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Tuesday, August 25, 2020

दिव्य रश्मि न्यूज़ चैनल

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पूरी दुनिया मे सबसे ज्यादा आपके पुराणिक देव गणपति का ध्वजा फहरता है ।

Posted: 25 Aug 2020 12:18 AM PDT

पूरी दुनिया मे सबसे ज्यादा आपके पुराणिक देव गणपति का ध्वजा फहरता है ।

क्षीरोदं पौर्णमासीशशधर इव यः प्रस्फुरन्निस्तरङ्गं 
चिद्व्योम स्फारनादं रुचिविसरलसद्बिन्दुवक्रोर्मिमालम्।
आद्यस्पन्दस्वरूपः प्रथयति सकृदोङ्कारशुण्डः क्रियादृग्
दन्त्यास्योऽयं हठाद्यः शमयतु दुरितं शक्तिजन्मा गणेशः॥


संकलन अश्विनीकुमार तिवारी 
सर्वप्रथम चिद्शक्ति से स्फुरित होता हुआ क्षीर समुद्र पौर्णमासी चन्द्र के समान जो निस्तरंग स्फुरित हो रहा है , जहां कि इस चिद्व्योम में नादतत्व का फैलाव हो रहा है , जो तेजोमयी बिन्दुमाला धारण किये हुए हैं , आदि शिवशक्ति का स्पन्द जिनका स्वरुप है , ॐकार रूपी शुण्ड से जिनकी क्रियाशक्ति प्रकट हो रही है , दन्त जिनके मुख से निकला हुआ है , शक्ति से उत्पन्न  होने वाले जो गणेश है वे हमारे क्लेशों को दूर करें...
✍🏻अत्रि विक्रमार्क अन्तर्वेदी

पूरी दुनिया मे सबसे ज्यादा आपके पुराणिक देव गणपति का ध्वजा फहरता है । जापान में भगवान गणेश को पूजा जाता है जिन्हें वहां Kangi-ten (歓喜天) कहा जाता है जापान में बुद्धिज़्म के Shingon Sect (सम्प्रदाय) में भगवान गणेश मुख्यरूप से पूजे जाते है । । इन गणपति को वहां bodhisattva Avalokiteshvara के नाम से भी जाना जाता है । जिनके अन्य नाम है - 
Shō-ten (聖天) , Daishō-ten, Daishō Kangi-ten (大聖歓喜天),
Tenson (天尊) , Kangi Jizai-ten (歓喜自在天), Shōden-sama , Vinayaka-ten ,
Binayaka-ten (毘那夜迦天), Ganapatei (誐那缽底) and Zōbi-ten (象鼻天).

बर्मा में पुराणिक देव गणेशा को Maha Peinne (မဟာပိန္နဲ) के नाम से जाना जाता है । थाईलैंड में भगवान गणेश को Phra Phikhanet or Phra Phikhanesuan के नाम से जाना जाता है ।  श्री लंका में गणेश को Aiyanayaka Deviyo  के नाम से जाना जाता है । सिंघल द्वीप में गणेश को Gana deviyo के नाम से जाना जाता है । 
इसके अतिरिक्त चीन , कम्बोडिया , वियतनाम सहित सभी बौद्ध देशो में गणेश पूजे जाते है जापान में लगभग सभी शहरों में गणेश के मंदिर है । बुद्धिस्ट और पुराण पुस्तको में गणेश को विनायक के नाम से जाना जाता है । सबसे आश्चर्यजनक बात तो यह है मित्रो कि दुनिया के सबसे ज्यादा जनसंख्या वाले देश इंडोनेशिया में भी पुराणिक देव गणपति का डंका बोलता है , यहां की 20000 की करेंसी पर गणेश की फ़ोटो है । 
✍🏻 हिमांशु शुक्ला

नेपाली एवं तिब्बती वज्रयानी बौद्ध अपने आराध्य तथागत की मूर्ति के बगल में गणेश को स्थापित करते हैं।
 
दरअसल गणेश सुख-समृद्धि, रिद्धि-सिद्धि, वैभव, आनन्द, ज्ञान एवं शुभता के अधिष्ठाता देव हैं। संसार में अनुकूल के साथ प्रतिकूल, शुभ के साथ अशुभ, ज्ञान के साथ अज्ञान, सुख के साथ दुःख घटित होता ही है। प्रतिकूल, अशुभ, अज्ञान एवं दुःख से परेशान मनुष्य के लिये गणेश ही तारणहार हैं। वे सात्विक देवता हैं और विघ्नहर्ता हैं। वे न केवल भारतीय संस्कृति एवं जीवनशैली के कण-कण में व्याप्त हैं बल्कि विदेशों में भी घर-कारों-कार्यालयों एवं उत्पाद केन्द्रों में विद्यमान हैं। हर तरफ गणेश ही गणेश छाए हुए हैं। मनुष्य के दैनिक कार्यों में सफलता, सुख-समृद्धि की कामना, बुद्धि एवं ज्ञान के विकास एवं किसी भी मंगल कार्य को निर्विघ्न सम्पन्न करने हेतु गणेशजी को ही सर्वप्रथम पूजा जाता है, याद किया जाता है। प्रथम देव होने के साथ-साथ उनका व्यक्तित्व बहुआयामी है, लोकनायक का चरित्र है।

गणपति (गणेशजी) जन्म ,सर का कटना और गजानन (हाथी के सर का जुड़ना) --

हम सभी उस कथा को जानते हैं, कि कैसे गणेशजी हाथी के सिर वाले भगवान बने । जब पार्वती शिव के साथ उत्सव क्रीड़ा कर रहीं थीं, तब उन पर गीली मिट्टी लग गयी । जब उन्हें इस बात की अनुभूति हुई, तब उन्होंने अपने शरीर से उस गीली मिट्टी को निकल दिया और उससे एक बालक बना दिया| फिर उन्होंने उस बालक को कहा कि जब तक वे स्नान कर रहीं हैं, वह वहीं पहरा दे ।
जब शिवजी वापिस लौटे, तो उस बालक ने उन्हें पहचाना नहीं, और उनका रास्ता रोका । तब भगवान शिव ने उस बालक का सिर धड़ से अलग कर दिया और अंदर चले गए ।
#यह देखकर पार्वती बहुत हैरान रह गयीं । उन्होंने शिवजी को समझाया कि वह बालक तो उनका पुत्र था, और उन्होंने भगवान शिव से विनती करी, कि वे किसी भी कीमत पर उसके प्राण बचाएँ ।
तब भगवान शिव ने अपने सहायकों को आज्ञा दी कि वे जाएँ और कहीं से भी कोई ऐसा मस्तक ले कर आये जो उत्तर दिशा की ओर मुहँ करके सो रहा हो । तब शिवजी के सहायक एक हाथी का सिर लेकर आये, जिसे शिवजी ने उस बालक के धड़ से जोड़ दिया और इस तरह भगवान गणेश का जन्म हुआ।

1- #भगवान_गणेश की कहानी में विचार के तथ्य।
क्यों पार्वती के शरीर पर मैल था?

पार्वती प्रसन्न ऊर्जा का प्रतीक हैं । उनके मैले होने का अर्थ है कि कोई भी उत्सव राजसिक हो सकता है, उसमें आसक्ति हो सकती है और आपको आपके केन्द्र से हिला सकता है । मैल अज्ञान का प्रतीक है, और भगवान शिव सर्वोच्च सरलता, शान्ति और ज्ञान के प्रतीक हैं ।

2- #क्याभगवानशिव, जो शान्ति के प्रतिक थे, इतने गुस्से वाले थे कि उन्होंने अपने ही पुत्र का सिर धड़ से अलग कर दिया? और भगवान गणेश के धड़ पर हाथी का सिर क्यों? 

तो जब गणेशजी ने भगवान शिव का मार्ग रोका, इसका अर्थ हुआ कि अज्ञान, जो कि मस्तिष्क का गुण है, वह ज्ञान को नहीं पहचानता, तब ज्ञान को अज्ञान से जीतना ही चाहिए । इसी बात को दर्शाने के लिए शिव ने गणेशजी के सिर को काट दिया था ।

3 - #हाथीकासिर_क्यों ?
हाथी 'ज्ञान शक्ति' और 'कर्म शक्ति', दोनों का ही प्रतीक है। एक हाथी के मुख्य गुण होते हैं – बुद्धि और सहजता। एक हाथी का विशालकाय सिर बुद्धि और ज्ञान का सूचक है। हाथी कभी भी अवरोधों से बचकर नहीं निकलते, न ही वे उनसे रुकते हैं| वे केवल उन्हें अपने मार्ग से हटा देते हैं और आगे बढ़ते हैं – यह सहजता का प्रतीक है । इसलिए, जब हम भगवान गणेश की पूजा करते हैं, तो हमारे भीतर ये सभी गुण जागृत हो जाते हैं, और हम ये गुण ले लेते हैं|

वैज्ञानिक खंडन जोड़ने पे पोस्ट लंबी हो जाएगी इसलिए इसका वैज्ञानिक खंडन अलग से फिर कभी...
✍🏻अजेष्ठ त्रिपाठी

विकिपीडिया में गणेश जी पर आलेख में मैंने पढ़ा कि गणेश जी की  "खोज"  कालिदास के बाद हुई क्योंकि  "कुमारसम्भव"  में गणेश जी का उल्लेख नहीं है ।
वहाँ मैंने जोड़ दिया कि  "कुमारसम्भव"  शब्द का संस्कृत में अर्थ है  "(गणेश जी के ज्येष्ठ भ्राता) कुमार का जन्म" । ज्येष्ठ भ्राता का जन्म होते ही कथा समाप्त है । छोटा भाई (गणेश जी) का जन्म ही नहीं हुआ था तो  "कुमारसम्भव"  में उनका उल्लेख कैसे होता ? मेरे वाक्य को हटा दिया गया और मुझे कहा गया कि विकिपीडिया में मैं अपने विचार नहीं जोड़ सकता, किसी  "प्रोफेसर"   समकक्ष व्यक्ति के विचार ही उद्धृत कर सकता हूँ । कालिदास के बाद गणेश जी की  "खोज"    सम्बन्धी बकवास उन लोगों ने किसी तथाकथित हिन्दू लेखक की पुस्तक से उद्धृत की थी । तब मैंने यजुर्वेद की मैत्रायणी शाखा से एक पूरा अध्याय ही उद्धृत कर दिया जिसमे महादेव जी के पूरे परिवार का सबके नामसहित वर्णन और उनकी पूजा के मन्त्र थे । यह तथ्य दो सौ सालों के झूठे प्रचार का खण्डन करता था जिसके अनुसार शङ्कर जी और गणेश जी अनार्यों के देवता थे क्योंकि वेदों में उनकी चर्चा नहीं है । झट से मेरे वाक्य को हटा दिया गया और मुझे उत्तर मिला कि मैत्रायणी संहिता का उपरोक्त अध्याय "प्रक्षिप्त"  है (अर्थात बाद में जोड़ा गया है)। मैंने जवाब दिया कि किसी भी वेद में कोई प्रक्षिप्त मन्त्र होने की बात संसार के किसी भी  "विद्वान"  ने कभी नहीं कही, अतः यह तुम्हारा व्यक्तिगत विचार है । यदि मैं अपने विचार विकिपीडिया में नहीं जोड़ सकता तो तुम भी नहीं जोड़ सकते । मैत्रायणी संहिता में प्रक्षिप्त अंश होने का उद्धरण किसी प्रोफेसर की किताब से लेकर आओ, वरना मैं विकिपीडिया की पञ्चायत बिठाऊँगा (arbitration committee) । तब जाकर उस आलेख में मेरे वाक्य जुड़ पाये । इस पूरे फालतू की बहस में मेरा एक महीना नष्ट हुआ (मैंने अनेक प्रमाण दिए जिन्हें उन लोगों ने प्रमाण मानने से इनकार कर दिया)। ऐसा मेरे सभी लेखों के साथ हुआ ।  Dieter Bachmann के नेतृत्व में नस्लवादी भारत-विरोधियों के एक गिरोह ने विकिपीडिया के भारत सम्बन्धी सभी लेखों को निगरानी में रखा है और विकिपीडिया के मालिक से उन लोगों का तालमेल है । हार्वर्ड विश्वविद्यालय के हिन्दू-विरोधी  तथाकथित इंडोलॉजिस्ट प्रोफेसर माइकल वित्जेल के ये लोग चेले हैं, विकिपीडिया में इस गिरोह के अधिकाँश लोगों ने छद्म नाम रखे हैं । Dieter Bachmann जैसे अनेक लोग लगभग पूरा वक्त विकिपीडिया के भारत सम्बन्धी लेखों की निगरानी में ही लगाते हैं, जो सिद्ध करता है कि इन लोगों को पाश्चात्य विश्वविद्यालयों के माइकल वित्जेल जैसे प्रोफेसरों की कृपा से खर्चा-पानी मिलता है । एक-एक वाक्य ठीक कराने में मुझे कई सप्ताह नष्ट करने पड़ते थे । ये लोग अप्रामाणिक बकवास भी जोड़े तो मैं काट नहीं सकता था, क्योंकि काटते ही वह बकवास तत्क्षण पुनः जोड़ दी जाती थी और तीन बार से अधिक काटने का नियम विकिपीडिया में नहीं है । पश्चिम के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों ने घोषणा सालों पहले की है कि किसी भी शोध कार्य में विकिपीडिया को उद्धृत नहीं किया जा सकता ।  विकिपीडिया में बहुत से लेख अच्छे भी हैं, किन्तु भारत-सम्बन्धी सारे लेखों पर हिन्दू-विरोधियों के गिरोह का कब्जा है । विकिपीडिया के कई हिन्दू सदस्य मुझे निजी ईमेल द्वारा प्रोत्साहित करते थे , किन्तु विकिपीडिया के मञ्च पर वाद-विवाद में कोई हिन्दू भी मेरा पक्ष नहीं लेता था (योग्यता ही नहीं थी, जबकि मेरे विरोधियों में हार्वर्ड, ऑक्सफ़ोर्ड, जैसे विश्वविद्यालयों के  प्रोफेसरों और शोधकर्ताओं का गिरोह छद्म नाम से सक्रीय था)।
✍🏻आचार्य विनय झा

बुद्धि के देवता गुणेश गणेश
बुद्धि भी दो प्रकार की हो जाती है १.सद्बुद्धि २. कुबुद्धि
यही दोनों गणेश जी की पत्नियाँ हैं । जिन्हें ऋद्धि सिद्धि भी कहा जाता है। सद्बुद्धि से ऋद्धि प्राप्त होती है,  कलियुग में कुबुद्धि का प्रयोग करने से सिद्धि शीघ्रता से प्राप्त हो जाती है।
गणेश जी का यज्ञोपवीत व्याल का है,  व्याल से आशय है किसी दुष्ट से,  साँप, व्याघ्र या कोई दुष्ट हाथी। गणेश जी का यज्ञ दुष्टों के दलन से आरम्भ होता है। हाथों में फरसा,  लाठी, डण्डा, ग्रेनेड सब रखते हैं। मूषक अर्थात् चोरों पर सवारी गाँठते हैं। और समस्त आपदाओं का विनाश करते हैं।
गणनाओं का लेखा करते हैं, सफेद खादी भी धारण करते हैं ।
गणों के पति तुम्हारे लिये नमस्कार है। हे निधियों के स्वामी तुम सदा उत्तर रहो।

गणेशं तु चतुर्बाहुं व्यालयज्ञोपवीतिनम् ।।
गजेन्द्रवदनं देवं श्वेतवस्त्रं चतुर्भुजम् ।।
परशुं लगुडं वामे दक्षिणे दण्डमुत्पलम् ।।
मूषकस्थं महाकायं शङ्खकुन्देन्दुसमप्रभम् ।।
युक्तं बुद्धिकुबुद्धिभ्यामेकदन्तं भयापहम् ।।
नानाभरणसम्पन्नं सर्वापत्तिविनाशनम् ।।
गणानां त्विति मन्त्रेण विन्यसेदुत्तरे ध्रुवम् ।।
आखु ཿ   आषु  आहु आहू आहूये आह्वये
मूर्धन्य षकार माध्यन्दिन शाखा में खकारवत् उच्चरित होता है
'स' ध्वनि 'ह' में उच्चरित होने की प्रवृत्ति पूर्व से लेकर पश्चिम तक विद्यमान है।
आखुस्ते पशुरित्यादौ हुकारसदृशो भवेत् ॥

आखुस्ते पशुरिति। न ग्राम्यान्पशून्हिनस्ति। नाऽऽरण्यान्। - तै.ब्रा. १.६.१०.३. * 

आषु को रुद्र के निमित्त पशु माना गया है और यही गणेशवाहन भी बताया गया है।

"आषुतोष" अर्थात् आषु/आखु/आहु से प्रसन्न होने वाले भगवान् आशुतोष ।

भारतवर्षीय पश्चिमी प्रान्त में आह्वये.. आहूये...आहू जिस पशु को कहा जाता है वह पहाड़ी मृग है.. जिसे Gazelle के नाम से भी जानते हैं।
आखु यही है और यह चूहा नहीं है।

गणेश या विनायक के पूजन  की परम्परा बहुत पुरानी है । प्रथम पूजन इन्हीं का होता है । जैनों ने भी गणपति का पूजन किया ।
गोल्डन रेशिओ ( एक विशिष्ट अनुपात ) की खोज से  इनका सम्बन्ध   है ?  हमारे आकर्षण हेतु कारण होना ही चाहिये !
ॐ ||ॐ गणानां त्वा गणपतिं हवामहे||

गणपति या गणेश जी का स्वरूप

अङ्घ्रि या अंह्रि 'अकार' है,
उदर 'उकार' है
मूर्द्धा 'मकार' है ।

(शब्दार्थ
अंह्रि= पैर / चरण
उदर= पेट
मूर्द्धा= शिर / मस्तक )

क्षीरोदं पौर्णमासीशशधर इव यः प्रस्फुरन्निस्तरङ्गं 
चिद्व्योम स्फारनादं रुचिविसरलसद्बिन्दुवक्रोर्मिमालम्।
आद्यस्पन्दस्वरूपः प्रथयति सकृदोङ्कारशुण्डः क्रियादृग्
दन्त्यास्योऽयं हठाद्यः शमयतु दुरितं शक्तिजन्मा गणेशः॥

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..... सर्वप्रथम चिद्शक्ति से स्फुरित होता हुआ क्षीर समुद्र पौर्णमासी चन्द्र के समान जो निस्तरंग स्फुरित हो रहा है , जहां कि इस चिद्व्योम में नादतत्व का फैलाव हो रहा है , जो तेजोमयी बिन्दुमाला धारण किये हुए हैं , आदि शिवशक्ति का स्पन्द जिनका स्वरुप है , ॐकार रूपी शुण्ड से जिनकी क्रियाशक्ति प्रकट हो रही है , दन्त जिनके मुख से निकला हुआ है , शक्ति से उत्पन्न  होने वाले जो गणेश है वे हमारे क्लेशों को दूर करें...
-----चिद्गगनचन्द्रिका)
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उमा (पार्वती)  विवाह के बाद  बहुत काल बीत जाने पर  सुतकामा (मन में सन्तान की इच्छा ) होने के कारण एक दिन मन्दर गिरि पर  अपनी सखियों सहित  अपने "टैडी" के साथ खेलने लगीं .
फिर एक दिन उन्होंने अपने टैडी को मोडिफाइ करते हुये उसका मुखड़ा गज के मुख के समान और बड़ा बनाया, उसकी कुछ  और  साज सज्जा भी की , परफ्यूम भी लगाया . और उसको बनाने में कुछ फेविकोल जैसा द्रव्य किन्तु सुगंधित  प्रयोग किया । 
खेल में उस टैडी को बेटा बेटा भी कहा ।
खेल चुकने के बाद  उन्होंने उस अपने टैडी को जाह्नवी (गंगा ) में  डाल दिया ।
इसी प्रकार से फिर पुत्रार्थ एक अशोक वृक्ष के अंकुर की सेवा करते हुये उसे बड़ा किया । उनसे कुछ लोगों ने पूछा कि इस वृक्ष को पुत्र रूप से मानने का क्या प्रयोजन ? तब भगवती ने उत्तर दिया "दशपुत्रसमो द्रुमः" दस पुत्रों के समान एक वृक्ष है ।
भारत के अधिनायक (प्रेसीडेंट कम जनरल) भगवान् शंकर के अनेक गणेश थे । जैसा कि कुछ देशों में किशोरावस्था कुमारावस्था के सैनिक भी होते हैं
वैसा ही एक वीरक /वीरभद्र नाम का बालक भी गणपति था । जिसे देखकर भगवती उमा पार्वती के हृदय में वात्सल्य उमड़ा और  वह वीरक  माँ का मानस पुत्र हो गया ।

