दिव्य रश्मि न्यूज़ चैनल |
- अकेला
- सबके कल्याण के लिए बनी थी भारतीय धातुकर्म की परंपरा
- लौट के बुद्धु घर को आये।
- बिहारवासियों में राम मंदिर को लेकर अभूतपूर्व उत्साह- डाॅ. आर. एन. सिंह
- एक धर्म विशेष के लिए इतनी उदारता क्यों!
- वकील के मुंशी की हत्या
- आज 21 - जनवरी - 2021, गुरूवार को क्या है आप की राशी में विशेष ?
- अनियंत्रित होकर बोलेरो पलटा एक व्यक्ति की मौत, दूसरा घायल
- राज्यपाल ने दशमेश गुरू श्री गुरू गोबिन्द सिंह जी महाराज के ‘354वें प्रकाश पर्व’ के अवसर पर तख्त श्री हरिमंदिर जी, पटना साहिब जाकर मत्था टेका
- श्री गुरु गोबिंद सिंह जी महाराज के 354वें प्रकाश गुरुपर्व में शामिल हुए मुख्यमंत्री
- एनसीसी कैडेट्स सड़क दुर्घटनाओं से निपटने में प्रथम उत्तरदाता की भूमिका निभाएंगे
- रेरा रियल एस्टेट क्षेत्र में एक बड़ा परिवर्तन
Posted: 20 Jan 2021 06:17 PM PST अकेला .......अकेलाएक शब्द स्वयं मे अकेला| हजारों कि भीड़ मे एक अहसास अकेले होने का इंसान को अकेला कर देता है समाज मे,स्वयं कि सोच मे| कितना अजीब सा है यह अहसास अकेलेपन का ? कभी सोचा है तुमने किसी सुखी मनुष्य का बारे मे क्या उसे सालता है अहसास अकेलेपन का अथवा यह है अनुभूति केवल दुखी मनुष्य के साथ? अकेलापन किसी कि बपौती नहीं यह है मात्र अहसास विचारों के साथ| कभी कभी अच्छा लगता है अकेलापन किसी कि सुनहरी यादों के साथ| तन्हाई मे अकेले बहुत लोग होते हैं संग मे कुछ ख्वाब जुड़े होते हैं पर चंद लोग जो भीड़ मे रहकर भी अकेले होते हैं यादों मे भी उनके संग कोई नहीं होते हैं तब काटता है उन्हें अकेलापन और मुश्किल होता है उनके लिए अकेलेपन का अहसास| शायद उनमे से ही कुछ लोग चिन्तक बन जाते हैं जब अकेलेपन की बंजर धरती पर विचारों के फूल खिल जाते हैं| डॉ अ कीर्तिवर्धन दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
सबके कल्याण के लिए बनी थी भारतीय धातुकर्म की परंपरा Posted: 20 Jan 2021 06:14 PM PST सबके कल्याण के लिए बनी थी भारतीय धातुकर्म की परंपरालेखक:- आर.के.त्रिवेदी (लेखक ऑर्कियोकेमिस्ट हैं) संकलन अश्विनीकुमार तिवारी विश्व के कल्याण का भाव लेकर ही भारत में धातुकर्म विकसित हुआ था। धातुकर्म के कारण ही भारत में बड़ी संख्या में विभिन्न धातुओं के बर्तन बना करते थे जो पूरी दुनिया में निर्यात किए जाते थे। धातुकर्म विशेषकर लोहे पर भारत में काफी काम हुआ था। उस परम्परा के अवशेष आज भी देश में मिलते हैं। यह केवल लौह स्तंभों की बात नहीं है, उस ज्ञान परम्परा की भी बात है। वह ज्ञान परम्परा आज भी हमारे देश में धातुकर्म करने वाले अनपढ़ लुहारों के पास सुरक्षित है। वर्ष 2012 में आंध्र प्रदेश के निजामाबाद जो कि वर्तमान में तेलंगाना में पड़ता है, में एक किले के संरक्षण के उपाय कर रहा था। उस किले की दिवारों में अनेक पेड़ उग आए थे। उन्हें काटने में कठिनाई आ रही थी कि कुल्हाड़ियों की धार पत्थर के कारण कट जाती थी। इस पर मैंने एक स्थानीय लुहार से पूछा कि एक कुल्हाड़ी में धार चढ़ाने का वह कितना लेगा। उसने बताया बीस रुपये। मैंने उसे कहा कि पत्थर पर कुल्हाड़ी मारने पर भी धार न कटे, ऐसी धार चाहिए। इस पर उसने कहा कि ऐसी धार बनाने के तीन सौ रूपये लगेंगे। मैंने उससे पूछा कि कैसे करेगा। उसने लोहे को पहले गरम किया, फिर पानी में डाल कर ठंडा किया। 2-3 बार ऐसा करने के बाद उसने लोहे को लगभग 300 डिग्री सेंटीग्रेट तक गरम किया, वह नीले रंग का हो गया। तब उसने उसे एक काले रंग के पानी में डाल दिया। पूछने पर बताया कि वह काला पानी त्रिफला का पानी था। उससे ठंडा करके उसने एक गड्ढा बनाया और उसमें लोहे को डाल कर उसमें केले के तने को छोटे-छोटे टुकड़े करके उसमें डाल दिया। केले के तने का रस उसमें ठीक से भर गया। फिर उसे बंद करके 15 दिन के लिए छोड़ दिया गया। पंद्रह दिन बाद उसमें ऐसी धार थी कि पत्थर कट रहे थे, धार नहीं। एक धरोहर के संरक्षण में मैंने इन्हीं लुहारों का सहयोग लिया था। उनकी बनाई धार के कारण पत्थरों में जमे वृक्षों को साफ करना संभव हो पाया था। भारतीय धातुकर्म की इसी उत्कृष्टता के कुछ नमूने हमें देश में लौह स्तंभों के रूप में मिलते हैं। इन स्तंभों की विशेषता है कि लोहे के बने होने के बाद भी इनमें जंग नहीं लगता और खुले में धूप-बरसात को झेलते हुए ये हजारों वर्षों से खड़े हैं। सवाल है कि इन पर जंग क्यों नहीं लगता? आखिर उन्हें किस प्रकार के इस्पात से बनाया गया है? इन्हें बनाने में पिटवां लोहे का उपयोग किया गया है। लोहे को गरम करके पीट-पीट कर तैयार करने पर पिटवां लोहा तैयार होता है। परंतु इतने बड़े लोहे के टुकड़े को घुमाना संभव नहीं है। परंतु इसी लौह स्तंभ के आकार की तोपें भी मिलती हैं। यानी उस समय इस आकार के लोहे के टुकड़ों को बनाने का तरीका लोगों को ज्ञात था। वे लोग लोहे को गरम करके ठंड़ा करते समय उसे गौमूत्रा में भिगोते थे। गौमूत्रा लोहे के ऊपर एक ऐसी परत चढ़ाता है, जो उसे जंग लगने से बचाती है। इसे हम अपने दांतों के उदाहरण से समझ सकते हैं। हमारे दांतों पर एनामेल की परत चढ़ी होती है। जब तक वह परत सुरक्षित है, हमारे दांत सुरक्षित हैं। एनामेल नष्ट हुआ तो हमारे दांत भी गए। यही बात इन लौह स्तंभों की भी है। मेहरौली के लौह स्तंभ की जाँच करने के लिए जब उसका नमूना लिया गया तो वहाँ की परत कट जाने के कारण वहाँ जंग लगना प्रारंभ हो गया। इसी प्रकार कोणार्क मंदिर में भी लोहे की बड़े-बड़े बीम बनाए गए थे। आज यह तीन टुकड़ों में मिलता है। इसी प्रकार धार, मध्य प्रदेश में दुनिया का सबसे बड़ा स्तंभ मिलता है। यह भी पिटवां लोहे का बना हुआ है। इसमें भी जंग नहीं लगता। इसका अर्थ है कि इस पर भी कुछ परत चढ़ाई गई होगी। आइने अकबरी में एक संदर्भ मिलता है कि उसके लेखक ने जब पुरी का मंदिर देखा तो वह वर्णन करता है कि उस पर रंग चढ़ाया गया है। उस समय