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Saturday, August 28, 2021

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नेपाल. : हिमालयी राष्ट्र

Posted: 28 Aug 2021 08:05 AM PDT

नेपाल. : हिमालयी राष्ट्र

सत्येन्द्र कुमार पाठक
दक्षिण एशियाई स्थलरुद्ध राष्ट्र नेपाल है। नेपाल के उत्तर मे तिब्बत और दक्षिण, पूर्व व पश्चिम में भारत अवस्थित है। नेपाल की राजभाषा नेपाली और निवासियों को नेपाली कहा गया है। नेपाल् की राजधानी काठमांडू का राष्ट्रवाक्य: जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी । नेपाल 27°42′N 85°19′E / 27.700°N 85.317°E , भाषा नेपाली राजभाषा नेपाली , खस कुरा से युक्त 21 दिसम्बर, 1768 में बने नेपाल का क्षेत्रफल 14,75,161 वर्ग कि. मि . में जनसंख्या 2011 जनगणना के अनुसार 2,64,94,504 है । विश्व का सबसे ऊँची 14 हिम शृंखलाओं में सर्वोच्च शिखर सागरमाथा एवरेस्ट नेपाल में है। नेपाल की राजधानी काठमांडू में ललीतपुर (पाटन), भक्तपुर, मध्यपुर और किर्तीपुर नगर तथा पोखरा, विराटनगर, धरान, भरतपुर, वीरगंज, महेन्द्रनगर, बुटवल, हेटौडा, भैरहवा, जनकपुर, नेपालगंज, वीरेन्द्रनगर, महेन्द्रनगर है। नेपाली भूभाग पर अठारहवीं सदी में गोरखा के शाह वंशीय राजा पृथ्वी नारायण शाह द्वारा संगठित है । नेपाल' शब्द की व्युत्पत्ति ''ने' का मतलब ऋषि तथा पाल का मतलब गुफा मिलकर बना है। नेपाल की राजधानी काठमांडू 'ने' ऋषि का तपस्या स्थल था। 'ने' मुनि द्वारा पालित होने के कारण इस भूखण्ड का नाम नेपाल पड़ा है। तिब्बती भाषा में 'ने' का अर्थ 'मध्य' और 'पा' का अर्थ 'देश' होता है। तिब्बती लोग 'नेपाल' को 'नेपा' ही कहते हैं। 'नेपाल' और 'नेवार' शब्द की समानता के आधार पर डॉ॰ ग्रियर्सन और यंग ने मूल शब्द से दोनों की व्युत्पत्ति होने का अनुमान किया है। टर्नर ने नेपाल, नेवार, नेपाल दोनों स्थिति को स्वीकार किया है। 'नेपाल' शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम कौटिल्य ने अपने अर्थशास्त्र में किया है। चंद्रगुप्त मौर्य काल में बिहार में मागधी भाषा प्रचलित थी उसमें 'र' का उच्चारण नहीं होता था। सम्राट् अशोक के शिलालेखों में 'राजा' के स्थान पर 'लाजा' शब्द व्यवहार में नेपार, नेबार, नेवार इस प्रकार विकास हुआ है । हिमालय क्षेत्र में 9,000 ई. पू . नेपाल में मानव संस्कृति नव पाषाण युग से है। तिब्बती-बर्माई मूल के लोग नेपाल में 2,500 वर्ष पूर्व आ चुके थे। 5,500 ई .पू . महाभारत काल मेंं जब कुन्ती पुत्र पाँचों पाण्डव स्वर्गलोक की ओर प्रस्थान कर रहे थे । पाण्डुपुत्र भीम ने भगवान महादेव को दर्शन देने हेतु उपासना के बाद भगवान शिवजी ने उन्हे दर्शन एक लिंग के रुप मे दिये जो आज "पशुपतिनाथ ज्योतिर्लिंग " के नाम से जाना जाता है। 1,500 ईसा पूर्व के आसपास हिन्द-आर्यन जातियों ने काठमांडू उपत्यका में प्रवेश किया था । 1,000 ईसा पूर्व में छोटे-छोटे राज्य और राज्य संगठन बनें। नेपाल स्थित जनकपुर में भगवान श्रीरामपत्नी माता सिताजी का जन्म 7,500 ईसा पुर्व हुआ। सिद्धार्थ गौतम (ईसापूर्व 563–483) , शाक्य वंश के राजकुमार का जन्म नेपाल के लुम्बिनी में हुआ था । 250 ईसा क्षेत्र में उत्तर भारत के मौर्य साम्राज्य का प्रभाव पड़ा और बाद में चौथी शताब्दी में गुप्तवंश के अधीन में राज्य हो गया । 5वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में वैशाली के लिच्छवियों के राज्य की स्थापना हुई। सन् 879 से नेवार युग का उदय हुआ । 11वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में दक्षिण भारत से आए चालुक्य साम्राज्य का नेपाल के दक्षिणी भूभाग में रहा हैं। चालुक्यों के राजाओं ने बौद्ध धर्म को छोड़कर हिन्दू धर्म का समर्थन किया और नेपाल में धार्मिक परिवर्तन होने लगा। 13वीं शताब्दी के पूर्वार्ध में संस्कृत शब्द मल्ल का थर वाले वंश का उदय होने लगा। 200 वर्ष में मल्ल राजाओं ने शक्ति एकजुट की। 14वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में देश का बहुत ज्यादा भाग एकीकृत राज्य के अधीन में आ गया। 1482 में राज्य कान्तिपुर, ललितपुर और भक्तपुर प्रदेश हो गया था । 1765 ई . में, गोरखा राजा पृथ्वी नारायण शाह ने नेपाल के असंगठित प्रदेशो पर आधिपत्य के बाद कान्तीपुर, पाटन व भादगाँउ और कांतिपुर के राजाओं को पराजित करने के बाद नेपाल की स्थापना की थी । नेपाल की लम्बाई 800 किलोमीटर और चौड़ाई 200 किलोमीटर का क्षेत्रफल 1,47,516 वर्ग किलोमीटर में नेपाल भौगोलिक रूप से पर्वतीय क्षेत्र, शिवालिक क्षेत्र और तराई क्षेत्र में विभाजित है । नेपाल की नदियों में कोशी, गण्डकी , बागमती और कर्णाली , कमला है । पहाड़ी भूभाग मे 1,000 लेकर 4,000 मीटर तक की ऊँचाई के पर्वत में महाभारत लेख और शिवालिक चुरिया की पर्वत शृंखलाएँ हैं। पहाड़ी क्षेत्र मे ही काठमाण्डू , पोखरा , सुर्खेत के साथ टार, बेसी, पाटन माडी पड़ते है। पहाड़ी क्षेत्र की उपत्यका को छोड़ कर 2,500 मीटर (8,200 फुट) की ऊँचाई पर जन घनत्व कम है। हिमाली क्षेत्र की सबसे ऊँची हिम शृंखला में संसार का सर्वोच्च शिखर, ऐवरेस्ट (सगरमाथा) 8,848 मीटर (29,035 फुट) अवस्थित है। विश्व की 8,000 मीटर से ऊँची 14 चोटियों में से 8 नेपाल की हिमालयी क्षेत्र में पड़ती हैं। सर्वोच्च शिखर कंचनजंघा, शिखर सगरमाथा (एवरेस्ट) नेपाल में अवस्थित है। हिमशिखर मे अन्नपूर्णा श्रखला है। नेपाल के प्रदेशों में प्रदेश नं १ की राजधानी - धनकुटा , प्रदेश नं २ की राजधानी - जनकपुर , बागमती प्रदेश हेटौड की राजधानी - डोरमणी पौडेल , गण्डकी प्रदेश की राजधानी - पोखरा , प्रदेश नं ५ की बुटवल , कर्णाली प्रदेश की विरेन्द्रनगर , तथा गोदावरी की कैलाली तथा नेपाल की काठमाण्डू राजधानी है । नेपाल में बौद्ध पशुपतिनाथ की पूजा आर्यावलोकितेश्वर और सनातन धर्मावलंबी मंजुश्री की उपासना सरस्वती के रूप में करते हैं। नेपाल की समन्वयात्मक संस्कृति लिच्छवि काल से चली आ रही है।
लुंबिनी - लुम्बिनी महात्मा बुद्ध की जन्म स्थली है। यूनेस्को तथा विश्व के सभी बौद्ध सम्प्रदाय महायान, बज्रयान, थेरवाद के अनुसार नेपाल के कपिलवस्तु का लुम्बनी पर युनेस्को का स्मारक , बुद्ध धर्म के सम्प्रयायौं द्वारा निर्मित संस्कृति अनुसार के मन्दिर, गुम्बा, बिहार आदि निर्माण किया गया है। लुम्बनी में सम्राट अशोक द्वारा स्थापित अशोक स्तम्भ पर ब्राह्मी लिपि में प्राकृत भाषा में बुद्ध का जन्म स्थान का शिलापत्र अवस्थित है।
जनकपुर - वाल्मीकीय रामायण का उत्तर कांड का पंचपंचाश: सर्ग के अनुसार इक्ष्वाकु वंशीय राजा निमि के पुत्र मिथि द्वारा मिथिला प्रदेश की राजधानी अपने पिता विदेह जनक के नाम पर जनक नगर बसाया बाद में जनकपुर नगर की स्थापना कर मिथिला की राजधानी जनकपुर रखा गया था । सतयुग में मिथिला के राजा मिथि जनक के वंशज जनकवंश कहलाये है । मिथिला की राजधानी जनकपुर में मिथिला के राजा सीरध्वज जनक की पुत्री सीता का विवाह अयोध्या का राजा दशरथ के पुत्र मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के साथ सम्पन्न हुआ था।
मुक्तिनाथ - मुक्तिनाथ वैष्‍णव सम्प्रदाय के प्रमुख मन्दिरों में से एक है। यह तीर्थस्‍थान शालिग्राम भगवान के लिए प्रसिद्ध है। भारत में बिहार के वाल्मीकि नगर शहर से कुछ दूरी पर जाने पर गण्डक नदी से होते हुए जाने का मार्ग है। दरअसल एक पवित्र पत्‍थर होता है जिसको हिन्दू धर्म में पूजनीय माना जाता है। यह मुख्‍य रूप से नेपाल की ओर प्रवाहित होने वाली काली गण्‍डकी नदी में पाया जाता है। जिस क्षेत्र में मुक्तिनाथ स्थित हैं उसको मुक्तिक्षेत्र' के नाम से जाना जाता हैं। हिन्दू धार्मिक मान्‍यताओं के अनुसार यह वह क्षेत्र है, जहाँ लोगों को मुक्ति या मोक्ष प्राप्‍त होता है। मुक्तिनाथ की यात्रा काफ़ी मुश्किल है। फिर भी हिन्दू धर्मावलम्बी बड़ी संख्‍या में यहाँ तीर्थाटन के लिए आते हैं। यात्रा के दौरान हिमालय पर्वत के एक बड़े हिस्‍से को लाँघना होता है। यह हिन्दू धर्म के दूरस्‍थ तीर्थस्‍थानों में से एक है।
