दिव्य रश्मि न्यूज़ चैनल |
- Liked on YouTube: निजीकरण के विरोध में एलआईसी अभिकर्ताओं ने काम बंद कर जताया विरोध , नहीं होने दिया बीमा का कोई कार्य
- रा.स्व.संघ के अ. भा. प्रतिनिधि सभा की बैठक बेंगलुरू में संपन्न
- 23 मार्च 2021 मंगलवार को श्री कृष्ण पब्लिक स्कूल के सभागार में 23 मार्च को शहादत दिवस के रूप में मनाया गया ।
- सरकारी संपत्ति का जनहित में उपयोग नहीं कर व्यक्ति विशेष को सुपुर्द करना कहाँ तक उचित है?
- शहादत
- आज 24 - मार्च - 2021, बुधवार को क्या है आप की राशी में विशेष ?
- बिहार के प्राचीन नाम
- तीन दिवसीय ज्वेलरी प्रदर्शनी का समापन
- महामहिम राज्यपाल ने आज शहीद-ए-आजम भगत सिंह के ‘शहादत-दिवस’ पर उनका श्रद्धापूर्ण नमन किया तथा प्रख्यात समाजवादी नेता व चिन्तक डाॅ॰ राममनोहर लोहिया की जयन्ती के अवसर पर उनकी तस्वीर पर माल्यार्पण किया
- आज़ादी का अमृत महोत्सव, इंडिया@75 पांच दिवसीय फोटो प्रदर्शनी भागलपुर में शुरू
- महामहिम राज्यपाल ने मशहूर सिने अभिनेता श्री मनोज वाजपेयी को ‘सर्वश्रेष्ठ अभिनेता’ का नेशनल अवार्ड दिए जाने की घोषणा पर उन्हें बधाई दी
- पर्व में किसी की धार्मिक भावना को ठेस ना पहुंचाएं ,सभी सौहार्द पूर्वक मनाएं, हर चौक चौराहे पर तैनात रहेगी पुलिस
- मुख्यमंत्री ने डाॅ0 राम मनोहर लोहिया जी की जयंती के अवसर पर नमन कर अपनी श्रद्धांजलि दी
- मुख्यमंत्री ने शहीद-ए-आजम सरदार भगत सिंह के शहादत दिवस पर उन्हें नमन कर अपनी श्रद्धांजलि दी
Posted: 23 Mar 2021 11:13 AM PDT निजीकरण के विरोध में एलआईसी अभिकर्ताओं ने काम बंद कर जताया विरोध , नहीं होने दिया बीमा का कोई कार्य भारतीय जीवन बीमा निगम के अभिकर्ता संघ के लोगों ने आज शहीद दिवस को आराम दिवस के रूप में मनाया उन्हों ने अपना काम ठप कर एक दिवसीय धरना दिया। अभिकर्ताओं ने केन्द्र सरकार व प्रबंधन के खिलाफ जमकर नारेबाजी की। लोगों ने कहा कि ग्राहकों का बोनस बढ़ोतरी, अभिकर्ताओं को चिकित्सा सुविधा, ग्रेच्यूटी, पेंशन, क्लब सदस्यों में छूट, ग्रुप बीमा की राशि में बढ़ोत्तरी व सुविधाएं दी जाये। भारतीय जीवन बीमा निगम के अभिकर्ता संघ के लोगों ने अपना काम ठप कर एक दिवसीय धरना दिया। अभिकर्ताओं ने केन्द्र सरकार व प्रबंधन के खिलाफ जमकर नारेबाजी की। लोगों ने कहा कि ग्राहकों का बोनस बढ़ोतरी, अभिकर्ताओं को चिकित्सा सुविधा, ग्रेच्यूटी, पेंशन, क्लब सदस्यों में छूट, ग्रुप बीमा की राशि में बढ़ोत्तरी व सुविधाएं दी जाये। एलआईसी में एफडीआई 74 प्रतिशत एवं आईपीओ को वापस ले। निजीकरण नहीं होना चाहिए। इसका लोगों ने जमकर विरोध किया। कहा कि यह ठीक नहीं। इस मौके पर संघ के विनय कुमार,प्रवीण वर्मा, सरदार अरुण सिंह, धनंजय कुमार सहित अन्य मौजूद थे। दिव्य रश्मि ! धर्म, राष्ट्रवाद , राजनीति , समाज एवं आर्थिक जगत की खबरों का चैनल है | जनता की आवाज़ बनने के उदेश्य से हमारे सभी साथी कार्य करते है अत: हमारे इस मुहीम में आप के साथ की आवश्यकता है |हमारे खबरों को लगातार प्राप्त करने के लिए हमारे चैनल को सबस्क्राइब करना न भूले और बेल आइकॉन को अवश्य दबाए | चैनल को सब्सक्राइब करें खबर को शेयर जरूर करें Facebook : https://ift.tt/3mi8FgA Twitter https://twitter.com/DivyaRashmi8 instagram : https://ift.tt/35ARrp0 visit website : https://ift.tt/3d6mwRK via YouTube https://www.youtube.com/watch?v=BIXwsM9JPMg | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
रा.स्व.संघ के अ. भा. प्रतिनिधि सभा की बैठक बेंगलुरू में संपन्न Posted: 23 Mar 2021 10:36 AM PDT रा.स्व.संघ के अ. भा. प्रतिनिधि सभा की बैठक बेंगलुरू में संपन्नपटना, 23 मार्च। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक 20 मार्च, 2021 को बेंगलुरु में सम्पन्न हुई। दो दिवसीय बैठक में यह चर्चा हुई कि वैश्विक महामारी कोरोना के कारण संघ की दैनिक गतिविधि भी प्रभावित हुई है। अब लॉकडाउन के बाद संघ की शाखाएं लगनी शुरू हो गई है। विश्वास है कि शीघ्र ही पुराने कार्यवृत को पार कर आगे बढ़ जाएंगे। बैठक में कुटुम्ब प्रबोधन, पर्यावरण संरक्षण और भूमि सुपोषण पर विशेष ध्यान दिया गया। बैठक में राष्ट्रीय महत्व के 2 प्रस्ताव पारित हुए। संघ का यह चुनाव वर्ष है। इस बार के प्रतिनिधि सभा में मा. दत्तात्रेय होसबाळे जी को सरकार्यवाह के तौर पर निर्वाचित किया गया। दत्ता जी का केंद्र पटना भी रहा है। इसके अलावा उत्तर पूर्व क्षेत्र( बिहार- झारखंड) के क्षेत्र प्रचारक मा. रामदत्त चक्रधर जी को संघ के सह सरकार्यवाह की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी गई है। अब इस क्षेत्र (बिहार-झारखंड) के क्षेत्र प्रचारक मा. रामनवमी प्रसाद जी और सह क्षेत्र प्रचारक के तौर पर कार्य करेंगे। अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक में दो प्रस्ताव पारित हुए। पहला प्रस्ताव श्रीराम जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण हेतु संपन्न व्यापक जनसंपर्क अभियान को लेकर था। प्रतिनिधि सभा का मानना था कि श्रीराम जन्मभूमि पर मंदिर का निर्माण भारत की अन्तर्निहित शक्ति का प्रकटीकरण है। अयोध्या में मंदिर निर्माण को लेकर किया जाने वाला अनुष्ठान व निधि समर्पण अभियान जैसे कार्यक्रमों से भारत की अन्तर्निहित शक्तियां जागृत हुई हैं। ये कार्यक्रम आध्यात्मिक जागरण, राष्ट्रीय एकात्मकता, सामाजिक समरसता तथा सद्भाव एंव समर्पण के अद्वितीय प्रतीक बन गये हैं। भव्य मंदिर निर्माण के माध्यम से वैभव संपन्न व सामथ्र्यशाली भारत का मार्ग प्रशस्त होगा जो विश्व कल्याण की अपनी भूमिका का निर्वाह करेगा। प्रतिनिधि सभा के दूसरे प्रस्ताव में कोविड महामारी के सम्मुख भारत की शक्ति को रेखांकित किया गया। प्रस्ताव में बताया गया कि कोविड महामारी के सम्मुख एकजुट भारत खड़ा दिखा। भारतीय समाज के उल्लेखनीय, समन्वित एवं समग्र प्रयासों को संज्ञान में लेते हुए एवं इसके भीषण परिणामों के नियंत्रण में समाज के प्रत्येक वर्ग द्वारा निभाई गई भूमिका के लिए संघ ने हार्दिक अभिनंदन किया। प्रतिनिधि सभा ने पूर्ण विश्वास व्यक्त किया कि भारतीय समाज सतत् दृढ़ता एवं निश्चय के साथ इस महामारी के दुष्प्रभाव से मुक्त होकर शीघ्र ही सामान्य जीवन को प्राप्त करेगा। प्रतिनिधि सभा में सुदृढ़ परिवार व्यवस्था, संतुलित उपभोग व पर्यावरण संरक्षण को व्यक्तिगत एवं सामाजिक जीवन में अपनाते हुए आत्मनिर्भरता एवं स्वदेशी के मंत्र को जीवन में उतारने का आह्वान भी किया गया। परिवार में छोटे-छोटे कार्यक्रम कर संस्कारक्षण वातावरण बनाने का संकल्प लेने की आवश्यकता बतायी गयी। भूमि की उर्वरकता को बरकरार रखते हुए उपज को बढ़ाने के नये उपाय सोचने पर भी बल दिया गया। भारतीय चिंतन में भूमि को माता माना गया है। भूमि के सुपोषण के लिए आवश्यक है कि जैविक खाद का अधिकाधिक प्रयोग किया जाये, वृक्षारोपण पर विशेष ध्यान केन्द्रित किया जाये एवं जल संरक्षण के लिए सबकोई मिल जुलकर सतत प्रयास करे। इस वर्ष प्रतिपदा (13 अप्रैल, 2021) से गुरु पूर्णिमा (24 जुलाई, 2021) तक पर्यावरण एवं भूमि संरक्षण विषय को बल देने के लिए एक विशेष अभियान चलाया जायेगा। देश भर में 'माता भूमि पुत्रोऽहम् पृथिव्याः' का भाव लेकर भूमि वंदन का कार्यक्रम किया जायेगा। इस कार्यक्रम के द्वारा संपूर्ण देश में पर्यावरण संरक्षण एवं भूमि सुपोषण के लिए जागरूकता का अभियान चलाया जायेगा। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शाखाओं के बारे में डाॅ. मोहन सिंह ने प्रेस वार्ता में बताया कि पूरे देश में 34 हजार 969 स्थानों पर 55 हजार 652 शाखाएं लग रही हैं। साथ ही 18 हजार मिलन और 7 हजार 655 मंडली है। वहीं बिहार में 995 स्थानों पर 1 हजार 462 शाखाएं लग रही हैं। इसके अलावा 622 स्थानों पर संघ मिलन एवं 122 स्थानों पर संघ मंडली लगती है। बिहार में संघ के द्वारा 133 सेवा कार्य चल रहे हैं। श्रीराम जन्मभूमि मंदिर निर्माण निधि समर्पण अभियान के तहत बिहार में विस्तृत कार्य हुआ। बिहार में लगभग 45 हजार गांव हैं जिसमें 34 हजार 259 गांव में संपर्क किया गया। इस अभियान में कुल 57 हजार 634 कार्यकर्ताओं ने 57 लाख 17 हजार 843 परिवारों में संपर्क किया। दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
Posted: 23 Mar 2021 10:21 AM PDT 23 मार्च 2021 मंगलवार को श्री कृष्ण पब्लिक स्कूल के सभागार में 23 मार्च को शहादत दिवस के रूप में मनाया गया ।समारोह के मुख्य अतिथि डॉ श्री कृष्ण सिन्हा संस्थान के अध्यक्ष डॉ एस के सिंह एवं विशिष्ट अतिथि के रूप में संस्थान के महासचिव श्री हरि बल्लभ सिंह आरसी उपस्थित थे । सभा में सरदार भगत सिंह , सुखदेव व राजगुरु की कुर्बानियों की चर्चा करते हुए श्रद्धांजलि दी गई । श्री हरि बल्लभ सिंह आरसी ने सरदार भगत सिंह की देश भक्ति एवं उनके बलिदान की चर्चा करते हुए कहा कि आज आवश्यकता है छात्र-छात्राओं में राष्ट्रवाद की भावना जगे , वे भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए आगे आवे । डॉ एस के सिंह ने छात्र छात्राओं को प्रोत्साहित करते हुए कहा कि भगत सिंह आज भी प्रत्येक युवक के हृदय में विद्यमान हैं , केवल उसे जगाने की आवश्यकता है । निदेशक डॉ श्याम लाल पांडेय ने भगत सिंह से प्रेरणा एवं शक्ति ग्रहण कर ईमानदारी , सत्यता एवं देशभक्ति का पाठ पढ़ें । श्रीमती नीलम कुमारी ने भगत सिंह के जीवन पर प्रकाश डाला ।सभा में प्राचार्या श्रीमती पूनम सिंह , उप प्राचार्या श्रीमती संगीता सिंह , राष्ट्र चिंतक श्री धर्म चन्द्र पोद्दार , अर्चना सिंह एवं विद्यालय के सभी शिक्षक-शिक्षिकाएं एवं छात्र-छात्राएं उपस्थित थी ,चंद्रकांत ने धन्यवाद ज्ञापित किया । दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
सरकारी संपत्ति का जनहित में उपयोग नहीं कर व्यक्ति विशेष को सुपुर्द करना कहाँ तक उचित है? Posted: 23 Mar 2021 10:15 AM PDT सरकारी संपत्ति का जनहित में उपयोग नहीं कर व्यक्ति विशेष को सुपुर्द करना कहाँ तक उचित है?पटना जिला सुधार समिति के महासचिव व महानगर जिला कांग्रेस कमिटी के पूर्व उपाध्यक्ष सह प्रवक्ता राकेश कपूर ने बताया कि बिहार विधान परिषद् में माननीय सदस्य प्रेम चंद्र मिश्रा के पटना सिटी के गांधी सरोवर मंगल तालाब स्थित मातृ शिशु कल्याण केंद्र की बदहाली के संबंध में पूछे गए प्रश्न का उत्तर देते हुए बिहार सरकार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पाण्डे ने कहा कि यह केन्द्र राज्यपाल के अधीन है और उन्होंने इसे रेडक्रास से M0U कर ब्लड बैंक को दिया है। स्वास्थ्य मंत्री मंगल पाण्डे की इस उत्तर पर पटना जिला सुधार समिति के महासचिव व कांग्रेस नेता राकेश कपूर ने प्रतिक्रया व्यक्त करते हुए कहा कि मैंने महामहिम राज्यपाल फागू चौहान को भी मेल द्वारा व पत्र लिखकर गांधी सरोवर मंगल तालाब, पटना सिटी स्थित मातृ शिशु कल्याण केंद्र की ओर ध्यान दिलाते हुए लिखा था कि यह आपके अधीन है और इसे कुछ वर्ष पूर्व रेड क्रास से भी जोड़ दिया गया था। लेकिन इसके बावजूद स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ। पत्र की प्रतिलिपि मुख्यमंत्री, स्वास्थ्य मंत्री व क्षेत्रीय विधायक को भी भेजी थी। राकेश कपूर ने कहा कि यह केन्द्र घनी आबादी के बीच स्थित है। इसका वर्तमान में कोई भी उपयोग नहीं होता है। इस पर एक व्यक्ति विशेष का आधिपत्य है। राकेश कपूर ने बिहार के राज्यपाल व सरकार से पूछा है कि इतनी बड़ी सरकारी संपत्ति का जनहित में उपयोग नहीं कर व्यक्ति विशेष को सुपुर्द करना कहाँ तक उचित है। सुधार समिति के महासचिव ने राज्यपाल व बिहार से मांग के साथ आग्रह किया है कि मधुमेह व अन्य किसी बीमारी के इलाज के लिए इसे अस्पताल के रूप में विकसित किया जाय। उल्लेखनीय है कि पूर्व में यहाँ एक महिला चिकित्सक के साथ-साथ नर्स एवं 6-7 अन्य कर्मचारी नियुक्त थे। अगर इसे पुनः अस्पताल के रूप में विकसित किया जाता है तो इससे एक बड़ी आबादी लाभान्वित होगी। साथ ही इस जगह का सदुपयोग हो जायेगा। राकेश कपूर ने इस केंद्र के प्रति क्षेत्रीय विधायक व पूर्व मंत्री, बिहार सरकार के नंदकिशोर यादव की उदासीनता पर भी क्षोभ व्यक्त किया है। साथ- साथ बिहार विधान परिषद् में कांग्रेस सदस्य श्री प्रेम चन्द्र मिश्र द्वारा मातृ शिशु कल्याण केंद्र की बदहाली की ओर बिहार सरकार का ध्यान आकृष्ट कराने के प्रयास का स्वागत करते हुए उन्हें धन्यवाद दिया है। दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
Posted: 23 Mar 2021 10:10 AM PDT शहादतशहिदी दिवस पर तीन राष्ट्र सपुतों को समर्पित।(कविता)सुखदेव, राजगुरू और- भगत।१। क्रांति के त्रिदेव, देश के खातिर- दिये शहादत।२। आज के दिन, महाबली तीन, कहा,वंदे मातरम- जय भारत।३। अमर जवान, याद रखेगा सदैव- हिंदुस्तान, मिटा कर जमीं से- गुलाम बनाए रखने का गंदी सियासत।४। ---:भारतका एक ब्राह्मण. संजय कुमार मिश्र 'अणु' वलिदाद अरवल (बिहार) संपर्क--8340781217. ---------------------------------------- शहिदी दिवस पर तीन राष्ट्र सपुतों को समर्पित। [10:37 PM, 3/23/2021] संजय कुमार मिश्र अणु: शहादत --------- (कविता) सुखदेव, राजगुरू और- भगत।१। क्रांति के त्रिदेव, देश के खातिर- दिये शहादत।२। आज के दिन, महाबली तीन, कहा,वंदे मातरम- जय भारत।३। अमर जवान, याद रखेगा सदैव- हिंदुस्तान, मिटा कर जमीं से- गुलाम बनाए रखने का गंदी सियासत।४। ---:भारतका एक ब्राह्मण. संजय कुमार मिश्र 'अणु' वलिदाद अरवल (बिहार) दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