रासायनिक रंग नहीं होते थे। जो रंग होते थे वे जैविक तरीके से तैयार किये जाते थे। आंध्र प्रदेश में एक धरोहर के संरक्षण के लिए उस पर मुझे एक परत चढ़ानी थी, तो मैंने भी उसी तरह एक रंग तैयार किया था। मैंने इसके लिए मधुमक्खी के मोम को जले हुए किरासन तेल के साथ मिला कर उसे गरम किया और उसकी परत चढ़ाया। इससे वह धरोहर 100 वर्ष तक के लिए संरक्षित हो गया। यह प्रक्रिया हमारे लोगों को पहले से ज्ञात थी। माउंट आबू में ऐसा ही एक लौह स्तंभ पाया जाता है। कहते हैं कि जब अलाउद्दीन खिलजी को यहां के राजाओं ने हराया तो उसकी सेना के अस्त्रा-शस्त्रों को एकत्रा करके उन्हें पिघला कर उससे एक त्रिशूल के आकार का स्तंभ बनाया। इसलिए इसे जय स्तंभ भी कहा जाता है। मुर्शिदाबाद में एक लोहे की बड़ी तोप है। इस तोप में भी वही तकनीक का प्रयोग किया है। बीजापुर के तोप में भी यही तकनीक पाई जाती है। यह तकनीक इतनी अधिक प्रयोग में रही है कि आज के सामान्य लुहारों को भी इसकी अच्छी जानकारी है। इसी प्रकार की अन्य भी कई पद्धतियों की चर्चा पाई जाती है। इसे मधुचिकित्सा विधान के नाम से जाना जाता था। इसमें मधुमक्खी के मोम का उपयोग किया जाता था। लोहे पर उस मोम की परत चढ़ाने की प्रक्रिया का वर्णन इसमें पाया जाता है। इसी प्रकार मूर्तियों को बनाने के लिए धातु को पिघलाना, उसे मूर्तियों के सांचे में डालकर मूर्तियां बनाना आदि की प्रक्रिया भी काफी वैज्ञानिक रही है। ऐसी भट्ठियां रही हैं, जिनमें 700 डिग्री तक का तापमान पैदा किया जा सकता था। लोहे के अयस्कों की पहचान के तरीके थे। युक्तिकल्पतरू में लोहे के प्रकारों का वर्णन पाया जाता है। वहां कलिंगा, वज्रा, भद्रा आदि प्रकार के लोहे का वर्णन किया गया है। धातुकर्म की एक प्रक्रिया में पीप्पली के चूर्ण को गौमूत्रा मिलाकर उसकी एक परत लोहे पर चढ़ाई जाती थी। इसी प्रकार नागार्जुन के रसतंत्रासार में भी धातुकर्म की अनेक विधियों का उल्लेख मिलता है। आचार्य चाणक्य ने अपने ग्रंथ कौटिलीय अर्थशास्त्रा में भी धातुकर्म पर काफी लिखा है। इन सभी विवरणों से यह साबित होता है कि अपने देश में धातुकर्म की एक विशाल परम्परा विद्यमान थी। आज भी गाँवों और शहरों में पाए जाने वाले लुहारों के पास उस विद्या का ज्ञान सुरक्षित है। आवश्यकता है तो उस ज्ञान को सहेजने और उसका उपयोग करने की। भारतीय परम्परा में यदि हम धातुकर्म को खोजना चाहें तो विष्णु पुराण अनुसार ईश्वर निमित्त मात्रा है और वह सृजन होने वाले पदार्थों में है, जहां सृजन हो रहा है, वहीं ईश्वर है। सृज्य पदार्थों में परमाण्विक सिद्धांत के अनुसार धरती पर पाए जाने वाले सभी एक सौ अठारह पदार्थों की अपनी संरचना है और उन्हें ही आपस में जोड़ कर दूसरी वस्तु का निर्माण किया जाता है। इस संदर्भ से जब हम आगे बढ़ते हैं तो पाते हैं कि सृजन धातुकर्म से जुड़ा हुआ है। ऋग्वेद के चौथे एवं सातवें मंडल, यजुर्वेद के तीसरे मंडल तथा अथर्ववेद के छठे एवं ग्यारहवें मंडल में इसकी विस्तृत चर्चा आती है। इसी प्रकार भारतीय शास्त्रों में एक चर्चा आती है कि हे अयस्क, इस सृष्टि की रक्षा करने के लिए धातु के रूप में इसका संरक्षण करो। संरक्षित हम कब होते हैं? हमारे पास अस्त्रा-शस्त्रा हैं, तो हम संरक्षित हैं, हमारे पास मजबूत किले हैं तो हम संरक्षित हैं। इस प्रकार हम धातुओं और उनके अयस्कों के उपयोग की चर्चा प्राचीन साहित्य में पाते हैं। यदि हम इतिहास की बात करें तो आज से चार हजार वर्ष पहले हमें एक ऐसे धातु की जानकारी थी, जिसके बारे में दुनिया में और किसी को पता नहीं था। यह धातु है जस्ता यानी जिंक। जिंक के निष्कर्षण की विधि भारत में ही विकसित हुई थी। आमतौर पर धातुओं को नीचे से गर्म करके निष्कर्षित किया जाता है। जस्ते को ऊपर से गर्म करके निकाला गया। यह विधि यहां से चीन गई और वहां से फिर सन् 1547 में यूरोप पहुंची। अपने देश में धातुकर्म की शुरूआत तीर की नोक को और धारदार बनाने के प्रयास से हुई। महाभारत में कथा आती है कि यादवों ने दुर्वासा ऋषि से छल किया था। वे एक युवक को गर्भवती स्त्राी के वेष में उनके पास ले गए और उनसे पूछा कि इसके पेट में लड़का है या लड़की? इस पर दुर्वासा ने कहा कि इसके पेट से मूसल पैदा होगा जिससे तुम्हारा नाश होगा। पेट से बाद में मूसल ही निकला। उस मूसल को घिसने से वह तीर के नोक के समान बचा जो उस बहेलिये को मिला जिसके तीर से बाद में कृष्ण की मृत्यु हुई। इस कहानी का अभिप्राय इतना ही है कि एक मूसल से तीर की नोक बनती है और उससे दुनिया का इतिहास बदल जाता है। इसका अर्थ है कि वहां धातु की चर्चा है और उसका निर्माण है। कहा जाता है कि पाषाणयुगीन मानव भोजन के लिए तीर से शिकार किया करता था। फिर उसने चमकदार पत्थरों जिनमें धातु के अंश थे, का प्रयोग करने लगे। आज से साढ़े आठ हजार से नौ हजार वर्ष के बीच पश्चिमी एशिया, तुर्र्कीी, ईरान, इराक में हमें तांबा मिलता है। हड़प्पा संस्कृति में भी हमें तांबा, सोना और चांदी मिली है। लोहा नहीं मिला है। माना जाता है कि सबसे पहले 1500 ईसा पूर्व में लोहा पाया जाता है। मैंने अपने शोध में लोहे का एक स्लैग पाया है। धातु को शुद्ध करने की प्रक्रिया में जब उससे अशुद्धियां हटाने के बाद धातु निकाला जाता है तो उसके बाद भी कुछ ठोस पदार्थ बच जाता है, उसे ही स्लैग कहा जाता है। मेरे पास इसी स्लैग के तीन नमूने आए थे जो आलमगीरपुर, उत्तर प्रदेश के थे। इन तीनों की जांच से समझ आया कि यह कम से कम 1870 वर्ष ईसापूर्व का है। इसका अर्थ हुआ कि हड़प्पा से लगभग 450 वर्ष और पहले से लोहा प्रयोग में था। हमारी खोज अभी पूरी नहीं हुई है। यदि और खोजा जाए तो लोहे का इतिहास और पुराना साबित हो सकता है। धातुओं के प्रयोग के हमारे यहां जो लिखित प्रमाण पाए जाते हैं, उनमें रामायण, महाभारत, कौटिल्य आदि हैं। यहां मैं इनके कालक्रम पर कोई चर्चा नहीं करूंगा। उस पर विवाद हो सकता है, परंतु इन प्रमाणों पर कोई विवाद नहीं है। चाणक्य ने लिखा है कि यदि आपको अयस्क को ढूंढना है तो रंग के अनुसार ढूंढा जा सकता है। अयस्क से पदार्थ निकालने की चर्चा करते हुए पी.