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Wednesday, July 8, 2020

क्रांतिदूत

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क्या सिंधिया के समान बड़ा दिल कर पाएंगे उनके समर्थक ?

Posted: 08 Jul 2020 02:01 AM PDT




कभी कॉंग्रेस के बड़े नेता रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया अब भाजपा के न सिर्फ राज्यसभा सांसद है, बल्कि भाजपा में भी उन्हें उचित सम्मान प्राप्त हो रहा है | और हो भी क्यों न क्योंकि वह इसके योग्य भी है | कॉंग्रेस में रहते हुए भी वह बेदाग रहे, उनके ऊपर किसी भी तरह के भ्रष्टाचार का आरोप नहीं लगा यह एक बड़ी बात है | इसके अतिरिक्त जिस प्रकार तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ जी ने उन्हें सड़क पर उतरने की अहंकार पूर्ण चुनौती दी, उसके बाद तो ग्वालियर चम्बल अंचल की जनता में उनके प्रति सहज सहानुभूति का अंडर करेंट भी है | कांग्रेसी चाहे जितना चिल्लपों मचाएं, उनकी छवि धूमिल करने का प्रयास करें, किन्तु सिंधिया का कॉंग्रेस छोड कर भाजपा में आना, जनता को पसंद ही आया है, उनके इस कार्य में स्वाभिमान की जो अभिव्यक्ति है, उसने जनता की नजर में उन्हें नायक बना दिया है |

भाजपा में आने के साथ ही ज्योतिरादित्य सिंधिया भाजपा में घुलते मिलते दिखाई दे रहे है, और यह उनके लिए ज्यादा कठिन भी नहीं था, क्योंकि उनकी दादी स्वर्गीय राजमाता सिंधिया भाजपा के संस्थापक सदस्यों में से एक थी, उनकी बड़ी वसुंधरा राजे सिंधिया एवं यशोधरा राजे सिंधिया भी भाजपा की वरिष्ठ नेता है | अतः भाजपा में न रहते हुए भी सिंधिया भाजपा संगठन एवं उसकी कार्यप्रणाली से अच्छे से परिचित है यह वह दिखा भी रहे है | इसीलिए सिंधिया का तो आमतौर पर भाजपा कार्यकर्ताओं ने भी पलक पांवड़े बिछाकर स्वागत किया है, लेकिन समस्या सिंधिया के साथ आये उनके समर्थकों के साथ आम भाजपा कार्यकर्त्ता की पटरी कितनी बैठ पायेगी, यह देखने बाली बात है, जो कि हजारों की संख्या में अब भाजपाई बन चुके हैं |

एक और कॉंग्रेस एक परिवार की पार्टी मानी जाती है तो भाजपा की विशेषता उसका कार्यकर्ताओं की पार्टी वाला स्वरुप है, जहाँ एक सामान्य सा चाय बेचने वाला भी देश का प्रधानमंत्री बन सकता है| सिंधिया इस बात को अच्छी तरह जानते हैं, इसीलिए भाजपा में आते ही उन्होंने अशोकनगर विधानसभा के जनसंवाद कार्यक्रम के दौरान क्षेत्रीय सांसद केपी यादव के साथ अपने सभी मतभेदों को भुलाते हुए कहा कि केपी को मेरे साथ काम करने का बहुत अच्छा अनुभव है, हम पहले भी एक थे और आज भी हम एक है, बीच में चाहे जो भी हुआ हो | अब हम साथ में लड़ेंगे और हर संकट का सामना करेंगे | सिंधिया के द्वारा इससे पूर्व कभी केपी यादव का नाम तक नहीं लिया गया था, परन्तु उक्त कार्यक्रम में उनके द्वारा केपी यादव के बारे में कही गयी यह बात, सिंधिया के बड़े ह्रदय वाला होने का प्रमाण है |

परन्तु क्या सिंधिया जैसा बड़ा ह्रदय सिंधिया समर्थक कर पायेंगे ? यह सर्वविदित है कि सिंधिया जी की विगत लोकसभा चुनाव में पराजय का एक बड़ा कारण, उनके समर्थकों के द्वारा स्थानीय जनता की अनदेखी कर अति आत्म विश्वास से लबरेज होना भी था, यह अलग बात है कि सबसे बड़ा कारण तो मोदी लहर ही थी| सिंधिया समर्थकों को भी अपने नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया की भांति भाजपा संगठन के अनुसार कार्य करने की आदत डालनी होगी, क्योंकि भाजपा और कॉंग्रेस संगठन की कार्यशैली में जमीन आसमान का अंतर है | भाजपा को सिंधिया एवं सिंधिया को भाजपा की आवश्यकता थी अतः दोनों ने एक दूसरे को न सिर्फ स्वीकार किया बल्कि एक दूसरे का पूरा सम्मान किया, परन्तु भाजपा के मूल कार्यकर्ता सिंधिया के उन समर्थकों को कितना सर माथे बैठा पायेंगे, जो स्वयं पूर्व में सिंधिया के लिए अनुपयोगी सिद्ध होकर, सरदर्द रह चुके है | हालांकि अनेक सिंधिया निष्ठ पहले भी भाजपा में आते जाते रहे हैं, यहाँ तक कि भाजपा में उनके समर्थकों की बड़ी तादाद सदा से रही है, जो उनके कांग्रेसी रहते भी हर चुनाव में उनका समर्थन करते व उनके लिए काम करते दिखाई देते थे | उनकी यह फ़ौज हमेशा से रही है जो कभी किसी नाव पर तो कभी किसी नाव पर सवारी कर अपने स्वार्थ की पूर्ती करती रही है | स्वाभाविक ही अब भाजपा के स्वार्थी तत्वों की यह फ़ौज कॉंग्रेस से भाजपा में आये सिंधिया समर्थकों के साथ गठजोड़ करने में लगी दिखाई दे रही है |

एक तटस्थ विश्लेषक के रूप में मेरा तो यह मानना है कि भाजपा के सामने अब सबसे बड़ी समस्या अपने तत्व निष्ठ कार्यकर्ताओं को संभालना रहने वाली है | अगर इस नए समीकरण के कारण वे हतोत्साहित हुए तो भाजपा की जड़ों में मट्ठा स्वतः डल जाएगा | आज जो कांग्रेस शून्य दिखाई दे रही है, स्थिति उसके एकदम उलट होते देर नहीं लगेगी |