काठमाण्डु नगर से 29 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में छुट्टियाँ बिताने की खूबसूरत जगह ककनी स्थित है। यहाँ से हिमालय का ख़ूबसूरत नजारा देखते ही बनता है। ककनी से गणोश हिमल, गौरीशंकर 7134 मी॰, चौबा भामर 6109 मी॰, मनस्लु 8163 मी॰, हिमालचुली 7893 मी॰, अन्नपूर्णा 8091 मी॰ समेत अनेक पर्वत चोटियों को करीब से देखा जा सकता है।
समुद्र तल से 4360 मी॰ की ऊँचाई पर स्थित गोसाई कुण्ड झील नेपाल के प्रमुख तीर्थस्थलों में से एक है। काठमांडु से 132 किलोमीटर दूर धुंचे से गोसाई कुण्ड पहुँचना सबसे सही विकल्प है। उत्तर में पहाड़ और दक्षिण में विशाल झील इसकी सुन्दरता में चार चाँद लगाते हैं। यहाँ और भी नौ प्रसिद्ध झीलें हैं। जैसे सरस्वती भरव, सौर्य और गणोश कुण्ड आदि।यह प्राचीन नगर काठमाण्डु से 30 किलोमीटर पूर्व अर्निको राजमार्ग काठमाण्डु-कोदारी राजमार्ग के एक ओर बसा है। यहाँ से पूर्व में कयरेलुंग और पश्चिम में हिमालचुली शृंखलाओं के खूबसूरत दृश्यों का आनन्द उठाया जा सकता है।
पशुपतिनाथ मंदिर - भगवान पशुपतिनाथ का यह खूबसूरत मंदिर काठमाण्डु से करीब 5 किलोमीटर उत्तर-पूर्व में स्थित है। बागमती नदी के किनारे इस मन्दिर के साथ और भी मन्दिर बने हुए हैं। विश्मवप्रसिद्ध महाकाव्य "महाभारत " जो महर्षि वेदव्यासद्वारा 5,500 ईसा पुर्व भारतवर्ष मे हुआ। उसीमे कुन्तीपुत्र धर्मराज युधिष्टीर, अर्जुन, भिम, नकुल, सहदेव तथा द्रोपदी जब स्वर्गारोहण कर रहे थे तब वे जिस विशाल पर्वत शृंखला से गये उसे " महाभारत पर्वत शृंखला " तथा जहा पर कैलासनाथ आदियोगी महादेव जी ने ज्योतिर्लिंग के रुप मे प्रकट हुये वो स्थान " श्री पशुपतिनाथ ज्योतिर्लिंग मन्दिर " के नाम से जाना जाता है। "पशुपतिनाथ ज्योतिर्लिंग देवस्थान" के बारे में माना जाता है कि यह नेपाल में हिन्दुओं का सबसे प्रमुख और पवित्र तीर्थस्थल है। भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर प्रतिवर्ष हजारों देशी-विदेशी श्रद्धालुओं को अपनी ओर खींचता है। गोल्फ़ कोर्स और हवाई अड्डे के पास बने इस मन्दिर को भगवान का निवास स्थान माना जाता है।पशुपति शिव (केदार )के शिर , उत्तराखण्डका केदारनाथ शिव (केदार)का शरीर ,डोटी बोगटानका बड्डीकेदार, शिव (केदार )का पाउ (खुट्टा)के रुपमे शिवका तीन अंग प्रसिद्द ज्योतिर्लिंग धार्मिक तीर्थ है । डोटीके केदार व कार्तिकेय (मोहन्याल)का इतिहास अयोध्याका राजवंश से जुड़ा है । उत्तराखण्ड के सनातनी देवता डोटी ,सुर्खेत ,काठमाडौं के देबिदेवाताका धार्मिक तीर्थ के लिए प्राचीन कालमे महाभारत पर्वत,चुरे पर्वत क्षेत्र से आवत जावत होता था । यिसी लिए यह क्षेत्र पवित्र धार्मिक इतिहास से सम्बन्धित है ।
रॉयल चितवन राष्ट्रीय उद्यान देश की प्राकृतिक संपदा का खजाना है। 932 वर्ग किलोमीटर में फैला यह उद्यान दक्षिण- मध्य नेपाल में स्थित है। 1973 में इसे नेपाल के प्रथम राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा हासिल हुआ। इसकी अद्भुत पारिस्थितिकी को देखते हुए यूनेस्को ने 1984 में इसे विश्‍व धरोहर का दर्जा दिया।
चाँगुनारायण मन्दिर - मन्दिर के बारे में कहा जाता है कि यह काठमाण्डु घाटी का सबसे पुराना विष्णु मन्दिर है। मूल रूप से इस मन्दिर का निर्माण चौथी शताब्दी के आस-पास हुआ था। वर्तमान पैगोडा शैली में बना यह मन्दिर 1702 में पुन: बनाया गया जब आग के कारण यह नष्ट हो गया था। यह मंदिर घाटी के पूर्वी ओर पहाड़ की चोटी पर भक्तपुर से चार किलोमीटर उत्तर में खूबसूरत और शान्तिपूर्ण स्थान पर स्थित है। यह मन्दिर यूनेस्को विश्‍व धरोहर सूची का हिस्सा है। 2072 वैशाख 12 का भूकम्प से इस मन्दिर की कुछ संरचना बिगड़ गयी है।
भक्तपुर के दरबार स्क्वैयर का निर्माण 16वीं और 17वीं शताब्दी में हुआ था। इसके अन्दर एक शाही महल दरबार और पारम्परिक नेवाड़, पैगोडा शैली में बने बहुत सारे मन्दिर हैं। स्वर्ण द्वार, जो दरबार स्क्वैयर का प्रवेश द्वार है, काफी आकर्षक है। इसे देखकर अन्दर की खूबसूरती का सहज ही अन्दाजा लगाया जा सकता है। यह जगह भी युनेस्को की विश्‍व धरोहर का हिस्सा है। यूनेस्को की आठ सांस्कृतिक विश्‍व धरोहरों में से एक काठमाण्डु दरबार प्राचीन मन्दिरों, महलों और गलियों का समूह है। यह राजधानी की सामाजिक, धार्मिक और शहरी जिन्दगी का मुख्य केन्द्र है।
खूबसूरती की मिसाल स्वर्ण द्वार नेपाल की शान है। बेशक़ीमती पत्थरों से सजे इस दरवाज़े का धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत महत्व है। शाही अन्दाज में बने इस द्वार के ऊपर देवी काली और गरुड़ की प्रतिमाएँ लगी हैं। यह माना जाता है कि स्वर्ण द्वार स्वर्ग की दो अप्सराएँ हैं। इसका वास्तुशिल्प और सुन्दरता पर्यटकों को मंत्रमुग्ध कर देती है। तथा मनमोहक सुन्दर दृश्य पर्यटकों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण जगह है।
काठमाण्डु घाटी के मध्य में स्थित बोधनाथ स्तूप तिब्बती संस्कृति का केन्द्र है। 1959 में चीन के हमले के बाद यहाँ बड़ी संख्या में तिब्बतियों ने शरण ली और यह स्थान तिब्बती बौद्धधर्म का प्रमुख केन्द्र बन गया। बोधनाथ नेपाल का सबसे बड़ा स्तूप है। इसका निर्माण 14वीं शताब्दी के आस-पास हुआ था, जब मुग़लों ने आक्रमण किया।
इस स्तूप को नेपाली में बौद्ध नाम से पुकारा जाता है। इसकी प्रारम्भिक ऐतिहासिक सामग्री इसकी ही नीचे दबा हुवा अनुमानित है। लिच्छवि राजाओं मानदेव द्वारा निर्मित और शिवदेव द्वारा विस्तारित माना जाता है। हालाँकि इसकी वर्तमान स्वरूप की निर्माण की तिथि भी अज्ञात ही है। इसकी गर्भ-बेदी की दीवार पर स्थापित छोटे-छोटे प्रस्तर मूर्तियाँ और ऊपर की छत्रावली संस्कृत बौद्ध-धर्म का प्रतीक माना जाता है। नेपाल का इतिहास भारतीय साम्राज्यों से प्रभावित हुआ पर यह दक्षिण एशिया का एकमात्र देश था जो ब्रिटिश उपनिवेशवाद से बचा रहा। हँलांकि अंग्रेजों से हुई लड़ाई (1814-16) और उसके परिणामस्वरूप हुई संधि में तत्कालीन नेपाली साम्राज्य के अर्धाधिक भूभाग ब्रिटिश इंडिया के तहत आ गए और आज भी ये भारतीय राज्य उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, सिक्किम और पश्चिम बंगाल के अंश हैं।
हिमालय क्षेत्र में मनुष्यों का आगमन लगभग ९,००० वर्ष पहले होने के तथ्य की पुष्टि काठमाण्डौ उपत्यका में पाये गये नव पाषाण औजारौं से होती है। सम्भवतः तिब्बती-बर्मीज मूल के लोग नेपाल में २,५०० वर्ष पहले आ चुके थे।[1]
