दिव्य रश्मि न्यूज़ चैनल |
- भारत में आँखों की सर्जरी का इतिहास दो सौ वर्ष पुराना
- भोजपुर पुलिस अधीक्षक श्री हरि किशोर राय के द्वारा चलाये गए चेकिंग अभियान के तहत कई अपराधी गिरफ्तार |
- भारत में बदलाव के लिए बजट और उसके बाद के प्रयास का हिस्सा है, सुधार
- आज 20 - जनवरी - 2021, बुधवार को क्या है आप की राशी में विशेष ?
- मंत्रिपरिषद् के निर्णय
- महामहिम राज्यपाल के समक्ष एन॰सी॰सी॰ के अपर महानिदेशक ने राज्य के विश्वविद्यालयों में एन॰सी॰सी॰ को सी॰बी॰सी॰एस॰ में इलेक्टिव क्रेडिट कोर्स के रूप में सम्मिलित करने से संबंधित एक ‘पावर प्रेजेन्टेशन’ दिया
- परिणाम कभी क्या सोचा है?
- राज्यपाल ने दशमेश गुरू श्री गुरू गोबिन्द सिंह जी के पावन ‘प्रकाश उत्सव’ के सुअवसर पर सभी बिहारवासियों व देशवासियों को हार्दिक शुभकामनाएँ दी
- राज्यपाल ने बिहार विद्युत विनियामक आयोग के अध्यक्ष के रूप में श्री शिशिर सिन्हा एवं इसके सदस्य के रूप में श्री सुभाष चन्द्र चैरसिया को पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलायी
- लवेरिया वायरस का टीका
| भारत में आँखों की सर्जरी का इतिहास दो सौ वर्ष पुराना Posted: 19 Jan 2021 09:01 PM PST भारत में आँखों की सर्जरी का इतिहास दो सौ वर्ष पुराना
संकलन अश्विनीकुमार तिवारी भारत में 200 वर्ष पहले आँखों की सर्जरी होती थी...शीर्षक देखकर आप निश्चित ही चौंके होंगे ना!!! बिलकुल, अक्सर यही होता है जब हम भारत के किसी प्राचीन ज्ञान अथवा इतिहास के किसी विद्वान के बारे में बताते हैं तो सहसा विश्वास ही नहीं होता. क्योंकि भारतीय संस्कृति और इतिहास की तरफ देखने का हमारा दृष्टिकोण ऐसा बना दिया गया है मानो हम कुछ हैं ही नहीं, जो भी हमें मिला है वह सिर्फ और सिर्फ पश्चिम और अंग्रेज विद्वानों की देन है. जबकि वास्तविकता इसके ठीक विपरीत है. भारत के ही कई ग्रंथों एवं गूढ़ भाषा में मनीषियों द्वारा लिखे गए दस्तावेजों से पश्चिम ने बहुत ज्ञान प्राप्त किया है... परन्तु "गुलाम मानसिकता" के कारण हमने अपने ही ज्ञान और विद्वानों को भुला दिया है. भारत के दक्षिण में स्थित है तंजावूर. छत्रपति शिवाजी महाराज ने यहाँ सन 1675 में मराठा साम्राज्य की स्थापना की थी तथा उनके भाई वेंकोजी को इसकी कमान सौंपी थी. तंजावूर में मराठा शासन लगभग अठारहवीं शताब्दी के अंत तक रहा. इसी दौरान एक विद्वान राजा हुए जिनका नाम था "राजा सरफोजी". इन्होंने भी इस कालखंड के एक टुकड़े 1798 से 1832 तक यहाँ शासन किया. राजा सरफोजी को "नयन रोग" विशेषज्ञ माना जाता था. चेन्नई के प्रसिद्ध नेत्र चिकित्सालय "शंकरा नेत्रालय" के नयन विशेषज्ञ चिकित्सकों एवं प्रयोगशाला सहायकों की एक टीम ने डॉक्टर आर नागस्वामी (जो तमिलनाडु सरकार के आर्कियोलॉजी विभाग के अध्यक्ष तथा कांचीपुरम विवि के सेवानिवृत्त कुलपति थे) के साथ मिलकर राजा सरफोजी के वंशज श्री बाबा भोंसले से मिले. भोंसले साहब के पास राजा सरफोजी द्वारा उस जमाने में चिकित्सा किए गए रोगियों के पर्चे मिले जो हाथ से मोड़ी और प्राकृत भाषा में लिखे हुए थे. इन हस्तलिखित पर्चों को इन्डियन जर्नल ऑफ औप्थैल्मिक में प्रकाशित किया गया. प्राप्त रिकॉर्ड के अनुसार राजा सरफोजी "धनवंतरी महल" के नाम से आँखों का अस्पताल चलाते थे जहाँ उनके सहायक एक अंग्रेज डॉक्टर मैक्बीन थे. शंकर नेत्रालय के निदेशक डॉक्टर ज्योतिर्मय बिस्वास ने बताया कि इस वर्ष दुबई में आयोजित विश्व औपथेल्मोलौजी अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन में हमने इसी विषय पर अपना रिसर्च पेपर प्रस्तुत किया और विशेषज्ञों ने माना कि नेत्र चिकित्सा के क्षेत्र में सारा क्रेडिट अक्सर यूरोपीय चिकित्सकों को दे दिया जाता है जबकि भारत में उस काल में की जाने वाले आई-सर्जरी को कोई स्थान ही नहीं है. डॉक्टर बिस्वास एवं शंकरा नेत्रालय चेन्नई की टीम ने मराठा शासक राजा सरफोजी के कालखंड की हस्तलिखित प्रतिलिपियों में पाँच वर्ष से साठ वर्ष के 44 मरीजों का स्पष्ट रिकॉर्ड प्राप्त किया. प्राप्त अंतिम रिकॉर्ड के अनुसार राजा सर्फोजी ने 9 सितम्बर 1827 को एक ऑपरेशन किया था, जिसमें किसी "विशिष्ट नीले रंग की गोली" का ज़िक्र है. इस विशिष्ट गोली का ज़िक्र इससे पहले भी कई बार आया हुआ है, परन्तु इस दवाई की संरचना एवं इसमें प्रयुक्त रसायनों के बारे में कोई नहीं जानता. राजा सरफोजी द्वारा आँखों के ऑपरेशन के बाद इस नीली गोली के चार डोज़ दिए जाने के सबूत भी मिलते हैं. प्राप्त दस्तावेजों के अनुसार ऑपरेशन में बेलाडोना पट्टी, मछली का तेल, चौक पावडर तथा पिपरमेंट के उपयोग का उल्लेख मिलता है. साथ ही जो मरीज उन दिनों ऑपरेशन के लिए राजी हो जाते थे, उन्हें ठीक होने के बाद प्रोत्साहन राशि एवं ईनाम के रूप में "पूरे दो रूपए" दिए जाते थे, जो उन दिनों भारी भरकम राशि मानी जाती थी. कहने का तात्पर्य यह है कि भारतीय इतिहास और संस्कृति में ऐसा बहुत कुछ छिपा हुआ है (बल्कि जानबूझकर छिपाया गया है) जिसे जानने-समझने और जनता तक पहुँचाने की जरूरत है... अन्यथा पश्चिमी और वामपंथी इतिहासकारों द्वारा भारतीयों को खामख्वाह "हीनभावना" से ग्रसित रखे जाने का जो षडयंत्र रचा गया है उसे छिन्न-भिन्न कैसे किया जाएगा... (आजकल के बच्चों को तो यह भी नहीं मालूम कि "मराठा साम्राज्य", और "विजयनगरम साम्राज्य" नाम का एक विशाल शौर्यपूर्ण इतिहास मौजूद है... वे तो सिर्फ मुग़ल साम्राज्य के बारे में जानते हैं...). महामारी की सवारी भारत में महामारियों को भगाने के कैसे कैसे उपाय किए जाते थे, इसकी जानकारी सुश्रुत, चरक, वागभट्ट आदि ने तो दी ही है, लेकिन देहात से लेकर रियासतों की राजधानी तक में जैसी प्रथाएं थीं, उनको विदेशी यात्रियों ने देखा और जो दस्तावेज़, विवरण लिखे, उन पर आज वैज्ञानिक दौर में बिल्कुल यकीं नहीं होता! कर्नल जेम्स टॉड ने हैजा जैसी महामारी के दौरान किए जाने वाले उपायों को देखा और दिलचस्पी से लिखा भी। इस महामारी में उसके चार दोस्त मारे गए थे और आत्मिक मित्र बूंदी के राव भी लाख उपाय पर नहीं बच सके। बात 1817 की है। तब कोटा में महामारी की दस्तक को जानकर महाराव ने पुजारियों को बुलाया और सलाह ली। उन्होंने हैजा महामारी की सवारी निकालकर चंबल पार उतारने का उपाय किया। काली गाड़ी बनवाई गई। दो काली बोरियों में अनाज भरकर रखा ताकि महामारी भूखी न जाए... काले ही बैल जुतवाए और कालेे कपड़ों में कलू को बिठाकर हो हल्ला करते हुए लोगों ने महामारी को चंबल पार उतारा... पुजारियों ने कह दिया, अब वापस इधर नहीं आना। उधर, बूंदी राव ने कोटा वालों की चाल