगा। शारीरिक हानि होने का योग है इसलिए संभलकर रहें। मित्रों, स्नेहीजनों के साथ भेंट होगी। मानसिक रूप से शांति मिलेगी।

शुभ रंग  =  पीला

शुभ अंक  :  9

11.       

कुंभ (Aquarius):

स्वास्थ्य के प्रति जागरुक रहने की सलाह देते हैं। कोर्ट-कचहरी के झंझट में न पड़ें। अनुचित स्थान पर पूंजी-निवेश न हो इसका ध्यान रखिएगा। परिवार के सदस्य विरोधी व्यवहार कर सकते हैं। अकस्मात से दूर रहें और क्रोध पर संयम रखें। धन के खर्च का योग है।

शुभ रंग  =  फीरोजा

शुभ अंक  :  6

12.       

मीन (Pisces):

आज आप पारिवारिक तथा सामाजिक बातों में विशेष लिप्त रहेंगे। मित्रों से भेंट होगी और उनके पीछे खर्च करना पड़ेगा। रमणीय स्थान पर प्रवास-पर्यटन की संभावना है। प्रत्येक क्षेत्र में आपको लाभ होगा। जीवनसाथी के इच्छुकों को अच्छा जीवनसाथी मिलने का योग है।

शुभ रंग  =  गुलाबी

शुभ अंक  :  1


पं. प्रेम सागर पाण्डेय् ,नक्षत्र ज्योतिष वास्तु अनुसंधान केन्द्र ,नि:शुल्क परामर्श -  रविवार , दूरभाष  9122608219  /  9835654844
दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com

परिधान

Posted: 11 Jan 2021 04:15 AM PST

परिधान

आज वटेसर काका के घर पहुँचा तो उन्हें कुछ अजीब परिधान में पाया। आदतन वे धोती-कुरता पहनते हैं। कभी-कभारधोती को ही लुंगीनुमा पहन लिया करते हैं, खासकर तब, जब कहीं बाहर नहीं जाना रहता। जाड़ा-गरमी-बरसात—यही उनका पहरावा है। खूब हुआ तो ऊपर से गरम चादर डाल लिए। ठंढ अधिक सताये तो अँगोछे का गलमुच्छा भी बाँध लिए। न कभी बन्दरमुंहा टोपी, न कोट-बन्डी-जैकेट। परन्तु आज जिस अनोखे परिधान में देखा,तो कोशिश के बावजूद अपनी हँसी रोक न पाया। हालाँकि बड़े-बूढ़ों की किसी हरकत पर हँसना हमारी सभ्यता के विरुद्ध है,किन्तु औरों की भाँति आज मैं भी इस शिष्टाचार को भूल गया। 

किसी तरह हँसी को सम्भालते हुए पूछा— ये क्या वेश बना रखे हैं काका? सफेद धोती के ऊपर से काका-कलूटा चुश्त लोअर ! 

मेरी बात पर काका न तो गुस्साये और न मुस्कुराये ही,बल्कि थोड़े गम्भीर भाव से बोले—"तुम्हारे इस लोअर-अपर ने ही तो सब गड़बड़ किया है। अब पैन्ट, पायजामा, सलवार को लोअर कहने लगोगे,तो कोट, कमीज, कुरता को तो अपर कहना ही पड़ेगा न !ये ट्रान्सलेशन का चक्कर भी अजीब है। म्लेच्छ भाषा के साथ-साथ सभ्यता-संस्कृति सबका ट्रान्सलेशन हो गया। भारत इण्डिया हो गया,राम रामा और योग योगा बन गया। यहाँ तक तो किसी तरह चल जायेगा,किन्तु मजेदार बात ये है कि कृष्ण जब कृष्णा हो गए तो बेचारी द्रौपदी तो क्रोध से लाल हो जायेगी न—क्योंकि उसका नाम ही छीन लिया आधुनिकों ने। खैर, छोड़ो इन बातों को। तुम जानते ही हो कि मैं सदा से प्रयोगवादी रहा हूँ। कॉलेज के जमाने में पैन्ट-शर्ट पहना करता था। बरसात के दिनों में एक बार ऐसा हुआ कि मोटा पैन्ट पहले सूख गया और पतला शर्ट गीला ही रह गया। शायद ठीक से निचोड़ा नहीं गया था। क्लास छोड़ नहीं सकता था।लाचारी में पैन्ट पर ही कुर्ता पहन कर कॉलेज चला गया। उस दिन कॉलेज में जो दुर्गति हुयी,वो जनम भर भूलने वाली नहीं है। किन्तु थोड़े ही दिनों बाद देखाकि पैन्ट पर कुर्ता पहनना अल्ट्रामॉर्डन फैशन में आ गया है और शर्ट छोड़ कर लोग कुरता सिलवाने लगे हैं पैन्ट पर पहनने के लिए। कुर्तीनुमा कुरते की लम्बाई सरकते-सरकते घुटने से नीचे आ पहुँची। जबकि ग्यारह ईंच से बढ़ते-बढ़ते पीलपांव मार्का पैन्ट बेलबॉटम के नाम से जाना जाने लगा। शर्ट की जगह बैगी ने ले लिया—ठीक वैसे ही जैसे सेवई की जगह मैगी ने ले लिया।इतना ही नहीं, फैशन डिज़ायनिंग और फैशन टेक्नोलॉजी आधुनिक शिक्षा में पैठ बना लिया है और इन मॉर्डन डिज़ायनरों की ही करामात है कि आधुनिकाओं को अर्द्धनग्नता वाली "विकनी" पसन्द आने लगी है । अब तुम्हीं जरा सोचो—सबकुछ सड़क-बाजार में ही दिख जायेगा तो फिर बेडरुम के लिए बाकी ही क्या रह जायेगा? और ऐसी परिस्थिति में किसी नेता की टिप्पणी—युवक हैं, बहक गए,बलात्कार हो गया उनसे—पर तुम क्या टिप्पणी करोगे!" 