(मत्स्य पुराण से अपने शब्दों में )
एक दिन सर्व भाग्य विधाता शर्व ने  माता उमा को  काली-कलूटी  आदि कहकर चिढ़ाया. तो जगदम्बा इतनी रुष्ट हुईं कि जन गण अधिनायक रुद्र के बार बार हाथ जोड़ने और पैर छूने पर भी प्रसन्न नहीं हुईं . और वहाँ से  अपनी माता की सखी के यहाँ चली गईं.
जब वहाँ से पार्वती जी कुछ समय के बाद  घर वापसी करती हैं तो उन्हें प्रवेश करने से  वीरक  ने ही रोका.
वीरक को पार्वती ने शापित तक किया.
अवन्ती प्रान्त के महाकाल वन में  रक्तबीज सदृश  अन्धक से उत्पन्न अन्धकों का संहार रुद्र द्वारा उत्पन्न की गईं मातृकाओं द्वारा हो चुकने पर मूल अन्धक ने जब शंकर भोले की स्तुति की तो उस बलवान अन्धक को भगवान् ने अपना सामीप्य  व गणेशत्व (गणेश का पद )  प्रदान कर दिया ।
पिनाक धारी ने  पिंगल (छन्द शास्त्र वाले ) को भी  गणेशत्व प्रदान किया था . उद्भ्रम और संभ्रम नामक दो गण इनके अधीन थे.
पिंगल का नाम हरिकेश था और ये पूर्णभद्र नाम के यक्ष के पुत्र थे.
इन्होंने अविमुक्त काशी वाराणसी में अपनी साधना की थी.
गणपति की प्रथम वन्दना होती है। गणपति प्रतीक हैं Privacy निजता की सुरक्षा के।
चाहे प्राण जायें शीश कटे किन्तु निजता भङ्ग न हो।
यही कथा है न कि माँ उमा ने कहा कि देखो कोई आने न पाये.
✍🏻अत्रि विक्रमार्क अन्तर्वेदी

लिपि की उत्पत्ति गणपति द्वारा हुई-
गणानां त्वा गणपतिं हवामहे कविं कवीनामुपमश्रवस्तम्।
ज्येष्ठराजं ब्रह्मणा ब्रह्मणस्पत आ नः शृण्वन्नृतिभिः सीद सादनम्॥१॥
विश्वेभ्यो हित्वा भुवनेभ्यस्परि त्वष्टाजनत् साम्नः कविः। स ऋणया (-) चिद्-ॠणया (विन्दु चिह्नेन) ब्रह्मणस्पतिर्द्रुहो हन्तमह
ऋत- (Right, writing, सत्य का विस्तार) ऋतस्य धर्तरि।१७॥ (ऋक् २/२३/१,१७)
= ब्रह्मा ने सर्व-प्रथम गणपति को कवियों में श्रेष्ठ कवि के रूप में अधिकृत किया अतः उनको ज्येष्ठराज तथा ब्रह्मणस्पति कहा। उन्होंने श्रव्य वाक् को ऋत (विन्दुरूप सत्य का विस्तार) के रूप में स्थापित किया। श्रव्य वाक्य लुप्त होता है, लिखा हुआ बना रहता है (सदन = घर, सीद = बैठना, सीद-सादनम् = घर में बैठाना)। पूरे विश्व का निरीक्षण कर (हित्वा) त्वष्टा ने साम (गान, महिमा = वाक् का भाव) के कवि को जन्म दिया। उन्होंने ऋण चिह्न (-) तथा उसके चिद्-भाग विन्दु द्वारा पूर्ण वाक् को (जिसे हित्वा = अध्ययन कर साम बना था) ऋत (लेखन ) के रूप में धारण (स्थायी) किया। आज भी चीन की ई-चिंग लिपि में रेखा तथा विन्दु द्वारा ही अक्षर लिखे जाते हैं। इनके ३ जोड़ों से ६४ अक्षर (२६ = ६४) बनते हैं जो ब्राह्मी लिपि के वर्णों की संख्या है। टेलीग्राम के मोर्स कोड में भी ऐसे ही चिह्न होते थे।
देवलक्ष्मं वै त्र्यालिखिता तामुत्तर लक्ष्माण देवा उपादधत (तैत्तिरीय संहिता,५/२/८/३)
ब्रह्मा द्वारा इस प्रकार लेखन का आरम्भ हुआ-
नाकरिष्यद् यदि ब्रह्मा लिखितम् चक्षुरुत्तमम्। तत्रेयमस्य लोकस्य नाभविष्यत् शुभा गतिः॥ (नारद स्मृति)
षण्मासिके तु समये भ्रान्तिः सञ्जायते यतः। धात्राक्षराणि सृष्टानि पत्रारूढ़ान् यतः परां॥ (बृहस्पति-आह्निक तत्त्व)

गणेश जी के ४ रूप-(१) विद्या रूप-विद्या दो प्रकार की है, जो प्रत्यक्ष वस्तु दीखती है, उनकी गणना। जिसकी गणना की जा सके, वह गणेश है। अतः गणपति अथर्वशीर्ष में कहा है-त्वमेव प्रत्यक्षं ब्रह्माऽसि....। जो भाव रूप है या नहीं गिना जा सके वह रसवती = सरस्वती है। इनके बीच में पिण्डों के निकट रहने से उनको मिला कर एक रूप होने का बोध होता है-जैसे दूर-दूर के तारों में आकृति की कल्पना, या डौट-मैट्रिक्स प्रिण्टर में अलग -अलग विन्दुओं के मिलने से अक्षर की आकृति। ये विन्दु स्वेद (स्याही फैलने से) मिल जाते हैं अतः स्वेद ब्रह्म या सु-ब्रह्म हैं। अलग अलग पिण्डों का समूह प्रत्यक्ष (दृश्य) ब्रह्म है। ॐ ब्रह्म ह वा इदमग्र आसीत्... तस्य श्रान्तस्य तप्तस्य सन्तप्तस्य ललाटे स्नेहो यदार्द्र्यमजायत। महद् वै यक्षं सुवेदं अविदामह इति।.. एतं सुवेदं सन्तं स्वेद इति आचक्षते॥१॥ सर्वेभ्यो रोमगर्त्तेभ्यः स्वेदधाराः प्रस्यन्दन्त। ... अहं इदं सर्वं धारयिष्यामि.... तस्मात् धारा अभवन्॥२॥ (गोपथ ब्राह्मण पूर्व १/१-२)
दृश्य जगत् के ४ व्यूह (क्षर, अक्षर, अव्यय और परात्पर, या पाञ्चरार के वासुदेव, संकर्षण, प्रद्युम्न, अनिरुद्ध) हैं और उनसे विश्व का भद्र बना है अतः गणेश पूजा भाद्र शुक्ल चतुर्थी को होती है। विश्व का मूल अव्यक्त रस है, अतः वेदाङ्ग ज्योतिष में प्रथम मास माघ था अतः माघ में होता है। विद्या का वर्गीकरण अपरा-विद्या (= अविद्या) रूप में ५ स्तर का है, अतः सरस्वती पूजा माघ शुक्ल पञ्चमी को है। पुर रूप में दृश्य तत्त्व पुरुष है, अतः गणेश पुरुष देवता हैं। रस रूप केवल क्षेत्र दीखता है, जो स्त्री या श्री है अतः रस-विद्या स्त्री रूप सरस्वती है। दोनों विपरीत रूप संवत्सर के विपरीत विन्दुओं पर ६ मास के बाद आते हैं।
दो प्रकार के विद्या रूपों की स्तुति से तुलसीदास जी ने रामचरितमानस आरम्भ किया है-वर्णानां अर्थ संघानां रसानां छन्दसां अपि। मङ्गलानां च कर्त्तारौ, वन्दे वाणी विनायकौ॥ यहां वर्णों, का संघ प्रथम संख्येय अनन्त है, अर्थ असंख्येय अनन्त हैं और रस या भाव अप्रमेय अनन्त हैं-अनन्त के ये ३ शब्द विष्णु-सहस्रनाम में प्रयुक्त हैं।
(२) मनुष्य रूप-ब्रह्मा द्वारा लिपि निर्धारित करने के लिये जिनको अधिकृत किया गया उनको गणपति, अङ्गिरा, वृहस्पति आदि कहा गया है। ये अलग अलग युगों में भिन्न व्यक्ति थे।
गणानां त्वा गणपतिं हवामहे, कविं कवीनामुपमश्रवस्तम्।
ज्येष्ठराजं ब्रह्मणा ब्रह्मणस्पत आ नः शृण्वन्नृतिभिः सीद सादनम्॥१॥
विश्वेभ्यो हित्वा भुवनेभ्यस्परि त्वष्टाजनत् साम्नः साम्नः कविः।
मूल लिपि ऋण चिह्न (रेखा----) तथा चिद्-ऋण (रेखा का सूक्ष्म भाग विन्दु) के मिलन से बना था। देवों के लक्षण रूप वर्ण बने, ३३ देवों के लक्षण क से ह तक ३३ व्यञ्जन थे, १६ स्वर मिला कर ४९ मरुत् हैं, तथा ३ संयुक्ताक्षर क्ष, त्र, ज्ञ मिला कर क्षेत्रज्ञ (आत्मा) है। बाकी वर्ण अ से ह तक अहम् (स्वयम्) हैं। विन्दु-रेखा के ३ जोड़े २ घात ६ = ६४ प्रकार के चिह्न बना सकते हैं, प्राचीन चीन की इचिंग लिपि, टेलीग्राम का मोर्स कोड या कम्प्यूटर की आस्की लिपि। अतः ब्राह्मी लिपि में ६४ वर्ण हैं। आकाश में छन्द माप से सौर मण्डल का आकार ३३ धाम है-३ पृथ्वी के भीतर और ३० बाहर, इनके पाण ३३ देवता हैं। ब्रह्माण्ड (गैलेक्सी) का आकार ४९ है, प्रत्येक क्षेत्र १ मरुत् है, उसका आभा-मण्डल या गोलोक की माप ५२ है अतः इस प्रकार के देव रूप वर्णों का न्यास या नगर देवनागरी कहलाता है।
स ऋणया चिदृणया ब्रह्मणस्पतिर्द्रुहो हन्तमह ऋतस्य धर्तरि॥१७॥ (ऋक् २/२३/१, १७)
देवलक्ष्मं वै त्र्यालिखिता तामुत्तर लक्ष्माण देवा उपादधत.... (तैत्तिरीय संहिता ५/२/८/३)
(३) राज्य प्रमुख रूप-देश के लोगों का समूह गण है, उसका मुख्य गणेश या गणपति है। जैसे हाथी सूंढ़ से पानी खींचता है उसी प्रकार राजा भी प्रजा से टैक्स वसूलता है। मनुष्य हाथ से काम करता है अतः यह कर हुआ। हाथी का काम सूंढ़ से होता है, अतः वह भी कर हुआ। सूंढ़ क्रिया जैसा टैक्स वसूलते हैं, अतः टैक्स भी कर हुआ। कर वसूलने वाला या हाथी कराट है-
तत् कराटाय च विद्द्महे हस्तिमुखाय धीमहि , तन्नो दन्ती प्रचोदयात् ।
(कृष्ण यजुर्वेदः - मैत्रायणी शाखा - अग्निचित् प्रकरणम् -११९ -१२०)
(४) विश्व रूपमें गणेश-प्रत्यक्ष पिण्डों का समूह गणेश है। पिण्ड रूप में स्वयम्भू मण्डल में १०० अरब ब्रह्माण्ड हैं, हमारे ब्रह्माण्ड में १०० अरब तारा हैं और इनकी प्रतिमा रूप मनुष्य के मस्तिष्क में १०० अरब कलिल (सेल) हैं, जो लोम का मूल होने से लोमगर्त्त कहे जाते हैं। जितने लोमगर्त्त शरीर में हैं उतने ही १ वर्ष मॆं हैं, ऐसा काल-मान भी लोमगर्त्त कहलाता है जो १ सेकण्ड का प्रायः ७५,००० भाग है। यह मुहूर्त्त को ७ बार १५ से विभाजित करने पर मिलता है। पुनः १५ से विभाजित करने पर स्वेदायन है, जो बड़े मेघ में जल विन्दुओं की संख्या है या उनके गिरने की दूरी (इतने समय में प्रकाश प्रायः २७० मीटर चलता है, उतनी दूरी तक हवा में वर्षा बून्दें अपना रूप बनाये रखतीं हैं--
पुरुषोऽयं लोक सम्मित इत्युवाच भगवान् पुनर्वसुः आत्रेयः, यावन्तो हि लोके मूर्तिमन्तो भावविशेषास्तावन्तः पुरुषे, यावन्तः पुरुषे तावन्तो लोके॥ (चरक संहिता, शारीरस्थानम् ५/२)
एभ्यो लोमगर्त्तेभ्य ऊर्ध्वानि ज्योतींष्यान्। तद्यानि ज्योतींषिः एतानि तानि नक्षत्राणि। यावन्त्येतानि नक्षत्राणि तावन्तो लोमगर्त्ताः। (शतपथ ब्राह्मण १०/४/४/२)
पुरुषो वै सम्वत्सरः॥१॥ दश वै सहस्राण्यष्टौ च शतानि सम्वत्सरस्य मुहूर्त्ताः। यावन्तो मुहूर्त्तास्तावन्ति पञ्चदशकृत्वः क्षिप्राणि। यावन्ति क्षिप्राणि, तावन्ति पञ्चदशकृत्वः एतर्हीणि। यावन्त्येतर्हीणि तावन्ति पञ्चदशकृत्व इदानीनि। यावन्तीदानीनि तावन्तः पञ्चदशकृत्वः प्राणाः। यावन्तः प्राणाः तावन्तो ऽनाः। यावन्तोऽनाः तावन्तो निमेषाः। यावन्तो निमेषाः तावन्तो लोमगर्त्ताः। यावन्तो लोमगर्त्ताः तावन्ति स्वेदायनानि। यावन्ति स्वेदायनानि, तावन्त एते स्तोकाः वर्षन्ति। (शतपथ ब्राह्मण, १२/३/२/५)
अतः गणेश को खर्व (१०० अरब) कहते हैं-खर्व-स्थूलतनुं गजेन्द्र वदनं ...। यहां खर्व का अन्य अर्थ कम ऊंचाई का व्यक्ति भी है।
पूरा विश्व ब्रह्म का १ ही पाद है-पादोऽस्य विश्वा भूतानि त्रिपादस्यामृतं दिवि (पुरुष सूक्त ३)। बाकी ३ पाद का प्रयोग नहीं हुआ अतः वह ज्यायान (भोजपुरी में जियान = बेकार) है। वह बचा रह गया अतः उसे उच्छिष्ट गणपति कहते हैं।
विश्व के सभी पिण्ड ब्रह्माण्ड, तारा, ग्रह, उपग्रह गोलाकार हैं, अतः गणेश का शरीर भी गोल बड़े पेट का है। भौतिक विज्ञान में जितने भी भिन्न दिशा के बलों का संयोग (त्रि-विक्रम) है, वह दाहिने हाथ की ३ अंगुलियों से निर्देशित होता है अतः इसे दाहिने हाथ के अंगूठे का नियम कहते हैं। स्क्रू या बोतल की ठेपी (ढक्कन) दाहिने हाथ से घुमाने पर ऊपर उठता है। गणेश की सूंढ भी इस दिशा में ( बायीं तरफ) मुड़ी है, उस दिशा में ठेपी घुमाने पर वह ऊपर उठेगा।
✍🏻अरुण उपाध्याय
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पाकिस्तान जो मर्जी पढाये, पर हम क्या कम हैं?

Posted: 25 Aug 2020 12:13 AM PDT

पाकिस्तान जो मर्जी पढाये, पर हम क्या कम हैं? 

संकलन अश्विनीकुमार तिवारी 
पाकिस्तान में क्या और क्यों पढाया जा रहा है इस विषय में मेरी अभिरुचि नहीं है। यह विमर्श इस लिये प्रस्तुत कर रहा हूँ जिससे हम उदाहरण सहित समझ सकें कि पूरी निर्पेक्षता से बच्चो को पढाया जाना क्यों आवश्यक है। झंडे और नारे के नीचे तैयार किये गये पाठ्यक्रम केवल नस्ल ही नहीं बल्कि किसी देश का सम्पूर्ण नाश कर सकते हैं इसे पाकिस्तान के वर्तमान हालात और उसके स्कूलों के अध्ययन-अध्यापन से भी समझा जा सकता है। पाकिस्तानी लेखक तथा इतिहासकर के. के. अज़ीज़ की पुस्तक है - "इतिहास का कत्ल" जिसका हिंदी में अनुवाद  शिल्पायन प्रकाशन से सामने आया है। श्री अज़ीज़ अपनी पुस्तक में बहुत बारीकी से विवेचित करते हैं कि प्राथमिक शिक्षा से ले कर उच्च शिक्षा तक किस तरह वास्तविक इतिहास को पाकिस्तान में तोडा मरोडा गया है। किस तरह ख़ास किस्म की भाषा के माध्यम से भारत को दुश्मन मुल्क बना देने की मानसिकता बचपन से ही धार्मिक चाशनी में लपेट कर पाठ्यपुस्तकों के माध्यम से खिलायी गयी है। पाकिस्तान में कक्षा एक से चौदह तक पढाई जाने वाली सडसठ पुस्तकों की विवेचना करने के पश्चात इसके लेखक श्री के के अजीज भूमिका में लिखते हैं कि "यह पुस्तक मैने क्यों लिखी, इसका जवाब है कि – मैने इसे भावी पीढियों के लिये लिखा। कभी कभी मुझे महसूस होता है कि मैने अपनी सभी पुस्तकें उन पीढियों के लिये लिखी हैं जिन्हें मैं कभी नहीं देख पाउंगा। सौ वर्षों बाद जब भविष्य का इतिहासकार बीते युग के साथ पाकिस्तान पर चिंतन करने बैठेगा और उन कारणों को खोजेगा जिन्होंने इसे नीचे गिराया, शायद उसे मेरे इस पुस्तक में एक मोमबत्ती मिले जिसकी कांपती लौ उसका मार्गदर्शन करेगी"। 

भारत भी कहीं पीछे नहीं है। लगभग इसी धारा में, भारतीय विद्वान अरुण शौरी ने अपनी पुस्तक "जाने माने इतिहासकार और उनके छल" में परते उधेडी हैं कि भारत के इतिहास और शिक्षा का कैसे वामपंथीकरण किया गया। किस तरह चुन चुन कर भारतीय ज्ञान, संस्कृति तथा इतिहास के अनेक संदर्भ हटाये अथवा विकृत किये गये। पश्चिम बंगाल के पाठ्यपुस्तकों में वाम-शासन के दौरान निर्मम  छेड-छाड हुई इसका उदाहरण देते हुए लेखक ने बताया है कि कैसे रूस, चीन, क्यूबा और वियतनाम जैसे देशों की क्रांतियों और उसके कारणों को छोटे बच्चों के पाठ्यक्रम में जबरन घुसाया गया है। प्रश्न है कि क्या विश्व में लोकतांत्रिक सरकारों के लिये संघर्ष नहीं हुए? तो फिर एक लोकतांत्रिक प्रणाली वाले राष्ट्र के बच्चे अप्रासंगिक उदाहरणों को प्रासंगिक से अधिक जोर-जोर से क्यों पढते पाये जाते हैं? पाकिस्तान ने तो जो किया खुलेआम किया परंतु इतिहास के जो कातिल भारत में समुपस्थित हैं उन्होंने लाल रुमाल से अपना चेहरा ढक रखा है। श्री शौरी छलिया इतिहासकारों और पाठ्यपुस्तक के लेखकों पर निशाना साधते हुए अपनी पुस्तक की प्रस्तावना में लिखते हैं – "....उन्होंने यह दिखाने की कोशिश की है कि भारत की धरती शून्य में पडी थी और उसकी शून्यता को भरा एक के बाद एक आने वाले हमलावरों ने। उन्होंने आज के भारत और उससे भी ज्यादा हिंदू धर्म को एक चिडियाघर के रूप में पेश किया है।....उनका यह कहना है कि भारत जैसी कोई चीज नहीं थी, यह तो मात्र भौगोलिक अभिव्यक्ति थी। इसका निर्माण तो आ कर अंग्रेजो ने किया है"। सत्यता है कि आप मैक्समूलर से ले कर इरफान हबीब तक को पढेंगे तो आपको उनके कथनाशय और तेवर में कोई अंतर नहीं दिखाई पडेगा।   

हाल-ए-पडोसी मुल्क की बात करते हैं, कुछ उदाहरण देखें, पाकिस्तान में कक्षा एक की पुस्तक (मु'आशराती उलम, प्रकाशक - शकील ब्रदर्स कराची) यह तो बताती है कि लियाकत अलीखान की मजार कराची में है लेकिन पुस्तक का मोहनजोदाडो पाठ नहीं बताता कि यह कहाँ स्थित है। कक्षा तीन की पुस्तक (मु'आशराती उलम, प्रकाशक – पाठ्यपुस्तक परिषद, लाहौर) बताती है कि "राजा जयपाल ने महमूद गजनवी के देश में घुसने की कोशिश की। इस पर महमूद गजनवी ने राजा जयपाल को हरा दिया, लाहौर को हथिया लिया और इस्लामी हुकूमत की स्थापना की"; अजीज साहब ने यह प्रश्न भी छोडा है कि क्या महमूद गजनवी के आक्रमण की यह व्याख्या हिन्दुस्तान पर उसके बार बाद मारे गये छापों और अकारण हिन्दू पूजाग्रहों की लूटमार को भी न्याय संगत ठहराती है? अपने ही इतिहास को झुठलाते पाकिस्तान के प्रयासों की कलई खोलते हुए अज़ीज़ लिखते हैं कि कक्षा चार की 92 पृष्ठों वाली पुस्तक में केवल दो पृष्ठ इतिहास पर हैं जबकि अंतिम नौ पाठ इस्लाम के पैगम्बरों पर हैं, चार धर्मात्माओं, खईफाओं, सैयाद अहमद बरेलवी, हजरत पीर बाबा, मलिक खुदाबख्श और जिन्ना पर। कक्षा चौथी की ही पुस्तक (मु'आशराती उलम, प्रकाशक – पंजाब पाठ्यपुस्तक परिषद, लाहौर, पाठ-12) हिन्दू धर्म/मान्यताओं पर हमला करती है तथा इसमें मुसलमान आक्रमण को एक यात्रा की तरह बताया जाता है। 1965 के युद्ध पर इस पुस्तक में उल्लेखित है कि "आखिरकार भारत ने पाकिस्तान की जनता और फौज से डर कर शांतिप्रस्ताव पेश किया"। 