देखी तो अपने पुजारियों को बुलाया और हर हाल में बीमारी का आगमन रोकने का उपाय करने को कहा। पुजारियों ने राज्य में जितना गंगाजल था, सब जमा किया। एक मटका छेद कर उस रास्ते पर लगाया जिधर से बीमारी अा सकती थी। बूंद-बूंद पानी टपकता रहता और पुजारी राहत की सांस लेने लगे लेकिन महामारी का हमला सीधे महल पर हुआ...। ... कैसे ताज्जुब की बात है कि क्या महामारियों को ऐसे कथित अंध विश्वास भरे उपायों से रोकना संभव था? लेकिन तब नासिक, सागर, गुजरात में भी ऐसे उपाय किए जा थे और इंग्लैंड भी ऐसे उपायों में शामिल था! नासिक में तो हैजा की देवी की निकासी की जाती थी...! हां, तब वायरस व्याधि नहीं थी। क्या आपको ऐसी किसी घटना की जानकारी है? सन्दर्भ : • चरक और सुश्रुत संहिता, • ईशानशिवगुरुदेवपद्धति, • एनाल्स एंड एंटीक्विटिज़ ऑफ राजस्थान, • महामारी : ऐतिहासिक सिंहावलोकन जनपदोद्ध्वंस : महामारी कोरोना के बहाने कुछ बातें कहने का मन है जो भारतीय मनीषा ने लगभग ढाई हजार साल पहले भोगकर आत्मसात् कीं और उसके अनुभवों को संसार के सामने आचरण के उद्देश्य से रखा। महामारी का समय सामान्य काल नहीं होता, यह मज़ाक का दौर भी नहीं बल्कि चिंता की वेला है जिसे चरक ने सबसे पहले जनपदोद्ध्वंस नाम दिया है। इसका सामान्य आशय वही है जो हम अभी - अभी चीन और इटली के अर्थ में लेे रहे हैं। देशध्वंस का मतलब उस काल में बहुत भयानक व्याधि का परिणाम था जिसे बाद में अपिडेमिक भी कहा गया। आज पैनडेमिक है! गंगा के तटवर्ती वनों में घूमते हुए पुनर्वसु ने शिष्यों से जो कहा, चरक ने उसे बहुत उपयोगी माना क्योंकि कांपिल्य में महामारी को लेकर एक समय बड़ी संगति रखी गई थी और उसमें महामारी पर सर्व दृष्टि विमर्श किया गया। संसार में किसी महामारी पर यह कदाचित पहला और महत्वपूर्ण दस्तावेज़ है। यकीन नहीं होगा कि पुनर्वसु ने साफ कह दिया था कि एक एक औषधि को परख कर सुरक्षित कर दिया जाए क्योंकि महामारी के समय दवा से उसके रस, गुण, शक्ति सब गुम हो जाते हैं यानि कि दवा तब दवा नहीं रहती! स्मरण रखना चाहिए कि महामारी के समय सब असामान्य हो जाता है : नक्षत्र, ग्रह, चन्द्र, सूर्य की स्थितियां...दिशाओं में प्रकृति और ऋतुओं में विकार, दवाइयों में प्रभाव शून्यता, जन आतंक और अधिकांश लोग रोगग्रस्त, रोग भी ऐसे कि जिनका उपचार संभव नहीं हो। सब कुछ अस्वाभाविक होता है। (विमानस्थान, 3, 4) चरक ने इसे राज्य के नष्ट होने का भाव अनेक विशेषणों से दिया है और वराह ने "मरकी" नाम दिया। वराह को मालूम था कि परिधावी नामक संवत्सर का उत्तरार्ध नाशकारी प्रवृत्ति लेकर आता है और व्यवस्था का संकट खड़ा हो जाता है : देशनाशो नृपहानि। हालांकि अब बीत गया है। दशम युग के संवत्सरों में अधिकतर कलह, रोग, मरक (मरी) और नाश काल के रूप में रेखांकित किया है। प्रभव, राक्षस भी न्यारे नहीं। चरक इस अर्थ में पहले से ही उपचार की व्यवस्था करके रखने की बात कहते हैं : भैषज्येषु सम्यग्विहितेषु सम्यक् चावचारितेषु जनपदोद्ध्वंसकराणां विकाराणां...। वायरस वाले रोगों के प्रसंग में यह बहुत आश्चर्यकारक है कि महामारी की उत्पत्ति और प्रसार के चार कारण हैं : विकृत वायु, विकृत जल, विकृत देश और विकृत काल। चरक ने जिस तरह इनके भेद, लक्षण और सर्वेक्षण आधारित चरण दिए हैं, वे आज के विज्ञान के अनुसार है। आत्रेय से अग्निवेश संवाद के अन्तर्गत यह भी कहा है कि क्यों मनुष्य भिन्न-भिन्न प्रकृति, आहार, शरीर, बल, सात्मय, सत्व और आयु के होते हैं तो फिर एक ही साथ, एक ही समय में उनका देशव्यापी महामारी से क्योंकर विनाश होता है? महामारी इति से बढ़कर है और महा अकाल है जिसे "गर्गसंहिता" में उपसर्ग के लक्षणों सहित बताया गया है। इसके शांति उपायों पर मध्य काल तक पूरी ताकत लगी। चरक ने क्यों खुलकर कहा कि स्पर्श, वायु और खाद्य पदार्थों के दोषपूर्ण होने से उपजी महामारी से देश नष्ट होते हैं : तत उद्ध्वंसन्ते जनपदा: स्पृश्याभ्यवहार्य दोषात्। यह सब बहुत लंबा विषय है। लेकिन, हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि मानवता की सुरक्षा के लिए सात्विक आहार, विहार, आचरण हो, हितकर स्थान पर रहें, महर्षियों की चर्चा हो और उन उपायों में ही जीवन लगाएं जिनसे जीवन रक्षा के प्रयास तय हों और परस्पर विश्वास का भाव बढ़े। अपनी रक्षा स्वयं करें। वाग्भट्ट और चरक का मत है : इत्येतद् भेषजं प्रोक्तमायुष: परिपालनम्। येषामनियतो मृत्युस्तस्मिन्काले सुदारुणे।। सभी के लिए स्वास्थ्य की कोटि कोटि मंगल कामनाएं : सर्वे संतु निरामया। (शिल्पशास्त्र में आयुर्वेद) अरिष्ट : मृत्यु के आसन्नचिह्न 🌿 श्रीकृष्ण "जुगनू" संतों, गुरुओं की वाणी से लेकर ज्योतिष तक अकाल या काल जन्य मृत्यु के लक्षणों पर विचार हुआ है और हम व हमारे पूर्वज प्राय: ऐसी बातें करते ही हैं कि अमुक व्यक्ति ने बहुत पहने अपने निधन की घोषणा कर दी थी! आयुर्वेद ने चिकित्सा के अनेक मत, सिद्धांत, निदान और उपचार देने के बाद मृत्यु के चिह्न भी लिखे हैं और चिकित्सकों से अपेक्षा की है कि वे उनकी पुख्ता जानकारी रखें। ये अरिष्ट अथवा रिष्ट कहे जाते हैं : एतानि पूर्वरूपाणि य: सम्यगवबुध्यते। स एषामनुबन्धं च फलं च ज्ञातुमर्हति।। महर्षि चरक ने महामारी के लक्षणों और उपचार के बाद इन्द्रियस्थान में अरिष्ट विषय का जो वर्णन किया है, वह निदान और उपचार के निर्धारण से पूर्व असहायता का बड़ा विवरण है और विश्व के सामने रोग और काल के बीच की गली में कर्तव्य की पहली अपील लगता है। चरक ने बहुत विशद रूप से इसे लिखा है और अपेक्षा की है कि जन जन इसको जाने, यही कारण है कि स्वरोदय और योग विज्ञान के विषय जिस किसी पुराण में मिलते हैं, वहां अरिष्ट विषय भी मामूली तौर पर लिखा गया है, शिव पुराण हो या गरुड़ पुराण। काल के इन लक्षणों को वर्ण, स्वर, गंध रस और स्पर्श आदि के संदर्भ से लिखा गया है और इन पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत कही गई है। बाण भट्ट जब प्रभाकर वर्धन के अंत काल का वर्णन करता है तो अरिष्ट विषय का संकेत करता है। हमें ध्यान देना चाहिए कि कुल 47 विषय है जिनसे अरिष्ट को परखा जाता है। इनमें शरीर के लक्षणों के साथ ही स्मरण शक्ति, आकृति, प्रकृति, विकृति, बल, ग्लानि, मेधा, हर्ष, रौक्ष्य, रोग का आरम्भ, आहार, विहार, आहार का परिणाम, व्याधि सांकर्य, अपाय ( रोग का सहसा छूट जाना) व्याधि, व्याधि का पूर्व रूप, वेदना, उपद्रव, छाया, प्रति छाया, स्वप्न दर्शन, दूताधिकार, भेषज विकार युक्ति... आदि आते हैं। ( चरक. इन्द्रिय. 1, 3) यह बहुत विषद विवरण है लेकिन हमें प्रकृति, अपने आसपास