दिव्य रश्मि न्यूज़ चैनल |
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- चिमाजी अप्पा एक ब्राह्मण
- जिंदगी तू मुझे पहचान न पाई लेकिन
- हमारा भारत सबसे न्यारा
- शिखा : मानसिक चेतना का द्योतक
- पर्यावरण संरक्षण से जीवन संरक्षित
- आज 26 अगस्त 2021, गुरूवार का दैनिक पंचांग एवं राशिफल - सभी १२ राशियों के लिए कैसा रहेगा आज का दिन ? क्या है आप की राशी में विशेष ? जाने प्रशिद्ध ज्योतिषाचार्य पं. प्रेम सागर पाण्डेय से |
- वित्तीय समावेशन की योजनाओं को पूर्णतया कार्यान्वित करने के लिए हिंदी और क्षेत्रीय भाषाओं में काम करना आवश्यक: राज्यपाल
- शुचिता: जातीय संदर्भ
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- मुख्यमंत्री ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से 1,121 करोड़ रुपये लागत की 130 किलोमीटर लंबी चार राज्य उच्च पथों का किया लोकार्पण
- मैत्री संस्कृति : भाषाएं
- कुत्ते भुंक रहे हैं
- संस्कार ,संस्कृति और ब्राह्मण
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- डॉक्टरेट की उपाधि मिला सुनील कुमार सिंह को
- AGBP की राष्ट्रीय कार्यकरिणी ने 'आंदोलन' के लिए किया वेबिनार
- यूथ होस्टल्स एशोसिएशन ने बीपीएससी में सफलता हासिल करने वाली अनुपम कुमारी को किया सम्मानित
- कानून का डर न था
- ‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’ को नई दिल्ली में अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक सम्मेलन में ‘हिन्दू और नाजी स्वस्तिक’ के पीछे आध्यात्मिक अंतर पर अपने शोध के लिए सर्वश्रेष्ठ पेपर पुरस्कार प्राप्त हुआ ।
- जबकि कविता
सनातन धर्म ग्रंथ की वैज्ञानिकता Posted: 25 Aug 2021 11:10 PM PDT सनातन धर्म ग्रंथ की वैज्ञानिकतासत्येन्द्र कुमार पाठक ज्योतिष शास्त्रों , स्मृतियों और पुराणों में कल्प एवं मन्वन्तर का उल्लेख किया गया है। शिव पुराण के अनुसार भगवान शिव से सृष्टि उत्पत्ति होती है । विष्णु पुराण में भगवान विष्णु से देवों का आविर्भाव हुआ है । ब्रह्म पुराण के अनुसार देवों के रचयिता ब्रह्मा जी हैं । शिव पुराण के " वायवीय संहिता " और लिंगपुराण के अनुसार भगवान शिव द्वारा 28 अवतार लेकर सृष्टि प्रारम्भ किया गया है । ब्रह्मा, विष्णु और रुद्र कारणात्मा और चराचर जगत् की सृष्टि, पालन और संहार और साक्षात् महेश्वर से प्रकट हुए हैं । ब्रह्मा की सृष्टि कार्य में , विष्णु की रक्षा कार्य में तथा रुद्र की संहारकार्य में नियुक्ति हुई थी । कल्पान्तर में परमेश्वर शिव के प्रसाद से रुद्र देव ने ब्रह्मा और नारायण की सृष्टि की थी । इसी तरह दूसरे कल्प में जगन्मय ब्रह्मा ने रुद्र तथा विष्णु को उत्पन्न किया था । फिर कल्पान्तर में भगवान् विष्णु ने रुद्र तथा ब्रह्मा की सृष्टि की थी । इस तरह पुनः ब्रह्मा ने नारायण की और रुद्र देव ने ब्रह्मा की सृष्टि की । इस प्रकार विभिन्न कल्पों में ब्रह्मा , विष्णु और महेश्वर परस्पर उत्पन्न होते और एक दूसरे का हित चाहते हैं । विष्णु का सप्तम वाराह कल्प चल रहा है । याने 7 × 4 ( चतुर्युग ) = 28 , अभी अठाईसवां चतुर्युग चल रहा है । 1000 ( एक हजार ) चतुर्युग बीतने पर कल्प ब्रह्मा जी का एक दिन कहलाता है । शिव जी के 28 ( अठाईस ) अवतारों में प्रथम अवतार का नाम श्वेत था । भगवान विष्णु का 23 वें अवतार में प्रथम अवतार वाराह कल्प था । " विश्व रुप कल्प " ब्रह्मा जी को समर्पित है । इस तरह हम पाते हैं कि हमारे। अठारहों पुराणों की कुल श्लोक संख्या चार लाख है । वैज्ञानिक एवं सटिक गणना विश्व के ज्योतिष ज्ञान है । कल्पों विवरण - ब्रह्म लोक का एक सहस्र चतुर्युग याने 43,20,000 मानवीय वर्ष × 1,000 = 4,32,00,00,000 ( चार अरब बत्तीस करोड़ मनुष्य वर्ष ) को एक कल्प कहते हैं । यों तो कल्प अनन्त हैं, क्योंकि अभी तक अनेकों ब्रह्मा आ चुके हैं । प्रत्येक ब्रह्मा की आयु सौ वर्ष निर्धारित है । अतः 30 × 12 = 360 × 100 = 36,000 कल्प एक ब्रह्मा के लिए है । ऋषि - महर्षियों ने वायु पुराण द्वारा 35 कल्पों का निर्धारण किया है जिसके समाप्त होने पर पुनः एक से शुरुआत होकर 35 ( पैतीस ) है । ( 1 ) भव कल्प ;( 2 ) भुव कल्प ; ( 3 ) तपः कल्प ;( 4 ) भव ( 5 ) रम्भ कल्प ;( 6 ) ऋतु कल्प ;( 7 ) क्रतु कल्प ;( 8 ) वह्नि कल्प ;( 9 ) हव्य वाहन कल्प ;(10) सावित्र कल्प ;(11) भुवः कल्प ;(12) उशिक कल्प ;(13) कुशिक कल्प ;(14) गान्धार कल्प ;(15) ऋषभ कल्प ;(16) षड्ज कल्प ; (17) मार्जालीय कल्प ;(18) मध्यम कल्प ;(19) वैराजक कल्प ;(20) निषाद कल्प ;(21) पञ्चम कल्प ;(22) मेघ वाहन कल्प ;(23) चिन्तक कल्प (24) आकूति कल्प ;(25) विज्ञाति कल्प ; (26) मन कल्प ;(27) भाव कल्प ;(28) वृहत् कल्प ; (29) श्वेत लोहित कल्प ;(30) रक्त कल्प ;(31) पीतवाशा कल्प ;(32) कृष्ण कल्प ;(33) विश्व रुप कल्प ;(34) श्वेत कल्प और (35) वाराह कल्प है । श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार भगवान विष्णु से उत्पन्न ब्रह्मा जी की आयु 100 वर्ष है ।ब्रह्मा जी की आयु 50 वर्ष पूर्वपरार्ध तथा 50 वर्ष द्वितीय परार्ध कहा है ।सतयुग , त्रेता , द्वापर और कलियुग को शामिल कर महायुग कहा गया है ।एक हजार महायुग व्यतीत होने पर ब्रह्मा का एक डिनर एक रात होती है ।सबत्सराबली तथा महाभारत के रचयिता महर्षि कृष्णद्वैपायन व्यास के अनुसार ब्रह्मा जी के 51 वर्ष प्रथम दिन के 6 मन्वन्तर गत हो गए है ।14 मनुशासन में स्वायम्भुव मनु , स्वारोचिष मनु ,उतम मनु ,तामस मनु ,रैवत ,चाक्षषु ,वैवस्वत ,सावर्णि ,दक्ष सावर्णि ,ब्रह्मसवर्णी , धर्म सावर्णि , रुद्र सावर्णि ,देव सावर्णि तथा इंद्र सावर्णि है । 7वें वैवस्वत मनु काल का 28 वां महायुग प्रारम्भ है ।प्रत्येक मनु का शासन 71 महायुग का होता है ।एक महायुग में सौर वर्ष 4323000वर्ष है । 14 मनुओं का राज्य को एक कल्प या ब्रह्मा जी का एक दिन है । मनुमय सृष्टि के सौर वर्ष 1955885122 , कलियुग 5122 विक्रम संबत 2078 , ईस्वी सम्वत 2021 शालिवाहन संबत 1943 , फसली संबत 1428 , बांग्ला संबत 1428 ,नेपाली संबत 1141 ,हिजरी संबत 1442 प्रारम्भ है । दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com |
Posted: 25 Aug 2021 11:01 PM PDT चिमाजी अप्पा एक ब्राह्मणसंकलन अश्विनी कुमार तिवारी मुंबई के पास एक स्थान है वसई जहाँ समुद्र किनारे पुर्तगालियो द्वारा बनवाया एक किला है, इस किले पर पहुँचने के लिए आपको एक बस स्टॉप पर उतरना होता है जिसका नाम है चिमाजी अप्पा जंक्शन। किसी भी स्थान के नाम के पीछे उस जगह का इतिहास छिपा होता है, यह बात थोड़ी जिज्ञासा पैदा करती है कि आखिर पुर्तगालियो के किले का चिमाजी अप्पा से क्या लेना देना होगा। चिमाजी अप्पा एक ब्राह्मण, पेशवा बाजीराव के छोटे भाई और मराठा सेना के जनरल थे। उत्सुकता में इस किले का इतिहास निकालना पड़ा और जो सच सामने आया उसने झकझोर कर रख दिया और सोचने पर मजबूर कर दिया कि आखिर चिमाजी अप्पा जैसे महापुरुष इतिहास में कहाँ गुमनाम हो गए। नेहरूजी पर दोषारोपण कर भी दिया जाए तो हिंदूवादियों ने भी इन्हें प्रसिद्धि दिलाने का क्या प्रयास किया?? भारत को गुलाम बनाने का सपना सबसे पहले पुर्तगालियो ने ही देखा था ये मुगलो से पहले भारत मे आ गए थे। सन 1738 तक इन्होंने मुंबई और गोवा पर कब्जा कर लिया साथ ही एक अलग राष्ट्र की घोषणा कर दी। उस समय मराठा साम्राज्य बेहद शक्तिशाली हो चुका था। ठीक एक साल पहले पेशवा बाजीराव दिल्ली और भोपाल में सारे रणबांकुरों को धूल चटाकर लौटे थे। बाजीराव ने पुर्तगालियो को संदेश भेजा कि आप मुंबई और गोवा में व्यापार करें मगर ये दोनो मराठा साम्राज्य और भारत के अंग हैं इसलिए मुगलो की तरह आप भी हमारी अधीनता स्वीकार करें। जब पुर्तगाली नही माने तो बाजीराव ने अपने छोटे भाई और मराठा जनरल श्री चिमाजी अप्पा को युद्ध का आदेश दिया। चिमाजी अप्पा ने पहले गोवा पर हमला किया और वहाँ के चर्चो को तहस नहस कर दिया इससे पुर्तगालियो की आर्थिक कमर टूट गयी। फिर वसई आये जहाँ ये किला है। चिमाजी अप्पा ने 2 घंटे लगातार किले पर बमबारी की और पुर्तगालियो ने सफेद झंडा दिखाया, चिमाजी अप्पा ने किले पर मराठा ध्वज फहराया और पुर्तगालियो ने समझौता किया कि वे सिर्फ व्यापार करेंगे और अपने लाभ का एक चौथाई हिस्सा मराठा साम्राज्य को कर के रुप में देंगे। चिमाजी अप्पा ने सारे हथियार, गोला, बारूद जब्त कर लिए। इस युद्ध ने पुर्तगालियो की शक्ति का अंत कर दिया और भारत पर राज करने का सपना आखिर सपना ही बनकर रह गया। हिन्दू धर्म मे यह बेहद दुर्लभ है कि किसी व्यक्ति को शस्त्र के साथ शास्त्र का भी ज्ञान हो, चिमाजी अप्पा उन्ही लोगो मे से एक थे। वसई का किला खण्डहर हो चुका है कुछ सालो में शायद खत्म भी हो जाये मगर उस बस स्टॉप का नाम हमेशा भारत के गौरवशाली इतिहास का स्मरण कराता रहेगा कि एक भरतवंशी योद्धा इस जगह आया था जिसने मातृभूमि को पराधीनता में जकड़े जाने से पहले ही आज़ाद कर लिया और इतिहास में अमर हो गया। नीचे किले में बनी चिमाजी अप्पा की मूर्ति है। चिमाजी अप्पा अपनी विजयी मुद्रा में खड़े आज अपने अस्तित्व का युद्ध भी लड़ रहे है क्योकि राष्ट्रवादी व्यस्त है अपनी राजनीति में।। ✍🏻परख सक्सेना कोलाचेल युद्ध में डचों को हराने वाले राजा मार्तण्ड वर्मा : इतिहास की पुस्तकों से गायब डच वर्तमान नीदरलैंड (यूरोप) के निवासी हैं. भारत में व्यापार करने के उद्देश्य से इन लोगों ने 1605 में डच ईस्ट इंडिया कंपनी बनायीं और ये लोग केरल के मालाबार तट पर आ गए. ये लोग मसाले, काली मिर्च, शक्कर आदि का व्यापार करते थे. धीरे धीरे इन लोगों ने श्रीलंका, केरल, कोरमंडल, बंगाल, बर्मा और सूरत में अपना व्यवसाय फैला लिया. इनकी साम्राज्यवादी लालसा के कारण इन लोगों ने अनेक स्थानों पर किले बना लिए और सेना बनायीं. श्रीलंका और ट्रावनकोर इनका मुख्य गढ़ था. स्थानीय कमजोर राजाओं को हरा कर डच लोगों ने कोचीन और क्विलोन (quilon) पर कब्ज़ा कर लिया. उन दिनों केरल छोटी छोटी रियासतों में बंटा हुआ था. मार्तण्ड वर्मा एक छोटी सी रियासत वेनाद का राजा था. दूरदर्शी मार्तण्ड वर्मा ने सोचा कि यदि मालाबार (केरल) को विदेशी शक्ति से बचाना है तो सबसे पहले केरल का एकीकरण करना होगा. उसने अत्तिंगल, क्विलोन (quilon) और कायामकुलम रियासतों को जीत कर अपने राज्य की सीमा बढाई. अब उसकी नज़र ट्रावनकोर पर थी जिसके मित्र डच थे. श्रीलंका में स्थित डच गवर्नर इम्होफ्फ़ (Gustaaf Willem van Imhoff) ने मार्तण्ड वर्मा को पत्र लिख कर कायामकुलम पर राज करने पर अप्रसन्नता दर्शायी. इस पर मार्तण्ड वर्मा ने जबाब दिया कि 'राजाओं के काम में दखल देना तुम्हारा काम नहीं, तुम लोग