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Tuesday, July 27, 2021

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महर्षि अरविंद घोष की भारत भक्ति

Posted: 26 Jul 2021 09:26 PM PDT



महर्षि अरविंद घोष के कई रूप हैं। भारत भक्त अरविंद, क्रांतिकारी अरविंद, विचारक अरविंद, आध्यात्मिक अरविंद। हममें से कई लोगों ने पूर्व प्रधान मंत्री स्व. अटल बिहारी वाजपेई जी का वह भाषण सुना होगा - भारत एक जमीन का टुकड़ा नहीं है, वह जीता जागता राष्ट्र पुरुष है, हिमालय जिसका मस्तक है, गौरीशंकर शिखा है, कश्मीर जिसका किरीट है आदि आदि। मुझे लगता है कि वस्तुतः उस वक्तव्य की प्रेरणा उन्हें महर्षि अरविंद से प्राप्त हुई होगी। आईये महर्षि अरविंदो घोष द्वारा वर्णित भारत के स्वरुप को मन मंदिर में बसाएं।

भारत माता, हाँ जिनका स्थूल रूप भारतवर्ष की भूमि है, पर जो अपने दिव्य रूप में साक्षात भगवती शक्ति है, दुर्गा है, अन्नपूर्णा है, जगज्जननी है, वह भारतमाता।

सहस्त्रों शताब्दियों से जो पृथ्वी के ह्रदय रूप में प्रतिष्ठित है, जिसने लक्ष लक्ष ऋषियों, संतों, दार्शनिकों, भक्तों, योगियों, कवियों, वैज्ञानिकों, कलाकरों, वीरों, सम्राटों इत्यादि को जन्म देकर विश्व को सजाया संवारा है, प्रगति पथ पर बढ़ाया है, वह भारत माता।

जिसने विश्व भर को विष के प्रत्युत्तर में अमृत, घृणा के प्रत्युत्तर में प्रेम, अत्याचार के प्रत्युत्तर में करुणा, भीरुता के प्रत्युत्तर में साहस, दुर्बलता के प्रत्युत्तर में शक्ति और अज्ञान के प्रत्युत्तर में ज्ञान दिया, वह भारतमाता।

हिमालय जिसका स्वर्ण मुकुट है, हिन्द महासागर जिसके चरण पखारता है, हरितांचल जिसकी हरित साड़ी है,गंगा यमुना सिंधु की जलधाराएं जिसकी मुक्ता मालाएं हैं, सूर्य और चंद्र जिसकी आरती उतारते हैं तथा षडऋतु के सरगम पर प्रकृति स्वयं जिसकी वंदना के गीत गाती है, वह भारतमाता।

जिसने भौतिकता को आत्मसात करने वाली परिपूर्ण आध्यात्मिकता की गंगा को प्रवाहित करने वाले तत्व साक्षात्कारी महापुरुषों की अखंड परंपरा प्रगट की, जिसकी गोदी में खेलने को देवता भी ललकते हैं, स्वयं भगवान् ने जिसको बार बार जननी कहा, वह भारतमाता।

जिसके पुत्रों ने परब्रह्म के दिव्य रूप को देखा और उसकी झलक दिखाकर विश्व को मुग्ध कर लिया, जिसने मानवों को "अमृतस्य पुत्राः" की अनुभूति दी, जिसने विश्व की आध्यात्मिक प्रयोगशाला के रूप में सभ्यता के प्रारम्भ से ही कार्य किया है, वह भारतमाता।

जो विश्व को आध्यात्मिकता के रंग में रंगने के लिए सुदीर्घ काल से सतत प्रयत्नशील है, पृथ्वी पर दिव्य जीवन की स्थापना ही जिसका जीवनोद्देश्य है, जिसकी दिव्य मालिका के रत्न ही एक एक महापुरुष के रूप में विश्व को अपनी ज्योति से चमत्कृत करते रहे हैं, वह भारतमाता।