के परिवेश पर जरूर ध्यान देना चाहिए जो जातिप्रसक्ता, कुलप्रसाक्ता, देशानुपातिनी, कालानुपातिनी, वयोनुपातिनी और प्रत्यात्मनियता होती है- यह सब ज्ञान हमारे लिए इसलिए होना चाहिए कि हम प्रकृति में बदलाव को देखते हुए आने वाले संकटों को जान सकें। नित नई कथित खोजों और अपेक्षाओं और देय लक्ष्य के पीछे भागदौड़ ने हमें आते - जाते प्राकृतिक बदलावों को जानने का अवसर ही छीन लिया। हम भूल ही गए हैं कि भौतिक अरिष्ट, पंच इन्द्रिय और मानसिक अरिष्ट से लेकर सद्योमरणीय, तीन दिनात्मक, छह दिनात्मक, पाक्षिक, मासिक, सार्धमासिक, छह मासिक और वार्षिक अरिष्ट क्या और कैसे होते हैं? यह सच है कि संसार को आयु का ज्ञान बांटने वाले देश भारत के पास रोग और काल के ज्ञान की बड़ी विरासत रही लेकिन वह उतनी ही पिछड़ भी गई... क्या हम अब भी नहीं देखना चाहेंगे? यह ज्ञान हमें सबसे पहले सचेत करता है और फिर उपचार : लक्षणमायुष: क्ष्यस्य भवति। यह हमारे प्रज्ञा-अपराध को आड़े हाथों भी लेता है : अरिष्टं वाऽप्य संबुद्घमेतत् प्रज्ञापराधजम्।। इस ज्ञान को आगे बढ़ाएं...। सर्वे संतु निरामया। शीतला - चेचक की देवी की विश्वयात्रा ! साथियो ! होली के बाद सातवें दिन शीतला सप्तमी का पर्व पडता है और एक दिन पहले महिलाएं बासोडा या ठंडी सामग्री की तैयारी करती हैं। रात में खाना बनाएंगी और सुबह शीतला की पूजा करके, कथा सुनकर सबको बासोडा या ठंडा खाना खिलाएंगी। अपने हाथ से उस दिन आग जलाने जैसा काेई काम नहीं करेंगी। उसके पीछे उसका मकसद यह रहता है कि बच्चे बच्चियों को कभी चेचक जैसी बीमारी नहीं हो। शीतला के गीत गाए जाएंगे - सीळी सीळी ए म्हारी सीतळा ए माय.. बारुडा रखवाळी सोहे सीतला ए माय...।" इस महाव्याधि का उन्मूलन हुए बरस हो गए मगर शीतलादेवी अब भी पूजा के अन्तर्गत है। साल में चैत्री कृष्णा सप्तमी और भादौ कृष्णा सप्तमी को शीतला की पूजा की जाती है। पश्चिमी भारत ही नहीं, पूरे देश में शीतला की पूजा की जाती है, कई नामों से इसकी प्रतिष्ठा है मगर यह ब्राह्मण देवी नहीं मानी गई अन्यथा इसके भी पूजा विधान प्रारंभिक शास्त्रों में लिखे होते। इस देवी का स्वरूप 12वीं सदी में संपादित हुए स्कन्दपुराण में आया है और मंत्र के रूप में इसको दिगम्बरा, रासभ या गधे पर सवार, मार्जनी-झाडू व कलश लिए तथा शूर्प से अलंकृत बताई गई है - नमामि शीतलादेवी रासभस्था दिगम्बरा। मार्जनी कलशोपेता शूर्पालंकृता मस्तका।। मध्यकाल में इसकी मूर्ति बनाने के लक्षण मेवाड में 1487 ईस्वी में रचित वास्तुमंजरी आदि में लिखे गए। ( रुपाधिकार : श्रीकृष्ण जुगनू) प्रयाग के रामसुन्दर ने शीतला चालीसा को लिखा जबकि 1900 में डब्ल्यू. जे. विल्किंस ने "हिंदू माइथोलॉजी, वैदिक एंड पुराणिक" में इस देवी की मान्यताओं का सिंहावलोकन किया है। दुनिया के कोई सात धर्मों में इसकी अलग अलग नामों से मान्यता मिलती है। जापान आदि में यह सोपान देव के नाम से योरूवा धर्म में है। हमारे यहां बौद्धकाल में "हारितिदेवी" के नाम से एक मातृका की पूजा की जाती थी, जिसकी गोद में बालक होता था, बालकों की रक्षा के लिए इसको पूजा जाता था। गांधार से तीसरी सदी की हारिति की मूर्तियां भी मिली हैं। ऐसा माना जाता है कि इस तरह की मान्यताओं का निकास इस्रायल, पेलेस्टाइन से हुआ। खासकर उन व्यापारियों से इसको पहचाना गया जो बर्तन आदि वस्तुओं का विपणन करने निकलते थे। यह चेचक जिसे smallpox की देवी मानी जाती है। चेचक की व्याधि पूतना के नाम से पृथक नहीं है। भारत में इस व्याधि का प्रमाण 1500 ईसा पूर्व से खोजा गया है जबकि मिस्र में इसके प्रमाण 3000 वर्ष पूर्व, 1145 ईसापूर्व के मिलते हैं। वहां के राजा रामेस्सेस पंचम और उसकी रानी की जो ममी मिली है, उसमें इस रोग का प्रमाण है। चीन में इसका प्रमाण 1122 ईसापूर्व का मिला है, चीन से यह व्याधि कोरिया होकर 735-737 में जापान पहुंची तो महामारी की तरह फैली और एक तिहाई आबादी प्रभावित हुई। भारत में औरंगजेब के शासनकाल के 16-17 सितंबर, 1667 ई. के एक फरमान से ज्ञात होता है कि शीतला के स्थानकों पर हिंदुओं और मुस्लिमों की भीड लग जाती थी, उनको नियंत्रित करने के लिहाज से राजाज्ञा जारी करनी पड़ी थी। गांव गांव शीतला के स्थानक, मंदिर मिलते हैं। चाटसू, वल्लभनगर, सागवाड़ा आदि में मध्यकालीन मंदिर मिलते हैं। है न चेचकी की देवी शीतला की विश्वयात्रा की रोचक कहानी। हमारे यहां तो होली के दहन के दूसरे दिन से लेकर सात दिनों तक रोजाना महिलाएं उठते ही शीतला माता को ठंडी करने जाती है, इन दिनों को ही अगता मानकर उनका पालन करती हैं... एक व्याधि के शमन के लिए देवी की पूजा की मान्यता हमारी आस्था की पगडंडियों को मजबूती देती दिखाई देती है। पूतना - राक्षसी या चेचक ! होली के दिनों में पहले बच्चों को चेचक हुआ करती थी। अब तो चेचक का उन्मूलन हो गया मगर खसरा के नाम से कहीं कहीं आज भी ऐसा सुना जाता है। बहुत भंयकर व्याधि थी। आंखे चली जाती, चेहरे विभत्स हो जाते। लोग आज तो वह कहावत भूल गए हैं जबकि कहते थे - है तो वह चांद का टुकडा, मगर चांद के साथ तारे हैं। यानी मुंह पर चेचक के वण है। चेचक को ही पूतना कहा गया है। मगर, हम यही जानते हैं कि कंस के राज में भगवान् कृष्ण को मारने के लिए पूतना पठाई गई थी और उसने जब दूध पिलाया तो कृष्ण ने उसका वध कर डाला.... इस कहानी को कितना रस ले लेकर सुनाया जाता है, कोई ये नहीं कहता कि कृष्ण ने इस बीमारी के उन्मूलन का प्रयास किया। हरिवंश, विष्णुपुराण आदि के आधार पर यही वर्णन भागवत में भी लिया गया है। आश्चर्य है कि यह एकमात्र बीमारी है जो कृष्ण को हुई थी, मगर उस पर उन्होंने विजय पा ली थी। इसको बीमारी के रूप में लिखा ही नहीं गया शायद यह पहला संदर्भ है जबकि चेचक के उन्मूलन का प्रयास हुआ हो, मगर इससे पहले रावण के राज में भी पूतना का प्रकोप था। रावण के नाम से जो आयुर्वेदिक ग्रंथ मिलते हैं, उनमें पूतना के प्रकाेप पर शमन के उपाय लिखे गए हैं। यानी रावण के राज में इस बीमारी के शमन पर पूरा जोर दिया जाता था ताकि बच्चे स्वस्थ, मस्त और प्रशस्त रहें तो देश का भविष्य ठीक रहेगा। आयुर्वेद के कोई भी प्राचीन ग्रंथ उठाइये, पूतना के उपाय लिखे मिल जाएंगे। कई नामों और भेदों वाली होती थी पूतना। दो चार नाम तो मुझे भी याद आ रहे हैं जिनको हम बचपन में पहचाना करते थे - बडी माता, छोटी माता, बोदरी माता, सौकमाता, अवणमाता, झरणमाता, मोतीरा वगैरह। इन सब को लक्षणों के अनुसार पहचाना जाता था। मंदोदरी ने रावण से कहा था कि ये मातृकाएं बालकों को अपनी चपेट में ले लेती है। नन्दना, सुनन्दा कंटपूतना, शकुनिका