सी.रे. अपनी पुस्तक हिंदू केमिस्ट्री में लिखते हैं कि उसे धौंकनी में डालें। वह पहले लाल होगा, फिर सफेद होगा, फिर उसका रंग थोड़ा गेरूआ हो जाएगा। अंत में उसका रंग मोर की गर्दन (शिखिग्रीवा) के रंग का हो जाएगा। इसके लिए लगभग 780 सेटीग्रेड से ऊपर तापमान चाहिए। चाणक्य के ठीक बाद नागार्जुन का काल माना जाता है। उन्होंने इस पर काफी विस्तृत काम किया है। उन्होंने हरेक रसायन को निकालने की प्रक्रिया बताई और प्रकृति में पाए जाने वाले पिगमेंटों से विभिन्न प्रकार के रंग निर्माण की प्रक्रिया भी बताई। इसका वर्णन हमें आयुर्वेद में भी मिलता है। प्रसिद्ध शल्य चिकित्सक सुश्रुत ने जो औजार प्रयोग किए हैं, वे तांबा और पीतल के तो थे ही, स्टील के भी थे। ये औजार तक्षशिला में पाए गए। इन औजारों में शानदार धार हुआ करती थी। आज हम जो स्किन-ट्रांसफर, कास्मेटिक सर्जरी और आंख का आपरेशन आदि करते हैं, वह सब उस काल में सुश्रुत किया करते थे। अपने यहां वर्ष 800 से 550 ईसापूर्व में बर्तनों पर कलई करने की प्रक्रिया मिलती है। कलई की प्रक्रिया के इस कालखंड को निर्धारण करने के लिए उसकी कार्बन डेटिंग की जाती है। परंतु इसमें यह ध्यान रखने की बात यह है कि इतने लंबे कालखंड में कलई में प्रदूषण हो जा सकता है। इस प्रदूषण से उस कलई का काल कम निकल जा सकता है। इसलिए इसमें हमारी पारंपरिक गणना पद्धति का उपयोग करना महत्वपूर्ण हो जाता है। उस पद्धति में हमने पूरी सृष्टि की आयु निकाली है जो आज वैज्ञानिक अनुसंधानों से भी सही साबित हो रही है। गुप्त काल में वराहमिहिर हुए हैं। मेहरौली की लोहे की लाट वराहमिहिर से जुड़ी हुई है। वे एक रसायनशास्त्राी थे। उन्होंने एक धातु से दूसरी धातु के निर्माण प्रक्रिया की चर्चा की है। एक और उदाहरण इससे पहले का मिलता है सिकंदर और पोरस की लड़ाई के समय का। लड़ाई के बाद पोरस ने सिकंदर को 30 किलोग्राम की इस्पात की बनी तलवार थी। वह स्टील की बनी हुई थी। वह पिटवां लोहे से बना हुआ था। लोहा दो प्रकार का होता है। एक ढलवा और दूसरा पिटवां। ढलवा लोहा पिघला कर तैयार किया जाता है और पिटवां लोहा पीट-पीट कर तैयार किया जाता है। ये दोनों प्रकार के लोहे भारत में बनते थे। वराहमिहिर की लोहे की लाट काफी विशाल है। 23-24 फीट की इस लाट को बनाने के लिए हमें सोचना होगा। परंतु उन्होंने बड़ी सरलता से बनाया। इसको बनाने में उच्च गुणवत्ता के लोहे का प्रयोग किया गया है। इसके लिए अपने यहां ब्लास्ट फर्नेस यानी कि भट्ठी हुआ करती थी। पहले इसे धौंकनी कहते थे। इसमें हवा के धक्के से तापमान पैदा किया जाता था। उसमें वे लकड़ी का कोयला मिलाते थे, फिर लोहे को पिघलाते थे। लोहे की अशुद्धि दूर करने के लिए उसमें कुछ मिलाते थे। आज इसके लिए काफी अत्याधुनिक तकनीक का प्रयोग किया जाता है। परंतु आज के तकनीक से क्या हम मकरध्वज बना सकते हैं? नहीं। मकरध्वज भारतीय धातुकर्म का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। कहा जाता है कि सुश्रुत और चरक खरल में मूसल से पारे को घोटते रहते थे। इतना घोटते थे कि उसका मारन हो जाता था। इसका तात्पर्य है कि मरकरी, पारा जो धातु हो कर भी तरल है, उसे घोटनी से घोटते-घोटते ठोस बना देते थे फिर उसका जारन किया यानी कि उसमें कुछ पुट मिलाते थे। तीसरा पुट मिलाते-मिलाते सातवें दिन उसे बाहर निकाला जाता है। तब वह ठोस हो जाता है, वही मकरध्वज है जिसका आज की भाषा में रासायनिक सूत्रा एचजीएस है। वही थोड़े परिवर्तन के साथ वर्मिलियन हो जाता है यानी कि भखरा सिंदुर जिसे महिलाएं सिर में लगाती हैं। इससे उनकी आयु बढ़ती थी। यही भारतीय धातुकर्म की विशेषता थी। भारतीय धातुकर्म मनुष्य की भलाई के लिए था। इससे किसी का बुरा नहीं होना चाहिए। उनका यह भाव हमेशा बना रहा। यही भाव वेदों का भी है। वेदों का एक ही आदेश है चीजों के संरक्षण और लोगों के कल्याण की। ✍🏻साभार - भारतीय धरोहर वज्रसंघात लेप : अद्भुत धातु मिश्रण लोहस्तंभ को देखकर किसे आश्चर्य नहीं होता। यह किस धातु का बना कि आज तक उस पर जंग नहीं लगा। ऐसी तकनीक गुप्तकाल के आसपास भारत के पास थी। हां, उस काल तक धातुओं का सम्मिश्रण करके अद्भुत वस्तुएं तैयार की जाती थी। ऐसे मिश्रण का उपयोग वस्तुओं को संयोजित करने के लिए भी किया जाता था। यह मिश्रण '' वज्रसंघात '' कहा जाता था। शिल्पियों की जो शाखा मय नामक शिल्पिवर के मत स्वीकारती थी, इस प्रकार का वज्र संघात तैयार करती थी। उस काल में मय का जाे ग्रंथ मौजूद था, उसमें इस प्रकार की कतिपय विधियों की जानकारी थी, हालांकि आज मय के नाम से जो ग्रंथ हैं, उनमें शिल्प में मन्दिर और मूर्ति बनाने की विधियां अध्ािक है, मगर 580 ई. के आसपास वराहमिहिर को मय का उक्त ग्रंथ प्राप्त था। वराहमिहिर ने मय के मत को उद्धृत करते हुए वज्रसंघात तैयार करने की विधि को लिखा है- अष्टौ सीसकभागा: कांसस्य द्वौ तु रीतिकाभाग:। मय कथितो योगोsयं विज्ञेयाे वज्रसंघात:।। (बृहत्संहिता 57, 8) मय ने 8 : 2 :1: अनुपात में क्रमश: सीसा, कांसा और पीतल को गलाने का नियम दिया था, इससे जो मिश्रण बनता था, वह वज्रसंघात कहा जाता था। यह कभी नहीं हिलता था और वज्र की तरह चिपकाने के काम आता था। वराहमिहिर के इस संकेत के आधार पर 9वीं सदी में कश्मीर के पंडित उत्पल भट ने खाेजबीन की और मय का वह ग्रंथ खोज निकाला था। उसी में से मय का वह श्लोक वराहमिहिर की टीका के साथ लिखा था- संगृह्याष्टौ सीसभागान् कांसस्य द्वौ तथाशंकम्। रीतिकायास्तु संतप्तो वज्राख्य: परिकीर्तित:।। ( मयमतम : श्रीकृष्ण जुगनू, चौखंबा, बनारस, २००८, परिशिष्ट, मय दीपिका) आज वह ग्रंथ हमारे पास नहीं। मगर, इस श्लोक में कहा गया