जनवादी पत्रकार संघ |
- रेत माफिया और पुलिस के बीच हुई मुठभेड़
- कांग्रेस में भगदड़ का दौर है या बगावत का
- संपादकीय *संभालिए ,दुष्काल की परिणति अपराध वृद्धि हो सकती है*
रेत माफिया और पुलिस के बीच हुई मुठभेड़ Posted: 16 Jul 2020 06:45 AM PDT जगनेर में अवैध चम्बल रेत माफिया के गुर्गो की पुलिस से मुठभेड जगनेर आगरा में अवैध चम्बल रेत माफिया अब बैखोफ हो चुके हो अवैध चम्बल के काम के लिये पुलिस पर फायरिंग करने में भी पीछे नही हट रहे हें बुधवार रात्रि करीब 1.30 बजे जगनेर पुलिस थाना क्षेत्र के गांव सरैंधी के पास चैकिंग कर रही थी तभी धोलपुर (राजस्थान) की तरफ से करीब कुछ चम्बल रेत से भरे टैक्टर ट्राली भरतपुर की तरफ जा रहे थे जिनके आगे कुछ बाईक सवार चल रहे थे पुलिस ने उन्हे रोकने की कोशिस की तो पुलिस दल पर दो राउंड फायरिंग करदी जिसके बाद पुलिस ने भी आत्मरक्षा में दो राउंड हवाई फायरिंग की की जिसके बाद बाइक पर सवार 3 लोग गिर गये ओर ओर टैक्टर चालक भी टैक्टर छोड कर भागने लगा जिसके बाद पुलिस ने 5 लोगो को गिरफ्तार कर लिया जिसके कब्जे से जगनेर पुलिस टीम को अवैध खनन में लगे 02 ट्रैक्टर ट्राली मय चम्बल रेत व एक मोटरसाइकिल व दो तमंचा 315 बोर कारतूस 05 व अभियुक्तगणो को गिरफ्तार किया गया । प्रभारी निरिक्षक कुशलपाल सिंह ने बताया सरैंधी चौराहा के धौलपुर भरतपुर हाइवे पर 05 अभियुक्तगणो को मुठभेड़ के बाद 02 तमंचा 315 बोर, 2 खोखा कारतूस, व 5 जिन्दा कारतूस 315 वोर, 2 टैक्टर ट्राली जिसमे अवैध खनन की चम्बल रेत से भरी हुई व एक मोटरसाइकिल के गिरफ्तार किया गया। उक्त अभियुक्तगणों के विरूद्ध थाना जगनेर आगरा में मु.अ.सं. 81/20 धारा 307 ipc (पु0मु0) व 3/57/7 उ0 प्र0 उप खनिज परिहार नियमावली 1963 व मु.अ.स 82/2020 धारा 3/25 आर्म्स एक्ट बनाम आजाद व मु.अ.अ.स. 83/20 धारा 3/25 आर्म्स एक्ट बनाम मुकेश मुकदमा पंजीकृत किया गया। अभियुक्तगणों की जनपद आगरा व अन्य जनपदो से आपराधिक इतिहास की जानकारी की जा रही है। |
कांग्रेस में भगदड़ का दौर है या बगावत का Posted: 15 Jul 2020 09:17 PM PDT ******************************************** देश की और दुनिया की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टियों में से एक है कांग्रेस .इस कांग्रेस में इस समय एक अजीब किस्म की हलचल है. कांग्रेस के युवा तुर्क तेजी से कांग्रेस छोड़कर इधर-उधर जा रहे हैं .लेकिन ये समझ में नहीं आ रहा है कि ये भगदड़ है या बगावत ? भगदड़ और बगावत में बुनियादी भेद है .पार्टी नेतृत्व को बदलने या चुनौती देने के बजाय युवा नेता बहाने बनाकर कांग्रेस से पल्ला झाड़ रहे हैं .ताजा उदाहरण राजस्थान के युवा तुर्क सचिन पायलट का है . कांग्रेस का नेतृत्व यकींनन परिवारवादी है लेकिन उसे चुनौती देकर हटाने का संकल्प किसी युवा तुर्क में दिखाई नहीं देता.मुझे तो सचिन जैसे संभावनाशील नौजवानों को युवा तुर्क कहने में भी संकोच होता है ,क्योंकि युवा तुर्क हथियार डालते नहीं बल्कि हथियार छीनते हैं और उनका प्रयोग करते हैं . कांग्रेस के परिवारवादी नेतृत्व से घबड़ाकर बागी तेवर अपनाने वाले सचिन पायलट न पहले व्यक्ति हैं और न आखरी होंगे .ये सिलसिला चलता ही रहता है लेकिन अपवादों को छोड़कर कोई ऐसा नेता अब तक सामने नहीं आया है जिसने कांग्रेस की विचारधारा का परित्याग किये बिना कांग्रेस को बदलने का काम किया हो . देश में भाजपा के अलावा केवल और केवल कांग्रेस ऐसा राजनीतिक दल है जो सत्ता में न होते हुए भी उत्तर से दक्षिण तक और पूर्व से लेकर पश्चिम तक जाना-पहचाना जाता है,या जो एक विचारधारा के रूप में आज भी मौजूद है.