सिर्फ व्यापारी हो और व्यापार करने तक ही सीमित रहो'. कुछ समय बाद मार्तण्ड वर्मा ने ट्रावनकोर पर भी कब्ज़ा कर लिया. इस पर डच गवर्नर इम्होफ्फ़ ने कहा कि मार्तण्ड वर्मा ट्रावनकोर खाली कर दे वर्ना डचों से युद्ध करना पड़ेगा. मार्तण्ड वर्मा ने उत्तर दिया कि 'अगर डच सेना मेरे राज्य में आई तो उसे पराजित किया जाएगा और मै यूरोप पर भी आक्रमण का विचार कर रहा हूँ'. ['I would overcome any Dutch forces that were sent to my kingdom, going on to say that I am considering an invasion of Europe'- Koshy, M. O. (1989). The Dutch Power in Kerala, 1729-1758) ] डच गवर्नर इम्होफ्फ़ ने पराजित ट्रावनकोर राजा की पुत्री स्वरूपम को ट्रावनकोर का शासक घोषित कर दिया. इस पर मार्तण्ड वर्मा ने मालाबार में स्थित डचों के सारे किलों पर कब्ज़ा कर लिया. अब डच गवर्नर इम्होफ्फ़ की आज्ञा से मार्तण्ड वर्मा पर आक्रमण करने श्रीलंका में स्थित और बंगाल, कोरमंडल, बर्मा से बुलाई गयी 50000 की विशाल डच जलसेना लेकर कमांडर दी-लेननोय कोलंबो से ट्रावनकोर की राजधानी पद्मनाभपुर के लिए चला. मार्तण्ड वर्मा ने अपनी वीर नायर जलसेना का नेतृत्व स्वयं किया और डच सेना को कन्याकुमारी के पास कोलाचेल के समुद्र में घेर लिया. कई दिनों के भीषण समुद्री संग्राम के बाद 31 जुलाई 1741 को मार्तण्ड वर्मा की जीत हुई. इस युद्ध में लगभग 11000 डच सैनिक बंदी बनाये गए, शेष डच सैनिक युद्ध में हताहत हो गए. डच कमांडर दी-लेननोय, उप कमांडर डोनादी तथा 24 डच जलसेना टुकड़ियों के कप्तानो को हिन्दुस्तानी सेना ने बंदी बना लिया और राजा मार्तण्ड वर्मा के सामने पेश किया. राजा ने जरा भी नरमी न दिखाते हुए उनको आजीवन कन्याकुमारी के पास उदयगिरी किले में कैदी बना कर रखा. अपनी जान बचाने के लिए इनका गवर्नर इम्होफ्फ़ श्रीलंका से भाग गया. पकडे गए 11000 डच सैनिकों को नीदरलैंड जाने और कभी हिंदुस्तान न आने की शर्त पर वापस भेजा गया, जिसे नायर जलसेना की निगरानी में अदन तक भेजा गया, वहां से डच सैनिक यूरोप चले गए. कुछ वर्षों बाद कमांडर दी-लेननोय और उप कमांडर डोनादी को राजा ने इस शर्त पर क्षमा किया कि वे आजीवन राजा के नौकर बने रहेंगे तथा उदयगिरी के किले में राजा के सैनिकों को प्रशिक्षण देंगे. इस तरह नायर सेना यूरोपियन युद्ध कला में निपुण हुई. उदयगिरी के किले में कमांडर दी-लेननोय की मृत्यु हुई, वहां आज भी उसकी कब्र है. केरल और तमिलनाडु के बचे खुचे डचों को पकड़ कर राजा मार्तण्ड सिंह ने 1753 में उनको एक और संधि करने पर विवश किया जिसे मवेलिक्कारा की संधि कहा जाता है. इस संधि के अनुसार डचों को इंडोनेशिया से शक्कर लाने और काली मिर्च का व्यवसाय करने की इजाजत दी जायेगी और बदले में डच लोग राजा को यूरोप से उन्नत किस्म के हथियार और गोला बारूद ला कर देंगे. राजा ने कोलाचेल में विजय स्तम्भ लगवाया और बाद में भारत सरकार ने वहां शिला पट्ट लगवाया. मार्तण्ड वर्मा की इस विजय से डचों का भारी नुकसान हुआ और डच सैन्य शक्ति पूरी तरह से समाप्त हो गयी. श्रीलंका, कोरमंडल, बंगाल, बर्मा एवं सूरत में डचो की ताकत क्षीण हो गयी. राजा मार्तण्ड वर्मा ने छत्रपति शिवाजी से प्रेरणा लेकर अपनी सशक्त जल सेना बनायीं थी. तिरुवनन्तपुरम का प्रसिद्द पद्मनाभस्वामी मंदिर राजा मार्तण्ड वर्मा ने बनवाया और अपनी सारी संपत्ति मंदिर को दान कर के स्वयं भगवान विष्णु के दास बन गए. इस मंदिर के 5 तहखाने खोले गए जिनमे बेशुमार संपत्ति मिली. छठा तहखाना खोले जाने पर अभी रोक लगी हुई है. यह दुख की बात है कि महान राजा मार्तण्ड वर्मा और कोलाचेल के युद्ध को NCERT की इतिहास की पुस्तकों में कोई जगह न मिल सकी. 1757 में अपनी मृत्यु से पूर्व दूरदर्शी राजा मार्तण्ड वर्मा ने अपने पुत्र राजकुमार राम वर्मा को लिखा था - 'जो मैंने डचों के साथ किया वही बंगाल के नवाब को अंग्रेजों के साथ करना चाहिए. उनको बंगाल की खाड़ी में युद्ध कर के पराजित करें, वर्ना एक दिन बंगाल और फिर पूरे हिंदुस्तान पर अंग्रेजो का कब्ज़ा हो जाएगा'. छत्रपति संभाजी महाराज ने शस्त्र युक्त नौ जहाज का निर्माण किया यह कहना गलत नही होगा संभाजी महाराज नौ वैज्ञानिक तो थे ही साथ में शस्त्र विशेषज्ञ भी थे उन्हें ज्ञात था कौनसा नौके में कितने वजन का तोप ले जा सकता हैं । छत्रपति शिवाजी महाराज नौसेना के जनक थे केवल भारत ही नही अपितु पुरे विश्व को नौ सेना बनाने का विचार सूत्र दिया नौका को केवल वाहन रूप में इस्तेमाल किया जाता था शिवाजी महाराज प्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने साधारण नौका को समंदर का रक्षक का रूप दे दिया शस्त्रयुक्त लड़ाकू जहाज बनाकर । शिवपुत्र संभाजी महाराज समंदर के अपराजय योद्धा थे समंदर की रास्ता उन्हें अपनी हथेलियों की लकीर जैसी मालूम थी , इसलिए पुर्तगालियों के पसीने छूटते थे संभाजी महाराज के नाम से केवल। पुर्तगाली साथ युद्ध-: 'छत्रपति संभाजी महाराजने गोवामें पुर्तगालियों से किया युद्ध राजनीतिक के साथ ही धार्मिक भी था । हिंदुओं का धर्मांतरण करना तथा धर्मांतरित न होनेवालों को जीवित जलाने की शृंखला चलानेवाले पुर्तगाली पादरियों के ऊपरी वस्त्र उतार कर तथा दोनों हाथ पीछे बांधकर संभाजी महाराज ने गांव में उनका जुलूस निकाला ।' – प्रा. श.श्री. पुराणिक (ग्रंथ : 'मराठ्यांचे स्वातंत्र्यसमर (अर्थात् मराठोंका स्वतंत्रतासंग्राम' डपूर्वार्ध़) छत्रपति संभाजी महाराज अत्यंत क्रोधित हुए क्योंकि गोवा में पुर्तगाली हिन्दुओं के धर्म परिवर्तन के साथ साथ मंदिरों को ध्वंश भी कर रहे थे। छत्रपति संभाजी महाराज द्वारा किये जा रहे हमले से अत्यंत भयभीत होगे थे जो पोर्तुगाली के लिखे चिट्ठी में दर्शाता हैं : " संभाजी आजके सबसे पराक्रमी व्यक्ति हैं और हमें इस बात का अनुभव हैं" । यह रहा पोर्तुगाली इसाई कसाइयों द्वारा लिखा हुआ शब्द-: (The Portuguese were very frightened of being assaulted by Sambhaji Maharaj, and this reflects in their letter to the British in which they wrote, 'Now-a-days Sambhaji is the most powerful person and we have experienced it'. ) संभाजी महाराज गोवा की आज़ादी एवं हिन्दुओ के उप्पर हो रहे अत्याचारों का बदला लेने के लिए 7000 मावले इक्कट्ठा किया और पुर्तगालीयों पर आक्रमण कर दिया पुर्तगाली सेना जनरल अल्बर्टो फ्रांसिस के पैरो की ज़मीन खिसक गई महाराज संभाजी ने 50,000 पुर्तगालीयों सेना को मौत के घाट उतार दिया बचे हुए पुर्तगाली अपने सामान उठाकर चर्च में जाकर प्रार्थना करने लगे और कोई चमत्कार होने का इंतेज़ार कर रहे थे संभाजी महाराज के डर से समस्त पुर्तगाली लूटेरे पंजिम बंदरगाह से 500 जहाजों पर संभाजी महाराज के तलवारों से बच कर कायर 25000 से अधिक पुर्तगाली लूटेरे वापस पुर्तगाल भागे । संभाजी महाराज ने पुरे गोवा का शुद्धिकरण करवाया एवं ईसाइयत धर्म में परिवर्तित हुए हिंदुओं को हिंदू धर्म में पुनः परिवर्तित किया । पुर्तगाली सेना के एक सैनिक मोंटिरो अफोंसो वापस पुर्तगाल जाकर किताब लिखा (Drogas da India) लिखता हैं संभाजी महाराज को हराना किसी पहाड़ को तोड़ने से ज्यादा मुश्किल था महाराज संभाजी के आक्रमण करने की पद्धति के बारे में से ब्रिटिश साम्राज्य तक भयभीत होगया गया था अंग्रेजो और हम (पुर्तगाल) समझ गए थे भारत को गुलाम बनाने का सपना अधुरा रह जायेगा। संभाजी महाराज की युद्धनिति थी अगर दुश्मनों की संख्या ज्यादा हो या उनके घर में घुसकर युद्ध करना हो तो घात लगा कर वार करना चाहिए जिसे आज भी विश्व के हर सेना इस्तेमाल करती हैं जिसे कहते हैं Ambush War Technic। पुर्तगाल के सैनिक कप्तान अफोंसो कहता हैं संभाजी महाराज के इस युद्ध निति की कहर पुर्तगाल तक फैल गई थी संभाजी महाराज की आक्रमण करने का वक़्त होता था रात के ८ से ९ बजे के बीच और जब यह जान बचाकर पुर्तगाल भागे तब वहा भी कोई भी पुर्तगाली लूटेरा इस ८ से ९ बजे के बीच घर से नहीं निकलता था in लूटेरो को महाराज संभाजी ने तलवार की वह स्वाद चखाई थी जिससे यह अपने देश में भी डर से बहार नहीं निकलते थे घर के । हिंदू धर्म में पुनः परिवर्तित किया गया :हम सभी जानते हैं छत्रपति शिवाजी महाराज के निकट साथी, सेनापति नेताजी पालकर जब औरंगजेब के हाथ लगे और उसने उनका जबरन धर्म परिवर्तन कर उसका नाम मोहम्मद कुलि खान रख दिया । शिवाजी महाराज ने मुसलमान बने नेताजी पालकर को ब्राम्हणों की सहायता से पुनः हिन्दू बनाया और उनको हिन्दू धर्म में शामिल कर उनको प्रतिष्ठित किया। हालांकि, यह ध्यान देने की बात हैं संभाजी महाराज ने हिंदुओं के लिए अपने प्रांत में एक अलग विभाग स्थापित किया था जिसका नाम रखा गया 'पुनः परिवर्तन समारोह' दुसरे धर्म में परिवर्तित होगये हिन्दुओ के लिए इस समारोह का आयोजन किया गया था । हर्षुल नामक गाँव में कुलकर्णी ब्राह्मण रहता था संभाजी महाराज पर लिखे इतिहास में इस वाकया का उल्लेख हैं कुलकर्णी नामक ब्राह्मण को ज़बरन इस्लाम में परिवर्तित किया था मुगल सरदारों ने कुलकर्णी मुगल सरदारों की कैद से रिहा होते ही संभाजी महाराज के पास आकर उन्होंने अपनी पुन: हिन्दू धर्म अपनाने की इच्छा जताई संभाजी महाराज ने तुरंत 'पुनः धर्म परिवर्तन समारोह का योजन करवाया और हिन्दू धर्म पुनःपरिवर्तित किया । ✍🏻मनीषा सिंह |
जिंदगी तू मुझे पहचान न पाई लेकिन Posted: 25 Aug 2021 08:18 AM PDT जिंदगी तू मुझे पहचान न पाई लेकिनलोग कहते हैं कि मैं तेरा नुमाइंदा हूं। बस गई है मेरे अहसास में ये कैसी उजाले , अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो , न जाने किस गली में ज़िंदगी की शाम हो जाए। जिस दिन से चला हूं मुझे मंज़िल पे नज़र है आंखों ने कभी मील का पत्थर नहीं देखा। हम भी दरिया हैं, हमें अपना हुनर मालूम है, जिस तरफ़ भी चल पड़ेंगे, रास्ता हो जाएगा। मकान से क्या मुझे लेना मकान , तुमको मुबारक हो मगर ये घास वाला रेशमी कालीन मेरा है। [ संजय कुमार झा ] दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com |
Posted: 25 Aug 2021 08:16 AM PDT हमारा भारत सबसे न्याराडॉ. इंदु कुमारी भारत भूमि हमें तुमसे प्यार है जननी हमारी हम सेवा में तैयार है शीश-मुकुट अडिग हिमालय चरणों को धोता सागर है पावन गंगा बहती यहां पर नदिया संगम की धारा है गंगा सागर की दृश्य मनोरम प्रकृति का सुन्दर उपहार है भारत भूमि हमें तुमसे प्यार है कृषि उत्पादन देश हमारा ऋषि प्रधान देश है ये सभी धर्मो के फूल खिले हैं भारत भूमि उनके आधार है एकता रूपी धागा मेंबंधकर आपस में नहीं तकरार है भारत भूमि हमें तुमसे प्यार है रिति-रिवाजों के सुन्दर रेले है पर्व त्योहारों के लगते मेले है वक्त आने पर भारत भूमि के जवानों करते जान निसार है हिंदी विभाग , मधेपुरा बिहार दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com |