एकलिंग के दीवान – बप्पा रावल

Posted: 07 Jul 2020 10:18 PM PDT



सीमा से बाहर जाकर भी केसरिया फहराया, 

भरत भूमि की पावन रज का जिसने मान बढ़ाया, 

ईरान और अफगान सभी को जाकर जिसने जीता । 

टूट पड़ा था यवनों पर वो बप्पा रावल चीता । 

इस्लाम की स्थापना के बाद अरबी मुस्लिमों ने तत्कालीन फारस अर्थात आज के ईरान को जीतने के बाद से ही भारत पर आक्रमण करने प्रारम्भ कर दिए थे। बहुत वर्षों तक तो वे पराजित होते रहे, लेकिन अन्ततः राजा दाहिर के काल में सिंध को जीतने में सफल हो गए। उनकी आंधी सिंध से आगे भी भारत को निगलना चाहती थी, किन्तु बप्पा रावल एक सुद्रढ़ दीवार की तरह उनके रास्ते में खड़े हो गए जिन्होंने पराजित राज्यों को एकजुट कर एक अजेय शक्ति खड़ी की। उन्होंने अरबों को कई बार हराया और उनको सिंध के पश्चिमी तट तक सीमित रहने के लिए बाध्य कर दिया, जिसे आजकल बलूचिस्तान के नाम से जाना जाता है। 

इतना ही नहीं उन्होंने आगे बढ़कर गजनी पर भी आक्रमण किया और वहां के शासक सलीम को बुरी तरह हराया। उन्होंने गजनी में अपना प्रतिनिधि नियुक्त कर दिया और तब चित्तौड़ लौटे। आइये गांधार, खुरासान, तूरान और ईरान तक अपनी विजय दुंदभी बजाने वाले बप्पा रावल के जीवन पर एक नजर डालें - 

बात सन 716 की है | मेवाड़ के दक्षिण में स्थित ईडर नामक एक राज्य पर शासन करने वाले राजा नागादित्य के दुराचरण से नाराज होकर भीलों ने उसकी हत्या कर दी। रानी जो चित्तोड़ के मौर्य शासक मानमोरी की बहिन थी, वह तो अपने पति के साथ सती हो गई, किन्तु अपने तीन वर्षीय पुत्र कालभोज की रक्षा करने और पालने पोसने की जिम्मेदारी एक विधवा ब्राह्मणी तारा को सोंप गई । क्रुद्ध भीलों से इस शिशु की प्राण रक्षा करने के लिए तारा उसे लेकर भांडेर नामक किले पर पहुंची, जहाँ रहने वाले भील बच्चों के साथ खेलते – रहते - अतिशय सामान्य स्थिति में काल भोज का पालन पोषण हुआ । कुछ वर्षों बाद तारा को लगा कि श्यामवर्णी भीलों के बीच गौरांग तरुण भोज को लोग संदेह की नजर से देखने लगे हैं, तब वह उसे लेकर नागदा पहुँच गई, जहाँ भोज को एक ब्राह्मण परिवार में शरण मिली | 

अन्य बच्चों के साथ वह गाय चराने जाया करता था | लेकिन तभी एक चमत्कारिक घटना घटी | जिन गायों को वह चराता था, उनमें से श्यामा नामक एक गाय ने अकस्मात दूध देना बंद कर दिया | गाय के मालिक को लगा कि कहीं यह बालक तो उसका दूध नहीं पी जाता चराते समय | स्वाभाविक ही इस शंका की जानकारी मिलने पर भोज को बहुत दुःख हुआ और उसने गाय पर नजर रखनी शुरू की | उसने देखा कि चरते चरते वह गाय अकस्मात जंगल में कहीं जा रही है | भोज ने गाय का पीछा किया और देखा कि वह गाय भीषण बियाबान जंगल में बनी एक गुफा में जा रही है | जैसे ही भोज उस गुफा में प्रविष्ट हुआ, एक दिव्य सन्यासी ने मुस्कुराकर उसका स्वागत कुछ इन शब्दों में किया – आगए एकलिंग के दीवान, मैं तुम्हारा ही इंतज़ार कर रहा था | 

इन सन्यासी का नाम था हरित सन्यासी | गाय गुफा में पहुंचकर शिवलिंग का दुग्धाभिषेक करती थी अर्थात शिवलिंग पर उसके थनों से दूध अपने आप प्रवाहित होने लगता था | शीघ्र ही इस घटना की जानकारी अन्य लोगों को भी हो गई तथा भोज पर हरित सन्यासी की कृपा है, यह जानकर उसके प्रति आत्मीयता और सम्मान भी बढ़ गया | अब उसे गाय चराने के स्थान पर शिक्षा दी जाने लगी | समय गुजरता गया | वह तरुणावस्था से युवावस्था में प्रवेश ही कर रहा था, तभी तारा को एक सर्प ने काट लिया | अब तक भोज तारा को ही अपनी मां ही समझता था, किन्तु मरणासन्न तारा ने उसे उसकी वास्तविकता बताई तथा कहा कि वह अपने मामा के पास चित्तोड़ चला जाए | 

ये वो समय था जब हिंदुस्तान पर अरब लुटेरों के हमले का डर बना हुआ था. अरब के लुटेरे शासकों ने मिस्र, स्पेन और ईरान को भी जीत लिया था. अब ईराक का शासक अल हज्जाज अकूट संपदा से भरे पड़े हिंदुस्तान पर अपनी निगाह टेढ़ी किए हुए था. उसने सिंध पर छोटे-मोटे हमले करने शुरू कर दिए, लेकिन पराजित होता रहा | बाद में अल हज्जाज के भतीजे और दामाद मुहम्मद बिन कासिम ने भी कई बार हमले किये, लेकिन दाहरसेन की सेना से उसे भी हार ही मिली. तब कासिम ने षडयंत्र रचा और दाहरसेन की सेना में अपने सिपाहियों को महिलाओं के वस्त्र पहनाकर भेज दिया. धोखे और फरेब की यह चाल सफल रही और वीरता पूर्वक लड़ते हुए दाहरसेन ने अपने प्राणों की आहूति दे दी. 