तो क्या आपने इसका विरोध करने के विचार से सफेद धोती के ऊपर काला लोअर पहनने का फैसला किया,जैसा कि लोग बाजू में कालीपट्टी लगाकर करते हैं? 

इस बार काका जरा मुस्कुराये—"नहीं बबुआ ! सो बात नहीं। मेरे विरोध करने ना करने से भला क्या फ़र्क पड़ना है?ये परिधान मैं प्रयोग के तौर पर धारण किया हूँ। आज से इसी वेश में बाहर निकलने को सोच रहा हूँ। देखते हैं—क्या प्रतिक्रिया होती है लोगों की। " 

प्रतिक्रिया क्या होगी,लोग हँसेंगे। कॉलेज वाले दिन की तरह फिर एकबार आप बेवकूफ बनेंगे। 

काका ने सिर हिलाकर कहा—" और ये क्यों नहीं कहते कि जिस तरह उन दिनों पैन्ट पर कुरता चल निकला,उसी तरह आगे धोती पर लोअर पहनना न्यूटेस्टामेंट माना जाने लगेगा। म्लेच्छों ने अपना परिधान हम पर थोप दिया। धोतीधारी लोग समाज से ऐसे गायब हो रहे हैं, जैसे गधे की सींग। और तो और, ब्राह्मणों की सभा-सोशायटी में भी धोतीधारी ढूढ़ना पड़ता है। इत्तफाक से दो-चार दीख भी जाते हैं,तो वे भी अन्दर से खोल लगाये हुए—लोअर का। अरे भाई !धोती पहनना ही है तो कायदे से पहनो। नहीं पहनना है तो कौन मना करता है सूट-बूट पहनने से ?साड़ी त्याग कर बिकनी पहनने से किसी ने नहीं रोका , तो धोती छोड़कर पैंट-पायजामा पहनने से रोकने कि किसकी हिम्मत है?"
दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com

दलाल/विचौलिया/ट्रान्सफॉर्मर

Posted: 11 Jan 2021 04:13 AM PST

दलाल/विचौलिया/ट्रान्सफॉर्मर

"दलाल,विचौलिया और ट्रान्सफॉर्मर में क्या सम्बन्ध है—जरा बतलाओं तो बबुआ!"— वटेसरकाका के इस अजीब सवाल पर मैं जरा सकपका गया। दरअसल काका कुछ जानने-पूछने नहीं, बल्कि कहने-जताने-समझाने आते हैं। उनके हर सवाल,हर जिज्ञासा में कुछ न कुछ रहस्य छिपा होता है,जो मुझेबहुत भाता है।उनके अजीबोगरीब सवालों के बीच से ही जानकारियों का सोता फूटता है,जो मुझ जैसे अल्पज्ञों के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण साबित होता है। अतः मैंने अन्यमनस्कभाव से जवाब दिया—इस आई.ए.एस. क्वायलिटी के सवाल का जवाब मैं भला कैसे दे सकता हूँ? इतना ही काबिल होता, तो किसी सरकारी दफ्तर की कुर्सी न गरमाता 