कांग्रेस के नेतृत्व से आजिज आकर बाहर जाने वालों में से ममता बनर्जी जैसी एक-दो नेता हैं जिन्होंने अपनी अलग पहचान बनाई लेकिन वे भी कांग्रेस के परिवारवादी नेतृत्व का तख्ता पलट नहीं कर पाई,उन्होंने भी अपना प्रभाव क्षेत्र एक राज्य तक सीमित कर लिया .जिन नेताओं ने कांग्रेस छोड़ी वे या तो क्षेत्रीय नेता बन कर रह गए या फिर परिदृश्य से गायब हो गए ,ज्योतिरादित्य सिंधिया या रीता बहुगुणा जैसों ने भाजपा में शरण लेकर अपना भविष्य सुरक्षित करने की कोशिश की ,लेकिन विचारधारा के मामले में वे कहीं के नहीं रहे . आपको याद होगा कि कांग्रेस के परिवारवादी नेतृत्व को आठवें दशक में स्वर्गीय नारायणदत्त तिवारी और अर्जुन सिंह जैसे नेताओं ने चुनौती दी थी.अपना अलग राजनीतिक दल भी बनाया लेकिन जन स्वीकृति न मिलने के बाद वे फिर कांग्रेस में वापस लौट आये .गांधी परिवार के समानांतर खड़े रहने का बूता अब तक किसी में नजर नहीं आया है और शायद यही वजह है कि कांग्रेस में गांधी परिवार अप्रासंगिक नहीं हो पा रहा है .ज्योतिरादित्य सिंधिया की पीढ़ी से कुछ उम्मीद थी लेकिन इस पीढ़ी ने भी पीठ ही दिखाई है और परिवर्तन की संभावनाओं को समाप्त कर दिया . कांग्रेस हो या कोई अन्य राजनीतिक दल उसमें बगावत आम बात है किन्तु इस बगावत का कोई दूरगामी परिणाम सामने नहीं आ पाता. आज के सत्तारूढ़ दल भाजपा में भी बगावतें हुईं लेकिन नतीजा वो ही 'ढाक के तीन पात' वाला निकला.जो पार्टी से बाहर गया वो झक मारकर वापस आ गया .फिर चाहे बागी कल्याण सिंह रहे हं या उमा भारती या केशुभाई पटेल कहने को भाजपा देखने में दूसरे दलों से एकदम अलग है लेकिन यहां भी नेतृत्व एक परिवार का ही चलता है .परिवारवाद पर आधारित राजनीतिक दलों से राजनीति को मुक्त करना आसान काम नहीं है .जैसे भाजपा संघ परिवार से बाहर नहीं निकल पाती वैसे ही कांग्रेस गांधी परिवार से.सपा यादव परिवार से और बसपा बहन जी से .बड़े राजनीतिक दल ही नहीं अपितु रामविलास पासवान जैसों की मुहल्ले छाप पार्टियों में भी परिवारवाद मुख्य तत्व है . अब सवाल ये है कि क्या निकट भविष्य में कांग्रेस गांधी परिवार के नेतृत्व को ख़ारिज कर कोई नया नेतृत्व तलाश पाएगी ? कांग्रेस की मौजूदा सुप्रीमो श्रीमती सोनिया गाँधी ने कांग्रेस को जो ऊंचाई दे सकतीं थीं दे चुकीं ,उनके उत्तराधिकारी राहुल गांधी पार्टी की जितनी दुर्दशा कर सकते थे,कर चुके ,लेकिन आगे क्या हो सकता है .राहुल की बहन प्रियंका बाड्रा यूपी जीतने के लिए चन्द वामपंथियों का सहारा लिए लखनऊ में डेरा डाले हुए हैं .कांग्रेस का आधार रहे जनाधार वाले पुराने सामंत तेजी से कांग्रेस छोड़ भाजपा में जा रहे हैं .शुरुवात मध्यप्रदेश से हो चुकी है.अभी सिंधिया और लोधी गए हैं कल को और भी जायेंगे ,बावजूद इसके कांग्रेस का वजूद क्यों बना रहेगा या क्यों बना रहना चाहिए ? दुर्भाग्य ये है कि कांग्रेस के पास कोई संघ परिवार नहीं है जो नए नेतृत्व को भविष्य की जरूरतों के हिसाब से तैयार कर सके .कांग्रेस को भी एक मोदी की जरूरत है लेकिन गांधी परिवार के पास अपना मोदी तैयार करने की न दृष्टि है और न कोई तैयारी .कांग्रेस आज भी अपना काम उम्रदराज नेताओं के सहारे चलना चाहती है .