पूतना, अर्यका, भूसूतिका पूतना, शुष्करेवती वगैरहा। रावण ने तब कहा - तृतीय दिवसे मासे वर्षे वा गृह़णाति पूतना नाम मातृका तया गृहीतमात्रेण प्रथमं भवति ज्वर:। गात्रमुद्वेजयति स्तन्यं ऊर्ध्वं निरीक्षते। (रावणसंहिता, बाल औषधि विधान) वास्तु के लिए 81 या 64 पद का आधार तैयार होता है, उसमें पिलीपिच्छा, चरकी, अर्यमा, पापाराक्षसी, विदारिका, स्कंद, जृम्भा और पूतना को गृहयोजना के बाहर ही रखकर पूजन किया जाता है। सभी वास्तु ग्रंथों में उसका जिक्र आया है, वास्तु पद न्यास में उसको भूूलाया नहीं जाता ताकि घर में रहने वालों को कभी ये बीमारी नहीं हो। इसको लाल रंग के भात से पूजा करके मनाया जाता है, क्यों, इसलिए कि उसके प्रकोप के दौरान लाल चावल ही कभी खाए जाते थे। वे सब बातें हम सब भूल गए। रही बात पूतना की, वह हमें सिर्फ इसलिए याद है कि उसको कृष्ण ने मारा था। केवल एक कहानी की शक्ल में। और, उसकी तस्वीरें, मूर्तियां, चित्र आदि भी इस प्रसंग को जीवंत बनाए रखते हैं। कभी कभी प्रसंग के पार जाकर भी हम नए सत्य पर विचार कर सकते हैं। ✍🏻श्री कृष्ण जुगनू जी की पोस्टों से संग्रहित दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
| भोजपुर पुलिस अधीक्षक श्री हरि किशोर राय के द्वारा चलाये गए चेकिंग अभियान के तहत कई अपराधी गिरफ्तार | Posted: 19 Jan 2021 06:59 AM PST भोजपुर पुलिस अधीक्षक श्री हरि किशोर राय के द्वारा चलाये गए चेकिंग अभियान के तहत कई अपराधी गिरफ्तार |हमारे संवाददाता डॉ राजीव रंजन की खास रिपोर्ट भोजपुर पुलिस अधीक्षक के कार्यालय से प्राप्त जानकारी के अनुसार पुलिस अधीक्षक श्री हरि किशोर राय ने अपराधियों पर लगाम लगाने के उद्देश्य से एक अभियान १७.०१.२०२१ से प्रारम्भ किया जिसके तहत अभी तक गंभीर अपराधों जैसे हत्या, लूट, डकैती, बलात्कार आदि के वांछित फरार अभियुक्तों की गिरफ्तारी / वारंटी / कुर्की का निष्पादन एवं अवैध शराब की बरामदगी तथा अवैध शराब के धंधे में संलिप्त लोगों की गिरफ्तारी हेतु दिनांक 17 जनवरी 2021 से 19 जनवरी 2021 तक विशेष अभियान चलाया गया जिस के तहत 40 अभियुक्तों की गिरफ्तारी की गई एवं 1265 लीटर शराब , 1480 महुआ शराब की बरामदगी की गई साथ ही शराब व्यवसाय में लिप्त चार पहिया वाहन ,पिकअप,तीन पहिया वाहन, मोटरसाइकिल , एक देसी कट्टा, तीन कारतूस के साथ लूट की ₹90000 बरामद की गई | पुलिस के द्वारा चलाये गए विशेष वाहन चेकिंग अभियान के द्वारं जुर्माना से 73000 रु एवं मास्क नहीं पहनने वालों से 1750 रु वसूल किया गया | भोजपुर पुलिस ने 24 घंटे के अंदर लुटे हुए ₹70654 एवं पहले से लूटे हुए ₹20000 मोटरसाइकिल और एक देसी कट्टा 3 जीवित कारतूस के साथ चार अपराधियों को भी गिरफ्तार किया | गिरफ्तार अपराधी आरोहण फाइनेंस कंपनी लिमिटेड के कलेक्शन पार्टी से ₹70654 लूट की घटना में स्म्म्मिलित था | इस संबंध में पिरो हसन बाजार में थाना कांड संख्या 27 /1 की दिनांक १५.०१.२०२१ धारा 394 भारतीय दंड विधान के तहत अज्ञात के विरुद्ध मामला दर्ज किया गया था , जिसके उसके बाद पुलिस ने लुटे हुए राशि की बरामदगी एवं संलिप्त अभियुक्त की गिरफ्तारी हेतु एक विशेष छापामारी अभियान चलाकर 24 घंटे के अंदर लूट में संलिप्त चार अभियुक्तों को लूट की राशि के साथ-साथ एक मोटरसाइकिल एक देसी कट्टा एवं तीन जिंदा कारतूस के साथ गिरफ्तार किया | गिरफ्तार अपराधियों में रवि पासवान, संतोष पासवान, दिनेश कुमार, तथा लालबाबू चौधरी नामक अपराधी शामिल है |इन सब के ऊपर पहले से ही कई अपराधिक मामले दर्ज थे | दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
| भारत में बदलाव के लिए बजट और उसके बाद के प्रयास का हिस्सा है, सुधार Posted: 19 Jan 2021 05:42 AM PST भारत में बदलाव के लिए बजट और उसके बाद के प्रयास का हिस्सा है, सुधारप्रकाश चावला 'सुधार' कोई एक बार होने वाली घटना नहीं है, बल्कि यह शासन की गुणवत्ता में सुधार के उद्देश्य से हमेशा जारी रहती है। 'सुधार, प्रदर्शन, परिवर्तन' के क्रम में अंतिम शब्द- 'परिवर्तन' सबसे अहम है, क्योंकि इससे स्पष्ट रूप से लक्ष्य का निर्धारण होता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने कार्यकाल के पहले दिन से ही अपनी सरकार के लिए यह कार्य तय कर दिया था। 'परिवर्तन' का लक्ष्य तय था और है- वहीं सुधार और प्रदर्शन इस दिशा में बढ़ने के माध्यम हैं। आम बजट विशेष लक्ष्यों के निर्धारण और उन्हें हासिल करने के सबसे महत्वपूर्ण साधनों में से एक है। इन विशेष लक्ष्यों में से उन्हें सबसे पहले पूरा किया जाना चाहिए जो जनता के समग्र लाभ से जुड़े हैं। सरकार का वार्षिक बजट 30 लाख करोड़ रुपये का है और व्यय के मद सावधानी से चुने जाने चाहिए, क्योंकि चयन से ही उसकी नीति की दिशा का पता चलता है। 2014-15 के अपने बजट भाषण में, तत्कालीन वित्त मंत्री स्वर्गीय अरुण जेटली ने कहा था : "इस एनडीए सरकार के पहले बजट में, जिसे मैं गरिमापूर्ण सदन में पेश कर रहा हूं, मेरा उद्देश्य उस दिशा के लिए समग्र नीतिगत संकेतक तैयार करना है जहां हम देश को ले जाना चाहते हैं।" हमारे इर्दगिर्द फैले शोर-शराबे में, हम 10 जुलाई, 2014 को जेटली द्वारा प्रस्तुत उनके पहले बजट में और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा 1 फरवरी, 2021 को पेश किए जाने वाले बजट के बीच मोदी सरकार द्वारा किए गए प्रमुख सुधारों से मिले संदेश को भूल गए होंगे। बीते साढ़े छह साल के दौरान कई परिवर्तनकारी और जीवन को बदलने वाले सुधार हुए हैं, लेकिन इस दिशा में प्रगति जारी है और आगे भी जारी रहनी चाहिए। कुल मिलाकर, 135 करोड़ भारतीयों की आकांक्षाओं को निरंतर 'सुधार, प्रदर्शन और परिवर्तन' के बिना हासिल नहीं किया जा सकता है। अपने पहले बजट में जब रक्षा विनिर्माण में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की सीमा 26 प्रतिशत से बढ़ाकर 49 प्रतिशत करने के समान ही बीमा क्षेत्र में ऐलान करके, एनडीए सरकार ने सिर्फ सुधारों को ही गति दी है। रक्षा क्षेत्र में एफडीआई को स्वचालित रूट से 74 प्रतिशत तक और आधुनिक तकनीक तक पहुंच उपलब्ध कराने पर उससे भी ज्यादा सीमा तक के लिए खोल दिया गया है। चालू वित्त वर्ष के दौरान सरकार विनिवेश की दिशा में आगे बढ़ नहीं पा रही है और कोविड 19 महामारी के चलते भी इसमें देरी हुई है, ऐसे में बीपीसीएल, कॉनकोर और एससीआई जैसे ब्लूचिप पीएसयू की एकमुश्त रणनीतिक बिक्री का फैसला लिया गया है। ऐसी रणनीतिक बिक्री सिर्फ अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के दौरान मारुति उद्योग और बाल्को