इसके बाद तो अरबों के आक्रमण बिन कासिम के बाद भी होते रहे | राजस्थान के अधिकांश राज्यों को पराजय का सामना करना पड़ा | उस समय चित्तौड़ पर मौर्यवंश के मानमोरी शासन करते थे, जो अरब आक्रमणकारियों के सामने एकदम कमजोर सिद्ध हो रहे थे | उसी दौर में कालभोज ने चित्तोड़ में प्रवेश किया और राजा से मिलकर अपना परिचय दिया | उनका भानजा जीवित है, यह जानकर मामा और मामी स्वाभाविक रूप से अत्यंत प्रसन्न हुए और भोज को अपने सेना में महत्वपूर्ण स्थान दिया | 

अंग्रेज इतिहासकार कर्नल टाड ने इसके आगे का प्रसंग कुछ इस प्रकार वर्णित किया है – 

जब मुस्लिम आक्रान्ताओं ने मेवाड़ पर हमला किया तो कालभोज अपनी सेना के साथ विदेशी आक्रांता से भूखे शेर की भांति जा भिड़ा। उसकी वीरता को देखकर मौर्य राजा मानसिंह और उसके सभी सामंत भौंचक्के रह गये। जीतने के बाद भी वह रूका नही और जैसलमेर, जोधपुर व सौराष्ट्र के राजाओं को एकजुट कर वह सीधे गजनी की ओर बढ़ गया । ये सभी राजवंश मुहम्मद बिन कासिम से पराजित हो चुके थे | इस संयुक्त अभियान में भोज ने गजनी के तत्कालीन शासक सलीम को न केवल परास्त किया, बल्कि उसकी लड़की से विवाह कर वापस लौटे । 

जब भोज वापस चित्तौड़ लौटे तो उन्होंने इस दौरान प्राप्त अपार सम्पदा मुक्त हस्त से आमजन में लुटा दी | जनता के लिए यह एक नया अनुभव था, तब तक किसी राजा ने ऐसी दरियादिली नहीं दिखाई थी | आमजन ने प्यार से उसे अपने पालनहार पिता को दिया जाने वाला संबोधन दिया – बप्पा | उस दिन से आज तक सब उन्हें बप्पा रावल के नाम से ही जानते हैं, उनका असली नाम भोज तो मानो कहीं गुम ही हो गया | उनकी लोकप्रियता देखकर व अपनी कमजोरी से शर्मिंदा राजा मानमोरी एक रात को महल छोड़कर संभवतः सन्यासी हो गए और दूसरे दिन महारानी ने दरबार में उनकी अंतिम इच्छा सभी सामंतो और सरदारों को बताई कि वह राजकाज की जिम्मेदारी बप्पा रावल को दे गए हैं | 

राज्यारोहण किसी कुंवारे व्यक्ति का नहीं होता, अतः जिस नागदा में कालभोज रहे थे, वहां के राजा ने अत्यंत प्रसन्नता पूर्वक अपनी पुत्री का विवाह उनके साथ कर दिया | राज्याभिषेक के समय उनका राजतिलक किसी पुरोहित ने नहीं, बल्कि उनके एक बाल्यकाल के साथी भील नवयुवक ने अपना अंगूठा चीरकर किया | उसके बाद तो यह प्रथा ही हो गई | चित्तौड़ के हर नरेश का राजतिलक इसी प्रकार होता रहा | महाराज बप्पा रावल के विजय अभियान उसके बाद भी जारी रहे | उन्होंने कंधार काश्मीर, ईराक, ईरान, तूरान और अफगानिस्तान आदि को जीतकर उन पर शासन किया और वहां के शासकों की कन्याओं से विवाह किये। भविष्य के आक्रमणों की सुरक्षा हेतु उन्होंने सीमा पर सैनिक छावनी भी स्थापित की, जिसे रावल पिंडी नाम दिया गया | पाकिस्तान के इस शहर को तो हम सब जानते ही हैं | 

जिस हरित ऋषि ने सबसे पहले उन्हें एकलिंग का दीवान संबोधन दिया था, उनके आश्रम के पास ही आज भगवान एकलिंग जी का भव्य मंदिर विराजमान है | उदयपुर के उत्तर में कैलाशपुरी स्थित इस मन्दिर का निर्माण 734 ई. में बप्पा रावल ने करवाया | बप्पा रावल का देहान्त कहाँ हुआ, यह विवाद का विषय है, क्योंकि उनकी समाधि नागदा तथा कश्मीर दोनों जगह बताई जाती है । 

अब आप बताईये कि क्या बप्पा का पराक्रम मोहम्मद बिन कासिम से कहीं कम है ? फिर क्या कारण है कि भारत में बिन कासिम द्वारा सिंध के राजा दाहिर को हराने का प्रसंग तो पढ़ाया जाता है, किन्तु बप्पा रावल के विजय अभियानों की चर्चा ही नहीं होती | 

प्रजा बत्सल देश रक्षक बप्पा रावल की यह गाथा अब सोशल मीडिया की जन पत्रकारिता के युग में जन जन तक पहुंचे, इस आशा और विश्वास के साथ सभी बंधुओं का सादर अभिवादन | नमस्कार |

"परम पावन दलाई लामा", शांति संघर्ष के 85 वर्ष - संजय तिवारी

Posted: 07 Jul 2020 10:34 AM PDT


उनको परम पावन कहा जाता है। दलाई लामा एक मंगोलियाई पदवी है जिसका मतलब होता है ज्ञान का महासागर । दलाई लामा के वंशज करूणा, अवलोकेतेश्वर के बुद्ध के गुणों के साक्षात रूप माने जाते हैं। बोधिसत्व ऐसे ज्ञानी लोग होते हैं जिन्होंने अपने निर्वाण को टाल दिया हो और मानवता की रक्षा के लिए पुनर्जन्म लेने का निर्णय लिया हो।