गुजरात में हार्दिक पटेल को अध्यक्ष बनाया जाना एक अपवाद है .कांग्रेस का असल जनाधार हिंदी पट्टी में था लेकिन इस हिंदी पट्टी में अब कांग्रेस के पास ऐसा कोई नेता नहीं है जो पार्टी की नाव को पार लगा सके .दक्षिण में भी कांग्रेस का सीराजा बिखर चुका है .वहां भी जगनमोहन जैसे लड़के कांग्रेस का दामन छोड़ चुके हैं .ऐसे में क्या सम्भव है कि कांग्रेस का मौजूदा नेतृत्व 2024 में भाजपा के लिए चुनौती बन सके . पिछले एक दशक में देश ने देखा है कि कांग्रेस लगातार क्षीण हुई है लेकिन नेस्तनाबूद नहीं हुई है .जब-जब लगता है कि कांग्रेस जमीदोज हो रही है तब-तब उसमें अंकुर फुट पड़ते हैं .कांग्रेस मध्यप्रदेश,छत्तीसगढ़,राजस्थान और ,पंजाब में मर-मारकर खड़ी हो जाती है .भाजपा की देश को कांग्रेस मुक्त करने की कवायद को किसी न किसी वजह से धक्का पहुंचता है .भाजपा का अपना सपना है और कांग्रेस का अपना सपना .दोनों को जनता के सपनों की परवाह नहीं है जबकि जनता के सपने इन्हीं दो दलों के सपनों में कहीं न कहीं निहित हैं .मेरा मानना है कि कांग्रेस में युवा तुर्कों को पार्टी में रहकर ही मौजूदा नेतृत्व के खिलाफ सीना तानकर खड़े होना चाहिए .उन्हें दुत्कारा जा कसता है,नकारा जा सकता है लेकिन जनता को इससे उम्मीद बंधती है और मुमकिन है कि इसी के चलते कांग्रेस किसी दिन परिवारवादी नेतृत्व से मुक्त होकर एक नए रूप में देश के सामने आ जाये . आप देख रहे होंगे कि कांग्रेस में भगदड़ के कारण भाजपा आधी कांग्रेसमय हो गयी है .कांग्रेस के बागियों को भाजपा में बड़ी आसानी से शरण मिल रही है .भाजपा के युवा तुर्कों को भी इस घालमेल के खिलाफ खड़ा होना चाहिए अन्यथा जैसे आज कांग्रेस की दुर्दशा है ,कल को भाजपा की भी हो सकती है .तब भाजपा भाजपा नहीं काजपा बन सकती है ,जिसका चाल,चरित्र और चेहरा बहुत कुछ कांग्रेस जैसा नजर आ सकता है .भाजपा में एक दिन आप शुद्धता खोजते रह जायेंगे . @ राकेश अचल |
संपादकीय *संभालिए ,दुष्काल की परिणति अपराध वृद्धि हो सकती है* Posted: 15 Jul 2020 06:32 PM PDT *०प्रतिदिन* -राकेश दुबे १६ ०७ २०२० *संभलिये, दुष्काल की परिणति अपराध वृद्धि हो सकती है* इस दुष्काल में कई प्रकार के सर्वे आ रहे हैं | सबको विश्वसनीय नहीं माना जा सकता और न ही सबको अविश्वसनीय |लेकिन जिन सर्वेक्षणों के साथ कोई सरकारी एजेंसी या कोई अन्य साखपूर्ण संस्था जुडी हो, उसके अनुमान को नकारा नहीं जा सकता | देश के जाने-मने सामाजिक शोध संस्थान ने अपनी अंतरिम रिपोर्ट में कहा है कि "कोरोना संक्रमण से उपजे संकट ने जिस तरह देश की आर्थिकी व सामाजिक ताने-बाने को झंझोड़ा है, उसके नकारात्मक प्रभावों का सामने आना लाजिमी है। आज समाज एक अप्रत्याशित भय व असुरक्षा की मनोदशा में पहुंचा है। एक अलग तरह की हताशा व कुंठा का भाव लोगों में घर कर गया है।इसके परिणाम स्वरूप अपराध में वृद्धि हो सकती है | " वैसे यह साफ़ नजर आ रहा है कि तालाबंदी के पहले दौर ही ने करोड़ों लोगों के रोजगार छीने, ऐसे लोग अभी तक सामान्य स्थिति हासिल नहीं कर पाये। ऐसे में समाज में अपराधों के बढ़ने के लिए उर्वरा भूमि तैयार हुई। अपराधियों को समाज में जो भी सॉफ्ट टारगेट लगता है, उसे निशाना बनाते हैं। ऐसे में महिलाओं के प्रति होने वाले अपराधों की संख्या में वृद्धि चिंता की बात है। यह वास्तविक भी है और वर्चुअल भी। महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों पर अंकुश लगाने के लिए समय रहते कारगर पहल की जरूरत है। चिंता की बात तो यह भी है कि जहां तालाबंदी के दौरान वैवाहिक रिश्तों में हिंसक टकराव की खबरें आती रही हैं, वहीं परिवार के सदस्यों से जुड़े यौन अपराधों का बढ़ना भी सामने आया है। यह एक कटु सत्य है कि कोरोना संकट में जिन उद्योगों पर सबसे ज्यादा मार पड़ी है, उनमें टूरिज्म उद्योग सबसे ऊपर है। टूरिस्ट हब के रूप में पहचान रखने वाले स्थानों में पिछले कुछ समय से महिलाओं के साथ यौन हिंसा, छेड़छाड़ और अपहरण की घटनाओं में वृद्धि चौंकाने वाली है| इससे निपटने में चूक के चलते पुलिस-प्रशासन की क्षमताओं पर सवाल खड़े करती हैं। यूं तो महिलाओं के विरुद्ध होने वाले अपराधों को रोकने के लिए पर्याप्त व्यवस्थाएं होने का दावा किया जाता रहा है, जिसमें सक्रिय हेल्पलाइन नंबर, ऑनलाइन शिकायत पोर्टल और सामुदायिक पुलिस की योजनाएं भी शामिल हैं, लेकिन कोरोना दुष्काल में ये उतनी प्रभावी नहीं रही जितनी कही जाती थी । इस दौरान कुछ कार्यालय बंद रहे और कुछ कम लोगों के साथ काम करते रहे हैं, जिससे शिकायतें भी कम दर्ज हुई और उनका निपटारा भी कम ही हुआ है। यह देखने में आया है कि महिलाओं द्वारा शिकायत दर्ज न करा पाने के और भी कई कारण हैं। दूर-दराज के इलाकों में लोकलाज के भय से अनेक बार शिकायतकर्ता सामने नहीं आती। दूसरी ओर ऑनलाइन शिकायत प्रणाली तक अधिकांश प्रभावितों की पहुंच नहीं है। प्रशासन की प्राथमिकता कोविड संकट से निपटने के होने के कारण भी अन्य मामलों की अनदेखी हो भी है। अभी सामाजिक गतिशीलता के अभाव में कई तरह के अपराध बढ़ने की संभावना ज्यादा है। इन अपराधों के अलावा समाज में साइबर अपराधों और सोशल मीडिया के दुरुपयोग की खबरें भी हैं। फर्जी फेसबुक अकाउंट बनाकर भयादोहन करने व युवतियों की अश्लील तस्वीरें अपलोड करने के मामले भी प्रकाश में आये हैं। सूचना प्रौद्योगिकी का जिस स्तर पर दुरुपयोग हो रहा है, उससे मुकाबले के लिए हमारी पुलिस चुस्त-दुरुस्त नहीं बन पायी है। साइबर अपराधों से निपटने के लिए क्या तौर-तरीके अपनाये जायें, उसको लेकर पुलिस भी दुविधा में रहती है। वहीं पुलिस की दलील होती है कि अपराधों की संख्या में इसलिये वृद्धि नजर आती है क्योंकि अदालतों ने अपराधों की परिभाषा का दायरा बढ़ाया है। इसके बावजूद जमीनी हकीकत को देखते हुए सजगता और सतर्कता की जरूरत महसूस तो की ही जा रही है। महिलाओं को किसी भी तरह के उत्पीड़न के खिलाफ आगे आकर शिकायत करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। इसके लिए महिला थाने के अलावा सामान्य पुलिस थाने में महिला पुलिसकर्मियों की संख्या को बढ़ाना चाहिए। निस्संदेह कोरोना संकटकाल एक चुनौतीभरा समय है। देश में स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय और कोचिंग संस्थान बंद हैं, व्यापारिक व औद्योगिक गतिविधियां अभी गति नहीं पकड़ पायी हैं, इनसे जुड़े करोड़ों लोग रोजगार से वंचित हैं। आर्थिक संकट के चलते कुछ के अपराध की ओर उन्मुख होने की आशंका उत्पन्न हो सकती है। उसके लिए उपाय करने और सजग-सतर्क रहने की जरूरत है। |
You are subscribed to email updates from जनवादी पत्रकार संघ. To stop receiving these emails, you may unsubscribe now. | Email delivery powered by Google |
Google, 1600 Amphitheatre Parkway, Mountain View, CA 94043, United States |