है कि इस मिश्रण के लिए सभी धातुओं को मिलाकर तपाया जाता था। इसके लिए उचित तापमान के संबंध में जरूर शिल्पियों को जानकारी रही होंगी, वे उन मूषाओं के बारे में भी जानते रहे होंगे, जो काम आती थीं। मगर, क्या हमारे पास इस संबंध में कोई जानकारी है,,, बस यही तो समस्या है। रसायन : भारतीयों की अप्रतिम देन कीमियागरी यानी कौतुकी विद्या। इसी तरह से भारतीय मनीषियों की जो मौलिक देन है, वह रसायन विद्या रही है। हम आज केमेस्ट्री पढ़कर सूत्रों को ही याद करके द्रव्यादि बनाने के विषय को रसायन कहते हैं मगर भारतीयों ने इसका पूरा शास्त्र विकसित किया था। यह आदमी का कायाकल्प करने के काम आता था। उम्रदराज होकर भी कोई व्यक्ति पुन: युवा हो जाता और अपनी उम्र को छुपा लेता था। पिछले दिनो भूलोकमल्ल चालुक्य राज सोमेश्वर के 'मानसोल्लास' के अनुवाद में लगने पर इस विद्या के संबंध में विशेष जानने का अवसर मिला। उनसे धातुवाद के साथ रसायन विद्या पर प्रकाश डाला है। बाद में, इसी विद्या पर आडिशा के राजा गजधर प्रतापरुद्रदेव ने 1520 में 'कौतुक चिंतामणि' लिखी वहीं ज्ञात-अज्ञात रचनाकारों ने काकचण्डीश्वर तंत्र, दत्तात्रेय तंत आदि कई पुस्तकों का सृजन किया जिनमें पुटपाक विधि से नाना प्रकार द्रव्य और धातुओं के निर्माण के संबंध में लिखा गया। मगर रसायन प्रकरण में कहा गया है कि रसायन क्रिया दो प्रकार की होती है-1 कुटी प्रवेश और 2 वात तप सहा रसायन। मानसोल्लास में शाल्मली कल्प गुटी, हस्तिकर्णी कल्प, गोरखमुण्डीकल्प, श्वेत पलाश कल्प, कुमारी कल्प आदि का रोचक वर्णन है, शायद ये उस समय तक उपयोग में रहे भी होगे, जिनके प्रयोग से व्यक्ति चिरायु होता, बुढापा नहीं सताता, सफेद बाल से मुक्त होता... जैसा कि सोमेश्वर ने कहा है - एवं रसायनं प्रोक्तमव्याधिकरणं नृणाम्। नृपाणां हितकामेन सोमेश्वर महीभुजा।। (मानसोल्लास, शिल्पशास्त्रे आयुर्वेद रसायन प्रकरणं 51) ऐसा विवरण मेरे लिए ही आश्चर्यजनक नहीं थी, अपितु अलबीरूनी को भी चकित करने वाला था। कहा, ' कीमियागरी की तरह ही एक खास शास्त्र हिंदुओं की अपनी देन है जिसे वे रसायन कहते हैं। यह कला प्राय वनस्पतियों से औषधियां बनाने तक सीमित थी, रसायन सिद्धांत के अनुसार उससे असाध्य रोगी भी निरोग हो जाते थे, बुढापा नहीं आता,,, बीते दिन लौटाये जा सकते थे, मगर क्या कहा जाए कि इस विद्या से नकली धातु बनाने का काम भी हो रहा है। (अलबीरुनी, सचाऊ द्वारा संपादित संस्करण भाग पहला, पेज 188-189) है न अविश्वसनीय मगर, विदेशी यात्री की मुहर लगा रसायन...। महाकालमत : एक अज्ञात ग्रंथ कादम्बरी अपने अल्पकाय स्वरूप में विश्वकाय स्तर लिए हैं। बाणभट्ट को विषय के सूक्ष्म चित्रण में कितना कौशल हस्तगत था, उसकी रचनाएं बताती हैं। उसकी जानकारी में था कि 'महाकालमत' नामक कोई ग्रंथ लोकरूचि के विषयों का संग्रह है। उसमें मनुष्य के मन में रहने वाले उन विषयों के संबंध में जानकारियां थीं जो धन, रसायन, औषध आदि को लेकर है। इस तरह के विषयों पर निरंतर अनुसंधान, तलाश और तोड़तोड़ आज भी होती है और हर्षवर्धन के काल में भी होती थी। आज इस नाम की किताब का पता नहीं है। उज्जैन या अवन्तिका के रास्ते में पड़ने वाले एक देवी मंदिर में द्राविड़ नामक बुजुर्ग था। चंद्रापीड ने उसका सम्मान पान खिलाकर किया। उसके संग्रह में कई पुस्तकें थी जिनमें दुर्गास्तोत्र के साथ ही पाशुपतों की प्राचीन पुस्तक 'महाकालमत' भी थी। उस काल में पाश्ाुपतों की साधनाओं का रोचक वर्णन बाण ने 'हर्षचरित' में भी किया है। भैरवाचार्य की वेताल साधना का राेमांचक वर्णन आंखों देखा हाल से कम नहीं है। बाण ने लिखा है कि उस ग्रंथ को उसने प्राचीनों से सुनकर लिखा था। उसमें दफीनों को खोजने, रसायन को सिद्ध करने, अन्तर्धान हो जाने जैसे कई उपायों को लिखा गया था। मालूम नहीं ये सब बातें कहां गई, इन साधनाओं से क्या कुछ हांसिल हाेता भी है कि नहीं, मगर बाणभट्ट ये जरूर संकेत देता है कि वह द्राविड़ इन सभी साधनाओं के बाबजूद रहा तो अभावग्रस्त ही। हां, इस प्रकार की विद्याओं पर चाणक्य ने भी ध्यान दिया। अर्थशास्त्र के अंत में ऐसे उपायों को खूब लिखा गया। कवि क्षेमेंद्र ने तो इस तरह की बातों को सोदाहरण सिरे से खारिज किया। मगर, मध्यकाल में अनेक राजागणों ने लिखा और लिखवाया। अपराजितपृच्छा से लेकर यामलोक्त स्वरोदय शास्त्रों में भी दफीनों की खोज के संकेत कम नहीं मिलते। पंद्रहवीं सदी में हुए ओडिशा के राजा गजधर प्रतापरुद्र देव ने इस विद्या पर अपनी कलम चलाई और 'कौतुक चिंतामणि' को लिखा। लिखते ही इसकी पांडुलिपियां अनेक देशों में भेजी और मंगवाई गई...। मैंने इसमें आए कृषि सुधार विषयक संदर्भों को उद्धृत किया है। यह बहुत रोचक ग्रंथ रहा है और इसका उपयोग सामाजिक सांस्कृतिक विचारों, लोकाचारों के लिए किया जा सकता है, यही मानकर पूना के प्रो. पीके गौड़े ने इस दिशा में विचार किया है...। इस विषय की क्या प्रासंगिकता है,, मित्रों की इस संबंध में राय की प्रतीक्षा रहेगी। ✍🏻डॉ श्रीकृष्ण जुगनू जी की पोस्टों से संग्रहित दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
Posted: 20 Jan 2021 06:09 PM PST
