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Tuesday, November 10, 2020

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दीपश्राद्ध ::लुप्त प्रायः परम्परा

Posted: 10 Nov 2020 08:52 PM PST

दीपश्राद्ध ::लुप्त प्रायः परम्परा

हमारी परम्पराओं में बहुत सी बातें ऐसी हैं,जिनके बारे में हम बिलकुल नहीं जानते। कुछ के बारे में जानते भी है,तो आधे-अधूरे या गलत रुप से। दीपश्राद्ध भी उन्हीं में एक है। प्रस्तुत प्रसंग में थोड़ी चर्चा किए देता हूँ।

            नित्यकर्मों में  देव और पितृ दोनों कार्य आते हैं।कई कारणों से देवकार्य की तुलना में पितृकार्य अधिक आवश्यक माना गया है। पितृकर्मों के लिए पितरों की महती कृपा है हम पर कि काफी सुविधा दे रखा है उन्होंने। यथा— नित्य तर्पण की विधि है। ये नहीं कर पाते यदि हम,तो कम से कम प्रत्येक अमावस्या को कर लेना चाहिए। ये मासिक कृत्य भी यदि हम नहीं कर पाते हैं,तो कम से कम आश्विन और चैत्र मास के पितृपक्षों में पूरे पन्द्रह दिन जलादि प्रदान करना चाहिए। ये भी यदि नहीं कर सकते,तो चाहिए कि आश्विनमास की अमावस्या को तो अवश्य विधिवत मुण्डनादि सम्पन्न करके,तर्पण और पिण्डदान कर ही लें। यदि ये भी नहीं कर पाते,वैसी स्थिति में कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को सायंकाल दीपश्राद्ध का विधान है—ये पितरों का आशीष प्राप्त करने का अन्तिम उपाय है। यदि ये भी नहीं करते तो समझ लें कि पितरों को बहुत निराशा होगी और वे हमें शापित भी कर सकते हैं।

प्रसंगवश एक और बात यहाँ स्पष्ट करना चाहता हूँ कि जाने-अनजाने अपने कर्मों का दुष्प्रभाव हम भोगते रहते हैं। हमें पता भी नहीं चलता कि कष्ट और समस्या का कारण क्या है। किन्तु सच्चाई ये है कि कुलदेवता और पितृदेवता की अवहेलना का बहुत बड़ा योगदान है हमारी समस्याओं में। जीवन की बहुत सी जटिल समस्यायें भी इन दोनों की प्रसन्नता और कृपा से प्राप्त की जा सकती है। अतः इन कृत्यों को अत्यावश्यक और अपरिहार्य समझकर अंगीकार करना चाहिए। अस्तु।

            ऊँनमः पितृभ्यः

दीपश्राद्ध विधि

(कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी-सायंकालीन-कृत्य)

   शौचाचारोपरान्त  (स्नान,पवित्र वस्त्र-धारण,शिखा-बन्धन) पूर्वाभिमुख कम्बलासन पर बैठ कर—

ऊँ केशवाय नमः,ऊँ नारायणाय नमः, ऊँ माधवाय नमः-मन्त्रों से क्रमशः तीन बार आचमन करें,तत्पश्चात् ऊँ हृषिकेशाय नमः मन्त्रोच्चारण पूर्वक अंगूठे की जड़ से होठों को पोंछ कर हाथ धोले।

   पवित्री धारण-- तीन कुशाओं का बटा हुआ पवित्री बायें हाथ की अनामिका अँगुली मेंएवं दो कुशाओं का दायें हाथ की अनामिका अँगुली में इस मन्त्र से धारण करें -

ऊँ पवित्रे स्थो वैष्णव्यौ सवितुर्वः प्रसव उत्पुनाम्यच्छिद्रेण पवित्रेण सूर्यस्य रश्मिभिः।तस्य ते पवित्रपते पवित्रपूतस्य यत्कामः।।

अब यह मन्त्र बोल कर विनियोग करें -ऊँ अपवित्रः पवित्रोवेत्यस्य वामदेव ऋषिः विष्णुर्देवता गायत्री छन्दः हृदि पवित्रकरणे विनियोगः ।।

            इस मन्त्र से शरीर पर जल छिड़के:- ऊँ अपवित्रः पवित्रोवा सर्वावस्थां गतोऽपिवा।यः स्मरेत्पुण्डरीकाक्षं स वाह्याभ्यन्तरः शुचिः ।।

   पुनः विनियोग:- ऊँ पृथ्वीति मन्त्रस्य मेरूपृष्ठ ऋषिः सुतलं छन्दः कूर्मों देवता आसने विनियोगः ।।

   इस मन्त्र से आसन के चारो ओर जल छिड़कें :- ऊँ पृथ्वि! त्वया धृता लोकाः देवि! त्वं विष्णुनाधृता।त्वं च धारय मां देवि! पवित्रं कुरु चासनम् ।।

   तत्पश्चात् कुशा,तिल,अक्षत,जल,श्वेत पुष्पादि(रंगीन वर्जित) लेकर संकल्प करे –

हरिः ऊँ तत्सत् अद्य श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य ब्रह्मणोह्नि द्वितीयपरार्द्धे श्रीश्वेतवाराह कल्पे वैवस्वतमन्वन्तरेऽष्टाविंशतितमे कलियुगेकलिप्रथम चरणे बौद्धावतारे जम्बूद्वीपे भरतखण्डे भारतवर्षे आर्यावर्तैकदेशान्तरगते...नगरे....ग्रामे....क्षेत्रे....विक्रमसम्वत्सरे शालिवाहनशाकेकार्तिक मासे कृष्ण पक्षे चतुर्दश्याम्तिथौ....वासरे....गोत्रोत्पन्न....शर्माहं,मम कायिक-वाचिक-मानसिक ज्ञाताज्ञात सकलदोषपरिहारार्थं श्रुतिस्मृतिपुराणोक्त फलप्रापत्यर्थं श्रीपितृणाम् प्रीत्यर्थं च पितृदीपावली सुअवसरे सायं काले दीपश्राद्धकर्ममहं करिष्ये।

  तत्पश्चात् तीन बार अपने सामने और दाहिने,  इस मन्त्र सेजौ का छिड़काव करें—

ऊँ श्राद्ध भूम्यै नमः । ऊँ श्राद्ध भूम्यै नमः। ऊँ श्राद्ध भूम्यै नमः।

  तत्पश्चात् पितृगायत्री (अथवा देव गायत्री) मन्त्र का तीन बार जप करे—

  पितृगायत्री- ऊँ देवताभ्यः पितृभ्यःमहायोगिभ्यः एव च । नमः स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव नमो नमः।।

  तत्पश्चात् विश्वेदेवा एवं अपने पितरों का ध्यान करते हुए दो कुशा पूरब की ओर और बारह कुशा दक्षिण की ओर स्थापित करें।आगे इन्हींकुशाओं पर बारी-बारी से संकल्प बोलकर प्रज्वलित दीपों को स्थापित करते जाना है।

अब, जल,कुश का टुकड़ा और जौ तथा प्रज्वलित दीप हाथ में लेकर सर्वप्रथमपितृपक्ष(अपने कुल)के विश्वेदेवा के निमित्त संकल्प करे।यहाँऔर इससे आगे भी जहाँ संकल्प बोलना है,ऊपर दिये गये पूरा संकल्प बोलना आवश्यक नहींहै। अतः संक्षिप्त संकल्प—

ऊँअद्य....गोत्र....शर्माऽहं....गोत्राणाम् अस्मद् पितृ पितामह प्रपितामहानाम् (क्रमशःअपने पिता,दादा एवं परदादा के नामों का उच्चारण करना चाहिए)....शर्मन्....शर्मन्.....शर्मादीनाम्वसुरूद्रादित्य स्वरूपानाम् एवं..गोत्राणाम् अस्मद् मातृ पितामही प्रपितामहीनाम्(क्रमशः अपनी माता,दादी एवं परदादी का नामोच्चारण करना चाहिए)....देवी...देवी...देवीनाम् गायत्री सावित्री सरस्वती स्वरूपानाम् श्राद्ध सम्बन्धिनो विश्वेदेवा इदम् प्रज्वलित दीपं वो नमः—बोलकर पूरब में रखे गए एक कुशा पर दीपक रख दे।

पुनः जौ,कुश,जल और दीपक लेकर मातृपक्ष(ननिहाल कुल)के विश्वेदेवा के निमित्त संकल्प करे।संक्षिप्त संकल्प—

ऊँ अद्य...गोत्र...शर्माऽहं....गोत्राणाम् अस्मद् मातामह,प्रमातामह,वृद्धप्रमातामहादीनाम्(क्रमशः अपने नाना,परनाना और छरनाना के नामों का उच्चारण करें)...शर्मन्...शर्मन्...शर्मादीनाम् वसुरूद्रादित्य स्वरूपानाम् एवं अस्मद् मातामही, प्रमातामही, वृद्धप्रमातामहीनाम्(क्रमशः अपनी नानी,परनानी,छरनानी का नामोच्चारण करें।ध्यातव्य है कि सही नाम गोत्र ज्ञात न रहने पर रिक्त स्थान पर अमुक शब्द का उच्चारण करे) गायत्री सावित्री सरस्वती स्वरूपाणाम् श्राद्ध सम्बन्धी  विश्वेदेवा इदम् प्रज्वलित दीपं वो नमः - बोलकर पूरब में रखे दूसरे कुश परदीपक रख दे।

            घ्यातव्य है कि अब तक पूर्वाभिमुख बैठे हैं तथा जनेऊ और गमछा सव्य यानी बायेंकंधे पर हैऔर सुखासन, अर्धपद्मासन या पद्मासन की मुद्रा है।अब आगे से दिशा,मुद्रा, गमछा और जनेऊ सभी बदल जायेंगे। बैठने की मुद्रा होगी- बायें पैर को पीछे की ओर मोड़ कर एवं दाहिने पैर को खड़ारखते हुए उकड़ू बैठे,यहाँ यह भी ध्यान रखना है कि दाहिना हाथ घुटने के अन्दर हो,न कि बाहर।जनेऊ और गमछा दाहिने कंधे पर तथा दक्षिणाभिमुख हो जायें।संकल्प में कुश और जल तो होंगे,किन्तु जौ के स्थान पर तिल-चावल का प्रयोग किया जाएगा।

आगे के बारह दीप दक्षिण की ओर पहले रखे गए बारहों कुशाओं पर क्रमशः अलग-अलग संकल्प वाक्यों के साथ स्थापित किए जायेंगे।रिक्त स्थानों में क्रमशः पिता,दादा,परदादा,माता,दादी, परदादी तथा नाना,परनाना,छरनाना,नानी,परनानी,छरनानी का नामोच्चारण संकल्प वाक्य में करते जाना चाहिए।

१.  ऊँ अद्य....गोत्रः ...शर्माऽहं...गोत्रः पितः ...शर्मन् वसु स्वरूप प्रीत्यर्थं दीपश्राद्धे एष प्रज्वलित दीपः ते स्वधा।

२.  ऊँ अद्य....गोत्रः ...शर्माऽहं...गोत्रः पितामहः ...शर्मन् रूद्र स्वरूप प्रीत्यर्थं दीपश्राद्धे एष प्रज्वलित दीपः ते स्वधा।

३.  ऊँ अद्य....गोत्रः ...शर्माऽहं...गोत्रः प्रपितामहः ...शर्मन् आदित्य स्वरूप प्रीत्यर्थं दीपश्राद्धे एष प्रज्वलित दीपः ते स्वधा।

४.  ऊँ अद्य....गोत्रः ...शर्माऽहं...गोत्राः मातः ...देव्याः गायत्री स्वरूपा प्रीत्यर्थं दीपश्राद्धे एष प्रज्वलित दीपः ते स्वधा।

५. ऊँअद्य....गोत्रः ...शर्माऽहं...गोत्राः पितामही सावित्री स्वरूपा प्रीत्यर्थं दीपश्राद्धे एष प्रज्वलित दीपः ते स्वधा।

६. ऊँ अद्य....गोत्रः ...शर्माऽहं...गोत्रः प्रपितामहीः ....देव्याः सरस्वती स्वरूपा प्रीत्यर्थं दीपश्राद्धे एष प्रज्वलित दीपः ते स्वधा।

७. ऊँ अद्य....गोत्रः ...शर्माऽहं...गोत्रः मातामहः ...शर्मन् वसु स्वरूप प्रीत्यर्थं दीपश्राद्धे एष प्रज्वलित दीपः ते स्वधा।

८. ऊँ अद्य....गोत्रः ...शर्माऽहं...गोत्रः प्रमातामहः ...शर्मन् रूद्र स्वरूप प्रीत्यर्थं दीपश्राद्धे एष प्रज्वलित दीपः ते स्वधा।

९. ऊँ अद्य....गोत्रः ...शर्माऽहं...गोत्रः वृद्धप्रमातामहः ...शर्मन् आदित्य स्वरूप प्रीत्यर्थं दीपश्राद्धे एष प्रज्वलित दीपः ते स्वधा।

१०. ऊँ अद्य....गोत्रः ...शर्माऽहं...गोत्राः मतामही ...देव्याः गायत्री स्वरूपा प्रीत्यर्थं दीपश्राद्धे एष प्रज्वलित दीपः ते स्वधा।

११. ऊँ अद्य....गोत्रः ...शर्माऽहं...गोत्राः प्रमातामही...देव्याः सावित्री स्वरूपा प्रीत्यर्थं दीपश्राद्धे एष प्रज्वलित दीपः ते स्वधा।

१२. ऊँ अद्य....गोत्रः ...शर्माऽहं...गोत्रः वृद्धप्रमातामही...देव्याः सरस्वती स्वरूपा प्रीत्यर्थं दीपश्राद्धे एष प्रज्वलित दीपः ते स्वधा।

इस प्रकार चौदह दीपों का दीपश्राद्ध कर्म पूरा हुआ।प्रसंगवश यहाँ यह भी कहदेना आवश्यक लग रहा है कि पार्वणश्राद्ध की तरह,यहाँ चाचा,चाची,सास,ससुर आदि अन्य सम्बन्धियों के नाम से दीपदान आवश्यक

नहीं है,क्योंकिऋषियों ने प्रधान चौदह में ही सबको समाहित कर लिया है।

अब पुनः सबका स्मरण करते हुए आशीष याचना करे।तत्पश्चात्  पुनः तिल,चावल कुश जलादि लेकर यथाशक्ति दक्षिणा संकल्प करे—

ऊँ अद्य....गोत्रः....शर्माऽहं कृत दीपश्राद्ध सिद्ध्यर्थं यथाशक्ति दक्षिणाद्रव्यं यथानामगोत्राय ब्राह्मणाय दातुमहमुत्सृजे।(यह संकल्प पूर्वाभिमुख एवं सव्य जनेऊ और गमछे से करना चाहिए)

  क्षमा प्रार्थना—प्रमादात् कुर्वतां कर्म प्रच्यवेताध्वरेषु यत् ।स्मरणादेव तद्विष्णोःसम्पूर्णं स्यादितिश्रुतिः।।

पुनः दण्डवत प्रणाम करने के बाद अक्षत छिड़क कर विसर्जन करे।

                                                ***इति दीपश्राद्धम्***

प्रस्तोता— कमलेश पुण्यार्क,

श्री योगेश्वर आश्रम,

मैनपुरा,चन्दा,

कलेर,अरवल,विहार
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लोकतन्त्र का स्वरूप और बदलाव की आवश्यकता |

Posted: 10 Nov 2020 08:45 PM PST

 

लोकतन्त्र का स्वरूप और बदलाव की आवश्यकता |

लल्ला मोरे ! तूने ही माटी खायो

सूरदासजी तो अब रहे नहीं और मुझमें कवित्व-क्षमता नहीं है ।  किन्तु यदि वे होते तो आज फिर कुछ-कुछ वैसी ही पंक्तियां दुहरानी पड़ती । क्या ही मोहक भाव व्यक्त किया था उन्होंने एक ही कविता में- मैया मोरी मैं नहीं माटी खायो...और फिर देखिये शब्द का जादू - मैया मोरी मैंने ही माटी खायो.. ।

 

आज फिर एक लल्ला ने माटी खाने की धृष्टता की है और उस नटखट लल्ला से भी कहीं ज्यादा आनाकानी कर रहा है । यहाँ तक कि शोर मचा रहा है राजमार्गों पर उछल-कूद कर । कान्हां ने तो सिर्फ मैया यशोदा के सामने अपनी सफाई दी थी, किन्तु ये लल्ला तो देश-दुनिया के सामने खुद को ब़ेगुनाह कह कर चीख रहा है । असल में, कन्हैया बिलकुल निरीह था, एकदम अकेला । जिस समय पकड़ा गया था, उस समय केवल मैया थी, और वो भी हाथ में बेंत वाली छड़ी लिए । ग्वाल-वालों को तो पता भी नहीं था कन्हैया की हरकत और न उस पर अचानक आयी आफत की ही भनक थी साथियों को ।    किन्तु आज इस लल्ला के साथ बहुत से ग्वाल-वाल हैंकॉफीहाउस से लेकर बीयरवार और कैबरेहॉल तक के संगी-साथी । जरा ठेंठ लहज़े में कहें तो कह सकते हैं कि कोठी से कोठे तक के शागिर्द सुर में सुर मिलाने को तैयार ही नहीं, आतुर भी हैं ।

 

ऐसे सहयोगियों के रहते, भला क्यों कहे लल्ला कि मैं नहीं माटी खायो? और कौन कहें कि नन्दगांव की माटी खायी है उसने ! उसने तो पाटलीपुत्र की माटी खायी है । उस पाटलीपुत्र की जहां के इन्सान भी घास-भूसा, खल्ली-दारा सब खाने के अभ्यासी हैं । ये सब बातें नयी वाली मैया भी जानती है, क्यों कि पुरानी वाली मैया की तरह कोई सुधुआ गौ थोड़े जो है ।  अब्बू को भी पता है । पता तो वीवीआई से सीबीआई तक को भी है। मगर केवल पता होने भर से क्या होता है, यानी कुछ नहीं होता ये बात लल्ला को बख़ूबी पता है ।  साबित कराते-कराते, कराने वाले के पसीने छूट जायेंगे । याद रखने वाले भी भूल-भाल जायेंगे । या फिर कोई नयी बात याद करने में लग जायेंगे ।

 

हालाकि कोशिश तो भरपूर की लल्ला ने कि मुंह खोल कर , ब्रह्माण्ड दिखाकर, सही राह पर ले आवे आरोप लगाने वाले को, किन्तु दिक्कत ये है कि अकेली मैया रहती तब न । यहां तो देखने को आतुर सभी हैंघर से लेकर बाहर और उससे भी बाहर वाले भी । और सबसे बड़ी बात है कि इन मीडिया वालों को भी और कुछ काम-वाम नहीं रह गया है । लल्ला ने माटी खा ही ली, तो क्या हो गया ? कैडवरीज खाते-खाते ज़ायका बिगड़ होगा, माटी भी चख लिया । भला माटी का भी कोई हिसाब लिया जाता है !

माटी कहे कुम्हार को, तू क्या रुँधे मोय । एक दिन ऐसा आयेगा, मैं रुँधूंगी तोय।

किन्तु माटी के इस रहस्य को समझना लल्ला जैसों के बस की बात नहीं । यदि समझता ही होता तो माटी खाता ही क्यों ?