Posted: 25 Aug 2021 07:41 AM PDT शिखा : मानसिक चेतना का द्योतकसत्येन्द्र कुमार पाठक सनातन धर्म शास्त्र के अनुसार सनातन धर्म में इंसान को चोटी रखने से मानसिक शांति, स्वास्थ्य और ज्ञान संस्कार होते है । सिख, बौद्ध, जैन और अन्य धर्मों के अनुसार धर्म में नियम परंपराओं व मान्यताओं के आधार पर वैज्ञानिक महत्व के कारण हैं। सनातन धर्म के विभिन्न संप्रदायों में परंपरा के अनुसार उपासना , पूजा, कर्मकांड, और यज्ञ आदि से कार्य कराने वालों को चोटी रखना है । सुश्रुत संहिता में चोटी रखने का कारण, महत्व और नियम और चोटी के महत्व और वैज्ञानिक तथ्य है। सुश्रुत संहिता में उल्लेख किया गया है कि चोटी सिर पर कहां और कितनी रखनी चाहिए।बच्चे का जब पहले साल के अंत, तीसरे साल या पांचवें साल में जब मुंडन किया जाता है तो सिर में थोड़ी बाल रख दिए जाने के लिए चोटी को मुंडन संस्कार कहते हैं। सिर पर शिखा या चोटी रखने का संस्कार यज्ञोपवित या उपनयन संस्कार में किया जाता है। सिर के जिस स्थान पर चोटी को सहस्त्रार चक्र कहते हैं। चोटी के नीचे मनुष्य की आत्मा निवास करती है। विज्ञान के अनुसार चोटी स्थल मंस्तिस्क केंद्र से बुद्धि, मन, और शरीर के अंगों को नियंत्रित किया जाता है। चोटी रखने से मस्तिष्क का संतुलन बना रहता है। शिखा रखने से सहस्रार चक्र को जागृत करने और शरीर, बुद्धि व मन पर नियंत्रण करने में सहायता मिलती है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार सहस्रार चक्र का आकार गाय के खुर के समान रहने के कारण चोटी गाय के खुर के बराबर रखी जाती है।सुश्रुत संहिता में उल्लेख है कि मस्तक ऊपर सिर पर जहां बालों का आवृत (भंवर) होने से सम्पूर्ण नाडिय़ों व संधियों का मेल होता है। भवर स्थान को 'अधिपतिमर्म' कहा गया है। अधिपतिमर्म के स्थान पर चोंट लगने पर मनुष्य की तत्काल मौत हो जाती है।सुषुम्ना के मूल स्थान को 'मस्तुलिंग' कहते हैं। मस्तिष्क के साथ ज्ञानेन्द्रियों-कान, नाक, जीभ, आंख और कर्मेन्द्रियों-हाथ, पैर, गुदा, इंद्रिय का संबंध मस्तुलिंगंग है। मस्तिष्क मस्तुलिंगंग जितने सामर्थ्यवान होते हैं, उतनी ही ज्ञानेन्द्रियों और कर्मेन्द्रियों की शक्ति बढ़ती है। माना जाता है कि मस्तिस्क को ठंडक की जरूरत होती है। जिसके लिए क्षौर कर्म और गोखुर के बराबर शिखा रखनी जरूरी होती है । व्यक्ति में अज्ञानता में या फैशन में आकर चोटी रखने पर फायदे से ज्यादा नुकसान हो सकता है। शिखा (चोटी) स्थान शरीर के अंगों, बुद्धि और मन को नियंत्रित करने का स्थान मनुष्य के मस्तिष्क को संतुलित रखने का काम करती है।वैज्ञानिक के अनुसार सिर पर शिखा वाले भाग के नीचे सुषुम्ना नाड़ी कपाल तन्त्र की सबसे अधिक संवेदनशील तथा उस भाग के खुला होने के कारण वातावरण से उष्मा व विद्युत-चुम्बकी य तरंगों का मस्तिष्क से आदान प्रदान करता है।शिखा ( चोटी) नही रहने से वातावरण के साथ मस्तिष्क का ताप भी बदलता रहता है । शिखा ताप को आसानी से संतुलित और , ऊष्मा की कुचालकता की स्थिति उत्पन्न करके वायुमण्डल से ऊष्मा के स्वतः आदान - प्रदान को रोक से शिखा रखने वाले मनुष्य का मस्तिष्क.का बाह्य प्रभाव से अपेक्षाकृत कम प्रभावित और मस्तिष्क संतुलित रहता है ।वैज्ञानिकों के अनुसार शरीर में पांच चक्र तथा, सिर के बीचों बीच मौजूद सहस्राह चक्र को प्रथम एवं, 'मूलाधार चक्र' रीढ़ के निचले हिस्से से शरीर का आखिरी चक्र माना गया है । महर्षियो , ऋषियों , मुनियों और वैज्ञानिकों द्वारा शिखा का महत्त्वपूर्ण स्थान दिया गया है । शिखा रखने से ज्ञान , बुद्धि ,शांति तथा शारीरिक क्षमता का विकास होते है । वैदिक और संहिताओं में चोटी रखने का महत्व दिया गया है ।दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com |
पर्यावरण संरक्षण से जीवन संरक्षित Posted: 25 Aug 2021 07:40 AM PDT पर्यावरण संरक्षण से जीवन संरक्षितसत्येन्द्र कुमार पाठक पर्यावरण की सुरक्षा और संरक्षण के लिये विश्व विश्व पर्यावरण दिवस मनाने की घोषणा संयुक्त राष्ट्र ने पर्यावरण के प्रति वैश्विक स्तर पर राजनीतिक और सामाजिक जागृति लाने हेतु वर्ष 1972 में की थी। पर्यावरण दिवस को 5 जून से 16 जून तक संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा आयोजित विश्व पर्यावरण सम्मेलन में चर्चा के बाद प्रारंभ किया गया था। 5 जून 1974 को प्रथम विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया। विश्व पर्यावरण दिवस को संयुक्त राष्ट्र विश्व पर्यावरण दिवस के रूप में ईको डे , वर्ल्ड एनवायरनमेंट डे ,डब्लू ई ड मानते है । वर्ष 1972 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा मानव पर्यावरण विषय पर संयुक्त राष्ट्र महासभा का आयोजन के दौरान विश्व पर्यावरण दिवस का सुझाव दिया गया । 5 जून 1974 से पर्यावरण दिवस मनाना प्रारंभ कर दिया गया। प्रत्येक वर्ष 143 देश के सरकारी, सामाजिक और व्यावसायिक लोग पर्यावरण की सुरक्षा, समस्या आदि विषय पर व्याख्यान करते हैं। पर्यावरण को सुधारने के लिए लोगों में पर्यावरण जागरूकता को जगरुकता हेतु संयुक्त राष्ट्र द्वारा संचालित विश्व पर्यावरण दिवस विश्व का सबसे बड़ा वार्षिक आयोजन है। पर्यावरण दिवस का उद्देश्य प्रकृति की रक्षा के लिए जागरूकता बढ़ाना और दिन-प्रतिदिन बढ़ रहे विभिन्न पर्यावरणीय मुद्दों को परखना है। विश्व पर्यावरण दिवस के उपलक्ष्य पर भोपाल में स्थानी वृक्षों के बीज को मिट्टी की गेंद बना कर पुनर्रोपित करने की कार्यशाला प्रारम्भ की गई थी । 1974 में संयुक्त राज्य अमेरिका ने केवल एक दुनियां , 1975 में बांग्लादेश का ढाका में मानव निपटान , 1976 में कनाडा में पानी: जीवन हेतु महत्वपूर्ण संसाधन , 1977 को बांग्ला देश में ओजोन परत पर्यावरण संबंधी चिंता; भूमि हानि और मृदा क्षरण , 1978 में बांग्लादेश द्वारा बिना विनाश के विकास तथा 1979 को हमारे बच्चों के लिए एक ही भविष्य है - बिना विनाश के विकास , 1980 नई सदी की नई चुनौती: बिना विनाश के विकास ,1981 में भूजल; मानव खाद्य श्रृंखला में जहरीले रसायन , 1982 को स्टॉकहोम में पर्यावरण संबंधी चिंता का नवीकरण , 1983 को बबांग्ला देश में खतरनाक अपशिष्ट प्रबंधन और निपटान: अम्लीय वर्षा और ऊर्जा, 1984 को बांग्लादेश में बंजरता , 1985 में पाकिस्तान में युवा: जनसंख्या और पर्यावरण, 1986 को कनाडा में शांति के लिए एक पेड़ , 1987 को केन्या में पर्यावरण और शरण: एक छत से ज्यादा विषय पर विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया है । सच्चिदानन्द शिक्षा एवं समाज कल्याण संस्थान के सचिव साहित्यकार व इतिहासकार सत्येन्द्र कुमार पाठक ने कहा कि पर्यावरण 'परि' का आशय चारों ओर तथा 'आवरण' का परिवेश है। पर्यावरण अर्थात वनस्पतियों ,प्राणियों,और मानव तथा सजीवों और भौतिक परिसर को पर्यावरण कहतें हैं । पर्यावरण में वायु ,जल ,भूमि ,पेड़-पौधे, जीव-जन्तु , मानव और उसकी विविध गतिविधियों के परिणाम समावेश होता हैं। तंजानिया के उत्तरी भाग में सेरेन्गेटी सवाना मैदान में हाथी और ज़ेब्रा के लिए पर्यावरण के अनुकूल आवास बनाया गया है । विज्ञान के क्षेत्र में असीमित प्रगति तथा आविष्कारों की स्पर्धा के कारण मानव प्रकृति पर पूर्णतया विजय प्राप्त करने के कारण प्रकृति का संतुलन बिगड़ गया है। वैज्ञानिक उपलब्धियों से मानव प्राकृतिक संतुलन को उपेक्षा की दृष्टि से देख रहा है। भूस्थल पर जनसंख्या की निरंतर वृद्धि , औद्योगीकरण एवं शहरीकरण की तीव्र गति से जहाँ प्रकृति के हरे भरे क्षेत्रों को समाप्त किया जा रहा है । प्रगति की दौड़ में आज का मानव इतना अंधा हो गया है कि वह अपनी सुख सुविधाओं के लिए करने को तैयार है। पर्यावरण संरक्षण का समस्त प्राणियों के जीवन तथा इस धरती के समस्त प्राकृतिक परिवेश से घनिष्ठ सम्बन्ध है। प्रदूषण के कारण सारी पृथ्वी दूषित हो रही है और निकट भविष्य में मानव सभ्यता का अंत दिखाई दे रहा है। पर्यावरण की बिगड़ती स्थिति को ध्यान में रखकर सन् 1992 में ब्राजील में विश्व के 174 देशों का 'पृथ्वी सम्मेलन' आयोजित किया गया है । सन् 2002 में जोहान्सबर्ग में पृथ्वी सम्मेलन आयोजित कर विश्व के सभी देशों को पर्यावरण संरक्षण पर ध्यान देने के लिए विचार प्रकट हुए है । पर्यावरण के संरक्षण से धरती पर जीवन का संरक्षण हो सकता है,अन्यथा धरती का जीवन-चक्र भी समाप्त हो जायेगा । पर्यावरण प्रदूषण के कुछ दूरगामी दुष्प्रभाव और घातक हैं । आणविक विस्फोटों से रेडियोधर्मिता का आनुवांशिक प्रभाव, वायुमण्डल का तापमान बढ़ना, ओजोन परत की हानि, भूक्षरण, संक्रमण आदि घातक दुष्प्रभाव हैं। प्रत्यक्ष दुष्प्रभाव के रूप में जल, वायु तथा परिवेश का दूषित होना एवं वनस्पतियों का विनष्ट होना, मानव का रोगों से आक्रान्त होना आदि देखे जा रहे हैं। कारखानों से विषैला अपशिष्ट बाहर निकलने से तथा प्लास्टिक आदि के कचरे से प्रदूषण की मात्रा उत्तरोत्तर बढ़ रही है। विल्डरों द्वारा बड़े बड़े पैमाने पर मकान बनाये जाते परंतु वृक्ष नही लगाए जाते है । नदियों की स्थलों का अतिक्रमण , कचरे दाल काल नदियां प्रदूषित कर दिया जाता है । पर्यावरण को बेहतर बनाने के लिए ह मुख्य जरूरत 'जल' को प्रदूषण से बचाना होगा। कारखानों का गंदा पानी, घरेलू, गंदा पानी, नालियों में प्रवाहित मल, सीवर लाइन का गंदा निष्कासित पानी समीपस्थ नदियों और समुद्र में गिरने से रोकना होगा। कारखानों के पानी में हानिकारक रासायनिक तत्व घुले रहने से नदियों के जल विषाक्त हो रहा हैं, परिणामस्वरूप जलचरों के जीवन को संकट का सामना करना पड़ता है। प्रदूषित पानी को सिंचाई के काम में लेते हैं जिसमें उपजाऊ भूमि विषैली हो जाती है। उगने वाली फसल व सब्जियां भी पौष्टिक तत्वों से रहित हो जाती हैं । जिनके सेवन से अवशिष्ट जीवननाशी रसायन मानव शरीर में पहुंच कर खून को विषैला बना देते हैं । वायु प्रदूषण ने पर्यावरण को बहुत हानि पहुंचाई है। जल प्रदूषण के साथ वायु प्रदूषण मानव के सम्मुख एक चुनौती है। मानव विकास के मार्ग पर अग्रसर है परंतु वहीं बड़े-बड़े कल-कारखानों की चिमनियों से लगातार उठने वाला धुआं, रेल व नाना प्रकार के डीजल व पेट्रोल से चलने वाले वाहनों के पाइपों से और इंजनों से निकलने वाली गैसें तथा धुआं, जलाने वाला हाइकोक, ए.सी., इन्वर्टर, जेनरेटर आदि से कार्बन डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन, सल्फ्यूरिक एसिड, नाइट्रिक एसिड प्रति क्षण वायुमंडल में घुलते रहते हैं। वायु प्रदूषण सर्वव्यापक हो चुका है। पर्यावरण पर भविष्य आधारित है । महानगरों में नहीं बल्कि गाँवों में लोग ध्वनि विस्तारकों का प्रयोग करने लगे हैं। बच्चे के जन्म की खुशी, शादी-पार्टी सभी में डी.