जैसी कंपनियों की हुई थी। मोदी सरकार द्वारा गैर प्रमुख संपदाओं के मौद्रीकरण के लिए दूरगामी सुधारों को स्वीकृति देने का फैसला किया गया था। महत्वपूर्ण बात यह है कि पीएसयू बैंक,जिनका 12 में विलय कर दिया गया है, भी गैर प्रमुख क्षेत्रों में आते हैं। वास्तव में, ऐसे दौर में जब वित्तीय स्थिति दबाव में है, कोविड वैक्सीन टीकाकरण को लागू करने और 29.87 लाख करोड़ रुपये के आत्मनिर्भर भारत पैकेज सहित स्वास्थ्य के लिए जरूरी प्रतिबद्धताओं को देखते हुए बड़े मेट्रो शहरों में रियल एस्टेट परियोजनाओं के साथ ही गैर मुख्य सरकारी संपदाओं की त्वरित बिक्री जरूरी हो गई है। आधिकारिक अनुमानों के मुताबिक, तीन किस्तों में घोषित आत्मनिर्भर भारत पैकेज जीडीपी के 15 प्रतिशत के बराबर है और इसमें रोजगार समर्थन, एमएसएमई को आसान वित्तपोषण, खाद्य राहत और संकटग्रस्त क्षेत्रों को सहायता शामिल है। तेज आर्थिक सुधार के रूप में इसका असर दिखना शुरू हो गया है; लेकिन इसके लिए व्यापक वित्तीय प्रतिबद्धताएं की गई थीं और संसाधनों को नए और साहसी कदमों के माध्यम से जुटाया जाना चाहिए। बाजार की परिस्थितियां काफी अनुकूल हैं; द्वितीयक बाजार में पीएसयू शेयरों के प्रति पूर्वाग्रह के विपरीत उनके आकर्षक मूल्यांकन पर आशावाद के लिए मार्ग प्रशस्त हो रहा है। अब आगे बढ़ने का समय है। 3 लाख करोड़ रुपये का विनिवेश लक्ष्य तय करना और प्रचुर नकदी से पूंजी जुटाना संभव हो सकता है। हमारे वित्तीय बाजारों में विदेशी पूंजी का प्रवाह बढ़ रहा है, क्योंकि विकासशील बाजारों (ईएम) की सूची में भारत के आंकड़े खासे मजबूत हैं। वित्त वर्ष 22 में वी- आकार के सुधार की संभावनाओं से उत्साहित सेंसेक्स 50,000 के मनोवैज्ञानिक आंकड़े को छूने की ओर अग्रसर है। ईएम में सबसे ज्यादा पूंजी आकर्षित करने में सक्षम होने के कारण, भारत को कैलेंडर वर्ष 2020 में 23 अरब डॉलर का निवेश हासिल हो चुका है और यह क्रम नए साल में भी जारी है। भारतीय कंपनियों के राजस्व और उनके लाभ की संभावनाओं के मद्देनजर निवेशक उनके ऊंचे मूल्यांकन को लेकर खासे उत्साहित नजर आ रहे हैं। भारत के उद्योग जगत की सफलता स्टॉक मार्किट के आंकड़ों से जाहिर होती है। यदि आप उन लोगों में से हैं जो पूंजी बाजार को सट्टा मानते हैं तो आपके लिए एक और आंकड़ा है, जो बताता है कि कैसे वैश्विक निवेशक भारत के साथ आगे चलना चाहते हैं। वित्त वर्ष 2020-21 के शुरुआती छह महीनों में ग्रीनफील्ड और ब्राउनफील्ड परियोजनाओं में लगभग 30 अरब डॉलर का एफडीआई आया। यदि अनुमान को सीमित रखें तो भी वित्त वर्ष 21 में एफडीआई प्रवाह आसानी से 50 अरब डॉलर के आंकड़े को पार कर जाएगा। भू-राजनीतिक वजहों और अमेरिका में राष्ट्रपति जो बाइडेन के चीन पर नरम नहीं पड़ने की वास्तविकता को देखते हुए, भारत को दुनिया की दिग्गज विनिर्माण कंपनियों के लिए एक गंभीर विकल्प माना जा रहा है। प्रधानमंत्री ने हाल में भारतीय उद्योग जगत को सलाह दी थी कि हमें सतर्क रहना चाहिए और तेजी से बदले वैश्विक भू-राजनीतिक परिदृश्य का सामना करने के लिए मुस्तैद रहना चाहिए। पड़ोस में चीन जैसा एक बड़ा विनिर्माण हब होने के कारण यह काम बेहद जरूरी हो जाता है। वर्तमान कंपनियों पर कंपनी करों की दर घटाकर 22 प्रतिशत और नए निवेश पर घटाकर 15 प्रतिशत करने से भारत दुनिया में सबसे कम कर वाले देशों की सूची में शामिल हो गया है। इसे सरकार के मेक इन इंडिया कार्यक्रम के प्रमुख स्तंभों के रूप में आगे बढ़ाना और प्रचारित करना चाहिए। घरेलू परिदृश्य की बात करें तो वस्तु एवं सेवा कर की पेशकश निश्चित रूप से मोदी सरकार का सबसे महत्वपूर्ण और जीवन को बदलने वाला सुधार है। जीएसटी के कार्यान्वयन में शुरुआत में समस्याएं आई थीं, लेकिन अब उसे हितधारकों से अच्छा समर्थन मिल रहा है। जीएसटी का योगदान अधिकांश भारतीय अर्थव्यवस्था को उपभोक्ताओं और मध्यवर्तियों के साथ औपचारिक कर व्यवस्था के भीतर लाना है, जिसमें व्यवस्था को जीवन के भाग के रूप में स्वीकार किया गया है। अब कर-अदायगी से जीवन ज्यादा आसान होने और इसके कम खर्चीले होने का अहसास ज्यादा व्यापक हो गया है। सरकार ने जीएसटी से रोजमर्रा के इस्तेमाल वाली वस्तुओं के सस्ता होने के कई उदाहरण दिए हैं। उदाहरण के लिए, टीवी सेट, वाशिंग मशीन, वाटर हीटर, डिटर्जेंट और कॉस्मेटिक उत्पादों पर कर घटकर 18 प्रतिशत रह गया है, जबकि जीएसटी से पहले की व्यवस्था में यह 28 प्रतिशत था। वित्तीय समावेशन कार्यक्रम पीएम जनधन योजना को डिजिटल इंडिया पहल के द्वारा ऐसे सुधार में तब्दील किया गया, जो वास्तव में समावेशी है। अगस्त, 2014 से अगस्त, 2019 के बीच 35.27 करोड़ जनधन खाते खोलकर काफी हद तक भारतीय समाज और निचले स्तर के उपभोक्ताओं के जीवन में बदलाव का मार्ग प्रशस्त किया गया। इनमें से ज्यादातर खाते यूपीआई (यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस) से जुड़े हुए हैं। पेमेंट वालेट से आगे निकलने की महत्वाकांक्षाओं के साथ बड़ी संख्या में आगे आईं फिनटेक कंपनियों ने तकनीक रूप से सक्षम वित्तीय समावेशन की नींव रखीं, जो संभवतः दुनिया का सबसे बड़ा समावेशन है। डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर अभी तक 161 लाख करोड़ रुपये के मूल्य के लगभग 2,649 करोड़ वित्तीय लेनदेन हो चुके हैं। यह कहने की जरूरत नहीं है कि अब डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पूरी तैयारी से बड़ी छलांग के लिए तैयार हैं, साथ ही एक 'रचनात्मक बदलाव' का वास्तविक उदाहरण पेश कर रहे हैं। 'भर्ती करो और निकालो' के असमंजस के साथ, बिना किसी शोरशराबे के श्रम सुधारों की शुरुआत की गई है। 29 विभिन्न और पुराने श्रम कानूनों को चार कानूनों में समाहित करने का व्यापक स्वागत किया गया। मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों ने इन श्रम सुधारों को अपनी निवेश नीतियों से जोड़ते हुए लागू करने में खासी तत्परता दिखाई। आगामी बजट पहले के बजट से काफी अलग होने जा रहा है। निस्संदेह वित्त मंत्री पर संसाधन जुटाने का खासा दबाव है, लेकिन एफआरबीएम की लक्ष्मण रेखा यानी राजकोषीय घाटे को पार करने को लेकर उन पर इस बार नजर नहीं रहेगी। यह नया दौर हो सकता है; ज्यादातर विश्लेषक मानते हैं कि व्यय को कम नहीं रखा जा सकता है। इसके अलावा यह बजट वैश्विक स्वास्थ्य संकट के बीच में आ रहा है, इसलिए सरकार को पिछले छह साल के सुधारों पर आगे बढ़ना होगा। बदलाव की प्रक्रिया कभी खत्म नहीं होनी चाहिए। *प्रकाश चावला दिल्ली के एक स्वतंत्र पत्रकार हैं दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