परम पावन से मेरी पहली सीधी मुलाकात वर्ष 1997 में गोरखपुर में हुई थी। गोरखपुर विश्वविद्यलय के संस्कृत विभाग में आचार्य करुणेश शुक्ल जी के आग्रह पर वे यहां एक व्याख्यान के लिए पधारे थे। मैं तब रिपोर्टर था। परम पावन के साक्षत्कार की कोशिश में था। सर्किट हाउस में मुलाकात हुई। समय भी मिला। मेरे पहुचते ही उन्होंने एक तरह से मेरा ही साक्षात्कार शुरू कर दिया। उनके सवाल थे - गोरखपुर किस धर्मक्षेत्र में है। यहां गोरखनाथ मंदिर में तंत्र की शिक्षा कैसी चल रही है? ये दोनों ही सवाल अभी उनके मुह से निकले ही थे कि इन प्रश्नों को सुनते हुए विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति प्रो रमेश कुमार मिश्र वहां पहुँच गए। मुझसे किये गए प्रश्नों का जवाब कुलपति जी ने ही दिया। बद्री केदार धर्मक्षेत्र में गोरखपुर । गोरखनाथ पीठ में तंत्र साधना की जानकारी।

अभी 6 जुलाई को परमपावन ने जीवन के 85 वर्ष पूरे किए हैं। उनकी स्मृति का यह आलेख विलंब से लिख पा रहा हूँ। लिखना जरूरी लगा क्योकि परम पावन भले ही बौद्ध आध्यात्मिक गुरु है, मुझे सनातन संस्कृति में रुचि उनसे मिलने के बाद ही ज्यादा हुई। सनातन , वैदिक संस्कृति के साथ ही नाथ सम्प्रदाय और गुरू गोरखनाथ के साथ ही इस पूरी परंपरा में रुचि और बढ़ती ही गयी। उनसे मिलने के बाद ही मैंने भगवान शंकराचार्य को समझना शुरू किया । वह अभी तक जारी है। भगवान शंकराचार्य को एक जन्म में समझ पाना संभव नही लगता। हम जैसे अल्पज्ञानियो के लिए बहुत कठिन यात्रा है यह।

यह सत्य है कि परमपावन दलाई लामा के बारे में नई पीढ़ी को बहुत कम ही जानकारी है। दलाई लामा की परंपरा, तिब्बत की महत्ता, भारत से संवेनात्मक संबंध, उनकी निर्वासित सरकार से लेकर अब एक आध्यात्मिक गुरु के रूप में उनकी जीवन यात्रा को समझना अत्यंत आवश्यक है।

आखिर हैं कौन परम पावन

परम पावन चौदहवें दलाई लामा तेनज़िन ग्यात्सो २९ मई २०११ तक तिब्बत के राजकीय प्रमुख रहे और उपरोक्त तिथि पर उन्होंने अपनी सारी राजनीतिक शक्तियाँ तथा उत्तरदायित्व प्रजातांत्रिक तरीके से चुने हुए तिब्बती नेतृत्व को हस्तांतरित किये। अब वे केवल तिब्बत के सर्वोच्च आध्यात्मिक गुरु हैं। उनका जन्म ६ जुलाई १९३५ को उत्तरी तिब्बत में आमदो के एक छोटे गाँव तकछेर में एक कृषक परिवार में हुआ था। दो वर्ष की आयु में ल्हामो दोंडुब नाम का वह बालक तेरहवें दलाई लामा थुबतेन ग्यात्सो के अवतार के रूप में पहचाना गया। ऐसा विश्वास है कि दलाई लामा अवलोकितेश्वर या चेनेरेज़िग का रूप हैं जो कि करुणा के बोधिसत्त्व तथा तिब्बत के संरक्षक संत हैं। उन्हें सम्मान से परमपावन भी कहा जाता है। बोधिसत्त्व प्रबुद्ध सत्त्व हैं जिन्होंने अपना निर्वाण स्थगित कर मानवता की सेवा के लिए पुनः जन्म लेने का निश्चय लिया है।

तिब्बत में शिक्षा

परम पावन की मठीय शिक्षा छह वर्ष की आयु में प्रारंभ हुई। उनके पाठ्यक्रम में पाँच महाविद्या तथा पाँच लघु विद्या थे। महाविद्या थे प्रमाण विद्या, शिल्प विद्या, शब्द विद्या, चिकित्सा विद्या तथा आध्यात्मिक विद्या, जो अन्य पाँच वर्गों में विभक्त थाः प्रज्ञापारमिता, माध्यमिक, विनय, अभिधर्म और प्रमाण। पाँच लघु विद्या थे काव्य, नाटक, ज्योतिष, छन्द तथा अभिधान। सन् १९५९ में२३ वर्ष की आयु में वे ल्हासा के जोखंग मंदिर में मोनलम (प्रार्थना) उत्सव के समय अपनी अंतिम परीक्षा में बैठे। उन्होंने अपनी परीक्षा में बड़े ही सम्मान के साथ सफलता प्राप्त की और उन्हें गेशे ल्हारम्पा की उपाधि जो कि उच्चतम उपाधि है और बौद्ध दर्शन में डॉक्टर के समकक्ष है, से सम्मानित किया गया।

नेतृत्व का उत्तरदायित्व

चीन द्वारा १९४९ में तिब्बत पर आक्रमण के बाद १९५० में परम पावन से पूरी राजनैतिक सत्ता संभालने का आग्रह किया गया। १९५४ में वे माओ च़े तुंग तथा अन्य चीनी नेताओं जिनमें देंग ज़ियोपिंग और चाउ एन लाइ भी शामिल थे, के साथ शांति वार्ता के लिए बीजिंग गए। पर अंततः १९५९ में चीनी सेना द्वारा ल्हासा के तिब्बती राष्ट्रीय संघर्ष को बड़ी क्रूरता से कुचले जाने के कारण परम पावन को शरण लेने के लिए बाध्य होना पड़ा। तबसे वे उत्तरी भारत के धर्मशाला में निवास करते हैं जो कि निर्वासित तिब्बती राजनैतिक प्रशासन का केन्द्र है।
चीनी आक्रमण के बाद परम पावन ने तिब्बत के प्रश्न पर संयुक्त राष्ट्र संघ से अपील की है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने तिब्बत पर १९५९, १९६१, और १९६५ में तीन प्रस्ताव पारित किए।