जे. एक आवश्यकता समझी जाने लगी है। मोटर साइकिल व वाहनों की चिल्ल-पों महानगरों के शोर को भी मुँह चिढ़ाती नजर आती है। औद्योगिक संस्थानों की मशीनों के कोलाहल ने ध्वनि प्रदूषण को जन्म दिया है। इससे मानव की श्रवण-शक्ति का ह्रास होता है। ध्वनि प्रदूषण का मस्तिष्क पर भी घातक प्रभाव पड़ता है। जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण और ध्वनि तीनों ही हमारे व हमारे फूल जैसे बच्चों के स्वास्थ्य को चौपट कर रहे हैं। ऋतुचक्र का परिवर्तन, कार्बन डाईऑक्साइड की मात्रा का बढ़ता हिमखंड को पिघला रहा है। सुनामी, बाढ़, सूखा, अतिवृष्टि या अनावृष्टि जैसे दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं, जिन्हें देखते हुए अपने बेहतर कल के लिए '5 जून' को समस्त विश्व में 'पर्यावरण दिवस' के रूप में मनाया जा रहा है ।'पौधा लगाने से पहले वह जगह तैयार करना आवश्यक है जहां वह विकसित व बड़ा होगा।'उपर्युक्त सभी प्रकार के प्रदूषण से बचने के लिए यदि थोड़ा सा भी उचित दिशा में प्रयास करें तो बचा सकते हैं अपना पर्यावरण। सर्वप्रथम हमें जनाधिक्य को नियंत्रित करना होगा। दूसरे जंगलों व पहाड़ों की सुरक्षा पर ध्यान दिया जाए। देखने में जाता है कि पहाड़ों पर रहने वाले लोग कई बार घरेलू ईंधन के लिए जंगलों से लकड़ी काटकर इस्तेमाल करते हैं जिससे पूरे के पूरे जंगल स्वाहा हो जाते हैं। कहने का तात्पर्य है जो छोटे-छोटे व बहुत कम आबादी वाले गांव हैं उन्हें पहाड़ों पर सड़क, बिजली-पानी जैसे सुविधाएं मुहैया कराने से बेहतर है उन्हें प्लेन में विस्थापित करें। इससे पहाड़ व जंगल कटान कम होगा, साथ ही पर्यावरण सुरक्षित रहेगा। 5 जून 2021 को विश्व पर्यावरण दिवस का यू एन ई पी संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम ने 'पर्यावरण पुनरुत्थान' (इकोसिस्टम रीस्टोरेशन) घोषित थीम है । विश्व के कुल क्षेत्रफल का 2.4% पर दुनिया की जनसंख्या का 17.5% पोषण करने वाला भारत पर्यावरणीय मुद्दों का प्रबन्धन है | ईंधन के लिए लकड़ी और कृषि भूमि के विस्तार के लिए हो रही वनों की कटाई के कारण भारत में वन क्षेत्र मात्र 18.34% (637,000 वर्ग किमी) है, । देश के वनों का 25.7% महत्त्वपूर्ण भाग पूर्वोत्तर राज्यों में जंगल तेजी से नष्ट हो रहा है | भारत सरकार पर्यावरणीय गुणवत्ता को बेहतर करने के प्रयास कर रही है | जल प्रदूषण के बढ़ते स्तर को देखकर 1963 में एक गठित कमेटी ने जल प्रदूषण और निवारण हेतु कानून बनाने की सलाह दी, तत्पश्चात ''घरेलू तथा औद्योगिक बहिस्राव जल में नहीं मिलने दिया जाय । पीने के पानी के स्रोत, कृषि उपयोग तथा मत्स्य जीवन के पोषण के योग्य हो'' के उद्देश्य से एक विधेयक वर्ष 1969 में तैयार किया गया | 30 नबम्बर, 1972 को संसद में प्रस्तुत विधेयक दोनों सदनों से पारित होकर 23 मार्च, 1974 को राष्ट्रपति से स्वीकृत हुआ है । जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण ) अधिनियम, 1974 कहलाया |जल प्रदूषण को रोकने में एक अन्य कानून जल (प्रदूषण और नियंत्रण ) अधिनियम, 1977 को राष्ट्रपति ने दिसम्बर, 1977 को मंजूरी प्रदान की। इस कानून के अंतर्गत जल प्रदूषण को रोकने के लिए केंद्र तथा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को व्यापक अधिकार मिलता है वहीं जल प्रदूषित करने पर दंड का प्रावधान भी सुनिश्चित किया गया है।जल प्रदूषण निवारण और नियंत्रण अधिनियम 1974 तथा 1977, जल प्रदूषण को नियंत्रण में रखने के लिए महत्त्वपूर्ण कदम हैं यह सरकार को अधिकार प्रदान करता है कि विषैले, नुकसानदेह और प्रदूषण फैलाने वाले कचरे को नदियों और अन्य जल प्रवाहों में फेंकने और प्रदूषण फैलाने वालों के खिलाफ कार्रवाई सुनिश्चित हो सके |बढ़ते औद्योगीकरण के कारण पर्यावरण में निरंतर हो रहे वायु प्रदूषण और पृथ्वी पर प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण हेतु वायु की गुणवत्ता और वायु प्रदूषण के नियंत्रण को ध्यान में रखने के लिए 29 मार्च, 1981 को यह अधिनियम परित हुआ और 16 मई, 1981 से लागू किया गया | अधिनियम में मुख्यत: मोटर-गाड़ियों और अन्य कारखानों से निकलने वाले धुएं और गंदगी का स्तर निर्धारित करने तथा उसे नियंत्रित करने का प्रावधान है, 1987 में इस अधिनियम में शोर प्रदूषण को भी शामिल किया गया |कृषि, उद्योगों और शहरीकरण से वनों का क्षरण हुआ, वनों के अत्यधिक कटने से वन्यजीव जंतुओं की कई प्रजातियाँ या तो लुप्त हो गई हैं । वन्यजीवन में लुप्त होती प्रजातियों को बचाने के लिए सरकार ने सन 1952 में भारतीय वन्यजीवन बोर्ड का गठन किया | बोर्ड के अंतर्गत वन्य-जीवन पार्क और अभयारणय बनाए गए और 1972 में भारतीय वन्यजीवन संरक्षण अधिनियम पारित किया गया | वन्यजीवन संरक्षण अधिनियम, (1972) को अधिक व्यावहारिक व प्रभावी बनाने के लिए इसमें वर्ष 1986 तथा 1991 में संशोधन किए गये |आबादी बढ़ने तथा मानव जीवन की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए वनों का कटना स्वाभाविक है, किन्तु कुछ समय के लिए वनों की कटाई पर पूर्ण प्रतिबंध लगाकर पुन: पेड़-पौधे उगाने को समय देने के लिए भारत सरकार द्वारा 1980 में पारित अधिनियम वन संरक्षण अधिनियम का महत्वपूर्ण योगदान रहा | अधिनियम को अधिक प्रभावी ढंग से कार्यान्वित करने के लिए इसमें वर्ष 1988 में संशोधन किया है। संयुक्त राष्ट्र का प्रथम मानव पर्यावरण सम्मेलन (स्टाकहोम) 5 जून, 1972 से प्रभावित होकर भारत सरकार ने पर्यावरण संरक्षण के लिए पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 पारित किया | मानव, प्राणियों, जीवों, पादपों को संकट से बचाना तथा पर्यावरण संरक्षण हेतु सामान्य एवं व्यापक कानून का निर्माण करना साथ लागू कानूनों के अंतर्गत पर्यावरण संरक्षण सस्थानों का गठन कर तथा उनकी क्रियाविधि के मध्य समन्वय स्थापित करना सम्भव हुआ है । पर्यावरणीय नियमों की व्यापक आवश्यकता को देखते हुए पर्यावरण तथा वन मंत्रालय ने दिसम्बर 2004 को राष्ट्रीय पर्यावरण नीति 2004 का ड्राफ्ट जारी किया है, जिसके तहत पारित अधिनियम से पर्यावरणीय संसाधनों का संरक्षण सुनिश्चित हो सके |गत वर्षों में हो रहे क्लाइमेट चेंज के मामले पर भारत सरकार ने गम्भीर होते हुए पहल की और फ्रेश एयर, सेव वाटर, सेव एनर्जी, ग्रो मोर प्लांट्स, अर्बन ग्रीन जैसे कैम्पेन चलाने का निर्णय लिया, इन सभी कैंपेन का उद्देश्य वातावरण की रक्षा करना है । समाज के सभी को आपसी सहयोग कर पर्यावरण संरक्षण करने के लिए सामूहिक प्रयास करना चाहिए |विस्फोटक आबादी, भोगवादी संस्कृति, प्राकृतिक संसाधनों का अनवरत दोहन, युद्ध, परमाणु परीक्षण, औद्योगिक विकास के द्वारा उत्पन्न समस्याओं को रोकना वर्तमान मानव जाति का प्रमुख उद्देश्य होना चाहिये, जिससे वाली पीढ़ी को संतुलित पर्यावरण कर सकें | नदियाँ का पानी , हवा , ध्वनि प्रदूषण का फैलाव होने से पर्यावरण असुरक्षित हो गया है । कल कारखाने , विल्डरों द्वारा बड़े बड़े मकान बनाये जा रहे है , वाहनों का विकास , ऊंची आवाज वाले लाउडस्पीकर , वृक्षों की अंधाधुंध कटाई , नदियों के स्थलों का अतिक्रमण से पर्यावरण को प्रदूषित के कारण अनेक संक्रमण से जूझ रहा है । प्रकृति द्वारा इंसान को उपभोग करने के लिए बहु स्थल पर दिया परंतु इंसान स्वार्थलोलुपता के कारण प्रकृति का कराए गए उपलब्ध को नष्ट करने पर उतर गया है । वृक्षारोपण , पौधरोपण , नदियों , तलाव के जल को , वायु और ध्वनि प्रदूषण से मुक्ति होने पर इंसान को सुरक्षित रखने से पर्य वरण की सुरक्षा संभव है । दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com |
Posted: 25 Aug 2021 07:37 AM PDT आज 26 अगस्त 2021, गुरूवार का दैनिक पंचांग एवं राशिफल - सभी १२ राशियों के लिए कैसा रहेगा आज का दिन ? क्या है आप की राशी में विशेष ? जाने प्रशिद्ध ज्योतिषाचार्य पं. प्रेम सागर पाण्डेय से |श्री गणेशाय नम: !! दैनिक पंचांग ☀ 26 अगस्त 2021, गुरूवार ☀ पंचांग 🔅 तिथि चतुर्थी दिन 05:17:24 🔅 नक्षत्र रेवती रात्रि 11:46:12 🔅 करण बालव 17:16:26 🔅 पक्ष कृष्ण 🔅 योग गण्ड 29:23:49 🔅 वार गुरूवार ☀ सूर्य व चन्द्र से संबंधित गणनाएँ 🔅 सूर्योदय 05:40:46 🔅 चन्द्रोदय 21:19:59 🔅 चन्द्र राशि मीन - 22:29:36 तक 🔅 सूर्यास्त 18:20:41 🔅 चन्द्रास्त 09:18:59 🔅 ऋतु शरद ☀ हिन्दू मास एवं वर्ष 🔅 शक सम्वत 1943 प्लव 🔅 कलि सम्वत 5123 🔅 दिन काल 12:54:08 🔅 विक्रम सम्वत 2078 🔅 मास अमांत श्रावण 🔅 मास पूर्णिमांत भाद्रपद ☀ शुभ और अशुभ समय ☀ शुभ समय 🔅 अभिजित 11:56:59 - 12:48:36 ☀ अशुभ समय 🔅 दुष्टमुहूर्त : 10:13:46 - 11:05:23 15:23:25 - 16:15:02 🔅 कंटक 15:23:25 - 16:15:02 🔅 यमघण्ट 06:47:20 - 07:38:57 🔅 राहु काल 13:59:33 - 15:36:19 🔅 कुलिक 10:13:46 - 11:05:23 🔅 कालवेला या अर्द्धयाम 17:06:38 - 17:58:15 🔅 यमगण्ड 05:55:43 - 07:32:29 🔅 गुलिक काल 09:09:15 - 10:46:01 ☀ दिशा शूल 🔅 दिशा शूल दक्षिण ☀ चन्द्रबल और ताराबल ☀ ताराबल 🔅 अश्विनी, भरणी, रोहिणी, आर्द्रा, पुष्य, आश्लेषा, मघा, पूर्वा फाल्गुनी, हस्त, स्वाति, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढ़ा, श्रवण, शतभिषा, उत्तराभाद्रपद, रेवती ☀ चन्द्रबल 🔅 वृषभ, मिथुन, कन्या, तुला, मकर, मीन 🌹विशेष ~ पंचक (पचखा) समाप्ति रात्रि 11:46:12 तक। 🌹 पं.