मेरी बातों पर सिर हिलाते हुए काका उचरने लगे—" मैं यक़ीनन कह सकता हूँ कि तुम्हारे पास इसका समुचित उत्तर है ही नहीं। ऐसे प्रश्नों के उत्तर सिर्फ उन्हीं लोगों के पास हुआ करते हैं, जिन्होंने देश-दुनिया की खाक छानी हो। जीवन का मृदु कम,कटु अनुभव ज्यादा संजोया हो—एकदम से 'श्रीलाल शुक्ल के रागदरवारी वाले शनिचर'के अन्दाज में। ऐसे सवालों के जवाब के लिए ज़ुनून और जीवटता दोनों की जरुरत होती है। जबकि इन दोनों में तुम्हारे पास एक भी नहीं है। कोई एक भी होता तो काम चल जाता। मगर चिन्ता न करो,इस कतार में तुम अकेले इन्सान नहीं हो। बहुत लोगों के पास इनकी कमी है। यही कारण है कि आजकल बात-बात में हो-हल्ला,शोर-शराबा,गाली-गलौज,यहाँ तक कि मडर-सडर भी होते रहते हैं।ये सब होते रहने वाला मामला है। इसीलिए पुलिस-प्रशासन भी 'साइलेंटमोड' में रहनेका आदी हो गया है। कभी-कभी उसके लिए ये सब सिरदर्द भी बन जाता है; किन्तुराजनयिकों के लिए तो सदा चाँदी ही चाँदी है ऐसे मामले। वे भला कब चाहते हैं कि देश-दुनिया में शान्ति-सौहार्द्र का माहौल बना रहे ! भले ही सन्तों की दृष्टि में शान्ति–आनन्द बड़ी अच्छी चीज है,पर नेताओं की नज़र में इससे बुरी कोई चीज हो ही नहीं सकती। विरोध की चिंगारी से हिंसा की ज्वाला नहीं भड़केगी तो नेताओं की राजनैतिक रोटियाँ कच्ची ही रह जायेंगी न!और इतना तो तुम भी समझते ही होओगे कि कच्ची रोटियाँ किसी काम की नहीं। रोटी ठीक से सिंकी-सिंकायी हों तो बिना दाल-सब्जी के भी खायी जा सकती है,जबकि कच्ची रोटी सॉश-जेली के साथ भी खाना मुश्किल है। पिछले कुछ दिनों से तुम देख ही रहे हो कि देश का माहौल एकदम से बदला हुआ है। गड़े-सड़े मुर्दे भी उखड़ रहे हैं और बदबूदार लाशों का तुरता-तुरत डिस्पोजल भी हो रहा है। पुरानी अलावों को बुझाने और ध्वस्त करने का जोरदार मुहिम चल रहा है...।"

मैंने बीच में ही टोका—ये तो अच्छी बात है—'मेक–इन-इण्डिया'वाला शेर दहाड़ेगा तो सबकी सिट्टी-पिट्टी बन्द हो जायेगी। 'लोकल'जब 'वोकल'होने लगेगा,तो सबको राहत मिलेगी। आत्म-निर्भरता बढ़ेगी। इसमें बुराई ही क्या है?

"रोटियाँ कच्ची रह रही हैं—यही सबसे बड़ी ख़ामी है इसमें।"—काकाने मेरी बात काटी —"पाँच सौ सालों से चला आ रहा मन्दिर-मस्जिद विवाद चुटकी बजाकर खत्म हो गया। ऐसे भी भला विवाद खतम किया जाता है ! विवाद और संवाद को हमेशा चलते रहना चाहिए। गति में ही प्रगति है। इसीलिए जानकारों ने कहा हैकि पोखर के पानी की तुलना से नदी का पानी ज्यादा सेहतमन्द होता है,क्यों कि नदी चलती रहती है और पोखर स्थिर रहता है।"

आप भी खूब हैं काका ! नदी-पोखर वाली बात विवाद-संवाद पर भला कैसे लागू हो सकती है?

"यही तो समझने वाली बात है। कितनी जुगत से,कितनी दूरदर्शिता से धारा 370 को बनाया गया था। बड़े-बड़े कलाबाजों की बुद्धि का उपयोग किया गया था। किन्तु मेक-इन-इण्डिया वाला शेर ऐसा दहाड़ा कि धड़ाधड़ कितनों की दुकानों के शटर गिरने लगे। भला तुम्हें इसकी परवाह क्यों होगी कि देश में पहले से ही भीषण बेरोजगारी है और ऊपर से सैकड़ो दुकानों का हठात बन्द होजाना, कितनी चिन्ता की बात है। कम से कम मानवता के नाते तुम भी जरा सोचो कि उनके बीबी-बच्चों का परवरिश कैसे होगा? विदेशों में पढ़ रहे उनके होनहारों की तरक्की कैसे होगी? और जिनके ऊपर बीबी-बच्चों की जिम्मेवारी नहीं है,यानी कि जो जन्मजात कुँआरे हैं और आगे भी कुँआरे ही रहने की आशा बरकरार है,उन्हें भी अपने और अपनी कुर्सी की सेहत का ख्याल रखना है कि नहीं?नज़ला-ज़ुकाम का इलाज़ कराने बाहर के बड़े अस्पतालों में वे कैसे जा सकेंगे? दुर्दिन में लम्बी छुट्टियाँ मनाने का हवाईदौरा कैसे कर सकेंगे?फाईव या कहें सेवन स्टार से ऊपर तो कोई होटल-रिसॉर्ट है नहीं अपने यहाँ, ऐसे में हंड्रेडस्टार औकात वाला आदमी का गुजारा कैसे चलेगा? रेडकार्पेट वाला खुरदरी जमीन पर भला कैसे पांव धरेगा?"