१५०० ईशा पूर्व के आसपास इन्डो-आर्यन जतियों ने काठमाण्डौ उपत्यका में प्रवेश किया। करीब १००० ईसा पूर्व में छोटे-छोटे राज्य और राज्यसंगठन बनें। सिद्धार्थ गौतम (ईसापूर्व ५६३–४८३) शाक्य वंश के राजकुमार थे, जिन्होंने अपना राजकाज त्याग कर तपस्वी का जीवन निर्वाह किया और वह बुद्ध बन गए। नेपाल का प्राचीन काल सभ्यता, संस्कृति और र्शार्य की दृष्टि से बड़ा गौरवपूर्ण रहा है। प्राचीन काल में नेपाल राज्य की बागडोर क्रमश: गुप्तवंश किरात वंशी, सोमवंशी, लिच्छवि, सूर्यवंशी राजाओं के हाथों में रही है। किरात वंशी राजा स्थुंको, सोमवंशी लिच्छवी, राजा मानदेव, राजा अंशुवर्मा के राज्यकाल बड़े गौरवपूर्ण रहे हैं। कला, शिक्षा, वैभव और राजनीति के दृष्टिकोण से लिच्छवि काल 'स्वर्णयुग' रहा है। जन साधारण संस्कृत भाषा में लिखपढ़ और बोल सकते थे। राजा स्वयं विद्वान्‌ और संस्कृत भाषा के मर्मज्ञ होते थे। 'पैगोडा' शैली की वास्तुकला बड़ी उन्नत दशा में थी और यह कला सुदूर महाचीन तक फैली हुई थी। मूर्तिकला भी समृद्ध अवस्था में थी। धार्मिक सहिष्णुता के कारण् हिंदू धर्म और बौद्ध धर्म समान रूप से विकसित हो रहे थे। काफी वजनदार स्वर्णमुद्राएँ व्यवहार में प्रचलित थीं। विदेशों से व्यापार करने के लिए व्यापारियों का अपना संगठन था। वैदेशिक संबंध की सुदृढ़ता वैवाहिक संबंध के आधार पर कायम था । 880 ई.में लिच्छवि राज्य की समाप्ति पर नुवाकोटे ठकुरी राजवंश का अभ्युदय हुआ। इस समय नेपाल राज्य की अवनति प्रारंभ हो गई थी। केंद्रीय शासन शिथिल पड़ गया था। फलत: नेपाल अनेक राजनीतिक इकाइयों में विभाजित हो गया। हिमालय के मध्य कछार में मल्लों का गणतंत्र राज्य कायम था। लिच्छवि शासन की समाप्ति पर मल्ल राजा सिर उठाने लगे थे। सन्‌ 1350 ई. में बंगाल के शासक शमशुद्दीन इलियास ने नेपाल उपत्यका पर बड़ा जबरदस्त आक्रमण किया। धार्मिक, सामाजिक, राजनीतिक व्यवस्था अस्तव्यस्त हो गयी। सन्‌ 1480 ई. में अंतिम वैश राजा अर्जुन देव अथवा अर्जुन मल्ल देव को उनके मंत्रियों ने पदच्युत करके स्थितिमल्ल नामक राजपूत को राजसिंहासन पर बैठाया। इस समय तक केंद्रीय राज्य पूर्ण रूप से छिन्न-भिन्न होकर काठमाडों, गोरखा, तनहुँ, लमजुङ, मकबानपुर आदि लगभग तीस रियासतों में विभाजित हो गया था।२५० ईशा पुर्व तक ईस क्षेत्र में उत्तर भारत के मौर्य साम्राज्य का प्रभाव पडा। इस क्षेत्र में ५वी शताब्दी के उत्तरार्ध में आकर वैशाली के लिच्छवियो के राज्य की स्थापना हुई। ८वी शताव्दी के उत्तरार्ध में लिच्छवि वंश का अस्त हो गया और सन् ८७९ से नेवार (नेपाल की एक जाति) युग का उदय हुआ, फिर भी इन लोगों का नियन्त्रण देशभर में कितना बना था, इसका आकलन कर पाना मुश्किल है। ११वी शताब्दी के उत्तरार्ध में दक्षिण भारत से आए चालुक्य साम्राज्य का प्रभाव नेपाल के दक्षिणी भूभाग में दिखा। चालुक्यों के प्रभाव में आकर उस समय राजाओं ने बुद्धधर्म को छोडकर हिन्दू धर्म का समर्थन किया और नेपाल में धार्मिक परिवर्तन होने लगा।१३वीं शताब्दी के पूर्वार्ध में संस्कृत शब्द मल्ल कुलनाम वाले राजवंश का उदय होने लगा। २०० वर्ष में इन राजाओं ने शक्ति एकजुट की। १४वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में देश का बहुत ज्यादा भाग एकीकृत राज्य के अधीन में आ गया। लेकिन यह एकीकरण कम समय तक ही टिक सका। १४८२ में यह राज्य तीन भाग में विभाजित हो गया - कान्तिपुर, ललितपुर और भक्तपुर – जिसके बीचमे शताव्दियौं तक मेल नहीं हो सका। राजा स्थिति मल्ल अस्तव्यस्त आर्थिक, धार्मिक तथा सामाजिक व्यवस्था को सुदृढ़ करने में पूर्ण रूप से समर्थ हुए। राजा पक्षमल्ल ने केंद्रीय शासन को सुदृढ़ करने का प्रयत्न किया, किंतु उनके निधन पर पश्चात्‌ उनके उत्तराधिकारियों ने राज्य को आपस में बाँटकर पुन: राजनीतिक इकाइयाँ खड़ी कीं। मध्यकालीन नेपाल साहित्य, संगीत और कला की दृष्टि से उन्नत होने पर भी राजनीतिक दृष्टि से अवनति की ओर ही बढ़ा। जनजीवन अशांत था। यूरोपीय साम्राज्यवादियों की कुदृष्टि भारत के पश्चात्‌ नेपाल पर भी पड़ गई थी। नेपाल के विरुद्ध किनलोक का सैनिक अभियान और उपत्यका में ईसाई पादरियों की चहल पहल इस तथ्य के प्रमाण हैं।गोरखा राज्य इन दिनों काफी सबल हो चुका था। नेपाल की छोटी छोटी राजनीतिक इकाइयों पर और नेपाली जनजीवन पर गोरखा राज्य का प्रभाव छा गया था। न्यायमूर्ति राजा रामशाह के न्याय की चर्चा नेपाल भर में फैल गयी थी। राजा पृथ्वीपति शाह के राज्यकाल में बंगाल के नवाब ने गुर्गिन खाँ के नेतृत्व में नेपाल पर आक्रमण करने के लिए पचास साठ हजार फौज भेजी थी। नवाब की सेना मकवानपुर के तराई क्षेत्र में पड़ाव डाले हुई थी। मकबानपुर ने गोरखा राज्य से सहायता की याचना की। गोराखा के कुछ जवानों ने नवाब की सेना को गाजर मूली की तरह काट डाला। बचे हुए सैनिक अपनी जान बचाकर भाग निकले।उपर्युक्त इन दो कारणो से गोरखा राज्य नेपाली जनजीवन के सुखद भविष्य का आशाकेंद्र हो गया था। जनजीवन की इस आकांक्षा को नेपाल राष्ट्र के जनक महाराजाधिराज पृथ्वीनारायण शाह ने समझा और नेपाल के एकीकरण के लिए अभियान प्रारंभ किया। जिस प्रकार यूरोप में सार्डिनिया राज्य ने इटली का और प्रशा राज्य ने जर्मनी का एकीकरण किया, उसी प्रकार गोरखा राज्य ने पृथ्वीनारायण शाह के नेतृत्व में नेपाल का एकीकरण किया। मध्यकालीन नेपाल के अंतिम चरण में अर्थात्‌ राष्ट्र के जनक पृथ्वीनारायण शाह के उदय होने से पूर्व विदेशी लोग नेपाल पर दाँत गड़ाने लगे थे। नेपाल उपत्यका में पादरी लोग ईसाई धर्म का प्रचार करने लगे थे। मल्ल राजा आपसी फूट-वैमनस्य, झगड़ा, युद्ध आदि बातों में निरंतर व्यस्त थे।
नेपाल उपत्यका के बाहर के राज्य भी आपस में लड़-झगड़कर अपनी जन-धन-शक्ति को क्षीण कर रहे थे। राजाओं ने आपसी झगड़े, मल्ल राजाओं द्वारा देव-मंदिर की संपत्ति का व्यक्तिगत उपभोग, राजा भास्कर मल्ल द्वारा हिंदू भावना के विरुद्ध एक मुसलमान को प्रधान मंत्री बनाने का कार्य आदि मध्यकालीन राजनीतिक स्थिति को धूमिल बनाते हैं और साथ ही नेपाल की सार्वभौम स्वतंत्रता को अधर में डाल देते है। जिस प्रकार शमशुद्दीन इलियास के आक्रमण के पश्चात्‌ राजा स्थितिमल्ल ऐतिहासिक आवश्यकता के रूप में दिखाई पड़ते हैं उसी प्रकार साम्राज्यवादियों से नेपाल का बचाने वाले के रूप में पृथ्वीनारायण शाह ऐतिहासिक आवश्यकता स्वरूप दिखलाई पड़ते हैं। गोरखों ने 1790 में तिब्बत पर आक्रमण किया किंतु यह आक्रमण नेपाल को महँगा पड़ा। चीन ने 1791 में तिब्बत का पक्ष लेकर अपनी सेनाएँ नेपाल में प्रविष्ट करा दीं और 1792 में गोरखों को संधि करने पर विवश किया। इसी वर्ष ग्रेट ब्रिटेन और नेपाल में द्वितीय वाणिज्य संधि संपन्न हुई और नेपाल में एक अंग्रेज कूटनीतिज्ञ की नियुक्ति की व्यवस्था हो गई। भारत नेपाल सीमा विवाद के समय 1814 में ब्रिटेन ने नेपाल के विरूद्ध युद्ध छेड़ दिया। मार्च 1816 में नेपाल ने अपनी कुछ भूमि अंग्रेजों को दे दी और काठमांडू में अंग्रेजी रेजीडेंसी की स्थापना हो गई। 1857 के भारतीय 'सिपाही विद्रोह' में नेपालके तत्कालीन प्रधान मंत्री जंगबहादुर ने अंग्रेजी सेना की सहायता के लिए 12000 सैनिक भेजे।धर्मविरोधी, जातिविरोधी तथा राष्ट्रविरोधी कार्यों ने सच्चे नेपाली के मन में सुदृढ़ नेपाल राष्ट्र खड़ा करने की भावना को जन्म दिया। नेपाल की छिन्न-भिन्न राजनीतिक इकाइयों को एक सूत्र में बाँधकर नेपाल राष्ट्र खड़ा करने के लिए वहाँ की राजनीतिक इकाइयों का एकीकरण हुआ।१७६५मे, गोरखाके शाहवंशी राजा पृथ्वी नारायण शाह ने नेपाल के छोटे छोटे बाइसे व चोबिसे राज्यके ऊपर चढाँइ करतेहुए एकिकृत किया, बहुत ज्यादा रक्तरंजित लडाँईयौं पश्वात उन्हौने ३ वर्ष बाद कान्तीपुर, पाटन व भादगाँउ के राजाओं को हराया और अपने राज्य का नाम गोरखा से नेपाल में परिवर्तित किया। कान्तिपुर तविजयके लिये तीन बार युद्ध थाकरना पडा, महान्पि सेनानायक कालू पाण्डे भी इसि युद्ध में सहिद हो गए। अौर पृथ्वीनारायण शाहने कूटनीति अपनाकर उपत्यका बाहरके देशों से लडाइँ कि अौर कीर्तिपुर में नाकाबन्दी कर दिया, पानीका मूल भी बन्द करदिया अन्तिम या तिसरी बार में उन्हे कान्तिपुर विजय में कोई युद्ध नहीं करना पड़ा। वास्तव में, उस समय इन्द्रजात्रा पर्व में कान्तिपुर की सभी जनता फसल के देवता भगवान इन्द्र की पूजा और महोत्सव (जात्रा) मना रहे थे, जब पृथ्वी नारायण शाह ने अपनी सेना लेकर धावा बोला और सिंहासन कब्जा कर लिया। इस घटना को आधुनिक नेपाल का जन्म भी कहते है।
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जन्माष्टमी पर 6 तत्वों का एक साथ मिलना बहुत ही दुर्लभ होता है