प्रेम सागर पाण्डेय् राशिफल 26 अगस्त 2021, गुरूवार मेष (Aries): मांगलिक कार्यों में प्रमुखता से शामिल होंगे। अपनों के साथ हर्षोल्लास से समय बीतेगा। विवाह योग्यों को बेहतर प्रस्ताव प्राप्त हो सकते हैं। दिन धनधान्य कारक। शुभ रंग = पींक शुभ अंक : 5 वृषभ (Tauras): प्रभावशीलता और आत्मविश्वास में वृद्धि होगी। जीत का प्रतिशत बेहतर बना रहेगा। सृजन एवं स्मरण को बल मिलेगा। दाम्पत्य में शुभता रहेगी। मित्र विश्वस्त रहेंगे। शुभ रंग = आसमानी शुभ अंक : 2 मिथुन (Gemini): कला प्रियता और दक्षता बढ़ेगी। परफार्मर अच्छे प्रस्ताव प्राप्त करेंगे। दिखावे पर जोर बना रह सकता है। चापलूसों से दूर रहें। दिन खर्चीला और सुखकर। शुभ रंग = क्रीम शुभ अंक : 7 कर्क (Cancer): लाइफ स्टाइल से जुड़े कारोबारी ज्यादा अच्छा करेंगे। आर्थिक अवसरों को भुनाने पर जोर दें। शिक्षा संतान और प्रेम पक्ष हितकर रहेगा। महत्वपूर्ण चर्चाओं में प्रभावी रहेंगे। शुभ रंग = उजला शुभ अंक : 4 सिंह (Leo): सभी का सहयोग और कुछ कर दिखाने की ललक बड़े प्रयासों में तेजी लाएगी। भाग्य का सहयोग बना रहेगा। सुख संसाधन बढ़त पर रहेंगे। दिन उन्नतिकारक। निसंकोच आगे बढ़ें। शुभ रंग = लाल शुभ अंक : 1 कन्या (Virgo): भ्रमण मनोरंजन में रुचि रहेगी। अनुशासन और निरंतरता बनाए रखेंगे। समय प्रबंधन ध्यान दें। भटकाव की आशंका है। दिन भाग्यवर्धक। करियर संवार पर रहेगा। शुभ रंग = केशरी शुभ अंक : 8 तुला (Libra): दिखावे और बड़प्पन की अपेक्षा काम निकालने की नीति अपनाना बेहतर होगा। अपने सहयोगी रहेंगे। सेहत पर ध्यान दें। दिन सामान्य फलकारक। आकस्मिकता बनी रह सकती है। शुभ रंग = हरा शुभ अंक : 6 वृश्चिक (Scorpio): निजी जीवन में शुभता का संचार बना रहेगा। जीवनसाथी उपलब्धि अर्जित कर सकता है। तेजी बनाए रखें। आवश्यक कार्य आज ही कर लेने की कोशिश करें। शुभ रंग = लाल शुभ अंक : 1 धनु (Sagittarius): आत्मविश्वास और अहम् भाव के अंतर को पहचानें। विपक्ष की सक्रियता बढ़ सकती है। शिक्षा संतान और प्रेम पक्ष बेहतर बनें। दिन खर्चीला। रुटीन पर जोर दें। शुभ रंग = पीला शुभ अंक : 9 मकर (Capricorn): श्रेष्ठ कार्यों को आगे बढ़ाने में सफल रहेंगे। शिक्षा प्रेम और संतान पक्ष उम्मीद से अच्छा रहेगा। लाभ का प्रतिशत बेहतर रहेगा। किसी भी निर्णय पर पहुंचने से पहले परिजनों की सुनें। शुभ रंग = क्रीम शुभ अंक : 7 कुंभ (Aquarius): भव्य भवन वाहन के प्रयासों में सक्रियता आएगी। घर परिवार से करीबी बढ़ेगी। साहस पराक्रम बढ़त पर बना रहेगा। बड़ों से आशीष लेना न भूलें। दिन शुभकर। शुभ रंग = पीला शुभ अंक : 9 मीन (Pisces): शुभ सूचनाओं का आदान प्रदान बढ़ेगा। सामाजिकता में रुचि रहेगी। आलस्य से बचे रहेंगे। वाणिज्यिक गतिविधियां बेहतर रहेंगी। दिन उत्तम फलकारक। शुभ रंग = पींक शुभ अंक : 5 दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com |
Posted: 25 Aug 2021 07:25 AM PDT वित्तीय समावेशन की योजनाओं को पूर्णतया कार्यान्वित करने के लिए हिंदी और क्षेत्रीय भाषाओं में काम करना आवश्यक: राज्यपाल ''वित्तीय समावेशन की योजनाओं को पूर्ण रूप से कार्यान्वित करने के लिए हमें हिंदी और क्षेत्रीय भाषाओं में काम करना चाहिए ताकि राष्ट्र की आम जनता के साथ जुड़कर उन्हें बेहतर सेवा प्रदान किया जा सके।''-यह बातें महामहिम राज्यपाल श्री फागू चैहान ने यूको बैंक जी॰ डी॰ बिड़ला स्मृति व्याख्यानमाला के तहत ''आजादी का अमृत महोत्सव: वित्तीय समावेशन में बैंकों, राजभाषा हिंदी और क्षेत्रीय भाषाओं की भूमिका'' विषय पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी को मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित करते हुए कही। राज्यपाल ने कहा कि समाज के निर्धनतम व्यक्ति को अर्थव्यवस्था की मुख्यधारा से जोड़कर आर्थिक विकास में उसकी भागीदारी सुनिश्चित करने हेतु वित्तीय समावेशन बेहद महत्वपूर्ण है। यह समावेशी विकास के लिए अत्यंत आवश्यक है ताकि समाज के सभी लोगों को समान अवसरों के साथ आर्थिक विकास का लाभ भी समान रूप से मिल सके। वित्तीय समावेशन देश के टिकाऊ और संतुलित आर्थिक विकास में सहायक है। उन्होंने कहा कि सरकार ने देश में वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने के लिए अनेक उपाय किये हैं, जिनमें जन-धन योजना, प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना, प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना, अटल पेंशन योजना, वरिष्ठ पेंशन बीमा योजना एवं प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के अतिरिक्त जीवन सुरक्षा बंधन योजना, सुकन्या समृद्धि योजना, किसान क्रेडिट कार्ड, सामान्य क्रेडिट कार्ड और भीम एप्प जैसी योजनाएँ शामिल हैं। इन योजनाओं को कार्यान्वित कर देश के आर्थिक विकास को गति देने में सरकारी बैंकों की भूमिका महत्वपूर्ण है। राज्यपाल ने कहा कि वित्तीय समावेशन हेतु कार्यान्वित की जा रही विभिन्न योजनाओं से भारत में अभी भी काफी लोगों को आच्छादित किया जाना है। बैंकिंग क्षेत्र ग्राहक सेवा से जुड़ा होने तथा हिंदी और क्षेत्रीय भाषाएँ सहज व सरल होने और आसानी से समझ में आ जाने के कारण इनके माध्यम से अधिकाधिक ग्राहकों को सेवाएँ देना सुगम होता है। उन्होंने कहा कि बैंक की विभिन्न योजनाओं को आमजन तक पहुँचाने के लिए आयोजित वित्तीय साक्षरता कार्यक्रमों में भी इन्हीं भाषाओं के माध्यम से लाभार्थियों को जानकारी देना आवश्यक है। कार्यक्रम के दौरान राज्यपाल ने यूको पटना दर्पण, छमाही हिन्दी गृह पत्रिका का विमोचन भी किया। वीडियो काॅन्फ्रेन्सिंग के माध्यम से आयोजित इस राष्ट्रीय संगोष्ठी को भारतीय रिजर्व बैंक के क्षेत्रीय निदेशक, बिहार श्री संजीव दयाल एवं प्रधान कार्यालय, यूको बैंक के महाप्रबंधक श्री नरेश कुमार ने भी संबोधित किया। इस अवसर पर राज्यपाल के सचिव श्री राॅबर्ट एल॰ चोंग्थू, यूको बैंक, अंचल कार्यालय, पटना के उप महाप्रबंधक व अंचल प्रमुख श्री सुदीप दीघल, केन्द्रीय गृह मंत्रालय, राजभाषा विभाग, पूर्व क्षेत्र के प्रभारी श्री निर्मल कुमार दुबे, यूको बैंक के सभी अंचल प्रमुख और राजभाषा अधिकारी, पटना स्थित नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति, बैंक, उपक्रम एवं केंद्र सरकार के कार्यपालकगण, राजभाषा अधिकारीगण, राजभाषा संपर्क अधिकारीगण, कर्मचारीगण, विद्वतजन एवं राजभाषा सेवीगण आदि उपस्थित थे। दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com |
Posted: 25 Aug 2021 07:20 AM PDT शुचिता: जातीय संदर्भ शुचिता रखना जातिबाध्य नियम नहीं हो सकता। यह सभी के लिए आवश्यक है। बाह्य और आंतरिक शुचिता का संतुलन परिस्थिति सापेक्ष्य है। जिस तरह सत्य भाषण सभी के लिए जरूरी है, अकेले ब्राह्मण के लिए ही नहीं। किंतु समाज के निदर्शन कार्य से आबद्ध ब्राह्मण के लिए प्रथमतः धार्य जरूर हो जाता है।पर आज के युग में आचार्यत्व ब्राह्मण तक सीमित नहीं रहा। संस्कृत का अध्ययन और वेदान्ताचार्य इतर वर्ण वाले भी हो रहे। कर्मकांड संपादन अन्य जातियाँ भी कर, करा रही हैं। तै फिर आचरण की बाध्यता केलल ब्राह्मण को कैसे ! यह तो ऐसी बात हुई कि बंदूक तो किसी सैनिक के पास रहेगी, पर फायर करेगा कोई क्षत्रिय ही। बाह्य शुचिता और आभ्यंतर शुचिता का अनुपालन सभी को करना है, कार्य की प्रकृति के अनुसार सम्यक संतुलन बनाकर। "संतोषी ब्राह्मणः सुखी " का अभिप्राय ब्राह्मणकर्म संबद्ध है न कि मात्र जाति से। देश-सीमा पर स्थित ब्राह्मण सैनिक अहिंसा का पाठ नहीं पढ़ेगा , शत्रुहंता गोली दागना छोड़ संतोष करके हाथ पर हाथ नहीं धरेगा । दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com |
Posted: 25 Aug 2021 07:17 AM PDT 'आज़ादी का अमृत महोत्सव' के उपलक्ष्य में पत्र सूचना कार्यालय , पटना द्वारा वेबिनार का आयोजन देश में अब तक घटित सभी घटनाओं में सबसे बड़ी घटना थी आजादी की लड़ाई – मुंशी सिंह'आजादी का अमृत महोत्सव' के तहत सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार के पत्र सूचना कार्यालय, पटना द्वारा आज "बिहार के गुमनाम स्वतंत्रता सेनानी" विषय पर एक वेबीनार का आयोजन किया गया। 93-वर्षीय स्वतंत्रता सेनानी मुंशी सिंह ने वेबिनार को संबोधित करते हुए आजादी की लड़ाई के अपने दिनों के अनुभवों को साझा किया और कहा कि देश में अब तक घटित सभी घटनाओं में सबसे बड़ी घटना थी - आजादी की लड़ाई। 1857 की लड़ाई में मुंशी जी का गांव महाराजगंज इस संघर्ष में एक चर्चित केंद्र था, जो प्रथम राष्ट्रपति श्री राजेंद्र बाबू की कर्मभूमि भी थी। मुंशी सिंह ने 16 अगस्त 1942 के दिन को याद करते हुए कहा कि शंकर विद्यार्थी व एक अन्य सेनानी ने उन सभी को बताया कि मुंबई में एक सम्मेलन में सभी नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया है और गांधी जी के द्वारा दिया गया नारा 'करो या मरो' को अमल में लाने का वक्त आ गया है। साथ ही विद्यार्थियों को यह निर्देश दिया गया कि वे थाना और रेलवे स्टेशन को जला दें. घटनाक्रम के दौरान पुलिस की गोली से महाराजगंज के सात लोग शहीद हो गए. वेबीनार को संबोधित करते हुए प्रख्यात इतिहासकार एवं खुदा बख्श ओरिएंटल पब्लिक लाइब्रेरी,पटना के पूर्व निदेशक डॉ इम्तियाज अहमद ने देश की आजादी में मुख्य भूमिका निभाने वाले बिहार के चार सेनानियों पीर अली, राजकुमार शुक्ला, मजहर उल हक, ब्रजकिशोर और तारा रानी श्रीवास्तव का जिक्र किया. उन्होंने कहा- भारत की स्वतंत्रता में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेने वालों में से कईयों के नाम भुला दिए गए हैं, तो कुछ को कभी कभार हीं याद किया जाता है। उन्होनें कहा कि आजादी तो हमें मिल चुकी है लेकिन आजादी की लड़ाई लड़ने वाले स्वतंत्रता सेनानियों और शहीदों के आदर्श को अपनाने की जरूरत है। साथ ही जरूरत है गुमनान नायकों को उचित सम्मान देने की। भारत छोड़ो आंदोलन की बात करते हुए उन्होंने कहा कि जब आंदोलन शुरू होने से पहले ही नेताओं को जगह-जगह कैद कर लिया गया तब तारा रानी श्रीवास्तव ने इस आन्दोलन में बहुत बड़ी भूमिका निभाई। उनके पति झंडा उठाने के क्रम में शहीद हो गए थे। उन्होनें अफ़सोस जाहिर करते हुए कहा कि 1942 की में पटना सचिवालय के बाहर शहीद हुए 7 छात्रों के नाम को आज की तारीख में इतिहास के विद्यार्थी भी नहीं जानते है। कार्यक्रम की प्रशंसा करते हुए उन्होंने कहा कि 'आजादी का अमृत महोत्सव' के जरिये हम अपने वीर स्वतंत्र सेनानियों की कुर्बानी को याद कर सकेंगे। अतिथि वक्ता के रूप में वेबीनार को संबोधित करते हुए गांधी सत्याग्रह संग्रहालय मोतिहारी के संस्थापक एवं सचिव चंद्रभूषण पांडेय ने कहा कि स्वतंत्रता की लड़ाई में चंपारण का अतुलनीय योगदान है। इसकी वजह यह है कि 1917 में महात्मा गांधी द्वारा चंपारण से ही सत्याग्रह शुरू किया गया था। आजादी की लड़ाई में चंपारण के कई स्वतंत्र सेनानी हैं, जिनमें मुख्य हैं- राजकुमार शुक्ला व मजहरूलहक। श्री पांडे ने चंपारण के गुमनाम सेनानियों का जिक्र करते हुए बत्तख मियां के बारे में बताया कि अंग्रेजी हुकूमत बत्तख मियां के जरिए गांधी जी की हत्या करवाना चाहते थे, लेकिन बत्तख मियां ने उनकी इस साजिश में शामिल होने से साफ़ इनकार कर दिया। बत्तख मियां को सम्मान देते हुए मोतिहारी रेलवे स्टेशन के मुख्यद्वार का नाम उनके नाम पर रखा गया है। प्रेस इंफोर्मेशन ब्यूरो और रिजनल आउटरिच ब्यूरो के अपरमहानिदेशक शैलेश कुमार मालवीय ने अध्यक्षीय संबोधन में कहा कि देश की आजादी के 75 साल पूरे होने के अवसर पर देश भर में साल भर आजादी का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है। आयोजन के जरिए इतिहास के पन्नों को खंगाला जाएगा और आजादी के गुमनाम योद्धाओं को सामने लाने का काम किया जाएगा ताकि आज की युवा पीढी अपने स्वतंत्रता सेनानियों को जानें और समझें।पीआईबी के निदेशक दिनेश कुमार ने कहा कि बिहार के गुमनाम स्वतंत्रता सेनानियों को जानना बहुत जरूरी है। उन्होनें कहा इन नायकों से हमें उस समय के माहौल को जानने का अवसर प्राप्त होगा। वेबिनार का संचालन पीआईबी के सहायक निदेशक संजय कुमार ने किया। दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com |