आज 24 - मार्च - 2021, बुधवार को क्या है आप की राशी में विशेष ? Posted: 23 Mar 2021 10:05 AM PDT आज 24 - मार्च - 2021, बुधवार को क्या है आप की राशी में विशेष ?दैनिक पंचांग एवं राशिफल - सभी 12 राशियों के लिए कैसा रहेगा आज का दिन जाने प्रशिद्ध ज्योतिषाचार्य पं. प्रेम सागर पाण्डेय से श्री गणेशाय नम: पंचांग 24 - मार्च - 2021, बुधवार तिथि एकादशी रात्रिशेष 05:38:11 नक्षत्र पुष्य रात्रि 07:15:32 करण : गर 10:25:23 वणिज 22:13:56 पक्ष शुक्ल योग अतिगंड 11:40:41 वार बुधवार सूर्य व चन्द्र से संबंधित गणनाएँ सूर्योदय 05:58:33 चन्द्रोदय 13:56:59 चन्द्र राशि कर्क सूर्यास्त 06:02:28 चन्द्रास्त 28:07:59 ऋतु वसंत हिन्दू मास एवं वर्ष शक सम्वत 1942 शार्वरी कलि सम्वत 5122 दिन काल 12:13:13 विक्रम सम्वत 2077 मास अमांत अमांत फाल्गुन मास पूर्णिमांत पूर्णिमांत फाल्गुन शुभ और अशुभ समय शुभ समय :- अभिजित कोई नहीं अशुभ समय :- दुष्टमुहूर्त : 12:03:22 - 12:52:14 कंटक 16:56:39 - 17:45:32 यमघण्ट 08:47:50 - 09:36:43 राहु काल 12:27:48 - 13:59:27 कुलिक 12:03:22 - 12:52:14 कालवेला या अर्द्धयाम 07:10:04 - 07:58:57 यमगण्ड 07:52:51 - 09:24:30 गुलिक काल 10:56:09 - 12:27:48 दिशा शूल उत्तर चन्द्रबल और ताराबल
आज का दैनिक राशिफल 24 - मार्च - 2021, बुधवार
पं. प्रेम सागर पाण्डेय् ,नक्षत्र ज्योतिष वास्तु अनुसंधान केन्द्र ,नि:शुल्क परामर्श - रविवार , दूरभाष 9122608219 / 9835654844 दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
Posted: 23 Mar 2021 09:25 AM PDT बिहार के प्राचीन नामसंकलन अश्विनीकुमार तिवारीवैशाली (हाजीपुर, बिहार) का नाम राजा विशाल के नाम पर पड़ा था। बौद्ध और जैन धर्मों के प्रादुर्भाव से काफी पहले ही ये मिथिलांचल के वज्जी गणराज्य की राजधानी था। महावीर (599 बी.सी.) से काफी पहले से प्रचलन में इसका नाम सुनाई देने के कारण ये माना जा सकता है कि ग्रीक लोगों के गणराज्य की परिकल्पना से भी पहले भारत में गणराज्य थे। विष्णुपुराण में वैशाली से शासन करने वाले 34 राजाओं का जिक्र आता है, जिनमें नाभाग प्रथम थे। मानवाधिकारों से जुड़े किसी मसले पर उन्होंने राजगद्दी छोड़ दी थी और कहा था, "अब मैं एक स्वतंत्र भूमि जोतने वाला हूँ जो अपने ऊपर शासन करता है"। इनमें से अंतिम राजा सुमति थे जो कि दशरथ (राम के पिता) के समकालीन माने जाते हैं। बौद्ध और जैन ग्रंथों में वैशाली का जिक्र कई बार आता है। ये महावीर की जन्मस्थली है और बुद्ध ने अपना अंतिम उपदेश वैशाली में देकर परिनिर्वाण लिया था। गणराज्य और लोकतंत्र किन्हीं विदेशियों की नहीं, बल्कि विश्व को भारत की देन हैं। १. पौराणिक इतिहास भूगोल-(१) कालमान (क) ज्योतिषीय काल-बिहार के प्राचीन नामों को जानने के लिये पुराणों का प्राचीन इतिहास भूगोल समझना पड़ेगा। अभी २ प्रकार से ब्रह्मा का तृतीय दिन चल रहा है। ज्योतिष में १००० युगों का एक कल्प है जो ब्रह्मा का एक दिन है। यहां युग का अर्थ है सूर्य से उसके १००० व्यास दूरी (सहस्राक्ष क्षेत्र) तक के ग्रहों (शनि) का चक्र, अर्थात् १ युग में इनकी पूर्ण परिक्रमायें होती हैं। आधुनिक ज्योतिष में भी पृथ्वी गति का सूक्ष्म विचलन जानने के लिये शनि तक के ही प्रभाव की गणना की जाती है। भागवत स्कन्ध ५ में नेपचून तक के ग्रहों का वर्णन है जिसे १०० कोटि योजन व्यास की चक्राकार पृथ्वी कहा गया है। इसका भीतरी ५० कोटि योजन का भाग लोक = प्रकाशित है, बाहरी अलोक भाग है। इसमें पृथ्वी के चारों तरफ ग्रह-गति से बनने वाले क्षेत्रों को द्वीप कहा गया है जिनके नाम वही हैं जो पृथ्वी के द्वीपों के हैं। पृथ्वीके द्वीप अनियमित आकार के हैं, सौर-पृथ्वी के द्वीप चक्राकार (वलयाकार) हैं। द्वीपों के बीच के भागों को समुद्र कहा गया है। पृथ्वी का गुरुत्व क्षेत्र जम्बूद्वीप, मंगल तक के ठोस ग्रहों का क्षेत्र दधि समुद्र आदि हैं। १००० युगों के समय में प्रकाश जितनी दूर तक जा सकता है वह तप लोक है तथा वह समय (८६४ कोटि वर्ष) ब्रह्मा का दिन रात है। इस दिन से अभी तीसरा दिन चल रहा है अर्थात् १७२८ कोटि वर्ष के २ दिन-रात बीत चुके हैं तथा तीसरे दिन के १४ मन्वन्तरों (मन्वन्तर = ब्रह्माण्ड या आकाश गंगा का अक्षभ्रमण काल) में ६ बीतचुके हैं, ७वें मन्वन्तर के ७१ युगों में २७ बीत चुके हैं तथा २८ वें युग के ४ खण्डों में ३ बीत चुके हैं-सत्य, त्रेता, द्वापर (ये ४३२,००० वर्ष के कलि के ४, ३, २ गुणा हैं)। चतुर्थ पाद युग कलि १७-२-३१०२ ई.पू. से चल रहा है। (ख) ऐतिहासिक काल-ऐतिहासिक युग चक्र ध्रुवीय जल प्रलय के कारण होता है जो १९२३ के मिलांकोविच सिद्धान्त के अनुसार २१६०० वर्षों का चक्र है। यह २ गतियों का संयुक्त प्रभाव है-१ लाख वर्षों में पृथ्वी की मन्दोच्च गति तथा विपरीत दिशा में २६,००० वर्ष में अयन गति (पृथ्वी अक्ष की शंकु आकार में गति-ब्रह्माण्ड पुराण का ऐतिहासिक मन्वन्तर-स्वायम्भुव मनु से कलि आरम्भ तक )। भारत में मन्दोच्च गति के दीर्घकालिक अंश ३१२,००० वर्ष चक्र को लिया गया है। इसमें २४,००० वर्षों का चक्र होता है, जिसमें १२-१२ हजार वर्षों का अवसर्पिणी (सत्य, त्रेता, द्वापर, कलि क्रम में) तथा उत्सर्पिणी (विपरीत क्रम में युग खण्ड) भाग हैं। प्रति अवसर्पिणी त्रेता में जल प्रलय तथा उत्सर्पिणी त्रेता में हिम युग आता है। तृतीय ब्रह्माब्द का अवसर्पिणी वैवस्वत मनु काल से आरम्भ हुआ, जिसके बाद ४८०० वर्ष का सत्य युग, ३६०० वष का त्रेता तथा २४०० वर्ष का द्वापर १७-२-३१०२ ई.पू में समाप्त हुये। अर्थात् वैवस्वत मनु का काल १३९०२ ई.पू. था। अवसर्पिणी कलि १२०० वर्ष बाद १९०२ ई.पू. में समाप्त हुआ। उसके बाद उत्सर्पिणी का कलि ७०२ ई.पू. में, द्वापर १६९९ ई. में पूर्ण हुआ। अभी १९९९ ई. तक उत्सर्पिणी त्रेता की सन्धि थी अभी मुख्य त्रेता चलरहा है। त्रेता को यज्ञ अर्थात् वैज्ञानिक उत्पादन का युग कहा गया है। १७०० ई. से औद्योगिक क्रान्ति आरम्भ हुयी, अभी सूचना विज्ञान का युग चल रहा है। इसी त्रेता में हिमयुग आयेगा। विश्व का ताप बढ़ना तात्कालिक घटना है, दीर्घकालिक परिवर्तन ज्योतिषीय कारणों से ही होगा। (२) आकाश के लोक-आकाश में सृष्टि के ५ पर्व हैं-१०० अरब ब्रह्माण्डों का स्वयम्भू मण्डल, १०० अरब तारों का हमारा ब्रह्माण्ड, सौरमण्डल, चन्द्रमण्डल (चन्द्रकक्षा का गोल) तथा पृथ्वी। किन्तु लोक ७ हैं-भू (पृथ्वी), भुवः (नेपचून तक के ग्रह) स्वः (सौरमण्डल १५७ कोटि व्यास, अर्थात् पृथ्वी व्यास को ३० बार २ गुणा करने पर), महः (आकाशगंगा की सर्पिल भुजा में सूर्य के चतुर्दिक् भुजा की मोटाई के बराबर गोला जिसके १००० तारों को शेषनाग का १००० सिर कहते हैं), जनः (ब्रह्माण्ड), तपः लोक (दृश्य जगत्) तथा अनन्त सत्य लोक। (३) पृथ्वी के तल और द्वीप-इसी के अनुरूप पृथ्वी पर भी ७ तल तथा ७ लोक हैं। उत्तरी गोलार्द्ध का नक्शा (नक्षत्र देख कर बनता है, अतः नक्शा) ४ भागों में बनता था। इसके ४ रंगों को मेरु के ४ पार्श्वों का रंग कहा गया है। ९०-९० अंश देशान्तर के विषुव वृत्त से ध्रुव तक के ४ खण्डों में मुख्य है भारत, पश्चिम में केतुमाल, पूर्व में भद्राश्व, तथा विपरीत दिशा में उत्तर कुरु। इनको पुराणों में भूपद्म के ४ पटल कहा गया है। ब्रह्मा के काल (२९१०२ ई.