Posted: 28 Aug 2021 07:47 AM PDT

जन्माष्टमी पर 6 तत्वों का एक साथ मिलना बहुत ही दुर्लभ होता है 

आभा सिन्हा, पटना ::
हिन्दू धर्म में प्रत्येक वर्ष श्री कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस वर्ष यह पर्व 30 अगस्त को मनाया जा रहा है। श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्र कृष्ण अष्टमी तिथि बुधवार रोहिणी एवं वृष राशि में मध्य रात्रि में हुआ था। शास्त्रों में बताया गया है कि जन्माष्टमी पर 6 तत्वों का एक साथ मिलना बहुत ही दुर्लभ होता है। यह तत्व हैं- (1) महीना भाद्र (2) कृष्ण पक्ष, (3) अर्ध रात्रिकालीन अष्टमी तिथि (4) रोहिणी नक्षत्र (5) वृष राशि में चन्द्रमा (6) सोमवार या बुधवार ।
इस तरह के संयोग मिलने पर, व्रत करने वालों को पाप-कष्टों से मिलती है मुक्ति। निर्णय सिंधु नामक ग्रंथ के अनुसार ऐसा संयोग जन्माष्टमी पर जब बनता है तो व्रत करने वालों के तीन जन्मों के जाने-अनजाने हुए पापों से मुक्ति मिलती है। मान्यता है कि ऐसी तिथि में भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करने से भक्तों की सभी मनोकामना पूर्ण होती है। व्यक्ति को भगवान की कृपा प्राप्त होती है। जो लोग कई जन्मों से प्रेत योनि में भटक रहे हो इस तिथि में उनके लिए पूजन करने से उन्हें मुक्ति मिल जाती है। इस संयोग में भगवान कृष्ण के पूजन से सिद्धि की प्राप्ति होती है तथा सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है। 

भगवान श्रीकृष्ण के खड्ग का नाम- नंदक, गदा का नाम- कौमोदकी और शंख का नाम- पांचजन्य था जो गुलाबी रंग का था। इनके धनुष का नाम- शारंग, मुख्य आयुध चक्र का नाम- सुदर्शन था। वहीं लौकिक दिव्यास्त्र एवं देवास्त्र तीनों रूपों में कार्य करता था उसकी बराबरी के विध्वंसक केवल दो अस्त में पाषुपास्त्र और प्रस्वपास्त्र थे। भगवान श्रीकृष्ण के रथ का नाम- जैत्र और सारथी का नाम दारूक/बाहुक, घोड़े का नाम-शैव्य, सुग्रीव, मेघपुष्प् और बलाहक था। उन्होंने तीन भयानक युद्ध का संचालन किया था वह था (1) महाभारत (2) जरासंध और कालयवन (3) नरकासुर के विरूद्ध। 