प्रजातंत्रीय प्रक्रिया

१९६३ में परम पावन ने तिब्बत के प्रजातंत्रीय संविधान का एक प्रारूप प्रस्तुत किया जिसके बाद हमारी प्रशासनिक व्यवस्था को प्रजातांत्रिक बनाने के लिए कई संशोधन हुए। इस सुधार के फलस्वरूप जो नया प्रजातंत्रीय संविधान घोषित हुआ वह शरणार्थी तिब्बतियों के संविधान के नाम से जाना जाता है। इस संविधान में अभिव्यक्ति, विश्वास, सभा तथा घूमने फिरने की स्वतंत्रता प्रतिष्ठापित है। इसमें जो शरणार्थी के रूप में रह रहे हैं उनके प्रति भी तिब्बती प्रशासन के प्रकार्यों के लिए दिशा निर्देश दिए गए हैं।

१९९२ में परम पावन ने भविष्य के स्वतंत्र तिब्बत के संविधान के दिशा निर्देश प्रकाशित किए। उन्होंने घोषणा की कि जब तिब्बत स्वतंत्र होगा तो तात्कालिक कार्य एक अंतरिम सरकार की स्थापना करना होगा जिसका पहला कार्य एक संवैधानिक सभा का चुनाव होगा जो तिब्बत की प्रजातंत्र संविधान की रूप रेखा बनाकर उसे स्वीकार करेगी। उस दिन परम पावन अपने सभी ऐतिहासिक तथा राजनैतिक सत्ता अंतरिम राष्ट्रपति को सौंप देंगे और एक साधारण नागरिक की तरह जीवन व्यतीत करेंगे। परम पावन ने यह भी कहा कि तिब्बत जो कि उच़ंग, आमदो और खम तीन पारम्परिक प्रदेशों से बना है वह संघीय तथा प्रजातान्त्रिक होगा।

मई १९९० में परम पावन द्वारा जो सुधार सुझाए गए थे वह तिब्बती समुदाय के लिए एक सच्चे शरणार्थी प्रजातंत्रीय प्रशासन के रूप में साकार हुए। तिब्बती मंत्री परिषद् (कशाग) जिसकी नियुक्ति उस समय तक परम पावन किया करते थे, उसे शरणार्थी तिब्बती संसद के साथ भंग कर दिया गया। उसी वर्ष भारतीय उपमहाद्वीप और३३ से अधिक देशों के शरणार्थी तिब्बतियों ने विस्तृत ग्यारहवीं तिब्बती संसद के लिए एक व्यक्ति एक वोट के आधार पर ४६सदस्यों का चुनाव किया। संसद ने अपनी ओर से मंत्रिमंडल के नए सदस्यों का चुनाव किया। सितंबर २००१ में प्रजातंत्रीकरण की ओर एक बड़ा कदम उठाया गया, जब निर्वाचकों ने मंत्रिमंडल के सबसे वरिष्ठ कलोन ठिपा का सीधा चुनाव किया। इसके बाद कलोन ठिपा ने अपने मंत्रिमंडल की नियुक्ति की जिनके लिए तिब्बती संसद की स्वीकृति प्राप्त करना आवश्यक है। तिब्बत के लंबे इतिहास में, यह पहला अवसर था जब लोगों ने तिब्बत के राजनैतिक नेतृत्व को पहली बार चुना।

शांति पहल

तिब्बत की बिगड़ती परिस्थिति के शांति समाधान के लिए एक पहले कदम के रूप में सितंबर १९८७ में परम पावन ने पाँच बिंदु शांति प्रस्ताव रखा। उन्होंने कल्पना की कि तिब्बत एक आश्रय स्थल बनेगा; एशिया के केन्द्र में शांति का क्षेत्र, जहाँ सभी सत्त्व समन्वय की भावना के साथ रह सकेंगे और उस कोमल वातावरण को सुरक्षित रखा जा सकेगा। परम पावन द्वारा प्रस्तावित इन विभिन्न शांति प्रस्तावों पर एक सकारात्मक उत्तर देने में चीन अब तक असफल रहा है।

पाँच बिंदु शांति योजना

२१ सितम्बर १९८७ को वाशिंगटन डी सी में संयुक्त राज्य अमरीका के कांग्रेस को संबोधित करते हुए परम पावन ने निम्नलिखित शांति प्रस्ताव रखा:

1 सम्पूर्ण तिब्बत को एक शांति क्षेत्र में परिवर्तित किया जाए।

2 चीन की जनसंख्या स्थानातंरण की नीति जो तिब्बतियों के अस्तित्व के लिए ही एक खतरा है, को पूरी तरह से छोड़ दिया जाए।

3 तिब्बतियों के आधारभूत मानवीय अधिकार और प्रजातंत्रीय स्वतंत्रता के प्रति सम्मान की भावना।

4 तिब्बत के प्राकृतिक पर्यावरण की पुनर्स्थापना और संरक्षण तथा चीन द्वारा आणविक शस्त्रों के निर्माण और परमाणु कूड़ादान के रूप में तिब्बत को काम में लाए जाने को छोड़ना ।

5 तिब्बत के भविष्य की स्थिति और तिब्बतियों तथा चीनियों के आपसी संबंधों के विषय में गंभीर बातचीत की शुरुआत।

परम पावन दलाई लामा, पांच सूत्रीय शांति योजना पर यूरोपीय संसद को संबोधित करते हुए, स्ट्रॉसबर्ग, फ्रांस, १५ जून १९८८
परम पावन दलाई लामा, पांच सूत्रीय शांति योजना पर यूरोपीय संसद को संबोधित करते हुए, स्ट्रॉसबर्ग, फ्रांस, १५ जून १९८८

१५ जून,१९८८ को यूरोपियन संसद में परम पावन ने पाँच बिंदु शांति योजना के अंतिम बिंदु का विस्तार करते हुए एक और विस्तृत प्रस्ताव रखा। उन्होंने तिब्बत के तीनों प्रांतों में स्वशासित प्रजातंत्रीय राजनैतिक सत्ता के लिए चीनी और तिब्बतियों के बीच बातचीत का रास्ता सुझाया। यह सत्ता चीनी संघ के साथ होगी तथा चीन सरकार तिब्बत की विदेश नीति तथा सुरक्षा के लिए उत्तरदायी रहेगी।