| आज 20 - जनवरी - 2021, बुधवार को क्या है आप की राशी में विशेष ? Posted: 19 Jan 2021 05:34 AM PST
आज 20 - जनवरी - 2021, बुधवार को क्या है आप की राशी में विशेष ? दैनिक पंचांग एवं राशिफल - सभी 12 राशियों के लिए कैसा रहेगा आज का दिन जाने प्रशिद्ध ज्योतिषाचार्य पं. प्रेम सागर पाण्डेय से श्री गणेशाय नम: पंचांग 20 - जनवरी - 2021, बुधवार तिथि सप्तमी दिन 01:16:21 नक्षत्र रेवती दिन 12:57:18 करण : वणिज 13:16:36 विष्टि 26:32:42 पक्ष शुक्ल योग सिद्ध 19:29:09 वार बुधवार सूर्य व चन्द्र से संबंधित गणनाएँ सूर्योदय 06:40:51 चन्द्रोदय 11:43:59 चन्द्र राशि मीन - 12:36:33 तक सूर्यास्त 05:20:46 चन्द्रास्त 24:33:59 ऋतु शिशिर हिन्दू मास एवं वर्ष शक सम्वत 1942 शार्वरी कलि सम्वत 5122 दिन काल 10:35:48 विक्रम सम्वत 2077 मास अमांत पौष मास पूर्णिमांत पौष शुभ और अशुभ समय शुभ समय :- अभिजित कोई नहीं अशुभ समय :- दुष्टमुहूर्त : 12:11:01 - 12:53:25 कंटक 16:25:21 - 17:07:44 यमघण्ट 09:21:28 - 10:03:52 राहु काल 12:32:13 - 13:51:42 कुलिक 12:11:01 - 12:53:25 कालवेला या अर्द्धयाम 07:56:42 - 08:39:05 यमगण्ड 08:33:47 - 09:53:16 गुलिक काल 11:12:44 - 12:32:13 दिशा शूल उत्तर चन्द्रबल और ताराबल
आज का दैनिक राशिफल 20 - जनवरी - 2021, बुधवार
पं. प्रेम सागर पाण्डेय् ,नक्षत्र ज्योतिष वास्तु अनुसंधान केन्द्र ,नि:शुल्क परामर्श - रविवार , दूरभाष 9122608219 / 9835654844 दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
| Posted: 19 Jan 2021 05:20 AM PST मंत्रिपरिषद् के निर्णयआज सम्पन्न मंत्रिपरिषद की बैठक के बाद मंत्रिमंडल सचिवालय विभाग के प्रधान सचिव, श्री संजय कुमार ने बताया कि मंत्रिपरिषद् की बैठक में कुल 17 (सत्रह) एजेंडों पर निर्णय लिया गया, जो निम्न प्रकार हैं गृह विभाग (आरक्षी शाखा) के अन्तर्गत भारत सरकार के इण्डिया रिजर्व पैटर्न पर सृजित अतिरिक्त आई०आर० बटालियन के पदों केपुनर्नामांकन/अवक्रमण /सामंजन/अभ्यर्पण की स्वीकृति, राज्य में आतंकवाद /साम्प्रदायिक / नक्सली हिंसा सीमा पार से गोलीबारी एवं बारूदी सुरंग विस्फोट से पीड़ित सिविल व्यक्तियों को सहायता राशि उपलब्ध कराने हेतु गृह मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा जारी प्रतिपूर्ति आधारित संशोधित मार्गदर्शिका के प्रावधान लागू करने की स्वीकृति तथा गृह विभाग (आरक्षी शाखा) के ही तहत बिहार पुलिस हस्तक, 1978 के नियम-645 और नियम-724अ के साथ पठित परिशिष्ट-71 के नियम-2 'योग्यताएँ' के अन्तर्गत उम्र की निचली सीमा में संशोधन की स्वीकृति दी गई। पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग के अन्तर्गत वित्तीय वर्ष 2020-21 में स्थापना एवं प्रतिबद्ध व्यय मुख्य शीर्ष-3435-पारिस्थितिकि विज्ञान तथा पर्यावरण, उप शीर्ष -0001-प्रदूषण नियंत्रण, विपत्र कोड-19- 3435041010001 के विषय शीर्ष-0001.13.01-कार्यालय व्यय के अन्तर्गत 10.00 करोड़ (दस करोड़ रूपये मात्र) बिहार राज्य आकस्मिकता निधि से अग्रिम की स्वीकृति दी गई। विज्ञान एवं प्रावैधिकी विभाग के अन्तर्गत अभियंत्रण महाविद्यालयों में सहायक प्राध्यापक (मैनेजमेंट) की नियुक्ति हेतु विज्ञान एवं मानविकी संकाय के अर्हता के अंतर्गत सहायक प्राध्यापक (मैनेजमेंट) की अर्हता को जोड़ने हेतु भारत के संविधान के अनुच्छेद 309 के परन्तुक द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए, बिहार अभियंत्रण शिक्षा सेवा नियमावली, 2020 के परिशिष्ट-01 की तालिका-01 एवं 02 में संशोधन किये जाने एवं प्रस्तावित बिहार अभियंत्रण शिक्षा सेवा (संशोधन) नियमावली 2021 की स्वीकृति दी गई। संसदीय कार्य विभाग के अन्तर्गत सप्तदश बिहार विधान सभा के द्वितीय सत्र तथा बिहार विधान परिषद् के 197वें सत्र (बजट सत्र) के औपबंधिक कार्यक्रम की स्वीकृति दी गई। सामान्य प्रशासन विभाग के अन्तर्गत संविदा के आधार पर नियोजन की प्रक्रिया एवं मार्गदर्शक सिद्धान्त की स्वीकृति तथा सामान्य प्रशासन विभाग के ही तहत दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 के अन्तर्गत राज्याधीन सेवाओं की नियुक्ति एवं शैक्षणिक संस्थानों के नामांकन में बहु-दिव्यांगता को सम्मिलित करने तथा दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 के प्रावधानों को केन्द्रीय दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 के अनुरूप करने की स्वीकृति दी गई। राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग के अन्तर्गत बिहार राजस्व सेवा (संशोधन) नियमावली, 2019 की अनुसूची-1 में स्वीकृत पद बल में आंशिक परिवत्र्तन करने की स्वीकृति दी गई। कृषि विभाग के अन्तर्गत बिहार कृषि सेवा कोटि-7 (उद्यान) भर्ती, प्रोन्नति एवं सेवा शत्र्त (संशोधन) नियमावली, 2021 की गठन की स्वीकृति, बिहार कृषि सेवा कोटि-3 (रसायन) भर्ती, प्रोन्नति एवं सेवा शत्र्त (संशोधन) नियमावली, 2021 की गठन की स्वीकृति, बिहार कृषि सेवा कोटि-8 (माप एवं तौल) संशोधन नियमावली, 2021 की गठन की स्वीकृति, बिहार कृषि सेवा कोटि-5 (पौधा संरक्षण) भर्ती, प्रोन्नति एवं सेवा शत्र्त (संशोधन) नियमावली, 2021 की गठन की स्वीकृति तथा कृषि विभाग के ही तहत बिहार कृषि सेवा कोटि-2 (कृषि अभियंत्रण) भर्ती, प्रोन्नति एवं सेवा शत्र्त (संशोधन) नियमावली, 2021 की गठन की स्वीकृति दी गई। स्वास्थ्य विभाग के अन्तर्गत राजकीय आर०बी०टी०एस० होमियोपैथिक मेडिकल काॅलेज एवं अस्पताल, मुजफ्फरपुर में अस्पताल एवं कार्यालीय कार्य को सुचारू रूप से संचालित करने हेतु 3 एवं राजकीय महारानी रमेश्वरी भारतीय चिकित्सा विज्ञान आयुर्वेदिक संस्थान, मोहनपुर, दरभंगा में भारतीय चिकित्सा केन्द्रीय परिषद् के न्यूनतम शैक्षणिक मापदण्ड को पूरा करने के उद्देश्य से शैक्षणिक विभाग में प्राध्यापक के 14 पदों के सृजन की स्वीकृति दी गई। सामान्य प्रशासन विभाग के अन्तर्गत वित्तीय वर्ष 2020-21 में बिहार प्रशासनिक सुधार मिशन सोसाइटी, पटना के अन्तर्गत संविदा एवं वाह्य स्रोत से नियोजित कर्मियों/पदाधिकारियों के वेतन भुगतान हेतु 3104 सहायक अनुदान वेतन में कुल ृ58.00 करोड़ (अंठावन करोड़ रूपये) मात्र का बिहार आकस्मिकता निधि से अग्रिम एवं व्यय की स्वीकृति दी गई। कला, संस्कृति एवं युवा विभाग के अन्तर्गत ''बिहार राजकीय संग्रहालय लिपिकीय संवर्ग (भर्ती एवं सेवा शत्र्तें) नियमावली, 2021'' के गठन की स्वीकृति दी गई। शिक्षा विभाग के अन्तर्गत शिक्षा विभाग द्वारा संचालित मुख्यमंत्री पोशाक योजना, मुख्यमंत्री बालिका पोशाक योजना, मुख्यमंत्री बालक पोशाक योजना एवं बिहार शताब्दी मुख्यमंत्री बालिका पोशाक योजना के तहत राज्य के विद्यालयों में कक्षा 1 से 12वीं में अध्ययनरत छात्र एवं छात्राओं को उपलब्ध करायी गयी राशि से विद्यार्थियों द्वारा बिहार ग्रामीण जीविकोपार्जन प्रोत्साहन समिति (जीविका) सम्पोषित सामुदायिक संगठनों एवं उद्योग विभाग अन्तर्गत उद्यमिता विकास से संबद्ध संकुलों (क्लस्टर्स) के माध्यम से चरणबद्ध प्रक्रिया अनुसार अगले शैक्षणिक सत्रों में दो सेट सिले हुए पोशाक का क्रय किये जाने की स्वीकृति दी गई। दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