भगवान श्रीकृष्ण ने 16 वर्ष की आयु में विश्वप्रसिद्ध चाणूर और मुष्टिक जैसे मल्लों का वध किया था और मथुरा में दुष्ट रजक के सिर को हथेली के प्रहार से काट दिया था। भगवान श्रीकृष्ण असम में वाणासुर से युद्ध के समय भगवान शिव से युद्ध के समय माहेश्वरज्वर के विरूद्ध वैष्णव ज्वर का प्रयोग कर विश्व का प्रथम जीवाणु युद्ध किया था।

भगवान श्रीकृष्ण ने पूतना, शकटासुर, कालिया, यमुलार्जन, धेनुक, प्रलंब, अरिष्ठ आदि असुरों का बध किया था। उन्होंने चाणुर और मुष्ठिक, कंस, जरासंध, कालयवन, शिवाजी, अर्जुन, नरकासुर, जामवंतजी, पौंड्रक आदि से युद्ध भी किया था।

गुजरात राज्य के पश्चिमी सिरे पर समुद्र के किनारे स्थित चार धामों में से एक धाम और सात पवित्र पुरी है द्वारिका। द्वारिका में भी दो है एक है गोमती द्वारिका धाम और दूसरा है बेट द्वारिका पुरी। बेट द्वारिका पुरी के लिए समुन्द्र मार्ग से जाना पड़ता है इसका प्राचीन नाम कुशस्थली है। पौराणिक कथाओं के अनुसार महाराज रैवतक के समुद्र में कुश विछाकर यज्ञ करने के कारण ही इस नगरी का नाम कुशस्थली हुआ था। 

भारत में सबसे प्राचीन नगरों में से एक है द्वारिका। ये 7 नगर है- द्वारिका, काशी, हरिद्वार, अवंतिका, कांची और अयोध्या। द्वारिका को द्वारावती, कुषस्थली, आनर्तक, ओखा-मंडल, गोमती द्वारिका, चक्रतीर्थ, अंतरद्वीप, वारिदुर्ग, उदधिमध्य स्थान भी कहा जाता है।

जन्माष्टमी इस वर्ष 30 अगस्त को वैष्णवी और समात दोनो एक ही दिन मनायेंगे, क्योंकि अष्टमी तिथि की शुरूआत 29 अगस्त को रात 11.25 बजे से ही शुरू हो जायेगा और इसकी समाप्ति 31 अगस्त को 01.59 बजे समाप्त होगा। रोहिणी नक्षत्र का प्रारम्भ 30 अगस्त को सुबह 6.39 बजे शुरू होगा और 31 अगस्त को 09.44 बजे समाप्त होगा। इस बीच पूजा का समय 30 अगस्त को रात 11.59 बजे से 12.44 बजे तक रहेगा।
जन्माष्टमी पर बाल रूप में भगवान श्रीकृष्ण की स्थापना की जाती है। वैसे तो मनोकामना के अनुसार जिस स्वरूप को चाहें, भगवान श्रीकृष्ण को उस रूप में स्थपित किया जा सकता है। प्रेम और दाम्पत्य जीवन के लिए राधा-कृष्ण रूप की, संतान के लिए बाल श्रीकृष्ण रूप की और सभी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए बांसुरी के साथ श्रीकृष्ण की प्रतिमा का प्राण प्रतिष्ठित किया जाता है। भगवान श्रीकृष्ण के विग्रह का श्रृंगार में फूलों का खूब प्रयोग करना चाहिए। पीले रंग के वस्त्र, गोपी चन्दन और चन्दन की सुगंध से विग्रह का श्रृंगार करना चाहिए। श्रृंगार में काले रंग का प्रयोग कदापि न करना चाहिए। वैजयंती के फूल अगर भगवान श्रीकृष्ण को अर्पित करना सर्वोत्तम माना गया है। भगवान श्रीकृष्ण को पंचामृत जरूर अर्पित करना चाहिए, जिसमें तुलसी दल, मेवा, माखन और मिसरी का भोग आवश्यक हो। कहीं-कहीं धनिये की पंजीरी का भोग भी लगाया जाता है। पूर्ण सात्विक भोजन जिसमें अन्न न हो भगवान श्रीकृष्ण को अर्पित किया जाता है। 
जन्माष्टमी के दिन व्रत करने वालों का प्रातःकाल स्नान करके व्रत व पूजा का संकल्प लेकर, दिन भर जलाहार या फलाहार ग्रहण कर सात्विक रहना चाहिए। मध्यरात्रि को भगवान श्रीकृष्ण की धातु की प्रतिमा को किसी पात्र में रखकर, प्रतिमा को पहले पंचामृत स्नान (दूध, दही, शहद, शर्करा और अंत में घी से स्नान) कराना चाहिए। इसके बाद प्रतिमा को जल से स्नान कराने के बाद पीताम्बर, पुष्प और प्रसाद शंख में डालकर भगवान श्रीकृष्ण को अर्पित करना चाहिए। इसके बाद अपनी मनोकामना के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण के स्तुती मंत्र का जाप करना चाहिए।

मथुरा नगरी में कंस के कारागार में देवकी की आठवीं संतान के रूप में भगवान श्रीकृष्ण भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अष्टमी को पैदा हुए थे। उनके जन्म के समय अर्धरात्रि थी, चन्द्रमा उदय हो रहा था और उस समय रोहिणी नक्षत्र भी था। इसलिए इस दिन को प्रतिवर्ष कृष्ण जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है।
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गाय और गदही

Posted: 28 Aug 2021 07:32 AM PDT

गाय और गदही

      --:भारतका एक ब्राह्मण.
        संजय कुमार मिश्र "अणु"
गाय और गदही
है दोनों चौपाया।
एक कहलाई मां
दुसरी न भाया।।
      दोनों जनती बच्चा
      और दोनों देती दूध।
      एक है परम पवित्र
      दुसरी बनी अशुद्ध।।
दोनों में समता हैं,
खान और पान में।
फिर क्यों अंतर है,
दोनों के सम्मान में।।
        यदि तुम जानते हो,
        कुछ हमें भी बताओ।
        नहीं तो चुपचाप रहो,
        बेकार मुंह मत लगाओ।।
एक सेवा लेती है।
दूसरी सेवा देती।।
  गाय की महिमा सब ने गाई।
  आखिर गदही में है कौन बुराई।।
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वलिदाद,अरवल(बिहार)804402.
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आज 29 अगस्त 2021, रविवार का दैनिक पंचांग एवं राशिफल - सभी १२ राशियों के लिए कैसा रहेगा आज का दिन ? क्या है आप की राशी में विशेष ? जाने प्रशिद्ध ज्योतिषाचार्य पं. प्रेम सागर पाण्डेय से |

Posted: 28 Aug 2021 07:27 AM PDT

आज 29 अगस्त 2021, रविवार का दैनिक पंचांग एवं राशिफल - सभी १२ राशियों के लिए कैसा रहेगा आज का दिन ? क्या है आप की राशी में विशेष ? जाने प्रशिद्ध ज्योतिषाचार्य पं. प्रेम सागर पाण्डेय से |

श्री गणेशाय नम: !!