लोकतन्त्र जीर्णोद्धार

 

प्रायः हम सभी महसूस कर रहे हैं कि हमारी व्यवस्था बहुत ही लुंजपुंज है । खूबियां बहुत कम है, खामियों की भरमार है । अतः इसमें आमूलचूल परिवर्तन की अपेक्षा है । इसके लिए दृढ़ इच्छाशक्ति, ईमानदारी, समर्पण, सेवाभाव, कर्मठता तथा यथोचित त्याग और बलिदान की आवश्यकता है ।

            यहाँ हम कुछ खास बातों (सुझावों) की चर्चा करते हैं । आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि तटस्थ होकर विचार करेंगे तो आपको भी उचित लगेगा । आपके भी मन में कुछ ऐसे विचार कौंध रहे होंगे । उन सद्विचारों का भी स्वागत है ।

 

यहां दिये जा सुझावों का क्रियान्वयन कैसे होगा, इसके लिए हम सबको विचार करने की जरुरत है । और सिर्फ विचार ही नहीं पहल भी, क्यों कि अब पानी नाक के नीचे तक पहुँच चुका है । अब देर नहीं होनी चाहिए ।

सुझाव

१.         संसदीय लोकतान्त्रिक प्रणाली को समाप्त की जाय और बिलकुल नयी व्यवस्था-नीति बनें, जो सर्वांग  भारतीय संस्कृति आधारित हो ।

२.         तथाकथित संविधान (जो वास्तव में भारतीय संविधान है ही नहीं), को अविलम्ब निरस्त किया जाये । इसके साथ ही अब तक लागू सभी नियम-कानून पूरी तरह से समाप्त कर दिये जायें ।

३.         स्वतन्त्र भारत, स्वायत्त भारत (आर्यावर्त) का नया संविधान रचा जाये, जो हमारी राष्ट्रभाषा में हो और उसका अनुवाद प्रत्येक प्रान्तीय भाषा में भी हो ।

४.         स्विसबैंक में कैद भारतीय धन को राष्ट्रीय सम्पत्ति घोषित की जाये । उसे वापस लाकर, राष्ट्रहित में उपयोग किया जाये ।

५.         नागरिक की चल-अचल व्यक्तिगत सम्पत्ति की न्यूनतम और अधिकतम सीमा निर्धारित की जाये । सीमा से नीचे हो तो उसकी पूर्ति की जाये और अधिक हो सो राष्ट्रीय सम्पत्ति घोषित हो ।

६.         सभी धार्मिक स्थल, ट्रस्ट आदि भी उक्त सम्पत्ति-सीमा के दायरे में हों ।

७.         वर्तमान शिक्षा व्यवस्था को समाप्त करके, भारतीय गुरुकुल शिक्षा-प्रणाली पुनः प्रारम्भ की जाये ।

८.         विद्यालय, महाविद्यालय आदि किसी व्यक्ति या संस्था की सम्पदा न हों, वो राष्ट्रीय सम्पत्ति हो ।

९.         स्नातक तक की शिक्षा-व्यवस्था निःशुल्क और अनिवार्य हो ।

१०.      स्वास्थ्य सुविधायें निःशुल्क हों ।

११.      लोकपाल, लोकसेवक, लोकनायक जैसे पदों का चयन हो । चयन-प्रक्रिया वर्तमान वोटिंग-सिस्टम कदापि न हो । अनगिनत राजनैतिक पार्टियां भी  न हों ।

१२.      विदेशी कम्पनियों और कारोबारियों पर कठोर नियन्त्रण हो । उनके मुनाफे का नब्बे प्रतिशत भाग देश के बाहर न जाये ।

१३.      किसी भी कम्पनी में काम करने वाले कोई भी व्यक्ति (पद) वेतन भोगी न हों, बल्कि कम्पनी के हिस्सेदार हों । कार्य और योग्यता के अनुसार हिस्सेदारी सुनिश्चित की जाये ।

१४.      हर व्यक्ति को शारीरिक और शैक्षणिक योग्यता के मुताबिक कार्य मिले - ऐसी व्यवस्था हो ।  कार्य करने की सीमा पांच घंटे से अधिक न हो । साथ ही ये भी सुनिश्चित किया जाय कि कोई निकम्मा-निठल्ला न बैठा रहे ।

१५.      साम्प्रदायिक व जातिगत हस्तक्षेप व भेद-भाव कतई क्षम्य नहीं ।

१६.      न्यायालय और चुनाव आयोग - ये दो ही सर्वोच्च हों, शेष इनके अधीन ।

१७.      अधिवक्ता की वर्तमान भूमिका समाप्त की जाय । अधिवक्ता न्यायाधीशों के सहयोगी के रुप में कार्य करें, साथ ही वादी-प्रतिवादी को कानूनी सहाल भी दें , न कि उसके बदले मुकदमा लड़े ।

१८.      न्याय प्रणाली निःशुल्क हो, पारदर्शी हो, बिना किसी भेद-भाव वाला हो और कठोर दण्ड की व्यवस्था हो , जिसमें प्रत्यक्ष-परोक्ष राष्ट्रद्रोह और महिला उत्पीड़न का दण्ड सर्वाधिक हो ।

१९.      राष्ट्रीय सीमा सुदृढ़ की जाय । इसे बढ़ाने की ख्वाहिश न रखे और न ही ईंच भर घटने दे । 

२०.      राजा हरिसिंह के एकरारनामे के मुताबिक कश्मीर विवाद को अविलम्ब समाप्त किया जाये । बांगलादेश को तो हमने अभयदान देकर पैदा ही किया है । वह मेरा छोटा भाई है । पाकिस्तान को नयी व्यवस्था के तहत अन्तिम और अन्तिम चेतावनी देकर थोड़ा इन्तजार कर लिया जाय । न माने तो विश्व नक्शे से नामो निशान मिटा दे ।

२१.      किसी सम्पन्न राष्ट्र की बन्दर घुड़की में न आवे , क्यों कि हम भी सर्व सम्पन्न हैं ।

 

ये न भूलें कि भारत सोने की चिड़िया है । इसे और नुचने न दें । अपने आप को फिर से पहचाने । गुलामी के प्रत्येक स्मारकों (निशानी और प्रभाव) को ध्वस्त करे और विश्वगुरु फिर से अपना स्थान ग्रहण करे ।

 

लोकतन्त्र का ECG रिपोर्ट

 

            काफ़ी मश़क्कत के बाद किसी तरह हाथ लगा । दरअसल कोई देने को राज़ी ही नहीं हो रहा था । कहता था कि ये आम आदमी के लिए बिलकुल नहीं है । गोपनीय शाखा के भी खासमखास वाले फाइल में छिपा कर रखा गया है इसे ।

 

            किसी सच को उगलवाने के लिए बहुत बार झूठ का सहारा लेना पड़ता है । हमारे यहां खाकी और काली वर्दी वाले इस कला में खास माहिर हैं । हालाकि साक्षरता अभियान के परिणाम स्वरुप आजकल ज्यादातर लोग इस कला में निपुण हो गये हैं । यही कारण है कि झूठ बोलने वालों को भी विशेष सावधान रहना पड़ रहा है आजकल ।

 

            मैंने भी एक झूठ का सहारा लिया । कहना पड़ा कि वो जो इलेक्ट्रोकार्डियोग्राफ है न, उसके असली वाले रिपोर्ट का बिलकुल असली वाला फोटोकॉपी कहीं से जुगाड़ हो गया है । वस ज़रुरत है जरा मिलान कर लेने की, कि कॉपी ऑरीजिनल वाले का ही है या इसमें भी कहीं घपला हुआ है, जैसा कि हमारे यहां  आये दिन हर जगह होते रहता है । वो वालू में सिमेन्ट वाला घपला हो कि कंक्रीट में कोलतार वाला, वो वोफोर्स वाला मामला हो कि टूजी वाला, चारा वाला मामला हो कि कोयला वाला, या फिर राफेल ही क्यों न हो, सब के सब 'व्यापमं' की तरह व्याप्त हैं हमारे नायाब लोकतन्त्र में ।

 

            फोटोकॉपी वाली बात कहते ही वो चट से राज़ी हो गया और बिलकुल ऑरीजिनल वाला रिपोर्ट कार्ड दिखला दिया । एक ' बोगदा ' की शर्त पर असालतन रुप से फाइल सुपुर्द करते हुए , ये चेतावनी भी दिया कि इसे डिसक्लोज़ मत करना, क्योंकि ध्यान रहे- 2019 अब ज्यादा दूर नहीं है । ये असली हालात का पता चल जाये जनता को यदि तो बड़ी फज़िहत होगी ।

 

            फिर धीरे से मेरे कान में मुंह सटा कर बोला उस भले मानस ने कि पूरी उम्मीद है कि बहुत जल्दी ही  एकदम खतरनाक वाला हार्डअटैक आ सकता है ।

 

            मैं उस बेवकूफ़ कर्मचारी के होशियार सी लगने वाली चेतावनी को अनसुना करते हुए, चट अपना काम किया और फट वहां से दफा हो गया ।

 

            रिपोर्ट फाइल काफी मोटी थी । देश ही नहीं परदेश के भी विशेषज्ञों की राय और टिप्पणी टैग थी उस ECG के साथ । सबने लगभग एक सी राय ज़ाहिर की थीहृदय के चारो वाल्व लगभग नाकामयाब हो गए हैं । एक खास टिप्पणी और लगी हुयी थी एक वाल्ब तो वाईवर्थ ही डैमेज़ था । और उसी का नतीजा है कि धीरे-धीरे बाकी के भी तीन खराब होते चले गए । पहले ने दूसरे पर अटैक किया जिसका ख़ामियाज़ा तीसरे को भुगतना पड़ा और फिर चौथा भी सरेन्डर कर दिया आहिस्ते-आहिस्ते । तीसरे की हालत तो ऐसी है कि टॉयलेट-वाथरुम जैसा हो गया है । हर समय दरवाजा खुला रखना पड़ता है । न जाने कब किसको शू-शू की तलब हो जाये या कि वोमिट वरदास्त न हो रहा हो । ऐसे में देर-सबेर दरवाजा खटखटाने से बेहतर है कि विदाउट नोकिंट खट से ऐंट्री मिल जाये । एक्सट्रा प्रेशर भी जरुरी नहीं ।

 

जैसा कि अभी हाल में भी सबने देखा-सुना-जाना कि रात डेढ़ बजे से भोर के पौने चार बजे तक वासरुम के सभी सफाई कर्मचारी व्यस्त रहे । दरअसल एक दक्षिण भारतीय ज्योतिषी ने ऐलान कर दिया था कि अगले पन्द्रह दिनों तक हो सकता है कि सूर्योदय हो ही नहीं । हालाकि बहुत पहले किसी और युग में भी एक बार ऐसा हो चुका है - एक सती ने सूर्य को ही चाइलेंज कर दिया था । सतियाँ तो प्रायः कुछ अनहोनी ही करती रही हैं पहले भी और अब भी । शुद्ध गृहस्थी वालियों में भले ही वो ताकत आज न हो, किन्तु किसी  ' बार से ट्रन्च ' होकर आयी तथाकथिक साध्वी की ताकत का अन्दाज़ा भला मेरे जैसा अदना आदमी क्या लगा पायेगा ! वैसे भी भारतीयों का भोलापन , सीधापन, निरालापन या कि मूर्खपना जग ज़ाहिर है ।

 

            रिपोर्ट फाइल में एक न्यूट्रिशियन का भी रिपोर्ट अटैच था, जिसमें लिखा हुआ था कि लोकतन्त्र के सेहत के लिए शुरु से ही कुछ खास नियम-संयम का ध्यान रखा गया है, बिलकुल स्वास्थ्य रक्षक भिषकाचार्य बाग्भट्ट के अन्दाज़ में, भले की काम किया गया हो सुश्रुत वाला । शरीर का आकार बेहिसाब बड़ा है, इसलिए वजन हल्का करने के ख्याल से दोनों हाथों को विना ना-नुकुर अलग कर देना जरुरी समझ, सुरक्षित भविष्य के ख्याल से इसे तत्काल निपटा भी डाला गया ।

 

पथ्य-परहेज के तौर पर कुछ और भी नियम-निर्देश मिले उस फाइल में –   

1.आजीवन दो-चार तरह के लाइफ सेविंग ड्रग्स का इस्तेमाल भी बिलकुल जरुरी कहा गया है । 

2.धर्मनिरपेक्षता की कभी न समझ आने वाली परिभाषा को बार-बार नये-नये तरीके से समझाते रहने की कोशिश करनी है । क्यों कि यही वो असली वाला फार्मूला है जिसे पुराने आका जाते-जाते चेताते गए हैं । 

3. धर्म रहे न रहे, धार्मिकता रहनी चाहिए, तभी तो धार्मिक उन्माद बना रह सकेगा । उन्माद फीका पड़ता हो यदि तो बीच-बीच में कुछ न कुछ प्रबन्ध करते रहना चाहिए ।

और इन सबके लिए  चौथा वाल्व अकेले ही बिलकुल सक्षम है । उसकी कर्तव्य-निष्ठा पर जरा भी सन्देह करना गुनाह जैसा है ।

 

ऐसी ही कुछ और बातें अगले अनुच्छेद में भी लिखी गयी थी

1.भोजन,वस्त्र,आवास,शिक्षा-अशिक्षा,स्वास्थ-अस्वास्थ से लेकर डिग्री और नौकरी भी बे-दाम मुहैया कराते रहना बहुत जरुरी है ।

2.किसी छोटी-बड़ी दुर्घटना के बाद तत्काल खेद व्यक्त करने में जरा भी देर नहीं होनी चाहिए ।

3.आँखों का पानी तो पहले ही सूख-मर गया है, अतः इसके लिए लिक्विड अमृतधारा का प्रयोग करते रहना चाहिए ।

4.मुआवज़ा भी जरुर घोषित कर देना चाहिए । क्यों कि मरने के बाद के भी बहुत तरह के खर्चे होते हैं । और आजीवन जब मुफ्तखोरी में गुजरा है, फिर मरणोत्तर जीवन में घर का आटा क्यों गीला किया जाये ।

और सबसे अन्त में बिलकुल बोल्ड फॉन्ट में लिखा हुआ थाये ऑल टाइम-एनी टाइम वारन्टी वाला लोकतन्त्र दिया है हमने । जब भी नापसन्द हो, न्यू वर्जन ऑटो अपडेट एवेलेबल है । वस ऐंट्रीजोन में क्लिक करने भर की बात है ।

लोकतन्त्र का ब्रह्मास्त्र

 

            लोक यानी प्रजा, जनता- वो आम-व-खास नागरिक द्वारा, बहुमत के आधार पर काय़म मनोनुकूल शासन-व्यवस्था लोकतन्त्र वा प्रजातन्त्र कहलाता है । राजनीति शास्त्र के ज्ञाता लोग और भी बहुत तरह से परिभाषित करते होंगे इसे । उन विविध परिभाषाओं में ही लोकतन्त्र का पूर्ण स्वरुप लक्षित-दर्शित हो जाता है ।

 

लोकतन्त्र के सृजन का मूल घटक हैजनता । यानी यही वो बीज है, जिसका एक हिस्सा जड़ बनता है और दूसरा हिस्सा पुष्पित-पल्लवित होकर शासन-व्यवस्था का छतनार वृक्ष । वो बीज जैसा होगा वृक्ष वैसा ही होगा न ! आम का होगा तो फल बहुल, बबूल का होगा तो कांटे बहुल । यहां एक बात और भी स्पष्ट है कि जनता जैसी होगी उसका नेता भी वैसा ही होगा । जनता प्रबुद्ध और जागरुक होगी तो नेता भी प्रबुद्ध होने को विवश होगा । हालाकि यह शत-प्रतिशत सही नहीं है । इसके अनेक कारण हो सकते हैं । खैर।

लोकतन्त्र बहुमत का तन्त्र है । वैसे इसे 'मुंडे-मुंडे मतिर्भिन्ना' का तन्त्र भी कहा जा सकता है । इससे साफ ज़ाहिर है कि आम और बबूल का सवाल ही नहीं है । बहुमत यदि बबूल चाहता है तो फिर आम का बाग ना मुमकिन ! ज़ाहिर है कि कांटे या फल-फूल का बिलकुल ही सवाल नहीं है । बेचारे फल-फूल की क्या औकाद की वह बहुमत सिद्ध कांटे का मुकाबला कर सके ।

 

इस लोकतन्त्र के तरकश में अनेक अस्त्र-शस्त्र हैं, जिनमें ब्रह्मास्त्र भी है । किन्तु अर्जुन के तरकश वाला नहीं, बल्कि अश्वत्थामा वाला, जो गर्भगत परीक्षित पर ही चला देगा । गौर तलब है कि न तो यहां महर्षि व्यास हैं और न कृष्ण, अतः परीक्षित का पुनः उद्भव असम्भव है । तथाकथित संत-असंत, नेता-अभिनेता सब अश्वत्थामा ग्रूप के ही हैं, यानी सह देने वाले ही । दरअसल सह देना उनकी भी मजबूरी है, क्यों कि लोकतन्त्र के उस घटक पर ही उनका वज़ूद निर्भर है । अनसन, धरना, प्रदर्शनजिसका मुखौटा भले ही शान्ति-दूत वाला हो, किन्तु असली रुप क्रान्ति-नायक वाला ही होता है, जिससे आये दिन जूझना पड़ता है आम नागरिक से लेकर शासन, प्रशासन, यहां तक कि सर्वोच्च न्यायालय को भी । और सिर्फ जूझना ही नहीं, तिरस्कृत-अपमानित भी होना पड़ता है । जल्लीकट्टु इसका लेटेस्ट एडीशन है ।

 

मज़हब, सम्प्रदाय, पंथ, वाद, संघ, संगठन, यूनियन ये सब इसके उपघटक हैं ।

इनका वरदहस्त यदि प्राप्त हो फिर  क्या कहना ! सुप्रीमकोर्ट जैसा गगन-विहारी गरुड़  भी जमीन पर लोट सकता है । अकेले कोई किसी बकरी को गोली मार दे तो शायद उसपर भी दफा 302 के तहत सजा हो जाए । वक्ता-अधिवक्ता क़ाबिल मिल जाय तो फांसी के तख्ते पर भी झुला दिया जाय । किन्तु उक्त वरदहस्त वाले का कोई बाल-वांका भी कैसे कर सकता है ?

और 'धर्म-परम्परा ' वाला ब्रह्मास्त्र तो सबसे बलिष्ट होता है न, जिसे सम्हालने की ताकत महर्षि व्यास में भी नहीं । ऐसे में धर्म के प्रतीक बेचारे सांढ़ की क्या विसात ! कहते हैं न- कि कलिकाल में धर्म-वृष अभागा एक टांग पर टिका हुआ है, जिसकी देख-भाल के लिए बहुत से धर्मध्वज लगे हुए हैं ।

 

'संघे शक्ति कलियुगे' का असली उपयोग लोकतन्त्र में ही होता है । वैसे भी सूत्रकार ने ये थोड़े जो कहा है कि संघ का उद्देश्य क्या हो या होना चाहिए । वस संग+ठन ही काफी है संग मिला और ठन गए । भले ही वो आतंकवादी का हो, किसान का हो, मजदूर का हो, कर्मचारी का हो, साधु का हो, स्टूडेंट का हो, औरत का हो, मर्द का हो, गोरे का हो, काले का हो, देहाड़ी वालों का हो, या कि फुटपाथ वालों का । अकेला चना भांड़ नहीं फोड़ता- किन्तु संघवद्ध तो पहाड़ भी हिला देगा न ! 

फुटपाथ से लेकर सड़क तक अतिक्रमण कर डालो । पर कोई आँख दिखाये तो गरीबी, बेरोजगारी, वो भी न हो तो दलित-महादलित का पताका लहराने लगो । आंख बन्द कर रेलवे ट्रैक पार करते, इयरफोन ठूंसे, या कि गर्दन टेढ़ी किये एस.पी.- डी.एम. सी व्यस्तता दिखाते, यदि कट-मर गये, या काट-मार दिए, तो भी  मुआवज़ा दिलवा ही देंगे सहयोगी जन । उसके लिए बस दो-चार-दस हुड़दंगी चाहिए । भला  सामत आयी है, जो ट्रैक-रोड जाम करा कर, आमजन या यात्री-संघ का भी कोपभाजन बने ? बेहतर है मुआवजा दे-दा कर निश्चिन्त हो जाना, और कौन कहें की घर से गेंहू बेंच कर देना है मुआवज़ा, और न अपने वेतन से ही भरने की बात है । 

 

बातबात में चक्का जाम होना, लोकतन्त्र का सबसे प्रधान लक्षण है । इसे तो मौलिक अधिकारों में शामिल कर लिया जाना चाहिए था । पता नहीं अभी तक क्यों नहीं हुआ । सरकारी सम्पत्ति तो जनता की ही होती है न, फिर उन्हें आग के हवाले करने में हर्ज़ ही क्या है, किस बात का संकोच !

जन्तर-मन्तर नामक एक स्थान लगभग सभी शहरों में होना चाहिए, जहां लोकतान्त्रिक-ब्रह्मास्त्र-प्रक्षेपण हेतु पूरी सुविधा मुहैया की जा सके लोकतान्त्रिक सरकार द्वारा । किसी खास इमपोर्टेड रॉकेट-लॉन्चर की भी जरुरत महसूस न हो, क्यों कि महान भारत में इसके प्रोडक्शन की कमी थोड़े जो है ।

 

वो दिन दूर नहीं जब इस ब्रह्मास्त्र का सतत प्रयोग कर भावी लोकतन्त्र में  चोर, पाकेटमार, लुटेरे, सुपारीधारी, लम्पट, रेपिस्ट, हत्यारे, सिरफिरे सबके सब अपनी रजिस्टर्ड पार्टी बना लें और  बहुमत भी काय़म कर लें, और फिर आपात बैठक बुलाकर, आध्यादेश जारी कर दिया जाय । अस्तु ।

लोकतन्त्र का लेटेस्ट सेल्फी

 

            लोकतन्त्र ज्यादातर सेल्फीमोड में ही हुआ करता है । सेल्फी लेते समय सेल्फी लेने वाले की जो मनोदशा और भावदशा, या कि बॉड़ीलैंगवेज जैसा हुआ करता है, लोकतन्त्र में भी नागरिकों की प्रायः वैसी ही स्थिति होती है । आसपास-परिवेश का तो सवाल ही नहीं, खुद को भी भूल जाते हैं हम, जब 'सेल्फीमोड' में होते हैं । फिर जिसे वज़ूद का ही पता नहीं, उसे भला औरों की क्या फ़िकर ?