पाकिस्तान में कक्षा पाँच की पुस्तक (मु'आशराती उलम, प्रकाशक – एनडब्लूएफपी, पेशावर) बांगलादेश बनने के विषय में बच्चों को बताती है कि "भारत ने अपने गुर्गों द्वारा पूर्वी पाकिस्तान में दंगे करवाये और फिर चारो और से उस पर हमले किये। इस प्रकार पाकिस्तान भारत से एक और युद्ध लडने के लिये बाध्य हुआ। यह युद्ध दो सप्ताह चला। उसके बाद पूर्वी पाकिस्तान अलग हो गया और बांग्लादेश बन गया। कक्षा छठवी की पुस्तक (मु'आशराती उलम, प्रकाशक – पंजाब पाठ्यपुस्तक परिषद, लाहौर) में उल्लेखित है कि "हिन्दुओं ने अपना अलग राजनैतिक दल बनाया दि इंडियन नेशनल कॉग्रेस"। इसी पुस्तक का पृ 110 बटवारे का उल्लेख करते हुए लिखता है "हिन्दू और सिक्खों ने निहत्थे मुसलमानों का कत्लेआम किया...." अज़ीज़ लिखते हैं कि यह इस तरह लिखा गया है मानो मुसलमान आत्मरक्षा में भी नहीं लडे। कक्षा सात की पुस्तक (मु'आशराती उलम, प्रकाशक – पश्चिमी पाकिस्तान पाठ्यपुस्तक परिषद, लाहौर) में 1857 की लड़ाई का जिक्र करते हुए लिखा गया है कि "अंग्रेज सरकार के खिलाफ मुसलमानों द्वारा छेडा गया जिहाद था जिसमें औरों ने भी भाग लिया। कक्षा आठ की एक पुस्तक में तो इस लड़ाई को पाकिस्तान निर्माण की अवधारणा से भी जोड दिया गया है।

पाकिस्तान ने अपने पाठ्यक्रम किस तरह तैयार किये और छोटे छोटे बच्चों को क्या पढाया यह स्पष्ट है परंतु इसके उन्हें लाभ क्या हुए और हानि क्या? पाकिस्तान कटोरा लिये विश्व के सभी उन्नत देशों और कर्जा देने वाले राष्ट्रों के आगे इसीलिये भटकता रहता है चूंकि पाठ्यपुस्तक से बच्चे-बच्चे के दिल-दिमाग में फैलाया गया जहर उन्हें पेट में पत्थर बांध कर भी कश्मीर के लिये कथित जेहाद करने पर बाध्य करता है। जो पढाया गया उससे वे लगभग अनपढ ही रहे इसीलिये उनके यहाँ सूई से ले कर मिसाईल तक सब इम्पोर्टेड है। हालात का फायदा उठा कर चाईना-पाकिस्तान इकॉनॉमिक कॉरिडोर बनाने वाले चीन ने पाकिस्तान को अपनी अघोषित कॉलोनी बना लिया है। एक स्वतंत्र राष्ट्र सचेत हो अथवा उपनिवेश बन कर रहे, यह उनकी समस्या है। पाकिस्तान के हालात से हमारे लिये सबक क्या हैं? क्या प्राचीन ज्ञान और विज्ञान को सिरे से खारिज कर हमने भारतीय शोध की स्थापित दिशा को बाधित नहीं कर दिया है? क्या विचारधारा परक साहित्य पढते हुए बच्चे अब कविता-कहानी जैसी रोचक और बुनियादी साहित्यिक विधा से भी कन्नी नहीं काटने लगे हैं? हमारे कतिपय श्रेष्ठ कहे जाने वाले विश्वविद्यालययों में अनार्की अथवा अराजकता के पीछे खास विचारधारा तो है ही वे पाठ्यपुस्तकें भी हैं जिनमें सोचे-समझे क्षेपक घुसाये गये हैं। भारत विखण्डकों का सपना पाठ्यपुस्तकों से हो कर ही पूरा हो सकता है इसीलिये सुनियोजित ढंग से गढे गये पाठ्यक्रमों में जरा सा भी परिवर्तन उन्हें असहनीय हो जाता है। 
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भारत विखण्डन के बीज और इतिहास की पाठ्यपुस्तक

Posted: 25 Aug 2020 12:10 AM PDT

भारत विखण्डन के बीज और इतिहास की पाठ्यपुस्तक


संकलन अश्विनीकुमार तिवारी 
मैं इतिहास की वर्तमान पाठ्यपुस्तकों को थोथा थोथा गहि रहे और सार सार उडाय के दृष्टिगत देखता हूँ। एनसीईआरटी की कक्षा बारह की इतिहास पुस्तक से विमर्श को आरम्भ करते हैं। बारहवीं अर्थात स्कूली शिक्षा का आखिरी वर्ष, कला विषय ले कर पढ रहे छात्रों के लिये उनकी उच्चतम कक्षा। प्राचीन भारत के इतिहास में क्या छोडा-क्या पढाया यह विषय गौण है क्योंकि जो पढाया जा रहा है उसमें भी बुनियादी जानकारियाँ छोड दी गयीं हैं। नीलाद्रि भट्टाचार्य द्वारा लिखी गयी कक्षा-12 इतिहास पाठ्य पुस्तक की भूमिका कहती है – "कक्षा छ: से आठ तक हमने आपको इतिहास के प्रारम्भिक युग से ले कर आधुनिक समय तक की जानकारी प्रदान की।....यह किताब हडप्पा संस्कृति से आरम्भ होती है तथा भारतीय संविधान के निर्माण पर समाप्त होती है। इसमें पाँच हजार वर्षों का सामान्य सर्वेक्षण नहीं बल्कि कुछ विषेश विषयों का गहन अध्ययन किया गया है"। इस प्रस्तावना से ही स्पष्ट है कि क्या पढाना है और क्या छोड दिया जाना इसके पीछे बहुत माथापच्ची हुई है। उदाहरण के लिये मोहनजोदाडो पढा जायेगा लेकिन पूर्व वैदिक और उत्तर वैदिक समय विलोपित कर दिया जायेगा फिर हम सीधे मौर्यों के युग में प्रवेश कर जायेंगे। ठीक है आपने चतुराई से पाठ्यपुस्तक का नामकरण ही "भारतीय इतिहास के कुछ विषय" रखा है अत: मन-मर्जी आपकी। तथापि जब आप चयनित विषय ही पढा रहे हैं तो उसमे भी समग्रता क्यों नहीं? 

संदर्भित पाठ्य पुस्तक हडप्पा के बाद सीधे सोलह महाजनपदों से आरम्भ करती है। तो क्यों हैं ये सोलह महाजनपद? क्या सभी एकतंत्र ही थे? आप गर्जना करते हैं कि हम संविधान की निर्मिति तक बारहवीं कक्षा के बच्चों को पढाने जा रहे हैं। ठीक है, हम आज लोकतंत्र हैं अत: हमारा संविधान कैसे बना पढाया ही जाना चाहिये। क्या हम पहली बार लोकतंत्र बने थे?  हम कब से लोकतंत्र थे इसकी जानकारी से पूर्व यह उल्लेखित करना चाहूंगा कि एनसीईआरटी की कक्षा ग्यारहवीं की पुस्तक "विश्व इतिहास के कुछ विषय" आपको यूरोप की पहली युनिवर्सिटी कौन सी थी, इस्लामी और यूरोपीय राष्ट्रों में क्या आरम्भिक शासन पद्यतियाँ थीं, कब क्या वैज्ञानिक प्रगति हुई इसकी भी जानकारी प्रदान करेगा लेकिन यह सब इसी श्रंखला की बारहवी की पुस्तक के भारतीय संदर्भों में विलोपित मिलेगा, क्यों? आपने वैदिक युग को चयनित विषयों में नहीं लिया फिर महाभारत को महाकाव्य मान कर उसके आधार पर सामाजिक विभेदों पर विमर्श सामने रखने की आवश्यकता क्यों महसूस हुई? आप बच्चों को वर्ण व्यवस्था पढा रहे हो तो स्पष्ट तौर पर सामने रखा जाना चाहिये कि कैसे कर्म आधारित व्यवस्था जन्म आधारित बनी। बीच से ऐसे चुनिंदा संदर्भ को उठा कर पढाया जाना बदलते हुए समाज और क्रमिकता से समाप्त होती जातिव्यवस्था के बीच जहरीले प्रसंग हैं और दुर्भाग्य से पाठ्यपुस्तक लिखने वालों का ध्यान नयीं गया अथवा विचारधाराओं के वशीभूत ऐसा जानबूझ कर किया गया पता नहीं? पाठ्यपुस्तक को तक्षशिला क्यों नजर नहीं आयी, चाणक्य का अर्थशास्त्र क्यों नहीं दिखा या कि इस दौर के चरक-सुश्रुत जैसे विद्वान कैसे अपने शोध से बडे बदलाव ला रहे थे आदि महत्वपूर्ण नहीं लगे लेकिन यह पढाना आवश्यक लगा कि द्रोणाचार्य ने अर्जुन का अंगूठा क्यों और कैसे काटा अथवा चाण्डालों के कर्तव्यों की सूची क्या है? यदि वैदिक युग पढाया नहीं जाना था तो फिर यज्ञ और विवाद जैसे विषय क्यों लिये गये? क्या ऐसा करने से इतिहास के विद्यार्थी आधी अधूरी जानकारी ले कर पूर्वाग्रहग्रसित नहीं हो जायेंगे? क्या ऐसा आरोप नहीं लगाया जाना चाहिये कि कतिपय विषय जान बूझ कर उठाये गये हैं और कुछ को सोच-समझ कर छोडा गया है? सोचिये तो कि क्या भारत विखण्डन के जो वर्तमान परिदृश्य हैं उसके जनक हमारी पाठ्यपुस्तके ही हैं?

तो प्रश्न उठता है कि क्या अवश्य पढाया जाना चाहिये था? कक्षा बारहवी की इतिहास पुस्तक भारतीय लोकतंत्र के निर्माण तक की व्याख्या करने के लिये बनायी गयी है तब क्यों छात्रों को यह न बताया जाये कि विश्व को लोकतंत्र हमने ही दिया है? पाठ्यपुस्तक में उल्लेख है कि  - "अधिकांश महाजनपदों पर राजा का शासन था लेकिन गण और संघ के नाम से प्रसिद्ध राज्यों में कई लोगों का समूह शासन करता था। इस समूह का प्रत्येक व्यक्ति राजा कहलाता था। भागवान महावीर और भगवान बुद्ध इन्हीं गणों से सम्बंधित थे"। जी हाँ द्रोणाचार्य और द्रोपदी पर कई पन्ने जानकारी जुटाने वाली हमारी पाठ्यपुस्तक भारतीय प्राचीन लोकतंत्र को इतनी ही अहमियत देती है। इन पंक्तियों को पढ कर कोई समझ जाये कि किसी लोक आधारित शासन व्यवस्था की बात हो रही है तो विद्यार्थी अति-मेधावी ही होगा। क्या प्राचीन भारतीय गणताज्यों को संक्षेप में ही सही पढाया नहीं जाना चाहिये था जबकि हम आगे के पाठ में आधुनिक संविधान की व्याख्या भी करना चाहते हैं?  क्या जिन जनपदों का नामोल्लेख पाठ्यपुस्तक में है वे राजाधीन और गणाधीन दोनो ही प्रकार की शासन व्यवस्थाओं वाले नहीं थे? राजा के आधीन शासन अर्थात एकतंत्रात्मक शासन प्रणालियों की तो एनसीआरटी की पाठ्यपुस्तक में सविस्तार व्याख्या है अत: केवल गणराज्यों की बात करते हैं जिसकी कल्पना के लिये आधुनिक लोकतंत्र को सामने रख कर समझा जा सकता है। उन समयों के गणतंत्र में हर कुल से एक व्यक्ति प्रतिनिधि के रूप में चुना जाता था और वह राजा कहलाता था। महाभारत के सभापर्व में 'गृहे गृहे ही राजान:" का उल्लेख है। बाद के समयों में वैशाली के गणतंत्र को बौद्ध और जैन साहित्यों में उल्लेख के कारण अत्यधिक ख्याति प्राप्त हुई? बहुसंख्यक का शासन संदर्भित शब्द का प्रयोग ऋग्वेद में चालीस बार, अथर्ववेद में नौ बार और ब्राह्माण ग्रंथों में तो अनेको बार किया गया है। ऋग्वेद के एक सूक्त में प्रार्थना की गई है कि समिति की मंत्रणा एकमुख हो, सदस्यों के मत परंपरानुकूल हों और निर्णय भी सर्वसम्मत हों।  पाठ्यपुस्तक कें जब महाभारत पढा ही रहे थे तो यही बता देते कि वृष्टि, भोज, अंधक, कुक्कुर, शूर आदि में बंटे यादव संघों और गणराज्यों को एकीकृत करने में कृष्ण को सफलता हासिल हुई। कृष्ण गणप्रमुख चयनित हुए थे? 

प्राचीन गणतंत्र व्यवस्था में गणाध्यक्ष पद के लिये निर्वाचन होता था। गणाध्यक्ष को केंद्रीय परिषद की मदद से राज्य कार्य का संचालन करना होता था। इस परिषद को संथागार कहा जाता था। गणाध्यक्ष संथागार की सहमति के बिना कोई कार्य करने या निर्णय लेने के लिये स्वतंत्र नहीं था। संथागार में किसी बैठक के लिये सदस्यों की एक निश्चित संख्या से अधिक की उपस्थिति अनिवार्य थी। जिसे हम आज की भाषा में कोरम का पूरा होना कह सकते हैं। गणपूरक अधिकारी यह निर्धारित करता था कि संथागार में होने वाली किसी बहस के संचालन के लिये समुचित सदस्य उपस्थित हैं अथवा नहीं। जैसे आजा हमारी लोकसभा में सीट का महत्व है तब आसन का हुआ करता था। सभा भवन में सदस्यों के बैठने की जगह को आसन कहा जाता था, इसपर बैठने वाले सदस्य को आसनपन्नापक कहा जाता था। संथागार में एक निश्चित विषय पर हर एक सदस्य को बोलना होता था। किसी प्रस्ताव के पढे जाने को 'ज्ञाप्ती का अनुसावन' कहा जाता था। कभी-कभी प्रस्ताव पाठ कई बार होता था और जो सदस्यगण प्रस्ताव के पक्षधर होते थे वह मौन रहते थे, केवल विपक्ष में मत रखने वाले सदस्य ही अपने अपने तर्क प्रस्तुत करते थे। विवादग्रस्त सवाल पर भिन्न-भिन्न रंगों की श्लाकाओं द्वारा मतविभाजन होता था जिसे 'छंद' कहते थे। श्लाकाओं को एकत्र करने वाला अधिकारी 'श्लाकाग्राहक' कहलाता था। किसी प्रस्ताव पर मतदान के तीन तरीके प्रचलित थे पहला, जिसमें मतदाता का नाम गोपनीय रखा जा सकता था। दूसरा, सभाध्यक्ष से एकांत में कह दिया जाता था। तीसरा,  रंगीन श्लाकाओं के माध्यम से मतदान किया जाता और उसकी गिनती कर फैसला किया जाता था। संथागार की पूरी कार्रवाई लिपिक द्वारा लिपिबद्ध की जाती थी। एक और बात, गणाध्यक्ष को त्वरित लिये जाने वाले आवश्यक निर्णयों में सलाह देने के लिये संथागार की व्यवस्था साथ साथ अलग मंत्रिमंडल होता था जिनकी नियुक्ति संथागार सदस्यों की सहमति द्वारा की जाती थी। 

यह विवेचना भी आवश्यक है कि क्या उस समय के गणराज्य सफल व्यवस्था थे? कृष्ण द्वैपायन ने महाभारत के शांति पर्व में प्राचीन गणतंत्र की कुछ त्रुटियों को लिखा है। उनके अनुसार गणतंत्र मंष प्रत्येक व्यक्ति अपनी-अपनी बात कहता है और उसी को सत्य मानता है। इससे पारस्परिक विवाद बढता है। अनेक बार किसी निर्णय पर पहुँचने से पूर्व घोर असहमतियाँ बड़े संघर्ष का रूप ले लेती हैं। छठी शताब्दी ईसापूर्व के इन गणराज्यों में एक सुनियोजित शासन व्यवस्था देखने को मिलती है लेकिन यह भी उतना ही बड़ा सच है कि संथागार के सदस्यों की पारस्परिक द्वेष भावना, गुटबंदी, उच्च पदों पर वंशानुगत अधिकारियों की नियुक्ति आदि ने समय के साथ प्राचीन गणराज्यों को कमजोर किया"। संभवत: यही कारण रहा होगा कि गणराज्य फिर साम्राज्यों का हिस्सा बनते चले गये। जनपदों को महाजनपद का आकार लेते, राज्यों को साम्राज्य बनते और उन्हें बिखरते हुए भी इसी दृष्टिकोण से समझा जा सकता है। इस विवेचना को पढने के पश्चात आधुनिक कडियाँ जोडिये कि आज हमारा लोकतंत्र भी तो इसी समस्या से दो-चार हो रहा है। अब प्रश्न यह उठता है कि हम अपने बच्चों को स्वतंत्र विमर्श के नाम पर चुनिंदा शीर्षक तो नहीं पढा रहे जिन्हें किसी खास विचारधारा की मथनी से मथ कर फिर परोसा गया है? विचार कीजिये और सवाल उठाईये कि जो शीर्षक पढाये जा रहे हैं वे एकपक्षीय क्यों और जो छोड दिये क्या वे महत्वपूर्ण नहीं थे? सोचना आरम्भ कीजिये, कहीं देर न हो जाये? 
- ✍🏻राजीव रंजन प्रसाद, 
सम्पादक, साहित्य शिल्पी ई पत्रिका
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भूमिगत जल, वृहत्संहिता और कटी पतंग

Posted: 25 Aug 2020 12:08 AM PDT

भूमिगत जल, वृहत्संहिता और कटी पतंग 


संकलन अश्विनीकुमार तिवारी 
अंकल सैम छाती ठोक कर आपको बतायेंगे कि कैसे धरती फोड और आकाश फाड कर जो भी ज्ञान संभव है, उन्होंने हासिल किया है। ब‌डी बडी सेटेलाईट अब आसमान से नीचे आँख़ें गडाये  तकती रहती हैं और बताती हैं कि कहाँ कहाँ धरती के भीतर पानी मिलेगा। ठीक है कि विज्ञान जितना विकसित होगा, उसके आकलन उतने ही सटीक होंगे। तथापि यह विवेचना आवश्यक है कि जब आसमानी आँखें नहीं थी तब क्या धरती के भीतर झांकने की कोई कोशिश नहीं हुई? कूप-तडागों वाला भारत कब से यह जानता था कि धरती की भीतरी सतहों में कहाँ कहाँ जल उपलब्ध हो सकता है तथा कहाँ से और कैसे उसको बाहर निकाला जा सकता है? हमारी पाठ्यपुस्तकें इस विषय पर बहुत नीरस हैं तथा सीधे जल चक्र से आरम्भ होती हैं। कुल मिलाकर वही गोल गोल कि पानी से भाप निकलती है फिर बादल बन कर बरस जाती है। बरसो जितना जल हो बल हो, लेकिन मालूम तो हो कि पानी फिर जमीन के भीतर प्रवेश कैसे करता है, कहाँ छिपा बैठा रहता है और उसकी तलाश के मुख्यविन्दु क्या हो सकते हैं। हमने बडे बडे शब्द चुन लिये हैं जैसे जियोलॉजी, जियोमॉर्फोलॉजी और हाईड्रोलोजी जिनके समन्वयन से आज प्रयास किया जाता है कि जमीन के भीतर का ज्ञान हासिल हो। सगर्व यह सब मॉडर्न साईंस का हिस्सा और देन माना गया है। हमारी पाठ्यपुस्तकें तो ख़ुदा खैर करे छुईमुई का पौधा हैं कि  किसी ज्ञान-विज्ञान के संदर्भ की समयावधि मध्यकाल से नीचे सरकी तो फिर अक्षरों का रंग भगवा मान लिया जाता है और मिथक मिथक का कोलाहल मचने लगता है। यही कारण है कि किसी स्कूल में पढने वाले किसी बच्चे को यह नहीं पता होगा कि ईसा की पाँचवीं-छठी शताब्दी में वाराहमिहिर नाम का एक भारतीय गणितज्ञ और खगोल शास्त्री था जिसने जमीन के भीतर झांकने का प्रयास किया और भूमिगत जल को के कर अपने ग्रंथ वृहत्संहिता के उदकार्गल अध्याय में लगभग सवा सौ श्लोको के माध्यम से ऐसी जानकारियों को संकलित किया जो आज भी विज्ञान की दृष्टि में सिद्ध मानी जाती हैं। 