पू.) में इनके ४ नगर परस्पर ९० अंश देशान्तर दूरी पर थे-पूर्व भारत में इन्द्र की अमरावती, पश्चिम में यम की संयमनी (यमन, अम्मान, सना), पूर्व में वरुण की सुखा तथा विपरीत में चन्द्र की विभावरी। वैवस्वत मनु काल के सन्दर्भ नगर थे, शून्य अंश पर लंका (लंका नष्ट होने पर उसी देशान्तर रेखा पर उज्जैन), पश्चिम में रोमकपत्तन, पूर्व में यमकोटिपत्तन तथा विपरीत दिशा में सिद्धपुर। दक्षिणी गोलार्द्ध में भी इन खण्डों के ठीक दक्षिण ४ भाग थे। अतः पृथ्वी अष्ट-दल कमल थी, अर्थात् ८ समतल नक्शे में पूरी पृथ्वी का मानचित्र होता था। गोल पृथ्वी का समतल नक्शा बनाने पर ध्रुव दिशा में आकार बढ़ता जाता है और ठीक ध्रुव पर अनन्त हो जायेगा। उत्तरी ध्रुव जल भाग में है (आर्यभट आदि) अतः वहां कोई समस्या नहीं है। पर दक्षिणी ध्रुव में २ भूखण्ड हैं-जोड़ा होने के कारण इसे यमल या यम भूमि भी कहते हैं और यम को दक्षिण दिशा का स्वामी कहा गया है। इसका ८ भाग के नक्शे में अनन्त आकार हो जायेगा अतः इसे अनन्त द्वीप (अण्टार्कटिका) कहते थे। ८ नक्शों से बचे भाग के कारण यह शेष है। भारत भाग में आकाश के ७ लोकों की तरह ७ लोक थे। बाकी ७ खण्ड ७ तल थे-अतल, सुतल, वितल, तलातल, महातल, पाताल, रसातल। वास्तविक भूखण्डों के हिसाब से ७ द्वीप थे-जम्बू (एसिया), शक (अंग द्वीप, आस्ट्रेलिया), कुश (उत्तर अफ्रीका), शाल्मलि (विषुव के दक्षिण अफ्रीका), प्लक्ष (यूरोप), क्रौञ्च (उत्तर अमेरिका), पुष्कर (दक्षिण अमेरिका)। इनके विभाजक ७ समुद्र हैं। (४) धाम-आकाश के ४ धाम हैं-अवम (नीचा) = क्रन्दसी-सौरमण्डल, मध्यम = रोदसी-ब्रह्माण्ड, उत्तम या परम (संयती)-स्वयम्भू मण्डल, परात्पर-सम्पूर्ण जगत् का अव्यक्त मूल। इनके जल हैं-मर, अप् या अम्भ, सलिल (सरिर), रस। इनके ४ समुद्र हैं-विवस्वान्, सरस्वान्, नभस्वान्, परात्पर। इनके आदित्य (आदि = मूल रूप) अभी अन्तरिक्ष (प्रायः खाली स्थान) में दीखते हैं-मित्र, वरुण, अर्यमा, परात्पर ब्रह्म। इसी के अनुरूप पृथ्वी के ४ समुद्र गौ के ४ स्तनों की तरह हैं जो विभिन्न उत्पाद देते हैं-स्थल मण्डल, जल मण्डल, जीव मण्डल, वायुमण्डल। इनको आजकल ग्रीक में लिथो, हाइड्रो, बायो और ऐटमो-स्फियर कहा जाता है। शंकराचार्य ने ४८३ ई.पू. में इसके अनुरूप ४ धाम बनाये थे-पुरी, शृङ्गेरी, द्वारका, बदरी। ७०० ई. में गोरखनाथ ने भी ४ तान्त्रिक धाम बनाये-कामाख्या, याजपुर (ओडिशा), पूर्णा (महाराष्ट्र), जालन्धर (पंजाब) जिसके निकट गुरुगोविन्द सिंह जी ने अमृतसर बनाया। (५) भारत के लोक-भारत नक्शे के ७ लोक हैं-भू (विन्ध्य से दक्षिण), भुवः (विन्ध्य-हिमालय के बीच), स्वः (त्रिविष्टप = तिब्बत स्वर्ग का नाम, हिमालय), महः (चीन के लोगों का महान् = हान नाम था), जनः (मंगोलिया, अरबी में मुकुल = पितर), तपः (स्टेपीज, साइबेरिया), सत्य (ध्रुव वृत) इन्द्र के ३ लोक थे-भारत, चीन, रूस। आकाश में विष्णु के ३ पद हैं-१०० व्यास तक ताप क्षेत्र, १००० व्यास तक तेज और उसके बाद प्रकाश (जहां तक ब्रह्माण्ड से अधिक है) क्षेत्र। विष्णु का परमपद ब्रह्माण्ड है जो सूर्य किरणों की सीमा कही जाती है अर्थात् उतनी दूरी पर सूर्य विन्दुमात्र दीखेगा, उसके बाद ब्रह्माण्ड ही विन्दु जैसा दीखेगा। पृथ्वी पर सूर्य की गति विषुव से उत्तर कर्क रेखा तक है, यह उत्तर में प्रथम पद है। विषुव वृत्त तक इसके २ ही पद पूरे होते हैं, तीसरा ध्रुव-वृत्त अर्थात् बलि के सिर पर है। २. भारत के नाम-(१) भारत-इन्द्र के ३ लोकों में भारत का प्रमुख अग्रि (अग्रणी) होने के कारण अग्नि कहा जाता था। इसी को लोकभाषा में अग्रसेन कहते हैं। प्रायः १० युग (३६०० वर्षों) तक इन्द्र का काल था जिसमें १४ प्रमुख इन्द्रों ने प्रायः १००-१०० वर्ष शासन किया। इसी प्रकार अग्रि = अग्नि भी कई थे। अन्न उत्पादन द्वारा भारत का अग्नि पूरे विश्व का भरण करता था, अतः इसे भरत कहते थे। देवयुग के बाद ३ भरत और थे-ऋषभ पुत्र भरत (प्रायः ९५०० ई.पू.), दुष्यन्त पुत्र भरत (७५०० ई.पू.) तथा राम के भाई भरत जिन्होंने १४ वर्ष (४४०८-४३९४ ई.पू.) शासन सम्भाला था। (२) अजनाभ-विश्व सभ्यता के केन्द्र रूप में इसे अजनाभ वर्ष कहते थे। इसके शासक को जम्बूद्वीप के राजा अग्नीध्र (स्वयम्भू मनु पुत्र प्रियव्रत की सन्तान) का पुत्र नाभि कहा गया है। (३) भौगोलिक खण्ड के रूप में इसे हिमवत वर्ष कहा गया है क्योंकि यह जम्बू द्वीप में हिमालय से दक्षिण समुद्र तक का भाग है। अलबरूनी ने इसे हिमयार देश कहा है (प्राचीन देशों के कैलेण्डर में उज्जैन के विक्रमादित्य को हिमयार का राजा कहा है जिसने मक्का मन्दिर की मरम्मत कराई थी) (४) इन्दु-आकाश में सृष्टि विन्दु से हुयी, उसका पुरुष-प्रकृति रूप में २ विसर्ग हुआ-जिसका चिह्न २ विन्दु हैं। विसर्ग का व्यक्त रूप २ विन्दुओं के मिलन से बना 'ह' है। इसी प्रकार भारत की आत्मा उत्तरी खण्ड हिमालय में है जिसका केन्द्र कैलास विन्दु है। यह ३ विटप (वृक्ष, जल ग्रहण क्षेत्र) का केन्द्र है-विष्णु विटप से सिन्धु, शिव विटप (शिव जटा) से गंगा) तथा ब्रह्म विटप से ब्रह्मपुत्र। इनको मिलाकर त्रिविष्टप = तिब्बत स्वर्ग का नाम है। इनका विसर्ग २ समुद्रों में होता है-सिन्धु का सिन्धु समुद्र (अरब सागर) तथा गंगा-ब्रह्मपुत्र का गंगा-सागर (बंगाल की खाड़ी) में होता है। हुएनसांग ने लिखा है कि ३ कारणों से भारत को इन्दु कहते हैं-(क) उत्तर से देखने पर अर्द्ध-चन्द्राकार हिमालय भारत की सीमा है, चन्द्र या उसका कटा भाग = इन्दु। (ख) हिमालय चन्द्र जैसा ठण्ढा है। (ग) जैसे चन्द्र पूरे विश्व को प्रकाशित करता है, उसी प्रकार भारत पूरे विश्व को ज्ञान का प्रकाश देता है। ग्रीक लोग इन्दु का उच्चारण इण्डे करते थे जिससे इण्डिया शब्द बना है। (५) हिन्दुस्थान-ज्ञान केन्द्र के रूप में इन्दु और हिन्दु दोनों शब्द हैं-हीनं दूषयति = हिन्दु। १८ ई. में उज्जैन के विक्रमादित्य के मरने के बाद उनका राज्य १८ खण्डों में भंट गया और चीन, तातार, तुर्क, खुरज (कुर्द) बाह्लीक (बल्ख) और रोमन आदि शक जातियां। उनको ७८ ई. में विक्रमादित्य के पौत्र शालिवाहन ने पराजित कर सिन्धु नदी को भारत की पश्चिमी सीमा निर्धारित की। उसके बाद सिन्धुस्थान या हिन्दुस्थान नाम अधिक प्रचलित हुआ। देवयुग में भी सिधु से पूर्व वियतनाम तक इन्द्र का भाग था, उनके सहयोगी थे-अफगानिस्तान-किर्गिज के मरुत्, इरान मे मित्र और अरब के वरुण तथा यमन के यम। (६) कुमारिका-अरब से वियतनाम तक के भारत के ९ प्राकृतिक खण्ड थे, जिनमें केन्द्रीय खण्ड को कुमारिका कहते थे। दक्षिण समुद्र की तरफ से देखने पर यह अधोमुख त्रिकोण है जिसे शक्ति त्रिकोण कहते हैं। शक्ति (स्त्री) का मूल रूप कुमारी होने के कारण इसे कुमारिका खण्ड कहते हैं। इसके दक्षिण का महासागर भी कुमारिका खण्ड ही है जिसका उल्लेख तमिल महाकाव्य शिलप्पाधिकारम् में है। आज भी इसे हिन्द महासागर ही कहते हैं। (७) लोकपाल संस्था-२९१०२ ई.