वैसे आप स्वतन्त्र हैं- 'सेल्फी' का अर्थ लेने में । क्यों कि हो सकता है एक और वाला अर्थ ही किसी को अच्छा लगे । अतः अच्छा और इच्छा की पूरी गुंजायश है यहां ।

 

            लोकतन्त्र का एक दूसरा नाम प्रजातन्त्र भी है- आप जानते ही होंगे । वैसे मैं 'सिविक्स; का विद्यार्थी नहीं हूँ, किन्तु कभी किसी विद्वान लेखक की किताब  में बड़े मनोयोग से पढ़ा था कि प्रजातन्त्र का मतलब ही होता है - प्रजा की इच्छा से चलने या कहें रेंगने वाली शासन-व्यवस्था । या कहें- सदा बीमार सी रहने वाली राज्य-व्यवस्था ।  वैसे आपका विचार हो तो इसका सही नाम- 'भेड़तन्त्रया 'सियारतन्त्र' रखा जा सकता है । क्यों कि ये नाम खूब फबता है इस पर । वैसे भी हमने सीखा है भेड़ों और सियारों से ही झुंड बनाने की कला , हुआ-हुआ करने का हुनर और हमेशा मिमियाते रहने की सर्वोत्तम आदत ।

 

 क्या कभी आपने दौड़ने वाला लोकतन्त्र देखा है ? नहीं न ? तो फिर चौंकिये मत । लोकतन्त्र ज्यादातर बीमार ही रहता है । कम्बल ओढ़े रहना भी इसकी मजबूरी है । उससे भी काम न चला यदि तो चेहरे पर भी कुछ डाल-डूल लेना पड़ता है । वो भी एक नहीं कई, ताकि एक यदि हवा-वयार में उड़ भी जाये तो दूसरा बरकारर रहे  और असली चेहरे को किसी तरह का नुकसान न हो ।

चेहरा यानी पहचान बचाना- इस तन्त्र की सबसे बड़ी समस्या है और सबसे अहं कर्तव्य भी । अपना चेहरा ही न बचा तो फिर देश बच करके ही क्या होगा ? यही कारण है कि जब-जब चेहरे पर ज़रब आता है, तब-तब लोकतन्त्र खतरे में पड़ने लगता है और अपने-अपने अन्दाज में, अलग-अलग कोनों से हुआ-हुआ, या मेंऽ मेंऽ मेंऽ में करना पड़ता है । ऐसे ज़रुरतमन्द लोकतन्त्र को सहेजने के लिए लोकलाज, धर्म, रिवाज, जाति-पाति सबकुछ छोड़कर, एकजुट होना पड़ता है ।

बे-हयायी और मक्कारी की लोकतन्त्र में सबसे ज्यादे अहमियत है । इसके बिना बिलकुल काम नहीं चलता । लोकतन्त्र की लाश भी यदि सलामत रही, तो भी उसपर चर्चा, वार्ता, प्रेस-कॉन्फरेन्स करके ऐशो-वो-मौज़ की जिंदगी बसर की जा सकती हैअनुभवियों ने कुछ ऐसा ही कहा है । धर्मराज बने रहने से काम नहीं चलने वाला ! जंगलराज क्या कम लोकप्रिय हुआ हमारे यहां ? खैर ।

 

हालाकि सदा सेल्फीमोड में रहना लोकतन्त्र की मजबूरी है । दो-चार को परमानेन्ट खुश रखना मुश्किल होता है, फिर यहां तो लाख-करोड़ की बात है । लाख कोशिश करके भी क्या कोई बीबी अपने स़ौहर को असालतन तौर पर खुशमिज़ाज रख पायी है आजतक ? और यही हाल क्या अभागे स़ौहरों का भी नहीं है ? तो फिर औरों को सदा खुश रखने की ज़हमत ही क्यों ? क्यों न खुद को खुश रखने का इन्तज़ाम किया  जाये ।

हालाकि सेल्फीमोड में ' खुद का दायरा ' थोड़ा सा बड़ा होता है, फिर भी ' मेरा नाम जोकर' के दिल की तरह नहीं ।

तो आइये सेल्फीमोड में । 

धड़ाधड़ सेल्फी लीजिये ।

खटाखट सेल्फी लीजिये ।

सोशलमीडिया आपका इन्तजार कर रहा है ।

फिर वहीं मिलेंगे ।

लोकतन्त्र की पंचकर्म चिकित्सा

           

सुनने में आया है कि हमारा प्यारा लोकतन्त्र बहुत बीमार हो गया है । हालाकि बूढ़े अकसर बीमार होते ही रहते हैं । हमेशा कुछ न कुछ लगा ही रहता है- कुछ नहीं तो सर्दी-ज़ुकाम तो जरुर । दरअसल लम्बे समय तक काम करते-करते शरीर के सभी अंग-प्रत्यंग प्रायः शिथिल होने लगते हैं । रोग प्रतिरोधी क्षमता भी घट जाती है । देखभाल करने वालों की अनदेखी हुयी तो हालात और भी खराब हो जाता है । देखी-अनदेखी के चक्कर से बचने के चक्कर में ही आधुनिक सोच-विचार वाले लोग प्रायः घर के बूढे-बुजुर्गों को वृद्धाश्रम में धर आते हैं और इत्मीनान से रहते हैं - हम दो हमारे दो बनकर । 

 

किन्तु हमारे अभागे लोकतन्त्र के साथ कुछ अजीब सा वाकया हो गया है । गोपनीय बात ये है कि मेज़र सीजेरियन ऑपरेशन से इसका जन्म हुआ था । दुर्भाग्य से सीनीयर डॉक्टर अस्पताल कर्मचारियों की कारगुज़ारी से सस्पेन्ड हो गया था , या कि लम्बी छुट्टी पर चला गया था । अस्पताल के कुछ गुप्त सूत्रों से तो यहां तक पता चला है कि सीनीयर डॉक्टर को कुछ जूनियरों ने मरवा डाला है आपसी मतभेद के चलते ।

 

जो भी हो, जूनियर डॉक्टर भोंचूमल अब्बल दर्जे का ऐयाश था । लोग तो यहां तक कहते हैं कि ऐयाशों के कोठे पर उसने अपना लोक-लाज , धरम-ईमान सब गिरवी रख दिया था ।  उसका एक शागिर्द भी था, जो मौके-बेमौके साथ दिया करता था । ऐन डिलेवरी के दिन भी कुछ ऐसा ही हुआ । बूढ़ा वाप ओ.टी. के बाहर चीखता-चिल्लाता रहा, पर किसी ने एक न सुनी और आनन-फानन में इन्हीं दो जूनियरों ने ऑपरेशन कर डाला । साथ में एक चतुर नर्स भी थी ।

 

सुनते हैं कि नर्स ने गलती से या कि जानबूझ कर स्पैकुला का हैंडिल उल्टा कस दी , जिसके कारण नवजात शिशु का ब्रेन डैमेज़ हो गया । जिस जल्दीबाजी में ऑपरेशन किया गया, उससे भी जल्दबाजी में विदेशी कई अस्पतालों की खाक छान कर एक सड़ा-गला सा ब्रेन भी एडॉप्ट किया गया ।

 

अब भला दूसरे किसी शरीर से निकाला गया दिमाग किसी और शरीर में बिलकुल फिट्ट हो ही जाये इसकी क्या गारंटी ! कुछ अनुभवी विशेषज्ञों ने तो यहां तक कह दिया था कि इससे बालक के भविष्य ही नहीं वर्तमान को भी खतरा है । किन्तु विशेषज्ञ से राय लेने की केवल परम्परा है हमारे यहां । राय मानने की जरुरत तो समझी ही नहीं जाती । नतीजन, हुआ भी कुछ वैसा ही । एडॉप्टेड ब्रेन इन्फेक्शन के कारण बहुत तेजी से फेफड़े, हृदय, किडनी वगैरह सबके सब खराब होने लगे ।

 

मज़े की बात ये है कि पुराने अनुभवी चिकित्सक भी धीरे-धीरे घसकते गये दुनिया से, और सही उपचार कभी न हो पाया । हालाकि बिलकुल मेच्युरीटी एरा में ही एक योग्य सर्जन मिला था, किन्तु उसके साथ भी वही किया गया जो सीनियर वाले डॉक्टर के साथ किया गया था ।

 

किसी तरह शैशव बीता । जवानी भी गुज़र गयी कसमसाते-कराहते और अब तो पूरे सत्तर साल का हो चला है । अब क्या खाक स्वस्थ होगा ।

 

सौभाग्य की बात है कि इधर एक सुश्रुत सिद्धान्त वाला चिकित्सक मिला है । उसने दावा किया है कि उसकी पंचकर्म चिकित्सा से बिलकुल ठीक किया जा सकता है । रुग्ण वृद्ध को भी ऋषि च्यवन की तरह युवा बनाया जा सकता है ।

 

सूचना के तौर पर बता दूँ कि भारतीय चिकित्सा पद्धति में पंचकर्म एक ऐसा उपचार है, जिससे जटिल से जटिल व्याधि से भी मुक्त हुआ जा सकता है ।  किन्तु देशी पद्धति में किसी को विश्वास हो तब न । देखना है कि घरवालों की क्या राय बनती है ।

 

मुझे तो डर है कि इसे भी चिकित्सा का समुचित अवसर नहीं दिया जायेगा । पंचकर्म कोई जल्दबाजी वाली चिकित्सा तो है नहीं । थोड़ा धीरज तो रखना ही होगा । जन्मजात बीमारी के इलाज़ में थोड़ा समय तो लगेगा ही ।

लोकतन्त्र के डगमग पाये

            ये बताने की शायद जरुरत नहीं है कि 'लोकतन्त्र' नामधारी जीव / अजीव चौपाया है ।  ' विधाता ' ( बनाने वाले) ने तो इसका सृजन किया था- दस लक्षणों वाले ' धर्म के स्वरुप ' वृषभ के अनुरुप ही, किन्तु थोड़े ही दिनों में खूंखार भैंसा मार्का जीव बनकर रह गया ये ।   

पुरानी पीढ़ी तो जानती-मानती थी इन बातों को, किन्तु नयी पीढ़ी जो देखने-जानने, पढ़ने-गुनने में उतना विश्वास नहीं रखती, जितना बिन समझे-बूझे, आलोचना (शिकायत के अर्थ में) करने में विश्वास रखती है ।

ये मैं बिलकुल दावे के साथ इसलिए कह सकता हूँ, क्यों कि यदि किसी ने मनोयोग पूर्वक मनु का वो संविधान पढ़ा-समझा होता, तो आज उनकी मनुस्मृति की ये दुर्गति न होती । उस अद्भुत समाजशास्त्र की इस कदर धज्जियां न उड़ायी जाती ।

चौपाये वृषभ रुपी धर्म या कहें धर्म रुपी वृषभ में मनुस्मृतिकार ने ये दस लक्षण (गुण) कहे हैं । यथा—  धृति: क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रह: ।

                             धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम् ॥ मनुस्मृति ६।९२ ॥     ( धृति, क्षमा, दम, अस्तेय, शौच, इन्द्रियनिग्रह, धी, विद्या, सत्य और अक्रोध) । उक्त दस शब्दों की विस्तृत व्याख्या हो सकती है, जो कि यहां मेरा उद्देश्य  नहीं है । अतः मूल विषय पर आते हैं ।

            इन बातों और गुणों का ध्यान रखते हुए ही लोकतन्त्र के सम्यक् संचालन के नियम बनाये गए थे, किन्तु कुछ त्रुटियां रह गयी थी, जिसका नतीजा हुआ कि चन्द दिनों में ही इस व्यवस्था की ऐसी दुर्गति हो गयी ।

 

            मैं ये कहने की धृष्टता या कि उदण्डता नहीं कर सकता कि बनाने बालों ने गलती की थी । बनाने वालों में कई अति प्रबुद्ध विचारक भी थे - इसमें कोई दो राय नहीं । बनाया तो खूब सोच-विचार कर, किन्तु बनाते समय की कुछ विवशता ऐसी थी, जिसका दुष्परिणाम शनैः-शनैः सामने आने लगा । और बहुत जल्द ही हमारा पावन लोकतन्त्र एक सुव्यवस्थित तन्त्र न रह कर, महज़ तमाशा बन कर रह गया मूर्खतन्त्र, अराजकतन्त्र, भीड़तन्त्र...। मज़बूरियों के बीच बनाया गया नियम, तात्कालिक परिस्थिति को मद्देनज़र रखते हुए लिए गए निर्णय ऐसा नहीं कह सकते कि सब गलत ही थे, किन्तु चन्द लोगों के निजी स्वार्थ के कारण ऐसी स्थिति उत्पन्न हुयी ।

            मैं ये नहीं कहता कि बाप बहुत योग्य था, बिलकुल दूध का धोया हुआ, किन्तु दो अति महत्त्वाकांक्षी वेटे जब आपस में जूझने लगें - एक माँ को लेकर, तो क्या बुढ़ापे में बाप दूसरी शादी रचाये ? और यदि शादी रचा भी ले तो क्या सही में वो 'नयी वाली' उन दोनों की सगी माँ कही जा सकेगी ?

नहीं न । ऐसी विकट परिस्थिति में बाप ने निर्णय लिया, भले ही वो बिलकुल बेवकूफी वाला निर्णय था - माँ को ही काटने-बांटने वाला निर्णय । ऐसी ही कुछ विषम परिस्थिति महात्मा भीष्म के सामने भी आयी थी । अनिर्णय की विवशता में ही निर्णय लिया था  उन्होंने - हस्तिनापुर के विभाजन का । किन्तु परिणाम क्या हुआ - दुनिया जानती है ।

फिरंगियों की कुटिल चाल को या तो बूढ़े वाप ने सच में नहीं भांपा या फिर दो जवान जुझारु वेटों की भोंड़ी महत्त्वाकांक्षा ने उसे मज़बूर कर दिया । सत्य-असत्य का इतिहास बहुत घालमेल वाला है । इतिहास वैसे भी बहुत प्रमाणिक नहीं हो सकता । वह अक्षरसः सत्य कदापि नहीं हो सकता । इतिहास तो इतिहास लिखने वाले की मानसिकता का शब्दचित्र मात्र हुआ करता है ।  अब ऐसा तो नहीं है कि कोई महर्षि व्यास - त्रिकालदर्शी व्यास, निष्पक्ष व्यास इतिहास लिखने बैठे हैं, जिसे हर हाल में मान ही लेना चाहिए ।

खैर, ढुलमुल इतिहास से बाहर आकर वर्तमान के आइने में अपने लोकतन्त्र की छवि को निहारने का प्रयास करते हैं ; किन्तु हां, वर्तमान के अवलोकन की सुचारुता-सुस्पष्टता के लिए बीच-बीच में भूत की झलक भी लेते जाना होगा, तभी ठीक से कुछ समझा जा सकेगा ।

संसार के कई प्रमुख नियमों और संविधानों के मनन-चिन्तन, अनुशीलन करने के पश्चात् अपना नया संविधान बनाया गया था । अब कोई आलोचक इसे विविध संविधानों की 'कतरन वाला गेंदड़ा' कह दे तो बात अलग है । वैसे भी गेंदड़ा को गुलदस्ता तो कहा नहीं जा सकता ।

            एक खाश़ियत है हमारे लोकतन्त्र में कहने-बोलने, चीखने-चिल्लाने, उत्पात मचाने, यहां तक कि गाली देने तक की पूरी स्वतन्त्रता है न ! समय-समय पर गाली देते रहो, और ये भी कहते रहो कि हमें बोलने की आजादी नहीं मिल रही है... लोकतन्त्र का हनन हो रहा है...मौलिक अधिकार का हनन हो रहा है...।

आप जानते ही हैं कि विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका और पत्रकारिताइन चार सृदृढ़ स्तम्भों के सहारे हमारा लोकतन्त्र खड़ा है । मेज के इन चार पायों को यदि 'डायगोनल' रखें तो कहना उचित होगा कि धरातल के ईशान कोण पर न्यायपालिका और नैर्ऋत्यकोण पर पत्रकारिता है, तथा अग्निकोण पर विधायिका और वायुकोण पर कार्यपालिका का स्थान है ।

 

इन्हीं बातों को अब जरा दूसरे ढंग से स्पष्ट करते हैं । हमारा भारतीय वास्तुशास्त्र कहता है कि ईशानकोण सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण, मर्यादित और पवित्र होना चाहिए ,क्यों कि वास्तुपुरुष का ये शीर्ष भाग है । इससे ठीक तिरछे यानी नैर्ऋत्य कोण को सबसे सुदृढ़ (मजबूत) होना चाहिए , क्यों वो पृथ्वीतत्त्व है और उसमें बाकी के सभी तत्त्व समाहित से  हैं । वह मालिक नहीं है । हुकूमत करना उसका काम नहीं है, परन्तु सब पर उसकी पैनी नज़र होनी चाहिए । अपने मूल कर्तव्य के साथ अन्य सबके क्रिया-कलापों का मूल्यांकन करते रहना चाहिए । अब दूसरी ओर देखें, जहां अग्निकोण है । इसे बिलकुल जागृत, यानी चैतन्य होना चाहिए , क्यों कि शरीर में अग्नि यानी ऊर्जा का प्रधान स्रोत ही सुदृढ़ नहीं रहेगा, तो शरीर मृत हो जायेगा । इस अग्नि को अपने कार्य में अनुकूलता मिले ताकि वो अपना कर्तव्य-निर्वहण सम्यक रुप से कर सके, इसके लिए वायुतत्त्व की चैतन्यता, जागरुकता, तत्परता अति आवश्यक है । क्यों कि ये यदि लुंजपुंज हो गया तो सब गड़बड़ हो जायेगा ।

ये चारों स्तम्भ(पीलर)अपने-अपने स्थान पर समानधर्मी हैं, समानकर्मी भी, समान उत्तरदायी तो हैं ही । किसी एक पाये को कमजोर कर देंगे यदि तो मेज की सुदृढ़ता पर आँच आयेगी ही - इसमें कोई दो मत नहीं हो सकता । दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि ये चारों अपने आप में स्वतन्त्र हैं (स्वच्छन्द नहीं), फिर भी एक दूसरे के परिपूरक भी हैं ।

पिछले दिनों में हमारे पवित्र ईशान(न्यायपालिका)की मर्यादा भंग हुयी है । इसके लिए कुछ तो वह स्वयं भी जिम्मेवार है और काफी हद तक अग्नि (विधायिका) का योगदान भी रहा है । न्यायपालिका की स्वतन्त्रता पर हावी होने का हर सम्भव प्रयास विधायिका सदा करती रही है । क्यों कि उसे लगने लगा है कि वही सर्वश्रेष्ठ है । वही असली मालिक है लोकतन्त्र का । वह भूल गया है कि उसकी भूमिका एक सहयोगी अंग मात्र की है । वह शरीर नहीं है । विधायिका का ये भ्रामक अहंकार ही लोकतन्त्र के सर्वनाश का कारण बन रहा है ।

इस अहंकार की उत्पत्ति का मूल कारण है अशिक्षा - अज्ञान । जरा खुल कर कहें तो कह सकते हैं कि अयोग्य व्यक्तियों का विधायिका में प्रवेश । विधायिका में प्रवेश के लिए किसी योग्यता प्रमाणपत्र की अनिवार्यता पर कभी ध्यान ही नहीं दिया गया, जब कि ये बहुत ही जरुरी था । सर्वाधिक अनिवार्य शर्त होना चाहिए था योग्यता ।  क्या तुक है कि नियम पालन करने वाले के लिए विशेष योग्यता अत्यावश्यक हैं और नियम बनाने वाले के लिए कुछ नहीं ! कितनी हास्यस्पद है ये बात ! कितनी विचारणीय है ये बात !

किन्तु प्रारम्भ में इस बात (नियम) को बिलकुल नज़रअन्दाज किया गया । स्वतन्त्रता संग्राम में भाग लेना और बात है, जब कि विधायिका चलाना बिलकुल और बात । ये ठीक है कि नियम-कानून बनाने के लिए अनुभवियों और विशेषज्ञों की पूरी टीम होती है, किन्तु उस योग्य टीम का 'हैंडलिंग' तो अयोग्य के हाथ में होता है न ! बीमार घोड़े और अनएक्सपर्ट ड्राईवर से सुरक्षित यात्रा की आशा कैसे रखी जा सकती है ? वो कहीं भी दुर्घटनाग्रस्त हो सकता है । औरों को भी क्षतिग्रस्त कर सकता है ।

योग्यता के मामले में सिर्फ शैक्षणिक योग्यता की ही बात नहीं है, चारित्रिक योग्यता उससे भी कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण है, जिसका कि हमारी विधायिका में निरन्तर अभाव होता जा रहा है । शैक्षणिक योग्यता को तो कार्यानुभव से क़ायल किया भी जा सकता है, परन्तु चारित्रिक योग्यता का तो कोई विकल्प हो ही नहीं सकता । वो तो बिलकुल निजी मामला है ।  शैक्षणिक योग्यता कभी भी हासिल की जा सकती है, किन्तु चारित्रिक योग्यता कहीं बाहर से आने वाली चीज नहीं है । इसे 'एडॉप्ट' नहीं किया जा सकता और न 'हायर' ही किया जा सकता है । 'परचेज' का तो सवाल ही नहीं । 

अशिक्षा और अज्ञानता से ही मूर्खता की उत्पत्ति होती है । मूर्खता जड़ता लाती है । जड़ता में उज्जड्डता पनपती है और सब मिलकर कारण बनता है सर्वनाश का । मूर्ख के सामने, ज़ाहिल के सामने नीति, धर्म, नियम, कानून का कुछ मायने नहीं रह जाता । मानवता भी तुरन्त दानवता में बदल जाती है । हुक़ूमत की ताकत हाथ आते ही निरंकुशता, स्वच्छन्दता सब हावी होने लगता है, क्यों कि ये सब अज्ञानता परिवार के ही सदस्य हैं । और कुल मिलाकर परिणाम ये होता है कि लोक या कि राष्ट्र गौण हो जाता है । मुख्य बन जाता है व्यक्तिगत स्वार्थ, व्यक्तिगत सुखोपभोग, व्यक्तिगत सुरक्षा । अहंकारी, मदकारी विधायिका विसार चुकी है कि वह लोकप्रतिनिधि बन कर प्रस्तुत हुआ है । लोकसेवा ही उसका एक और एक मात्र कर्तव्य है । यही उसका अथ और इति है ।  परन्तु विडम्बना ये है कि सेवक अपने को शासक समझ लिया है और 'लोक' – जो असली मालिक है, हासिये पर चला गया है । नौकर के लिए सारी सुरक्षा व्यवस्था है, सारी सुख-सुविधायें हैं और मालिक भूखे मरे, फटेहाल रहे बीमार रहे, असुरक्षित रहे- इससे उसे कोई मतलब नहीं । चुंकि विधान बनाना उसके हाथ में है, इसलिए वे सारे विधान जो उसके अनुकूल हों, उसने बना रखे हैं । इतने पर भी सन्तोष नहीं हुआ तो तरह-तरह के हथकंठे भी अपना लिए हैं इसने । मालिक की कमजोरी को भुनाने की अच्छी कला सीख ली है नौकर ने । वो पुरानी कहानी पूरी तरह चरितार्थ होती है हमारे लोकतन्त्र पर, जो कि एक राजा ने एक बन्दर को नौकर रख छोड़ा था, जिसने राजा की नाक पर बैठी मक्खी को उड़ाने के उपक्रम में राजा की नाक ही काट डाली । राजा की नाक रहे या कटे, बन्दर को इससे क्या मतलब ? वह तो तथाकथित अपनी ड्यूटी कर रहा है ।