बुतरस घाली एक समय संयुक्त राष्ट्र के महासचिव रहे थे जिन्होंने चिंता जाहिर करते हुई कहा था कि पानी के लिये लडा जायेगा तीसरा विश्वयुद्ध। अगर ऐसा ही है तो हमारी क्या तैयारी है? क्या एक सौ पच्चीस करोड की यह जनसंख्या जो कि निरंतर बढती जा रही है, वर्तमान में उपलब्ध जल-संसाधनों पर निर्भर रह सकेगी? आज हम भू-जल पर बहुत अधिक निर्भर हो गये हैं जिससे हालात यह कि पाताल सूखता जा रहा है। अब भी हम बडी बडी मशीनों को ले कर धरती की धडकन सुनने निकलते हैं और बार बार ऐसा होता है कि अनुमान धरे रह जाते हैं और गहरे-गहरे गड्ढे खोद कर भी भीतर बूंद भी नहीं मिलता। इसे संज्ञान में लेते हुए सोचिये कि पाँचवी-छठी सदी में कैसे वाराहमिहिर ने मृदा के रंग, वनस्पतियों, पत्थर और उसके प्रकार, क्षेत्र, देश आदि के अनुसार किस स्थान पर भूमिगत जल की उपलब्धिता हो सकती है, इसका विवरण प्रदान किया है। विज्ञान की भाषा में धरती की सतह के नीचे, चट्टानों के कणों के बीच के अंतरकाश या रन्ध्राकाश में मौजूद जल को भूमिगत जल कहते हैं। मीठे पानी के स्रोत के रूप में यह एक प्राकृतिक संसाधन है। जलभर (Aquifer) धरातल की सतह के नीचे चट्टानों का एक ऐसा संस्तर है जहाँ भूजल एकत्रित होता है और मनुष्य द्वारा नलकूपों से निकालने योग्य अनुकूल दशाओं में होता है। वृहत्संहिता न केवल भू-जल को पारिभाषित करती है अपितु जलभर के विभिन्न आयामों पर भी जानकारी उपलब्ध है। 

वृहत्संहिता के उदकार्गल में भूजल सम्बंधित जो व्याख्या प्रस्तुत की गयी है उसपर संक्षिप्त दृष्टि डालते हैं। ग्रंथ कहता है - पुंसां यथाङ्गेषु शिरास्त्तयैव क्षितावपि प्रोन्नतनिम्नसंस्थाः अर्थात - जिस प्रकार मानव शरीर में नाड़ियाँ होती हैं उसी प्रकार पृथ्वी में भी विभिन्न ऊँची-नीची शिराएँ होती हैं। एकेन वर्णेन रसेन चाम्भश्चयुतं नभस्तो वसुधाविशेषात्, नानारसत्वं बहुवर्णतां च गतं परी यं क्षितितुल्यमेव अर्थात आकाश से बरसता सब जल स्वाद में एक सा होता है। परन्तु भूमि की विशेषता से वह अनेक वर्ण और स्वाद का हो जाता है। उसकी परीक्षा भू्मि के समान ही करनी चाहिए। अर्थात् जैसी भू्मि होगी वैसा जल भी होगा। यही नहीं यदि ऐसा स्थान है जहाँ पानी मिलने की संभावना न्यूनतम है तब हमारी तलाश कैसी होनी चाहिए इसे एक श्लोक से समझें कि - यदि वेतसोSम्बुरहिते देशे हस्तैस्त्रिभिस्ततः पश्चात्, सार्धे पुरुषे तोयं वहति शिरा पश्चिमा तत्र अर्थात जलहीन देश में वेदमजनूँ नामक पेड़ के पश्चिम में तीन हाथ दूर, डेढ़ पुरुष नीचे जल होता है। वहाँ पश्चिमी शिरा बहती है। 120 अँगुल का एक पुरुष है अर्थात जब एक पुरुष अपने हाथ ऊपर खड़े करे तब उसका सम्पूर्णता में अनुमापन। इसी अनुमाप पर उदकार्गल में बहुत सी गणनायें की गयी हैं। उदाहरण के लिये - चिह् नमपि चार्ध पुरुषे मंडूकः पाण्डूरोSथ मृत्पीता, पुटभेदकश्च तस्मिन् पाषाणो भवति तोपनधः अर्थात आधा पुरुष खोदने पर वहाँ श्वेत मेंढक निकलता है, फिर पीले रंग की मिट्टी होती है, उसके बाद परतदार पत्थर होता है जिसके नीचे पानी होता है।

पेड-पौधों और जीवजगत के व्यवहार का बहुत सूक्ष्म विवेचन ग्रंथ के इस अध्याय में किया गया है। यह श्लोक देखें कि - जम्बूवृक्षस्य प्राग्वल्मीको यदि भवेत्समीपस्थः, स्माद्दक्षिणपाशर्वे सलिलं पुरुषद्वये स्वादु अर्थात यदि जामुन के पेड़ से पूर्व दिशा में पास ही सर्प की बाँबी हो तो उस पेड़ से तीन हाथ दक्षिण में दो पुरुष नीचे मधुर जल होता है। ऐसा ही यह श्लोक देखें कि - भार्ङ्गी विवृता दन्ती शूकरपादीश्च लक्ष्मणा चैव, नवमालिका च हस्तद्वयेSम्बु याम्ये त्रिभिः पुरुषैः अर्थात भांरगी, निसोत दंती (दत्यूणी), सूकरपादी, लक्ष्मण, मालती वनस्पति जहाँ हो तो उनसे दो हाथ दक्षिण में तीन पुरुष नीचे पानी होता है। इसी तरह भू-विज्ञान की भी गहरी समझ वाराहमिहिर के शास्त्र से परिलक्षित होती है जब वे लिखते हैं - यत्र स्निग्धा निम्ना सवालुका सानुनादिनी वा स्यात्, तत्रर्धपञ्चमैर्वारि मानवैः पञ्चभिर्यदि वा अर्थात चिकनी नीची बालु रेत हो और पैर रखने से ध्वनि हो तो साढ़े चार या पाँच पुरुष नीचे पानी होता है। इसी तरह का याह उदाहरण देखें कि - मृन्नीलोत्पलवर्णा कापोता चैव दृश्यते तस्मिन्, हस्तेSजगन्धिमत्स्यो भवति पयोSल्पं च सक्षारम् अर्थात पहले नीलकमल सी, फिर कबूतर वर्ण की मिट्टी दिखाई देती है। इसके एक हाथ नीचे मछली निकलती है, उसमें चकोर जैसी दुर्गन्ध होती है, वहाँ थोड़ा और खारा पानी निकलता है। इतना ही नहीं कैसे पत्थर होंगे तो भूजल का स्तर क्या होगा जैसे उद्धरण भी प्राप्त होते हैं जैसे -  अहिराजः पुरुषेSस्मिन् धूम्रा धात्री कुलत्थवर्णोSश्मा, माहेन्द्री भवति शिरा वहति सफेनं सदा तोयम् अर्थात पहले पुरुष खोदने पर बड़ा सर्प, फिर धुएँ जैसी भूमि, फिर कुलथी के रंग के पत्थर के नीचे आव पूर्व की आती है, उसमे से सदैव झागदार पानी आता है। 

पानी भी मिल गया तब कूप-तालाब आधि खोद कर उसका दोहन सुनिश्चित किया जाता है, ऐसे में भी वाराहमिहिर के पास अनेक समाधान हैं। वे खनन में हो रही कठिनाईयों और न टूटने वाले पत्थरों से निजात पाने का उपाय भी निर्धारित करते हैं और लिखते हैं कि - भेदं यदा नैति शिला तदानीं पालाशकाष्ठैः सह तिन्दुकानाम्, प्रज्वालयित्वानलमग्निवर्णा सुधाम्बुसिक्ता प्रविदारमेति अर्थात कूप आदि खोदने के समय शिला निकले और वह फूटे नहीं तो उस पर ढाक और तेंदु की लकड़ी जलाकर उसे लाल करके ऊपर चूने की कलों से मिला पानी छिड़कें तो वह शिला टूट जाती है। एक अन्य उदाहरण देखें कि - तोयं श्रृतं मोक्षकभस्मना वा यत्सप्तकृत्वः परिषेचनं तत्, कार्य शरक्षारयुतं शिलायाः प्रस्फोटनं वह्निवितापितायाः अर्थात 
मरुवा पेड़ की भस्म मिलाकर पानी उबालकर उसमें शरका खार मिला कर फिर अग्नि से तपाई शिला के ऊपर सात बार वह पानी छिड़कने से वह शिला टूट जाती है। कूप निर्माण के पश्चात संरक्षण के लिये उल्लेख है कि  - द्वारं च न नैर्वाहिकमेकदेशे कार्य शिलासचितवारिमार्गम्, कोशस्थितं निर्विवरं कपाटं कृत्वा ततः पांसुभिरावपेत्तम् अर्थात जल निकलने के लिए एक ओर मार्ग रखना चाहिए जिसे पत्थरों से बाँधकर पक्का करवा दें। उस जलमार्ग का छिद्ररहित मजबूत काठ के तख्तों से ढँककर, ऊपर से मिट्टी दबा दें। प्राप्त भू-जल की शुद्धि के उपाय भी बताये गये हैं - अञ्जनमुस्तोशीरैः सराजकोशातकामलकचूणँ:, कतकफलसमायुक्तैर्योगः कूपे प्रदातव्यः अर्थात अंजन (सुरमा), मोथा, खस, बड़ी तुरई, आमल, कतक (निर्मली) आदि सबका चूर्ण कूप में डाल दें। इसी कडी में यह श्लोक भी देखें कि - कलुषं कटुकं लवणं विरसं सलिलं यदि वा शुभगन्धि भवेत्, तदनेन भवत्यमलं सूरसं सुसुगन्धिगुणैरपरैश्चयुतम् अर्थात यदि जल गंदा, कड़वा, खारा, बेस्वाद या दुर्गन्धित हो तो वह इस चूर्ण से निर्मल, मीठा, सुगंधित और अन्य कई गुणों वाला हो जाता है।

वाराहमिहिर ने भूमिगत जल पर जो शोध प्रस्तुत किया वह विज्ञान की दुनियाँ में अभी ध्यान या विवेचना प्राप्त नहीं कर सका है। हमारी हालत यह कि हम बहुत ऊँचा उड रहे हैं, हवाओं के रुख से हमें आसमान छूने का अहसास भी हो रहा है परंतु भान ही नहीं कि पतंग कबकी मांझे से कट कर अलग हो गयी है। मेरे इस आलेख का पूर्वाग्रह यह नहीं कि पाठ्यक्रम में वाराहमिहिर ही  पढाये जायें, अपितु यह है कि क्यों विद्यार्थियों को गर्व प्रदान नहीं किया जाये कि भू-विज्ञान और जल-विज्ञान के अनेक सिद्धांत भारतीयों ने प्रतिपादित किये हैं? प्रश्न तो बहुत से हैं कि विज्ञान के युग का दंभ भरने वाले समय के पास अब भी काले मेघा पानी दे के सिद्धांत पर आधारित खेती की दशा-दिशा ही है जबकि समाधान धूल भरे ताखों पर पडे झख मार रहे हैं। 
- ✍🏻राजीव रंजन प्रसाद, 
सम्पादक, साहित्य शिल्पी ई पत्रिका
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पाती पाती सीव क्यों फिर भी मरते जीव?

Posted: 25 Aug 2020 12:07 AM PDT

पाती पाती सीव क्यों फिर भी मरते जीव? 

संकलन अश्विनीकुमार तिवारी 

पाठ्यपुस्तकों में पर्यावरण को समझाने वाली सभी परिभाषायें आधुनिक हैं। जब उद्योगों ने धरती, आकाश और पाताल कुछ भी नहीं छोडा तब हम एनवायरन्मेंट की बातें वैशविक सम्मेलनों में इकट्ठा हो कर करने लगे। भारत भी वर्ष 1986 के पश्चात से पर्यावरण सजग माना जाता है जबकि उसकी प्राचीन पुस्तकें यह मान्य करती हैं कि संपूर्ण सृष्टि पंचतत्त्वों अर्थात अग्नि , जल, पृथ्वी , वायु और आकाश से विनिर्मित हैं। पर्यावरण की सभी तरह की विवेचनायें क्या यहाँ पूर्णविराम नहीं पा जाती हैं? इन पंचतत्वों के संतुलन से हमारी प्रकृति और परिवेश निर्मित हैं और सुरक्षित भी, किसी भी एक तत्व का असंतुलन जैविक-अजैविक जगत को परिवर्तित अथवा नष्ट करने की क्षमता रखता है। आधुनिक परिभाषा कहती है कि पर्यावरण वह जो हमे चारो ओर से घेरे हुए है, ठीक यही हमारे शास्त्र कहते हैं कि परित: आवरणम (चारो ओर व्याप्त आवरण)। आधुनिक परिभाषा कहती है - पर्यावरण उन सभी भौतिक, रासायनिक एवं जैविक कारकों की समष्टिगत इकाई है जो किसी जीवधारी अथवा पारितंत्रीय आबादी को प्रभावित करते हैं तथा उनके रूप, जीवन और जीविता को तय करते हैं। यजुर्वेद में धरती, आकाश, पाताल, जल, वायु, औषधि आदि सभी के लिये शांति की कामना है - ओम द्यौ: शांति:, अंतरिक्ष ढं शांति:, पृथ्वी शांतिराप: शांतिरोषधय: शांति:। वनस्पतय: शांतिविश्वेदेवा शांति, ब्रम्ह शांति सर्व ढं शांति:, शांतिरेव शांति सामा शांतिरेधि:।


मैकाले प्रणाली की पुस्तकें बताती हैं कि पर्यावरण शिक्षा की जड़ें अठ्ठारहवीं सदी में तलाशी जा सकती हैं। जीन-जैक्स रूसो ने ऐसी शिक्षा के महत्व पर जोर दिया था जो पर्यावरण के महत्व पर केन्द्रित हों। इसके दशकों बाद, लुईस अगसिज़ जो एक स्विस में जन्मे प्रकृतिवादी थे, उन्होंने भी छात्रों को "किताबों का नहीं, प्रकृति का अध्ययन" करने के लिए प्रेरित किया और रूसो के दर्शन का समर्थन किया। इन दोनों प्रभावशील विद्वानों ने एक सुदृढ़ पर्यावरण शिक्षा कार्यक्रम की नींव डालने में सहायता की जिसे आज प्रकृति अध्ययन के नाम से जाना जाता है। अर्थात पश्चिम ने अट्ठारहवी सदी में पर्यावरण की आरम्भिक समझ विकसित की और बीसवी सदी तक आते आते इसे स्वरूप प्राप्त हुआ। हमरा भी यही तोता रटंत है क्योंकि अपनी ही जडों की मजबूती को महसूस करना दकियानूसियत लगने लगा है। हमारे पाठ्यपुस्तक लेखक तो इन पाश्चात्य वैज्ञानिकों के भी चचाजान हैं, वे ऑक्सफोर्ड में क्या है तक जल्दी पहुँच जाते हैं तक्षशिला में क्या पढाया जाता था, उनकी प्राथमिकता में ही नहीं। पर्यावरण तो भारतीय जीवन-दर्शन का अभिन्न हिस्सा रहा है। प्राचीन सभी प्रकार के शोध वस्तुत: ऋषियों की प्रकृति के प्रति समझ के विकास के साथ सामने आये हैं। 


प्राचीन ग्रंथों में पर्यावरण के उल्लेखों को देख कर आश्चर्यमिश्रित हर्ष होता है कि हम आधुनिक सभ्यताओं की समझ से कई हजार साल पहले के लोग हैं। एक मोटे वर्गीकरण के आधार पर ऋग्वेद में अग्नि के रूप, रूपांतर और उसके गुणों की स्पष्ट व्याख्या की गई है। इसी तरह यजुर्वेद में वायु के गुणों, कार्य और उसके विभिन्न रूपों का आख्यान प्रमुखता से मिलता है। अथर्ववेद बहुत स्पष्टता से पृथ्वीतत्व का वर्णन प्राप्त हो जाता है। इसके पृथ्वी सूक्त में धरती की महानता उदारता और सर्वव्यापकता पर टिप्पणी करते हुए कहा गया है कि आपके लिए ईश्वर ने शीत वर्षा तथा वसंत ऋतुएँ बनाई हैं। दिन-रात के चक्र स्थापित किए हैं, इस कृपा के लिए हम आभारी हैं। मैं भूमि के जिस स्थान पर खनन करूं, वहाँ शीघ्र ही हरियाली छा जाए। सामवेद कहता है कि हे इंद्र तुम सूर्य रश्मियों और वायु से हमारे लिए औषधि की उत्पत्ति करो। छाँदोग्य उपनिषद् स्पष्ट करता है कि पृथ्वी जल और पुरुष सभी प्रकृति के घटक हैं। पृथ्वी का रस जल है, जल का रस औषध है, औषधियों का पुरुष रस है, पुरुष का रस वाणी, वाणी का ऋचा, ऋचा का साम और साम का रस उद्गीथ हैं, अर्थात् पृथ्वीतत्व में ही सब तत्वों को प्राणवान बनाने के प्रमुख कारण है। न्यायदर्शन में ईश्वर एवं जीव के साथ प्रकृति भी महत्वपूर्ण घटक है। वैशेषिक दर्शन भी पंचमहाभूत तत्वों को सृष्टि निर्माण के मुख्य तत्त्व मानता हैं। कौटिल्य के अर्थशास्त्र में अभयारण्यों का वर्णन एवं उनका वर्गीकरण है। सम्राट अशोक के शासनकाल में वन्य जीवों के संरक्षण के लिये विविध नियम प्रतिपादित किये गये थे। रेखांकित कीजिये कि यह सब उन आधुनिक सभ्यताओं के आगमन से बहुत पहले के विवरण हैं जिनका लिखा भारतीय पाठ्यपुस्तकों के लिये पत्थर की लकीर बन गया है। 


प्राचीन शास्त्रों में पर्यावरण के विभिन्न आयामों को कितनी खूबसूरती से विवेचित किया गया है इसके कुछ उदाहरण लेते हैं। हम प्रकृति के साथ मात्रा-पुत्र का सम्बंध मानते थे - माता भूमि: पुत्रोअहं पृथिव्या: (अथर्ववेद)। मत्स्यपुराण में अधिक स्पष्ट उल्लेख है कि दस कुओं के बराबर एक बावड़ी होती है, दस बावड़ियों के बराबर एक तालाब, दस तालाबों के बराबर एक पुत्र है और दस पुत्रों के बराबर एक वृक्ष होता है - दशकूपसमा वापी दशवापीसमो ह्रदः। दशह्रदसमः पुत्रः दशपुत्र समो द्रुमः। वृक्षों के प्रति हमारी पुरातन समझ कहती है - वृक्ष जल है, जल अन्न है, अन्न जीवन है - 'वृक्षाद् वर्षति पर्जन्य: पर्जन्यादन्न सम्भव:। वृक्ष और वनस्पति हमें सुख और स्वास्थ्य प्रदान करते रहें - शं न ओषधीर्वनिनो भवंतु (ऋग्वेद)। मनुस्मृति में उल्लेख है कि रात्रि में किसी वृक्ष के नीचे नहीं जाना चाहिये, आज इस तथ्य के पीछे हम कारबनडाईऑक्साईड के उत्सर्जन को कारक और सत्य मानते हैं – रात्रौ च वृक्षमूलानि दूरत: परिवर्जयेत। प्राचीन शास्त्र जल प्रदूषण को पारिभाषित भी करते हैं। ध्यान रहे कि वह समय औद्योगीकरण का नहीं था अर्थात वृहद प्रदूषण जैसी समस्यायें सामने नहीं थीं तब भी हम जल, वायु और मृदा को क्यों और कैसे शुद्ध करें यह जानते समझते थे। जल का महिमामण्डन करते हुए ऋग्वेद कहता है कि जल सभी औषधियों वाला है - आपश्च विश्वभेषजी। शतपथ ब्राम्हण में उल्लेख है कि जल ही जगत की प्रतिष्ठा है - आपो वा सर्वस्य जगत प्रतिष्ठा। मनुस्मृति स्पष्ट करती है कि उन समयों में प्रदूषित जल को निर्मली के फल से शुद्ध किया जाता था। इससे मिट्टी और दूषित कण नीचे बैठ जाते थे। जल को मोटे वस्त्र से छान कर पिया जाता था – फलं केतरूवृक्षस्य यद्यप्यम्बु प्रसादकम। न नामग्रहणादेवतस्य वारि प्रसीदति । 