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बिहारवासियों में राम मंदिर को लेकर अभूतपूर्व उत्साह- डाॅ. आर. एन. सिंह Posted: 20 Jan 2021 07:01 AM PST बिहारवासियों में राम मंदिर को लेकर अभूतपूर्व उत्साह- डाॅ. आर. एन. सिंहपटना, 20 जनवरी। बिहारवासियों में अयोध्या में राम जन्मभूमि मंदिर निर्माण को लेकर गजब का उत्साह देखने को मिल रहा है। हर कोई अपनी ओर से बढ़-चढ़कर इसमें हिस्सा ले रहा है। राज्य में भिक्षुक हो या अमीर; सभी राम जन्मभूमि पर मंदिर बनने में अपना समर्पण देना चाहते हैं। छातापुर के विधायक नीरज कुमार 'बबलू' एवं विधान पार्षद् नूतन सिंह ने ढ़ाई-ढ़ाई लाख रूपये आज समर्पित किये। बिहार के प्रख्यात चिकित्सक डाॅ. सहजानंद सिंह ने 1 लाख रूपये की समर्पण राशि भेंट की। यह जानकारी श्रीराम मंदिर निर्माण निधि समर्पण समिति के बिहार प्रदेश अध्यक्ष पद्मश्री डाॅ. आर. एन. सिंह ने दी। उन्होंने कतिपय मीडिया संस्थानों में प्रकाशित व प्रसारित खबर का खंडन करते हुए कहा कि समर्पण के लिए रसीद की कोई कमी नहीं है। यह एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। रसीद आता है और लोगों में बांट दिया जाता है, फिर उसका हिसाब किया जाता है और रसीद व कूपन से प्राप्त राशि को श्रीराम जन्मभूमि मंदिर निर्माण के लिए अधिकृत बैंक खाते में जमा कर दिया जाता है। समिति के पास पर्याप्त रसीद व कूपन उपलब्ध है। दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
एक धर्म विशेष के लिए इतनी उदारता क्यों! Posted: 20 Jan 2021 06:55 AM PST एक धर्म विशेष के लिए इतनी उदारता क्यों!पटना जिला सुधार समिति के महासचिव राकेश कपूर ने बतायाकि कोरोना महामारी ने देश में जनता की खुशियों को लील लिया और उनकी दिनचर्या से लेकर पर्व त्योहारों को भी प्रभावित किया। हिन्दुओं के पर्व दशहरा, दीपावली, छठ हो या और कोई पर्व। मुसलमानों के पर्व ईद-बकरीद, शबेबरात, मुहर्रम- सभी प्रभावित हुए। जैनियों के जैन मुनि स्वामी सुदर्शन जी महाराज के निर्वाणोत्सव पर वाले प्रतिवर्ष निकलने वाले जुलूस को भी सरकारी अनुमति नही मिली जबकि इस जुलूस में मात्र 100-200 से ज्यादा लोग नहीं रहते हैं। ईसाई धर्मावलांबियों के साथ भी ऐसा ही हुआ। उन्हें ईस्टर के मौके पर भी कोई छूट नहीं दी गई। सरकार ने सभी को कोरोना के कारण प्रतिबंधित किया। लेकिन इस बीच बिहार सरकार ने चुनाव अवश्य कराया और अब देश के अन्य राज्यों में चुनाव कराने जा रही है। सरकारी मीटिंग और रैली से लेकर सरकार बनाने से लेकर बिगाड़ने तक खेल खेला गया। सरकार व सरकारी पार्टी के लिए किसी प्रकार का कोरोना नहीं था सिर्फ देश की जनता व विपक्षी पार्टियों पर यह सभी प्रतिबंधित दिशा-निर्देश लागू किया गया। अभी पटना सिटी में श्री गुरूगोबिन्द सिंह जी महाराज के 354वें जन्मोत्सव पर तो सरकार ने सभी सावधानियों नजरअंदाज करते हुए उन्हें जुलूस से लेकर धूम-धाम से जन्मोत्सव मनाने की छूट दे दी है। उन्हें हफ्तों प्रभात फेरी भी निकलने के साथ-साथ रात-रात भर लाउडस्पीकर बजाने तक की भी छूट है। सिखों के लिए कोई रोक-टोक नहीं है। सरकार सिखों के प्रति इतनी उदारता का प्रदर्शन क्यों कर रही है, यह समझ से बाहर है।और तो और सरकार ने उनकी सुरक्षा के नाम पर पटना सिटी शहर को बैरेकैटिंग कर पुलिस छावनी में तब्दील कर दिया गया है। जबकि बाहर से आने वाले संगत में यात्रियों से ज्यादा पुलिस बल की नियुक्ति कर दी गई है। ऐसी क्या असुरक्षा की बात हो गयी जो इनके लिये सरकार ने ऐसी तैयारी की है। यह खेल 2017 के शताब्दी वर्ष से शरू हुआ, जो अनवरत जारी है। और लगता है कि आगे भी जारी रहेगा। जनता के टैक्स के पैसों को किसी धर्म विशेष को बढ़ावा देने में क्यों खर्च किया जा रहा है? यह सवाल तो बनता है! बिहार के एक महामहिम राज्यपाल ने तो चौक थाना के चिमनी घाट पर गुरूद्वारा के निर्माण के लिए गंगा की जमीन ही दे दी। हमारे वर्तमान मुख्यमंत्री ने भी इसी गंगा की जमीन पर बगल में पर्यटन केंद्र ही बनवा दिया। अब तो गंगा की जमीन पर शहर ही बसने लगा है। पिछले वर्ष गंगा के किनारे गंगा की जमीन पर टेंन्ट सिटी बनाकर सिख यात्रियों को ठहराया गया। अटूट लंगर चला और सभी के जूठन, मल-मूत्र से गंगा अपवित्र होकर मैली हुई और हिन्दूओं की भावना से खिलवाड़ किया गया। अब तो चिमनी घाट पर बने गुरुद्वारा के बगल में स्थाई लंगर हाल का निर्माण कर स्थाई प्रदूषण फैलाने का इन्तजाम कर दिया जा रहा है। कहां गई केंद्र सरकार की राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण का गंगा और उसे प्रदूषण से बचाने की योजना? चिमनी घाट को अघोषित रूप से सरकार ने कंगन घाट कर दिया है और अब रेलवे स्टेशन का नाम पटना साहिब रहने के कारण पटना सिटी अनुमंडल को ही पटना साहिब में प्रचलित होने लगा है। इनके विस्तार की मानसिकता पर अंकुश लगाने के लिए यहां के स्थानीय नागरिकों को एकजुट होकर इनके खिलाफ शंखनाद करना होगा। तभी हम अपनी साझी ऐतिहासिक विरासत को बचा सकेंगे। धन्यवाद! दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
Posted: 20 Jan 2021 06:50 AM PST वकील के मुंशी की हत्यारिपोर्ट - एस के सिंह जिला - पटना मिली जानकारी के अनुसार -जानीपुर में वकील के मुंशी की दिनदहाड़े हत्या ।गोली मारने के बाद पिस्टल लहराते हुए फरार हुए हमलावर घटनास्थल जानीपुर थाना क्षेत्र के ब्रह्मस्थान के पास स्थित पोल्ट्री फार्म की हैं । जानकारी के मुताबिक, जिस शख्स को अपराधियों ने गोली मारी वह एक वकील के मुंशी थे। उनकी पहचान नौबतपुर के नारायणपुर निवासी बालेश्वर पाठक के रूप में हुई है । दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
आज 21 - जनवरी - 2021, गुरूवार को क्या है आप की राशी में विशेष ? Posted: 20 Jan 2021 06:45 AM PST
आज 21 - जनवरी - 2021, गुरूवार को क्या है आप की राशी में विशेष ? दैनिक पंचांग एवं राशिफल - सभी 12 राशियों के लिए कैसा रहेगा आज का दिन जाने प्रशिद्ध ज्योतिषाचार्य पं. प्रेम सागर पाण्डेय से श्री गणेशाय नम: पंचांग 21 - जनवरी - 2021, गुरूवार तिथि अष्टमी दिन 03:21:20 नक्षत्र अश्विनी दिन 03:30:13 करण : बव 15:51:45 बालव 29:11:45 पक्ष शुक्ल योग साघ्य 20:22:53 वार गुरूवार सूर्य व चन्द्र से संबंधित गणनाएँ सूर्योदय 06:40:18 चन्द्रोदय 12:13:59 चन्द्र राशि मेष सूर्यास्त 05:20:13 चन्द्रास्त 25:26:00 ऋतु शिशिर हिन्दू मास एवं वर्ष शक सम्वत 1942 शार्वरी कलि सम्वत 5122 दिन काल 10:36:53 विक्रम सम्वत 2077 मास अमांत पौष मास पूर्णिमांत पौष शुभ और अशुभ समय शुभ समय :- अभिजित 12:11:17 - 12:53:44 अशुभ समय :- दुष्टमुहूर्त : 10:46:22 - 11:28:49 15:01:07 - 15:43:35 कंटक 15:01:07 - 15:43:35 यमघण्ट 07:56:31 - 08:38:59 राहु काल 13:52:07 - 15:11:44 कुलिक 10:46:22 - 11:28:49 कालवेला या अर्द्धयाम 16:26:02 - 17:08:30 यमगण्ड 07:14:04 - 08:33:40 गुलिक काल 09:53:17 - 11:12:54 दिशा शूल दक्षिण चन्द्रबल और ताराबल