सार्वभौमिक पहचान

परम पावन दलाई लामा शांति प्रिय व्यक्ति हैं। १९८९ में तिब्बत को स्वतंत्र कराने में उनके अहिंसात्मक संघर्ष के लिए उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया। अत्यधिक आक्रात्मक स्थितियो में भी वे निरंतर अहिंसात्मक नीतियों का समर्थन करते रहे हैं। वे पहले नोबेल विजेता हुए हैं जिन्होंने वैश्विक पर्यावरण की समस्याओं के प्रति अपनी चिंता जताई।

परम पावन ६ महाद्वीपों के ६२ से भी अधिक देशों की यात्रा कर चुके हैं। वे बड़े देशों के राष्ट्रपतियों, प्रधानमंत्रियों और राजकीय शासकों से मिले हैं। वे विभिन्न धर्मों के प्रमुखों और जाने माने वैज्ञानिकों से भी संवाद कर चुके हैं। उनके शांति, अहिंसा, अंतर्धर्मीय समझ, सार्वभौमिक उत्तरदायित्व तथा करुणा के संदेश को देखते हुए १९५९ से परम पावन जी को ८४ से भी अधिक सम्मान, सम्माननीय डॉक्टरेट, पुरस्कार इत्यादि मिल चुके हैं। परम पावन ने ७२ से भी अधिक पुस्तकें लिखी है। परम पावन स्वयं को एक साधारण बौद्ध भिक्षु कहकर संबोधित करते हैं।

राजनीति सेवानिवृत्ति

१४ मार्च २०१० को परम पावन ने तिब्बती जनप्रतिनिधि सभा (निर्वासन में तिब्बती संसद) के संसद को पत्र लिख कर तिब्बतियों के निर्वासन के चार्टर के अनुसार अपने तात्कालिक अधिकार से उन्हें मुक्त करने का अनुरोध किया, क्योंकि तकनीकी रूप से वे अभी भी राज्य प्रमुख थे। उन्होंने घोषणा की कि वह उन परम्पराओं को समाप्त कर रहे थे जिसके अनुसार दलाई लामा ने तिब्बत में आध्यात्मिक और राजनैतिक अधिकार का प्रयोग किया था। उन्होंने स्पष्ट किया कि उनका उद्देश्य था कि वे मात्र आध्यात्मिक विषयों से संबंध रखते हुए पहले चार दलाई लामा की स्थिति को पुनः प्रारंभ करें। उन्होंने पुष्टि की कि लोकतांत्रिक ढंग से निर्वाचित नेतृत्व तिब्बती राजनीतिक मामलों के प्रति सम्पूर्ण औपचारिक उत्तरदायित्व ग्रहण करेगा। अब से गदेन फोडंग, दलाई लामा का आधिकारिक कार्यालय और आवास, उस कार्य को पूरा करेगा।

२९ मई २०१० को, परम पावन ने औपचारिक रूप से दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर किए तथा अपना राजनैतिक उत्तरदायित्व लोकतांत्रिक तरीके से चुने गए नेता को सौंपा। ऐसा करते हुए उन्होंने दलाई लामा की ३६८ वर्षीय परम्परा, जो तिब्बत के आध्यात्मिक और राजनौतिक प्रमुख दोनों के रूप में कार्य कर रही थी, को औपचारिक रूप से समाप्त किया।

भविष्य

१९६९ में ही परम पावन ने स्पष्ट किया था कि दलाई लामा के पुनर्जन्म को मान्यता दी जाए अथवा नहीं वह तिब्बती, मंगोलियाई और हिमालयी क्षेत्रों के लोगों के निर्णय पर निर्भर था। परन्तु स्पष्ट दिशा निर्देशों के अभाव में, एक स्पष्ट खतरा था कि यदि संबद्धित जनता भावी दलाई लामा को पहचानने के लिए तीव्र इच्छा प्रकट करे तो निहित स्वार्थ राजनीतिक स्थिति का लाभ उठा लेंगे। अतः सितंबर २४, २०११ को अगले दलाई लामा की मान्यता के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश प्रकाशित किए गए जिससे किसी तरह के संदेह अथवा धोखे के लिए कोई स्थान न रह जाए।

परम पावन ने घोषणा की कि जब वह नब्बे साल के होंगे तो वे वह तिब्बत बौद्ध परम्परा के शीर्ष लामा, तिब्बती जनता और तिब्बती बौद्ध धर्म में रुचि रखने वाले अन्य संबंधित लोगों के साथ परामर्श करेंगे और यह मूल्यांकन करेंगे कि दलाई लामा की संस्था उनके बाद जारी रहे अथवा नहीं। उनके कथन में इस पर भी चिन्तन किया गया कि किन विभिन्न तरीकों से उनके उत्तराधिकारी की पहचान हो सकेगी। यदि ऐसा निर्णय लिया गया कि एक पन्द्रहवें दलाई लामा को मान्यता दी जानी चाहिए तो ऐसा करने का उत्तरदायित्व प्रमुख रूप से दलाई लामा के गदेन फोडंग ट्रस्ट के संबंधित अधिकारियों पर होगा। उन्हें तिब्बती बौद्ध परम्पराओं के विभिन्न प्रमुख और विश्वसनीय वचन-बद्ध धर्म संरक्षक से परामर्श करना चाहिए, जो दलाई लामा की वंशावली से अविभाज्य रूप से जुड़े हुए हैं। उन्हें इन संबंधित दलों से सलाह और दिशा-निर्देश प्राप्त करना चाहिए और उनके निर्देशानुसार खोज और मान्यता की प्रक्रियाओं को पूरा करना चाहिए। परम पावन ने कहा है कि वह इस बारे में स्पष्ट लिखित निर्देश छोड़ जाएँगे। उन्होंने आगे चेतावनी दी कि ऐसे वैध उपायों द्वारा मान्यता प्राप्त पुनर्जन्म के अतिरिक्त, पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के एजेंटों सहित राजनैतिक उद्देश्य के लिए किसी के भी द्वारा निर्वाचित किसी उम्मीदवार को कोई मान्यता या स्वीकृति नहीं दी जानी चाहिए।