जल के विभिन्न स्त्रोंतो पर भी प्राचीन शास्त्रों का ध्यान गया है। ऋग्वेद में उल्लेख है कि शन्नो अहिर्बुधन्य: शं समुद्र: अर्थात समुद्र के गहरे तलीय जल भी हमारे लिये सुख के प्रदाता हों। अथर्ववेद में उल्लेखित है कि मरुस्थल से मिलने वाला, अनूप प्राप्त होने वाला, कुंवे से प्राप्त होने वाला और संग्रहित किया हुआ जल स्वास्थ्यवर्थक और शुद्ध हो – शन आपो धन्वन्या शमुसंत्वनूपया शन: खनित्रिमा आप शमु या कुम्भ आभृता। वराहमिहिर रचित बृहत्संहिता में एक उदकार्गल (जल की रुकावट) नामक अध्याय है जिसके अंतर्गत भूगर्भस्थ जल की विभिन्न स्थितियाँ और उनके ज्ञान संबंधी संक्षेप में विवरण प्रस्तुत किया गया है। इसी प्रकार ऋग्वेद में कई स्थानों पर वायु और उसकी शुद्धि की कामना व उल्लेख है। वायु से दीर्घजीवन की प्रार्थना करते हुए उसे हृदय के लिये परम औषधि, कल्याणकारी और आनंददायक कहा गया है – वात आ वातु भेषजं शंभु मयोन्यु नोहृदे। प्रण आयूंषि तारिषत। उल्लेख है कि अंतरिक्ष धूल, धुँवे आदि से मुक्त रहे जिससे कि स्पष्ट देखा जा सके - शमंतरिक्ष दुश्येनो अस्तु। अंतरिक्ष में कल्याणकारी वायु चलती रहे - शनो भवित्र शमु अस्तु वायु। वायु एक स्थान पर बद्ध न हो कर दूषि पर अर्थात स्वच्छ रूप से दायें बायें प्रवाहित होती रहे - शं न दूषिपरो अभिवातु वात। प्राचीन शास्त्र भूमि के जल प्रदूषण से सम्बंध को भी स्थापित करते हैं। तैत्तरीय आरण्यक स्पष्ट करता है कि शौच क्रिया जल, अग्नि, उद्यान में, वृक्ष के नीचे, शस्ययुक्त क्षेत्र, बस्ती तथा देवस्थान के पास नहीं करना चाहिये – नाप्सु मूत्रपुरीषं कुर्यात न निष्ठीवेत न विवसन: स्नायात गुह्यतो वा इवोग्नि:।

प्राचीन ज्ञान आपको पर्यावरण के प्रति समझ विकसित करने का व्यापक आयाम प्रदान करता है। इन शास्त्रों से उद्धरित ज्ञान ही जाने अनजाने हमारी परम्परा बन गया। हिन्दू धर्मशास्त्रों में वर्णित अनेक विधान विभिन्न तरह की वृक्ष पूजाओं को प्रोत्साहित करते हैं। तमिल रामायण के अनुसार यदि कोई मनुष्य अपने जीवन काल में दस आम के वृक्ष लगा लेता है तो वह निश्चित रूप से स्वर्ग का भागी बनता है। बिल्वपत्र के वृक्ष को अमावस के दिन प्रातः जल चढ़ाकर धूप-दीपकर उसकी जड़ों में 50 ग्राम के लगभग शुद्ध गुड़ का चूरा रखने से अनेक रोगों से मुक्ति मिलती है। बारीकी से देखा जाये तो बिल्वपत्र के वृक्ष तो संरक्षण हुआ ही आस पास रहने वाली चींटियों और अन्य कीट पतंगों की भी दावत हो गयी। संरक्षण को धर्म के साथ जोडने के फलस्वरूप पीपल-बट-आम-नीम आदि के कई वृक्ष समाज की बाध्यता स्वरूप सुरक्षित रह गये हैं। बहुत से जीव-जंतु देवी-देवताओं के साथ सम्बद्ध हैं और उन्हीं के साथ पूजे जाते हैं। शेर, हंस, मोर और यहां तक कि उल्लू और चूहे भी तुरन्त दिमाग में आ जाते हैं जो कि देवी दुर्गा और उनके परिवार से संबंधित माने जाते हैं जिनकी दुर्गा पूजा के दौरान पूजा होती है। परम्परावादी लोग कभी भी तुलसी (ऑसिमम सैंक्टम) या पीपल (फाइकस बंगालेन्सिस) के पौधे को नहीं उखाड़ते, चाहे वह कहीं भी उगा हुआ हो। प्रायः परम्परागत धार्मिक क्रियाओं या व्रत के दौरान कोई न कोई वनस्पति प्रजाति महत्वपूर्ण मानी जाती है। ये तो कतिपय उदाहरण भर हैं हम पर्यावरण संरक्षण की मौलिक अवधारणा रखते हैं। कबीर परम्परावादी नहीं थे लेकिन वे भी जब व्यंग्य का सहारा लेते थे तब भी प्रकृति और पर्यावरण ही उनके बिम्ब बने। यह उदाहरण देखें कि निर्जीव प्रतिमा के लिये पेडों की पत्ती तोडने का क्या औचित्य वस्स्तु: पत्ती-पत्ती में शिव का वास होता है - भूली मालिन पाती तोडे, पाती पाती सीव। जो मूरति को पाती तोडे, सो मूरति नरजीव।
राजीव रंजन प्रसाद, 
सम्पादक, साहित्य शिल्पी ई पत्रिका
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अहियापुर में अपराधियों ने बाइक सवार से 26 लाख रुपए लूटे

Posted: 24 Aug 2020 10:22 PM PDT

मुजफ्फरपुर के अहियापुर में सात अपराधियों ने बाइक सवार से 26 लाख रुपए लूट लिए। घटना मंगलवार सुबह राघोपुर चौक के पास घटी।

मुसाफिर पासवान के लिए काम करने वाले मुकेश शाही बाइक से पैसे लेकर जा रहे थे। राघोपुर चौक के पास सात अपराधी पहले से घात लगाए हुए थे। अपराधियों ने बाइक को ओवरटेक किया और मुकेश को रोक लिया। यहां गन प्वाइंट पर उससे रुपए से भरा बैग लूट लिया।



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वारदात को अंजाम देने के लिए राघोपुर चौक के पास सात अपराधी पहले से घात लगाए हुए थे।


source https://www.bhaskar.com/local/bihar/news/bihar-muzaffarpur-seven-criminals-rob-26-lakhs-from-bike-riders-in-ahiyapur-127650406.html

मास्क जांच के दौरान वसूला 950 रुपए जुर्माना

Posted: 24 Aug 2020 10:22 PM PDT

पुलिस अधिकारियों ने रविवार को शहर में बिना मास्क के घूम रहे 19 लोगों को पकड़कर प्रति व्यक्ति 50 रुपए की दर से कुल 950 रुपए के जुर्माना राशि की वसूली की। जानकारी के अनुसार कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए सदर एसडीओ वृंदालाल ने आदेश जारी किया है कि बिना मास्क के शहर में घूमने वाले लोगों से जुर्माना की वसूली की जाए ताकि लोग जिला प्रशासन के निर्देश का पालन कर सकें। ज्ञात हो कि हर रोज बिना मास्क के शहर में घूम रहे लोगों को पकड़ कर पुलिस जुर्माना तो वसूल रही है फिर भी लोग इसके प्रति जागरूक नहीं हो रहे हैं। एसपी संजय कुमार ने कहा कि मास्क जांच अभियान जारी रहेगा।



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source https://www.bhaskar.com/local/bihar/muzaffarpur/madhepura/news/950-rupees-fine-during-mask-check-127647548.html

स्वजातीय स्वाभिमान का सम्बल

Posted: 24 Aug 2020 10:19 PM PDT

स्वजातीय स्वाभिमान का सम्बल

" पुनर्मूषिको भव !"— एक चुहिया और ऋषि की संस्कृत कथा का हिन्दी रुपान्तरण काफी प्रसिद्ध है— चुहिया पर दया करके ऋषि ने क्रमशः योनि परिवर्तन करते हुए विकास पथ दिखलाया, किन्तु सबसे महान रहने के चक्कर में, अन्ततः उसे चुहिया ही बना डाला, क्यों कि उसे कोई और योनि रास नहीं आयी। कथा सुप्रसिद्ध है, इसलिए कथा-विस्तार में न जाकर, कथ्य की बात करता हूँ। चुहिया के जन्मगत संस्कार ही प्रबल होकर, उसे पुनः चुहिया ही बनने रहने को विवश किया। इसे विपरीत अर्थ में न लेकर, स्वजातीय मोह के अर्थ में लेना चाहिए।

स्वजातीय स्वाभिमान बड़ा ही महत्त्वपूर्ण है। हालाँकि इन दोनों पदों में प्रयुक्त "स्व" का मूल भाव बहुत ही उच्चकोटि का है, किन्तु प्रचलित भाव में अपना / निज के अर्थ में प्रयुक्त होता है। अपनी जाति (पहचान) के प्रति सजग रहने की सतत आवश्यकता है। जरा भी चूके कि पीछे वाला सिर पर सवार होकर, कुचल डालेगा। बाबाधाम के भक्तों को इसका विशेष अनुभव अवश्य होगा। कैसी दुर्दशा होती है उनकी, जो तनकर मजबूती से कतार में खड़े नहीं रहते। कहने को तो वहाँ सभी शिवभक्त ही होते हैं, किन्तु उनमें स्वार्थ (आध्यात्मिक अर्थ में नहीं, प्रचलित अर्थ में) का गट्ठर इतना भारी होता है कि सामने वाले को कुचलने को सदा आतुर रहते हैं।

हर समाज में ऐसे लोग ताक लगाये घूर रहे हैं। मौके की तलाश में हैं। अतः निरन्तर सावधानी वरतने की जरुरत है। कब, कौन, कहाँ चूना लगा दे। धक्के देकर औंधे मुंह गिरा दे और कंधे पर पांव धर कर स्वयं ऊपर उठ जाए।

बकरे वाली एक कहानी सुने होंगे — एक बकरा कुएँ में गिर गया था। निकलने का उपाय नहीं सूझ रहा था। तभी एक दूसरा बकरा वहाँ पहुँचा और पूछा— " क्या बात है भाई ! कुएँ में कैसे गिर पड़े?" पहले वाले बकरे ने अक्लमन्दी दिखायी— " मूरख हो क्या ? कुएँ में गिरा कहाँ हूँ कि पानी पीने नीचे उतरा हूँ। ऐसा पानी तो कहीं दूर-दूर तक इलाके में नहीं है।" दूसरे बकरे ने आव देखा न ताव, चट कूद पड़ा कुएँ में। पहला बकरा तो इसी ताक में था। चट उसके कंधे पर सवार हुआ और छलांग लगाकर कुएँ से बाहर निकल भागा । दूसरा बकरा मिमियाते रह गया।

यदि आप कुलगौरव, संस्कार, स्वाभिमान खो बैठे हैं, आधुनिकता की आँधी में आँखें चकाचौंध हो गयी हैं, तो जान लीजिये कि आपकी भी दुर्गति उस दूसरे बकरे जैसी ही होनी तय है। त्राण पाने का कोई उपाय नहीं है।

"स्व" का संज्ञान लिया नहीं कभी, जिसका नतीजा है कि चौरासी लाख योनियों में न जाने कब से भटक रहे हैं, कब तक भटकते रहेंगे। और नहीं तो कम से कम इस मानव-योनि का तो समादर करें। सौभाग्य से अच्छे कुल में पैदा हुए हैं। अच्छे संस्कार रहे हैं हमारे वाप-दादाओं के। तो फिर हम भटक क्यों रहे हैं अन्धेरे गलियारे में?

ये नहीं कहता कि विज्ञान और तकनीकि का ज्ञान न लें। समयोचित समुचित शिक्षा तो अनिवार्य है। इसके बिना प्रगति बाधित होगी। वर्ण-व्यवस्था के अनुसार कार्य-पालन आज के समय में कठिन ही नहीं असम्भव और अव्यावहारिक सा है। शास्त्रों ने भी स्पष्ट निर्देश दिया है कि आपात स्थिति में क्रमशः नीचे उतरें, न कि हठात् कूद जाएं- एक दम नीचे। ब्राह्मण लाचारी में व्यापार करना चाहते हैं तो भी चर्म, मदिरा और रस-व्यापार (लवण और अन्य तरल पदार्थ—दूध, घी, तेल इत्यादि) का व्यापार कदापि न करें। किन्तु खटाल खोल कर दूध बेंचने वाले बहुत से बन्धु मिल जायेंगे। किराना व्यापारी भी काफी हैं। अन्य निकृष्ट व्यापार में भी यदाकदा लोग दीख ही जाते हैं।

ऐसा इसलिए कि उनका सोच बदल गया है। दृष्टि बदल गयी है। अर्थ-तुला पर सबकुछ तौला-मापा जा रहा है समाज में। देखा-देखी का बाजार गरम है। स्वाभिमान तिरोहित हो गया है।

जमाने के साथ चलने का ये अर्थ तो नहीं कि अपनी संस्कृति को विसार दें। अपना संस्कार खो दें। पैर तो जमीन पर रहना ही चाहिए, नज़रें भले आसमान पर टिकी हों। जड़ जितना ही गहरा होगा, तना उतनी ही मजबूती से ऊपर उठेगा।
किन्तु हाँ स्वाभिमान अभिमान में न बदल जाए—इसका भी ध्यान रखना होगा। और ऐसा तभी होगा, जब संस्कार का आत्मबल होगा। आजकल ज्यादातर स्वाभिमान अपना रुप बदल कर घूम रहा है समाज में। संस्कार और स्वजातीयता का तेज-दर्प नहीं रह गया है । बल्कि मिथ्या अहंकार ने आ घेरा है। इस घेरे को तोड़कर, साहस और बुद्धिमानी पूर्वक बाहर आना होगा।

अग्नि-तेज को खोकर, राख ही शेष बचता है। सूर्य के अस्त होने पर अन्धकार का ही विकास होता है। अतः स्वाजातीय स्वाभिमान को सही अर्थों में समझकर, संस्कारों को जीवित, जागृत रखना होगा। अन्यथा हम कहीं के न रहेंगे। क्योंकि यही हमारा सम्बल है। यही आधार है। यही पहचान है।

इसी प्रसंग में एक वाकया सुनाता हूँ— डालमिया परिवार सुख्यात है । शहर में कोई कार्यक्रम हो डालमियाजी के सहयोग के बिना अधूरा है। आए दिन प्रायः हर संस्था के लोग हाथ पसारे उनकी ड्योढ़ी पर खड़े मिलेंगे। सप्ताह-दस दिन पर उनका फोन आता और मैं भी उनके घर पहुँच जाता—कुछ मांगने नहीं, बल्कि कुछ देने। जब भी फुरसत में होते पारिवारिक सत्संग हेतु मुझे आहूत करते। ऐसा नहीं कि कुछ मिलता नहीं था, भरपूर मिलता था, किन्तु मांगने की आवश्यकता न थी। मांगना स्वभाव भी नहीं है। पहुँचते के साथ ही सपत्निक उठ कर चरण-स्पर्श करते, कुछ फलाहार कराते और फिर लम्बा प्रसंग छिड़ जाता — धर्म, अध्यात्म, ज्योतिष, तन्त्र, योग कुछ भी विषय । पुनः सत्संग समाप्ति पर बाहर दरवाजे तक सपत्निक आते, चरण-स्पर्श करके विदा करते ।

ऐसे ही एक अवसर पर मैं विदा हो रहा था। मेरा चरण-स्पर्श करके, नजरें ऊपर उठाए तो आठ-दस विप्रों की टोली सामने हाथ जोड़े खड़ी नजर आयी। वे लोग एक समिति के लिए चन्दा उगाही में आए थे। डालमियाजी ने बड़े नीरस भाव से कहा— " आपलोगों की कितनी टोलियाँ हैं? आज तीसरी बार है इस समिति के नाम पर...।"
विप्रगण हाथ जोड़े, खींसें निपोरते हुए बोले—"जी हमलोग की समिति अलग है।"
हेय दृष्टि से उनकी ओर देखते हुए डालमियाजी ने जेब में हाथ डाला और सौ रुपये उनकी ओर बढ़ा दिए। विप्रों ने फिर हाथ जोड़ा और मेरी ओर ईर्ष्या-दग्ध आँखों से देखते हुए वापस चले गए।

वे प्रसन्न होकर चले गए, किन्तु मैं इस दृश्य को देख कर आपादमस्तक तिलमिला उठा। श्रद्धावनत, दानवीर डालमिया की निगाहें भी मुझे तप्त-शलाखों सी चुभती हुयी सी लगी और स्वयं को भी उसी पंक्ति में खड़ा महसूस किया—हाय रे मेरी विरादरी !

उस दिन के बाद कभी उनके दरबार में नहीं गया। एक धनाढ्य बनियें के सामने ब्राह्मणों का हाथ जोड़ना क्या दरशाता है? जातीय स्वाभिमान और कुल-संस्कार यदि जरा भी होता तो क्या किसी ब्राह्मण के आशीर्वाद वाले हाथ प्रणाम मुद्रा में जुड़ते ? कदापि नहीं।

मगर अफसोस कि ऐसे अनगिनत ब्राह्मण धनाढ्यों के द्वार पर चारणवृत्ति में लगे हुए हैं। ऐसे अनेक प्रसंग हैं, जो मन को व्यथित करते रहे हैं । सेठों का गढ़ है कलकत्ता। अन्य महानगरियाँ भी। ब्राह्मणों की शरणस्थली भी है यही है। कलकत्ते के ब्राह्मणों को बहुत करीब से देखने का अवसर मिला है। कुछएक अपवादों को छोड़कर देखा जाए तो सबकी यही गति है। ऐसे विप्र-परिवार भी देखे हैं, जो सेठों के यहाँ रसोईया और "शैरन्ध्री" बने हुए हैं। उनके छाड़न-छूड़न कपड़े तक इस्तेमाल कर रहे हैं। एक ऐसे विप्र को भी अच्छी तरह जानता हूँ, जो नीमतल्ला घाट पर जमावड़ा लगाये बैठे होते हैं। मोटी दक्षिणा के लोभ में "तिलदूध" पीने में भी शरमाते।

"चाकरी" अपने आप में हेय कर्म है चाहे वो चपरासी हो या कलक्टर। हाथ जोड़कर "यस सर, जी साहब" कहने की लत जब एक बार लग जाती है, तो आसानी से छूटती नहीं। और कु-जगह भी हाथ जुड़ ही जाते हैं, जैसे कुत्ते की दुम स्वभावतः हिलने लगती है।

इसे समय की लाचारी कह कर न टालें। अपने आप को पहचानें। अपने सोये ब्रह्मतेज को जगायें। इसी में वर्तमान और भविष्य की भलाई है।

श्राद्धभोजन, दानग्रहण, यहाँ तक कि किसी प्रकार का परान्न भक्षण हमारे संस्कारों को धूमिल कर देता है। धूमिल संस्कार, शनैः-शनैः विलुप्त होते चले जाते हैं। संस्कारों की ऊष्मा तिरोहित हो जाती है। और फिर राख ही बचा रह जाता है। वही राख अभिमान (अहंकार) का रुप ले लेता है। स्वाभिमान और अभिमान में यही तो सूक्ष्म अन्तर है।

भविष्य के द्वार पर नया सबेरा स्वागत के लिए बाहें फैलाये खड़ा है ।
आवश्यकता है आँखें खोलकर बाहर निकलने की। अस्तु।
जयभास्कर।
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कोरोना जांच शिविर का किया गया आयोजन

Posted: 24 Aug 2020 09:22 PM PDT

बगहा-1 प्रखंड की बांसगांव मंझरिया पंचायत के बांसगांव स्थित आदर्श राजकीय उत्क्रमित मध्य विद्यालय के प्रांगण में सोमवार को कोरोना जांच शिविर का आयोजन किया गया। भैरोगंज एपीएचसी के प्रभारी डा. एसएन महतो की देखरेख में आयोजित इस शिविर की व्यवस्था में पंचायत के मुखिया बबलू बैठा ने अहम भूमिका निभाई। मेडिकल टीम में डा. अभय कुमार सिंह, सहयोगी साकेत भगत, अमजद कमाल, विकास कुमार, अफजल अंसारी आदि शामिल थे। खबर लिखे जाने तक दो दर्जन से अधिक लोगों की जांच में कोई भी व्यक्ति पॉजिटिव नहीं मिला था। डा. महतो ने बताया कि जांच अभी जारी है।



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source https://www.bhaskar.com/local/bihar/muzaffarpur/bettiah/news/corona-investigation-camp-organized-127647471.html

हिजड़ों की फौज में (हिंदी ग़ज़ल)

Posted: 24 Aug 2020 08:57 PM PDT

हिजड़ों की फौज में (हिंदी ग़ज़ल)

तमाम‌ जिंदगी जो गुजार दिये मौज में,
लो वे आज निकलें हैं शांति के खोज में।।
आज मितव्ययिता का पाठ पढ़ा रहे हैं देखो,
जो लुटते लुटाते रहे हैं बेमतलब के भोज में।। 
जो खुद हीं कभी बेबस हो नंगे नाचते थे,
कह रहे हैं बसाओ मत किसीको मन सरोज में।।
हमारी चंचल निगाहें देखकर उन्हें शक होता है,
जिनकी दृष्टि फंसी रह गई थी कोमल उरोज में।।
आज सब जगह सबको बताते फिर रहे हैं यार,
नासमझी का असर बहुत होता है मनोज में ।।
ये "मिश्रअणु" है खड़ा खड़ा बस माजरा देख रहा,
क्या खलबली मची है आज हिजड़ों की फौज में।।
         --:भारतका एक ब्राह्मण.
        ©संजय कुमार मिश्र "अणु", वलिदाद,अरवल (बिहार)
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विजातीय गर्तोन्मुख समाज

Posted: 24 Aug 2020 08:53 PM PDT

विजातीय गर्तोन्मुख समाज

युद्धभूमि में अर्जुन को विषाद हुआ तो श्रीकृष्ण जैसे सखा-गुरु ने समाधान के समस्त द्वार खोल दिए। ये आवश्यक नहीं कि सभी सुझाव "प्रत्यक्षतः धर्मोन्मुख" ही हों। इसीलिए कृष्ण ने धर्म को अतिव्यापक रुप से परिभाषित और विश्लेषित किया, क्यों कि अज्ञानतावश प्रायः हम अधर्म को भी धर्म ही समझ लेते हैं। अर्जुन के साथ भी यही समस्या थी— अधर्म को ही धर्म मान बैठा था।

हमारे समाज की भी आज यही दुर्गति है। विडम्बना ये है कि आज श्रीकृष्ण जैसा न तो गुरु है और न अर्जुन जैसा आज्ञाकारी शिष्य और सखा ही। अतः आज की स्थिति पहले से बहुत भयावह है। आदेश तो दूर; ज्ञान,अनुभव व सुझाव भी किसी को देना चाहें तो पचास तरह के कुतर्क करते हुए कहेगा कि आप ही इतना काबिल हैं...।

"विषाद योग" में श्लोकसंख्या ३८ से ४४ तक अर्जुन ने अपनी व्यथा स्पष्ट की है— " कुल के नाशसे उत्पन्न दोषको जानने वाले हमलोगों को इस महापाप से बचने के लिए क्यों नहीं विचार करना चाहिए? " हम इसमें एक और बात जोड़ देते हैं—युगबोध की दलदलीय पगडंडी को राजमार्ग मानने पर क्यों तुले हैं?