पू. में ब्रह्मा ने ८ लोकपाल बनाये थे। यह उनके स्थान पुष्कर (उज्जैन से १२ अंश पश्चिम बुखारा) से ८ दिशाओं में थे। यहां से पूर्व उत्तर में (चीन, जापान) ऊपर से नीचे, दक्षिण पश्चिम (भारत) में बायें से दाहिने तथा पश्चिम में दाहिने से बांये लिखते थे जो आज भी चल रहा है। बाद के ब्रह्मा स्वायम्भुव मनु की राजधानी अयोध्या थी, और लोकपालों का निर्धारण भारत के केन्द्र से हुआ। पूर्व से दाहिनी तरफ बढ़ने पर ८ दिशाओं (कोण दिशा सहित) के लोकपाल हैं-इन्द्र, अग्नि, यम, निर्ऋति, वरुण, मरुत्, कुबेर, ईश। इनके नाम पर ही कोण दिशाओं के नाम हैं-अग्नि, नैर्ऋत्य, वायव्य, ईशान। अतः बिहार से वियतनाम और इण्डोनेसिया तक इन्द्र के वैदिक शब्द आज भी प्रचलित हैं। इनमें ओड़िशा में विष्णु और जगन्नाथ सम्बन्धी, काशी (भोजपुरी) में शिव, मिथिला में शक्ति, गया (मगध) में विष्णु के शब्द हैं। शिव-शक्ति (हर) तथा विष्णु (हरि) क्षेत्र तथा इनकी भाषाओं की सीमा आज भी हरिहर-क्षेत्र है। इन्द्र को अच्युत-च्युत कहते थे, अतः आज भी असम में राजा को चुतिया (च्युत) कहते हैं। इनका नाग क्षेत्र चुतिया-नागपुर था जो अंग्रेजी माध्यम से चुटिया तथा छोटा-नागपुर हो गया। ऐरावत और ईशान सम्बन्धी शब्द असम से थाइलैण्ड तक, अग्नि सम्बन्धी शब्द वियतनाम. इण्डोनेसिया में हैं। दक्षिण भारत में भी भाषा क्षेत्रों की सीमा कर्णाटक का हरिहर क्षेत्र है। उत्तर में गणेश की मराठी, उत्तर पूर्व के वराह क्षेत्र में तेलुगु, पूर्व में कार्त्तिकेय की सुब्रह्मण्य लिपि तमिल, कर्णाटक में शारदा की कन्नड़, तथा पश्चिम में हरिहर-पुत्र की मलयालम। ३. बिहार नाम का मूल-सामान्यतः कहा जाता है कि यहां बौद्ध विहार अधिक थे अतः इसका नाम बिहार पड़ा। यह स्पष्ट रूप से गलत है और केवल बौद्ध भक्ति में लिखा गया है। जब सिद्धार्थ बुद्ध (१८८७-१९०७ ई.पू.) या गौतम बुद्ध (५६३ ई.पू जन्म) जीवित थे तब भी इसे बिहार नहीं, मगध कहते थे। बौद्ध विहार केवल बिहार में ही नहीं, भारत के सभी भागों में थे। मुख्यतः कश्मीर में अशोक के समकालीन गोनन्द वंशी अशोक के समय सबसे अधिक बौद्ध विहार बने थे जिसमें मध्य एसिया के बौद्धों का प्रवेश होने से उन्होंने कश्मीर का राज्य नष्ट-भ्रष्ट कर दिया (राजतरंगिणी, तरंग १)। यह भारत के प्राकृतिक विभाजन के कारण नाम है। आज भी हिमाचल प्रदेश में पहाड़ की ऊपरी भूमि (अधित्यका) को खनेर और घाटी की समतल भूमि (उपत्यका) को बहाल या बिहाल कहते हैं। इसका मूल शब्द है बहल (बह्+क्लच्, नलोपश्च) = प्रचुर, बली, महान्। यथा-असावस्याः स्पर्शो वपुषि बहलश्चन्दनरसः (उत्तररामचरित१/३८), प्रहारैरुद्रच्छ्द्दहनबहलोद्गारगुरुभि (भर्तृहरि, शृङ्गार शतक, ३६)। बहल एक प्रकार की ईख का भी नाम है। खनेर का मूल शब्द है-खण्डल-भूखण्ड, या उसका पालन कर्त्ता। आखण्डल -सभी भूखण्डों का स्वामी इन्द्र। भारत में विन्ध्य और हिमालय के बीच खेती का मुख्य क्षेत्र था। उसमें भी बिहार भाग सबसे चौड़ा और अधिक नदियों (विशेषकर उत्तर बिहार) से सिञ्चित था। अधिक विस्तृत समतल भाग के अर्थ में इसे बहल या विहार (रमणीय) कहते हैं। सबसे अधिक कृषि का क्षेत्र मिथिला था जहां के राजा जनक भी हल चलाते थे। खेती में मुख्यतः घास जाति के धान और गेहूं रोपे जाते हैं, जो एक प्रकार के दर्भ हैं। दर्भ क्षेत्र को दरभंगा कहते हैं। भूमि से उत्पन्न सम्पत्ति सीता है, इसका एक भाग राजा रूप में इन्द्र को मिलता है। अतः यह शक्ति क्षेत्र हुआ। दर्भंगा के विशेष शब्द वही होंगे जो अथर्ववेद के दर्भ तथा कृषि सूक्तों में हैं। यहां केवल खेती है, कोई वन नहीं है। इसके विपरीत विदर्भ में दर्भ बिल्कुल नहीं है, केवल वन हैं। इसका पश्चिमी भाग रीगा ऋग्वेद का केन्द्र था जहां से ज्ञान संस्थायें शुरु हुयीं। ज्ञान का केन्द्र काशी शिव का स्थान हुआ। कर्क रेखा पर गया विष्णुपद तीर्थ या विष्णु खेत्र हुआ। दरभंगा के चारों तरफ अरण्य क्षेत्र हैं-अरण्य (आरा-आयरन देवी), सारण (अरण्य सहित) चम्पारण, पूर्ण-अरण्य (पूर्णिया)। गंगा के दक्षिण छोटे आकार के वृक्ष हैं अतः मगध को कीकट भी कहते थे। कीकट का अर्थ सामान्यतः बबूल करते हैं, पर यह किसी भी छोटे आकार के बृक्ष के लिये प्रयुक्त होता है जिसे आजकल कोकाठ कहते हैं। उसके दक्षिण में पर्वतीय क्षेत्र को नागपुर (पर्वतीय नगर) कहते थे। इन्द्र का नागपुर होने से इसे चुतिया (अच्युत-च्युत) नागपुर कहते थे। आज भी रांची में चुतिया मोड़ है। घने जंगल का क्षेत्र झारखण्ड है। इनके मूल संस्कृत शब्द हैं-झाटः (झट् + णिच+ अच्)-घना जंगल, निकुञ्ज, कान्तार। झुण्टः =झाड़ी। झिण्टी = एक प्रकार की झाड़ी। झट संहतौ-केश का जूड़ा, झोंटा, गाली झांट। गंगा नदी पर्वतीय क्षेत्र से निकलने पर कई धारायें मिल कर नदी बनती है। जहां से मुख्य धारा शुरु होती है उस गांगेय भाग के शासक गंगा पुत्र भीष्म थे। जहां से उसका डेल्टा भाग आरम्भ होता है अर्थात् धारा का विभाजन होता है वह राधा है। वहां का शासक राधा-नन्दन कर्ण था। यह क्षेत्र फरक्का से पहले है। ४. राजनीतिक भाग-(१) मल्ल-गण्डक और राप्ती गंगा के बीच। (२) विदेह-गंगा के उत्तर गण्डक अओर कोसी नदी के बीच, हिमालय के दक्षिण। राजधानी मिथिला वैशाली से ५६ किमी. उत्तर-पश्चिम। (३) मगध-सोन नद के पूर्व, गंगा के दक्षिण, मुंगेर के पश्चिम, हजारीबाग से उत्तर। प्राचीन काल में सोन-गंगा संगम पर पटना था। आज भी राचीन सोन के पश्चिम पटना जिले का भाग भोजपुरी भाषी है। नदी की धारा बदल गयी पर भाषा क्षेत्र नहीं बदला। राजधानी राजगीर (राजगृह)। (४) काशी-यह प्रयाग में गंगा यमुना संगम से गंगा सोन संगम तक था, दक्षिण में विन्ध्य से हिमालय तक। इसके पश्चिम कोसल (अयोध्या इसी आकार का महा जनपद था। इसका पूर्वी भाग अभी बिहार में है पुराना शाहाबाद अभी ४ भागों में है भोजपुर, बक्सर, रोहतास, भभुआ। (५) अंग-मोकामा से पूर्व मन्दारगिरि से पश्चिम, गंगा के दक्षिण, राजमहल के उत्तर। राजधानी चम्पा (मुंगेर के निकट, भागलपुर) । मन्दार पर्वत समुद्र मन्थन अर्थात् झारखण्ड में देव और अफ्रीका के असुरों द्वारा सम्मिलित खनन का केन्द्र था। इसके अधीक्षक वासुकि नाग थे, जिनका स्थन वासुकिनाथ है। कर्ण यहां का राजा था। (६) पुण्ड्र-मिथिला से पूर्व, वर्तमान सहर्षा और पूर्णिया (कोसी प्रमण्डल) तथा उत्तर बंगाल का सिलीगुड़ी। कोसी (कौशिकी) से दुआर (कूचबिहार) तक। राजधानी महास्थान बोग्रा से १० किमी. उत्तर। पर्वतीय भाग-(१) मुद्गार्क-राजमहल का पूर्वोत्तर भाग, सन्थाल परगना का पूर्व भाग, भागलपुर और दक्षिण मुंगेर (मुख्यतः अंग के भाग)। मुद्गगिरि = मुंगेर। (२) अन्तर्गिरि-राजमहल से हजारीबाग तक। (३) बहिर्गिरि-हजारीबाग से दामोदर घाटी तक। (४) करूष-विन्ध्य का पूर्वोत्तर भाग, कैमूर पर्वत का उत्तरी भाग, केन (कर्मनाशा) से पश्चिम। (५) मालवा-मध्य और उत्तरी कर्मनाशा (केन नदी)। ५. विशिष्ट वैदिक शब्द-(१) भोजपुरी-यह प्राचीन काशी राज्य था। काशी अव्यक्त शिव का स्थान था जिसके चतुर्दिक् अग्नि