अबकी परमपावन के जन्मदिन पर

इस बार विश्वभर में दलाई लामा का 85वां जन्मदिन मनाए जाने के साथ ही अमेरिका ने तिब्बती धर्मगुरु को 1959 से शरण देने के लिए भारत को धन्यवाद दिया है। अमेरिकी विदेश विभाग के दक्षिण और मध्य एशियाई ब्यूरो ने सोमवार को ट्वीट किया, "परम पावन दलाई लामा को 85वें जन्मदिन की शुभकामनाएं। आपने तिब्बती लोगों और उनकी धरोहर के प्रतीक के रूप में दुनिया को शांति और दयालुता से प्रेरणा दी है। 1959 से परम पावन और तिब्बती लोगों को शरण देने के लिए हम भारत को धन्यवाद देते हैं। अमेरिकी संसद की प्रतिनिधि सभा की अध्यक्ष नैंसी पेलोसी ने भी तिब्बती धर्मगुरु को उनके जन्मदिन पर शुभकामनाएं दीं। उन्होंने ट्वीट किया, "दलाई लामा आशा के दूत हैं। दया, धार्मिक सद्भाव, मानवाधिकार, तिब्बती लोगों की संस्कृति और भाषा की रक्षा करने में उनके आध्यात्मिक मार्गदर्शन की अहम भूमिका है।" पेलोसी ने कहा कि यह दुखद है कि परम पावन और तिब्बती लोगों की इच्छाएं पूरी नहीं हो सकी हैं क्योंकि दमनकारी चीन की सरकार ने लोगों को प्रताड़ित करने का अपना अभियान चालू रखा है । उन्होंने कहा कि बीजिंग द्वारा जिनका उत्पीड़न किया जा रहा है, उनके बचाव में अमेरिकी संसद ने हमेशा एक स्वर से आवाज उठाई है और हमेशा उठाते रहेंगे। जनवरी में प्रतिनिधि सभा के डेमोक्रेट सदस्यों ने तिब्बती लोगों के अधिकारों के समर्थन में तिब्बत नीति और समर्थन कानून का पक्ष लिया था। इस कानून के तहत अमेरिका का पक्ष स्पष्ट है कि अगर 14वें दलाई लामा के चुनाव में बीजिंग की ओर से हस्तक्षेप किया जाता है तो यह तिब्बती लोगों की धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन होगा । पेलोसी ने कहा, "सीनेट को इस कानून को अवश्य पारित करना चाहिए और अमेरिका, दलाई लामा और तिब्बती लोगों के बीच दोस्ती के रिश्ते का समर्थन करना चाहिए।

जरूर कुछ बड़ा और नया होगा।

नमन परम पावन

(लेखक भारत संस्कृति न्यास के संस्थापक एवं वरिष्ठ पत्रकार है)

बाबू क्वार्टर रोड निवासी 22 वर्षीय युवक नें लगाईं फांसी

Posted: 07 Jul 2020 09:24 AM PDT


फिजीकल थाना क्षेत्र के बाबू क्वार्टर रोड प्रजापति मोहल्ले में निवासरत एक 22 वर्षीय युवक ने फांसी लगा कर अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली | युवक द्वारा फांसी लगाये जाने के बाद उसके परिजन उसे लेकर जिला चिकित्सालय पहुंचे। जहां युवक की मौत हो गई। इस मामले में पुलिस मामले की जांच में जुट गई है।

प्राप्त जानकारी के अनुसार अर्जुन प्रजापति पुत्र मुन्नालाल प्रजापति उम्र 22 साल ने अज्ञात कारणों के चलते अपने घर में फांसी लगा ली। परिजन तत्काल युवक को लेकर जिला चिकित्सालय पहुंचे। जहां युवक की उपचार के दौरान मौत हो गई। इस मामले में पुलिस ने फिलहाल मर्ग कायम कर मामला विवेचना में ले लिया है।

शिवपुरी पुलिस द्वारा अवैध हथियार लिये घूम रहे 1 आरोपी को देशी कट्टा व जिंदा राउण्ड के साथ दबोचा

Posted: 07 Jul 2020 09:15 AM PDT


थाना प्रभारी कोलारस निरी. सतीश चौहान को मुखबिर द्वारा सूचना मिली कि भड़ोता पुल के पास एक व्यक्ति अवैध हथियार लिये कोई घटना घटित करने की नियत से घूम रहा है, सूचना पर से थाना प्रभारी कोलारस द्वारा वरिष्ठ अधिकारियों के मार्गदर्शन में पुलिस टीम को मुखबिर के बताये स्थान पर दबिश हेतु रवाना किया गया, पुलिस टीम को भड़ौता पुल के पास पहुंचकर देखा तो मुखबिर के बताये हुलिए का एक व्यक्ति दिखा, जो पुलिस को देखकर बगलें झांकने लगा, जैसे ही पुलिस टीम उसकी ओर बड़ी तो वह पुलिस को देखकर भागने लगा, जिसकी घेराबंदी कर दबोचकर तलाशी ली तो उसके कब्जे से एक 315 बोर का देशी कट्टा मय दो जिंदा राउण्ड के रखे मिला, जिसे विधिवत जप्त कर आरोपी से नाम पता पूछा तो उसने अपना नाम चौतरा उर्फ रामनिवास पुत्र कैलाश मेहतर निवासी बड़ा बाजार पिछोर तो होना बताया बाद आरोपी के विरूद्ध आर्म्स एक्ट की धारा 25,27 के तहत अपराध पंजीबद्ध किया गया।

शिवपुरी पुलिस द्वारा जुआ खेलते हुए 4 आरोपियों को दबोचा

Posted: 07 Jul 2020 09:12 AM PDT


थाना प्रभारी पिछोर निरी. अजय भार्गव को मुखबिर सूचना मिली कि ग्राम वाचरोन के प्राथमिक स्कूल के बरामदे में कुछ लोग हारजीत का दाव लगाकर जुआ खेल रहे हैं सूचना पर से थाना प्रभारी पिछोर द्वारा वरिष्ठ अधिकारियों के मार्गदर्शन में मुखबिर के बताये स्थान पर पुलिस टीम को सउनि. पुष्पेंद्र सिंह चौहान के नेतृत्व में रवाना किया, पुलिस टीम द्वारा मुखबिर के बताए स्थान पर दबिश देकर आरोपी 1. प्रकाश पुत्र गुमान सिंह लोधी उम्र 41 साल, 2. गिरवर पुत्र गन्नू जाटव उम्र 25 साल, 3. अरविंद पुत्र राकेश साहू उम्र 20 साल एवं 4. अशोक पुत्र राम सिंह परिहार उम्र 22 साल निवासीगण ग्राम वाचरोन को जुआ खेलते दबोचकर उनके कब्जे से ताश की गड्डी एवं 2200 रू की नगदी विधिवत जप्त कर आरोपियों के विरूद्ध जुआ एक्ट के तहत अपराध पंजीबद्ध किया गया।