दैनिक पंचांग

29 अगस्त 2021, रविवार

पंचांग   

🔅 तिथि  सप्तमी  रात्रि  10:10:52

🔅 नक्षत्र  कृत्तिका  पूर्ण रात्रि

🔅 करण :

           विष्टि  10:12:01

           बव  23:28:07

🔅 पक्ष  कृष्ण 

🔅 योग  घ्रुव  06:42:53

🔅 वार  रविवार 

सूर्य व चन्द्र से संबंधित गणनाएँ

🔅 सूर्योदय  05:42:51

🔅 चन्द्रोदय  22:56:59 

🔅 चन्द्र राशि  मेष - 10:20:30 तक 

🔅 सूर्यास्त  18:18:46

🔅 चन्द्रास्त  12:01:59 

🔅 ऋतु  शरद 

हिन्दू मास एवं वर्ष

🔅 शक सम्वत  1943  प्लव

🔅 कलि सम्वत  5123 

🔅 दिन काल  12:49:20 

🔅 विक्रम सम्वत  2078 

🔅 मास अमांत  श्रावण 

🔅 मास पूर्णिमांत  भाद्रपद 

शुभ और अशुभ समय

शुभ समय   

🔅 अभिजित  11:56:17 - 12:47:34

अशुभ समय   

🔅 दुष्टमुहूर्त  17:04:01 - 17:55:18

🔅 कंटक  10:13:42 - 11:04:59

🔅 यमघण्ट  13:38:51 - 14:30:09

🔅 राहु काल  17:10:26 - 18:46:36

🔅 कुलिक  17:04:01 - 17:55:18

🔅 कालवेला या अर्द्धयाम  11:56:17 - 12:47:34

🔅 यमगण्ड  12:21:56 - 13:58:06

🔅 गुलिक काल  15:34:16 - 17:10:26

दिशा शूल   

🔅 दिशा शूल  पश्चिम 

चन्द्रबल और ताराबल

ताराबल 

🔅 भरणी, कृत्तिका, रोहिणी, मृगशिरा, पुनर्वसु, आश्लेषा, पूर्वा फाल्गुनी, उत्तरा फाल्गुनी, हस्त, चित्रा, विशाखा, ज्येष्ठा, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा, श्रवण, धनिष्ठा, पूर्वाभाद्रपद, रेवती 

चन्द्रबल

🔅 मेष, मिथुन, कर्क, तुला, वृश्चिक, कुम्भ 

🌹विशेष शीतला सप्तमी,, भानुसप्तमी पर्व। 🌹

पं..प्रेम सागर पाण्डेय्

राशिफल 29 अगस्त 2021, रविवार

मेष (Aries):  आज आपका दिन मिश्रफलदायी है। आपको आज नए कार्य करने की प्रेरणा मिलेगी एवं नए कार्य प्रारंभ कर पाएंगे। आज आप के मन में परिवर्तन शीघ्र आएंगे, जिससे आपका मन कुछ दुविधायुक्त रहेगा। आज नौकरी एवं व्यवसाय में आपको स्पर्धात्मक व्यवहार का सामना करना पड़ेगा। किसी निश्चित हेतु के लिए कार्य करने की प्रेरणा मिलेगी। छोटे प्रवास का योग है। महिलाओं को आज वाणी पर संयम रखने कि सलाह देते हैं।

शुभ रंग  =  लाल

शुभ अंक  :  5

वृषभ (Tauras): हाथ में आया हुआ अवसर अनिर्णायकता के कारण आप आज गंवा सकते हैं और उसका लाभ नहीं ले पाएंगे ऐसी चेतावनी देते हैं। विचारो में खोए रहेंगे इसलिए कोई निश्चित निर्णय नहीं ले पाएंगे। आज कोइ भी नया कार्य का प्रारंभ करना हितकारी नहीं है। वाद-विवाद या चर्चा में आपके हठीले स्वभाव से घर्षण की संभावना है। आज आप वाक्चातुर्य से किसी को रिझा सकते हैं। भाई-बहनों में प्रेम बना रहेगा।

शुभ रंग  =  क्रीम

शुभ अंक  :  2

मिथुन (Gemini): आज के दिन की शुरुआत प्रफुल्लित मन और स्वस्थ चित्त से होगा ऐसा गणेशजी को प्रतीत होता है। आज मित्र या परिवार के सदस्यों के साथ भोजन का आनंद उठा सकते हैं। सुंदर वस्त्र धारण करेंगे। आर्थिक दृष्टि से आपके लिए आज का दिन लाभदायी है। अधिक खर्च पर संयम रखें। आज मन से नकारात्मक विचारों को निकाल देने की सूचना देते हैं। आपके किसी प्रियजन या मित्र से उपहार पाकर मन प्रफुल्लित रहेगा।

शुभ रंग  =  हरा

शुभ अंक  :  3

कर्क (Cancer): आज आप मानसिक अस्वस्थता का अनुभव करेंगे। किसी एक निश्चय पर आप नहीं पहुंच पाएंगे और असमंजस के कारण मानसिक कष्ट होगा। सम्बंधियों के साथ अनबन हो सकती है। पारिवारिक कार्यों के पीछे खर्च होगा। झगड़े, मारामारी से दूर रहने की सूचना देते हैं। मुसीबतों का तत्काल निवारण करें। अकस्मात से संभलकर चलें। अविचारी वर्तन से दूर रहना हितकर रहेगा। आरोग्य एवं धन हानि की संभावना है।

शुभ रंग  =  क्रीम

शुभ अंक  :  2

सिंह (Leo): आज का दिन आपके लिए अच्छा रहेगा ऐसा गणेशजी कहते हैं। फिर भी दुविधापूर्ण मानसिकता के कारण सामने आया हुआ अवसर गंवा देंगे ऐसा चेतावनी देते हैं। आपका मन विचारो में खोया रहेगा। नए कार्यों का आरंभ आज न करें। स्त्री मित्रों से भेंट होगी तथा उनसे लाभ भी होगा। दोस्तों के साथ प्रवास-पर्यटन का आयोजन होगा, जो कि लाभदायी होगा। व्यापार में लाभ होगा। धनप्राप्ति के योग हैं।

शुभ रंग  =  नीला

शुभ अंक  :  6

कन्या (Virgo): आज का दिन आपके हेतु शुभफलदायी होगा। नए कार्यों का आयोजन आज सफल होगा। व्यापारी तथा वैतनिक कर्मचारीयों के लिए लाभप्रद दिन है। उनकी पदोन्नति की संभावना अधिक है। उपरी अधिकारियों से लाभ होगा। धन, मान-सन्मान मिलेगा। पिता की ओर से लाभ होगा। परिवार में आनंद का वातावरण छाया रहेगा। तंदुरस्ती अच्छी रहेगी। सरकारी कार्य संपन्न होंगे। सरकार से लाभ होगा। ऑफिस के काम से बाहर जाना पड़ सकता है। गृहस्थजीवन में सामंजस्य रहेगा।

शुभ रंग  =  हरा

शुभ अंक  :  3

तुला (Libra): आज आप बौद्धिक तथा लेखन के कार्यों में सक्रिय रहेंगे। नए कार्य के प्रारंभ के लिए दिन अच्छा है। लंबे प्रवास या धार्मिक स्थल की मुलाकात करने का प्रसंग उपस्थित होगा। व्यवसाय में लाभ का अवसर मिलेगा। विदेश में रहते मित्र या स्नेहीजनों के समाचार मिलेंगे। व्यवसाय या नौकरी पर सहकर्मीयों की ओर से सहकार कम रहेगा। स्वास्थ्य संभालना होगा। संतानों के विषय में दुविधा रहेगी। विरोधीयों के साथ गहन चर्चा में न उतरने की सूचना देते हैं।

शुभ रंग  =  आसमानी

शुभ अंक  :  7

वृश्चिक (Scorpio): आज का दिन सावधानी से बिताने की सलाह आपको देते है। नए कार्यों का प्रारंभ न करें एवं क्रोध पर संयम रखें। अनैतिक कामवृत्ति से दूर रहें। राजकीय गुनाह से सम्बंधित तथा सरकारी प्रवृतियों से दूर रहने की सलाह देते हैं। नए सम्बंध स्थापित करने से पहले गंभीरता से विचार करें। अधिक खर्च होने से हाथ तंग रहेगा। ईश्वर की आराधना तथा नाम-स्मरण से लाभ होगा।

शुभ रंग  =  लाल

शुभ अंक  :  5

धनु (Sagittarius): आज आपका दिन सुखपूर्वक एवं आनंद से व्यतीत होगा। आज आप मनोरंजन के दुनिया की सैर करेंगे। पार्टी, पिकनिक, प्रवास, सुंदर भोजन तथा वस्त्रपरिधान आज के दिन की विशेषता रहेगी। विपरीत लिंगीय व्यक्ति से भेंट रोमांचक होगी। विचार-परिवर्तन शीघ्र हो सकता है। लेखनकार्य के लिए दिन अच्छा है। बौद्धिक तथा तार्किक विचार-विनिमय होगा। भागीदारी से लाभ होगा। सम्मान और ख्याति मिलेगी। उत्तम वैवाहिक सुख प्राप्त होगा।

शुभ रंग  =  पींक

शुभ अंक  :  1

मकर (Capricorn): आप के व्यापार में आज विस्तार हो सकता है। इस दिशा में आप कदम आगे बढ़ाऐगें । धन की लेनदेन में सरलता रहेगी। घर में शांति और आनंद का वातावरण बना रहेगा। आवश्यक कारणों के पीछे धन खर्च होगा। नौकरी में सहकर्मियों की तरफ से सहयोग प्राप्त होगा। व्यापारियों को कानूनी परेशानी हो सकती है। विदेश के साथ व्यापार बढेगा। शत्रुओं पर विजय मिलेगी। स्वास्थ्य अच्छा रहेगा।