विजातीय सम्बन्ध छिपे रुप से पहले भी होते थे। अब खुलेआम हो रहे हैं। क्योंकि पहले भय था समाज का। अब हम निडर या कहें निर्लज्ज हो गए हैं। एक ओर सामाजिक एकता की बात करते हैं और दूसरी ओर सामाजिक मान-मर्यादाओं की धज्जियाँ उड़ाते हैं। आधुनिकता की आँधी में कुल, गोत्र, परम्परा, संस्कार सब तेजी से लुप्त होते जा रहे हैं।

पहले विजातीय सम्बन्ध वाले लोग अपना मूल स्थान छोड़कर, कहीं दूर जा बसते थे – निन्दा-अपमान के भय से। अब उनके ही वंशज समाज में सही ठिकाना तलाश रहे हैं। अनजान व लापरवाहीवश आसानी से ठिकाना मिल भी जा रहा है।

नालियाँ भी नदी में मिल कर अपना कलेवर सहज ही बदल देती हैं। और फिर नदी तो नदी है। ये तय कर पाना असम्भव है कि कौन सा जल-कण नाली का है और कौन सा नदी का। किन्तु ध्यान रहे वो समय ज्यादा दूर नहीं जब नदी ही अपना स्वरुप खो देगी। वरसात के दो-चार दिन छोड़कर विष्णुनगरी गया में फल्गु की धारा का कोई अतापता नहीं होता। परन्तु अन्धश्रद्धावश लोग उससे ही आचमन कर स्वयं को धन्य मान लेते हैं।

छूआछूत की मान्यता पहले विशेष रुप से थी । होटली सभ्यता का इतना विकास नहीं हुआ था । संयमित यात्रायें और प्रवास हुआ करते थे। सत्तू-आटा बांध कर चलते थे लोग। नियम-संयम के डोर में बंधे होते थे। बेटी-रोटी का सम्बन्ध बहुत बारीकी से छानबीन कर करते थे। किन्तु आज आँखें खोलने वाली, सबक सिखाने वाली कोरोना जैसी महामारी में भी छूआछूत की परिभाषा ठीक से समझ नहीं पा रहे हैं हम । खान-पान,रहन-सहन,आवास-प्रवास सब विकृत हो रहे हैं। कुछ वर्षों पूर्व खाने-पीने के लिए जाति-विचार नहीं करते थे। प्रवासीय परिस्थिति या लाचारी—कहकर, निश्चिन्त हो जाते थे। अब वैवाहिक सम्बन्धों के लिए भी जाति-वर्ण-विचार की अनिवार्यता नहीं समझ पा रहे हैं। जो आ रहा है आने दो। जो हो रहा है होने दो...। क्योंकि आँखों के विचलन को ही प्रेम का उपहार मान बैठे हैं। ऐन्द्रिक भ्रष्टता को ही ऐश्वरिक नियति मान लिए हैं।

सेनेटाइजेशन, कॉरेनटाइन और डी.एन.ए. का विकसित विज्ञान तब भी था, किन्तु उसका पैमाना अब जैसा स्थूल सांयन्सवादी न होकर सूक्ष्म विज्ञानवादी था। सप्तकुल और सगोत्र की बात हम समझते थे, मानते भी थे। वैवाहिक गणना क्रम में वर्ण, वश्य, तारा, योनि, ग्रहमैत्री, गण, भकूट और नाड़ी का विचार करते थे। इसकी अपनी वैज्ञानिकता है। अपना मनोविज्ञान है। किन्तु दुःखद बात ये है कि अब "हाइब्रीड कल्चर" का बोलबाला है । हाइब्रीड यानी विशुद्ध वर्णसंकरता ।

अब से कोई ५०-५५ साल पहले की बात है, एक बड़े नेता ने उच्चस्वर से सुझाया था अपनी विरादरी को सम्बोधित करते हुए— " रात में भी घर के दरवाजे खुले रखो...। " ये कोई रामराज्य की घोषणा नहीं, बल्कि असुर-राज्य की परिकल्पना थी। हाइब्रीड का खुला आमन्त्रण था। ५०-५५ वर्षों में दो पीढ़ियाँ खडी हो जाती हैं। हाइव्रीड वाली दो पीढ़ियाँ खड़ी हो चुकी हैं ।

सुनियोजित ढंग से हम गिराये जा रहे हैं। आधुनिकता के नाम पर विजातीयता के अन्धगर्त में सहर्ष छलांग लगाये जा रहे हैं। कोई ऊपर उठने की रणनीति अपना रहा है, कोई नीचे गिरने को ही विकास माने बैठा है। पहले आक्रमणकारियों द्वारा धर्म परिवर्तन कराये जाते थे। विधर्मियों द्वारा अब भी वही क्रम जारी है। तरीका थोड़ा बदला हुआ है। धन-यौवन-प्रलोभन – जो अस्त्र जहाँ काम आ जाए, प्रयोग किया जा रहा है। और सबसे बड़ी बात ये है कि गिरने को हम स्वयं आतुर हों यदि, फिर गिराने वाले का भला क्या दोष !

" अर्जुनविषादयोग " की विकट घड़ी आज भी उपस्थित है। धर्म की परिभाषा फिर से समझने की जरुरत है। कुरुक्षेत्र का मैदान सजा हुआ है तथाकथित धर्मयोद्धाओं से। कौन कटेगा, कौन बचेगा—कहा नहीं जा सकता। फिर भी सोचने-विचारने की आवश्यकता तो है ही। समय है अभी भी —चेतने का। चेताने का। सोचने का। सोचवाने का। अस्तु।
जयभास्कर।
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बाढ़ पीड़ितों के लिए सरकारी मुआवजा देने की मांग की

Posted: 24 Aug 2020 08:23 PM PDT

राजद प्रत्याशी सह राजद बुद्धिजीवी प्रकोष्ठ के जिलाध्यक्ष डॉक्टर देवीलाल यादव ने रविवार को लौरिया प्रखंड क्षेत्र के बसंतपुर पंचायत के बेलवा टोला, भेड़िहारी टोला, तिवारी टोला, बसंपुर, बिनटोली सहित अन्य गांव में जनसंपर्क कर बाढ़ पीड़ितों का जायजा लिया। वही स्थानीय लोगों ने बताया कि इस बाढ़ से हमलोगों के फसल का बहुत ज्यादा नुकसान हुआ है। साथ ही ऐसे विपदा के घड़ी में सरकार के द्वारा दिया गया मुआवजा ही किसानों के लिए बहुत बड़ा सहारा होता है। परन्तु बिहार सरकार द्वारा मुवावजा देने का कोई सुगबुगाहट ही नहीं है।

जिससे किसानों में खासा मायूसी है। जबकि किसानों का नकदी फसल धान, गन्ना मुख्य फसल है, ये दोनों फसलें बाढ़ के चपेट में आने से काफी नुकसान हुआ है। डॉ. देवीलाल यादव ने बताया कि महिलाओं के लिए भी घर चलाना बहुत मुश्किल हो रहा है। मौके पर लाल बिहारी साह, योगेंद्र पासवान, सोनू, दिनेश यादव नवल कुमार, ललन यादव आदि कार्यकर्ता उपस्थित रहे।



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source https://www.bhaskar.com/local/bihar/muzaffarpur/lauria/news/demand-for-government-compensation-for-flood-victims-127647494.html

डुमरिया सीएचसी परिसर में भरा पानी, मरीजों को उठाकर ले जाते हैं परिजन, अंदर मवेशी का डेरा

Posted: 24 Aug 2020 07:22 PM PDT

डुमरिया प्रखंड मुख्यालय के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) में स्वास्थ्य सुविधाएं दम तोड़ रही हैं। इसका खामियाजा सीधे तौर पर मरीजों को भुगतना पड़ रहा है। सुविधाओं में इजाफा होना तो दूर, जो सुविधाएं हैं, वे खस्ताहाल हो चली हैं। समय के साथ अस्पताल की तस्वीर तो बदल गई लेकिन स्वास्थ्य सुविधाओं में कोई सुधार नहीं हो सका।



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Filled water in Dumariya CHC campus, the patients carry the patients, the cattle encampment inside


source https://www.bhaskar.com/local/bihar/patna/dumria/news/filled-water-in-dumariya-chc-campus-the-patients-carry-the-patients-the-cattle-encampment-inside-127650101.html

जिले की गर्भवती महिलाओं को स्वस्थ रखने शुरू होगा पूर्णा अभियान

Posted: 24 Aug 2020 07:22 PM PDT

कलेक्टर की अध्यक्षता में सोमवार को कलेक्टाेरेट सभाकक्ष में टीएल बैठक का आयोजन किया गया। इस अवसर पर लंबित टीएल और सीएम हेल्पलाइन प्रकरणों की विभागवार समीक्षा की गई। बैठक मंे अधिकारियों को समय सीमा में प्रकरण निराकरण के लिए निर्देशित किया गया। साथ ही बैठक में मौजूद अधिकारियों को स्पष्टीकरण जारी करने के निर्देश दिए गए।

मेडिकल वोर्ड दिव्यांगों को प्रमाण पत्र जारी करे: कलेक्टर ने सीएम हेल्पलाइन के प्रकरणों की समीक्षा करते हुए अधिकारियों को निर्देशित किया कि प्राकृतिक प्रकोप से संबंधित शिकायतों का शत प्रतिशत निराकरण एक सप्ताह के अंदर करें। कलेक्टर ने सीएमएचओ और सिविल सर्जन को निर्देश दिए कि जिले के दिव्यांगजनों को मेडिकल बोर्ड से प्रमाण पत्र जारी करवाने की कार्रवाई की जाए। ताकि सभी पात्र हितग्राहियों को शासन की विभिन्न योजनाओं का लाभ प्रदान किया जा सके।

हाई रिस्क के लक्षण वाली गर्भवती महिलाओं का फॉलोअप होगा
कलेक्टर ने बैठक के दौरान डिप्टी कलेक्टर एवं महिला बाल विकास विभाग के प्रभारी अधिकारी राहुल सिलाड़िया को निर्देश दिए कि जिले में मातृ एवं शिशु मृत्यु दर को कम करने हेतु पूर्णा अभियान शुरू किया जाए। उन्होंने बताया कि इस अभियान के तहत प्रत्येक आंगनबाड़ी केंद्र में पंजीकृत गर्भवती महिलाओें का गर्भधारण के दौरान कम से कम एक बार पूर्ण स्वास्थ्य परीक्षण डॉक्टरों द्वारा किए गए। हाई रिस्क के लक्षण वाली गर्भवती महिलाओं का नियमित फॉलोअप किया जाएगा। स्वास्थ्य परीक्षण हेतु महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा समय-समय पर शिविर आयोजित किए जाएंगे।

आवारा घूम रही गायों व मवेशियों को गौशाला में भेजने के निर्देश
कलेक्टर शीलेंद्र सिंह ने उप संचालक पशु चिकित्सा सेवाओं को जिले के सभी विकासखंडों में सड़क पर आवारा घूम रही गायों व मवेशियों को निर्माण की जा चुकी गौ-शालाओं में भेजने के कार्य के साथ इन मवेशियों के स्वास्थ्य परीक्षण के निर्देश दिए। बैठक के दौरान कलेक्टर ने एलडीएम को निर्देशित किया कि वे सभी बैंकों के साथ समन्वय बनाकर सुनिश्चित करें कि केंद्र सरकार व राज्य शासन द्वारा चलाई जा रही पीएम स्वनिधि योजना के तहत स्वीकृत ऋण राशि का वितरण संबंधित बैंक द्वारा जल्द से जल्द कराया जाए, ताकि योजना का लाभ सभी पात्र हितग्राही को मिल सके।

आधार सीडिंग का 85 प्रतिशत काम पूरा
खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत पात्र परिवारों के सदस्यों के आधार सीडिंग प्रगति कार्य की समीक्षा के दौरान कनिष्ठ आपूर्ति अधिकारी ऋषि शर्मा द्वारा जानकारी दी गई कि जिले में आधार सीडिंग का 85 प्रतिशत कार्य पूर्ण कर लिया गया है। सभी एसडीएम को निर्देशित किया गया कि 30 अगस्त तक शत प्रतिशत आधार सीडिंग का कार्य पूर्ण कराया जाना सुनिश्चित करें। सभी एसडीएम को जिले में अवैध तरीके से खनिज कारोबार करने वाले उत्खननकर्ताओं के प्रकरण पश्चात प्रस्तावित राशि की वसूली की कार्रवाई तत्काल कराने के लिए निर्देश दिए।



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source https://www.bhaskar.com/local/bihar/bhagalpur/chhatapur/news/poorna-campaign-will-start-to-keep-pregnant-women-healthy-in-the-district-127650064.html

मास्क जांच के दौरान वसूला 950 रुपए जुर्माना

Posted: 24 Aug 2020 07:22 PM PDT

पुलिस अधिकारियों ने रविवार को शहर में बिना मास्क के घूम रहे 19 लोगों को पकड़कर प्रति व्यक्ति 50 रुपए की दर से कुल 950 रुपए के जुर्माना राशि की वसूली की। जानकारी के अनुसार कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए सदर एसडीओ वृंदालाल ने आदेश जारी किया है कि बिना मास्क के शहर में घूमने वाले लोगों से जुर्माना की वसूली की जाए ताकि लोग जिला प्रशासन के निर्देश का पालन कर सकें। ज्ञात हो कि हर रोज बिना मास्क के शहर में घूम रहे लोगों को पकड़ कर पुलिस जुर्माना तो वसूल रही है फिर भी लोग इसके प्रति जागरूक नहीं हो रहे हैं। एसपी संजय कुमार ने कहा कि मास्क जांच अभियान जारी रहेगा।



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source https://www.bhaskar.com/local/bihar/muzaffarpur/madhepura/news/950-rupees-fine-during-mask-check-127647548.html

162 स्कूल में सिर्फ 93 में एमडीएम चावल वितरण

Posted: 24 Aug 2020 06:22 PM PDT

बीआरसी में एमडीएम की समीक्षात्मक बैठक की गई। अध्यक्षता एमडीएम के जिला कार्यक्रम पदाधिकारी अखिलेश शर्मा ने किया। सभी सीआरसीसी, बीआरपी तथा एमडीएम प्रभारी उपस्थित थे। चावल वितरण की समीक्षा करते हुए जिला कार्यक्रम पदाधिकारी ने कहा कि कक्षा- एक से आठ तक के नामांकित छात्रों के बीच चावल वितरण करना है। गोदाम से चावल नही मिलने के कारण चावल वितरण में बिलम्ब हो रहा है।

क्षेत्र में कुल 162 स्कूलों में का चावल वितरण करना है। अंतिम अगस्त तक सभी स्कूलों में चावल वितरण हो जाना चाहिए। लेकिन अबतक 109 स्कूलों में ही चावल पहुंच पाया है। अभी 93 स्कूलों में ही अबतक चावल का वितरण हो पाया है। कोरोनाकाल में राहत पहुंचाने के लिए वर्ग- एक से पांच तक के छात्रों को 8 किलो तथा वर्ग 6 से 8 तक छात्रों को 12 किलो चावल देना है। लेकिन बहुत से स्कूलों में सही रूप से चावल नहीं दिया गया। मध्याह्न भोजन प्रभारी तथा संवेदक के साथ- साथ चावल उपलब्ध कराने वाले सरकारी एजेंसियों के लापरवाही के कारण अभी तक सभी स्कूल के बच्चों तक चावल उपलब्ध कराने में अक्षम साबित हुई है।



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source https://www.bhaskar.com/local/bihar/patna/tarari/news/mdm-rice-distribution-in-just-93-in-162-schools-127649932.html

150 बोतल देसी शराब के साथ दो तस्कर गिरफ्तार

Posted: 24 Aug 2020 06:22 PM PDT

अंबा थाना पुलिस ने 150 बोतल देसी शराब के साथ दो बाइक सवार तस्करों को गिरफ्तार किया है। पकड़े गए लोगों में औरंगाबाद निवासी आनंद कुमार गोस्वामी व मनीष कुमार शामिल है। उक्त दोनों तस्करों को अंबा चौक समीप से गिरफ्तार किया गया है। थानाध्यक्ष वीरेंद्र पासवान ने बताया कि गुप्त सूचना मिली थी कि बाइक सवार तस्कर हरिहरगंज की ओर से शराब की खेप लेकर औरंगाबाद जाने वाले हैं। सूचना के आधार पर अंबा चौक समीप सघन वाहन जांच अभियान चलाया गया। इस दौरान झारखंड की ओर से आ रहे एक अपाची बाइक को रुकवाकर उस पर लदे बैग की जांच की गई तो 150 बोतल देसी शराब बरामद हुआ। बाइक व शराब को जब्त करते हुए तस्करों को गिरफ्तार कर थाना लाया गया तथा उनके विरुद्ध थाने में बिहार राज्य संशोधित उत्पाद अधिनियम के तहत मामला दर्ज कर उन्हें रिमांड के लिए कोर्ट भेज दिया गया।
पांच लीटर शराब के साथ तस्कर धराया
इधर मदनपुर पुलिस ने पांच लीटर महुआ शराब के साथ एक तस्कर को गिरफ्तार किया है। मदनपुर थाना क्षेत्र के मिश्र बिगहा से गिरफ्तार किया गया है। गिरफ्तार शराब तस्कर बीरेन्द्र भुईयां उसी गांव का रहने वाला है। थानाध्यक्ष पंकज कुमार सैनी ने बताया कि रविवार की रात गुप्त सूचना मिली कि उक्त तस्कर द्वारा काफी दिनों से शराब की तस्करी की जा रही है। जहां से एक गैलन में भरकर रखे गए पांच लीटर महुआ शराब के साथ धंधेबाज को दबोच लिया गया।



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Two smugglers arrested with 150 bottles of desi liquor


source https://www.bhaskar.com/local/bihar/patna/aurangabad/news/two-smugglers-arrested-with-150-bottles-of-desi-liquor-127649927.html

रेलवे स्टेशन, मंदिर और टाउन को रोटरी क्लब ने सौंपा इन्फ्रारेड थर्मामीटर

Posted: 24 Aug 2020 06:22 PM PDT

रोटरी क्लब बिहारशरीफ़ द्वारा वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के पहचान के लिए शरीर का तापमान जांचने के बिहारशरीफ रेलवे स्टेशन, भराव पर देवी मंदिर, धनेश्वर घाट मंदिर एवं साई मंदिर जलालपुर और बिहार थाना प्रभारी को एक -एक इन्फ्रारेड थर्मामीटर उपलब्ध कराया गया है। प्रोजेक्ट चेयरमैन संजीव कुमार सिन्हा ने बताया कि रोटरी क्लब विश्वस्तरीय सामाजिक संगठन है। कोरोना महामारी के दौर में रेलवे स्टेशन,मंदिर और थाना में लोग अपनी फरियाद लेकर आते है। उन्होने बताया कि धार्मिक स्थलों के खुलने का बाद भीड़ उमड़ने की संभावना है। इसमें कोविड-19 से सुरक्षा आवश्यक है।



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जिले में 2 खाद दुकानाें का लाइसेंस रद्द, 15 निलंबित व 14 दुकानादारों से स्पष्टीकरण

Posted: 24 Aug 2020 06:22 PM PDT

जिलाधिकारी कुंदन कुमार ने कहा कि जिले में यूरिया की कमी को पूरा करने के लिए विभागीय स्तर से कार्रवाई की गई है। सप्ताह में यूरिया के दो रैक बेतिया पहुंच जायेंगे। जिससे यूरिया की किल्लत खत्म हो जायेगी तथा प्रत्येक किसानों को पर्याप्त मात्रा में यूरिया उपलब्ध हो पाएगा। कार्यालय प्रकोष्ठ में डीएम कृषि विभाग के कार्यों की समीक्षा के दौरान संबंधित अधिकारियों को निर्देशित कर रहे थे। उन्होंने जिला डीएओ को सख्त हिदायत दिया कि जिले के सभी अनुज्ञप्तिधारी उर्वरक विक्रेताओं के प्रतिष्ठान पर किसान सलाहकार,कृषि समन्वयक एटीएम की प्रतिनियुक्ति की जाए। उनकी निगरानी में यूरिया का वितरण व बिक्री करवाना सुनिश्चित किया जाय।जिले में अबतक कुल 50 उर्वरक विक्रेताओं के प्रतिष्ठानों पर छापेमारी की गयी है।