 

अतः विधायिका के इस मूलभूत विकार को यथाशीघ्र दूर करना होगा । प्रवेश के अधिकार से पूर्व हमें सुनिश्चित करना होगा कि व्यक्ति विधायिका के योग्य है भी या नहीं । चारित्रिक रुप से पतित, कलंकित व्यक्ति को कदापि विधायिका का सदस्य नहीं बनने देना होगा । सीधी सी बात है ज्ञानी पत्थर भी मारेगा तो विचार पूर्वक और अज्ञानी फूल भी बरसायेगा तो मूर्खता पूर्वक ही ।  सत्ता का मद ज्ञानी को भी अविवेकी बना दे सकता है, फिर अज्ञानी के लिए क्या कहना ।

 

विधायिका निर्मित विधान के अनुपालन का दायित्व है कार्यपालिका पर । योग्यता की बात यहां सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण और सर्वसम्मत स्वीकृत भी है । शैक्षणिक योग्यता है भी यहीं घुटने टेके । बैद्धिक चेतना का उत्कृष्ठ वर्ग यहीं हुआ करता है बिलकुल दूध से छंटे मलाई की तरह । किन्तु पिछले दिनों में इसकी गुणवत्ता में भी निरन्तर गिरावट आयी है । अयोग्यता यहां भी हावी हुयी है । चारित्रिक पतन यहां भी भरपूर हुआ है । और सबसे बड़ी दुःखद बात ये है कि एक नौकर दूसरे नौकर को अपना निजी नौकर मान बैठा है । हमारी कार्यपालिका विधायिका के हाथों की कठपुतली बनकर रह गयी है । इसकी व्यैयक्तिक स्वतन्त्रता का कोई अस्तित्व ही नहीं रह गया है । ख़ैरियत है कि इसमें निरंकुशता नहीं आयी है ।

 

और इन सारी विकृतियों को दूर करने में अहम भूमिका होती है पत्रकारिता की । पिछले दिनों में इसकी साख पर भी भारी वट्टा लगा है । हालाकि यहां भी वही अयोग्यता वाली बात है । हां, फर्क सिर्फ इतना है कि वहां विधायिका में शैक्षणिक और चारित्रिक दोनों प्रकार के अयोग्यता की भरमार है , तो यहां चारित्रिक अयोग्यता की । निहित स्वार्थ के कारण कर्तव्य-पथ से बिलकुल विमुख सा हो गया है ये पाया । सत्य और ईमानदारी से कोशों दूर होता चला गया है निरन्तर । जिसे बिलकुल निष्पक्ष होना चाहिए था, जिसे सबको खरी-खोटी सुनाने का अधिकार था, जिसने दूध का दूध और पानी का पानी करने का संकल्प लिया था, वो भी किसी न किसी पक्ष का शिकार हो गया है । किसी खास के पिंजरे में बन्द तोता बन गया है ।

 

सोचने वाली बात है- न्याय यदि बिकने लगे, मुंह देखी करने लगे, किसी के दबाव में आकर सही को गलत और गलत को सही साबित करने लगे, उसे भी अपनी कुर्सी की चिन्ता सताने लगे तो क्या गति होगी लोकतन्त्र की ! ठीक यही बात पत्रकारिता पर भी शतशः लागू होती है ।

 

कुल मिलाकर विचार करें तो दावे के साथ कह सकते हैं कि लोकतन्त्र के चारों पाये दुर्बल हो गए हैं । बीमार हो गए हैं । जिसमें एक पाया तो बिलकुल सड़ गया है । उसका ' ट्रान्सप्लान्टेशन ' यथाशीघ्र अनिवार्य है, अन्यथा शेष अंगों में भी ' गैन्ग्रीन ' होने की पूरी आशंका है ।  साधारण दवा से ठीक होने लायक स्थिति बिलकुल नहीं है । प्लास्टिक सर्जरी से भी काम चलने को नहीं है। केश मेजर ऑपरेशन वाला है । किन्तु विडम्बना ये है कि  सुव्यवस्थित ऑपरेशन थियेटर का भी अभाव है । अतः उचित है कि किसी प्राकृतिक आरोग्यशाला में ' पंचकर्म ' चिकित्सा के लिए तत्काल भर्ती करा दिया जाए ।

लोकतन्त्र के मनबढ़ुए-दुलरुए

 

खबर है कि इमामगंज थाना के पड़रिया गांव में अवैध शराब की छापेमारी के लिए गये सुरक्षाबलों पर जम कर रोड़ेबाजी हुयी, डी.एस.पी. समेत चार लोग घायल हुए , दो सिपाहियों को ग्रामीणों द्वारा बन्धक भी बनाया गया...।

            ऐसी खबरों की कोई खास अहमियत नहीं रह गयी हैं अब, क्यों कि बातें पुरानी हो चुकी हैं ।  रोड़ेबाजी की हवा जोरों से चल पड़ी है । पुलिस के जवान हों या कि सेना के जवान, आए दिन सबका सामना हो रहा है ऐसे पत्थरबाज़ों से ।

विरोध के ये हथकंडेऐसी भावनायें संक्रामक बीमारी की तरह  फैल रही हैं चारो ओर और सभी रहनुमा मूक द्रष्टा की भूमिका में हैं । या तो इसे गम्भीरता से ले नहीं रहे हैं, या कोई संवैधानिक लाचारी आड़े आ रही है !

            कहते हैं कि विरोध-प्रदर्शन लोकतन्त्र का अधिकार है । ठीक है, मान लेते हैं थोड़ी देर के लिए । किन्तु ' ढाल ' जब ' तलवार ' बन जाये, तो क्या गम्भीरता पूर्वक पुनर्विचार नहीं होना चाहिए ? या फिर किसी भयावह दुर्घटना के इन्तज़ार में हैं ?

            क्या समस्या है कोई कठोर या बेरहम कदम उठाने में ? क्यों झेले जा रहे हैं ये दंश इतने दिनों से ? सैनिकों और सुरक्षाबलों पर वार करने वाले, रोड़ेबाजी करने वाले क्या किसी आतंकवादी से कम हैं ? और फिर अपराधी का साथ देने वाला, संरक्षण देने वाला, सुझाब देने वाला, वरगलाने वाला- सभी तो लगभग एक जैसे अपराधी ही हैं ।

फिर क्यों नहीं कुछ ठोस कानून बनाया जाता ? कानून और उसका ' एम्प्लीमेन्टेशन ' ऐसा होता कि भविष्य में किसी कानून तोड़ने वाले को नानी याद आ जाती । एकल या कि सामूहिक दुष्कर्म, हत्या,घोटाला, देशविरोधी नारे जैसे जघन्य अपराध करके भी अपराधी सीना ताने बेहयायी पूर्वक हमारे सामने घूमता है, और हम बयान बाजी में भिड़े रहते हैं ।

वर्षों के संघर्ष और इन्तज़ार के बाद , जटिल और उबाऊ न्याय-प्रक्रिया से गुज़रने के बाद सजा भी मिलती है तो चूरन-चटनी माफ़िक । और वो भी जेल न हुआ मानों ससुराल हो गया । सजायाफ़्ता में ये वी.आई.पी. शब्द कहां से जुड़ गया ?

कोई कठोर कानून बनाने में क्या समस्या है ? या कि सात पुस्तों के लिए स्थायी सम्पत्ति बनाने के चक्कर में ज़रुरी और समुचित कानून बनाने की जिम्मेवारी ही समझ नहीं आ रही है ? और यदि ऐसा ही है तो फिर क्यों बेवकूफ बनाये जा रहे हैं हमें ?

लोकतन्त्रता ही नहीं गणतन्त्रता की दुहाई देते हैं और विचार ऐसे पाले हुए हैं मन में, जिसे इन दोनों से कोई वास्ता ही नहीं ।

' भारत तेरे टुकड़े होंगे ' का नारा लगाने वाले को कठोर दण्ड देने के वजाय, गंदी राजनीति करके उसे नवोदित नेता का रुप दे दिया- इससे दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति और क्या हो सकती है ? भारत को बांटने में जिसकी खलनायकी भूमिका रही उसकी ' तस्वीर' पर मूर्खतापूर्ण ही नहीं, हास्याष्पद राजनीति करने वाले को दिमागी-दिवालिया नहीं तो और क्या कहेंगे ? अनुयायियों और अन्धभक्तों की भीड़ जुटाकर,रंगरेलियाँ मनाने वालों को दोषी करार देने में भी न्याय और व्यवस्था को पसीने छूट रहे हैं । सीमा सम्भालने वाले को पागलों की भीड़ सम्भालनी पड़ रही है । आँखिर ऐसा कमजोर कानून हमने बनाया ही क्यों ?

            चारों ओर से ग्रील लगे कमरे में किसी अवोध बालिका के साथ दुष्कर्म होते रहने की साज़िश पूर्ण वारदात पर खबरिया लोग हफ्तों भुनाते रहे अपना टीआरपी और अब न्यायालय के माथे ठीकरा फोड़ने को उतारु हैं । घटना हुयी या साजिशनिष्पक्ष रुप से ' ग्राउण्ड रिपोर्टिंग ' जांच-पड़ताल किए वगैर किसने अधिकार दे दिया था इन्हें चीखने को ? और अब चाहते हैं कि मियां-बीबी के झगड़े को भी सी.बी.आई. ही निपटाये ? लोकतन्त्र के इसी चौथे पाये पर नाज़ है

सत्ताधारी हों या कि विपक्ष, अपने-अपने कर्त्तव्य-क्षेत्र में क्यों नहीं बंधते ? लोकतन्त्र की कराहती आत्मा की पुकार क्यों नहीं सुनायी पड़ती ? भारत माता की कटी बाहें क्यों नहीं दीखती ?

सत्ताधारी तो प्रायः सत्ता के मद में चूर रहता ही है । किन्तु विपक्ष क्या सिर्फ गाल बजाने के लिए बैठा है ? मेडिकल की भाषा में यदि कहें तो विपक्ष को लोकतन्त्र की ' काया का किडनी ' कहने में कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए । सत्तापक्ष की अवांछित गंदगी को छान-छून कर बाहर निकाल फेंकने की बड़ी महत्त्वपूर्ण भूमिका है विपक्ष की ।

किन्तु इस किडनी के सारे के सारे ' नेफ्रॉन ' अब कुछ और ही जिम्मेवारी सम्भाल लिए हैं । गन्दगी का छानबीन करने के बजाय, दिल और दिमाग तक को निकाल फेंकने को उतारु हो जा रहा है विपक्ष । उनका एक मात्र उद्देश्य हो गया है- सत्ता की आलोचना...नहीं नहीं केवल शिकायत । बात-बात में बाल के खाल खींचना ।  साधारण सी बात को भी तूल दे देना । किसी भी घटना को धार्मिक,साम्प्रदायिक,लिंगीय,जातीय,क्षेत्रीय आदि खांचे में ढकेल कर बवाल खड़ा करा देना और अपनी गोटी सेट करने की तिगड़म करना - वस सिर्फ यही काम रह गया है विपक्ष का । वोट खरीदने के लिए चट जनेऊ पहनकर तिलक धारण कर लेना हो या कि पायजामे का नाड़ा खोल कर ' निहुर ' जाना पड़े - विपक्ष कुछ भी कर सकता है पक्ष पाने के लिए सत्ता हथियाने के लिए । भारतमाता के सुख-सौभाग्य से विपक्ष को कुछ लेना-देना नहीं । ठीक वैसे ही जैसे कोई स्त्री अपनी सौतन को विधवा बनाने की होड़ में खुद को विधवा बना लेना सहज ही कबूल कर लेती है । विपक्ष को किसी अच्छाई या बुराई से कोई वास्ता नहीं । वास्ता है सिर्फ सत्तापक्ष के हर काम में अड़ंगा लगाना, भले ही देश या देशवासी का कितना हूं नुकसान क्यों न हो जाये । 

कुर्सी कैसे हमारी हो दिवा स्वप्न का यही फ़ितूल केवल घूमते रहता है दिमाग में । बाकी बातों के लिए वक्त ही नहीं बचता । कुर्सी मिले कैसे, कुर्सी बंचे कैसे, कुर्सी को भोगें कैसे- इस ' बाउण्डरीवाल ' से जरा भी बाहर का कुछ दीखता-सूझता ही नहीं ।

 

नाटे से शरीर में, छोटी सी खोपड़ी में बड़ी सी बुद्धि रखने वाले एक राष्ट्रभक्त ने बहुत पहले ही कहा था –  ' सम्भल जाओ, नहीं तो नक्शे से नामोनिशान मिटा देंगे । '

ये सुकृत्य कब का ही हो चुका रहता, किन्तु कुछ दुर्बुद्धियों को रास न आयी उसकी बातें, और बड़े षडयन्त्रकारी अंदाज में उसका ही काम तमाम कर दिया गया । एक वैसा ही राष्ट्रप्रेमी फिर दहाड़ लगा रहा है, जिसका व्यक्तिगत कुछ भी नहीं । जो भी है राष्ट्र के लिए है । परन्तु सारे गीदड़ मींटिग-सीटिंग में लगे हैं कि शेर को पछाड़ा कैसे जाये ।

एक बड़े साहसी ने बहुत पहले ही दुस्साहस दिखाया था शराब-बन्दी का, पर ज़ाहिलों की ज़मात में सत्ता गवांनी पड़ी थी । फिर एक ऐसे ही दुस्साहसी ने शपथ ली है । परन्तु उसका साथ देने के बजाय हम रोड़ेबाजी कर रहे हैं...करवा रहे हैं ?

 

चुल्लु भर भी पानी मिले, नहीं तो फल्गु वाली नाली ही सही , डूब मरना चाहिए नाक डुबो कर । वेटों को तर्पण भी नहीं करना पड़ेगा । किन्तु नहीं, सत्ता के भूखे भेड़ियों में इतनी समझ नहीं होती । डूब मरने के लिए भी साहस चाहिए । हिम्मत चाहिए ।

 

मुगलों ने नोच-चोंथ कर खाया, फिरंगियों ने कांटे-चम्मच के उलट-पुलट कर खाया सोने की चिड़िया को । और अब ' चिल्ली-सॉश ' के साथ खाये जा रहे हैं हमारे अपने ही, तथाकथित लोकतन्त्र के रहनुमा ।

 

क्या लगता है- ये जो कुछ भी हो रहा है पूरे देश मेंक्या सच में हम इतने जागरुक हो गए हैं आजकल हम इतने राम-भक्त हो गए हैं हम इतने गो-भक्त हो गये हैं हम इतने नारी-भक्त हो गये हैं ? हम इतने संवेदनशील हो गए हैं ?

असल में हम कुछ नहीं हुए हैं । हुए होते कुछ, तो क्या यही रुप होता आज इतने दिनों बाद भी हमारा ?

 

असली बात तो ये है कि हम कुछ मनबढ़ुये-दुलरुए पाल रखे हैं । जरुरत पड़ने पर इस़्तेमाल करने के लिए । और तरह-तरह का नाम दे रखे हैं उनका - जातिगत नाम, धर्मगत नाम, वर्णगत नाम, वर्गगत नाम...। हालाकि ये मनबढ़ुए-दुलरुए सिर्फ गीदड़ों की टोली में ही नहीं , बल्कि शेर की टोली में भी हैं ।

 

किन्तु सीधी सी बात है कि इतने वर्षों में कुछ खास नहीं कर पाये, तो अब क्या खाक करोगे ? फिर भी पूंछ रंगवा रहे हैं, मूंछ रंगवा रहे हैं । 

 

परन्तु याद रखो - हम बूझ चुके हैं । समझ चुके हैं । अब धोखे में न रखो, क्यों कि जान गये हैं—  भोजपुरी में एक कहावत है- ' देखिहऽ रेऽ लयिऽकन ! सियराऽ ओही वा, पोंछीयाऽ रंगइले वा ।'

 

देर से सही पर सेना को ' ऑल आउट ' का आदेश एक सराहनीय पहल है । किन्तु कुछ ऐसा ही ' हुड आउट ',  ' किक आउट ', ' शूट आउट ' वाला कानून भी बनाना होगा  और इसके लिए दृढ़ इच्छा-शक्ति की जरुरत होगी ।  इसके बदौलत ही मनबढ़ुओं-दुलरुओं का मन ' थोर होगा ।

 जय हिन्द ।। वन्देमातरम् ।।

चुनावी हिंसाःलोकतन्त्र पर कुठाराघात

 

कहने को तो हमारे यहाँ लोकतन्त्र है, किन्तु विचार करने पर बहुत कम ही लक्षण मिलता है लोकतन्त्र का । भले ही लेबल ख़ालिस लोकतन्त्र वाला है, किन्तु भीतर में  ख़ालिसपना वाला खाना ख़ाली है लगभग ।

 

हम इस बात का दावा भी नहीं कर सकते कि ये सब नया हो रहा है । दरअसल बीमारी बिलकुल पुरानी है, जिसका संक्रमण दिनों दिन बढ़ते जा रहा है और बहुत तेजी से बढ़ रहा है, इसमें कोई दो राय नहीं ।

 

किसी प्रबल प्रतिद्वन्द्वी को रास्ते से हटा देने का चलन बिलकुल पुराना है - लोकतन्त्र की स्थापना से भी पुराना । समय-समय पर इसकी आवृत्ति भी होते रही है ।  सुभाष और शास्त्री इसके दो ज्वलन्त उदाहरण हैं । और दोनों घटनायें अभी भी रहस्य के गर्भ में ही हैं, भले ही समय-समय पर जनता में कुछ चूरन-चटनी सी बांट दी जाती हैं - इनसे जुड़ी बातें ।

 

घटना के प्रति खेद व्यक्त कर देना और जांच कमीटी का तत्क्षण गठन कर देना भी पुराना ट्रेन्ड है । इधर कुछ दिनों से एक नया तरीका भी अख़्तियार कर लिया गया है - मुआवज़ा करारोपण द्वारा संचित धन का अज़ीबोगरीब उपयोग । और ये मुआवज़ा लेने वाले लोग तो और भी अज़ीब हैं हमारे लोकतान्त्रिक समुदाय में । धन्य है हमारा लोकतन्त्र और धन्य हैं इसके रहनुमा ।

 

' अहिंसा परमो धर्मः 'इस आधे-अधूरे नीति-वचन को जनमानस में बड़ी कलाबाज़ी से परोस कर धर्म की अद्भुत परिभाषा समझायी गयी है पिछले कई दशकों में । पूरा नीति-वचन तो शायद ही पता हो किसी को । पूरा जानने का प्रयास भी शायद ही किसी ने किया हो ।

 

            खेद है कि ऐसे स्लोगन वाले देश में बिना हिंसा के चुनाव की कल्पना ही नहीं की जा सकती । बंगाल का पंचायती चुनाव और उस बीच हुये वारदात इसके ताज़े नमूने हैं । सोचने पर विवश होना पड़ता है कि क्या यही हमारा लोकतन्त्र है ?