काका की बातों का आशय कुछ-कुछ समझ आने लगा मुझे; किन्तु उनके रहस्यमय सवाल का समुचित जवाब मेरे बंजर दिमाग में अभी भी उपज नहीं पा रहा था। अतः टोकना पड़ा— काकाजी ! आपने तो सवाल किया था दलाल,विचौलिये और ट्रान्सफॉर्मर के आपसी सम्बन्धों का,किन्तु इसमें ये धारीदार शेर कहाँ से आ टपका? और इनके बीच देश-दुनिया की राजनीति कहाँ से आ घुसी?

"यही सब कहने-समझाने तो मैं आया हूँ आज तुम्हारे पास। महीनों हो गए पश्चिमी सीमा पर ठना विवाद किसी भी संवाद से हल नहीं हो पा रहा है। पंजाब की'पराली'से बात शुरु होकर बिहार की 'पनाली'तक जाने की नौबत आगयी है। परन्तु नतीज़ा सिफ़र बटा सिफ़र...। ये किसान-बिल तो चूहे के बिल से भी ज्यादा घुरचीदार निकला। ताकतवर संसद ने सोचा था कि सबकुछ वैसे ही हो जायेगा,जैसे बाकी कई मामले निपट गए थेपिछले सालों में,किन्तु इसबार देशी जड़ी-बूटियों के साथ-साथ विदेशी कैपसूल-इन्जेक्शन इस कदर इस्तेमाल होरहे हैं किअपने विशेषज्ञों का सारा डाग्नोसिश ही फेल हो जा रहा है।कश्मीर मामले में अपनी जान देने का हौसला रखने वाले भी खलिहानी मामले में बिखरे-बिखरे से नजर आरहे हैं। "

सो तो है,किन्तु ये बिखराव-बिफराव का असली वजह क्या लग रहा है काका?

काका के होठों पर चवन्नियाँ मुस्कान तैर गयी। कहने लगे— "ट्रान्सफॉर्मर देखे हो न,उसके पास जो बिजली आती है पावरग्रीड से उसे वो अपने हिसाब से ट्रान्सफर कर देता है,किन्तु खुद के लिए रखता-छिपाता-चुराता जरा भी नहीं।मध्यस्थता की भूमिका का बड़ी सख्ती और ईमानदारी से निर्वाह करता है।दूसरी ओर विचौलिये की भूमिका ट्रान्सफॉर्मर से बिलकुल अलग किस्म की है। कोई भी सरकारी काम बिना विचौलिए के होना नामुमकिन है। और तुम जानते ही हो कि रागदरबारी का शनिचर तो अब कोई है नहीं। ज़ायज़-नाज़ायज़ सबकाम जल्दी निपटना चाहिए। ऐसे में विचौलियों की बाढ़ आना स्वाभाविक है। और विचौलिया भला ट्रान्सफॉर्मर वाली ईमानदारी कैसे बरते! उसे तो काम के मुताबिक दाम चाहिए न। ये सरकारी काम भी कई नम्बरों वाले होते हैं—एक नम्बर,दो नम्बर...। इनकी सबसे बड़ी विशेषता है कि इनका पेट बहुत गहरा होता है—बिलकुल प्रशान्त महासागर किस्म का, जिसका थाह पाना मुश्किल है।"