रूप में शिव के ८ रूप प्रकट हुये (८ वसु), इनके स्थान अग्नि-ग्राम (अगियांव) हैं। मूल काशी के चारों तरफ ८ अन्य पुरी थी, कुल ९ पुरियों के लोग नवपुरिया कहलाते थे जो सरयूपारीण (सरयू के पूर्व) ब्राह्मणों का अन्य नाम है। ज्ञान परम्परा के आदिनाथ शिव और यज्ञ भूमि के कारण शिव और यज्ञ से सम्बन्धित शब्द भोजपुरी में अधिक हैं। प्रायः ५० विशिष्ट वैदिक शब्दों में कुछ उदाहरण दिये जाए हैं- (क) रवा-यज्ञ द्वारा जरूरी चीजों का उत्पादन होता है। जो व्यक्ती उपयोगी काम में सक्षम है उसमें महादेव का यज्ञ वृषभ रव कर रहा है, अतः वह महादेव जैसापूजनीय है। सबसे पहले पुरु ने प्रयाग में यज्ञ-संस्था बनायी थी (विष्णु पुराण, ४/६/३-४)। अतः उनको सम्मान के लिये पुरुरवा कहा गया। अतः प्रयाग से सोन-संगम तक आज भी सम्मान के लिये रवा कहते हैं। जो आदमी किसी काम लायक नहीं है, वह अन-रवा = अनेरिया (बेकार) है। सहयज्ञाः प्रजाः सृष्ट्वा पुरोवाच प्रजापतिः। अनेन प्रसविष्यध्वमेषवोऽस्त्विष्टकामधुक्। (गीता ३/१०) चत्वारि शृङ्गा त्रयो अस्य पादा द्वे शीर्षे सप्त हस्तासो अस्य। त्रिधा बद्धो वृषभो रोरवीति, महोदेवो मर्त्यां आविवेश॥ (ऋक् ४/५८/३) पुरुरवा बहुधा रोरूयते (यास्क का निरुक्त १०/४६-४७)। महे यत्त्वा पुरूरवो रणायावर्धयन्दस्यु- हत्याय देवाः। (ऋक् १०/९५/७) (ख) बाटे (वर्त्तते)-केवल भोजपुरी में वर्त्तते (बाटे) का प्रयोग होता है, बाकी भारत में अस्ति। पश्चिम में अस्ति से 'आहे, है' हो गया। पूर्व में अस्ति का अछि हो गया। अंग्रेजी में अस्ति से इस्ट (इज) हुआ। इसका कारण है कि जैसे आकाश में हिरण्यगभ से ५ महाभूत और जीवन का विकास हुआ, उसी प्रकार पृथ्वी पर ज्ञान का केन्द्र भारत था और भारत की राजधानी दिवोदास काल में काशी थी। इसका प्रतीक पूजा में कलश होता है जो ५ महाभूत रूप में पूर्ण विश्व है। जीवन आरम्भ रूप में आम के पल्लव हैं तथा हिरण्यगर्भ के प्रतीक रूप में स्वर्ण (या ताम्र) पैसा डालकर इसका मन्त्र पढ़ते हैं- हिरण्यगर्भः समवर्तताग्रे भूतस्य जातः पतिरेक आसीत्। स दाधार पृथिवीं द्यामुतेमां कस्मै देवाय हविषा विधेम॥ (ऋक् १०/१२१/१, वाजसनेयी यजुर्वेद १३/४, २३/१, अथर्व ४/२/७) हिरण्य गर्भ क्षेत्र के रूप में काशी है (काश = दीप्ति), परिधि से बाहर निकलने पर प्रकाश। इसकी पूर्व सीमा पर सोन नद का नाम हिरण्यबाहु। यहां समवर्तत हुआ था अतः वर्तते का प्रयोग, भूतों के पति शिव का केन्द्रीय आम्नाय। (ग) भोजपुरी-किसी स्थान में अन्न आदि के उत्पादन द्वारा पालन करने वाला भोज है। पूरे भारत पर शासन करने वाला सम्राट् है, संचार बाधा दूर करने वाला चक्रवर्त्ती है। उसके ऊपर कई देशों में प्रभुत्व वाला इन्द्र तथा महाद्वीप पर प्रभुत्व वाला महेन्द्र है। विश्व प्रभुत्व वाला विराट् है, ज्ञान का प्रभाव ब्रह्मा, बल का प्रभाव विष्णु। यहां का दिवोदास भोज्य राजा था, अतः यह भोजपुर था। महाभारत में भी यादवों के ५ गणों में एक भोज है, कंस को भी भोजराज कहा गया है। यह सदा से अन्न से सम्पन्न था। भागवत पुराण, स्कन्ध १०, अध्याय १-श्लाघ्नीय गुणः शूरैर्भवान्भोजयशस्करः॥३७॥ उग्रसेनं च पितरं यदु-भोजान्धकाधिपम्॥६९॥ इमे भोजा अङ्गिरसो विरूपा दिवस्पुत्रासो असुरस्य वीराः। विश्वामित्राय ददतो मघानि सहस्रसावे प्रतिरन्तआयुः॥ (ऋक्३ /५३/७) नभो जामम्रुर्नन्यर्थमीयुर्नरिष्यन्ति न व्यथन्ते ह भोजाः। इदं यद्विश्वं भुवनं स्वश्चैतत्सर्वं दक्षिणैभ्योददाति॥ (ऋक् १०/१०७/८) (इसी भाव में-आरा जिला घर बा कौन बात के डर बा?) (घ) कठोपनिषद्-अन्न क्षेत्र होने से यहां के ऋषि को वाजश्रवा कहा है (वाज = अन्न, बल, घोड़ा), श्रवा = उत्पादन। वे दान में बूढ़ी गायें दे रहे थे जिसका उनके पुत्र नचिकेता ने विरोध किया। चिकेत = स्पष्ट, जिसे स्पष्ट ज्ञान नहीं है और उसकी खोज में लगा है वह नचिकेता है। या ज्ञान की विभिन्न शाखाओं में सम्बन्ध जानने वाला। वह ज्ञान के लिये वैवस्वत यम के पास संयमनी पुरी (यमन, अम्मान, मृत सागर, राजधानी सना) गये थे। मनुष्य के २ लक्ष्य हैं प्रेय (तात्कालिक लाभ) और श्रेय (स्थायी लाभ)। भारत में श्रेय आदर्श है अतः सम्मान के लिये श्री कहते हैं। पश्चिम एसिया में प्रेय आदर्श था अतः वहां पूज्य को पीर कहते हैं जो हमारा प्रेय दे सके। नचिकेता पीर से मिलने गया था जो उसे सोना-चान्दी आदि देना चाहते थे, अतः उसके स्थान का नाम पीरो हुआ। वहां की मुद्रा दीनार थी (दीनता दूर करने के लिये), भारत में इस शब्द का प्रयोग मुस्लिम शासन में भी नहीं हुआ है, पर यहां से नचिकेता पीर के पास गया था, अतः यहां का मुख्य बाजार दिनारा कहलाता है। प्रेय को छोड़ कर श्रेय मार्ग लेना धीर के लिये ही सम्भव है, जिसे भोजपुरी में कहते हैं 'संपरता' जो कठोपनिषद् से आया है-श्रेयश्च प्रेयश्च मनुष्यमेतत्, तौ सम्परीत्य विविनक्ति धीरः॥ (कठोपनिषद् १/२/२) (२) मैथिली-इसमें भी प्रायः ५० विशिष्ट वैदिक शब्द हैं जिनमें खोज की जरूरत है। कृषि सूक्त से सम्बन्धित शब्द इसमें हैं- (क) अहां के-शक्ति रूप में देवनागरी के ५० वर्ण ही मातृका हैं क्योंकि इनसे वाङ्मय रूप विश्व उत्पन्न होता है। मातृ-पूजा में इन्हीं वर्णों का न्यास शरीर के विभिन्न विन्दुओं पर किया जात है। असे ह तक शरीर है, उसे जानने वाला आत्मा क्षेत्रज्ञ है (गीत अध्याय १३), अतः क्ष, त्र, ज्ञ-ये ३ अक्षर बाद में जोड़ते हैं। मातृका रूप शक्ति का स्वरूप होने के कारण मनुष्य को सम्मान के लिये अहं (अहां) कहते हैं अथात् अ से ह तक मातृका। (ख) सबसे अधिक खेती का विकास मिथिला में हुआ, अतः वहां के शासक को जनक (उत्पादक, पिता) कहते थे। वह स्वयं भी खेती करते थे। वहां केवल खेती थी, वन नहीं था। खेती में सभी वृक्ष घास या दर्भ हैं, अतः इस क्षेत्र को दर्भङ्गा कहते हैं। भूमि से उत्पादित वस्तु सीता है, अतः जनक की पुत्री को भूमि-सुता तथा सीता कहा गया। इसका भाग लेकर इन्द्र (राजा) प्रजा का पालन तथा रक्षण करता है। इसका विस्तृत वर्णन अथर्ववेद के कृषि (३/१७) तथा दर्भ (१९/२८-३०,३२-३३) सूक्तों में है- अथर्व (३/१७)-इन्द्रः सीतां निगृह्णातु तां पूषाभिरक्षतु। सा नः पयस्वती दुहामुत्तरमुत्तरां समाम्॥४॥ शुनं सुफाला वितुदन्तु भूमिं शुनं कीनाशा अनुयन्तु वाहान्। शुनासीरा (इन्द्र) हविषा तोशमाना सुपिप्पला ओषधीः कर्तमस्मै॥५॥ सीते वन्दामहे त्वार्वाची सुभगे भव। यथा नः सुमना असो यथा नः सुफला भवः॥८॥ घृतेन सीता मधुना समक्ता विश्वैर्देवैरनुमतामरुद्भिः। सा नः सीता पयसाभ्याववृत्स्वोर्जस्वती घृतवत्पिन्वमाना॥९॥ अथर्व (१९/२८)-घर्म (घाम = धूप) इवाभि तपन्दर्भ द्विषतो नितपन्मणे। अथर्व (१९/२८)-तीक्ष्णो राजा विषासही रक्षोहा विश्व चर्षणिः॥४॥ = राजा रक्षा तथा चर्षण (चास = खेती) करता है। (ग) झा-शक्ति के ९ रूपों की दुर्गा रूप में पूजा होती है। नव दुर्गा पूजक को झा कहते हैं क्योंकि झ नवम व्यञ्जन वर्ण है। (३) मगही के शब्द विष्णु सूक्त में अंगिका के शब्द सूर्य सूक्त में होने चाहिए। इनकी खोज बाकी है। (४) खनिज सम्बन्धी शब्द स्वभावतः वहीं होंगे जहां खनिज मिलते हैं। बलि ने युद्ध के डर से वामन विष्णु को इन्द्र की त्रिलोकी लौटा दी थी। पर कई असुर सन्तुष्ट नहीं थे और युद्ध चलते रहे। कूर्म अवतार विष्णु ने समझाया कि यदि उत्पादन नहीं हो तो युद्ध से कुछ लूट नहीं सकते अतः देव-असुर दोनों खनिज सम्पत्ति के दोहन के लिये राजी हो गये (१६०० ई.पू.)। असुर भूमि के भीतर खोदने में कुशल थे अतः खान के नीचे वे गये जिसको वासुकि का गर्म मुख कहा गया है। देव लोग विरल धातुओं के निष्कासन में कुशल थे अतः जिम्बाबवे का सोना (जाम्बूनद स्वर्ण) तथा मेक्सिको की चान्दी (माक्षिकः = चान्दी) निकालने के लिये देवता गये। बाद में इसी असुर इलाके के यवनों ने भारत पर आक्रमण कर राजा बाहु को मार दिया (मेगास्थनीज के अनुसार ६७७७ ई.पू.)। प्रायः १५ वर्ष बाद सगर ने आक्रमणकारी बाकस (डायोनिसस) को भगाया और यवनों को ग्रीस जा पड़ा जिसके बाद उसका नाम यूनान हुआ। अतः आज भी खनिज कर्म वाले असुरों की कई उपाधि वही हैं जो ग्रीक भाषा में खनिजों के नाम हैं- (क) मुण्डा-मुण्ड लौह खनिज (पिण्ड) है और उसका चूर्ण रूप मुर (मुर्रम) है। पश्चिम में नरकासुर की राजधानी लोहे से घिरी थी अतः उसे मुर कहते थे। वाल्मीकि रामायण (किष्किन्धा काण्ड, अध्याय ३९) के अनुसार यहीं पर विष्णु का सुदर्शन चक्र बना था। आज भी यहां के लोगों को मूर ही कहते हैं। लोहे की खान में काम करने वालों को मुण्डा कहते हैं। मुण्ड भाग में अथर्व वेद की शाखा मुण्डक थी जिसे पढ़ने वाले ब्राह्मणों की उपाधि भी मुण्ड है। ) (ख) हंसदा-हंस-पद का अर्थ पारद का चूर्ण या सिन्दूर है। पारद के शोधन में लगे व्यक्ति या खनिज से मिट्टी आदि साफ करने वाले हंसदा हैं। (ग) खालको-ग्रीक में खालको का अर्थ ताम्बा है। आज भी ताम्बा का मुख्य अयस्क खालको (चालको) पाइराइट कहलाता है। (घ) ओराम-ग्रीक में औरम का अर्थ सोना है। (ङ) कर्कटा-ज्यामिति में चित्र बनाने के कम्पास को कर्कट कहते थे। इसका नक्शा (नक्षत्र देख कर बनता है) बनाने में प्रयोग है, अतः नकशा बना कर कहां खनिज मिल सकता है उसका निर्धारण करने वाले को करकटा कहते थे। पूरे झारखण्ड प्रदेश को ही कर्क-खण्ड कहते थे (महाभारत, ३/२५५/७)। कर्क रेखा इसकी उत्तरी सीमा पर है, पाकिस्तान के करांची का नाम भी इसी कारण है। (च) किस्कू-कौटिल्य के अर्थशास्त्र में यह वजन की एक माप है। भरद्वाज के वैमानिक रहस्य में यह ताप की इकाई है। यह् उसी प्रकार है जैसे आधुनिक विज्ञान में ताप की इकाई मात्रा की इकाई से सम्बन्धित है (१ ग्राम जल ताप १० सेल्सिअस बढ़ाने के लिये आवश्यक ताप कैलोरी है)। लोहा बनाने के लिये धमन भट्टी को भी किस्कू कहते थे, तथा इसमें काम करने वाले भी किस्कू हुए। (छ) टोप्पो-टोपाज रत्न निकालनेवाले। (ज) सिंकू-टिन को ग्रीक में स्टैनम तथा उसके भस्म को स्टैनिक कहते हैं। (झ) मिंज-मीन सदा जल में रहती है। अयस्क धोकर साफ करनेवाले को मीन (मिंज) कहते थे-दोनों का अर्थ मछली है। (ञ) कण्डूलना-ऊपर दिखाया गया है कि पत्थर से सोना खोदकर निकालने वाले कण्डूलना हैं। उस से धातु निकालने वाले ओराम हैं। (ट) हेम्ब्रम-संस्कृत में हेम का अर्थ है सोना, विशेषकर उससे बने गहने। हिम के विशेषण रूप में हेम या हैम का अर्थ बर्फ़ भी है। हेमसार तूतिया है। किसी भी सुनहरे रंग की चीज को हेम या हैम कहते हैं। सिन्दूर भी हैम है, इसकी मूल धातु को ग्रीक में हाईग्रेरिअम कहते हैं जो सम्भवतः हेम्ब्रम का मूल है। (ठ) एक्का या कच्छप-दोनों का अर्थ कछुआ है। वैसे तो पूरे खनिज क्षेत्र का ही आकार कछुए जैसा है, जिसके कारण समुद्र मन्थन का आधार कूर्म कहा गया। पर खान के भीतर गुफा को बचाने के लिये ऊपर आधार दिया जाता है, नहीं तो मिट्टी गिरने से वह बन्द हो जायेगा। खान गुफा की दीवाल तथा छत बनाने वाले एक्का या कच्छप हैं।✍🏻अरुण उपाध्याय दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
तीन दिवसीय ज्वेलरी प्रदर्शनी का समापन Posted: 23 Mar 2021 09:21 AM PDT तीन दिवसीय ज्वेलरी प्रदर्शनी का समापनपटना/23 मार्च 2021। राजधानी में लगे तीन दिवसीय ज्वेलरी प्रदर्शनी का मंगलवार को समापन हो गया। इस प्रदर्शनी में आए आभूषण उद्यमियों ने बिहार एसएसवीएएसस की व्यवस्था की सराहना की और फिर से नवंबर में लगनेवाले ज्वेलरी प्रदर्शनी में आने का वादा किया। प्रदर्शनी में आए प्रतिभागियों को संगठन की राष्ट्रीय अध्यक्ष किरण वर्मा, प्रदेश अध्यक्ष अरुण कुमार वर्मा व डेहरी से एनडीए प्रत्याशी जदयू नेता रिंकु सोनी के द्वारा प्रतीक चिन्ह व प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया गया। इस मौके पर प्रदर्शनी के आयोजक व एसएसवीएएसएस के अध्यक्ष अरुण कुमार वर्मा ने कहा कि उनके संगठन के द्वारा जुलाई महीने में वनारसी तथा नवंबर महीने में पटना में ज्वेलरी प्रदर्शनी का आयोजन किया गया है। जहां इस बार से भी अच्छी सेवा प्रदान की जाएगी। उन्होंने दूसरे प्रदेश से आए प्रतिभागियों के प्रति आभार जताते हुए कहा कि उनकी तरफ से कोरोना गाइडलाइन के कारण आतिथ्य में हुई परेशानी के लिए वे क्षमाप्रार्थी है और व्यापारियों के सहयोग के लिए वे उनका आभारी हैं। इस मौके पर विक्रमादित्य प्रसाद विक्रम, रामवृक्ष प्रसाद, राजेश कुमार वर्मा, अमरजीत वर्मा, ईशा स्वर्णकार सहित कई लोग मौजूद थे। दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
Posted: 23 Mar 2021 09:18 AM PDT महामहिम राज्यपाल ने आज शहीद-ए-आजम भगत सिंह के 'शहादत-दिवस' पर उनका श्रद्धापूर्ण नमन किया तथा प्रख्यात समाजवादी नेता व चिन्तक डाॅ॰ राममनोहर लोहिया की जयन्ती के अवसर पर उनकी तस्वीर पर माल्यार्पण कियामहामहिम राज्यपाल श्री फागू चैहान ने शहीद-ए-आजम भगत सिंह के 'शहादत दिवस' के अवसर पर आज उनका श्रद्धापूर्ण स्मरण किया तथा प्रख्यात समाजवादी नेता व चिन्तक डाॅ॰ राममनोहर लोहिया की जयंती के उपलक्ष्य में उन्हंे अपना सादर नमन निवेदित किया। राज्यपाल श्री चैहान ने राजभवन में आयोजित एक कार्यक्रम में शहीद-ए-आजम भगत सिंह तथा प्रख्यात समाजवादी नेता स्व॰ डाॅ॰ राममनोहर लोहिया की तस्वीरों पर माल्यार्पण कर दोनों महापुरूषों को अपना सादर नमन निवेदित किया। कार्यक्रम में शहीद-ए-आजम भगत सिंह के 'शहादत दिवस' के अवसर पर दो मिनट का मौन भी रखा गया। कार्यक्रम में राज्यपाल सचिवालय के अधिकारियों एवं कर्मियों ने भी अमर शहीद भगत सिंह तथा प्रख्यात समाजवादी नेता स्व॰ डाॅ॰ राममनोहर लोहिया की तस्वीरों पर पुष्पांजलि अर्पित कर अपनी श्रद्धा निवेदित की। दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