            रेखागणित का सिद्धान्त है कि किसी लकीर को बिना छेड़छाड़ किये उसके नजदीक एक दूसरी लकीर खींच दो, जो उस पहले वाली से बड़ी हो । स्वाभाविक है कि वो पहले वाली लकीर छोटी दीखने लग जायेगी ।

किन्तु दुःखद दशा ये है कि इस छोटे से सिद्धान्त को हमारे बड़े-बड़े नेता समझ नहीं पा रहे हैं या समझना जरुरी नहीं समझ रहे हैं । वो सिर्फ एक ही तरीका जानते हैं - पहली वाली लकीर को काटना-छांटना-मिटाना । अपना कद बड़ा करने की कोशिश वे कदापि नहीं करते हैं । अगले वाले का कद छोटा करने का हर तिगड़म करने में ही मश़गूल रहते हैं, जो कि बड़ी शर्मनाक और भविष्य के लिए चिन्ताजनक बात है । कभी कुछ अच्छे काम करने जैसा दिखाना भी चाहते हैं, तो वैचारिक दिवालियापन ऐसा है कि उनकी प्रस्तुति सर्कश के जोकर से जरा भी भिन्न नहीं होती । 

           

हमारे पावन लोकतन्त्र पर अनेक तरह से प्रहार निरन्तर हो रहे हैं । वोट पाने के लिए तरह-तरह के घृणित और हास्यास्पद हथकंडे अपनाये जा रहे हैं । एक दूसरे को नीचा दिखाने में कोई भी कोरकसर नहीं छोड़ा जा रहा है । सामने वाले की गलतियां दिखाने में ही हमारा सारा समय चूक जा रहा है । इसे ही हम लोकतन्त्र की सेवा समझ ले रहे हैं । केवल वाक्-वाण से भी सन्तोष नहीं हो रहा है, और अन्ततः हत्या पर उतारु हो जा रहे हैं । सब्ज़बाग, झूठ, फ़रेब, मक्कारी और हिंसा पर ही आकर ठहर गया है हमारा लोकतन्त्र ।

           

आये दिन राजनैतिक और चुनावी हत्यायें काफी तेजी से बढ़ रही हैं । मुझे लगता है इसके पीछे सबसे बड़ा कारण है समाज के सबसे अयोग्य व्यक्ति का राजनीति में प्रवेश तथा जिम्मेवार पदों पर गैरजिम्मेवार और अयोग्य व्यक्तियों का आसीन होना । हालाकि शिक्षा, कला, अभियन्त्रणा आदि विभिन्न क्षेत्रों से भी लोगों का आना हुआ है , पर अपराधी प्रवृति वालों का वर्चश्व रहने के कारण लोकतन्त्र की गरिमा को प्रायः ठेंस ही पहुँची है । 

            क्या ही अच्छा होता , नियमों और शर्तों में आमूलचूल परिवर्तन करके एक सुदृढ़ स्वस्थ व्यवस्था और परम्परा का श्रीगणेश होता, जिसमें आपराधिक मामलों के ' इतिहास और वर्तमान ' वालों का सर्वथा-सर्वदा प्रवेश निषेध होता लोकतन्त्रान्त्रिक व्यवस्था में । चुनाव आयोग इतना शख़्त होता कि ऐसे लोगों को कदापि नामांकन का मौका न मिलता । सर्वोच्च न्यायालय स्वयं संज्ञान लेता और चुनाव पूर्व में बिलकुल राष्ट्रपति शासन जैसी स्थिति बहाल होती, बल्कि उससे भी कठोर  । अनाप-सनाप चुनावी खर्चे पर कठोर नियन्त्रण का प्रावधान होना चाहिए । चुनाव के नाम पर चन्दा लेने और देने की परम्परा पर ही रोक लगनी चाहिए । कालेधन वाला चन्दा मिलना बन्द हो जाये यदि तो फ़ालतू खर्चे अपने आप कम हो जायेंगे ।  हत्या जैसा कुकृत्य तो बहुत बड़ी बात है, सामान्य मार-पीट, कहा-सुनी जैसी घटना भी यदि किसी प्रत्यासी या उसके कार्यकर्ता द्वारा प्रमाणित हो तो अविलम्ब उसे निरस्त किया जाना चाहिए । उसकी विजय को अमान्य करार दिया जाना चाहिए । और सिर्फ आगामी ही नहीं,बल्कि आजीवन अयोग्य घोषित किया जाना चाहिए । निर्णय और न्याय की प्रक्रिया त्वरित, सहज और पारदर्शी हो । इस बात का भी सुनिश्चय हो कि प्रत्यासी को निलम्बित करने हेतु मिथ्या आरोप तो नहीं है । क्यों कि पूरी सम्भावना होगी - इस नियम के दुरुपयोग का, जैसा कि हमारे यहां किसी अन्य कानूनों के साथ हुआ करता है ।

 

वैसे भी बात-बात में हम सेना का प्रायः दुरुपयोग ही करते हैं । अदनों काम में सेना को लगा देते हैं । तो क्यों न लोकतन्त्र की मर्यादा की रक्षा के लिए सेना का उपयोग किया जाय । चुनाव प्रक्रिया का आधुनिकीकरण हुआ है, फिर भी अभी बहुत कुछ सुधार की अपेक्षा है । ई.वी.एम. के आने से काफी सुविधा हुयी है । आधुनिक तकनीक का उपयोग करते हुए ऐसी व्यवस्था होती कि घर बैठे ही जनता वोट दे दे ।

इसका प्रत्यक्ष लाभ ये होता कि चुनाव के दौरान होने वाली विविध दुर्घटनायें रुकती और व्यवस्था जनित भारी व्यय-भार से भी राष्ट्रीय धन को मुक्ति मिलती ।

           

किन्तु ये सब करने के लिए दृढ़ इच्छा शक्ति की आवश्यकता है । नियम बनाने और फिर उसका सही अनुपालन कराने वाले योग्य व्यक्ति की आवश्यकता है । और इन सबके लिए सर्वाधिक आवश्यकता है नैतिक-शिक्षा और संस्कार की , जिसकी आपूर्ति वर्तमान शिक्षा-नीति और व्यवस्था में कदापि सम्भव नहीं । अस्तु ।

                     
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आंखों में ड्राइनेस के मामले में 40 से 50 फीसदी की वृद्धि, काेराेना काल में स्क्रीन टाइम बढ़ने से बढ़ी शिकायत

Posted: 10 Nov 2020 05:24 PM PST

आईजीआईएमएस के नेत्र विभाग के ओपीडी में आंखों में ड्राइनेस की शिकायत लेकर आने वाले बच्चों की संख्या में 40 से 50 फीसदी की वृद्धि हुई है। बच्चे इससे अधिक पीड़ित हैं। वैसे आंखों में ड्राइनेस की शिकायत हर उम्र के लोगों में मिल रही है।

मंगलवार को इसकी पुष्टि संस्थान के मेडिकल सुपरिटेंडेंट डॉ. मनीष मंडल और वरीय नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. निलेश मोहन ने की। उन्होंने बताया कि काफी बच्चे आंखों में ड्राइनेस की शिकायत लेकर आ रहे हैं। सिर्फ बच्चों के आंखों में ड्राइनेस को लेकर ओपीडी में 40 से 50 फीसदी की वृद्धि हुई है। स्क्रीन टाइम बढ़ने से बच्चों के नींद में भी खलल पड़ गई है। बच्चे आंखों में दर्द की भी शिकायत कर रहे हैं।
डाॅ. मनीष मंडल के मुताबिक कोरोना काल में बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक का स्क्रीन टाइम बढ़ गया है। यानी मोबाइल, लैप टॉप, कंप्यूटर और टीवी पर इनका अधिकांश समय व्यतीत हो रहा है। खासकर, स्कूली बच्चों की पढ़ाई मोबाइल और लैपटॉप पर हो रही है। आउटडोर गेम बंद होने से मनोरंजन भी मोबाइल पर ही हो रहा है। इस वजह से बच्चों का स्क्रीन टाइम बढ़ गया है।

स्कूल की पढ़ाई के बाद परीक्षा भी मोबाइल और लैपटॉप पर देनी पड़ रही है। महिला और बुजुर्गों भी समय गुजारने के लिए टीवी देख रहे हैं। इस कारण इन लोगों में आंखों में ड्राइनेस की शिकायत बढ़ गई है। बच्चों में ड्राइनेस की वजह से आंखों में इचिंग (खुजली), फ्रंटल हेडेक (अधकपारी), जलन, आंखों की थकान, लालीपन, नींद में कमी की समस्या देखी जा रही है। नींद में भी और चिड़चिड़ापन बच्चाें में आम शिकायत है।

ऐसे करें बचाव
यदि लगातार मोबाइल और लैपटॉप का इस्तेमाल कर रहे हैं तो बीच-बीच में लंबी दूरी पर देखने की कोशिश करें। इससे आंखों थोड़ी राहत मिलेगी। संभव हो तो बीच-बीच में ऑफ स्क्रीन हो जाएं। घर में जगह हाे तो खेलकूद करें। ठंडे पानी से नियमित आंखाें काे धोएं। काेई समस्या हाे ताे डाॅक्टर से सलाह लें।



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40 to 50 per cent increase in case of dryness in eyes, increase in screen time in Kareena era


source https://www.bhaskar.com/local/bihar/patna/news/40-to-50-per-cent-increase-in-case-of-dryness-in-eyes-increase-in-screen-time-in-kareena-era-127904517.html

चुनाव में खूब मालामाल हुए तस्कर, आचार संहिता में पकड़ी गई 1.39 करोड़ की शराब

Posted: 10 Nov 2020 05:24 PM PST

बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान शराब बेचने वाले और पीने वालों की चांदी रही। हालांकि, शराब के धंधेबाजों और नशेड़ियों के खिलाफ पटना पुलिस और उत्पाद विभाग की टीम ने जमकर कार्रवाई भी की। आचार संहिता लागू होने के बाद पटना जिले के 14 विधानसभा क्षेत्रों में 25 सितंबर से 2 नवंबर के बीच उत्पाद विभाग की टीम ने एक करोड़ 38 लाख 90 हजार 639 रुपए (1,38,90,639) की विदेशी और देसी शराब जब्त किया। इस दौरान टीम ने 314 मामले दर्ज किए, जिसमें 63 शराब तस्करों और 10 पीने वालों को गिरफ्तार किया।
दानापुर से 12080 किलो जावा महुआ बरामद : विधानसभा वार हुई कार्रवाई को देखें तो फतुहा विधानसभा क्षेत्र से सबसे अधिक 871 लीटर विदेशी शराब बरामद हुआ। फतुहा विधानसभा इलाके से छापेमारी दस्ते ने 1955 लीटर देसी शराब और 3600 किलो जावा महुआ भी बरामद किया। वहीं सबसे अधिक देसी शराब पटना साहिब से 2246 लीटर बरामद हुआ।

पटना साहिब से इस दौरान उत्पाद की टीम ने 413 लीटर विदेशी शराब बरामद किया। दूसरे नंबर पर फुलवारीशरीफ विधानसभा रहा, जहां से 830 लीटर विदेशी शराब बरामद हुआ। वहीं फुलवारीशरीफ विधानसभा से 820 लीटर देसी शराब और 7833 किलो जावा महुआ यहां से बरामद हुआ। सबसे अधिक जावा महुआ दानापुर विधानसभा से 12080 किलो बरामद हुआ। दानापुर से विदेशी शराब 75 लीटर और देसी शराब 696 लीटर बरामद हुआ।
आचार संहिता के दौरान 13 वाहन हुए जब्त, 10 आरोपी चल रहे फरार
आचार संहित के दौरान शराब पीने और बेचने के मामले में सबसे अधिक 16 लोगों को दीघा विधानसभा इलाके से गिरफ्तार किया। वहीं 14 आरोपियों को पटना साहिब विधानसभा से गिरफ्तार किया गया। इस दौरान पुलिस ने कुल 73 आरोपियों को गिरफ्तार किया। 10 आरोपी फरार चल रहे हैं वहीं 237 अज्ञात पर भी मामला दर्ज किया गया है। अचार संहिता के दौरान शराब तस्करी के खिलाफ 1136 छापेमारी हुई, जिसमें 314 एफआईआर दर्ज किया गया।



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Smugglers profited in elections, 1.39 crore liquor caught in code of conduct


source https://www.bhaskar.com/local/bihar/patna/news/smugglers-profited-in-elections-139-crore-liquor-caught-in-code-of-conduct-127904514.html

दिवाली और छठ पर्व को लेकर दो दर्जन से अधिक ट्रेनों का परिचालन

Posted: 10 Nov 2020 05:24 PM PST

दिवाली व महापर्व छठ पूजा के दौरान यात्रियों की सुविधा के लिए पूर्व मध्य रेल क्षेत्राधिकार से दो दर्जन से अधिक पूजा स्पेशल ट्रेनों का परिचालन किया जा रहा है। पूर्व मध्य रेल के सीपीआरओ राजेश कुमार ने बताया कि जरूरत के अनुसार और स्पेशल ट्रेनों का परिचालन किया जाएगा। रेलवे की पूरी कोशिश है कि जो भी यात्री इन त्योहारों में अपने घर आना चाहते हैं, उन्हें किसी तरह की असुविधा नहीं हो। बताया कि ये सभी स्पेशल ट्रेनें पूर्णतः आरक्षित हैं।

इन ट्रेनों का हो रहा परिचालन, सभी पूरी तरह से आरक्षित हैं
07003/04 हैदराबाद-रक्सौल-हैदराबाद, 07009/10 हैदराबाद-दरभंगा-हैदराबाद, 05251/05252 दरभंगा-जलंधर कैंट-दरभंगा, 03255/03256 पाटलिपुत्र-चंडीगढ़-पाटलिपुत्र, 02355/02356 पटना-जम्मूतवी-पटना, 03259/03260 पटना-सीएसएमटी मुंबई-पटना, 02395/02396 राजेन्द्रनगर-अजमेर-राजेन्द्रनगर, 02577/02578 दरभंगा-मैसूर-दरभंगा, 03251/03252 पाटलिपुत्र-यशवंतपुर-पाटलिपुत्र, 02397 व 02398 गया-नई दिल्ली-गया, 02352/02351 राजेन्द्रनगर-हावड़ा-राजेन्द्र नगर, 02545/02546 रक्सौल-लोकमान्य तिलक-रक्सौल, 03305 धनबाद-गया इंटरसिटी एक्सप्रेस, 03356 गया-किउल मेमू, 03355 किउल-गया मेमू, 08623/08624 इस्लामपुर-हटिया-इस्लामपुर, 08625/08626 पूर्णिया कोर्ट-हटिया-पूर्णिया कोर्ट, 08183/08184 दानापुर-टाटा-दानापुर, 03329 धनबाद-पटना, 03330 पटना-धनबाद स्पेशल, 03347 बरकाकाना-पटना, 03348 पटना-बरकाकाना, 03349 सिंगरौली-पटना, 03350 पटना-सिंगरौली, 05284 जयनगर-मनिहारी, 05283 मनिहारी-जयनगर, 03288 राजेंद्रनगर टर्मिनल-दुर्ग, 03287 दुर्ग-राजेंद्रनगर टर्मिनल, 02363 पटना-रांची, 02364 रांची-पटना, 04434/04433 आनंद विहार टर्मिनल-जयनगर, 04436/36 आनंद विहार टर्मिनल-सहरसा, 04004/03 पटना-नई दिल्ली, 04304 हरिद्वार-सहरसा, 04438 आनंद विहार टर्मिनल-सहरसा, 04502 सहारनपुर-मुजफ्फरपुर, 08255 रांची-पटना सुपरफास्ट, 03055 हावड़ा-बेतिया पूजा स्पेशल।



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More than two dozen trains operating for Diwali and Chhath festival


source https://www.bhaskar.com/local/bihar/patna/news/more-than-two-dozen-trains-operating-for-diwali-and-chhath-festival-127904504.html

ड्यूक हॉस्टल में अवैध तरीके से रह रहे छात्र को गोलियों से भूना, मौत; प्राचार्य ने कहा-जांच हाेगी

Posted: 10 Nov 2020 04:25 PM PST

एलएस काॅलेज के ड्यूक हॉस्टल के सामने का मैदान मंगलवार की शाम तीन बजे गाेलियाें की तड़तड़ाहट से गूंज उठा। बाइक सवार बदमाशों ने कटरा के धनाैर निवासी छात्र राजवर्धन कुमार काे खदेड़ कर गाेली मार दी। उसकी माैत हाे गई। गाेली चलते ही मैदान में क्रिकेट खेल रहे छात्र जान बचाने के लिए भागे।

घटनास्थल से पुलिस ने 8 खाेखा बरामद किया है। मृतक के सिर व सीने में छह से अधिक गाेली लगी थी। वह विवि में इलेक्ट्रॉनिक्स में पीजी का छात्र था। जांच काे पहुंची एसआईटी काे हॉस्टल गेट के पास झाड़ी में बेस बाॅल स्टिक मिला है। एसआईटी ने हॉस्टल में वर्चस्व काे लेकर घटना हाेने की अशंका जताई।

हालांकि, एसकेएमसीएच में राजवर्धन के चाचा रामनरेश सिंह ने जमीन विवाद में गांव के ही राम विनोद सिंह पर साजिश रच हत्या कराने का आरोप लगाया। मृतक के चाचा ने साेनू मिश्र और माेनू मिश्र की संलिप्तता भी हत्या में बताई। हालांकि, रामनरेश सिंह के मीडिया के सामने इस आरोप काे वहां मौजूद कुछ ग्रामीणों ने झूठा करार दिया। इस पर पोस्टमार्टम हाउस के सामने हंगामा हाे गया। नगर डीएसपी राम नरेश पासवान ने ग्रामीणों काे अलग कर हंगामा शांत कराया। देर शाम तक परिजनों ने बयान दर्ज नहीं कराया।

हाॅस्टल में अवैध ढंग से रह रहा था मृतक समेत 6 छात्र, प्राचार्य ने कहा-जांच हाेगी

ड्यूक हॉस्टल में राज वर्धन समेत आधा दर्जन छात्र अवैध ढंग से रह रहे थे। पुलिस ने उसके कमरे की तलाशी ली। उसके सामान से बहुत कुछ पुलिस काे नहीं मिला। कमरा नंबर 69 में वह रहता था। उसके नाम डॉक्टर का पर्ची भी मिला है। एलएस काॅलेज के प्राचार्य डाॅ. ओपी राय ने बताया कि हॉस्टल में मात्र सात छात्रों काे कमरा आवंटन था। हॉस्टल के कमरे में यदि राजवर्धन के सामान मिले हैं ताे निश्चित ही अवैध ढंग से रह रहा था। इसकी जांच की जाएगी।
एक दिन पहले विवि इलाके से पिस्टल साथ धराया था शातिर

एक दिन पहले विवि इलाके से पुलिस ने तुर्की के एक शातिर काे लेडेड पिस्टल के साथ दबोचा था। उससे पूछताछ के बाद पुलिस मामले में छापेमारी कर रही थी। गोबरसही के प्रभात नगर से भी टॉफी यादव नामक शातिर काे दबोचा गया था।

दाे युवक पिस्टल से चला रहा था गाेली

ड्यूक हॉस्टल में राजवर्धन अपने कमरे में था। 2 बाइक से 6 हमलावर पहुंचे थे। हॉस्टल में ही पहले उठा-पटक हुई। वहां से खींचकर बाहर लाया। भागा तो हमलावरों ने उसे पेड़ के पास दबाेच लिया। यहीं पर उसे गाेली मारी गई। प्रत्यक्षदर्शियों ने कहा कि दाे युवक पिस्टल से गाेली चला रहा था। 10 राउंड से अधिक गाेली चली है।

हॉस्टल अनिश्चितकाल के लिए बंद

एलएस कॉलेज कैंपस में छात्र की हत्या के बाद ड्यूक हॉस्टल को अनिश्चितकाल के लिए बंद कर दिया गया है। प्राचार्य डॉक्टर ओपी राय ने कैंपस और इसके आसपास के क्षेत्र में गश्ती किए जाने को लेकर पुलिस को पत्र लिखा है। सभी छात्रों को बुधवार सुबह 10:00 बजे तक हर हाल में हॉस्टल खाली करने का निर्देश जारी किया गया है।

बमबाजी व गाेली बारी का था आरोपी

नगर डीएसपी राम नरेश पासवान ने बताया कि राजवर्धन विवि थाने के आर्म्स एक्ट व विस्फोटक अधिनियम का आरोपी रहा है। वह इस मामले में जेल गया था। विवि इलाके में बमबाजी व फायरिंग मामले में भी आरोपी था।

हाल ही में जेल से निकला था राजवर्धन
कटरा थाने के वर्ष 2017 के मामले में राजवर्धन काे जेल भेजा गया था। लूट और आर्म्स एक्ट के मामले में पुलिस ने उसे जेल भेजा था। पुलिस टीम उसका आपराधिक रिकार्ड खंगाल रही है। अहियापुर थाने का केस रिकार्ड पलटा जा रहा है। एसएसपी ने कहा कि आपराधिक चरित्र था, हत्या की वजह की जांच चल रही है।



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घटनास्थल के पास जांच करती पुलिस।


source https://www.bhaskar.com/local/bihar/muzaffarpur/news/student-illegally-staying-in-duke-hostel-fires-with-bullets-death-principal-said-will-investigate-127903862.html

बिहार की मिट्‌टी में पले-बढ़े नड्‌डा ने चुनाव संचालन में अपनी क्षमता का दिया परिचय

Posted: 10 Nov 2020 04:25 PM PST

भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने इस चुनाव में अपनी क्षमता का परिचय तो दिया ही, चुनाव संचालन में भी जादू बिखेरा। उनके नेतृत्व में भाजपा ने जबरदस्त प्रदर्शन किया। भाजपा की सीटें पिछली बार की तुलना में डेढ़ गुनी हो गयी। नड्डा बिहार की मिट्टी में ही पले-बढ़े हैं। उनका बचपन पटना में ही बीता, पढ़ाई-लिखाई भी यहीं हुई। उन्होंने 25 स्थानों पर चुनाव प्रचार किया और पार्टी को बड़ी सफलता दिलवाई।

इस बार के चुनाव में नड्डा ने खूब पसीना बहाया। नड्डा की यह रणनीति काम कर गई और पार्टी राजग के घटक दलों में सबसे बड़े दल के रूप में उभरी। नड्डा ने 11 अक्टूबर से बिहार में चुनाव प्रचार शुरू किया और गया से अपने अभियान की शुरुआत की। उन्होंने करीब 3400 किमी की दूरी तय कर सभाएं कीं। वैशाली-समस्तीपुर, दरभंगा में एनडीए प्रत्याशियों की जीत सुनिश्चित करने को लेकर हाजीपुर और दरभंगा में रोड शो भी किया।
आक्रामक तेवर से हमला
नड्‌डा ने रणनीतिक जाल में विपक्ष को खूब उलझाया। उन्होंने लालू-राबड़ी शासनकाल को जंगलराज बताकर उसपर जमकर हमला बोला। तेजस्वी द्वारा किए जा रहे वादों पर बगैर नाम लिए लगातार हमला बोला। कहा-चुनाव हार जाना मंजूर है पर गलत आश्वासन नहीं देंगे। भाजपा ने जब भी घोषणा की है तो उसे लागू किया। ने भाषणों के दौरान लगातार केंद्र और बिहार में किए गए कार्यों का हवाला दिया। कहा था- एनडीए की जीत किसी व्यक्ति की जीत नहीं बल्कि बिहार की जीत होगी। बिहार में तेजी से विकास हुआ और आगे भी होगा।



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इस बार के चुनाव में नड्डा ने खूब पसीना बहाया। नड्डा की यह रणनीति काम कर गई और पार्टी राजग के घटक दलों में सबसे बड़े दल के रूप में उभरी।


source https://www.bhaskar.com/local/bihar/patna/news/growing-up-in-the-soil-of-bihar-nadda-showed-his-ability-in-conducting-elections-127904480.html