आज का दैनिक राशिफल 21 - जनवरी - 2021, गुरूवार
पं. प्रेम सागर पाण्डेय् ,नक्षत्र ज्योतिष वास्तु अनुसंधान केन्द्र ,नि:शुल्क परामर्श - रविवार , दूरभाष 9122608219 / 9835654844 दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
अनियंत्रित होकर बोलेरो पलटा एक व्यक्ति की मौत, दूसरा घायल Posted: 20 Jan 2021 06:33 AM PST अनियंत्रित होकर बोलेरो पलटा एक व्यक्ति की मौत, दूसरा घायल Iखुसरूपुुर से कन्हैया पांडेय की खास रिपोर्ट I खुसरूपुर /संवाददाता I खुसरूपुर थाना प्रभारी ने बताया कि अनियंत्रित होकर डायवर्शन से टकराकर क्षेत्र के जगमालबीघा के समीप बख्तियारपुर पटना फोरलेन सड़क पर बुधवार को एक बोलेरो पिकअप दुर्घटनाग्रस्त हो गई।घटना में एक सख्स की घटनास्थल पर ही मौत हो गई I जगमाल बीघा के समीप फोरलेन पर हुई दुर्घटना में मृत सख्स की पहचान सालिमपुर थाना के शाहपुर निवासी शशिभूषण यादव के रूप में हुई है।ये लंबे समय से शाहपुर स्थित अपने ससुराल में रहकर ड्राइविंग करते थे। ग्रामीणों ने सूचना स्थानीय थाना को दिया पुलिस ने मौके पर पहुंचकर मृत व्यक्ति का शव अपने कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया I जख्मी की पहचान सालिमपुर थाना के शाहपुर निवासी अमीरक सिंह के पुत्र रंजीत कुमार के रूप में हुई है।जख्मी व्यक्ति को खुसरूपुर के पीएचसी में आसपास के ग्रामीणों ने भर्ती कराया जिसके बाद और बेहतर इलाज के लिए पीएमसीएच पटना रेफर कर दिया गया। दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
Posted: 20 Jan 2021 06:28 AM PST राज्यपाल ने दशमेश गुरू श्री गुरू गोबिन्द सिंह जी महाराज के '354वें प्रकाश पर्व' के अवसर पर तख्त श्री हरिमंदिर जी, पटना साहिब जाकर मत्था टेकामहामहिम राज्यपाल श्री फागू चैहान ने आज दशमेश गुरू श्री गुरू गोबिन्द सिंह जी महाराज के '354वें 'प्रकाश पर्व' के अवसर पर तख्त श्री हरिमंदिर जी, पटना साहिब पहुँचकर मत्था टेका तथा बिहार राज्य की बहुमुखी प्रगति एवं शांति तथा बिहारवासियों की सुख-समृृद्धि की मंगलकामना की। राज्यपाल श्री चैहान ने इस सुअवसर पर कहा कि गुरू गोबिन्द सिंह जी महाराज का समस्त व्यक्तित्व एवं कृतित्व संघर्ष, समर्पण, त्याग, बलिदान और मानवता की सेवा की अनूठी गाथा है। उनके महान व्यक्तित्व और चिन्तन में धर्म, संस्कृति और स्वदेश की रक्षा के लिए अपने पूरे परिवार को न्योछावर करने का अन्यतम उदाहरण सम्मिलित है तथा विदेशी आक्रमणकारियों के भय से त्रस्त भारतीय समाज में जागृति लाने का प्रणम्य प्रयास समाहित है। हरिमंदिर जी पटना साहिब में मत्था टेकने के बाद राज्यपाल ने कहा कि सामाजिक समत्व, बंधुत्व, राष्ट्र-प्रेम, सदाचार और स्वाभिमान के भाव गुरू गोबिन्द सिंह महाराज के दिव्य संदेशों के सार तत्व हैं, जिन्हें जीवन में उतारने से मानवता के समग्र कल्याण का पथ प्रशस्त होता है। राज्यपाल ने कहा कि तख्त श्री हरिमंदिर जी, पटना साहिब पहुँचकर वे अपने को अत्यन्त सौभाग्यशाली मानते हैं। राज्यपाल ने गुरू गोबिन्द सिंह जी महाराज के पावन 'प्रकाश पर्व' के अवसर पर गुरूजी की जन्मभूमि बिहार आए सभी सिख धर्मावलम्बी श्रद्धालुओं का हार्दिक स्वागत करते हुए कहा कि- ''सिखों का इतिहास सदैव स्वदेश-प्रेम, कठोर परिश्रम और त्याग का ज्वलंत दृष्टांत रहा है।'' तख्त श्री हरिमंदिर जी, पटना साहिब पहुँचने पर महामहिम राज्यपाल का स्वागत प्रबंधक कमिटी, तख्त श्री हरिमन्दिर जी के अध्यक्ष श्री अवतार सिंह हित, प्रबंधक कमिटी के महासचिव श्री महेन्द्रपाल सिंह ढिल्लन तथा सचिव श्री महेन्द्र सिंह छाबड़ा सहित प्रबंधक कमिटी के अन्य पदाधिकारियों आदि ने किया। तख्त श्री हरिमंदिर पटना साहिब की प्रबंधक कमिटी के पदाधिकारियों द्वारा महामहिम राज्यपाल को 'सरोपा' भी भेंट किया गया। राज्यपाल को यहाँ गुरू गोबिन्द सिंह जी महाराज की चरण-पादुका एवं अस्त्र-शस्त्रों के भी दर्शन कराये गये। राज्यपाल ने आयोजन में 'गोबिन्द प्रकाश' नामक पत्रिका के दशमेश अंक को भी लोकार्पित किया। आयोजन में एस॰जी॰पी॰सी॰ की पूर्व अध्यक्ष बीबी जागीर कौर, जत्थेदार रणजीत सिंह आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किये। आयोजन में राज्य की उपमुख्यमंत्री श्रीमती रेणु देवी एवं सांसद श्री रामकृपाल यादव आदि भी उपस्थित थे। -------------------- दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
श्री गुरु गोबिंद सिंह जी महाराज के 354वें प्रकाश गुरुपर्व में शामिल हुए मुख्यमंत्री Posted: 20 Jan 2021 06:15 AM PST श्री गुरु गोबिंद सिंह जी महाराज के 354वें प्रकाश गुरुपर्व में शामिल हुए मुख्यमंत्री हमलोगों के लिये यह गौरव की बात है कि गुरू गोबिंद सिंह जी महाराज का यहाॅ जन्म हुआ था:- मुख्यमंत्री पटना, 20 जनवरी 2021:- मुख्यमंत्री श्री नीतीष कुमार आज श्री गुरु गोविंद सिंह जी महाराज के 354वें प्रकाश गुरु पर्व पर तख्त श्रीहरमंदिर जी परिसर में आयोजित कार्यक्रम में शामिल हुये। मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार ने तख्त श्रीहरमंदिर जी पटना साहिब पहुॅचकर गुरू के दरबार में मत्था टेका। श्रीहरमंदिर जी प्रबंधक कमिटी द्वारा मुख्यमंत्री को अंगवस्त्र, सरोपा एवं तलवार भेंटकर स्वागत किया गया। मुख्यमंत्री ने बाल लीला गुरूद्वारा जाकर भी मत्था टेका, जहाॅ उनका स्वागत सरोपा भेंटकर किया गया। बाल लीला गुरूद्वारा में बाबा कष्मीर सिंह भूरिवाले एवं छोटे बाबा सुखबिंदर सिंह ने मुख्यमंत्री को खाट पर बिठाकर स्वागत किया। मुख्यमंत्री