Posted: 25 Aug 2021 07:13 AM PDT मुख्यमंत्री ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से 1,121 करोड़ रुपये लागत की 130 किलोमीटर लंबी चार राज्य उच्च पथों का किया लोकार्पण
मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार ने आज 1 अणे मार्ग स्थित संकल्प में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से 1,121 करोड़ रुपये की लागत की 130 किलोमीटर लंबी चार राज्य उच्च पथों का लोकार्पण किया। इसके अंतर्गत 332.00 करोड़ रुपये लागत की 41.1 किलोमीटर लंबी राज्य उच्च पथ संख्या 84 (घोघा- पंजवारा पथ), 220.72 करोड़ रुपये लागत की 29.55 किलोमीटर लंबी राज्य उच्च पथ संख्या 85 (अकबरनगर-अमरपुर पथ), 504 करोड़ रुपये लागत की 55 किलोमीटर लंबी राज्य उच्च पथ संख्या 102 (बिहियां-जगदीशपुर- पीरो-बिहटा पथ) एवं 64.60 करोड़ रुपये लागत की 4.55 किलोमीटर लंबी राज्य उच्च पथ संख्या 91 (बीरपुर-उदाकिशुनगंज पथ) के अंतर्गत बिहारीगंज बाइपास शामिल है। इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि आज 4 राज्य उच्च पथों का उद्घाटन कराने के लिए पथ निर्माण विभाग को विशेष तौर पर बधाई देता हूॅ। पथ निर्माण विभाग के द्वारा कई अन्य योजनाओं पर भी तेजी से काम किया जा रहा है। हमलोगों के सत्ता संभालने से पहले वर्ष 2005 तक सड़कों की क्या स्थिति थी, आवागमन में कितनी असुविधा थी ये सभी जानते हैं। हमलोगों ने वर्ष 2006 में सड़कों की स्थिति को लेकर सर्वेक्षण कराया। उन्होंने कहा कि जब से हमलोगों को बिहार में काम करने का मौका मिला है तब से कई सड़कों और पुल-पुलियों का निर्माण कराया गया। केंद्र में जब श्रद्धेय अटल बिहारी वाजपेयी जी की सरकार थी, हम भी उनकी सरकार में मंत्री थे, उस दौरान भी केंद्र सरकार के द्वारा राज्य में कई पथों का निर्माण कराया गया। पथ निर्माण विभाग के द्वारा कई योजनाओं पर तेजी से काम किया जा रहा है। केंद्र सरकार के सहयोग से और राज्य सरकार द्वारा कई पथों, पुल-पुलियों का निर्माण होने से राज्य की जनता को आवागमन में काफी सुविधा हो रही है। शुरु में हमलोगों ने राज्य के सुदूर इलाके से 6 घंटे में राजधानी पटना पहुंचने का लक्ष्य तय किया था जो पूरा कर लिया गया। अब 5 घंटे में राजधानी पटना पहुंचने के लक्ष्य पर काम किया जा रहा है। गाड़ियों की बढ़ती संख्या को देखते हुए सड़कों का चैड़ीकरण किया जा रहा है। मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य उच्च पथों को बेहतर ढंग से बनाया गया है, उसका 7-10 मीटर चैड़ीकरण किया जा रहा है। कई राज्य उच्च पथ को फोरलेन में बदला गया है। आज राज्य उच्च पथ संख्या 84, 85, 102 एवं 91 का लोकार्पण किया गया है, इससे लोगों को आवागमन में और सहूलियत होगी। उन्होंने कहा कि बाहर के लोग जब बिहार से गुजरते हैं तो यहां के सड़कों की प्रशंसा करते हैं। यहां की कानून व्यवस्था की भी प्रशंसा करते हैं। सात निश्चय-2 के अंतर्गत सुलभ संपर्कता प्रदान करने हेतु शहरी क्षेत्रों में बाईपास का निर्माण किया जा रहा है। जिन शहरी क्षेत्रों में जमीन की उपलब्धता में कमी होगी वहां फ्लाईओवर का निर्माण कराया जा रहा है। पथ निर्माण विभाग ऐसे 120 स्थानों को चिन्हित किया है, जहां बाइपास निर्माण की योजना है। मुख्यमंत्री ने कहा कि सड़कों एवं पुल-पुलियों का निर्माण के साथ-साथ उनका मेंटेनेंस जरुर हो। इसे लोक शिकायत निवारण अधिनियम में भी शामिल किया गया है ताकि मेंटेनेंस नहीं होने की शिकायत आने पर दोषियों पर कार्रवाई हो सके। मुझे खुशी हुई है कि आज कार्यक्रम के दौरान राज्य उच्च पथ परियोजना से संबंधित वृतचित्र में पथों के किनारे वृक्षारोपण के संबंध में भी जानकारी दी गई है। सड़कों के दोनों किनारे अधिक से अधिक संख्या में न सिर्फ वृक्षारोपण हो बल्कि उनकी देखभाल भी जरुर हो। बिहार से झारखंड के अलग होने के बाद राज्य का हरित आवरण क्षेत्र बहुत कम रह गया। राज्य के हरित आवरण को बढ़ाने के लिए बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण किया गया है। जल-जीवन-हरियाली अभियान के अंतर्गत भी हरियाली को बढ़ावा देने के लिए काम किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि पथ निर्माण विभाग के द्वारा कई और पथों का निर्माण तेजी से किया जा रहा है। बिहटा-सरमेरा पथ काफी बेहतर बना है। इससे पश्चिम से पूर्व बिहार की संपर्कता बेहतर हुई है। अटल पथ और पाटली पथ भी बेहतर बना है। उन्होंने कहा कि घोघा-पंजवारा पथ, अकबरनगर-अमरपुर पथ, बिहियां-जगदीशपुर-पीरो-बिहटा पथ एवं बिहारीगंज बाइपास के निर्माण से उस क्षेत्र के लोगों को आवागमन में काफी सहूलियत होगी। मुख्यमंत्री ने कहा कि सड़कों एवं पथों का मेंटेनेंस विभाग द्वारा ही करायी जाय, इससे सतत् निगरानी भी होगी और खर्च भी कम होगा। पथों और पुलों के बेहतर ढ़ंग से मेंटेन रहने पर राज्य की प्रतिष्ठा और बढ़ेगी। मुझे विश्वास है कि विभाग के अभियंता पूरी मेहनत के साथ इस पर काम करेंगे। अगर सड़कों के निर्माण एवं उसके मेंटेनेंस में अभियंता गंभीरता दिखायेंगे तो लोगों के बीच में उनका सम्मान और बढ़ेगा। कार्यक्रम के दौरान राज्य उच्च पथों की परियोजनाओं से संबंधित वृतचित्र का प्रदर्शन किया गया। कार्यक्रम को उप मुख्यमंत्री श्री तारकिशोर प्रसाद, उप मुख्यमंत्री श्रीमती रेणु देवी, पथ निर्माण मंत्री श्री नितिन नवीन एवं पथ निर्माण विभाग के अपर मुख्य सचिव श्री अमृत लाल मीणा ने भी संबोधित किया। इस अवसर पर मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव श्री दीपक कुमार, मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव श्री चंचल कुमार, मुख्यमंत्री के सचिव श्री अनुपम कुमार एवं मुख्यमंत्री के विशेष कार्यपदाधिकारी उपस्थित थे, जबकि वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से ऊर्जा मंत्री श्री बिजेन्द्र प्रसाद यादव, ग्रामीण कार्य मंत्री श्री जयंत राज, सांसद श्री दिनेश चंद्र यादव, सांसद श्री गिरधारी यादव, विधायक श्री रामनारायण मंडल, विधायक श्री भूदेव चैधरी, विधायक श्री राम विशुन सिंह, विधायक श्री सुदामा प्रसाद सहित अन्य विधायकगण, जनप्रतिनिधिगण, मुख्य सचिव श्री त्रिपुरारी शरण, विकास आयुक्त श्री आमिर सुबहानी, बिहार राज्य पथ विकास निगम लिमिटेड के प्रबंध निदेशक श्री पंकज कुमार, संबद्ध जिलों के जिलाधिकारी सहित पथ निर्माण विभाग के अन्य अधिकारीगण, अभियंतागण एवं अन्य गणमान्य व्यक्ति जुड़े हुए थे। 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Posted: 25 Aug 2021 07:07 AM PDT मैत्री संस्कृति : भाषाएंसत्येन्द्र कुमार पाठक जहानाबाद । रक्षक और संस्कृति की पहचान भाषा है ।अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के अवसर पर शहीद मीनार , ढाका मेडिकल कॉलेज कैम्पस, बांग्लादेश में स्थित शहीद स्मारक ,21 फरवरी 1952 पर बांग्ला भाषा के लिए बलिदान की स्मृति दिवस मनाया जाता है। जिला हिंदी साहित्य सम्मेलन जहानाबाद के उपाध्यक्ष साहित्यकार व इतिहासकार सत्येन्द्र कुमार पाठक ने कहा कि भाषाई और सांस्कृतिक विविधता और बहुभाषावाद की ओर जागरूक करने के लिए मातृभाषा दिवस है । विश्व में भाषाई एवं सांस्कृतिक विविधता और बहुभाषिता की एकता का प्रतीक है । यूनेस्को द्वारा अन्तरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस की घोषणा से बांग्लादेश के भाषा आन्दोलन दिवस का बांग्ला: भाषा आन्दोलोन दिबॉश को अन्तरराष्ट्रीय स्वीकृति मिली है ।बांग्लादेश में सन 1952 से बांग्ला भाषा दिवस मनाने की परंपरा के कारण राष्ट्रीय अवकाश है। 2008 को अन्तरराष्ट्रीय भाषा वर्ष घोषित करते हुए, संयुक्त राष्ट्र आम सभा द्वारा अन्तरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस की मान्यता प्रदान किया गया है ।अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस स्मारक, आशफिल्ड पार्क , सिडनी, ऑस्ट्रेलिया में मनाया जाता है । विश्व में 3000 भाषाएं विलुप्त होने के कगार पर हो रही है । मैत्री संस्कृति के लिए लिन्ग्गुआपाक्स पुरस्कार, अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के अवसर पर प्रतिवर्ष प्रस्तुत किया जाता है। यूनेस्को प्रत्येक वर्ष अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के लिए विषय सेट फरवरी 21 के आसपास पेरिस में अपने मुख्यालय के लिए संबंधित घटनाओं रखती है।दविश्व में 21 फरवरी को अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाया जा रहा है। मातृभाषा दिवस को मनाने का उद्देश्य विश्वभर में अपनी भाषा और सांस्कृतिक की विविधताओं के प्रति लोगों में जागरुकता फैला कर दुनिया में बहुभाषिता को बढ़ावा दिया सके। अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाने का विचार सबसे पहले बांग्लादेश से प्रारम्भ आया। संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) के सामान्य सम्मेलन ने 17 नवंबर 1999 में मातृभाषा दिवस मनाने की घोषणा कर प्रत्येक वर्ष 21 फरवरी को अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लेने का संकल्प लिया है ।।साल 1952 में बांग्लादेश में ढाका यूनिवर्सिटी के विद्यार्थियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने अपनी मातृभाषा का अस्तित्व बनाए रखने के लिए 21 फरवरी को एक आंदोलन किया था। आंदोलन में बांग्लादेश के कई युवा शहीद हो गए थे। शहीद युवाओं की स्मृति में ही यूनेस्को ने पहली बार साल 1991 को ऐलान किया कि 21 फरवरी को मातृभाषा दिवस के रूप में मनाया जाएगा। पहला अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस साल 2000 में मनाया गया। बांग्लादेश में 21 फरवरी के दिन एक राष्ट्रीय अवकाश होता है।साल 2002 में संयुक्त राष्ट्र (यूएन) की महासभा ने यूनेस्को के अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाने वाले फैसले का स्वागत किया। 16 मई, 2007 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने "दुनिया के लोगों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली सभी भाषाओं के संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए" सदस्य राज्यों के एक प्रस्ताव भेजा था ।अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाने के पीछे का मकसद है कि दुनियाभर की भाषाओं और सांस्कृतिक का सम्मान हो। साल 2021 के अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस का थीम?अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाने के लिए यूनेस्को हर साल एक थीम रखता है। साल 2021 का अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस का थीम है, ' ''शिक्षा और समाज में शामिल करने के लिए बहुभाषावाद को बढ़ावा देना'' है। साहित्यकार व इतिहासकार सत्येन्द्र कुमार पाठक ने कहा कि एथ्नोलाँग के अनुसार विश्व में 7097 भाषाएँ हैं । भारत में भाषाओं की संख्या 544 है जिनमें 407 भाषा जीवित है । बिहार में मैथिली, मगही , भोजपुरी, अंगिका, बज्जिका भाषाएँ है। मातृभाषा का विकास सभ्यता और संस्कृति का द्योतक है । दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com |