शुभ रंग  =  हरा

शुभ अंक  :  3

कुंभ (Aquarius): आज कोई भी नए कार्य का प्रारंभ न करने का सूचना देते हैं। आज आपके विचारों में परिवर्तन शीघ्र ही आएंगे। महिलाओं को अपने वाणी पर संयम रखना हितकर होगा। यात्रा को यथासंभव टालें। संतान के प्रश्नों के कारण चिंता रहेगी। लेखनकार्य या सृजनात्मक कृतियों की रचना करने के लिए दिन अच्छा है। बौद्धिक चर्चा में भाग लेने का अवसर मिल सकता है। आकस्मिक खर्च का योग है। पेट से सम्बंधित व्याधियों से सावधान रहें।

शुभ रंग  =  आसमानी

शुभ अंक  :  7

मीन (Pisces): आज का दिन अरुचिकर घटनाओ के कारण उत्साहजनक नहीं रहेगा। घर में परिवारवालों के साथ वाद-विवाद होगा। माता का स्वास्थ्य बिगड़ सकता है, जिससे चिंता होगी। आपका मन प्रफुल्लित नहीं रहेगा। शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य बिगड़ सकता है जिसके कारण अनिद्रा सताएगी। महिलाओं के साथ व्यवहार में सावधानी बरतें। धन और कीर्ति की हानि हो सकती है। नौकरी करनेवालों को नौकरी में चिंता रहेगी। स्थायी संपत्ति, वाहन आदि के दस्तावेज करने में सावधानी रखें।

शुभ रंग  =  केशरी

शुभ अंक  :  6

 प्रेम सागर पाण्डेय् ,नक्षत्र ज्योतिष वास्तु अनुसंधान केन्द्र ,नि:शुल्क परामर्श -  रविवार , दूरभाष  9122608219  /  9835654844
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परिवर्तन मीडिया सम्मान से सम्मानित हुए जितेन्द्र कुमार सिन्हा

Posted: 28 Aug 2021 04:42 AM PDT

परिवर्तन मीडिया सम्मान  से सम्मानित हुए जितेन्द्र कुमार सिन्हा 

दीदी जी फाउंडेशन पटना ने पत्रकारिता में उत्कृष्ट योगदान देने और निष्पक्ष पत्रकारिता के समाजिक बदलाव लाने के लिए "दीदीजी परिवर्तन मीडिया सम्मान-2021" से जितेन्द्र कुमार सिन्हा को अलंकृत किया है।

श्री सिन्हा को यह सम्मान अमर गायक मुकेश की याद में जीकेसी द्वारा आयोजित 'एक प्यार का नगमा है' कार्यक्रम में जीकेसी के ग्लोबल अध्यक्ष राजीव रंजन प्रसाद, प्रबंध न्यासी रागिनी रंजन और दीदीजी फाउंडेशन की संस्थापिका डा. नम्रता आनंद ने संयुक्त रूप से सौंपा।

जितेन्द्र कुमार सिंहा सरकारी सेवा से सेवानिवृत्त होने के बाद कई मीडिया संस्थानों  से जुड़ कर स्वतंत्र पत्रकारिता कर रहे हैं। 

जीकेसी (ग्लोबल कायस्थ कॉन्फ्रेंस) कला-संस्कृति प्रकोष्ठ बिहार के सौजन्य से महान पार्श्वगायक मुकेश (मुकेश चंद्र 
माथुर) की पुण्यतिथि पर 27 अगस्त (शुक्रवार) को  संगीतमय संध्या 'एक प्यार का नगमा है' का आयोजन किया गया था, जिसमें नामचीन कलाकारों ने उनके गाये गानों के द्वारा उन्हें श्रद्धांजलि सुमन अर्पित की। 

कार्यक्रम का संचालन जीकेसी बिहार कला-संस्कृति प्रकोष्ठ के उपाध्यक्ष अखौरी योगेश कुमार ने किया। कार्यक्रम की शुरुआत मुकेश की तस्वीर पर माल्यार्पण और पुष्प अर्पित करके की गयी। 

संगीतमय कार्यक्रम में मनीष वर्मा, दिवाकर कुमार वर्मा, कुमार संभव, कुंदन तिवारी, रत्ना गांगुली, डा. नम्रता आनंद, प्रेम कुमार, संपन्नता वरूण, मेघाश्री अंजू, पल्लवी सिन्हा
प्रवीण बादल, सुबोध नंदन सिन्हा सहित अन्य कलाकारों ने  सदाबहार गीतों के माध्यम से उन्हें श्रद्धांजली अर्पित की। 

उक्त कार्यक्रम में सभी कलाकारों को भी जीकेसी के ग्लोबल अध्यक्ष राजीव रंजन प्रसाद और दीदीजी फाउंडेशन की संस्थापिका डा. नम्रता आनंद ने मोमेंटो और अभिनंदन पत्र देकर सम्मानित किया।

पत्रकारिता के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान देने के लिए  पत्रकार (संगम) आभा सिन्हा, मैनेजिंग डायरेक्टर (ATN लाईव)  अकरम अली, सहित पत्रकार रवीन्द्र कुमार, रंजीत कुमार सिन्हा, अनुराग सिन्हा, रजनीश कुमार, हर्षित सिन्हा, अमित कुमार, रिजवी जी, अकरम अली, ओम प्रकाश और रजनीश श्रीवास्तव को मीडिया सम्मान से सम्मानित किया गया।
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जनकपुर : मिथिला सांस्कृतिक विरासत