छापेमारी के दौरान 31 उर्वरक विक्रेताओं के यहां अनियमितता पाई गयी है। अनियमितता करने वाले जिले के 15 उर्वरक विक्रेताओं का अनुज्ञप्ति निलंबित कर दिया गया है। साथ ही 02 दुकानदारों का अनुज्ञप्ति रद्द भी किया गया है। वहीं 14 अन्य उर्वरक विक्रेताओं से स्पष्टीकरण की मांग की गई है। स्पष्टीकरण का जवाब संतोषजनक नहीं पाये जाने पर उक्त उर्वरक विक्रेताओं के विरूद्ध विधिसम्मत कार्रवाई की जाएगी। डीएओ को निर्देश दिया गया कि कृषि विभाग एक व्हाट्सएप नंबर अविलंब जारी करें, ताकि जिले के किसानों को यूरिया की कालाबाजारी तथा अन्य समस्या उत्पन्न होने पर तुरंत इसकी शिकायत कर सकें।



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source https://www.bhaskar.com/local/bihar/muzaffarpur/bettiah/news/license-of-2-fertilizer-shops-in-the-district-canceled-15-suspended-and-14-clarifications-from-shopkeepers-127647528.html

राजद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पद से इस्तीफा वापस नहीं लेंगे रघुवंश

Posted: 24 Aug 2020 05:22 PM PDT

राजद के वरिष्ठ नेता डाॅ. रघुवंश प्रसाद सिंह पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पद से इस्तीफा वापस नहीं लेंगे। उन्होंने कहा कि हमने एक बार जो फैसला कर लिया तो पीछे नहीं हट सकते हैं। हमने न तो कभी अपने सिद्धांतों से समझौता किया है और न ही आगे करेंगे। दिल्ली एम्स में भर्ती डाॅ. रघुवंश प्रसाद ने कहा कि यहां आकर तेजस्वी ने मेरे स्वास्थ्य का हालचाल जाना, मुझे अच्छा लगा। पर, इसका मेरे इस्तीफा प्रकरण से कोई संबंध नहीं है।

मैं पार्टी में बना रहूंगा और आगे का फैसला स्वस्थ होकर लौटने के बाद लूंगा। रघुवंश बाबू ने अपने चुनावी प्रतिद्वंदी रामा सिंह को राजद में शामिल कराए जाने के फैसले से नाराज होकर पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के पद से इस्तीफा दिया था। पटना में कोरोना के साथ रघुवंश बाबू को निमोनिया भी हो गया था, जिससे वे अबतक पूरी तरह उबर नहीं पाए हैं।

समुद्र से एक लोटा पानी निकल भी जाए तो क्या फर्क पड़ेगा
पटना|लालू प्रसाद के बड़े बेटे तेजप्रताप यादव ने रघुवंश प्रसाद की नाराजगी पर कहा कि रघुवंश प्रसाद सिंह पार्टी के वरिष्ठ नेता हैं। उनको मना लिया जाएगा। यह कहने पर कि उन्होंने अपने पद से इस्तीफा वापस नहीं लेने की बात कही है तो तेजप्रताप ने कहा कि समुद्र से एक लोटा पानी निकल भी जाए तो उससे क्या फर्क पड़ेगा।



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source https://www.bhaskar.com/local/bihar/patna/news/raghuvansh-will-not-withdraw-his-resignation-as-rjd-national-vice-president-127649755.html

अहंकार पर विजय पाना ही मार्दव धर्म

Posted: 24 Aug 2020 05:22 PM PDT

दिगंबर जैन समाज की ओर से मनाए जानेवाले दस दिवसीय महापर्व पर्युषण के दूसरे दिन सोमवार को उत्तम मार्दव धर्म की पूजा से हुई। पर्युषण पर्व का द्वितीय दिवस उत्तम मार्दव नामक दिवस है जो अहंकार पर विजय प्राप्त करने की कला को समझने और सीखने का दिन होता है।

व्यक्ति के लिए यह आवश्यक है कि वह अहंकार को त्याग कर दूसरों के प्रति विनम्रता के साथ मृदुता का आचरण करे। अहंकार इंसान की एक बहुत बड़ी कमजोरी है। सत्ता, संपदा और शक्ति को पाकर भले हम अहंकार करने लगें, पर इसका स्थायित्व नहीं है। अहंकार से हम फूल तो सकते हैं, पर फैल नहीं सकते।दिगंबर जैन मंदिर में दूसरे दिन भी अधिक श्रद्धालु पहुंचे
मीठापुर दिगंबर जैन मंदिर में शांतिधारा त्रिलोकचंद निर्मल कुमार जैन कासलीवाल ने कराई। संध्या आरती महावीर प्रसाद संजय कुमार जैन ने करवाई। मौके पर विजय जैन कासलीवाल, सुरेंद्र जैन मौजूद थे। मुरादपुर दिगंबर जैन मंदिर में शांतिधारा पुजारी सुबोध जैन फंटी ने करवाई। कांग्रेस मैदान दिगंबर जैन मंदिर में दूसरे दिन श्रद्धालुओं की संख्या अधिक रही।



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source https://www.bhaskar.com/local/bihar/patna/news/mardava-religion-is-to-overcome-ego-127649742.html

वार्डों में सफाई कार्य की समीक्षा करेंगे कार्यपालक पदाधिकारी

Posted: 24 Aug 2020 05:22 PM PDT

माेहल्लों में सफाई सही से हो रही है या नहीं, इसकी ऑन स्पॉट समीक्षा जरूरी है। इसे गंभीरता से पूरा कराया जाए। स्वच्छता सर्वेक्षण में खराब प्रदर्शन के बाद मेयर सीता साहू ने स्वच्छता को लेकर चल रहे अभियान की जानकारी ली है। मेयर ने सोमवार को नूतन राजधानी व पाटलिपुत्र अंचल में चल रही योजनाओं की समीक्षा की। बैठक के दौरान उन्होंने कार्यपालक पदाधिकारी को निर्देश दिया कि वे स्वयं सफाई व स्वच्छता को लेकर चल रहे कार्यक्रमों की नियमित समीक्षा करें।

मेयर ने स्पष्ट तौर पर कहा है कि हर रोज क्रम बनाकर ईओ को वार्ड का निरीक्षण करना चाहिए। ताकि योजनाओं को जमीन स्तर पर लागू किया जाए। उच्चाधिकारियों के वार्डों में लगातार जाकर स्थिति को देखने का असर कर्मचारियों पर पड़ेगा। उन्होंने अतिक्रमण हटाओ अभियान में भी तेजी लाने को कहा। अतिक्रमण से शहर की सूरत खराब दिखती है।

जलजमाव जैसी स्थिति का जायजा ले अधिकारी

वार्डों के निरीक्षण के क्रम में अधिकारियों को जलजमाव जैसी स्थिति का भी जायजा लेने और उसे दूर करने के लिए आवश्यक कार्यक्रम तैयार करने का निर्देश दिया गया है। मेयर ने कहा कि जलजमाव जैसी स्थिति को दूर करने के लिए हर जरूरी संसाधन की उपलब्धता कराई जानी चाहिए।



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Executive Officer to review cleaning work in wards


source https://www.bhaskar.com/local/bihar/patna/news/executive-officer-to-review-cleaning-work-in-wards-127649726.html

ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा की अद्भुत मिसाल थे अरुण जेटली : डॉ. जायसवाल

Posted: 24 Aug 2020 05:22 PM PDT

पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली की प्रथम पुण्यतिथि पर उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए भाजपा प्रदेश अध्यक्ष डॉ. संजय जायसवाल ने उन्हें ईमानदारी और कर्तव्य निष्ठा की अद्भुत मिसाल बताया। कहा कि भारतीय राजनीति में ऐसे बिरले ही नेता हुए हैं, जिन्होंने बिना किसी राजनीतिक पृष्ठभूमि के, केवल अपनी मेहनत की बदौलत राष्ट्रीय स्तर पर अपनी ऊंची और अलग पहचान बनायी। वे जिन पदों पर रहें, वहां उन्होंने अपनी अलग छाप छोड़ी। मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में लिए गये कई ऐतिहासिक फैसलों को जमीन पर उतारने में उनकी अहम भूमिका थी।

यह उन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भरोसा ही था कि उनके बतौर वित्त मंत्री रहते नोटबंदी, जीएसटी, इनसॉल्वेंसी एवं बैंकरप्शी कोड, जनधन योजना, कैश ट्रांसफर जैसे कई ऐतिहासिक फैसले लिए गए। इसके अलावा देश की टैक्स व्यवस्था में क्रांतिकारी बदलाव लाने वाला जीएसटी भी जेटली के अथक प्रयासों का ही प्रतिफल है। यह उनकी बुद्धिमता व तर्कशीलता ही थी, जिनके कारण इन सारे फैसलों और योजनाएं की राह में विपक्ष द्वारा खड़ी की गयी कोई बाधा टिक नहीं पायी थी। उन्हाेंने कहा कि बिहार से भी जेटली का पुराना नाता रहा है। वह भले ही बिहार के रहनेवाले नहीं थे, लेकिन उनका बिहार से विशेष लगाव था। बिहार में एनडीए सरकार बनाने में उनकी काफी प्रमुख भूमिका थी।

राज्यपाल फागू चौहान, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने पूर्व केंद्रीय मंत्री स्व.अरुण जेटली को उनकी पहली पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि दी। राज्यपाल ने कहा कि स्व. जेटली लोकप्रिय राजनेता, कुशल प्रशासक और विलक्षण विधिवेत्ता थे। सकारात्मक कार्य के लिए वे हमेशा याद किए जाएंगे। सीएम ने कहा कि स्व. जेटली विलक्षण प्रतिभा के धनी थे। वे एक उत्कृष्ट न्यायविद भी थे। उन्होंने उच्च राजनीतिक मूल्यों और आदर्शाें की बदौलत सार्वजनिक जीवन में उच्च शिखर को प्राप्त किया था। मेरा उनके साथ व्यक्तिगत संबंध था। मुझे उनकी कमी हमेशा खलेगी। उधर, मोदी ने ट्वीट किया- जेपी के छात्र आंदोलन से निखरे अरुण जेटली ने अपने बेदाग संसदीय जीवन में महत्वपूर्ण योगदान किया। बिहार में एनडीए बनाकर उन्होंने राज्य को अंधी सुरंग से निकाला और विकास के राजपथ पर ला दिया। जेटली की पहली पुण्यतिथि पर उन्हें शत्-शत् नमन।



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Arun Jaitley was a wonderful example of honesty and honesty: Dr. Jaiswal


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एन आर ए- नौकरी चाहने वालों के लिए जीवन की सुगमता का द्वार (भारत के युवाओं के लिए मोदी सरकार का क्रांतिकारी सुधार)

Posted: 24 Aug 2020 07:48 AM PDT

एन आर ए- नौकरी चाहने वालों के लिए जीवन की सुगमता का द्वार (भारत के युवाओं के लिए मोदी सरकार का क्रांतिकारी सुधार)

 

डॉ. जितेंद्र सिंह,केंद्रीय राज्यमंत्री  (स्वतंत्र प्रभार),एमओएस(पीपी)

केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा राष्ट्रीय भर्ती एजेंसी(एनआरए) के रूप में ऐतिहासिक एवं क्रांतिकारी नियुक्ति सुधार के पारित किए जाने के बाद प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी देश के युवाओं के बीच पहुंचे और कहा कि यह पहल करोड़ों युवाओं के लिए एक वरदान साबित होगी। उन्होंने कहा कि इससे तमाम तरह की परीक्षाएं देने की जरूरत नहीं होगी जिससे कीमती समय और संसाधनों की भी बचत होगी। श्री मोदी ने यह भी कहा कि एनआरए की स्थापना से पारदर्शिता को भी काफी बढ़ावा मिलेगा जो उनके प्रशासन मॉडल का केंद्र बिंदु है। राष्ट्रीय भर्ती एजेंसी(एनआरए) नामक मल्टी-एजेंसी संस्था ग्रुप बी और सी (गैर-तकनीकी) पदों के लिए उम्मीदवारों को शॉर्टलिस्ट करने के लिए एक सामान्य पात्रता परीक्षा (सीईटी) आयोजित करेगी। एनआरए में रेल मंत्रालय, वित्त मंत्रालय/ वित्तीय सेवा विभाग, एसएससी, आरआरबी और आईबीपीएस के प्रतिनिधि शामिल होंगे।

 

वर्तमान में केंद्र सरकार की नौकरियों के लिए उम्मीदवारों को अलग- अलग परीक्षाएं देनी होती हैं जो विभिन्न एजेंसियों द्वारा आयोजित की जाती हैं। हर साल केंद्र सरकार में लगभग 1.25 लाख रिक्त पदों के लिए औसतन 2.5 करोड़ से 3 करोड़ उम्मीदवार उपस्थित होते हैं। लेकिन अगले साल से एनआरए एक सामान्य पात्रता परीक्षा (सीईटी) आयोजित करेगा और सीईटी में प्राप्त अंकों के आधार पर कोई भी संबंधित एजेंसी में रिक्ति पदों के लिए आवेदन कर सकेगा। इस प्रकार समय और संसाधनों की बचत के अलावा यह रोजगार की तलाश करने वाले लाखों लोगों के जीवन को सरल बनाने के लिए एक क्रांतिकारी कदम से कम नहीं है।

 

गौरतलब है कि पिछले छह वर्षों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में प्रशासनिक सुधारों के लिए कई कई कदम उठाए गए और कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए हैं। इसी क्रम में दस्तावेजों को किसी राजपत्रित अधिकारी द्वारा सत्यापित कराने की पुरानी प्रथा को खत्म करते हुए स्व-सत्यापन का प्रावधान किया गया। इसके अलावा इसमें निचले स्तर के कर्मचारियों के चयन के लिए साक्षात्कार को खत्म करना, 1500 से अधिक अप्रचलित नियमों/ कानूनों को समाप्त करना, आईएएस अधिकारियों के लिए उनके करियर की शुरुआत में तीन महीने के लिए केंद्र सरकार में सहायक सचिव के रूप में अनिवार्य कार्यकाल, भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम में संशोधन और प्रधानमंत्री के उत्कृष्टता पुरस्कार के लिए नया प्रारूप आदि शामिल हैं।

लेकिन एनआरए एक अनोखा मॉडल है क्योंकि इसे सरकारी भर्ती प्रक्रिया में उल्लेखनीय बदलाव सुनिश्चित होगा। साथ ही यह मोदी सरकार के'युवा रोजगार आकांक्षियों के लिए जीवन की सुगमता' संबंधी मंत्र के अनुरूप भी है जिसके तहत सरकार उम्मीदवारों के लिए भर्ती, चयन और नौकरी बदले में सुगमता सुनिश्चित करना चाहती है। कुल मिलाकर, विभिन्न भर्ती परीक्षाओं का आयोजन न केवल उम्मीदवारों के लिए बल्कि संबंधित भर्ती एजेंसियों के लिए भी एक बड़ा बोझ होता है क्योंकि इसमें अनावश्यक खर्च, कानून व्यवस्था एवं सुरक्षा और जगह संबंधी तमाम समस्याएं शामिल होती हैं। इसलिए, एनआरए अपनी मूल भावना में उम्मीदवारों के लिए कम लागत और सुविधा का एक संयोजन है।

 

परीक्षा केंद्रों तक पहुंचने में सुगमता

 

देश के प्रत्येक जिले में परीक्षा केंद्र तक दूरदराज के क्षेत्रों में रहने वाले अभ्यर्थियों के पहुंचने के लिए सुविधाओं को बेहतर किया जाएगा। साथ ही देश के 117 आकांक्षी जिलों में परीक्षा संबंधी बुनियादी ढ़ांचे के निर्माण पर विशेष ध्यान दिया जाएगा ताकि अभ्यर्थियों को उनके निवास स्थान से समीप के परीक्षा केंद्रों तक पहुंचने में आसानी हो सके। यह विशेष तौर पर पहाड़ी, ग्रामीण एवं दूरदराज के क्षेत्रों में रहने वाले करोड़ों उम्मीदवारों के लिए एक बड़ा वरदान साबित होगा। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि महिला अभ्यर्थियों को अलग-अलग समय में विभिन्न केंद्रों पर इस तरह की परीक्षा देने में काफी समस्याओं का सामना करना पड़ता है लेकिन अब उन्हें लागत, प्रयास, सुरक्षा आदि के संदर्भ में काफी फायदा होगा। नौकरी के अवसरों को लोगों के करीब ले जाना एक बुनियादी कदम है जो युवाओं के लिए जीवन जीने में सुगमता को बेहतर करेगा। एनआरए के जरिये ग्रामीण युवाओं के लिए मॉक टेस्ट आयोजित करने की भी परिकल्पना की गई है और इसका 24x7 हेल्पलाइन एवं शिकायत निवारण पोर्टल होगा।

 

स्कोर की सुगमता- सीईटी स्कोर तीन साल के लिए वैध होगा, प्रयासों पर कोई रोक नहीं

 

एनआरए- सीईटी की संयुक्त पहल की एक अन्य बड़ी विशेषता यह है कि उम्मीदवार का सीईटी स्कोर परिणाम की घोषणा की तारीख से अगले तीन साल की अवधि के लिए वैध रहेगा। सर्वश्रेष्ठ वैध स्कोर को ही उम्मीदवार का वर्तमान स्कोर माना जाएगा। सीईटी में शामिल होने के लिए उम्मीदवार द्वारा किए जाने वाले प्रयासों की संख्या पर कोई पाबंदी नहीं होगी लेकिन वह उम्मीदवार की ऊपरी आयु सीमा पर निर्भर करेगा। हालांकि अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जनजाति/ अन्य पिछड़ा वर्ग एवं अन्य श्रेणियों के उम्मीदवारों को सरकार की मौजूदा नीति के अनुसार ऊपरी आयु सीमा में छूट दी जाएगी। यह उम्मीदवारों के लिए काफी सुविधाजनक होगा क्योंकि फिलहाल उन्हें इन परीक्षाओं की तैयारी करने और उनमें शामिल होने के लिए हर साल काफी मेहनत करनी पड़ती है जिससे उनके समय और धन की बर्बादी होती है।

 

परीक्षा का मानकीकरण

 

एनआरए सभी गैर- तकनीकी पदों के लिए स्नातक, उच्चतर माध्यमिक (12वीं पास) और मैट्रिकुलेट (10वीं पास) उम्मीदवारों के लिए तीन स्तरों के लिए एक अलग सीईटी आयोजित करेगा। वर्तमान में उन पदों के लिए परीक्षाओं का आयोजन कर्मचारी चयन आयोग (एसएससी), रेलवे भर्ती बोर्ड (आरआरबी) और बैंकिंग कार्मिक चयन संस्थान (आईबीपीएस) द्वारा किया जाता है। सीईटी स्कोर स्तर पर की गई स्क्रीनिंग के आधार पर अंतिम चयन के लिए संबंधित भर्ती एजेंसियों द्वारा विशिष्ट स्तरों (II, III आदि) पर अलग-अलग परीक्षाओं का आयोजन किया जाएगा। इस परीक्षा का पाठ्यक्रम एक जैसा होगा जो मानक होगा। इससे अभ्यर्थियों का बोझ काफी हद तक कम हो जाएगा क्योंकि वर्तमान में उन्हें अलग-अलग पाठ्यक्रमों के अनुसार अलग-अलग परीक्षाओं की तैयारी करनी पड़ती है।

 

परीक्षा और परीक्षा केंद्र चुनने में सुगमता

 

उम्मीदवारों को एक साझा पोर्टल पर पंजीकरण करने और केंद्रों का विकल्प देने की सुविधा होगी। उपलब्धता के आधार पर उन्हें केंद्र आवंटित किए जाएंगे। इसका अंतिम उद्देश्य एक ऐसे चरण तक पहुंचना है जहां उम्मीदवार खुद अपनी पसंद के केंद्रों पर परीक्षा दे सकें।

 

विभिन्न भाषाओं की सुगमता

 

सीईटी विभिन्न भाषाओं में उपलब्ध होगी। इससे देश के विभिन्न हिस्सों में रहने वाले के लोगों को परीक्षा देने में काफी सुविधा होगी और उन्हें चयन के लिए समान अवसर मिलेगा। हिंदी और अंग्रेजी के अलावा12 अन्य भाषाओं में इस परीक्षा का आयोजन किया जाएगा। साथ ही संविधान की 8वीं अनुसूची में उल्लिखित सभी भाषाओं को इसमें शामिल करने का प्रयास किया जाएगा। शुरुआत में सीईटी स्कोर का उपयोग तीन प्रमुख भर्ती एजेंसियों द्वारा किया जाएगा। जबकि समय के साथ-साथ इसे केंद्र सरकार की अन्य भर्ती एजेंसियों द्वारा अपनाए जाने की उम्मीद है।

 

इसके अलावा यदि सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र की अन्य भर्ती एजेंसियां भी चाहें तो इसका इस्तेमाल कर सकती हैं। इस प्रकार, सहकारी संघवाद की सच्ची भावना के अनुरूप दीर्घावधि में सीईटी स्कोर को केंद्र सरकार, राज्य सरकारों/ केंद्र शासित प्रदेशों, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों और निजी क्षेत्र की अन्य भर्ती एजेंसियों के साथ साझा किया जा सकता है।

 

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मुख्यमंत्री ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से बिहार राज्य शैक्षणिक आधार भूत संरचना विकास निगम लिमिटेड द्वारा पढ़ाई का किया शुभारंभ