Posted: 25 Aug 2021 07:04 AM PDT कुत्ते भुंक रहे हैं ---:भारतका एक ब्राह्मण. संजय कुमार मिश्र "अणु" जिस पर सभी थुक रहे हैं- अभी वही कुत्ते भुंक रहे हैं।। जो खुद तैयार है भागने को- कह रहा है हम रुक रहे हैं।। सुनकर कौवे का कांव-कांव, अपनी हीं झोपड़ी फुंक रहे हैं।। अपना तो विवेक है नहीं कुछ- बहकावे में अंग्रेजी बुंक रहे हैं।। आंखों में तैश देह में अकड- बेकार है कहना की झुक रहे हैं।। यदि बडे इमानदारी है आपसब, तो फिर ये चेहरे क्यों छुप रहे हैं।। लोगों की आदत है बदनाम करना, इसलिए तो हम सदा मुक रहे हैं।। ---------------------------------------- वलिदाद,अरवल(बिहार)804402. दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com |
Posted: 25 Aug 2021 04:18 AM PDT संस्कार ,संस्कृति और ब्राह्मण ब्राह्मणत्व एक ऐसा गुण है जिसे हरेक जाति के लोग अपनाना चाहते हैं ,परन्तु जन्मना ब्राह्मण इससे मुक्त होकर बाजार की धार पर तैरना चाहते हैं । इसका मुख्य कारण एकल् परिवार की संस्कृति है ।संस्कार और संस्कृति पूर्वजों की सेवा से परंपरागत रूप में प्राप्त होते हैं । आजकल ब्राह्मण के लड़के भी पुर,विश्वा, गोत्र, शिखा ,सूत्र से अभिज्ञ हो रहे हैं । जो इनसे परिचित हैं ,वे प्रणम्य हैं ।उनके माता -पिता अपने बच्चों को संस्कारित करें,संस्कार क ज्ञान दें तो वह संस्कृति पुनः संसृत हो सकती है । विवाह संस्कार भी एक ऐसा संस्कार है जिससे गृहस्त जीवन का आरम्भ होता है ।झीवन की गहराई एवं उतार-चढ़ाव में मधु -चन्द्र केलि या प्री -वेडिंग केलि किसी काम की सावित नहीं होगी ।वहाँ मात्र संस्कार और परम्परा ही साथ निभाएँगे । आर्ष ग्रंथों के अनुसार वैदिक विधि सभी वर्णों के विवाह की लगभग एक ही है ,परन्तु लौकिक रीति -रिवाज अलग-अलग होते हैं ।वह स्थान और समय के अनुसार परिवर्तनीय होते हैं । मुझे राजस्थान के राजसमंद यानी उदयपुर में नाथद्वारा के पास प्रसून की एक शादी में भाग लेने का अवसर प्राप्त हुआ। मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई है और मुझे लगा की इस विवाह में उपस्थित नहीं होते तो मेरे जीवन में कुछ कमी रह गई होती । बारात डंके की चोट पर आई ,कई तरह के बाजे बज रहे थे ,डीजे की जगह पर धौंसे धमक रहे थे । पंडित जी पगड़ी बांधे हुए चौबंदी में घोड़े पर सवार थे । दूल्हा मौर पर मोरपंख की कलगी बांधे जामा -जोड़ा यानी सांस्कृतिक परिवेश में घोड़े पर परिक्रमा कर रहा था- हाथ में तलवार लेकर और उसी परिवेश में दुल्हन बीच में बैठी थी |घोड़ा तेज- तेज दौड़ रहा था । दुल्हे ने दौड़ते हुए घोड़े से तलवार से उठाकर सिंदूर निकाला और तलवार से ही कन्या के मांग में सिंदूर डाला ।उसने ऐसा 3 बार किया। अपनी इस संस्कृति और संस्कार को देखकर अपना कलेजा तो गले को आ गया । पता चला कि दुल्हा मध्य प्रदेश कैडर का आइ पी एस है ।इसीलिए तो कहा गया है गढ़ों में चित्तौड़गढ़ और सब गढ़ैया है ।यह घटना खमनौर घाटी की है । परम्परा से प्राप्त संस्कृति के बिघटन से संस्कार भी समाप्त हो रहा है ।हरेक वर्ण अपनी संस्कृति के अनुसार कम से कम विवाह आदि संस्कार अवश्य करें तो उस समाज की उच्छृंखलता दूर हो जाएगी । इसका नेतृत्व ब्राह्मण ही कर सकेगा । ब्राह्मण स्वयं अपने पद से विचलित है ,किंकर्तव्यविमूढ़ है ।वह नहीं सोच पा रहा है कि हम कहां जा रहे हैं । अत्यधिक धन ऐश्वर्य और ऐषणा के पीछे हो रही उसकी अवनति को वह विकास का परिचायक मान रहा है । बिहार के पटना में मुझे एक ऐसे बरात में सम्मिलित होने का मौका मिला जिसमें लड़के के नाना अमेरिका में रहते थे ।किसी शहर में रहते होंगे ।पता नहीं चला ।विवाह के पहले यानी बारात जाने के पूर्व उनसे मेरी लगभग 1 घंटे की मुलाकात हुई और बातचीत कर मुझे भी प्रसन्नता हुई । बिषय और प्रश्न ब्राह्मणों पर ही केन्द्रित था कि अमेरिका में क्या स्थिति है । कोई लड़की जब चाहती है तो वह अपने पति को छोड़कर किसी के साथ जा सकती है और यह कहते हुए कि तुमसे मुझे संतुष्टि अब नहीं हो रही है और पति कुछ नहीं कर सकता , सिर्फ इसके सिवा कि वह कहे कि तुम जाओ । हमारे यहां कौन सा बंधन है ! एक बार जो बंध जाता है वह बंधन ही टूटता नहीं ।कहीं इसकी रजिस्ट्री नहीं होती ।बारात आने का कहीं एफिडेविट नहीं होता ,शपथ पत्र कहीं दर्ज नहीं होता और बात पर बारात आ जाती है ,बात पर दुल्हन विदा होती है ,बात पर बेटी किसी की दुल्हन किसी की बहू बन जाती है ।इस गोष्ठी में मनुस्मृति, गर्ग संहिता से लेकर महाभारत तक के श्लोक उद्धृत किए गए थे ।लेकिन जब बारात चली तो दूसरा ही नजारा था । पहले एक परिपार्टी थी कि बाजे वाले को लोग न्योछावर देते थे ।वह न्योछावर 10 - 20 पैसे से लेकर ₹रु10 तक का होता था ।₹10 रु का नोट बहुत बड़ा होता था ।बाजे वाले नाचते गाते थे और बाराती दल को घेर- घार कर नेग लेते थे ।उन्हें जो न्योछावर मिलता था उसे अपने गणवेष पर उलटा -सीधा टाँग लेते थे ।अब बात उल्टी हो गई है । हम नाचते हैं ,हमारे माननीय जैसे बहनोई ,फूफा ,बाबा ,मामा सब नाचते हैं ।कुछ लोग तो शौक से नाचते हैं जैसे -मित्र लोग और बहनोई । इनलोगों की नृत्य विधि और अवधि दोनों बड़ी होती है ,परन्तु कुछ को नाचना पड़ता है ।मामा जी भी नाचते हैं ,फिर लड़के के पिता भी और चाचा भी नाचते हैं । फूफा या अन्य मानिन्द लोगों को नाचने के साथ -साथ अच्छा खासा ट्रिप बाजे वाले को देना पड़ता है ।वैसे इस विवाह में कुछ विशेष था ।लड़के की मां भी बारात गई थी ।लड़के की मां भी नाच रही थी ,लड़के के पिताजी भी नाच रहे थे ।लड़के के नाना भी नाच रहे थे ,नानी भी लता डांस कर रही थी । इधर जयमाला का रिवाज बहुत जोरों पर है । जयमाला अगर बढ़िया अप -टू -डेट नहीं हुआ तो खानदान की प्रतिष्ठा मे बट्टा लगने का डर हो जाता है । स्टेज की भी गरिमा बढ़ जाती है बड़े लोगों को फोटू खिंचवाने से । स्टेज पर भी कुछ ऐसा ही हुआ ।लड़के के पिता ,लड़की की माता के हाथ पकड़कर और लड़के की माता लड़की के पिता के हाथ पकड़ कर घनघोर डांस करने लगे । मैं लज्जा से गड़ा जा रहा था ।इर्द -गिर्द बैठने वालों के कानों में अपनी बात जबरदस्ती ठुँसने का प्रयास कर रहा था । मैं जानता था इस नकारखाने में तूती की आवाज नहीं गुंजेगी ।मेरी बात सुनेगा कौन ? डांस बंद ही नहीं हो रहा था ।लगभग डेढ़ घंटे तक यह प्रक्रिया चली ।पंडित जी बार-बार घूम रहे थे और लग्न को अपनी घड़ी पर पढ़ा रहे थे । श्री राम जी का विवाह लग्न में नहीं हुआ था ,इससे जीवन भर परेशानी बनी रही ।पर सुनता कौन है ? लोग बोलने लगे । लग्न -वग्न क्या होता है ?मुहुर्त में नहीं हुआ तो क्या बिगड़ गया ? और यह भी तो विवाह का ही रश्म है । खैर ,डांस शांत हुआ ।जयमाला की प्रतीक्षा लोग कर ही रहे थे कि भोम्हा गरजने लगा - सब लोग सावधान हो जाएँ ।जयमाला के पहले का सबसे मुख्य रश्म जो किसी कारण से बाकी था अब होने जा रहा है । देखा ,सचमुच यह मुख्य रश्म था ।लड़का लड़की का हाथ पकड़ कर नाचने लगा । सब लोग शांत हो गए ,लेकिन वह नाचता ही रहा । फिर बाद में लड़के ने लड़की को गोद में उठा लिया -बोलो राजा रामचंद्र की जय की ध्वनि गुंज गई । नाचते- नाचते ही लड़की वरमाला पहनाने चली तो लड़के के दोस्तों ने लड़के को ऊपर उठा लिया जहां लड़की की गति नहीं थी। यह प्रक्रिया कितनी बार करने का विधान है और क्या क्या इसका नियम है , मुझे तो पता नहीं था लेकिन छह से सात वार निश्चित ऐसा हुआ होगा ।इस रश्म पर कोई बोलने वाला नहीं था ।जयमाला हुआ फोटो खिंचवाने का पर्व चला । लोग जाकर सोफा के हैंडल पर बैठ -बैठ कर फोटो खिंचबाते रहे । इस तरह यह घंटी लगभग 4 घंटे की हुई ।एक बजने वाला था । दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com |
डॉ. अनिल कुमार ने 34वां विश्व भूगोल महासम्मेलन इस्तांबुल तुर्की में किया शोध पत्र प्रस्तुत Posted: 25 Aug 2021 04:07 AM PDT डॉ. अनिल कुमार ने 34वां विश्व भूगोल महासम्मेलन इस्तांबुल तुर्की में किया शोध पत्र प्रस्तुतहमारे संवाददाता जितेन्द्र कुमार सिन्हा की खास खबर | दीदी जी फाउंडेशन के मुख्य सलाहकार और मोकामा के प्ल्स 2 भूगोल के शिक्षक डॉ. अनिल कुमार ने 34वां विश्व भूगोल महासम्मेलन इस्तांबुल तुर्की में अपना शोध पत्र प्रस्तुत किया है। 34वां विश्व भूगोल महासम्मेलन 16 से 20 अगस्त को तुर्की इस्तांबुल में हुआ था। इस अवसर पर डॉ. अनिल कुमार ने अपना शोधपत्र वर्चुअल प्रस्तुत किया। शोध पत्र का शीर्षक "एक्सेसिव यूज ऑफ ग्राउंड वाटर एंड इट्स इम्पैक्ट ऑन वाटर लेवल" था। डा. अनिल कुमार के पास 12 डिग्री है। डॉ. अनिल कुमार एक साथ चार विषयों में नेट(यूजीसी) से उतीर्ण हुये हैं। वह बच्चों के बीच काफी वैज्ञानिक ढंग से तथ्यों को बताते हैं तथा बच्चों को अध्यतन रखते हैं। यह उनकी 34 वीं सेमिनार प्रस्तुति थी। डा. अनिल कुमार की तीन पुस्तकें तथा कुल 22 शोध पत्र प्रकाशित हो चुके हैं, जिनमें तीन पत्र विदेश में प्रकाशित हुये हैं। सामाजिक संगठन दीदी जी फाउंडेशन की संस्थापिका तथा अंतर्राष्ट्रीय-राष्ट्रीय राजकीय सम्मान से सम्मानित डा.नम्रता आनंद का कहना है कि डा. अनिल कुमार, मुफ्त शिक्षा सेवा देते हैं तथा शोध पत्र लिखना तथा शोध प्रबंधन सिखाना उनकी फितरत हैं। वह एक साथ छह विषय में शोध पत्र लिखना भी सिखाते हैं। समाज सेवा तथा पूर्ण इमानदारी उनकी मुख्य विशेषता है। दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com |
डॉक्टरेट की उपाधि मिला सुनील कुमार सिंह को Posted: 25 Aug 2021 04:05 AM PDT डॉक्टरेट की उपाधि मिला सुनील कुमार सिंह कोराजधानी पटना के प्रतिष्ठित जेनिथ कामर्स एकाडमी के डायरेक्टर और राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सम्मान से सम्मानित सुनील कुमार सिंह को चेन्नई के प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी उपमे विद्यापीठ के द्वारा डॉक्टरेट की उपाधि दी गई है। तमिलनाडु के डीजीपी, जज और यूनिवर्सिटी के प्रेसीडेन्ट ने यह उपाधि सुनील कुमार सिंह को दी। सुनील कुमार सिंह ने इसके लिये उपमे विद्यापीठ के प्रति आभार व्यक्त किया है। सुनील कुमार सिंह द्वारा राजधानी पटना में संचालित जेनिथ कामर्स एकादमी ने सफलता के शिखर के 20 साल पूरे कर लिये हैं। जेनिथ कामर्स एकादमी से अबतक 50 हजार से अधिक छात्र शिक्षा हासिल कर विभिन्न कंपनियों में उच्चपद पर आसीन है। सुनील कुमार सिंह ने बैंगलुरू, दिल्ली देहरादून, कोलकाता और पुणे समेत कई जगहों पर उच्च्स्तरीय कॉलेज में क्लास ले चुके हैं। दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com |