ने वहाॅ लंगर भी छका। पत्रकारों से बात करते हुये मुख्यमंत्री ने कहा कि आप सब जानते हैं कि वर्ष 2017 में 350वें प्रकाष पर्व बड़े धूमधाम से मनाया गया था, जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहाॅ आये थे। उसके बाद से यहाॅ बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। इस बार कोरोना है इसलिए कार्यक्रम को सीमित रखा गया है, फिर भी देश के कोने-कोने से बड़ी संख्या में श्रद्धालु तख्त हरमंदिर गुरु गोबिंद सिंह जी की जन्मस्थली में दर्शन करने आ रहे हैं। आप सभी जानते हैं कि यह विशेष स्थल है। गुरु नानक देव जी राजगीर में आये थे, वहां शीतल कुंड है और वहां पर भी गुरूद्वारे का निर्माण हो रहा है। मुख्यमंत्री ने कहा कि आज जो कार्यक्रम चल रहा है, उसमें शामिल होकर हमने अपनी श्रद्धा प्रकट की है। हमलोग अपनी श्रद्धा और सम्मान प्रकट करने हर वर्ष यहाॅ आते हैं। यहाॅ आकर मन को प्रसन्नता होती है। हमलोगों की जो श्रद्धा है उसको प्रकट करना हमलोगों का कर्तव्य है। इससे जनसेवा करने की प्रेरणा मिलती है। हमलोगों के लिये यह गौरव की बात है कि गुरू गोबिंद सिंह जी महाराज का यहाॅ जन्म हुआ था। बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहाॅ आकर अपनी श्रद्धा अर्पित करते हैं। इस अवसर पर बिहार राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के सदस्य श्री उदयकांत मिश्र, अध्यक्ष तख्त हरमंदिर प्रबंधक समिति सरदार अवतार सिंह हित जी, अध्यक्ष षिरोमणि गुरूद्वारा प्रबंधक समिति अमृतसर बीबी जगीर कौर, पूर्व सांसद आनंदपुर साहिब सरदार प्रेम सिंह चंदू माजरा, गौहर-ए-मस्कीन तख्त पटना साहिब जत्थेदार श्री रंजीत सिंह, बाबा कश्मीर सिंह जी भूरीवाले, छोटे बाबा सुखबिंदर सिंह, पूर्व मुख्य सचिव बिहार, सरदार जी0एस0 कंग, महासचिव तख्त श्रीहरमंदिर पटना साहिब सरदार महेन्द्र पाल सिंह ढ़िल्लो, मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव श्री चंचल कुमार, मुख्यमंत्री के सचिव श्री मनीष कुमार वर्मा, मुख्यमंत्री के सचिव श्री अनुपम कुमार, मुख्यमंत्री के विषेष कार्य पदाधिकारी श्री गोपाल सिंह, आई0जी0 पटना प्रक्षेत्र श्री संजय सिंह, जिलाधिकारी पटना श्री चंद्रशेखर सिंह, वैशाली की जिलाधिकारी श्रीमती उदिता सिंह, पटना के वरीय पुलिस अधीक्षक श्री उपेंद्र कुमार शर्मा सहित अन्य गणमान्य लोग, वरीय अधिकारीगण, सिख संगत, सेवादार एवं बड़ी संख्या में श्रद्धालुगण उपस्थित थे। दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
एनसीसी कैडेट्स सड़क दुर्घटनाओं से निपटने में प्रथम उत्तरदाता की भूमिका निभाएंगे Posted: 20 Jan 2021 06:09 AM PST एनसीसी कैडेट्स सड़क दुर्घटनाओं से निपटने में प्रथम उत्तरदाता की भूमिका निभाएंगेसड़क दुर्घटनाओं को रोकने और दुर्घटनाग्रस्त लोगों की जान बचाने के लिए एनसीसी, निदेशालय बिहार-झारखंड अब परिवहन मंत्रालय, पुलिस और एनसीसी के पूर्व छात्रों के साथ मिलकर काम करेगा। एन.सी.सी. के कैडेट्स 'फर्स्ट रेस्पोंडेंट' (प्रथम उत्तरदाता) के तौर पर स्वैच्छिक रूप से इस काम में साझेदारी करेंगे। एन.सी.सी. निदेशालय, बिहार-झारखंड की साझेदारी में परिवहन विभाग द्वारा फर्स्ट रेस्पोंडेंट नामक एक मोबाइल ऐप भी विकसित किया जाएगा। स्वयंसेवी एन.सी.सी. कैडेट्स और पूर्व छात्रों को परिवहन विभाग द्वारा प्राथमिक चिकित्सा, आपदा प्रबंधन और घायलों की सुरक्षित निकासी का प्रशिक्षण भी दिया जाएगा। एनसीसी, निदेशालय बिहार-झारखंड के महानिदेशक मेजर जनरल एम. इंद्रबालन ने सड़क सुरक्षा माह के उपलक्ष्य में यह जानकारी दी है। इस वर्ष राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा सप्ताह के बजाय 18 जनवरी से 17 फरवरी 2021 तक सड़क सुरक्षा माह का अनुपालन किया जा रहा है। इसका उद्देश्य भारत में सड़कों और सड़क मार्गों को सुरक्षित बनाना है। इस दौरान सड़क दुर्घटनाओं से बचने और हादसे के शिकार लोगों को बचाने से संबंधति जागरूकता फैलाया जाएगा। सड़क सुरक्षा माह के दौरान राज्य सरकारों/संघ शासित राज्यों और अन्य हितधारकों के सहयोग से राष्ट्रव्यापी गतिविधियों का संचालन करने की योजना बनाई गई है | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
रेरा रियल एस्टेट क्षेत्र में एक बड़ा परिवर्तन Posted: 20 Jan 2021 05:39 AM PST रेरा रियल एस्टेट क्षेत्र में एक बड़ा परिवर्तनहरदीप एस पुरी शहरी भारत और रियल एस्टेट क्षेत्र का इतिहास हमेशा दो चरणों में याद किया जाएगा-'रेरा पूर्व'और'रेरा के बाद' उपभोक्ता संरक्षण मोदी सरकार के लिए विश्वास का एक विषय है। उपभोक्ता किसी भी उद्योग का आधार होते हैं, जिसके वृद्धि और विकास के केन्द्र में उसके हितों की रक्षा होती है ।पदभार संभालने के डेढ़ साल के भीतर, मोदी सरकार ने मार्च 2016 में रेरा लागू किया, जो एक दशक से अधिक समय से तैयार होने में लगा हुआथा। रेराने अब तक अनियंत्रित एक क्षेत्र में शासन प्रणाली को प्रभावित किया है। विमुद्रीकरण और वस्तु और सेवा कर कानूनों के साथ, इसने काफी हद तक रियल एस्टेट क्षेत्र से काले धन का सफाया किया है। रेरामेंपरिवर्तनकारीप्रावधानहैं, जोबड़ी ईमानदारी से उनलोगोंपर निशाना साधते हैं जोलगातार रियल एस्टेट क्षेत्र को नुकसान पहुंचा रहे थे।इस कानून में प्रावधान किया गया है कि किसीभीपरियोजनाकोसक्षमअधिकारीद्वारामंजूर परियोजनाके नक्शेकेबिनाबेचानहींजासकताहैऔरनियामकप्राधिकरणमें पंजीकृतपरियोजनाकोझूठेविज्ञापनोंकेआधारपरबेचनेकीप्रथाकोसमाप्तकियाजासकताहै। जिस काम के लिए ऋण स्वीकृतकियागयाथा, उनकेअलावाअन्यउद्देश्यों / गतिविधियोंकेलिएधनराशि लगाने (फंड डायवर्जन) कोरोकनेकेलिएप्रमोटरोंको'परियोजना आधारित अलगबैंकखाता' रखनाआवश्यकहै।'कारपेटएरिया' के आधार पर यूनिट के आकार की अनिवार्य जानकारी देनाचालबाजी और बेईमानी से उपभोक्ता को नुकसान पहुंचाने वाली व्यवस्था की जड़ पर वार करती है। अगर प्रमोटरयाखरीदारभुगतान नहीं कर पाता है तो ब्याजकासमानदरपरभुगतानकरने काप्रावधान है।