नरेंद्र नीरज लगातार चौथी बार विजयी, पवन यादव सबसे अिधक व अजीत शर्मा सबसे कम वोट से जीते

Posted: 10 Nov 2020 04:25 PM PST

भागलपुर जिले की सातों सीट की तस्वीर साफ हो गई है। 2015 में जहां भागलपुर में बीजेपी का सूपड़ा साफ हो गया था, वहीं इस बार सात में तीन सीट पर विजय हासिल की। भाजपा ने पीरपैंती, कहलगांव व बिहपुर सीट जीत ली। ये तीनों सीट एनडीए के लिए चुनौती थी।

पीरपैंती से भाजपा के ललन पासवान ने राजद के सीटिंग एमएलए रामविलास पासवान को, कहलगांव से बीजेपी के पवन यादव ने सदानंद सिंह के बेटे कांग्रेस प्रत्याशी शुभानंद मुकेश को और बिहपुर से भाजपा के ई. कुमार शैलेंद्र ने राजद के पूर्व सांसद बुलो मंडल को हराकर जीत हासिल की। उधर, भागलपुर में कांग्रेस के सीटिंग विधायक अजीत शर्मा जीत गए।

उन्होंने भाजपा के रोहित शर्मा को हराया। वे लगातार तीसरी बार जीते हैं। गोपालपुर से जदयू के गोपाल मंडल ने राजद के शैलेश कुमार को हराया। वे लगातार चौथी बार जीते हैं। सुल्तानगंज सीट जदयू के खाते में गई। यहां प्रो. ललित नारायण मंडल ने कांग्रेस के ललन कुमार को हराया। नाथनगर सीट जदयू के हाथ से निकल गई। सीटिंग एमएलए लक्ष्मीकांत मंडल काे राजद के अली अशरफ सिद्दीकी ने हरा दिया।

गोपालपुर : पहली बार इस सीट पर लगातार चौथी बार कोई जीता

साताें विधानसभा सीटाें में से केवल गाेपालपुर ही ऐसा रहा, जिसने रिकार्ड कायम किया है। गाेपालपुर से जदयू के गाेपाल मंडल ने चाैथी बार जीत दर्ज की है। इस सीट पर पहली बार ऐसा हुआ है कि लगातार चाैथी बार से किस प्रत्याशी की जीत हुई है। 63 साल में ऐसा पहली बार हुआ है। 2005 अक्टूबर से जदयू के गाेपाल मंडल लगातार चाैथी बार जीते हैं। जबकि इससे पहले कभी राजद, ताे कभी कांग्रेस और उससे पहले सीपीआई ने इस सीट पर अपनी जीत दर्ज कराई है।

इस बार गाेपाल मंडल के सामने पहली बार चुनावी मैदान में उतरे राजद के शैलेश कुमार थे और उनकाे हार का सामना करना पड़ा। लाेजपा के सुरेश भगत भी हार गए। पिछली बार गाेपाल ने एनडीए से भाजपा के अनिल कुमार काे हराया था ताे उससे पहले दाे बार लगातार राजद के अमित राणा काे हराया था।

भागलपुर : जीत की चाैखट पर पहुंच कर भी हार गए राेहित पांडे

भागलपुर सीट पर इस बार भी भाजपा अपनी जीत दर्ज नहीं करा सकी। हालांकि इस बार इस सीट पर भाजपा के राेहित पांडे और कांग्रेस के अजीत शर्मा के बीच कांटे की टक्कर हुई। शुरुआती राउंड में अजीत शर्मा आगे औरर फिर राेहित पांडे आगे हाे गए। काफी समय तक राेहित बढ़त बनाए हुए रहे। लेकिन बाद में वे पिछड़ते चले गए और जीत के कगार पर पहुंच कर भी भाजपा के राेहित पांडे हार गए।

जबकि कांग्रेस के अजीत शर्मा काफी कम वाेटाें के अंतर से जीते। वे महज 950 वाेटाें से जीते। जबकि इससे अधिक नाेटा काे वाेट मिला था। नाेटा काे 1095 वाेट पड़े और इससे भी 145 वाेटाें से वह पीछे रह गए। लेकिन अंतत: जीत अजीत शर्मा की हुई। हालत यह हाे गई कि न कांग्रेस के अजीत शर्मा ही इतने कम अंतर से जीत क्याें हुई, इसका कारण बता पाए।

कहलगांव : सबसे अधिक वाेट लाकर पवन ने खिलाया कमल

चुनाव परिणाम में सबसे अधिक मताें से कहलगांव सीट के बीजेपी प्रत्याशी पवन कुमार यादव ने जीत दर्ज की। कहलगांव विधानसभा क्षेत्र में पहले फेज में 28 अक्टूबर काे मतदान हुआ था। मंगलवार रात आए चुनाव परिणाम में पवन कुमार यादव ने सर्वाधिक 42 हजार 626 वाेटाें से अपनी जीत का परचम लहराया है। पवन की बढ़त शुरू से ही बनी रही। जाे अंत तक बरकरार रही।

2015 के विधानसभा चुनाव में भी पवन कुमार यादव ने बताैर निर्दलीय चुनाव लड़ा था। इस विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सदानंद सिंह लंबे समय तक विधायक रहे हैं। लेकिन इस बार उन्हाेंने अपने पुत्र शुभानंद मुकेश काे अपनी राजनीतिक विरासत साैंपकर चुनाव मैदान में उतारा था। लेकिन शुभानंद काे पटकनी देकर पवन जीत दर्ज करने में कामयाब रहे।

चार नए चेहरे जीते, 2 काे फिर मिली विधायकी

जिले की सात विधानसभा क्षेत्र से चुने गए सात विधायकाें में से चार नए चेहरे इस बार पटना पहुंचेंगे। जबकि दाे विधायक काे फिर जनता ने जीत की माला पहनाई है। एक विधायक ने दूसरी बार जीत का स्वाद चखा है। पहली बार चुनाव जीतने वालाें में पीरपैंती विधानसभा क्षेत्र से जीते ललन कुमार, कहलगांव विधानसभा क्षेत्र से विजयी पवन कुमार यादव, नाथनगर विधानसभा क्षेत्र से विजयी अली अशरफ सिद्दीकी तथा सुल्तानगंज विधानसभा क्षेत्र के विजेता बने प्राे. ललित नारायण मंडल हैं।

भागलपुर विधानसभा क्षेत्र से विजयी अजीत शर्मा तीसरी बार व गाेपालपुर विधानसभा क्षेत्र से चाैथी बार विधायक बनने में कामयाब रहे। बिहपुर विधानसभा क्षेत्र से 2015 में हार का मुंह देखने वाले ई. शैलेंद्र दूसरी बार विधायक बने हैं।



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Narendra Neeraj wins for the fourth time in a row, Pawan Yadav won the most and Ajit Sharma with the least votes.


source https://www.bhaskar.com/local/bihar/bhagalpur/news/narendra-neeraj-wins-for-the-fourth-time-in-a-row-pawan-yadav-won-the-most-and-ajit-sharma-with-the-least-votes-127904479.html

जिले की सात विस सीटाें में से भाजपा काे तीन का फायदा जदयू, राजद-कांग्रेस काे एक-एक सीट का नुकसान

Posted: 10 Nov 2020 04:25 PM PST

भागलपुर जिले की सात विधानसभा सीटाें पर इस बार तस्वीर पूरी तरह से बदल गई है। इस बार भाजपा चार, कांग्रेस तीन, राजद तीन और जदयू तीन सीटाें से चुनाव लड़ी, लेकिन पिछली बार 2015 में जहां साताें सीटाें पर महागठबंधन का कब्जा था। उस वक्त महागठबंधन में शामिल जदयू, कांग्रेस और राजद ने तीन, दाे और दाे सीटाें पर जीत हासिल की थी। भाजपा का सूपड़ा साफ हाे गया था। लेकिन इस बार सबसे बेहतर प्रदर्शन भाजपा का रहा। भाजपा ने चार में से तीन सीटाें पर जीत हासिल की है।

जीत का निशान दिखाते राजद प्रत्याशी अशरफ सिद्दीकी।

इनमें पीरपैंती, कहलगांव और बिहपुर की सीट शामिल है। जबकि बाकी तीनाें दलाें काे पिछली बार की तुलना में नुकसान हुआ है। जदयू काे तीन में से एक सीट का नुकसान हुआ है। इस बार सिर्फ गाेपालपुर और सुल्तानगंज सीट पर ही जीत हासिल की है। जबकि नाथनगर की सीट हाथ से निकल गई। वहीं राजद व कांग्रेस काे भी पिछली बार की तुलना में एक-एक सीट का नुकसान हुआ है। राजद ने जहां बिहपुर की सीट गंवाई, ताे नाथनगर की सीट पर जीत हासिल की।

जीत के बाद समर्थकों के साथ प्रो. ललित नारायण मंडल।

जबकि कांग्रेस ने कहलगांव की सीट गंवाई और भागलपुर की सीट किसी तरह से बचा पाई। जिले की सात सीटाें में सुल्तानगंज से जदयू के ललित नारायण मंडल, नाथनगर से राजद के अली अशरफ सिद्दीकी, भागलपुर से कांग्रेस के अजीत शर्मा, कहलगांव से भाजपा के पवन यादव, पीरपैंती से भाजपा के ललन पासवान, गाेपालपुर से जदयू के गाेपाल मंडल और बिहपुर से भाजपा के इंजीनियर कुमार शैलेंद्र ने अपनी जीत दर्ज कराई है। इनमें गाेपालपुर से जदयू के गाेपाल मंडल ने चाैथी बार जीत का रिकार्ड बनाया है, ताे भागलपुर से कांग्रेस के अजीत शर्मा दूसरी बार जीते हैं।

जानिये भागलपुर जिले के सात सीटाें के क्या रहे परिणाम

भागलपुर: जीते- अजीत शर्मा, कांग्रेस
वाेट मिले : 65033
जीत का कारण : महागठबंधन की वजह से मुस्लिम समाज का अच्छा वाेट मिला। साथ ही लाेजपा के प्रत्याशी ने भाजपा के वाेट बैंक में सेंधमारी की, इसका भी फायदा मिला। भाजपा के बेहतर प्रबंधन नहीं हाेने का
लाभ मिला।
हारे-राेहित पांडे, भाजपा
वाेट मिले : 64083
हार की वजह : शहरी क्षेत्र का वाेटर भाजपा का कैडर वाेट माना जाता है। लेकिन इस बार भाजपा के बागी विजय साह और लाेजपा प्रत्याशी ने भाजपा के वाेट बैंक में सेंधमारी की। कार्यकर्ता सक्रिय नहीं हुए और बेहतर प्रबंधन का अभाव रहा।

अंतर : 950, नाेटा : 1095

नाथनगर: जीते-अली अशरफ सिद्दीकी
वाेट मिले : 78832
जीत का कारण : राजद के अली अशरफ सिद्दीकी काे मुस्लिम व यादव वाेटराें का जबरदस्त वाेट मिला। लाेजपा के अमर कुशवाहा ने भी जदयू काे नुकसान पहुंचाया और इसका फायदा राजद काे मिला।
हारे-लक्ष्मीकांत मंडल, जदयू
वाेट मिले : 71076
हार की वजह : जदयू में भीतरघात हुआ। टिकट नहीं मिलने से पार्टी से नाराज नेता जदयू काे वाेट दिलाने के बजाय लाेजपा प्रत्याशी के पक्ष में प्रचार करते रहे। इसका नुकसान यह हुआ कि गंगाेता का वाेट पूरी तरह से जदयू काे नहीं मिल सका।

अंतर : 7756, नाेटा : 1261

पीरपैंती: जीते-ललन कुमार, बीजेपी
वाेट मिले : 90,889
जीत का कारण : एनडीए के मजबूत वाेट व स्वजातीय वाेट का लाभ मिला। विराेधी के खिलाफ जनता की नाराजगी का भी लाभ मिला।
हारे-रामविलास पासवान, राजद
वाेट मिले : 64664
हार की वजह : स्वजातीय वाेट का बंट गया। यह विराेधी काे चला गया। पांच साल विधायक रहने के बाद जनता के उम्मीदाें पर खरे नहीं उतर पाए।

अंतर : 26,225, नाेटा : 945

कहलगांव: जीते-पवन कुमार यादव, बीजेपी
वाेट मिले- 1,14,229
जीत का कारण : राजद के वाेट बैंक में सेंधमारी की। प्रत्याशी के मिलनसार स्वभाव काे लाेगाें ने वाेट दिया। भाजपा और जदयू के परंपरागत वाेट के अलावा स्वजातीय वाेट भी पड़े।
हारे-शुभानंद मुकेश, कांग्रेस
वाेट मिले : 71603
हार की वजह : महागठबंधन के वाेट बैंक काे एकजुट रखने में असफल हाे गए। पिता के वाेट काे पूरी तरह अपने कब्जे में नहीं ले पाए।

अंतर : 42,626, नाेटा : 2152

सुल्तानगंज: जीते-ललित नारायण मंडल, जदयू
वाेट मिले : 72620
जीत का कारण : एनडीए के सामाजिक समीकरण का लाभ मिला। प्रत्याशी के स्वच्छ छवि काे देख भी लाेगाें ने जदयू के पक्ष में मतदान किया।
हारे-ललन कुमार, कांग्रेस
वाेट मिले : 61017
हार की वजह : बाहरी बनाम लाेकल फैक्टर के कारण कांग्रेस के प्रत्याी की हार हुई। स्वजातीय लाेजपा प्रत्याशी हाेने के कारण भी वाेट बंट गए।

अंतर : 11,603, नाेटा : 4710

बिहपुर: जीते-कुमार शैलेंद्र, भाजपा
वाेट मिले : 72577
जीत का कारण : भाजपा के इंजीनियर शैलेंद्र पिछले चुनाव में हारने के बाद भी पांच साल तक क्षेत्र में सक्रिय रहे। हमेशा लाेगाें के बीच रहे। साथ ही एनडीए कार्यकर्ताओं और नेताओं की सक्रियता की वजह से जीत
हासिल हुई।
हारे-बुलाे मंडल, राजद
वाेट मिले: 66229
हार की वजह : यहां से पिछली बार उनकी पत्नी वर्षा रानी जीती थीं। पांच साल रहने की वजह से क्षेत्र में उनके खिलाफ एंटी इनकबेंसी रही। इसके साथ ही यादवाें के वाेट बैंक में सेंधामारी से भी उनकाे नुकसान हुआ और हार का सामना करना पड़ा।

अंतर : 6348, नाेटा : 2711

गाेपालपुर: जीते-गाेपाल मंडल, जदयू
वाेट मिले : 75533
जीत का कारण : गाेपाल मंडल के लिए उनकी जीत के लिए सबसे बड़ी ताकत उनकी जाति रही। वह गंगाेता जाति से आते हैं। पहले ताे गंगाेता जाति के लाेग उनसे नाराज थे। लेकिन अंत में सब गाेलबंद हाे गए। साथ ही लाेजपा ने भी राजद के ही वाेट बैंक में सेंध लगाई।
हारे-शैलेश कुमार, राजद
वाेट मिले : 51072
हार की वजह : जदयू के वाेट बैंक में सेंधमारी नहीं कर पाए। साथ ही राजद के मुस्लिम व यादव वाेटराें काे भी एकजुट करने में असफल रहे। इस कारण हार हुई। गोपाल मंडल पिछले तीन बार से विधायक हैं। उनकी क्षेत्र पर पकड़ ज्यादा रही।

अंतर : 24461, नाेटा : 3888

जीते प्रत्याशियाें ने कहा- जनता का आशीर्वाद मिला

जनता के बीच जाकर करूंगा काम : अजीत शर्मा

भागलपुर से कांग्रेस के अजीत शर्मा ने अपनी जीत पर कहा कि उम्मीद जितनी थी, उतने वाेटाें से जीत नहीं मिली। समझ में नहीं आया। हालांकि आशीर्वाद के रूप में जनता ने जीत दिलाई। सब जनता के लिए काम करुंगा। बुनकराें काे पैकेज, जाम से निजात, भाेलानाथ फ्लाईओवर का निर्माण, स्वास्थ्य व शिक्षा के क्षेत्र में अपग्रेडेशन के लिए काम करुंगा। जनता के लिए हर वार्ड में जाकर काम करुंगा।

जनता को निराश नहीं करूंगा : अशरफ सिद्दीकी

नाथनगर से जीते राजद के अली अशरफ सिद्दीकी ने कहा कि जीत हमेशा अच्छा अनुभव देती है, लेकिन साथ में यह जिम्मेदारी भी देती है कि काम करना है। जनता ने मुझे चुना है तो मैं भी जनता को निराश नहीं करूंगा। नाथनगर में विकास दिखेगा। हर क्षेत्र में मेरा काम जरूर दिखेगा।

जनता के पांच साल का इंतजार खत्म : शैलेंद्र

भाजपा के इंजीनियर शैलेन्द्र ने अपनी जीत को बिहपुर क्षेत्र की जनता की जीत बताया। उन्होंने कहा कि यह उनके भाइयों, बहनों, क्षेत्र के बेटे-बेटियों की जीत है। बिहपुर की जनता पांच साल से जो इंतजार कर रही थी वह खत्म हो चुका है। क्षेत्र में विकास के कार्य जल्द दिखेंगे।

मुझे इस बार मंत्री बनाया जाए : गाेपाल मंडल

गोपालपुर से चौथी बार जीते गोपाल मंडल ने कहा कि यह उनकी नहीं बल्कि सुशासन बाबू नीतीश कुमार की जीत है। इतनी बार जीतने पर अब आगे की बात होनी चाहिए। अगर हमारी सरकार बनी तो मुझे मंत्री पद मिलना चाहिए। अपने इस कार्यकाल में वह ढोलबज्जा को प्रखंड बनाएंगे। तेतरी और जाह्नवी चौक पर ओवर ब्रिज के लिए पहल करेंगे।

यह एनडीए की एकजुटता की जीत है : ललित मंडल

सुल्तानगंज विधानसभा क्षेत्र से पहली बार चुनाव जीते प्रो. ललित नारायण मंडल ने कहा कि जनता ने उन्हें जीत का तोहफा दिया है। यह एनडीए की एकजुटता की जीत है। शिक्षक होने के कारण अन्य विकास कार्यों के साथ क्षेत्र में कॉलेजों और स्कूल को बेहतर बनाना उनकी प्राथमिकता होगी।

जनता के सुख-दुख में हमेशा साथ रहूंगा : पवन

कहलगांव से भाजपा के पवन यादव ने अपनी जीत पर कहा कि यह जनता की जीत है। कहलगांव के लाेगाें ने विश्वास किया। पीएम माेदी व सीएम नीतीश कुमार के मजबूत नेतृत्व की जीत है। अब क्षेत्र के विकास के लिए काम करूंगा। लाेगाें के सुख-दुख में हमेशा साथ रहूंगा।

लाेगाें की समस्या का समाधान करूंगा : ललन पासवान

पीरपैंती से भाजपा के ललन पासवान ने कहा कि उन्हें हराने के लिए कई लाेग लगे थे, कुछ अप्रवासी भी लगे थे। कुछ लाेगाें काे भ्रम हाे गया है कि वही सर्वाेपरि है। लेकिन जनता ने जीत दिलाकर ऐसे लाेगाें काे करारा जवाब दिया है। समस्या के समाधान के लिए हमेशा लाेगाें के पास जाएंगे। माेबाइल पर मैसेज मिलने पर भी लाेगाें के बीच पहुंच जाएंगे।




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भागलपुर विधानसभा सीट से जीत के बाद विजयी जुलूस निकालते कांग्रेस के प्रत्याशी अजीत शर्मा।


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भागलपुर और नाथनगर में लाेजपा के कारण एनडीए के हाथ से फिसली जीत, बीजेपी उम्मीदवार 950 वाेटाें से हारे

Posted: 10 Nov 2020 04:25 PM PST

जिले के सात विधानसभा सीटाें में से चार पर लाेजपा ने भी अपने उम्मीदवार उतारे। भागलपुर, नाथनगर, गाेपालपुर ओर सुल्तानगंज में लाेजपा ने अपने उम्मीदवार उतारे। इनमें से भागलपुर और नाथनगर सीट पर एनडीए काे हार का मुंह देखना पड़ा। भागलपुर में भाजपा प्रत्याशी राेहित पांडेय की हार केवल 950 वाेटाें से हुई, जबकि यहां के लाेजपा प्रत्याशी राजेश वर्मा ने 20,434 वाेट लाकर अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराई। भागलपुर सीट से भाजपा के बागी विजय साह काे भी 3292 वाेट आए।

अगर लाेजपा के वाेट भाजपा काे मिले हाेते ताे भाजपा जीत जाती। नाथनगर सीट से लाेजपा प्रत्याशी अमर सिंह कुशवाहा काे 14673 वाेट मिले। यह सीट जदयू के लक्ष्मीकांत मंडल से राजद के सिद्दीकी ने छीन ली। सिद्दीकी 7481 मताें से चुनाव जीते। अगर लाेजपा काे मिले वाेट एनडीए के पास हाेते ताे यह सीट एनडीए के हाथ से नहीं फिसलती।

हालांकि लाेजपा ने सुल्तानगंज और गाेपालपुर में भी जदयू के वाेट काटे, लेकिन वहां जदयू काे काेई नुकसान नहीं हुआ। गाेपालपुर में लाेजपा के सुरेश भगत और सुल्तानगंज में नीलम देवी चुनाव लड़ीं, लेकिन गाेपालपुर से जदयू के गाेपाल मंडल और सुल्तानगंज से प्राे. ललित मंडल चुनाव जीत गए।