AGBP की राष्ट्रीय कार्यकरिणी ने 'आंदोलन' के लिए किया वेबिनार Posted: 25 Aug 2021 04:02 AM PDT AGBP की राष्ट्रीय कार्यकरिणी ने 'आंदोलन' के लिए किया वेबिनारहमारे संवाददाता जितेन्द्र कुमार सिन्हा की खास खबर | AGBP (अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत) की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक 24 अगस्त (मंगलवार) को वेबिनार के माध्यम से आयोजित हुई, जिसमें ग्राहक पंचायत की सक्रिय भागीदारी को लेकर चर्चा की गई और 'आंदोलन' की रूपरेखा रखी गई। 'आंदोलन' की रूपरेखा में पांच आयामों दायित्व निम्नप्रकार सौंपा गया :- 1- आहार (कृषि संबंधित):- जिसका दायित्व गायत्री को केंद्रीय कार्यकारिणी ने सौंपी। 2- व्यवहार का दायित्व सुनील जैन को दी गई, इसके अंतर्गत बैंकिंग, परिवहन जैसे अन्य मंचों के ग्राहकों की समस्याओं को समाधान करने का प्रयास किया जाएगा। 3- आवास निवास का दायित्व अलंकार वशिष्ठ को दिया गया, जिसके अंतर्गत ग्राहकों को होने वाली रोजमर्रा की समस्याओं का समाधान दिलाने का दायित्व होगा। 4- शिक्षा का दायित्व नेहा जोशी को दिया गया, इनके ऊपर भविष्य की शिक्षा व्यवस्था में ग्राहकों की होने वाली समस्याओं का निराकरण करने का प्रयास करने के लिए योजना निर्माण का भी दायित्व सौंपा गया। 5- आरोग्य का दायित्व भविष्य के लिए ग्राहकों को स्वास्थ्य सेवाओं की त्रुटियों को एक ग्राहक पर बोझ से बचाया जा सके। बैठक का संचालन अरुण देशपाण्डे और 'आंदोलन' की रूपरेखा का उल्लेख दुर्गा प्रसाद ने किया। वहीं दायित्व ग्रहण किए स्वयंसेवक ने अपनी कार्यपरिषद से अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष नारायण भाई शाह का परिचय कराया। सभा के अंत में राष्ट्रीय अध्यक्ष नारायण भाई शाह ने स्वयंसेवक को प्रेरणादायी आशीर्वचन से प्रोत्साहित किया। अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत के दक्षिण बिहार के प्रांतीय सचिव प्रोफेसर अरुण सिन्हा को आवास निवास में दायित्व सौंपा गया। दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com |
यूथ होस्टल्स एशोसिएशन ने बीपीएससी में सफलता हासिल करने वाली अनुपम कुमारी को किया सम्मानित Posted: 25 Aug 2021 03:58 AM PDT यूथ होस्टल्स एशोसिएशन ने बीपीएससी में सफलता हासिल करने वाली अनुपम कुमारी को किया सम्मानितहमारे संवाददाता जितेन्द्र कुमार सिन्हा की खास खबर | शिवकुण्ड पंचायत में सेवा समीति और युवा समिति की ओर से सम्मान समारोह का आयोजन किया गया। उक्त अवसर पर यूथ होस्टल्स एशोसिएशन ऑफ इंडिया, बिहार स्टेट ब्रांच ने बीपीएससी में सफलता हासिल किये जाने पर अनुपम कुमारी को सम्मानित किया गया। अनुपमा कुमारी शिवकुंड निवासी सागर राय की पुत्री है और इसे मुंगेर जिला परिषद की सदस्य रीना देवी ने सम्मान-पत्र और अंग वस्त्र दे कर सम्मानित की। उक्त अवसर पर मुंगेर जिला परिषद सदस्य रीना देवी ने कहा कि अब बेटियाँ हर क्षेत्र में अपनी योग्यता साबित कर रही है। अनुपमा शिवकुंड गाँव की ही सम्मान नही बढ़ाई है बल्कि अन्य बेटियों के लिए उदाहरण और मार्गदर्शक बनी है। उन्होंने यह भी कहा कि अनुपमा अपने साथ-साथ परिवार और समाज का भी नाम रौशन की है। हेमजापुर ओपी के प्रभारी रिंकू कुमार ने अनुपमा कुमारी को बधाई देते हुए कहा कि अनुपमा कुमारी की तरह बेटियाँ हर क्षेत्र में सफलता हासिल कर रही है, और देश का नाम रौशन हो रहा है। यूथ होस्टल्स एशोसियेशन, बिहार के चेयरमैन के एन भारत, अध्यक्ष मोहन कुमार, उपाध्यक्ष सुधीर मधुकर, रीता कुमारी सिंह एवम शरत शलारपुरिया, सचिव ए.के. बोस, कोषाध्यक्ष प्रियेश रंजन, प्रमोद दत्त, मुकेश महान, डॉ. ध्रुव कुमार, सूरज कुमार पाण्डेय, जितेन्द्र कुमार सिन्हा, प्रदीप उपाध्याय, प्रभाष चंद शर्मा आदि ने सफल आयोजन में सम्मानित होने वालों को बधाई और शुभकामनायें दी। उक्त अवसर पर जिला परिषद सदस्य प्रतिनिधि विकास मंडल, दशरथ राय, शशि भूषण राय, ह्रदय नारायण सिंह सहित अन्य गणमान्य लोग उपस्थित थे |
Posted: 25 Aug 2021 03:49 AM PDT कानून का डर न थाजब तलक कानून का डर न था, नेता सत्ता अधिकारी लूटता था। काट कर वन वृक्ष सब बेच डाले, नदियों के गर्भ को भी खोदता था। था नहीं कर तब कोई पानी हवा पर, फूल पत्ती परिंदों के पर नोंचता था। उजाड़ डाला सारा गुलशन स्वार्थ में, खुश्बूओं को बाजार में बेचता था। थी खबर हमको कहां क्या हो रहा था, कौन लूटे मुल्क को या धरा बेचता था? सो रहे थे तान चादर निर्लिप्त होकर, कोई बेटियों की अस्मतों को नोंचता था। होने लगे प्रदुषित नगर गांव उपवन, कटने लगे वन जो कभी थे सघन। हो गई प्रदूषित हवा और नीर भी, होने लगी चिन्ता शुरू चिंतन मनन। बिन भय के कब प्रीत जग में हुई, कर लगा तो चिन्तायें कर की हुई। खुश्बू हवा पानी पीढ़ियों की धरोहर, भविष्य की चिंता परेशानी कम हुई। अ कीर्ति वर्द्धन दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com |
Posted: 25 Aug 2021 03:44 AM PDT 'महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय' को नई दिल्ली में अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक सम्मेलन में 'हिन्दू और नाजी स्वस्तिक' के पीछे आध्यात्मिक अंतर पर अपने शोध के लिए सर्वश्रेष्ठ पेपर पुरस्कार प्राप्त हुआ ।प्रतीकों से प्रक्षेपित सूक्ष्म स्पंदन ही समाज द्वारा उन प्रतीकों को देखने का मापदंड हो !प्रत्येक प्रतीक से सूक्ष्म स्पंदन प्रक्षेपित होते हैं । ये सूक्ष्म स्पंदन सकारात्मक अथवा नकारात्मक हो सकते हैं । अधिकांश धार्मिक नेता उनके धर्म के प्रतीकों से प्रक्षेपित सूक्ष्म स्पंदनों की ओर ध्यान नहीं देते । इससे उनके भक्तों पर अनिष्ट परिणाम हो सकते हैं, ऐसा प्रतिपादन महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के श्री. शॉन क्लार्क ने किया । 'दी इंटरनेशनल कॉन्फ्रेन्स ऑन इनोवेश्न्स इन मल्टीडिसिप्लीनरी रीसर्च (iConference) नई देहली के अंतरराष्ट्रीय परिषद में वे बोल रहे थे । श्री. शॉन क्लार्क ने इस परिषद में 'हिन्दू और नाजी स्वस्तिक में आध्यात्मिक भेद' यह शोधनिबंध प्रस्तुत किया जिसके लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ पेपर पुरस्कार मिला । महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के संस्थापक परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी इस शोधनिबंध के लेखक तथा श्री. शॉन क्लार्क सहलेखक हैं । इस परिषद का आयोजन 'आय कॉन्फ्रेन्स' नई दिल्ली ने किया था । महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय द्वारा वैज्ञानिक परिषद में प्रस्तुत किया गया यह 78 वां शोधपरक लेख था । इससे पूर्व विश्वविद्यालय द्वारा 15 राष्ट्रीय और 62 अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक परिषद में शोधनिबंध प्रस्तुत किए गए हैं । इनमें से 5 अंतरराष्ट्रीय परिषदों में विश्वविद्यालय को 'सर्वोत्कृष्ट शोधनिबंध' पुरस्कार प्राप्त हुआ है । श्री. शॉन क्लार्क ने विविध प्रतीकों के, विशेषतः हिन्दू और नाजी स्वस्तिक के संदर्भ में किए शोध के अंतर्गत किए विविध प्रयोगों की विस्तार से जानकारी दी । उन्होंने 'यूनिवर्सल ऑरा स्कैनर' (यू.ए.एस.) इस उपकरण के द्वारा किए गए शोध कार्य की जानकारी विशेष रूप से बताई । 1. हिन्दू स्वस्तिक और नाजी स्वस्तिक का तुलनात्मक अध्ययन : मूल हिन्दू स्वस्तिक में अत्यधिक मात्रा में सकारात्मक ऊर्जा पाई गई, जबकि नाजी स्वस्तिक में अत्यधिक नकारात्मक ऊर्जा पाई गई । 2. हिन्दू स्वस्तिक और नाजी स्वस्तिक हाथ की बांह पर पहनने का परिणाम : इस प्रयोग में सहभागी दो व्यक्तियों में से प्रथम व्यक्ति को आध्यात्मिक कष्ट होने से प्रयोग के पहले ही उससे नकारात्मक स्पंदन प्रक्षेपित हो रहे थे । दूसरे व्यक्ति से जांच के पूर्व सकारात्मक स्पंदन प्रक्षेपित हो रहे थे । बांह पर नाजी स्वस्तिक बांधने पर प्रथम व्यक्ति की नकारात्मक ऊर्जा का प्रभामंडल दुगुना बढकर 5.73 मीटर हो गया । दूसरे व्यक्ति में 5 मीटर लंबी नकारात्मक ऊर्जा का प्रभामंडल निर्माण हुआ तथा उसकी सकारात्मक ऊर्जा पूर्णतः नष्ट हो गई । उपरोक्त जांच के उपरांत उनके हाथ की बांह पर बंधा नाजी स्वस्तिक निकालने पर, दोनों व्यक्ति मूल स्थिति (प्रयोग के पहले की स्थिति) में आने तक प्रयोग रोक दिया गया । मूल स्थिति में आने पर उनके हाथ की बांह पर हिन्दू स्वस्तिक बांधा गया । 20 मिनिट के उपरांत की गई जांच में पाया गया कि प्रथम व्यक्ति की नकारात्मक ऊर्जा का प्रभामंडल पूूर्णतः नष्ट हो गया है । इतना ही नहीं, उसमें सकारात्मक ऊर्जा निर्माण हुई, जिसका प्रभामंडल 1 मीटर था । दूसरे व्यक्ति की सकारात्मक ऊर्जा का प्रभामंडल मूल 3.14 से बढकर 6.23 मीटर हो गया, अर्थात लगभग दुगुना हो गया । उपरोक्त दोनों प्रतीक अपनी-अपनी क्षमता के अनुसार किस प्रकार शक्तिशाली हैं, यह इस प्रयोग से सिद्ध हुआ । नाजी स्वस्तिक धारण करनेवाले पर तीव्र नकारात्मक परिणाम होता है तथा प्राचीन भारतीय स्वस्तिक का अत्यधिक सकारात्मक परिणाम होता है । दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com |
Posted: 25 Aug 2021 03:41 AM PDT जबकि कविता ---:भारतका एक ब्राह्मण. संजय कुमार मिश्र "अणु" मन में पालकर द्वेष- बढा रहे हो तुम विद्वेष। जबकि कविता होती है- कांता सम्मित उपदेश।1। उसे कुछ नहीं आता है, सबसे यही बताता है। और मेरे पास आता है, बडे-बडे लोगों का संदेश।2। नहीं है किसी विषय का ज्ञान, रग-रग में भरा है अभिमान। बडा उदण्ड है,पाले घमंड है, सबको पहुंचाता है ठेस।3। वह स्वघोषित ज्ञानी है, न कथा है न कहानी है। यहां का वहां वहां का यहां- कहाँ कोई कहता है बेस।4। वह थेथर है थेथर, इसीलिए है बेघर। विरोध की जागृति- है एकमात्र उपदेश।5। जहां कहीं भी गया, कहा लोगों ने बेहया। फिर भी न है लाज- और शरम का लेस।6। ऐसे लोगों से सावधान, जिसका जीवन श्मसान। और टंगरी मारने को वह- तैयार बैठा है शेष।7। ---------------------------------------- वलिदाद,अरवल(बिहार)804402. दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com |
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