मैंने कुछ-कुछ समझने जैसी स्थिति में सिर हिलाया। काका का व्याख्यान जारी रहा—"और तीसरा है—दलाल। ये विचौलिये से भी थोड़े अलग किस्म का इन्सान हुआ करता है। इसके चेहरे पर सदा बारह बजते नजर आयेंगे। दूर से ही देखकर पहचान लोगे इन्हें। ये अपनी घटियागिरी के लिए प्रसिद्ध हैं। हालांकि आजकल इनका अंग्रेजीनाम ज्यादा इज्जतदार हो गया है। हिन्दी वाला नाम जरा लोअर डिवीजन वाला है। किसी को दलाल कहोगे तो नाराज हो जायेगा,परन्तु एजेन्टकहने पर शान महशूस करेगा। यही कारण है कि सरकारी-गैरसरकारी हर महकमों में एजेन्ट बहाल हो गए हैं। मेक-इन-इण्डिया के दौर में कुछ ऐसे ही विचौलिए और दलालों के पेट पर लात मारने की जुगत की गयी है। डिजिटल इण्डिया के दौर में ज्यादातर काम ऑनलाईन निपटाये जा रहे हैं, भले ही इन्फ्रास्ट्रक्चर अभी बहुत ही कमजोर है। किसी भी प्रकार की सब्सीडी हो,सहायता राशि हो,सीधे जनता के निजी खाते में ट्रान्सफर हो जा रहे हैं खटाखट। जमीन-ज़ायदाद की दाखिलखारिज़ जैसे काम भी ऑनलाइन होने लगे हैं—एकदम से पिज्जा-बर्गर के ऑनलाइन डेलीवरी स्टाइल में। इसका नतीज़ा ये है कि बीचवाली सारी कड़ियों का अस्तित्व ही खतरे में पड़ गया है। सोचने वाली बात है कि जब किसी के अस्तित्व पर ही हमला करोगे तो वो शान्त कैसे बैठेगा।" अच्छा तो अब समझा,आप कहना क्या चाहते हैं—ताज़ा राष्ट्रव्यापी भूचालदुष्ट-भ्रष्ट महासागर की लहरों का उछाल है। इसकी उत्ताल तरंगों को बौद्धिक-कूटनैतिक डायनामाइट से ध्वस्त करना होगा,अन्यथा ये रक्तबीज आसानी से नष्ट नहीं होंगे। और रक्तबीज को नष्ट करने के लिए रक्तदन्तिका कालिका का अवतरण आवश्यक है।
दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com

कालजयी सनातनी स्वामी विवेकानंद

Posted: 11 Jan 2021 04:11 AM PST

कालजयी सनातनी स्वामी विवेकानंद 


(प्रहलाद सिंह पटेल) 

केन्द्रीय पर्यटन एवं संस्कृति राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) 

भारत सरकार, 

पर्यटन भवन, नई दिल्ली 

राष्ट्रीय युवा दिवस की प्रेरणा हैं स्वामी विवेकानंद। एक ऐसे युवा जिन्होंने महज 39 साल की ज़िन्दगी और 14 साल के सार्वजनिक जीवन में देश को एक ऐसी सोच से संजाया जिसकी ऊर्जा आज भी देश महसूस कर रहा है। आने वाली अनंत पीढ़ियां खुद को इस ऊर्जा से ओतप्रोत महसूस करती रहेंगी। 

दुनिया में सबसे ज्यादा युवा शक्ति आज हिन्दुस्तान में है। विश्व का हर पांचवां युवा भारतीय है। इन्हीं युवाओँ की बदौलत दुनिया की 13 प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में भारत के विकास की दर बीते पांच सालों में तीसरे नंबर पर रही है। कोरोना के बाद विकास की दौड़ में भारत संभावनाओं से भरा देश बनकर उभरा है और इस संभावना को मजबूती प्रदान करने वाले वही युवा हैं जो स्वामी विवेकानंद के विचारों से जुड़े हैं और भारत को दुनिया के मंच पर नेतृत्वकारी भूमिका में तैयार कर रहे हैं। 

"उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक मंजिल प्राप्त न हो जाए"- युवाओं को दिया गया स्वामी विवेकानंद का यह मंत्र गुलामी के दिनों में जितना कारगर और प्रेरणादायी था, आज स्वतंत्र भारत में भी उतना ही प्रासंगिक है। अब भारत ग्लोबल लीडर बनने के लिए तैयार खड़ा है। योग की शक्ति और अध्यात्म की थाती के साथ देश का युवा दुनिया को दिशा देने के लिए अधीर खड़ा हो ताकि दुनिया के विभिन्न देशों में जाकर अपनी प्रतिभा से युवा भारत और भारतीयता का परिचय करा सके। अब 21वीं सदी के तीसरा दशक आते-आते देश दुनिया के नेतृत्व को तैयार हो चुका है। 

स्वामी विवेकानंद की यह सीख आज भी युवाओं को प्रेरित करती है- "कोई एक जीवन का ध्‍येय बना लो और उस विचार को अपनी जिंदगी में समाहित कर लो। उस विचार को बार-बार सोचो। उसके सपने देखो। उसको जियो….यही सफल होने का राज है।" 

युवाओँ के लिए जो स्वामी विवेकानंद का मंत्र है वह सदाबहार है- "जब तक तुम खुद पर भरोसा नहीं कर सकते तब तक खुदा या भगवान पर भरोसा नहीं कर सकते।" वे कहते हैं कि अगर हम भगवान को इंसान में और खुद में देख पाने में सक्षम नहीं हैं तो हम उन्हें ढूंढ़ने कहां जा सकते हैं। 