डिस्पोस सेफ्ली चित्रकला के माध्यम से लोगों को किया जागरूक

Posted: 07 Jul 2020 09:06 AM PDT



नगर पालिका के सहयोग से प्लास्टिक डोनेशन सेंटर शिवपुरी द्वारा dispose safely चित्रकला के माध्यम से लोगों को कोरोना जैसी महामारी को लेकर जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है। चित्रकला के माध्यम से लोगों को संदेश दिया जा रहा है कि उपयोग किए गए मास्क और गिलब्स को सड़कों एवं सार्वजनिक स्थानों पर न फेंकते हुए डस्टबिन में या ऐसे स्थान पर फेंके, जहां पर लोगों को इसका सामना ना करना पड़े। इस चित्रकला के माध्यम से अन्य स्थानों पर भी रंगीन चित्र बनाकर लोगों को कोरोना के प्रति जागरूक किया जाएगा। इस मौके पर प्लास्टिक डोनेशन सेंटर के अध्यक्ष ने बताया इस कैंपेनिंग की शुरुआत भोपाल की तर्ज पर शिवपुरी शहर में की गई है। इसके साथ ही चित्रकला के माध्यम से सोशल साइट्स से भी लोगों को जागरूक कर रहे है।

संपत्ति एवं जल कर में नहीं लगेगा अधिभार

Posted: 07 Jul 2020 09:00 AM PDT


राज्य शासन द्वारा नगरीय निकायों के कर आदि पर 22 मार्च से 15 जून 2020 तक के देय अधिभार (सरचार्ज) को माफ कर दिया गया है। ऐसे नागरिक, जो 31 जुलाई 2020 तक नगरीय निकायों के कर जमा करेंगे, उनके लॉकडाउन अवधि को अधिभार की गणना में नहीं लिया जायेगा।

गौरतलब है कि नोवल कोरोना वायरस की महामारी के कारण लॉकडाउन लागू होने के कारण आम नागरिक नगरीय निकायों के विभिन्न कर जैसे सम्पत्ति कर, जल करध्जल उपभोक्ता प्रभार आदि का भुगतान नहीं कर पाये हैं। इससे करों आदि पर अधिभार देय हो गये हैं। इसलिये राज्य सरकार द्वारा आम नागरिकों के हित में अधिभार माफ करने का निर्णय लिया गया है।

सभी नगर निगम आयुक्तों और मुख्य नगर पालिका अधिकारियों को वर्ष 2019-20 के संपत्ति कर एवं जल कर पर अधिभार न लेते हुए 31 जुलाई तक अधिक से अधिक कर संग्रह करने के निर्देश दिये गये हैं।

मानसून काल में भी मिलेगा मनरेगा से रोजगार

Posted: 07 Jul 2020 08:55 AM PDT


महात्मा गांधी नरेगा योजना के माध्यम से मानसून काल में श्रमिकों को गांव में ही रोजगार मुहैया हो सकेगा। इसके लिये साढ़े 13 करोड़ अतिरिक्त मानव दिवस रोजगार सृजित किए जाएंगे। मानसून काल में मनरेगा के माध्यम से वृक्षारोपण एवं जल संरक्षण के कार्यों को प्राथमिकता दी जाएगी। इसके लिए पूर्व निर्धारित लेबर बजट में बढ़ोतरी कर सभी जिलों को अतिरिक्त लक्ष्य आवंटित किए गए हैं।

कोरोना संक्रमण काल में वापस लौटे प्रवासी लौटकर आए श्रमिकों तथा पूर्व से कार्यरत श्रमिकों को वर्षा काल में नियमित रोजगार उपलब्ध कराने के लिए मनरेगा की कार्य योजना में संशोधन किया गया है। प्रदेश में वित्तिय वर्ष 2020-21 में पूर्व निर्धारित लेबर बजट 20.50 करोड़ मानव दिवस से बढ़ाकर 34 करोड़ मानव दिवस किया गया है। सभी जिलों के मुख्य कार्यपालन अधिकारियों को ऐसे सामुदायिक कार्यों को प्राथमिकता से कराने के निर्देश दिए गए हैं जिनमें अधिक से अधिक श्रमिकों को रोजगार प्राप्त हो सके। मानसून अवधि में वृक्षारोपण के तहत सामुदायिक भूमि पर वृक्षारोपण, निजी भूमि पर फलोद्यान, मंदिर कुंज, हैबिटेट रेस्टोरेशन जैसे कार्य कराने तथा जल संरक्षण और संवर्धन के कार्यों के तहत कंटूर ट्रेंच, बोल्डर चेकडेम, गोबियन संरचना जैसे कार्यों को प्राथमिकता से कराने के निर्देश दिए गए हैं।

स्व-सहायता समूह के लिए कैटल शेड, गोट सेट, पोल्ट्री सेट जैसी संरचना स्थानीय आवश्यकता के अनुसार बनाई जा सकेंगी। गांव में चारागाह विकास के कार्य भी प्राथमिकता से कराने के निर्देश दिए गये हैं। स्थानीय परिस्थितियों और आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए सामुदायिक संरचना के कार्यों के तहत ग्राम पंचायत भवन, आंगनवाड़ी भवन, शासकीय भवनों के लिए अप्रोच रोड, शालाओं की बाउंड्री वाल का निर्माण, नाडेप टांका, वर्मी कंपोस्ट पिट गौशालाओं का निर्माण जैसे कार्य भी मनरेगा योजना के अंतर्गत अब कराए जा सकेंगे।

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