जिसका जयघोष वन्देमातरम एक महान मन्त्र है, जिसकी उपासना अभ्युदय और निश्रेयस को साधने का वीरव्रत है, जिसकी साधना सफलता है, जिसके ध्यान में स्वयं को भूलकर मग्न हो देशभक्ति है, जिसकी कृपा सात्विकता की वर्षा है, जिसका स्पर्श मात्र जड़वाद के विरुद्ध कवच है, जिसका अस्तित्व विश्व की आशा है, जिसका इतिहास प्रकाश का तालबद्ध संगीत है, जिसका निश्वास वेद हैं, वह ज्योतिर्मयी भारतमाता।

उस भारत माता की जय हो, माता की जय हो, वन्देमातरम।

गिरते पड़ते जिया हुमांयू और उसकी कथित राखी

Posted: 26 Jul 2021 08:39 PM PDT



२६ दिसंबर 1530 को बाबर की मृत्यु हुई। उस समय तक उसे नहीं लगता था कि भारत में उसके वंशज लम्बे समय तक टिके रह पायेंगे, इसलिए उसने मृत्यु पूर्व ही इच्छा जताई थी कि उसे काबुल ले जाकर दफनाया जाए। बैसा ही हुआ भी। उसकी मौत के बाद उसका बेटा हुमांयू गद्दी पर बैठा, किन्तु उसकी राह आसान कहाँ थी। बाबर के प्रधान मंत्री निजामुद्दीन अली मोहम्मद खलीफा ने हुमांयू को अयोग्य मानकर उस के स्थान पर बाबर के बहनोई मेंहदी ख्वाजा की ताजपोशी करना तय किया। लेकिन तभी एक छोटी सी घटना ने सब कुछ उलट पुलट कर दिया। हुआ कुछ यूं कि मेहंदी ख्वाजा जब अपने किसी विश्वस्त से प्रधान मंत्री को विश्वासघाती कह रहा था, उसके शब्द प्रधानमंत्री के पिता ने सुन लिए, और इस प्रकार बिना कुछ किये धरे हुमांयू का रास्ता साफ़ हो गया और ३० दिसंबर 1530 को हुमांयू ने सत्ता संभाली।उस समय लोदी वंश का महमूद लोदी और अफगान शेर खां ही नहीं तो बंगाल का नुसरत शाह और गुजरात का बहादुर शाह भी उसके धुर विरोधी थे ही, मुग़ल राजवंश के भी कई लोग स्वयं सत्ता पर काबिज होना चाहते थे। उसके अपने भाई कामरान, असकरी और हिन्दाल भी यही महत्वाकांक्षा पाले हुए थे। यह भी ध्यान देने योग्य तथ्य है कि दिसंबर 1530 में गद्दी पर बैठे हुमांयू को कालिंजर में अफगानों के हाथों नीचा देखना पड़ा तो चुनार में शेर खान सूरी से समझौते को विवश होना पड़ा। उसके बाद 1934 आते आते शेर खां शेरशाह सूरी के नाम से लगभग पूरे बिहार पर काबिज हो गया। इस सबसे बेखबर हुमांयू आगरा में रंगरेलियां मनाता रहा।
यह वही दौर था जब गुजरात के बहादुर शाह ने मेवाड़ पर आक्रमण किया और इतिहासकारों के अनुसार महारानी कर्णावती ने हुमांयू से मदद मांगी। इतिहासकार गपोड़ों ने तो यहाँ तक लिखा कि उन्होंने राखी भेजकर उसे अपना भाई बनाया। यह कैसा भाई था, जो सारंगपुर पहुंचकर इंतज़ार करता रहा कि मेवाड़ और गुजरात के बहादुर शाह लड़लड़ कर कब कमजोर हों और कब वह इन दोनों इलाकों पर अपना प्रभुत्व कायम कर सके। कुछ लोगों ने तो लिखा भी कि उसे काफिर हिन्दुओं से कोई सहानुभूति नहीं थी। इसलिए मेवाड़ के हिन्दुओं और गुजरात के मुस्लिम शासक के संघर्ष को वह दूर से देखता भर रहा। अंततः 8 मार्च १५३५ को मेवाड़ पराजित हुआ और एक बार फिर राजपूत ललनाओं ने जौहर किया चित्तौड़ तीन दिन तक लूट खसोट का सामना करता रहा। 