स्वामी विवेकानंद ने अपने विचारों से दुनिया का ध्यान खींचा था जब उन्होंने 1893 में अमेरिका शहर शिकागो में सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया था। तब जो उन्होंने भाषण दिया उसके समांतर दूसरा भाषण आज खड़ा नहीं किया जा सका है। स्वामी विवेकानंद का भाषण 'स्पीच ऑफ द सेंचुरी' से कहीं बढ़कर 'स्पीच ऑफ द मिलेनियम' था जो आने वाले समय में भी जीवंत रहने वाला है। आखिर क्या था उस भाषण में? विश्वबंधुत्व, सहिष्णुता, सहजीविता, सहभागिता, धर्म, संस्कृति, राष्ट्र, राष्ट्रवाद और सबका समाहार भारत-भारतीयता। 

स्वामी विवेकानंद ने विश्वधर्म संसद में सनातन धर्म का डंका बजाया था। दुनिया को बताया था कि वो उस हिन्दुस्तान से हैं जो सभी धर्मों और देशों के सताए गये लोगों को पनाह देता है। जहां रोमन साम्राज्य के हाथों तबाह हुए इज़राइल की पवित्र यादें हैं, जिसने दी है पारसी धर्म के लोगों को शरण। स्वामी विवेकाननंद ने कहा था कि दुनिया के सभी धर्मों का मातृधर्म है सनातन। स्वामी विवेकानंद को इस बात का भी गर्व था कि हिन्दुस्तान की धरती और सनातनी धर्म ने दुनिया को सहिष्णुता और सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पढ़ाया है। सभी धर्मों को सच के तौर पर स्वीकार करना भारतीय मिट्टी का स्वभाव है। हम धर्मनिरपेक्षता की पहली प्रयोगशाला एवं संरक्षणदाता हैं। 

जब स्वामी विवेकानंद ने विश्वधर्म सम्मेलन को संबोधित करते हुए 'अमरीकी भाइयों और बहनो' कहा था तो विश्व भ्रातृत्व का सनातनी संदेश स्पष्ट था। तत्काल संपूर्ण विश्वधर्म संसद ने करतल ध्वनि से उस संदेश का इस्तकबाल किया था। यही वजह है कि तब न्यूयॉर्क हेराल्ड ने लिखा था, "उन्हें (स्वामी विवेकानंद को) सुनकर लगता है कि भारत जैसे ज्ञानी राष्ट्र में ईसाई धर्म प्रचारक भेजना मूर्खतापूर्ण है। वे यदि केवल मंच से गुजरते भी हैं तो तालियां बजने लगती हैं।" 

भारतीय संस्कृति की जड़ों तक पहुंचने के प्रयास को स्वामी विवेकानंद आगे बढ़ाते हैं। यही सोच स्वामी विवेकानंद को दुनिया भर में स्वीकार्य भी बनाती है और उन्हें सनातन धर्म के प्रवक्ता, हिन्दुस्तान और हिन्दुस्तानी संस्कृति के प्रतीक के तौर पर स्थापित करती है। उनकी समावेशी सोच आज भी नरेंद्र मोदी की सरकार में 'सबका साथ, सबका विकास' के नारे में झलकता है। 

स्वामी विवेकानंद ने दुनिया को सिखाया कि हर कुछ अच्छा करने वालों को प्रोत्‍साहित करना हमारा कर्त्तव्य है ताकि वह सपने को सच कर सके और उसे जी सके। यह सपना अंत्योदय के उत्थान के विचार को भी जन्म देता है। जब तक देश के आखिरी गरीब के उत्थान को सुनिश्चित न कर लिया जाए, विकास बेमानी है- इस सोच का जन्म भी विवेकानंद की सोच से ही हुआ है। 

ईश्वर के बारे में स्वामी विवेकानंद की जो धारणा है वह हर धर्म के करीब है। मगर, यही सनातन धर्म के मूल में भी है। परोपकार। परोपकार ही जीवन है। इस स्वभाव से हर किसी का जुड़ना जरूरी है। वे कहते हैं, "जितना हम दूसरों की मदद के लिए सामने आते हैं और मदद करते हैं उतना ही हमारा दिल निर्मल होता है। ऐसे ही लोगों में ईश्‍वर होता है।" विभिन्न धर्मों, समुदायों, परंपराओं और सोच को स्वामी विवेकानन्द की सोच जोड़ती है। यह जड़ता से मुक्ति को प्रेरित करती है। यही वजह है कि इस देश में स्वामी विवेकानंद का किसी आधार पर कोई विरोधी नहीं है। हर कोई स्वामी के विचार के सामने नतमस्तक है। 19वीं सदी में दुनिया ने सनातनी धर्म के जिस प्रवक्ता को उनके ओजस्वी विचारों के कारण 'साइक्लोनिक हिन्दू' बताया था, आज भी दुनिया के स्तर पर वह सनातनी प्रवक्ता अपनी सकारात्मक सोच के साथ मजबूती से खड़ा है। तब भी स्वामी विवेकानंद की सोच युवा थी, आज भी युवा है। वे कालजयी हैं। कालजयी रहेंगे।
दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com

धरती की चालःहम क्यों बेहाल?