| Posted: 19 Jan 2021 05:10 AM PST महामहिम राज्यपाल के समक्ष एन॰सी॰सी॰ के अपर महानिदेशक ने राज्य के विश्वविद्यालयों में एन॰सी॰सी॰ को सी॰बी॰सी॰एस॰ में इलेक्टिव क्रेडिट कोर्स के रूप में सम्मिलित करने से संबंधित एक 'पावर प्रेजेन्टेशन' दियामहामहिम राज्यपाल-सह-कुलाधिपति श्री फागू चैहान के समक्ष आज राजभवन में एन॰सी॰सी॰ के अपर महानिदेशक (बिहार-झारखंड) मेजर जेनरल एम॰ इन्द्राबालन ने एन॰सी॰सी॰ को राज्य के विश्वविद्यालयों में 'च्वाइस बेस्ड क्रेडिट सिस्टम' (सी॰बी॰सी॰एस॰) में बतौर इलेक्टिव क्रेडिट कोर्स के रूप में सम्मिलित किए जाने पर विचार करने हेतु एक पावर प्रेजेन्टेशन दिया। उन्होंने विस्तार से एन॰सी॰सी॰ कोर्स के बारे में महामहिम राज्यपाल को जानकारी दी। राज्यपाल श्री चैहान ने इस कोेर्स को रोजगारपरक बनाये जाने का सुझाव देते हुए इससे संबंधित यू॰जी॰सी॰ के प्रावधानों आदि पर भी गंभीरतापूर्वक विचार करते हुए एन॰सी॰सी॰ के अधिकारियों को ठोस, सुचिंतित एवं व्यावहारिक प्रस्ताव तैयार करने को कहा। उक्त बैठक में राज्यपाल के सचिव श्री राॅबर्ट एल॰ चोंग्थू तथा एन॰सी॰सी॰ के ग्रुप कमाण्डर ब्रिगेडियर दिनेश राणा एवं ब्रिग्रेडियर प्रवीण कुमार सहित राज्यपाल सचिवालय के वरीय अधिकारीगण आदि भी उपस्थित थे। दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
| Posted: 19 Jan 2021 05:03 AM PST परिणाम कभी क्या सोचा है?आगे बढ़कर पीछे मुड़ना , पीछे मुड़कर आगे बढ़ना।। धुकचूक में कदम बढ़ाने का परिणाम कभी क्या सोचा है? गैरों को ठगते रहते हो या स्वयं ठगे जाते हो। क्षणभर तू कभी इस पर बोलो ,परिणाम कभी क्या सोचा है? बचपन से पचपन बीता कुछ किया नहीं पर शर्म नहीं । तेरा आगे क्या होना है परिणाम कभी क्या सोचा है? क्षुद्र स्वार्थ से तू हटकर परहित में कदम बढ़ाता गर। कितना महान जीवन होता परिणाम कभी क्या सोचा है? जीवन बहुमूल्य दिया जिसने , जिसने तुम्हें बुद्धि -विवेक दिया।। बदले में उसे तूने क्या दिया परिणाम कभी क्या सोचा है? डॉक्टर विवेकानंद मिश्रा , डॉक्टर विवेकानंद पथ , गोल बगीचा, गया दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
| Posted: 19 Jan 2021 04:51 AM PST राज्यपाल ने दशमेश गुरू श्री गुरू गोबिन्द सिंह जी के पावन 'प्रकाश उत्सव' के सुअवसर पर सभी बिहारवासियों व देशवासियों को हार्दिक शुभकामनाएँ दीपटना, 19 जनवरी 2021 महामहिम राज्यपाल श्री फागू चैहान ने श्री गुरू गोबिन्द सिंह जी के पावन 'प्रकाश उत्सव' के सुअवसर पर सभी बिहारवासियों व देशवासियों को अपनी हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ दी है। अपने 'संदेश' में राज्यपाल श्री चैहान ने कहा है कि दशमेश गुरू श्री गुरू गोबिन्द सिंह जी महाराज का महान व्यक्तित्व एवं अनुपम कृतित्व विद्वता, त्याग, तपस्या, समर्पण और बलिदान का अनूठा दृष्यंत है, जिससे राष्ट्रीय एकता और सद््भावना को विकसित करने की प्रेरणा मिलती है। सामाजिक समत्व, बंधुत्व, राष्ट्र-प्रेम, सदाचार और स्वाभिमान के भाव गुरू गोबिन्द सिंह महाराज के दिव्य संदेशों के सार तत्व हैं, जिन्हें जीवन में उतारने से मानवता के समग्र कल्याण का पथ प्रशस्त होता है। श्री गुरू गोबिन्द सिंह जी के 'प्रकाश उत्सव' के उपलक्ष्य में राज्यपाल ने मंगलकामना की है कि सामाजिक समता और सद््भावना के वातावरण में समस्त बिहार प्रगति-पथ पर तेजी से आगे बढ़ता रहे। दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
| Posted: 19 Jan 2021 04:45 AM PST राज्यपाल ने बिहार विद्युत विनियामक आयोग के अध्यक्ष के रूप में श्री शिशिर सिन्हा एवं इसके सदस्य के रूप में श्री सुभाष चन्द्र चैरसिया को पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलायीपटना, 19 जनवरी 2021:ः- महामहिम राज्यपाल श्री फागू चैहान ने आज राजभवन में बिहार विद्युत विनियामक आयोग के अध्यक्ष के पद पर श्री शिशिर सिन्हा एवं इसके सदस्य के पद पर श्री सुभाष चन्द्र चैरसिया की नियुक्ति के फलस्वरूप उन्हंे पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलायी। राजभवन में आयोजित उक्त 'शपथ-ग्रहण समारोह' में बिहार विद्युत विनियामक आयोग के सदस्य श्री रमेश कुमार चैधरी, राज्यपाल के सचिव श्री राॅबर्ट एल॰ चोंग्थू, ऊर्जा विभाग के सचिव श्री संजीव हंस, नार्थ बिहार पावर डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी लि॰ के एम॰डी॰ श्री संदीप कुमार आर॰ पुडकलकट््टी, साउथ बिहार पावर डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी लि॰ के एम॰डी॰ श्री संजीवन सिन्हा, बिहार हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर काॅरपोरेशन के एम॰डी॰-सह-निदेशक (ब्रेडा) श्री आलोक कुमार, ऊर्जा विभाग के संयुक्त सचिव श्री बिनोदानन्द झा, बिहार विद्युत विनियामक आयोग के सचिव श्री रामेश्वर प्रसाद दास सहित राजभवन के वरीय अधिकारीगण आदि उपस्थित थे। दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