4 सीटाें पर लाेजपा काे वाेट व वहां जीत का अंतर
विस क्षेत्र मिले मत जीत का अंतर

भागलपुर 20434 950
नाथनगर 14673 7481
सुल्तानगंज 10176 11603
गाेपालपुर 23247 24580



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विजयी चिह्न दिखाते गाेपालपुर से चाैथी बार जीते जदयू के गाेपाल मंडल। यहां लोजपा ने अपना उम्मीदवार उतारा था।


source https://www.bhaskar.com/local/bihar/bhagalpur/news/nda-wins-due-to-ljp-in-bhagalpur-and-nathnagar-bjp-candidates-lose-to-950-voters-127904477.html

पीरपैंती और बिहपुर में वापसी, कहलगांव में कांग्रेस का गढ़ ताेड़ा, 2015 में एक सीट भी नहीं जीती थी

Posted: 10 Nov 2020 04:25 PM PST

इस बार के विधानसभा चुनाव की तस्वीर शुरुआत से लेकर रिजल्ट आने तक हर पल बदलती रही। इसमें जहां भाजपा का जनाधार बढ़ा वहीं जदयू के साथ-साथ कांग्रेस और राजद का जनाधार घटा है। पिछली बार भागलपुर के सात विधानसभा सीट से एनडीए का सूपड़ा साफ हाे गया था, हालांकि उस समय जदयू महागठबंधन में था और लाेजपा भाजपा के साथ चुनाव मैदान में थी। लेकिन इस बार एनडीए ने वापसी की है। उसके खाते में सात में से पांच सीटें आई हैं। राजद काे नाथनगर की एक सीट मिली है।

जीत के बाद समर्थकों के साथ पीरपैंती के भाजपा प्रत्याशी ललन पासवान।

उसने जदयू से यह सीट छीनी है। पीरपैंती और बिहपुर में जहां उसने वापसी की है वहीं कहलगांव में कांग्रेस का गढ़ ताेड़ दिया है। हालांकि भागलपुर सीट पर भाजपा कब्जा नहीं कर सकी। उस सीट काे कांग्रेस ने बचा लिया। भागलपुर में 2015 में 10658 वाेटाें से भाजपा की हार हुई थी। इस बार लाेजपा के साथ-साथ भाजपा के बागी विजय साह भी मैदान में थे। कुल मिलाकर भाजपा की हार भले ही हुई हाे पर वह जीत के बिल्कुल करीब जाकर वापस लाैटी है।

कहलगांव से जीत के बाद प्रमाणपत्र के साथ भाजपा प्रत्याशी पवन यादव।

नाथनगर में 2015 में वर्तमान सांसद अजय मंडल ने एनडीए के लाेजपा काे 7825 वाेटाें से हराया था। लेकिन उपचुनाव में दुबारा जदयू के ही लक्ष्मीकांत मंडल ने जीत हासिल की, लेकिन इस बार जदयू अपनी सीट नहीं बचा पाया। यहां लगातार एक ही दल से प्रत्याशी रहने की वजह से एंटी इनकंबेंसी का भी प्रत्याशी काे सामना करना पड़ा। यह सीट राजद के खाते में चली गई।

बिहपुर में ई. शैलेंद्र काे एंटी इनकंबेंसी का मिला फायदा

सुल्तानगंज में 2015 में जदयू के सुबाेध राय ने रालाेसपा काे 37397 वाेटाें से परास्त किया था। इस बार प्रत्याशी बदलने पर ही सीट जदयू के खाते में गयी। बिहपुर में पिछली बार पूर्व सांसद बुलाे मंडल की पत्नी वर्षा रानी राजद की विधायक थीं। उन्हाेंने 12716 वाेटाें से भाजपा के इंजीनियर शैलेंद्र काे हराया था, लेकिन इस बार भाजपा ने अपना जनाधार बढ़ाया। यहां राजद के बुलाे मंडल काे एंटी इनकंबेंसी का सामना करना पड़ा गाेपालपुर में जदयू ने पिछली बार 5169 वाेटाें से भाजपा प्रत्याशी काे हराया था।

यहां से लगातार चाैथी बार जदयू ने जीत हासिल कर अपने जनादेश काे और मजबूत कर लिया है। जिस तरह चुनाव से पहले जदयू प्रत्याशी पूरे पांच साल तक विवादाें में रहे, कयास यही लगाए जा रहे थे कि इस बार जदयू वहां से सीट लूज कर सकती है, क्याेंकि लाेजपा से भी उसे खतरा था। लेकिन जदयू ने अपनी सीट बचा ली। कहलगांव से पिछली बार पूर्व विधानसभा अध्यक्ष सदानंद सिंह ने 21229 वाेटाें से एनडीए के लाेजपा प्रत्याशी काे हराया था।

इस बार उन्हाेंने अपने बेटे शुभानंद मुकेश काे उतारा था, लेकिन कांग्रेस वहां अपनी सीट नहीं बचा पायी। इस बार कांग्रेस काे पछाड़ कर भाजपा के पवन यादव ने पहली बार वहां से जीत दर्ज की है। पीरपैंती में पिछली बार राजद ने भाजपा काे 5144 वाेटाें से हराया था लेकिन इन पांच वर्षाें के बीच भाजपा ने अपनी जमीन वहां बेहतर तरीके से तैयार कर ली।

इस बार उसकी वापसी हुई है। भाजपा के ललन पासवान ने राजद के विधायक रामविलास पासवान काे हरा दिया है। भाजपा के पूर्व विधायक अमन पासवान ने बागी हाेकर निर्दलीय किस्मत आजमाया पर चुनाव हार गए।



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बिहपुर से भाजपा प्रत्याशी ई. शैलेन्द्र जीतने के बाद समर्थकों के साथ।


source https://www.bhaskar.com/local/bihar/bhagalpur/news/return-to-pirpainti-and-bihpur-congress-stronghold-in-kahalgaon-did-not-even-win-a-seat-in-2015-127904476.html

जदयू सांसद के निर्दलीय अमन के प्रचार पर वोटरों में फूटा आक्रोश, ललन ने पिछली हार का बदला वसूला

Posted: 10 Nov 2020 04:25 PM PST

(सोनू झा) पीरपैंती विधानसभा क्षेत्र से भाजपा प्रत्याशी ललन पासवान ने महागठबंधन के राजद प्रत्याशी और सीटिंग विधायक रामविलास पासवान से पिछली बार का बदला वसूल लिया। उन्हाेंने पोस्टल बैलेट की गिनती से ही बढ़त बनाये रखा। ललन दूसरी बार पीरपैंती विधानसभा से चुनाव लड़े और जीत दर्ज की। ललन को टिकट मिलने के बाद पूर्व विधायक अमन कुमार बागी बनकर निर्दलीय चुनाव मैदान में उतर गए थे। अमन के मैदान में आने के बाद राजद ओवर कॉन्फिडेंस में चुनाव लड़ रही थी।

ललन को हराने के लिए भागलपुर के जदयू सांसद अजय मंडल तक चुनावी क्षेत्र में गए थे और खुलकर अमन के लिए प्रचार भी किया। सांसद गंगोता बहुल क्षेत्र में जाकर ललन के बदले अमन के पक्ष में वोट मांग रहे थे। सांसद जदयू कार्यकर्ताओं को भी मोबाइल पर भी भाजपा को वोट नहीं देने की अपील करते रहे। जिसका ऑडियो वायरल हो गया और उसी वायरल ऑडियो पर डिप्टी सीएम सुशील मोदी ने बाखरपुर की चुनावी जनसभा में सांसद को भ्रम ना फैलाने की चेतावनी तक दे डाली थी।

भाजपा के लिए जदयू वोट बैंक रहा निर्णायक

2015 के विधानसभा चुनाव राजद के साथ जदयू के रहने के बावजूद रामविलास पासवान की जीत महज पांच हजार वोट से हुई थी। जदयू सांसद अजय मंडल के क्षेत्र घोघा में भी भाजपा को बढ़त मिली। 2015 में जिस बूथ पर सीपीएम व सीपीआई और 2010 में कांग्रेस को बढ़त मिली थी, वहां महागठबंधन के मुकाबले भाजपा को ज्यादा वोट मिले।

2019 में जहां सांसद को कम वोट मिले थे, वहां बीजेपी को ज्यादा मिले

वायरल ऑडियो पर सुशील मोदी के बयानबाजी ने प्रदेश की राजनीति में भूचाल ला दिया। खासकर एनडीए में। बात बिगड़ता देख सांसद अजय मंडल को सुशील माेदी की सभा के 24 घंटे के अंदर स्थिति साफ करनी पड़ी। सांसद का जादू इलाके में नहीं चल सका। गंगोता बहुल बूथ पर भाजपा को सबसे अधिक मत मिले। वहीं, जदयू कार्यकर्ताओं ने भी सांसद के विरोध में जमकर बीजेपी को वोट किया।

2019 में लोकसभा चुनाव में पीरपैंती विधानसभा में जिस बूथ पर सांसद अजय को कम वोट पड़ा था। उस बूथ पर भाजपा को उससे अधिक वोट मिले। जनता ने बागी अमन कुमार को वोटकटवा साबित कर दिखाया। राजद माई वोट समीकरण में ही रह गया। जबकि भाजपा को महादलित व आदिवासी समेत तमाम वर्गों से वोट मिले।

सबसे पहला रुझान गाेपालपुर का, ताे सबसे अंत में रिजल्ट भागलपुर का आया

जिले की सात विधानसभा सीटाें पर पड़े मताें की गिनती के लिए इस बार दाे जगहाें पाॅलिटेक्निक काॅलेज और महिला आईटीआई में मतगणना केंद्र बनाया गया था। पाॅलिटेक्निक काॅलेज में नाथनगर, भागलपुर, बिहपुर और गाेपालपुर विधानसभा सीटाें की मतगणना हुई। मंगलवार की सुबह आठ बजे से मतगणना शुरू हुई। सबसे पहले गाेपालपुर विधानसभा सीट का रुझान सुबह 9.35 बजे आया। जबकि सबसे अंत में भागलपुर विधानसभा सीट का परिणाम आया।

सबसे अंत में भागलपुर से जीत के बाद कांग्रेस के अजीत शर्मा मतगणना केंद्र के बाहर आए। इसके साथ ही उनके जिंदाबाद के नारे लगने लगे। विजय जुलूस भी निकाला गया। ढाेल-नगाड़े के साथ जुलूस निकाला गया। खुली जीप में बैठकर अजीत शर्मा जुलूस के साथ चलते रहे। इस दाैरान उनके साथ राजद के चक्रपाणि हिमांशु, जिलाध्यक्ष चंद्रशेखर यादव, कांग्रेस के जिलाध्यक्ष परवेज जमाल समेत कई नेता व कार्यकर्ता थे।



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पीरपैंती के राजद प्रत्याशी रामविलास के टेंट में समर्थक कम रहे।


source https://www.bhaskar.com/local/bihar/bhagalpur/news/voter-outrage-over-jdu-mps-campaign-of-independent-peace-lalan-retaliates-for-previous-defeat-127904475.html

कहलगांव में वोटरों ने वंशवाद काे नकारा केवल दो-चार राउंड में ही शुभानंद आगे रहे, दो बार हारे भाजपा के पवन जीते

Posted: 10 Nov 2020 04:25 PM PST

(राजू राज) कहलगांव में 45 साल पुराना कांग्रेस का दुर्ग मंगलवार को ढह गया। कांग्रेस के पितामह कहे जानेवाले सदानंद सिंह के बेटे शुभानंद मुकेश भारी अंतर से भाजपा के पवन कुमार यादव से हार गए। पवन पिछले दो बार से लगातार हार रहे थे। पवन ने इस सीट पर पहली बार केसरिया पताका लहराने में सफलता पाई। अब तक भाजपा इस सीट से नहीं जीत सकी थी। शुभानंद का हारना प्रदेश की राजनीतिक गलियारे में चर्चा का विषय बन गया है।

12 बार लड़े सदानंद 9 बार जीते, 2019 में संन्यास की घोषणा की थी

मतदाताओं को सदानंद सिंह के बेटे में वंशवाद दिखा। जिसके चलते मतदाताओं ने सिरे से खारिज कर दिया। शुभानंद को मिले मत का आलम यह रहा कि वे मात्र दो-चार राउंड में ही बढ़त बना सके। सदानंद सिंह 2005 में वर्तमान सांसद अजय मंडल से हार गए थे। उन्हें अजय ने 17 हजार वोटों से हराया था। सदानंद दो बार पूर्व में तत्कालीन पथ निर्माण मंत्री स्वर्गीय महेश प्रसाद मंडल से हारे थे। सदानंद सिंह अब तक 12 बार खुद चुनाव लड़े और 9 बार जीत हासिल की थी।

केंद्र सरकार की योजनाओं ने वोटरों को लुभाया

पवन की जीत के पीछे केंद्र सरकार द्वारा कोरोनाकाल में मुफ्त अनाज का मिलना, किसान सम्मान निधि और जनधन खाता में पांच सौ रुपए का ट्रांसफर मुख्य कारण रहा। वैसे, एंटी इनकंबेंसी भी महत्वपूर्ण रहा। पवन के समर्थन में जाति बहुल क्षेत्रों में भाजपा के कई दिग्गज रहे। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से लेकर भूपेंद्र यादव, मनोज तिवारी आदि ने भी प्रचार-प्रसार कर वोटों की लामबंदी की। मनोज तिवारी ने भोजपुरी भाषी इलाकों में भोजपुरी में ही भाषण दिए। जो मतदाताओं को काफी लुभाया।



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भाजपा प्रत्याशी पवन यादव के कैंप में शुरू से ही कार्यकर्ताओं में उत्साह रहा।


source https://www.bhaskar.com/local/bihar/bhagalpur/khalganv/news/in-kahalgaon-the-voters-rejected-dynasty-only-in-two-to-four-rounds-shubhanand-was-ahead-twice-lost-bjps-pawan-127904474.html

लोजपा उम्मीदवारों से जदयू को बड़ा नुकसान, इस बार महज 17 सीटाें पर सिमटी; भाजपा ने ही दिलाई बढ़त

Posted: 10 Nov 2020 04:24 PM PST

दूसरे चरण के चुनाव में चिराग इफेक्ट खूब चला। इसके चलते एक दर्जन से अधिक सीटों पर राजग खासकर जदयू प्रत्याशियों को हार का सामना करना पड़ा। हालांकि इसके बाद भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का जादू फिर से चला। कांटे की टक्कर और एंटी इन्कंबेंसी फैक्टर के बावजूद इस चरण में एनडीए को स्पष्ट बहुमत मिला।

नतीजों से साफ है कि इस चरण में महिलाओं ने एनडीए के पक्ष में मतदान किया। कोरोना काल में केंद्र और राज्य सरकार के कार्यों पर जनता ने मुहर लगा दी। एनडीए के परंपरागत वोट में महागठबंधन अधिक सेंधमारी नहीं कर पाया। जंगलराज पर प्रधानमंत्री का सीधा प्रहार काम कर गया।
दो सीटों पर लोजपा के चलते वीआईपी उम्मीदवारों को भी हार देखनी पड़ी
लालू प्रसाद के दोनों पुत्रों तेजस्वी यादव, तेजप्रताप यादव के अलावा राज्य के मंत्री नंदकिशोर यादव, राणा रणधीर, श्रवण कुमार और पूर्व मंत्री नीतीश मिश्र को जीत मिली। समाज कल्याण मंत्री रामसेवक सिंह और पूर्व समाज कल्याण मंत्री मंजू वर्मा को हार मिली। ऐसे तो लोजपा ने एनडीए के सभी दलों को झटका दिया, लेकिन जदयू को उसने खूब नुकसान पहुंचाया। 12 सीटों पर जदयू को लोजपा के कारण हार झेलनी पड़ी जबकि दो सीटों पर वीआईपी को भी नुकसान हुआ।
भ्रम खत्म करने में सफल रहा राजग
सबसे बड़ी बात यह हुई कि नीतीश के नेतृत्व को लेकर भाजपा का स्पष्ट ऐलान भी एनडीए वोटरों को कन्फ्यूजन को खत्म करने में कामयाब रहा। प्रधानमंत्री मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के साथ-साथ पार्टी के सारे वरीय नेताओं ने नीतीश के नेतृत्व में सरकार गठन की बात की, इसका भी प्रभाव पड़ा और संशय खत्म हुआ।

जदयू के वरीय नेता भूपेंद्र यादव, उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी व मंगल पांडेय मंगलवार की रात मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मिले। बतकही का खास एजेंडा चुनाव परिणाम रहा। एक-दूसरे को बधाई दी। इधर, देर रात जदयू ने सोशल मीडिया पर बिहार की जनता के प्रति आभार जताया। नीतीश की प्रणाम करती तस्वीर के नीचे लिखा था-'जनादेश शिरोधार्य …, आभार बिहार।'

पार्टी

2020

2015

कांग्रेस0407
राजद2833
भाकपा+0701
निर्दलीय0001
जदयू1730
भाजपा3420
लोजपा0102
वीआईपी0300
वोट %56.0955.87

सारण-चंपारण -कांटे की टक्कर में राजग को बढ़त, चंद्रिका हारे

राजग-महागठबंधन में कांटे की टक्कर रही, लेकिन राजग की बढ़त रही। चर्चित सीट परसा में लालू के समधी और तेजप्रताप के ससुर चंद्रिका राय को हार मिली। ऐसे एनडीए की जीती सीटें भी हारनी पड़ी पर चंपारण का गढ़ बच गया।

मिथिला-बज्जिकांचल- राजग के परंपरागत वोट एकजुट रहे

लालू के दोनों पुत्रों तेजस्वी-तेजप्रताप को जीत मिली लेकिन दोनों क्षेत्रों में एनडीए को अच्छी सफलता मिली। विधानसभा अध्यक्ष विजय कुमार चौधरी को सफलता मिली। मिथिलांचल इलाके में भी उसका परंपरागत वोट एकजुट रहा।

बेगूसराय-पटना- वामपंथी दल सफल रहे, पटना में भाजपा आगे

पटना में एनडीए को सफलता मिली जबकि बेगूसराय में झटका लगा। बेगूसराय में वामपंथी दलों को अच्छी सफलता मिली। उन्होंने भाजपा के गढ़ में सेंधमारी की। परंपरागत सीटों पर भी वामपंथियों ने अच्छी उपस्थिति दर्ज करायी।



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पटना में वीरचंद पटेल पथ स्थित जदयू दफ्तर के सामने मंगलवार की शाम जीत का जश्न मनाते जदयू कार्यकर्ता। राजग को बढ़त की खबर मिलते ही कार्यकर्ता दफ्तर के सामने जुटने लगे थे।


source https://www.bhaskar.com/bihar-election/news/jdus-big-loss-from-ljp-candidates-this-time-limited-to-just-17-seats-bjp-gave-the-lead-127904460.html

टीएनबी में छात्रों की बनाई वेबसाइट से लिए दाखिले, पर अपने छात्राें के इनोवेशन को इंजीनियरिंग कॉलेज ने नहीं दी तवज्जो

Posted: 10 Nov 2020 04:24 PM PST

(ततहीर काैसर) भागलपुर काॅलेज ऑफ इंजीनियरिंग के छात्र लगातार दाे वर्षाें से कई ऐप व वेबसाइट बना चुके हैं। लेकिन काॅलेज प्रशासन इस्तेमाल कर उसे प्रमाेट नहीं कर सका है। दूसरी ओर टीएनबी काॅलेज के बीसीए के छात्राें ने अपनी एक वेबसाइट बनाई और काॅलेज ने फाैरन उसे दाखिला लेने के लिए इस्तेमाल किया। टीएमबीयू के सभी काॅलेजाें ने वाेकेशनल काेर्स में ऑफलाइन दाखिले की प्रक्रिया ही अपनाई है।

सिर्फ टीएनबी काॅलेज ने अपने सेमेस्टर -5 के दाे छात्राें के इनाेवेशन की मदद से इसमें भी ऑनलाइन नामांकन लिया है। वहीं बीसीई के छात्राें ने घर के इलेक्ट्राॅनिक उपकरणाें काे माेबाइल से संचालित करना, स्टूडेंट्स काे ट्यूटर की जाॅब दिलाना, खेत में पानी की माेटर काे ऑटाेमैटिक कंट्राेल करने समेत कई ऐसे ऐपप और वेबसाइट बनाए गए हैं। लेकिल इनमें से किसी भी वेबसाइट या ऐप काे काॅलेज ने अपने मसरफ में नहीं लाया।

एक सितंबर से शुरू हुई टीएनबी की वेबसाइट

काॅलेज में दाखिले की प्रक्रिया शुरू हाेेने से पहले ही मनीकेत कुमार भारती और अंकित कुमार ठाकुर ने एक वेबसाइट डेवलप की। इस वेबसाइट का लिंक टीएनबी काॅलेज के ऑफिशियल वेबसाइट पर डाला गया। इसी पर दाखिले लिए गए।

बीसीई काे छात्रों के प्राेजेक्ट से लगाव नहीं

वहीं दूसरी ओर बीसीई के छात्र इंजीनियरिंग की डिग्री लेने से पहले ही कई इनाेवेटिव प्राेजेक्ट्स बना रहे हैं। काॅलेज की सुरक्षा, हाेस्टल के बिजली उपक्रण काे ऑटाेमेटिक करने समेत कई ऐसे काम हैं जाे काॅलेज के छात्र कर सकते हैं। प्लाज्मा डाेनेशन के लिए वेबसाइट बनाई।

इन सबसे बेखबर बीसीई काॅलेज प्रशासन छात्राें की प्रतिभा का काेई इस्तेमाल नहीं कर रहा है। प्राचार्य निर्मल कुमार ने बताया कि काॅलेज संचालित हाेगा ताे प्राेजेक्ट्स काे इस्तेमाल लाने पर विचार करेंगे।