Posted: 11 Jan 2021 04:06 AM PST

धरती की चालःहम क्यों बेहाल?

धरती, धरा, धरित्री, पृथ्वी, मेदिनी आदि कई नाम हैं इसके। प्राणीमात्र को धारण करने का दायित्व है इस पर। पौराणिक प्रसंगानुसार महाराज पृथु से भी सम्बन्ध है, इस कारण पृथ्वी नाम पड़ा और महिषासुर के मेद (चर्बी) से निर्मित होने के कारण मेदिनी नाम की सार्थकता सिद्ध है। पुराण इसे विष्णुपत्नी के रुप से स्वीकारता है—
समुद्रवसने देवि ! पर्वतस्तनमण्डले।
विष्णुपत्निं ! नमस्तुभ्यं पादस्पर्शंक्षमस्वमे ।।
प्रातः शैय्या त्याग के पश्चात् पृथ्वी पर पांव धरते हैं, आघात करते हैं, इसके लिए क्षमायाचना का विधान है हमारे शास्त्रों में। पर्वत इसके स्तनमण्डल हैं, समुद्र इसके वस्त्रावरण हैं—ऐसी पवित्र चिन्तना रही है हमारी।
यहाँ समुद्र समस्त जलस्रोतों का प्रतीक है, यानी नदियाँ भी इसी लाक्षणिक शब्द-योजना में समाहित हैं। पर्वतों को स्तन मानना बहुत गहन संकेत है। वस्तुतः पृथ्वी को हमारे यहाँ माता कहा गया है—माता यानी गर्भधारण से लेकर जनन, पोषण, वर्द्धन पर्यन्त सभी दायित्व माता पर है।
वस्तुतः हमारी परम्परा रही है—हर चीज का मानवीकरण करके, देखने-समझने की। कला, विज्ञान, धर्म, नीति, अर्थ सबकुछ पौराणिक कथाओं-गाथाओं-आख्यानों में समाहित हैं— कुछ इसी अन्दाज़ में। पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश —ये ही पाँच आधार हैं सृष्टि-संरचना के। पुराण इन्हें देव-तुल्य मानते हुए पूजने की बात करते हैं। आधुनिक लोग इस संकेत को ठीक से समझ नहीं पाते, इस कारण वेद-पुराणादि की उपेक्षा करते हैं।
सच पूछें तो हम पूजा के अर्थ को भी ठीक से समझ नहीं पाये हैं, पूजन-क्रिया तो बहुत दूर की बात है। अक्षत-फूल चढ़ा देना, धूप-दीप दिखला देना ही पूजा है हमारी समझ में।
गूढ़ अर्थ के इस अनर्थ ने ही, इस नासमझी ने ही मूर्तियाँ बनाकर पूजने की परिपाटी चला दी। और यही कारण है कि सृष्टि के कण-कण में व्याप्त ईश्वरीय सत्ता की अवहेलना करते हैं, प्राणी-पदार्थ की अवहेलना करते हैं, जीवित का मोल नहीं समझते और मृतक की मूर्तियाँ बनाकर पूजने का ढोंग करते हैं। कहने को तो हम सृष्टि के श्रेष्ठतम प्राणी हैं, किन्तु यदि श्रेष्ठतम यही है तो फिर निकृष्टतम क्या होगा?
सारे दुर्गुण तो हमारे अन्दर ही भरे पड़े हैं। ये विज्ञान और तकनीकि की दक्षता की जो डींगे हाँकते हैं न—वो भी हमारे किसी न किसी दुर्गुण का ही संकेत देते हैं। हम चाँद पर जा रहे हैं, सूरज पर जाने का सपना देख रहे हैं। हमने बड़े-बड़े अत्याधुनिक अस्त्र-शस्त्रों का निर्माण कर लिया है। प्रकृति के बहुत सारे रहस्यों को जान-समझ कर, उन्हें अधिक से अधिक मनोनुकूल करने में जुटे हैं। सुख-सुविधा के सारे साधन हमने जुटा रखे हैं। चिरयुवा, दीर्घ जीवन का सपना ही नहीं, अमरता का दिवा स्वप्न भी है...।
ये सब किसी न किसी भय और स्वार्थ प्रेरित बातें ही हैं, जिन्हें हम विकास समझने की नादानी कर रहे हैं। चुँकि हम भयभीत हैं—अपने आसपास के अपने ही जैसे लोगों से, इसलिए अस्त्र-शस्त्र के निर्माण में लगे हैं। बात सिर्फ इतनी ही है कि हम रहें, कोई और रहे न रहे। धरती से ऊपर आकाश की ओर हमारी नजरें हैं, वो इसलिए कि धरती काफी नहीं है मेरे लिए। कुछ और भी चाहिए। कुछ और...कुछ और की कोई सीमा नहीं है— न धन की, न मन की।