18 वर्षीय राणा विक्रमादित्य को उनके वफादार सरदार बचाकर निकाल ले गए और कुछ समय बाद ही इन शूरमाओं ने चित्तौड़ वापस भी ले लिया। आगे की कहानी तो हम सब जानते ही हैं कि किस प्रकार दासी पुत्र बनवीर ने उनकी ह्त्या की और पन्ना धाय ने अपने बेटे का बलिदान देकर उनके छोटे भाई 14 वर्षीय उदय सिंह को बचाया।
कुल कथानक का लब्बोलुआब यह कि कहाँ की राखी और कहाँ के भाई। हुमांयू एक अयोग्य, नासमझ और अय्यास व्यक्ति था, वह युद्ध क्षेत्र में भी अपना हरम साथ लेकर चलता था। 26 जून 1539 को शेरशाह सूरी ने आठ हजार मुग़ल सैनिकों को मारकर हुमांयू को एक मशक के सहारे नदी पार करने और भागने पर विवश कर दिया, उसकी दो बेगमें और एक लड़की भी उसके साथ नदी पार करने के प्रयास में डूबकर मर गईं। उसकी पटरानी बेगा बेगम सहित कई मुग़ल महिलायें शेरशाह सूरी द्वारा बंदी बनाई गईं और बाद में उसने उन्हें ससम्मान आगरा पहुँचाया। १५ मई 1540 को कन्नौज के नजदीक भोजपुर नामक स्थान पर हुमांयू की दो लाख की विशाल सेना का विध्वंश करने के बाद शेरशाह सूरी ने 1540 में तो उसे सिंध भागने पर विवश कर दिया, जहाँ अमरकोट के हिन्दू राणा वीरसाल की मदद से उसने पैर जमाये, एक बार फिर बाबर की कर्मभूमि काबुल और कंधार का रुख किया।
यहाँ के कुछ प्रसंगों का उल्लेख करते हुए कथानक को समाप्त करते हैं। फारस के एक शिया धर्म गुरू मीरबाबा दोस्त की पुत्री हमीदा बेगम से उसने जबरन निकाह किया। इसी हमीदा बेगम से बाद में 15 अक्टूबर 1542 को अकबर का जन्म हुआ। यहाँ भी हुमांयू और उसके भाईयों में झगड़े होते रहे, जिसकी परिणति यह हुई कि 1553 में हुमांयू ने अपने एक भाई कामरान की आखें निकलवा दीं। कामरान और दूसरे भाई असकरी को उसने मक्का भेज दिया, जहाँ बाद में उनका देहांत हो गया। फारस के शाह ने इस शर्त पर उसकी मदद की कि वह शिया मत का प्रचार करेगा। इसी मदद के सहारे हुमांयू ने 23 जुलाई १५५५ को वापस दिल्ली पर अधिकार किया, जहाँ तब तक शेरशाह सूरी के बाद उसके बेटे इस्लाम शाह और उसके बाद हेमचन्द्र विक्रमादित्य का शासन चल रहा था । हेमचन्द्र विक्रमादित्य सम्बन्धी कथानक हम पूर्व में प्रसारित कर चुके हैं, लिंक वीडियो के अंत में देखी जा सकती है। २७ जनवरी 1556 को सीढ़ियों से गिरकर हुमांयू की मौत हो गई। इतिहासकार लेनपूल ने लिखा - हुमांयू गिरते पड़ते इस जीवन से मुक्त हो गया, ठीक बैसे ही जैसे जिंदगी भर वह गिरते पड़ते जिया।

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