आज़ादी का अमृत महोत्सव, इंडिया@75 पांच दिवसीय फोटो प्रदर्शनी भागलपुर में शुरू Posted: 23 Mar 2021 09:11 AM PDT आज़ादी का अमृत महोत्सव, इंडिया@75 पांच दिवसीय फोटो प्रदर्शनी भागलपुर में शुरूभारत सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के क्षेत्रीय लोक संपर्क एवं संचार ब्यूरो (एफओबी) भागलपुर इकाई द्वारा आयोजित "आजादी का अमृत महोत्सव इंडिया@75" फोटो प्रदर्शनी का उद्घाटन तिलका मांझी भागलपुर विश्वविद्यालय के टीएनबी कालेज परिसर में आज कॉलेज के प्राचार्य डॉ. संजय कुमार चौधरी द्वारा किया गया। इस अवसर पर उन्होंने भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की प्रतिमा पर श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए अमर शहीदों को याद किया। इस अवसर पर कॉलेज के विभिन्न विभागों के शिक्षक तथा छात्र-छात्राएं भी उपस्थित रहे। फोटो प्रदर्शनी को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम, महात्मा गांधी, सुभाष चंद्र बोस, सरदार वल्लभभाई पटेल आदि विभिन्न खंडों में बांटकर प्रदर्शित किया गया है। इसके साथ ही बिहार में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ी घटनाओं, महापुरुषों और गांधीजी से संबंधित तस्वीरों को भी प्रदर्शित किया गया है। इस फोटो प्रदर्शनी में भारत की आजादी से जुड़ी कई दुर्लभ तस्वीरों को भी प्रदर्शित किया गया है। उद्घाटन के मौके पर मंत्रालय की सांस्कृतिक टीम आशी कला केंद्र द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम भी प्रस्तुत किया गया, जिसे देखने के लिए बड़ी संख्या में लोग उपस्थित थे। 23 से 27 मार्च तक चलने वाली यह फोटो प्रदर्शनी पूरी तरह नि:शुल्क है। स्कूल- कालेज के विद्यार्थियों के साथ-साथ आम जनता भी प्रदर्शनी को देखकर आज़ादी के नायकों की गाथा को याद कर सकते हैं। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के क्षेत्रीय प्रचार अधिकारी अभिषेक कुमार ने बताया कि भारत सरकार द्वारा आजादी का अमृत महोत्सव देश के सभी स्कूलों, कॉलेजों, गांवों, शहरों और संस्थानों में भी आयोजित होंगे। भागलपुर में अमृत महोत्सव शहीद दिवस के दिन आरम्भ किया गया है। इस आयोजन का संदेश यही है कि आज़ादी के नायकों की वीरता और बलिदान को जन जन तक पहुँचाया जाए। हम सब मिलकर देश को आगे ले जाएं। इसी सोच और इसी संकल्प के साथ हम देश का एक नया रूप दुनिया के सामने लाने के लिए इस कार्यक्रम का आयोजन कर रहे हैं। दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
Posted: 23 Mar 2021 09:07 AM PDT महामहिम राज्यपाल ने मशहूर सिने अभिनेता श्री मनोज वाजपेयी को 'सर्वश्रेष्ठ अभिनेता' का नेशनल अवार्ड दिए जाने की घोषणा पर उन्हें बधाई दीमहामहिम राज्यपाल श्री फागू चैहान ने मशहूर सिने अभिनेता श्री मनोज वाजपेयी को 'राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार- 2021' की घोषणा में फिल्म 'भोंसले' में किए गये उनके अभिनय के लिए 'सर्वश्रेष्ठ अभिनेता' का पुरस्कार दिये जाने पर उन्हें बधाई एवं शुभकामनाएँ दी है। राज्यपाल ने स्व॰ सुशांत सिंह राजपूत अभिनीत फिल्म 'छिछोरे' को सर्वश्रेष्ठ हिन्दी फिल्म का 'राष्ट्रीय पुरस्कार' दिए जाने की घोषणा पर भी अपनी खुशी जाहिर की है। राज्यपाल ने कहा है कि एक प्रतिभावान बिहारी युवा फिल्म अभिनेता स्व॰ सुशांत की फिल्म को पुरस्कृत करने के निर्णय से बिहार गौरवान्वित हुआ है। राज्यपाल ने कहा है कि यह स्व॰ सुशांत के पिता एवं परिजनों सहित पूरे बिहार के लिए गर्व के क्षण हंै। राज्यपाल श्री चैहान ने कहा है कि बिहारवंशी जब 'बिहार दिवस' (22 मार्च) की खुशियाँ मना रहे थे, 'राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार' की घोषणा में दोनों बिहारी फिल्मी प्रतिभाओं को उनके कुशल अभिनय के लिए मिले सम्मान से बिहार का माथा गर्व से और ऊँचा उठ गया। राज्यपाल ने इस बार राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त अभिनेत्री कंगना रनौत सहित पुरस्कार-प्राप्तकत्र्ता अन्य सभी फिल्मी प्रतिभाओं को भी बधाई दी है। दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
Posted: 23 Mar 2021 09:01 AM PDT शांति समिति की बैठक• होली और शबे बारात सौहार्द के साथ मनाने की अपील, गड़बड़ी करने वालों पर होगी कार्रवाई
खुसरूपुर सेे कन्हैया पांडेय की खास रिपोर्ट I खुसरूपुर मंगलवार को प्रखंड परिसर में होली शव- ए बारात को लेकर शांति समिति की बैठक की गई I बैठक को संबोधित करते हुए प्रखंड विकास पदाधिकारी आनंद कुमार ने कहा कि कोरोना संक्रमण का दौर अभी जारी है I इसलिए आप सभी शांति एवं सौहार्द के माहौल में इन दोनों त्योहारों को मनाएं I होली रंगों का त्योहार है I वहीं दूसरी ओर मुस्लिम भाइयों का शव-ए बारात पर्व भी है I इसी सभी सौहार्द पूर्वक मनाएं I इस बार कोरोना संक्रमण को लेकर सार्वजनिक रूप से होली मिलन पर पाबंदी है I थाना अध्यक्ष चंद्रभान ने कहा कि पंचायत चुनाव और आगामी पर्व त्यौहार को लेकर पुलिस प्रशासन पूरी तरह से चौकस है I पर्व के दौरान किसी की धार्मिक भावना को ठेस ना पहुंचे, इसका पूरा ध्यान रखें I इस पर्व को लेकर नशेड़ी एवं शराब माफियाओं पर प्रशासन की विशेष नजर रहेगी I वहीं दूसरी ओर अंचला अधिकारी संजीव कुमार ने यह भी कहा कि इन दोनों पर्वों के अवसर पर डीजे के उपयोग पर पूर्ण पाबंदी लगी रहेगी I इस मौके पर सहायक थाना अध्यक्ष अखिलेश सिंह एवं जनप्रतिनिधि लोग मौजूद थे I खुसरूपुर प्रखंड सभागार में होली एवं सव-ए बारात को लेकर शांति समिति की हुई बैठक पदाधिकारी गण मौजूद रहे I दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
मुख्यमंत्री ने डाॅ0 राम मनोहर लोहिया जी की जयंती के अवसर पर नमन कर अपनी श्रद्धांजलि दी Posted: 23 Mar 2021 08:57 AM PDT मुख्यमंत्री ने डाॅ0 राम मनोहर लोहिया जी की जयंती के अवसर पर नमन कर अपनी श्रद्धांजलि दीपटना, 23 मार्च 2021:- मुख्यमंत्री श्री नीतीष कुमार ने डाॅ0 राम मनोहर लोहिया जी की जयंती के अवसर पर 01 अणे मार्ग स्थित लोक संवाद में डाॅ0 राम मनोहर लोहिया जी के तैलचित्र पर माल्यार्पण कर उन्हें नमन किया एवं अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की। इस अवसर पर भवन निर्माण मंत्री श्री अषोक चैधरी ने भी अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की। दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
मुख्यमंत्री ने शहीद-ए-आजम सरदार भगत सिंह के शहादत दिवस पर उन्हें नमन कर अपनी श्रद्धांजलि दी Posted: 23 Mar 2021 08:52 AM PDT मुख्यमंत्री ने शहीद-ए-आजम सरदार भगत सिंह के शहादत दिवस पर उन्हें नमन कर अपनी श्रद्धांजलि दीपटना, 23 मार्च 2021:- मुख्यमंत्री श्री नीतीष कुमार ने शहीद-ए-आजम सरदार भगत सिंह के शहादत दिवस पर 01 अणे मार्ग स्थित नेक संवाद में सरदार भगत सिंह जी के तैलचित्र पर माल्यार्पण कर उन्हें नमन किया एवं अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की। इस अवसर पर भवन निर्माण मंत्री श्री अषोक चैधरी ने भी अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की। दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com |
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