सच्चाई ये है कि हमारे अन्दर श्रेष्ठतम बनने की सारी सम्भावनायें विद्यमान हैं—ठीक उसी तरह जैसे प्रत्येक बीज में वृक्ष बनने की सम्भावनायें निहित हैं। किन्तु क्या हर बीज बृक्ष बन ही जाता है? नहीं न ! तो फिर हर मानव महामानव भला कैसे बन सकता है? और हर मानव जब महामानव नहीं बन सकता तो, अनजाने में महादानव बनने की ओर अग्रसर हो जाता है। हम सब यही कर रहे हैं।
धरती ने थोड़ी सी चाल बदली तो भूचाल आ गया। हम बेहाल होने लगे—अरे ! ये क्या हो रहा है ? पता नहीं क्या होगा आगे? हमारे सारे सपने कहीं धरे के धरे न रह जाएं !
सीधी सी बात है—हम प्रकृति के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। ऐसे में प्रकृति हमारे साथ क्यों न खेले? अकेले-अकेले खेल में कोई मजा है क्या ?
हरे-भरे जंगलों को तहस-नहस करके, पहाड़ों को तोड़-फोड़ करके कंकरीट के जंगल खड़े कर लिए। कृषि-योग्य भूमि को भी हड़पते हुए वस्तियाँ वसा ली। सड़कें और रेललाइनों की जाल विछा ली। बड़ी-बडी फैक्ट्रियाँ बना लीं हमने। सिंचाई और विजली के नाम पर नदियों के अस्तित्व से खिलवाड़ किया। विकास के नाम पर धरती से लेकर अन्तरिक्ष तक को छलनी कर दिया। अशान्त कर दिया।
और जब सबकुछ अशान्त ही हो गया, फिर हम भला शान्त कैसे रह सकते हैं?
सुनते हैं कि धरती ने अपनी आदत बदल ली, अपनी चाल बदल ली। शायद कुछ तेजी से चलने लगी। मूर्ख आदमी तेज चले और धरती तेज न चले—ये भला कैसे हो सकता है?
हम अबतक यही जानते आए हैं कि हमारी पृथ्वी नारंगी की तरह गोल है। अपनी घूर्णनगति के परिणाम स्वरुप अपने अक्ष पर करीब 24 घंटे में एक बार घूम जाती है, जिसके कारण ही हमें दिन-रात का आभास होता है। भारतीय ज्योतिष के अनुसार ये नक्षत्र दिवस है, जो सूक्ष्म रुप से 23घंटा, 56मिनट, 4.09 सेकेंड होता है। इसी में 3 मिनट, 55.01 सेकेन्ड जोड़कर सौरदिवस की मान्यता है। इस कालगणना के अनुसार 365.256363004 दिन में अपने अण्डाकार परिभ्रमण-पथ पर संचरण करती हुयी धरती सूर्य की परिक्रमा करती है, जिसके कारण ऋतु परिवर्तन का आभास होता है। यही हमारा एक वर्ष है। उक्त कालगणना में दशमलव के बाद की कालगणना का समायोजन हम प्रत्येक चार वर्षों पर फरवरी महीने में एक दिन जोड़ कर लेते हैं, किन्तु इसके बाद भी कुछ त्रुटियाँ रह ही जाती है।
अरे मूर्ख मानव! तू तो दानव से भी बदतर है। त्रुटियाँ अभी और है, जो तुम्हें धीरे-धीरे समझ आयेंगी या हो सकता है—समझ आने से पहले ही तुम्हारा अस्तित्व ही समाप्त हो जाए, क्योंकि तूने अपने विनाश के सारे दरवाजे खोल रखा है।
लिप इयर मनाने वाला इन्सान, अब लिप सेकेन्ड और अनलिप सेकेन्ड मनाने की बात सोच रहा है,क्योंकि धरती ने अपनी गति थोड़ी बढ़ा दी है— यानी दिन 1.4602 मिली सेकेन्ड छोटा हो गया है। पिछले 50 वर्षों में 27 लिप सेकेन्ड जोड़े जा चुके हैं। जोड़ने-घटाने का ये खेल पता नहीं कहाँ ले जायेगा धरती को...धरती वालों को—वैज्ञानिक इसी में बेहाल हैं और आमलोग अपने आप में बेहाल हैं—किसी को मारने में,किसी को दबाने में, कुछ हड़पने में...।बेहाल न हों। इससे कुछ होने-जाने को नहीं है। आइये अपनी धरती माता की रक्षा के विषय में कुछ सोचें-विचारें ।
दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com

Post Bottom Ad

Pages