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source https://www.bhaskar.com/local/bihar/bhagalpur/news/students-admitted-to-tnb-from-website-but-engineering-college-did-not-pay-attention-to-their-students-innovation-127904417.html

महागठबंधन के बड़े नेताओं में अधिकांश के बेटा-बेटी चुनाव हारे; पूर्व सांसद जयप्रकाश यादव के भाई जमुई से तो बेटी तारापुर से पराजित

Posted: 10 Nov 2020 04:24 PM PST

रिश्ते नाते के मोर्चे पर भी महागठबंधन को बड़ी सफलता हाथ नहीं लगी। राजद प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद, पूर्व सांसद कांति सिंह के पुत्र और सजायाफ्ता राजवल्लभ यादव की पत्नी के अलावा अधिकांश चुनाव हार गए। पूर्व सांसद जयप्रकाश यादव के भाई जमुई से तो बेटी तारापुर से पराजित हो गईं।

परिवारवाद का ही सबसे बड़ा आरोप महागठबंधन के नेताओं पर लगता रहा। निशाना भले ही तेजस्वी और तेजप्रताप हों (लालू-राबड़ी के बेटे, दोनो चुनाव जीत गए) लेकिन वजह सभी बड़े नेता थे। परिवारवाद में सभी पार्टियां आगे रहीं...कांग्रेस हो, लोजपा, हम या भाजपा हो।



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Major leaders of the grand alliance lost the son-daughter elections; Former MP Jayaprakash Yadav's brother Jamui defeated daughter Tarapur


source https://www.bhaskar.com/bihar-election/news/major-leaders-of-the-grand-alliance-lost-the-son-daughter-elections-former-mp-jayaprakash-yadavs-brother-jamui-defeated-daughter-tarapur-127904412.html

इस बार बिहार विधानसभा चुनाव में 55 यादव जीते, पिछली बार से 6 कम

Posted: 10 Nov 2020 04:24 PM PST

विधानसभा चुनाव 2020 में एनडीए में भाजपा, जदयू, वीआईपी और हम ने मिलकर अगड़ी और पिछड़ी जातियों का बैलेंस गठजोड़ बनाया। वहीं महागठबंधन में शामिल राजद, कांग्रेस और वामदलों ने अपने पुराने वोट बैंक पर भरोसा रखा। पप्पू यादव ने चंद्रशेखर रावण के साथ और उपेंद्र कुशवाहा ने ओवैसी की पार्टी के साथ गठजोड़ कर मुकाबले को रोचक बनाने की कोशिश की। मुद्दे भी हावी रहे।

इस विधानसभा चुनाव में जाति का बंधन के साथ एजेंडे में मुद्दे ही प्रमुख रूप से शामिल रहे। वोट भी लोगों ने मुद्दों के आधार पर ही दिया। एनडीए जहां अपने 15 साल के कामों को गिनाता रहा। वहीं महागठबंधन ने बेरोजगारी को प्रमुख मुद्दा माना। हालांकि प्रत्याशियों के चयन में सीटों के आधार पर जहां जिस जाति की बहुलता थी वहां उसके आधार पर टिकट दिए गए लेकिन वोट का रुझान देखने से स्पष्ट हो रहा है कि सोशल इंजीनियरिंग और जाति बंधन का फैैक्टर कुछ खास नहीं रहा।

उपेंद्र कुशवाहा विशुद्ध रूप से जाति आधारित राजनीति को केंद्र बिंदु बनाकर मैदान में उतरे। उन्होंने 104 में से 48 कुशवाहा काे टिकट दिया लेकिन सीटों पर उम्मीद के अनुसार कामयाबी नहीं मिली। वही हाल पप्पू यादव के जन अधिकार पार्टी का भी रहा।

हालांकि सीमांचल इलाके में जहां मुस्लिम बहुल सीटे हैं वहां असदुद्दिन ओवैसी प्रभाव डालकर अपनी जाति के हिसाब से वोट पाने में कुछ हद तक कामयाब रहे। लेकिन वह भी आंशिक रहा। मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवार के रूप में खुद को प्रचारित करने वाली पुष्पम प्रिया ने जाति की राजनीति से खुद को दूर बताया लेकिन उनका हाल सबसे बुरा रहा।

लालू ने एमवाय समीकरण को साधा तो 15 साल सत्ता में रहे
1990 में चुनावों में लालू प्रसाद ने मुस्लिम और यादवों को वोट बैंक के रूप में साधा और इसके दम पर 15 साल शासन किया। इन दोनों जातियों को अच्छा प्रतिनिधित्व भी दिया। करीब 11 प्रतिशत यादव और 12.5 प्रतिशत मुस्लिम वोट बैंक को एकजुट करने में लालू कामयाब रहे थे। 2005 में नीतीश कुमार ने मुस्लिमों का विश्वास जीतकर इस समीकरण को ध्वस्त कर दिया था। इसके बाद राजद की स्थिति ठीक नहीं रही।

कुशवाहा और कुर्मी को तवज्जो, सीटें भी लगातार बढ़ती गईं
शासनकाल रहा। सभी पार्टियों ने वोट बैंक के हिसाब से कुर्मी और कुशवाहा को तवज्जो देना शुरू किया और 1980 के बाद से विधानसभा में चुने गए प्रतिनिधियों के रूप में लगातार इनकी ताकत बढ़ती गई। 2010 में 18-18 सीटों पर कुर्मी जीते वहीं 2015 में 16 और 20 सीटों पर जीते। इस चुनाव में भी इस वर्ग का अच्छा प्रभाव रहा। सभी पार्टियों ने प्रत्याशी के रूप में मौका दिया और सफलता भी मिली।

लगातार कम होती गई कायस्थ समाज की भागीदारी

1952 से 1977 तक कायस्थ समाज के जनप्रतिनिधियों की संख्या अच्छी रही। लेकिन उसके बाद इसमें लगातार गिरावट हुई। जो संख्या दहाई में हुआ करती थी वह अब इकाई में आ गई है।

ब्राह्मण व भूमिहार प्रतिनिधियों की संख्या में भी गिरावट

शुरुआती दशक में ये दोनों जातियां राजनीति का केंद्र बिंदु रहीं। 1977 के छात्र आंदोलन और 1990 के मंडल आंदोलन के उभार के बाद इन दोनों जातियों का प्रतिनिधित्व घटता चला गया।



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This time, 55 Yadavs won in Bihar Assembly elections, 6 less than last time.


source https://www.bhaskar.com/bihar-election/news/this-time-55-yadavs-won-in-bihar-assembly-elections-6-less-than-last-time-127904411.html

आज से जिले के 147 केंद्राें पर शुरू हाेगी मैट्रिक और इंटरमीडिएट की सेंटअप परीक्षा

Posted: 10 Nov 2020 04:24 PM PST

जिले के 147 हाईस्कूलाें में बुधवार से सेंट अप परीक्षा शुरू हाेगी। इसके लिए स्कूलाें ने तैयारियां शुरू भी कर दी हैं। परीक्षा के लिए केंद्र सरकार की बनाई गाइडलाइन काे फाॅलाे करना जरूरी है। परीक्षा में एक बेंच पर एक ही छात्र बैठेगा। मास्क लगाना अनिवार्य है। इस बार परीक्षा सेंट्रलाइज्ड हाे रही है। परीक्षा के लिए प्रश्न पत्र बाेर्ड से ही आए हैं। यही नहीं परीक्षा में उत्तीर्ण और अनुत्तीर्ण हाेने वाले छात्राें की सूची भी बाेर्ड काे भेजनी हाेगी।

विद्यालयाें काे ये भी बताना हाेगा कि कितने विद्यार्थी परीक्षा में उपस्थित और अनुपस्थित रहे। अनुपस्थित रहने वाले परीक्षार्थियाें काे बाेर्ड परीक्षा में शामिल हाेने नहीं दिया जाएगा। हालांकि मूल्यांकन की जिम्मेदारी स्कूल प्रशासन की ही रहेगी। इसके अलावा इस बार प्रायाेगिक परीक्षा की तारीख भी बाेर्ड ही तय करेगा।



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source https://www.bhaskar.com/local/bihar/bhagalpur/news/from-today-the-matriculation-and-intermediate-examination-examination-will-start-at-147-centers-in-the-district-127904410.html

तय तिथि से एक दिन पहले ली 10वीं की सेंटअप परीक्षा, प्रश्न पत्र हो गया लीक

Posted: 10 Nov 2020 04:24 PM PST

बिहार बोर्ड के निर्देश का उल्लंघन कर अकबरनगर के इंटरस्तरीय स्कूल खेरेहिया में निर्धारित तिथि से एक दिन पहले सोमवार से ही 10वीं की सेंटअप परीक्षा शुरू हो गई। इससे स्कूल में 10वीं कक्षा में नामांकित 583 छात्रों में से 143 की परीक्षा छूट गई और पर्चा भी लीक हो गया। जानकारों ने बताया कि पिछले साल तक स्कूल अपने हिसाब से प्रश्रपत्र तैयार कर सेंटअप परीक्षा ले सकते थे।

लेकिन इस बार बिहार बोर्ड ने सभी स्कूलों के लिए एक ही तरह का प्रश्रपत्र तैयार किया और इसीलिए एक ही तिथि में सभी जगह परीक्षा लेने को कहा था। लेकिन अब पर्चा लीक हो चुका है। सोमवार को परीक्षा की दोनों पालियों में 440 छात्र ही शामिल हुए। दरअसल, बिहार बोर्ड ने 10वीं और 12वीं की सेंटअप परीक्षा की तिथि 11 नवंबर से तय की थी और इसी तिथि से परीक्षा लेने का निर्देश राज्य के सभी स्कूलों को जारी किया था, लेकिन इंटरस्तरीय स्कूल खेरेहिया के प्रधानाचार्य ने 10 नवंबर से ही 10वीं सेंटअप की परीक्षा शुरू करा दी।

सोमवार को पहली पाली में साइंस और दूसरी पाली में गणित की परीक्षा ली गई। निर्धारित तिथि से एक दिन पहले परीक्षा शुरू होने से कई छात्रों को इसकी सूचना नहीं मिल सकी और उनकी परीक्षा छूट गई।
इस संबंध में प्रधानाध्यापक मो. मोहिउद्दीन ने कहा कि स्कूल की सुविधा के अनुसार सेंटअप परीक्षा कभी भी ली जा सकती है। लेकिन जिनकी परीक्षा छूट गई उनके लिए क्या विकल्प होगा और क्या जिस पेपर की परीक्षा हुई उसके प्रश्न अब दूसरे स्कूलों के छात्रों को उनकी परीक्षा से पहले नहीं मिल जाएंगे, इस पर उन्होंने चुप्पी साध ली।

इस मामले में डीईओ संजय कुमार ने बताया कि बिहार बोर्ड के आदेश की अवहेलना करते हुए परीक्षा एक दिन पूर्व ली गई है। मुझे भी इसकी जानकारी मिली है। मामले की जांच कर दोषी के खिलाफ विभागीय कार्रवाई की जाएगी।



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source https://www.bhaskar.com/local/bihar/bhagalpur/news/class-10-examination-taken-a-day-before-the-due-date-question-paper-leaked-127904405.html

लोक आस्था का 4 दिवसीय छठ महापर्व 18 से, गूंजने लगे छठी मइया के गीत

Posted: 10 Nov 2020 04:24 PM PST

लोक आस्था का महापर्व नहाय-खाय के साथ शुरू हो जाएगा। दीपावली, काली पूजा अभी समाप्त भी नहीं हुआ है और घरों में छठी मइया के पारंपरिक गीत गूंजने लगे हैं। छठ पर्व को लेकर बाजार में सूप, नारियल, पूजन सामग्री की बिक्री शुरू हो गई है। इस बार चार दिवसीय छठ महापर्व 18 नवंबर बुधवार से नहाय-खाय के साथ शुरू हो जाएगा।

गुरुवार को खरना, शुक्रवार को अस्ताचलगामी और शनिवार को उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देने के साथ ही चार दिवसीय छठ महापर्व संपन्न हो जाएगा। छठ महापर्व में सामान की खरीदारी से लेकर पकवान बनाने तक में पूरी सावधानी बरती जाती है। बाजार में पूजन सामग्री की खरीदारी शुरू हो गई है। सूप 120 और नारियल 60 रुपए जोड़ा की दर से बिक्री हो रही है।

कृष्ण के पुत्र साम्बे हुए थे श्राप से मुक्त

छठ व्रत करने से भगवान श्री कृष्ण के पुत्र श्राप से मुक्त हुए थे। ज्योतिषाचार्य मनोज कुमार मिश्रा ने बताया कि व्रत कथा अपनी मर्यादा का एहसास कराती है। द्वापर युग में श्री कृष्ण की पटरानी रुकमणी सज-धज कर महल में बैठी थी। उसी वक्त कृष्ण की दूसरी पटरानी जामवंती के पुत्र सांबे वहां पहुंचे रुक्मणी का शृंगार देखकर मन ही मन विचार करने लगा की रुकमणी उनकी पत्नी होती तो वह कितने भाग्यशाली होते। यह जान कृष्ण ने सांबे को क्रोध में श्राप दे दिया। उसके शरीर में कुष्ठ हो गया। नारद जी ने उन्हें मथुरा में सूर्य षष्टि व्रत करने का महत्व बताया। जिससे वे ठीक हो गए।



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source https://www.bhaskar.com/local/bihar/bhagalpur/news/4-day-chhath-mahaparva-18-of-lok-aastha-songs-of-chhath-maiya-started-resonating-127904400.html

चोरी में गिरफ्तार युवक शौच के दौरान हथकड़ी की रस्सी काट कर भागा

Posted: 10 Nov 2020 04:24 PM PST

चोरी के आरोप में गिरफ्तार मीराचक निवासी हीरा मंडल मंगलवार सुबह में शौच के दौरान हथकड़ी की रस्सी काट कर फरार हो गया। जीरोमाइल पुलिस ने हीरा को बियाडा के एक बंद पड़े कारखाने में चोरी करते सोमवार देर रात गिरफ्तार किया था। उसके साथ दो अन्य साथी भी थे, जो पुलिस को चकमा देकर फरार हो गए थे। गिरफ्तारी के बाद हीरा को जीरोमाइल थाने लाया गया। मंगलवार सुबह में शौच जाने के दौरान पुलिस की हिरासत से वह हथकड़ी का रास्ता काट कर फरार हो गया।

हीरा के फरार होने की जानकारी पाकर पुलिस सक्रिय हुई और उसके घर पर छापेमारी की, लेकिन वह घर पर नहीं मिला। मामले में हीरा के खिलाफ दो अलग-अलग प्राथमिकी जीरोमाइल थाने में दर्ज की गई है। एक प्राथमिकी बियाडा के बंद पड़े कारखाने में चोरी से संबंधित है, जबकि दूसरी प्राथमिकी पुलिस हिरासत से हीरा के भाग जाने का है।



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source https://www.bhaskar.com/local/bihar/bhagalpur/news/youth-arrested-in-theft-during-the-toilet-ran-away-with-handcuffs-127904376.html

जिले में काेराेना के 12 समेत शहर से दाे रोगी मिले, 28 हुए स्वस्थ

Posted: 10 Nov 2020 04:24 PM PST

जिले में मंगलवार को कोरोना के 12 नये मरीज मिले, वहीं हाेम आइसाेलेशन में रहनेवाले 28 मरीज स्वस्थ भी हुए। इसके साथ ही मरीजाें का आंकड़ा अब 8597 हाे गयी है। जबकि 70 मरीजों की मौत भी हो चुकी है, 8341 मरीजाें ने काेराेना काे हराया भी है। फिलहाल सक्रिय मरीजों का आंकड़ा 188 है। रविवार को यह संख्या 205 थी।

सिविल सर्जन डॉ. विजय कुमार सिंह ने बताया कि सदर अस्पताल में मंगलवार को 417 लोगों की कोरोना जांच हुई। इसमें शहरी क्षेत्र से दो मरीज तिलकामांझी व सुरखीकल मोहल्ले में मिले। सिविल सर्जन ने बताया कि जिले में कोरोना मरीजों का रिकवरी रेट पहली बार 97.02 प्रतिशत पर पहुंचा है। यह दर पटना, मुजफ्फरपुर, पूर्णिया, गया और मुंगेर से बेहतर है।



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source https://www.bhaskar.com/local/bihar/bhagalpur/news/two-patients-from-the-city-including-12-from-kareena-were-found-in-the-district-28-became-healthy-127904369.html

पटवन के एवज में मांगी एक लाख की रंगदारी, मारपीट की

Posted: 10 Nov 2020 04:24 PM PST

सबौर के सिमरो गांव निवासी कपिलदेव मंडल ने गोराडीह थाने में कुछ लोगों के खिलाफ रंगदारी और समरसेबुल चोरी की रिपोर्ट दर्ज कराई है। कपिलदेव का कहना है कि मोहनपुर बहियार में उनकी जमीन है, जिसमें धान लगा है। धान का पटवन के एवज में कुछ लोगों ने एक लाख रंगदारी मांगी। पैसे नहीं देने पर मारपीट की और समरसेबुल चोरी कर ले गए।

10 लीटर शराब के साथ पुलिस ने दिव्यांग को किया गिरफ्तार

जीरोमाइल पुलिस ने रानी तालाब निवासी गोविंद कुमार को 10 लीटर देसी शराब के साथ गिरफ्तार किया है। गोविंद दिव्यांग है। मामले में गोविंद के खिलाफ उत्पाद अधिनियम की संशोधित धाराओं में जीरोमाइल पुलिस ने केस दर्ज किया है। बता दें, शहर में शराब तस्कर चुनाव का फायदा उठाकर शराब बेच रहे हैं।



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source https://www.bhaskar.com/local/bihar/bhagalpur/news/one-lakh-extortion-demanded-in-lieu-of-patwan-assault-127904363.html

खाने काे लेकर उलझ पड़े पारा मिलिट्री और पुुलिस के जवान

Posted: 10 Nov 2020 04:24 PM PST

बरारी हाईस्कूल में मतगणना के दाैरान काउंटिंग सेंटर के बाहर ड्यूटी परी लगाए गए पारा मिलिट्री और पुलिस के जवाब खाने काे लेकर आपस में उलझ गए। माेजाहिदपुर पुलिस के साथ ड्यूटी पर लगाए गए पारा मिलिट्री के जवान शाम में आराेप लगाने लगे कि उन्हें खाना नहीं मिला और व्यवस्था खराब है। पहले ताे कुछ देर तक वे लाेग सामान्य तरीके से अपनी बात माेजाहिदपुर पुलिस के जवानाें से कहते रहे, बाद में उनमें से किसी ने गाली दे दी।

इससे पुलिस के जवान भी गुस्से में आ गए। उन्हाेंने कहा कि वे लाेग भी भूखे ही हैं। क्या करें, चुनाव की ड्यूटी है। कभी-कभी ऐसा हाे जाता है लेकिन गाली नहीं दें। उधर, पारा मिलिट्री वाले कह रहे थे कि उनके खाने का समय बीत रहा है। ऐसे में ड्यूटी नहीं कर पाएंगे। बात बढ़ती देख थानाध्यक्ष ने तल्ख हाेते हुए कहा कि यहां सेना की टाइमिंग नहीं चलेगी। हालांकि पारा मिलिट्री जवानाें के दूसरे साथियाें ने उन्हें वापस बुला लिया और टेम्पाे से खाना खाने चले गए।



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source https://www.bhaskar.com/local/bihar/bhagalpur/news/soldiers-of-mercury-military-and-police-get-entangled-over-food-127904357.html

राहुल से दोगुना प्रधानमंत्री का स्ट्राइक, सीएम सबसे प्रभावी; तेजस्वी ने अकेले सबसे अधिक प्रचार किया

Posted: 10 Nov 2020 04:24 PM PST

चुनाव प्रचार के मोर्चे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लेट इंट्री की। पहले चरण से लेकर अंतिम चरण तक कुल चार बार प्रदेश का दौरा किया। उन्होंने सभाएं तो कुल 12 ही कीं लेकिन डिजिटल इंतजाम ऐसा था कि कवर 93 विधानसभा क्षेत्र हुए। राज्य के दौरे पर जब-जब पीएम आए तब-तब राहुल गांधी भी आए। राहुल ने 8 सभाएं की। यह तो रही दो राष्ट्रीय दिग्गजों की बात। प्रधानमंत्री की तुलना में राहुल का स्ट्राइक रेट आधा रहा।

पूरे प्रचार अभियान में तेजस्वी प्रसाद यादव महागठबंधन के अकेले स्टार प्रचारक रहे जिन्होंने 247 सभाएं कीं। अपने गठबंधन की एक सीट बछवाड़ा को छोड़कर वह हर सीट पर प्रचार करने गए। राघोपुर और हसनपुर में 1 से अधिक बार गए। लेकिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पार्टी की 115 सीटों में से महज 80 सीटों पर ही प्रचार किया।

वैसे सीएम ने 98 सभाएं कीं, इनमें 6 पीएम के साथ तो 12 एनडीए के सहयोगी दलों के लिए। सीएम की सभाओं का स्ट्राइक रेट देखें तो यह पीएम के बराबर रहा। भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्‌डा ने जिन सीटों पर प्रचार किया उनमें 92 फीसदी पार्टी उम्मीदवार जीत गए।



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Prime Minister's strike twice Rahul, CM most effective; Tejashwi alone promoted the most


source https://www.bhaskar.com/bihar-election/news/prime-ministers-strike-twice-rahul-cm-most-effective-tejashwi-alone-promoted-the-most-127904317.html

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