कानूनकेअंतर्गत ऐसे कईअन्यप्रावधानोंनेक्षेत्र में व्याप्त अधिकार की असमानता में सुधार करते हुएउपभोक्ताओंकोअधिकारसम्पन्न बना दियाहै। इसकानूनपर समझौताबातचीतकेइतिहासका तकाजा हैकिकिसीउचितसमयमें, इसकानूनकोपटरीसेउतारनेऔर इसे बनाने केलिएकिएगएसभीअसफल निर्लज्ज प्रयासों कोसूचीबद्धकियाजाना चाहिए। वर्षोंकेविचार-विमर्शकेबाद, इसविधेयकको 2013 मेंयूपीएकेकार्यकाल के दौरानराज्यसभामेंपेशकियागयाथा। 2013 केविधेयकऔर 2016 के कानूनकेबीचकेस्पष्ट अंतरकोउजागरकरनाआवश्यकहै।इससेदेशकेघरखरीदारोंकेहितोंकीरक्षामेंमोदीसरकारकीप्रतिबद्धताकोसमझनेमेंमददमिलेगी। 2013के विधेयक मेंनतो'चालूपरियोजनाओं' औरनही'वाणिज्यिकरियल एस्टेट ' कोशामिल कियागया था।परियोजनाओंकेपंजीकरणकीसीमाइतनीअधिकथीकिअधिकांशपरियोजनाएंकानूनकेअंतर्गत आनेसेबचजातीथीं।इनअपवादों ने 2013 के विधेयक कोनिरर्थकबनादियाऔरयह वास्तवमेंघरखरीदारोंकेहितोंकेलिएअहितकर था। वर्ष 2014मेंमोदीसरकारकेगठनकेबाद, अनेकहितधारकों के बीचपरामर्शकेसाथ-साथसम्पूर्ण रूप से एकसमीक्षाकीगईऔरउसकेबाद 'चालूपरियोजनाओं'और'वाणिज्यिकपरियोजनाओं'दोनोंकोविधेयकमेंशामिलकियागया।अधिकतरपरियोजनाओंकोकानूनकेदायरेमेंलानेकेलिएपरियोजनाओंकेपंजीकरणकीसीमाकोभीकमकरदियागया।प्रधानमंत्रीश्रीनरेन्द्रमोदीजीकीदृढ़ताऔरधैर्य केबिना, रेराकभीअस्तित्व में नहीं आ सकता था। जब 2013 काविधेयक संसदमेंलंबितथा, महाराष्ट्रराज्यमेंकांग्रेससरकारने 2012 मेंविधानसभामेंचुपचापअपनाकानूनबनालियाथा, वर्ष 2014 के आम चुनाव सेसिर्फ 2 महीनेपहले उसने फरवरी 2014 मेंसंविधानकेअनुच्छेद 254 केतहतराष्ट्रपतिकीसहमतिली। महाराष्ट्रमेंइसलिए रेरालागूनहींहुआ। केन्द्रऔरमहाराष्ट्रमेंकांग्रेसकेकार्योंकीनिंदा का सार्थक और स्पष्ट प्रभाव पड़ा औरकेन्द्रमेंतत्कालीनयूपीएसरकारकीशासनकार्य प्रणाली की कड़ी निंदा हुई। संदेहउस समय औरबढ़गयाजबदिखाई दिया किराज्यकानूननिश्चितरूपसेउपभोक्ताकेअनुकूलनहींथा।ऐसाइसलिएहैक्योंकियूपीएकीरेराकोलागूकरनेकीवास्तवमेंगंभीरइच्छानहींथी। राजनीतिकलाभकेलिए, यूपीएनेसंविधानकेअनुच्छेद 254 केअंतर्गत मंजूरी देकर आमचुनावोंसेपहले, एक अधूरे और असम्बद्ध कानून को लटका दिया। पार्टी का राज्य विधेयक जिससेमहाराष्ट्रकेघरखरीदारोंकोस्थायीनुकसानहुआहोगा। मोदीसरकारनेरेराकीधारा 92 केराज्यकानूनकोरद्दकरकेइसविसंगतिकोठीककिया।यहसंविधानकेउसीअनुच्छेद 254 केअंतर्गत नियम की सहायता लेकर किया गया थाजोनिरस्तकरनेकीशक्तियाँप्रदानकरताहै।यहइसतथ्यकेबावजूदकियागयाथाकिमहाराष्ट्रमेंअक्टूबर 2014 मेंसरकारबदलगई, जोअबभाजपाकेनेतृत्वमेंथी। रेरा केप्रतिहमारीप्रतिबद्धतामार्च, 2016 मेंसंसदद्वाराकानून बनानेकेसाथसमाप्तनहींहुई।हमनेरेरा कीसंवैधानिकवैधताकोचुनौतीदेने वाली विभिन्नउच्चन्यायालयोंमेंदायर रिटयाचिकाओंकी झड़ी का सामनाकिया।दिसंबर, 2017 में, लगभग 2 सप्ताहतकप्रतिदिन चलनेवालीसुनवाईकेबाद, माननीयबंबईउच्चन्यायालयनेकानूनकीसंपूर्णताको बरकराररखा, औररेरा कीवैधता, आवश्यकताऔरमहत्वकेबारेमेंकिसी भी दुविधा को समाप्त कर दिया। रेरा सहकारीसंघवादमेंएकअत्यन्त लाभदायकप्रयासहै।हालांकिकानूनका मार्गदर्शन केन्द्रसरकारनेकियाहै, लेकिननियमोंकोराज्यसरकारोंद्वाराअधिसूचितकियाजानाहै, औरनियामकप्राधिकरणऔरअपीलीयन्यायाधिकरणभीउनकेद्वारानियुक्तकिएजानेहैं।दूसरीओर, विनियामकप्राधिकरणोंकोविवादों का निपटारा औरपरियोजनाकीजानकारीदेने केलिएसूचनाप्रद वेबसाइटचलानेसहितरोजमर्रा के कार्योंको देखना जरूरीहै। दूसरी तरफ, संवैधानिकअनुचित कार्य औरखराबशासनकेएकप्रत्यक्ष उदाहरणमें, पश्चिमबंगालराज्यनेरेरा कीअनदेखीकरकेऔर2017 मेंअपनाराज्यकानून - वेस्टबंगालहाउसिंगइंडस्ट्रीरेगुलेशनएक्ट (डब्ल्यूबीएचआईआरए) बनाकरसंसदके महत्व को रौंददिया। Iभारतसरकारके अनेक प्रयासोंकेबावजूद, पश्चिमबंगालराज्यनेरेरा कोलागूकरनेसेइनकारकरदिया, जिससेपश्चिमबंगालकेघरखरीदारोंकोअपूरणीयक्षतिहुई।यहजानतेहुएकिइसविषयपरपहलेसेहीएककेन्द्रीयकानूनमौजूद है, पश्चिमबंगालसरकारने 2017 मेंडब्ल्यूबीएचआईआरए बनाया, औरसंविधान के अनुच्छेद 254 केतहतराज्यविधेयकके लिए भारतकेमाननीयराष्ट्रपतिकी मंजूरी कीभीपरवाहनहींकी। पश्चिमबंगालद्वारासंवैधानिकसिद्धांतोंकीइसअवहेलनाकोएकजनहितयाचिका (पीआईएल) केमाध्यमसेमाननीयसर्वोच्चन्यायालयमेंचुनौतीदीगईहै।मुझेविश्वासहैकिजल्दही, डब्ल्यूबीएचआईआरएकोअसंवैधानिकबनादियाजाएगाऔरहमारेपास'वन नेशन वनरेरा'होगा, जिससेपश्चिमबंगालकेघरखरीदारोंकोसमानरूपसेलाभहोगा। चूंकि मई 2017मेंरेरा पूरीतरहसेलागूहो गया था, 34राज्योंऔरसंघशासितप्रदेशोंनेनियमोंकोअधिसूचितकिया, 30राज्योंऔरसंघ शासितप्रदेशोंनेरियलएस्टेटनियामकप्राधिकरणोंकीस्थापनाकीऔर 26नेअपीलीयन्यायाधिकरणोंकीस्थापनाकीहै।परियोजनाके सम्बन्ध में पूरी पारदर्शितासुनिश्चितकरनेऔर परियोजनाकीजानकारीकेलिएएकवेब-पोर्टलकापरिचालन किया गया है जोरेरा कासार है। लगभग 60,000 रियल एस्टेटपरियोजनाएंऔर 45,723 रियलएस्टेटएजेंटों कोनियामकप्राधिकरणोंकेसाथपंजीकृतकियागयाहै, जोखरीदारोंको जानकारी के साथ बढि़या विकल्पचुनने का मंच प्रदानकरताहै।उपभोक्ताके विवादोंकानिवारणकरने के लिए 22 स्वतंत्रन्यायिकअधिकारियोंकोएकफास्ट-ट्रैकव्यवस्थाकेरूपमेंनियुक्तकियागयाहै, जहां 59,649 शिकायतोंकानिपटानकियाजा चुकाहै।इसनेसाथ-साथ उपभोक्ताअदालतोंका बोझ हलका किया है। रेरा, रियलएस्टेटसेक्टरकेलिएहै, जैसे सेबी शेयर बाजार केलिएहै, जिसकेलागू होने सेयह क्षेत्र सेक्टरनईऊंचाइयोंकोदेखरहाहै।जैसाकिमैंने हमेशा कहा है, शहरी भारत और रियल एस्टेट क्षेत्र का इतिहास हमेशा दो चरणों में याद किया जाएगा, वह है 'रेरा पूर्व' और 'रेरा के बाद'। लेखक केन्द्रीय मंत्रिपरिषद के सदस्य हैं दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com |
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