Posted: 24 Aug 2020 07:31 AM PDT

मुख्यमंत्री ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से बिहार राज्य शैक्षणिक आधार भूत संरचना विकास निगम लिमिटेड द्वारा पटना में नव निर्मित भवनों का किया उद्घाटन तथा बिहार के सभी पंचायतों में उच्च माध्यमिक विद्यालय के संचालन के उद्देश्य से 3304 अनाच्छादित पंचायतों में कक्षा नवम की पढ़ाई का किया शुभारंभ 


· शिक्षा के क्षेत्र में शुरू से कार्य किया गया है। आज एक प्रतिषत से भी कम बच्चे स्कूल से बाहर हैं। 

· सभी लड़कियों को इंटर तक पढ़ाया जाए तो न केवल राज्य की प्रजनन दर कम होगा बल्कि शिक्षित होने से उनका मनोबल भी बढ़ेगा। महिलाओं के आत्मविश्वास को बढ़ाने के लिए भी कई कदम उठाए गए हैं। 

· राज्य के पंचायती राज संस्थान एवं नगर निकाय के शिक्षकों के सेवा शर्तों को बेहतर बनाने के लिये नई सेवा शर्त नियमावली लागू कर दी गई है। पूर्व में भी षिक्षकों का वेतन बढ़ाया गया है और आगे भी उन्हें लाभ मिलेगा। 

· सभी षिक्षकों से अनुरोध है कि आप बच्चों को पढ़ायें, उनका पढ़ना देष एवं राज्य के उत्थान के लिये जरूरी है। 

· उन्नयन बिहार की शिक्षा पद्धति को पूरे बिहार में लागू किया जा रहा है। 

· कोविड-19 के संक्रमण काल में शिक्षा से संबंधित योजनाओं यथा बालिका पोशाक योजना, छात्रवृत्ति, मुख्यमंत्री साइकिल योजना, मुख्यमंत्री बालिका प्रोत्साहन योजना, कन्या उत्थान योजना आदि की कुल राषि 2892 करोड़ 20 लाख रूपये डी0बी0टी0 के माध्यम से बच्चों के खाते में अंतरित कर दी गई। 

· आर्यभट्ट ज्ञान के प्रतीक हैं, उसी तरह आर्यभट्ट ज्ञान विश्वविद्यालय की स्थापना के पीछे एक विषिष्ट अवधारणा है जिसे साकार करने के लिए काम करना होगा। 

· वर्ष 2005 तक शिक्षा का बजट 4,366 करोड़ रुपए था जो अब बढ़कर 33 हजार 191 करोड़ रुपए हो गया है, जो राज्य के पूरे बजट का लगभग 20 प्रतिशत है। 

· जब से जनता ने सेवा का मौका दिया है हर क्षेत्र में विकास के कार्य किए गए हैं। लोगों की सेवा ही हमारा धर्म है। हमलोगों का उद्देश्य है हर क्षेत्र में तरक्की हो और युवा पीढ़ी का कल्याण हो। 

· शिक्षा का मतलब सिर्फ पढ़ना नहीं है बल्कि कॉन्शस होना है, ज्ञानी बनना है। 

· बापू के बारे में स्कूलों में बच्चों को बताया जा रहा है। बापू का जीवन एक संदेष है। 

· शिक्षा के क्षेत्र में जितना काम किया गया है तथा जितनी प्रगति हुई है इसकी जानकारी नई पीढ़ी को दें। 

मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार ने आज 1 अणे मार्ग स्थित नेक संवाद में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से बिहार राज्य शैक्षणिक आधारभूत संरचना विकास निगम लिमिटेड द्वारा पटना में नव निर्मित भवनों का उद्घाटन किया तथा बिहार के सभी पंचायतों में उच्च माध्यमिक विद्यालय के संचालन के उद्देश्य से 3304 अनाच्छादित पंचायतों में कक्षा नवम की पढ़ाई का भी शुभारंभ किया। 

मुख्यमंत्री ने मौलाना मजहरुल हक अरबी एवं फारसी विश्वविद्यालय में छात्र-छात्राओं के आवासन हेतु छात्रावास, शैक्षणिक भवन, प्रशासनिक भवन एवं परीक्षा भवन का भी उद्घाटन किया साथ ही आर्यभट्ट ज्ञान विश्वविद्यालय में सेंटर ऑफ एक्सिलेंस की चार शाखाएं- सेंटर ऑफ ज्योग्राफिकल स्टडीज, जर्नलिज्म एंड मॉस कम्यूनिकेशन, नदियों का अध्ययन केंद्र एवं पाटलिपुत्र स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स का उद्घाटन किया तथा आर्यभट्ट ज्ञान विश्वविद्यालय परिसर में महान गणितज्ञ आर्यभट्ट जी की प्रतिमा का भी अनावरण भी किया। इसके अलावा चंद्रगुप्त प्रबंधन संस्थान, पटना में कर्मचारियों के फ्लैट, बालिका छात्रावास का भी उद्घाटन किया गया। 

इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि आज के इस उद्घाटन एवं शुभारंभ कार्यक्रम के आयोजन के लिए शिक्षा विभाग को बधाई देता हूं। कार्यक्रम के दौरान शिक्षा विभाग द्वारा प्रस्तुत लघु फिल्म के माध्यम से बहुत सारी चीजों की जानकारी दी गई। उन्होंने कहा कि हमलोगों की इच्छा थी कि सभी ग्राम पंचायतों में उच्च माध्यमिक विद्यालय बनें। 8386 पंचायतों में से 5082 ग्राम पंचायतों को माध्यमिक विद्यालय से आच्छादित किया जा चुका था। शेष 3304 पंचायतों में आज से नवें क्लास की पढ़ाई शुरु हो जाएगी। 9वें क्लास की पढ़ाई 01 अप्रैल से ही शुरु होनी थी, लेकिन कोरोना संक्रमण के कारण स्कूल नहीं खुले हुए हैं। स्कूल खुलने के बाद बच्चे-बच्चियों की पढ़ाई शुरु कर दी जाएगी। लेकिन नामांकन के प्रक्रिया की शुरुआत अब कर दी जानी चाहिए। 

मुख्यमंत्री ने कहा कि वर्ष 2005 में सरकार में आने के बाद शिक्षा के क्षेत्र में सुधार के लिए कई काम किए गए। मानव विकास मिशन की शुरुआत की गई। जब हम सांसद थे तो क्षेत्र भ्रमण के दौरान एक बच्चे ने अपने पढ़ने की इच्छा जाहिर की थी, मुझे उसकी बातें आज भी याद हैं। सरकार में आने के बाद शिक्षा के क्षेत्र से जुड़ी सभी चीजों का आकलन करवाया ताकि कमियों का पता चल सके और उस पर तेजी से काम किया जा सके। हमलोगों ने आकलन करवाया तो पता चला कि 12.5 प्रतिशत बच्चे स्कूलों से बाहर हैं, इनमें ज्यादातर बच्चे महादलित और अल्पसंख्यक वर्ग के हैं। टोला सेवक एवं तालिमी मरकज की बहाली कर बच्चों को शुरुआती जानकारी देते हुए स्कूल भेजा गया। महिलाओं को अक्षर ज्ञान की जानकारी के लिए अक्षर आंचल योजना की शुरुआत की गई। उन्होंने कहा कि माध्यमिक विद्यालय में बच्चियां गरीबी के कारण स्कूल नहीं जा पाती थीं। शुरुआत में 8वीं कक्षा की लड़कियों के लिए पोशाक योजना की शुरुआत की गई, बाद में पहली कक्षा से 12 वीं कक्षा की लड़कियों के लिए पोशाक के साथ-साथ जूते-बैग वगैरह का भी इंतजाम कराया गया। जब आकलन कराया गया तो 9वीं क्लास में पढ़ने वाली लड़कियों की संख्या 1 लाख 70 हजार थी। वर्ष 2008 में बालिका साईकिल योजना की शुरुआत की गई। लड़कियां गांव से झुंड में साइकिल से स्कूल जाने लगीं तो दृश्य बदल गया। स्कूल जाने वाली लड़कियों की संख्या तो बढी ही साथ ही उनका मनोबल भी बढ़ा। बाद में लड़कों के लिए भी साईकिल योजना की शुरुआत की गई। 

मुख्यमंत्री ने कहा कि जब हमलोग सरकार में आए थे तो उस समय राज्य का प्रजनन दर 4.3 था और अब घटकर यह 3.2 हो गया है। सर्वे से यह पता चला कि पति-पत्नी में अगर पत्नी मैट्रिक पास है तो देश का औसत प्रजनन दर 2 है और बिहार का भी 2 है। पति-पत्नी में अगर पत्नी इंटर पास है तो देश का औसत प्रजनन दर 1.7 है और बिहार का 1.6 है। इस आंकड़े की जानकारी से यूरेका की भावना आयी और हमलोगों ने निर्णय किया कि अगर सभी लड़कियों को इंटर तक पढ़ाया जाए तो न केवल राज्य का प्रजनन दर कम होगा बल्कि शिक्षित होने से उनका मनोबल भी बढ़ेगा। राज्य में महिलाओं के आत्मविश्वास को बढ़ाने के लिए भी कई कदम उठाए गए हैं। राज्य में 10 लाख स्वयं सहायता समूह का गठन किया जा चुका है, जिससे 1 करोड़ 20 लाख से ज्यादा महिलाएं जुड़ चुकी हैं। 

मुख्यमंत्री ने कहा कि पंचायतों में उच्च माध्यमिक विद्यालय में शिक्षा के सारे इंतजाम किए गए हैं। आवश्यकतानुसार वर्ग कक्षों के निर्माण के साथ-साथ बेंच, डेस्क की उपलब्धता करायी गई है। शौचालय एवं पेयजल की व्यवस्था की गई है। एक वर्ग कक्ष को स्मार्ट क्लास रुम के रुप में विकसित करने के लिए टी0वी0 की भी व्यवस्था की जा रही है। जिन विद्यालयों में नए वर्ग कक्ष निर्मित किए गए हैं वहां रेन वाटर हार्वेस्टिंग का कार्य भी कराया गया है। उन्होंने कहा कि स्कूलों से बाहर रहने वाले बच्चे-बच्चियों की संख्या अब 01 प्रतिशत से भी कम रह गयी है। शिक्षा की बेहतरी के लिए बिहार में 3.50 लाख शिक्षकों की बहाली की गई। उन्होंने कहा कि 15 अगस्त को शिक्षकों के संबंध में की गई घोषणा को लागू कर दिया गया है। राज्य के पंचायती राज संस्थान एवं नगर निकाय के शिक्षकों के सेवा शर्तों को बेहतर बनाने के लिये नई सेवा शर्त नियमावली लागू कर दी गई है। इनके सामाजिक सुरक्षा के लिये उन्हें कर्मचारी भविष्य निधि (इंपलाई प्रोविडेन्ट फंड, ईपीएफ) का लाभ दिया जायेगा। 01 अप्रैल 2021 से वेतन वृद्धि को लागू कर दिया जाएगा। वेतनमद में 15 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, इस पर लगभग 1950 करोड़ रुपए व्यय होगा। ई0पी0एफ0 पर 815 करोड़ अतिरिक्त व्यय होंगे। इस योजना के अंतर्गत कुल अतिरिक्त वित्तीय भार 2765 करोड़ रुपए बढ़ेगा। सभी लाभ को जोड़ने के बाद 20 प्रतिशत से ज्यादा का लाभ शिक्षकों को मिलेगा। शुरु से ही हमने शिक्षकों के लिए कभी नियोजित शब्द का प्रयोग नहीं किया है। उन्हें प्रोन्नति का भी अवसर मिलेगा। शिक्षकों के ऐच्छिक स्थानांतरण का भी प्रावधान किया गया है। विश्वविद्यालयों में सहायक प्राध्यापक की बहाली के इच्छुक लोगों की वर्ष 2009 से 2012 के बीच पी0एच0डी0 की अमान्यता और एम0फिल0 संबंधी एतराज की भावनाओं का आदर करते हुए नियुक्ति के आधार में आवश्यक परिवर्तन किया जायेगा। उन्होंने कहा कि शिक्षकों की सुविधा के लिए हमलोग हमेशा प्रयासरत हैं। 

मुख्यमंत्री ने कहा कि उन्नयन बिहार की शिक्षा पद्धति को केंद्र सरकार ने स्वीकार किया है। हर घर तक बिजली पहुंचने से बच्चों को स्मार्ट क्लास रुम का लाभ मिल रहा है। अभी कोरोना संक्रमण के कारण टी0वी0 के माध्यम से बच्चों के लिए शिक्षा की व्यवस्था की गई है। स्कूलों में वीडियो एवं कंटेंट के माध्यम से बच्चों को ऑनलाइन पढ़ाने की जो व्यवस्था शिक्षा विभाग ने की है यह बहुत खुशी की बात है। उन्होंने कहा कि शिक्षा समिति के द्वारा स्कूलों का बेहतर ढंग से निर्माण कराया गया। सभी स्कूलों के लिए चाहारदीवारी बनायी गई। राज्य में कई संस्थानों एवं यूनिवर्सिटी का निर्माण कराया गया। उन्होंने कहा कि इसके अलावे कोविड-19 के दौर में शिक्षा से संबंधित योजनाओं के लिए डी0बी0टी0 के माध्यम से 2892 करोड़ 20 लाख की राशि बच्चों के खाते में अंतरित कर दी गई। बालिका पोशाक योजना, छात्रवृत्ति, मुख्यमंत्री साइकिल योजना, मुख्यमंत्री बालिका प्रोत्साहन योजना, कन्या उत्थान योजना, मध्याह्न भोजन योजना की राशि भी अंतरित कर दी गई है। 

मुख्यमंत्री ने कहा कि उच्च शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए स्टूडेंट क्रेडिट योजना की शुरुआत की गई, जिसमें लड़कियों को 01 प्रतिशत एवं लड़कों को 04 प्रतिशत ऋण पर ब्याज उपलब्ध कराया गया है ताकि वे उच्च शिक्षा प्राप्त कर सकें। उच्च शिक्षा के लिए अब तक 4 हजार करोड़ रुपए का ऋण छात्र-छात्राओं को आवंटित किया जा चुका है। उन्होंने कहा कि छात्र-छात्राएं पढ़ाई पर ध्यान दें, जरुरत हुई तो ऋण माफ भी किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि देश की उच्च शिक्षा दर 24 प्रतिशत है जबकि बिहार की उच्च शिक्षा दर 13.9 प्रतिशत है। राज्य की उच्च शिक्षा दर 30 प्रतिशत से अधिक को प्राप्त करने के लक्ष्य पर काम किया जा रहा है। 

मुख्यमंत्री ने कहा कि मौलाना मजहरुल हक अरबी एवं फारसी विश्वविद्यालय में छात्र-छात्राओं के आवासन हेतु छात्रावास का उद्घाटन, शैक्षणिक भवन, प्रशासनिक भवन एवं परीक्षा भवन का भी आज उद्घाटन कराया गया है। मौलाना मजहरुल हक प्रसिद्ध विभूति थे, जिनसे 10 अप्रैल 1917 को चंपारण यात्रा के दौरान गांधी जी ने मुलाकात की थी। चंपारण सत्याग्रह के 100 वर्ष पूरे होने पर बापू के जीवन एवं उनके संदेशों को स्कूलों के सभी बच्चों तक पुस्तक के माध्यम से जानकारी दी जा रही है। मौलाना मजहरुल हक अरबी एवं फारसी विश्वविद्यालय में अरबी-फारसी की पढ़ाई भी शुरु हो गई है। मदरसा शिक्षा के लिए भी हमलोगों ने सबी तरह की सुविधाएं हमलोगों ने उपलब्ध करायी है। मदरसा शिक्षा बोर्ड अपना काम बेहतर तरीके से करते रहे। 

मुख्यमंत्री ने कहा कि आर्यभट्ट ज्ञान विश्वविद्यालय में सेंटर ऑफ एक्सिलेंस की चार शाखाएं- सेंटर ऑफ ज्योग्राफिकल स्टडीज, जर्नलिज्म एंड मॉस कम्यूनिकेशन, नदियों का अध्ययन केंद्र एवं पाटलिपुत्र स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स की शाखाएं स्थापित की गई हैं। उन्होंने कहा कि हमने जो बाकी तीन शाखाओं के बारे में जो सुझाव दिया है उसकी शुरुआत भी जल्द से जल्द करवाएं। उन्होंने कहा कि आर्यभट्ट ज्ञान विश्वविद्यालय एक साधारण विश्वविद्यालय नहीं है बल्कि अपने आप में 

एक विशिष्ट विश्वविद्यालय है। आर्यभट्ट महान खगोलशास्त्री थे। उन्होंने शून्य की जानकारी दी। पृथ्वी के व्यास की जानकारी दी। इस विश्वविद्यालय की स्थापना के पीछे एक व्यापक अवधारणा है जिसे साकार करने के लिए काम करना होगा। उन्होंने कहा कि चंद्रगुप्त प्रबंधन संस्थान का नामकरण प्रसिद्ध शासक चंद्रगुप्त के नाम पर हुआ है। 

मुख्यमंत्री ने कहा कि वर्ष 2005 में शिक्षा का बजट 4366 करोड़ रुपए था जो अब बढ़कर 33 हजार 191 करोड़ रुपए का हो गया है, जो राज्य के बजट का 20 प्रतिशत है। बिहार एक गरीब राज्य है, बड़ी आबादी वाला राज्य है इसके बावजूद हमलोग शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए काफी खर्च कर रहे हैं। जब से जनता ने सेवा का मौका दिया है हर क्षेत्र में विकास के कार्य किए गए हैं। लोगों की सेवा की है। हमलोगों का उद्देश्य है हर क्षेत्र में तरक्की हो और युवा पीढ़ी का कल्याण हो। 

उन्होंने कहा कि शराबबंदी के पक्ष में मानव श्रृंखला बनायी गई। बाल विवाह एवं दहेज प्रथा के खिलाफ मानव श्रृंखला बनायी गई। जल-जीवन-हरियाली अभियान के पक्ष में 19 जनवरी 2020 को 5 करोड़ 16 लाख लोगों द्वारा 18 हजार कि0मी0 से अधिक की मानव श्रृंखला भी बनायी गई। मानव श्रृंखला बनाने में शिक्षा विभाग की भूमिका महत्वपूर्ण रही है। उन्होंने कहा कि शिक्षा का मतलब सिर्फ पढ़ना नहीं है बल्कि कॉन्शस होना है ज्ञानी बनना है। उन्होंने कहा कि शिक्षा विभाग पहले की शिक्षा की स्थिति और वर्ष 2005 के बाद किए गए शिक्षा के क्षेत्र में कार्यों की जानकारी नई पीढ़ी को दें। शिक्षा के क्षेत्र में जितना हमलोगों ने ध्यान दिया है, शिक्षा की जितनी प्रगति हुई है इसकी जानकारी सभी लोगों को दें। 

कार्यक्रम के दौरान शिक्षा विभाग द्वारा किए गए कार्यों पर आधारित एक लघु फिल्म भी प्रदर्शित की गई। 

कार्यक्रम को उपमुख्यमंत्री श्री सुशील कुमार मोदी, शिक्षा मंत्री श्री कृष्ण प्रसाद वर्मा. शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव श्री आर0के0 महाजन ने भी संबोधित किया। 

इस अवसर पर मुख्य सचिव श्री दीपक कुमार, मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव श्री चंचल कुमार, योजना विकास विभाग के सचिव श्री मनीष कुमार वर्मा, सूचना जनसंपर्क विभाग के सचिव श्री अनुपम कुमार, मुख्यमंत्री के विशेष कार्य पदाधिकारी श्री गोपाल सिंह उपस्थित थे, जबकि वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से राज्यसभा सांसद श्री हरिवंश, गृह सामान्य प्रशासन मद्य निषेध उत्पाद एवं निबंधन तथा अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के अपर मुख्य सचिव श्री आमिर सुबहानी, बिहार राज्य शैक्षणिक आधारभूत संरचना विकास निगम लिमिटेड के प्रबंध निदेशक श्री संजय कुमार सिंह, प्राथमिक शिक्षा के निदेशक श्री रंजीत कुमार सिंह, बिहार राज्य मदरसा शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष जनाब अब्दुल कय्यूम अंसारी, मौलाना मजहरूल हक अरबी फारसी विश्वविद्यालय के कुलपति जनाब मोहम्मद खालिद मिर्जा, आर्यभट्ट ज्ञान विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ0 ए0के0 अग्रवाल, स्कूल ऑफ ज्योग्राफिकल स्टडीज के निदेशक डॉ0 पूर्णिमा शेखर सिंह, स्कूल ऑफ जर्नलिज्म एंड मॉस कम्यूनिकेशन के निदेशक डॉ0 इफ्तेखार अहमद, पाटलिपुत्र स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के निदेशक प्रो. एस0के0 भौमिक, सेंटर ऑफ एक्सिलेंस के सभी निदेशक, भागलपुर, दरभंगा, गया, मुंगेर, मुजफ्फरपुर, पटना, पूर्णिया, सहरसा, सारण के प्रशासनिक पदाधिकारी, क्षेत्रीय शिक्षा उपनिदेशक, जिला शिक्षा पदाधिकारी, अन्य शिक्षा पदाधिकारी, इन जिलों के एक-एक पंचायतों के संबद्ध विद्यालयों के प्रधानाध्यापक एवं विद्यालय शिक्षा समिति के सदस्य जुड़े हुए थे। ******
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