| Posted: 19 Jan 2021 04:40 AM PST लवेरिया वायरस का टीकाअखवारों के 'इयरपैनल'पर छपने वाले मनमौजी सुविचारों की तरह वटेसरकाका के रोज के सवालों में आज का सवाल जरा जटिल लगा मुझे—"सबसे घातक बीमारी कौन सी है और वो वैकटीरियल है या वायरल? " हमेशा की तरह मैं आज भी घुटने टेक दिया उनके सवालों के आगे। वैसे भी उनके श्रीमुख से जवाब सुनने में जो मज़ा है,वो खुद से जवाब देने में भला कहाँ! हाँ, इतना जरुर कहा—किसी जमाने में टी.बी.,हैजा,प्लेग घातक बीमारी हुआ करती थी,फिर सिफलिस,गनोरिया ने जगह बना लिया। उसके बाद कैन्सर आया, जो अभी भी लगभग लाइलाज ही बना हुआ है। किन्तु अब तो चीन के बुहान से आया हुआ कोरोना ही सबसे घातक माना जा रहा है। अकेले इस बीमारी ने साढ़े नौ करोड़ लोगों को अपने चपेट में ले लिया, फिर भी जाने का नाम नहीं ले रहा है। बीस लाख के करीब मौतें हो गयी अबतक...। मेरी बात को बीच में ही काटते हुए काका कहने लगे—"कोरोना की घातकता अपनी जगह पर है, किन्तु तुम्हें नहीं पता,दुनिया की सबसे घातक बीमारी लवेरिया है, जो वायरल है कि वैक्टीरियल या कुछ और किस्म के विषाणुओं से फैलता है, अभी तक ठीक से पता नहीं लगा है।कोरोना तो निकट सम्पर्क से संक्रमित होता है,किन्तु लवेरिया दुनिया के किसी कोने में बैठे हुए दो व्यक्तियों के बीच संक्रमित हो जाता है। इस कारण इसे घातक बीमारी की सूची में सबसे ऊपर स्थान मिलना चाहिए। मोबाइल और सोशलमीडिया के विभिन्न स्रोत इसमें अहम भूमिका निभाते हैं। हाँ, इतनी राहत है कि दो विपरीत लिंगी होना इसकी पहली और आँखिरी शर्त है। तुलसीबाबा ने बहुत पहले ही एक लाइन लिखी थी—नारी नयनशर काहु न लागा...। क्योंकि वो खुद भी इस बीमारी के शिकार हुए थे। उनसे भी पहले सूरदास को इस बीमारी का शिकार होना पड़ा था। विल्वमंगल से सूरदास बनने के पीछे का यही इतिहास रहा है। पुराने लोगों ने इसपर काफी शोध किया है। राजा भतृहरी ने तो धिक्तांच तां च मदनं च इमां च मां च...कहते हुए गृह-त्याग कर दिया और उससे भी पहले, भोलेनाथ तो इतने कुपित हुए कि इस बीमारी के कर्ता-धर्ता—कामदेव को ही भस्म कर डाले। बीमारी के स्रोत को तुलसी ने ठीक से समझा—आँखों के माध्यम से ही ये बीमारी शरीर में घुसती है और क्षण भर में ही अच्छे-अच्छों का हुलिया बिगाड़ देती है। पुराने जमाने में राजा-महाराजाओं को कामज्वर हुआ करता था,जिसका उपचार चतुर वैद्यलोग किया करते थे और राज-कृपा से मालोमाल हो जाया करते थे। शायद तुम्हें पता न हो—'ध्वजभंग और ध्वजाभंग' उनदिनों की अहं समस्या थी। एक की रक्षा प्रबुद्ध भिषगाचार्य करते थे और दूसरी समस्या के निवारण के लिए योग्य सेनापति बहाल किये जाते थे। हस्तिनापुर नरेश शान्तनु तो सारे पुराने रिकॉर्ड तोड़ दिए। उनकी काम-पिपासा ने महाभारत का बीज बो दिया। खैर, इतिहास से सबक कोई लेता कहाँ है, फिर भी मुझे ये चिन्ता सता रही है कि आजकल ये बीमारी कुछ दूसरे ही तरह से पनप रही है समाज में । लगता है इसका भी न्यू जेनेरेशन क्रियेट हो गया है,जिसके ज़द मेंज्यादातर 'टीनेजर' आ रहे हैं। कल ही का अखबार पढ़ रहा था—एक नौंवीं क्लास का विद्यार्थी लवज़िहाद के चक्कर में फाँसी लगा लिया। मजे की बात ये है कि फाँसी लगाने का लाइव वीडियो शेयर किया उसने अपने गर्लफ्रैंड को,जिसने औरों को घटना की जानकारी दी। तुम जानते ही हो कि आजकल सबकुछ ऑनलाइन हो रहा है—मींटिंग-सीटिंग से लेकर स्कूल-कॉलेज की पढ़ाई तक । जिन बच्चों को'शू-शू-छी-छी'का भी सऊर नहीं उनकी कक्षाओं का भी ऑनलाइन कोरम पूरा हो रहा है—काबिलस्कूल प्रशासन द्वारा अपना उल्लू सीधा करने के चक्कर में। गार्जीयन भी खुश हैं कि बच्चा पढ़ रहा है। हद हो गयी लूट और मूर्खता की। लव-स्टोरी से लेकर मर्डर-मिस्ट्री तक सब साल्भ हो रहे हैं ऑनलाइन ही। ये लवेरिया की ऐसी बीमारी लगी है,जिसका कोई ओर-छोर ही नहीं।" बात आप बिलकुल सही कह रहे हैं काका—नाभी सूखते-सूखते लव हो जा रहा है डिजीटल दुनिया में। काका ने हामी भरी—"लव और लवज़िहाद ही हो सकता है बबुआ! प्रेम नहीं। डिजिटल दुनिया में बहुत कुछ सुलभ हो गया है—नंगापन,भोंड़ापन, चोरी-सीनाजोरी, झूठ-फरेब,मारकाट,हत्या, आत्महत्या सबकी फ्री-ऑफ-कॉस्ट ऑनलाइन ट्रेनिंग मिल जा रही है।लवस्टोरी की पर्फेक्ट ट्रेनिंग के लिए तो बॉलीउड,हॉलीउड,टॉलीउड,डॉलीउड सब हैं ही।" आँखिर इसका उपाय क्या हो सकता है काका? "लवेरिया के टीका पर मैंने बहुत शोध किया और अन्ततः यही पाया कि इसका पर्फेक्ट वैक्सीन इज़ाद करना असम्भव सा है। हाँ, बुनियादी एहतियात के तौर पर एक काम किया जा सकता है—'पैरेन्टल कॉरेनटाइन सिस्टम' से थोड़ा-बहुत काबू पाया जा सकता है। पुराने पैटर्न की खज़ूर वाली छड़ी बच्चों के पीठ पर समय-समय पर पड़ती रहे तो कुछ-कुछ 'सेनेटाइजेशन'होता रहेगा बॉडी का और बॉडी लैंगुवेज़ भी सुधर जायेगा। " ये तो सही कह रहे हैं काका,किन्तु आजकल के बच्चे सुनते कहाँ हैं,जरासी गार्जीयनी दिखाओ तो चट घर से भाग खड़े होते हैं, ट्रेन के नीचे सोने चले जाते हैं या शू-साइड के ख्याल से नस काटने लगते हैं। और भी तरह-तरह की धमकियाँ देने लगते हैं माँ-बाप को। "दरअसल हमारी गार्जीयनी-मेथड भी मॉर्डन हो गया है। शुरु में इतना लाढ़-प्यार कर देते हैं कि होश सम्भालते-सम्भालते बच्चे बिगड़ैल टट्टु हो जाते हैं और फिर पुट्ठे पर हाथ ही नहीं रखने देते। जबतक हम सम्भलते हैं,तबतक मामला हाथ से निकल चुका होता है। पहले स्कूलों में भी जम कर धुनाई होती थी,मुर्गे बनाये जाते थे,उठक-बैठक होती थी। अब तो ये सब चाइड्स-टॉर्चर के अन्दर आ गया है। 'गुरुजी' भी अब 'सरजी' हो गए हैं, जिनके पास सर छोड़कर, सिर्फ धड़ ही है। पश्चिम की देखा-देखी तरह-तरह के नियम-कानून बना दिए गये हैं, जो बच्चों को शिष्टाचार से बहुत दूर कर दिए हैं।ये शूट-बूट-टाई वाले स्कूल बोरियों से मार्किंग उझलते हैं—नब्बे-पन्चानब्बे प्रतिशत तक नम्बर दिए जाते हैं। इन स्कूलों में शिष्ट-योग्य नागरिक कम, पढ़ने-लिखने वाली मशीनें ज्यादा बनायी जाती हैं। शिष्टाचार तो घर-परिवार में भी बहुत कम ही देखने को मिलता है। फिर स्कूलों में भला क्या मिलेगा!हम खुद शिष्ट होना नहीं चाहते और दूसरों को शिष्ट देखना चाहते हैं। ऐसे में एकतरफा काम कैसे चलेगा! " आपकी बातें तो सही हैं काका,किन्तु आँखिर इसका हल क्या हो सकता है? "मैंने कहा न, सबसे पहले शिक्षा का स्वरुप बदलना होगा। योग्य गुरुओं की मण्डली तैयार करनी होगी। गुरुकुल की पुनः स्थापना करनी होगी। गार्जीयनी का तरीका भी बदलना होगा।'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ ' सिर्फ स्लोगन बन कर न रह जाए। लड़कियों के प्रति माँ-बाप का सोच बदलना होगा। बेटे-बेटी में भेद करेंगे, कन्या भ्रूणहत्या करेंगे, बेटे के विवाह में मुंहमांगी दहेज का ख्वाब देखेंगे, बेटियों पर अंकुश लगायेंगे और बेटों को खुले सांढ़ की तरह छुट्टा छोड़ देंगे, तो इसकी-उसकी खेती में मुंह मारेंगे ही वे और लवेरिया का संक्रमण होते ही रहेगा। अतः सबसे पहले प्रौढ़ पीढ़ी को समझना होगा, फिर युवाओं को समझाना होगा और उसके साथ ही किशोरों पर कठोर नियन्त्रण रखना होगा। अन्यथा पछुआ वयार में सबकुछ उड़कर प्रशान्त महासागर की गहरी खाई में जा डूबेगा। " सिर झुकाये मैं, काका की बातों पर विचार करने लगा। आप भी कुछ विचारें। शायद बात बन जाय। लवेरिया का टीका घर-घर पहुँच जाएऔर जब तक न पहुँचे तबतक प्रीकॉशनमॉस्क का इस्तेमाल जरुर करें। जयरामजी। दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com |
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