Posted: 28 Aug 2021 04:32 AM PDT

जनकपुर : मिथिला सांस्कृतिक विरासत

सत्येन्द्र कुमार पाठक 
नेपाल और मिथिला संस्कृति की पहचान जनकपुर है । नेपाल का त्रेतायुग में  मिथिला की राजधानी  जनकपुर थी । सतयुग में विदेह राज्य के संस्थापक इक्ष्वाकु  के पुत्र निमि  वंशीय  मिथिला के राजा  सीरध्वज जनक की पुत्री सीता  और अयोध्यापति राजा दशरथ के पुत्र राम के साथ जनकपुर में विवाह हुआ था । महाकवि विद्यापति के ग्रंथ "भू-परिक्रमा" के अनुसार जनकपुर से सात कोस दक्षिण महाराज जनक का राजमहल था। यथा : जनकपुरादक्षिणान्शे सप्तकोश-व्यतिक्रमें। महाग्रामे गहश्च जनकस्य वै। जनक वंश का कराल जनक के समय में नैतिक अद्य:पतन हो गया। कौटिल्य का अर्थशास्त्र के अनुसार  कराल जनक ने कामान्ध होकर ब्राह्मण कन्या का अभिगमन करने के कारण कराल जनक बांधवों के साथ मारा गया। अश्वघोष के  बुद्ध चरित्र में उल्लेख किया गया है कि कराल जनक  के पश्चात जनक वंश में लोग बच गए, वे निकटवारती तराई के जंगलों में रहने के स्थान को जनकपुर कहलाने लगा था । रामायण के अनुसार जनक राजाओं में सबसे प्रसिद्ध सीरध्वज जनक विद्वान एवं धार्मिक और शिव के प्रति इनकी अगाध श्रद्धा थी। इनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने इन्हें अपना धनुष प्रदान किया था। यह धनुष अत्यंत भारी था। त्रेतायुग में जनक की पुत्री सीता धर्मपरायण थी । वह नियमित रूप से पूजा स्थल की साफ-सफाई स्वयं करती थी। एक दिन की बात है जनक जी जब पूजा करने आए तब उन्होंने देखा कि शिव का धनुष एक हाथ में लिये हुए सीता पूजा स्थल की सफाई कर रही हैं। इस दृश्य को देखकर जनक जी आश्चर्य चकित रह गये कि इस अत्यंत भारी धनुष को एक सुकुमारी ने कैसे उठा लिया। इसी समय जनक जी ने संकल्प  कर लिया कि सीता का पति वही होगा जब शिव के द्वारा दिये गये  धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाने में सफल होगा। अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार राजा जनक ने धनुष-यज्ञ का आयोजन किया। इस यज्ञ से संपूर्ण संसार के राजा, महाराजा, राजकुमार तथा वीर पुरुषों को आमंत्रित किया गया। समारोह में अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र रामचंद्र और लक्ष्मण अपने गुरु विश्वामित्र के साथ उपस्थित थे। जब धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाने की बारी आई तो वहाँ उपस्थित किसी भी व्यक्ति से प्रत्यंचा तो दूर धनुष हिला तक नहीं। राजा जनक के इस वचन को सुनकर लक्ष्मण के आग्रह और गुरु की आज्ञा पर रामचंद्र ने ज्यों ही धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाई त्यों ही धनुष तीन टुकड़ों में विभक्त हो गया। बाद में अयोध्या से बारात आकर रामचंद्र और जनक नंदिनी जानकी का विवाह माघ शीर्ष शुक्ल पंचमी को जनकपुरी में संपन्न हुआ। कहते हैं कि कालांतर में त्रेता युगकालीन जनकपुर का लोप हो गया। करीब साढ़े तीन सौ वर्ष पूर्व महात्मा सूरकिशोर दास ने जानकी के जन्मस्थल का पता लगाया और मूर्ति स्थापना कर पूजा प्रारंभ की। तत्पश्चात आधुनिक जनकपुर विकसित हुआ। नौलखा मंदिर: जनकपुर में राम-जानकी के कई मंदिर हैं। इनमें सबसे भव्य मंदिर का निर्माण भारत के टीकमगढ़ की महारानी वृषभानु कुमारी बुंदेला ने करवाया। पुत्र प्राप्ति की कामना से महारानी वृषभानु कुमारी बुंदेला ने अयोध्या में 'कनक भवन मंदिर' का निर्माण करवाया परंतु पुत्र प्राप्त न होने पर गुरु की आज्ञा से पुत्र प्राप्ति के लिए जनकपुरी में १८९६ ई. में जानकी मंदिर का निर्माण करवाया। मंदिर निर्माण प्रारंभ के १ वर्ष के अंदर ही वृषभानु कुमारी को पुत्र प्राप्त हुआ। जानकी मंदिर के निर्माण हेतु नौ लाख रुपए का संकल्प किया गया था। फलस्वरूप उसे 'नौलखा मंदिर' भी कहते हैं। परंतु इसके निर्माण में १८ लाख रुपया खर्च हुआ। जानकी मंदिर के निर्माण काल में ही वृषभानु कुमारी के निधनोपरांत उनकी बहन नरेंद्र कुमारी ने मंदिर का निर्माण कार्य पूरा करवाया। बाद में वृषभानुकुमारी के पति ने नरेंद्र कुमारी से विवाह कर लिया। जानकी मंदिर का निर्माण १२ वर्षों में हुआ लेकिन इसमें मूर्ति स्थापना १८१४ में ही कर दी गई और पूजा प्रारंभ हो गई। जानकी मंदिर को दान में बहुत-सी भूमि दी गई है जो इसकी आमदनी का प्रमुख स्रोत है। जानकी मंदिर परिसर के भीतर प्रमुख मंदिर के पीछे जानकी मंदिर उत्तर की ओर 'अखंड कीर्तन भवन' है जिसमें १९६१ ई. से लगातार सीताराम नाम का कीर्तन हो रहा है। जानकी मंदिर के बाहरी परिसर में लक्ष्णण मंदिर है जिसका निर्माण जानकी मंदिर के निर्माण से पहले बताया जाता है। परिसर के भीतर ही राम जानकी विवाह मंडप है। मंडप के खंभों और दूसरी जगहों को मिलाकर कुल १०८ प्रतिमाएँ हैं। विवाह मंडप (धनुषा) : इस मंडप में विवाह पंचमी के दिन पूरी रीति-रिवाज से राम-जानकी का विवाह किया जाता है। जनकपुरी से १४ किलोमीटर 'उत्तर धनुषा' नामक स्थान है। बताया जाता है कि रामचंद्र जी ने इसी जगह पर धनुष तोड़ा था। पत्थर के टुकड़े को अवशेष कहा जाता है। पूरे वर्षभर ख़ासकर 'विवाह पंचमी' के अवसर पर तीर्थयात्रियों का तांता लगा रहता है। नेपाल के मूल निवासियों के साथ ही अपने देश के बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, राजस्थान तथा महाराष्ट्र राज्य के अनगिनत श्रद्धालु नज़र आते हैं। जनकपुर में कई मंदिर और तालाब हैं। 'विहार कुंड' तालाब के पास ३०-४० मंदिर हैं।  संस्कृत विद्यालय तथा विश्वविद्यालय  है। विद्यालय में छात्रों को रहने तथा भोजन की निःशुल्क व्यवस्था है। विद्यालय 'ज्ञानकूप' के नाम से जाना जाता है। मंडप के चारों ओर चार छोटे-छोटे 'कोहबर' हैं जिनमें सीता-राम, माण्डवी-भरत, उर्मिला-लक्ष्मण एवं श्रुतिकीर्ति-शत्रुघ्र की मूर्तियां हैं। राम-मंदिर के विषय में जनश्रुति है कि अनेक दिनों तक सुरकिशोरदासजी ने जब एक गाय को वहां दूध बहाते देखा था । स्थलीय खुदाई करायी जिसमें श्रीराम की मूर्ति मिली। वहां एक कुटिया बनाकर उसका प्रभार एक संन्यासी को सौंपा, इसलिए अद्यपर्यन्त उनके राम मंदिर के महन्त संन्यासी ही होते हैं जबकि वहां के अन्य मंदिरों के वैरागी हैं। जनकपुर में  कुंड में  रत्ना सागर, अनुराग सरोवर, सीताकुंड है । मंदिर से कुछ दूर 'दूधमती' नदी के बारे में कहा जाता है कि जुती हुई भूमि के कुंड से उत्पन्न शिशु सीता को दूध पिलाने के उद्देश्य से कामधेनु ने  धारा बहायी, उसने उक्त नदी का रूप धारण कर ली थी ।
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‘ईश्वर अनादि काल से हमारा साथी है और हमेशा रहेगा”

Posted: 28 Aug 2021 03:59 AM PDT

'ईश्वर अनादि काल से हमारा साथी है और हमेशा रहेगा"

अथर्ववेद के एक मन्त्र 'अन्ति सन्तं न जहात्यन्ति सन्तं न पश्यति। देवस्य पश्य काव्यं न ममार न जीर्यति।।' में कहा गया है कि ईश्वर जीवात्मा के अति समीप है। वह जीवात्मा का त्याग नहीं करता। इसका दूसरा अर्थ यह भी है कि ईश्वर हमारे अति समीप है, जीवात्मा उसका त्याग नहीं कर सकता परन्तु अति निकट होने पर भी वह उसका अनुभव नहीं करता है। अतः इस मन्त्र की प्रेरणा से हमें अपनी आत्मा के भीतर निहित व उपस्थित ईश्वर को जानना व उसका अनुभव करना है। ऐसा करने से हमारा ईश्वर के विषय में अज्ञान दूर हो सकेगा। यदि हम इस प्रश्न की उपेक्षा करेंगे तो इससे हमारी बड़ी हानि होगी। हम अपने जीवन में सही निर्णय नहीं ले सकेंगे और सही निर्णय न लेने से हमें उनसे जो लाभ होना है, उससे वंचित हो जायेंगे। मनुष्य जब वेदाध्ययन करता है तो उसे ऋग्वेद के प्रथम मंत्र में ही ज्ञात हो जाता है कि हम प्रकाशस्वरूप, ज्ञानस्वरूप, अज्ञान व अविद्या को दूर करने वाले, अग्नि के समान तेजस्वी व देदीप्यमान तथा सब ऐश्वर्याें के स्वामी ईश्वर को जानें वा उसकी उपासना करें। जब हम ईश्वर को जान जायेंगे तो हमें ज्ञात होगा कि संसार में हमारा आदर्श केवल ईश्वर ही हो सकता है। हमें ईश्वर के गुणों को जानना व उनको जीवन में धारण करना है। ईश्वर के गुणों को धारण करना और वैसा ही आचरण करना धर्म कहा जाता है। जिस मनुष्य के जीवन में ईश्वर के समान श्रेष्ठ गुण होते हैं, उन गुणों के अनुसार ही उसके कर्म और स्वभाव भी होता है। वह मनुष्य समाज में यश व सम्मान पाता है।


ईश्वर को जानने के लिये वेद के अतिरिक्त वेदानुकूल ग्रन्थों का नित्य प्रति स्वाध्याय करना आवश्यक है। नियम है कि हम प्रतिदिन स्वाध्याय करें और स्वाध्याय में कभी अनध्याय न हो। स्वाध्याय के लिये सबसे उत्तम ग्रन्थ है वेद एवं वैदिक साहित्य। सत्यार्थप्रकाश वैदिक साहित्य के अध्ययन का द्वार कह सकते हैं। हमारी दृष्टि में स्वाध्याय आरम्भ करते हुए हमें प्रथम सत्यार्थप्रकाश का अध्ययन करना चाहिये। इससे हमारी अविद्या कम होगी व दूर भी हो सकती है। सत्यार्थप्रकाश इतर अन्य ग्रन्थों में ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका, आर्याभिविनय, संस्कारविधि सहित सभी उपनिषद, दर्शन, वेद वा वेदों पर ऋषि दयानन्द व आर्य विद्वानों का भाष्य हैं। स्वाध्याय का यह लाभ होता है कि हमारा उस विषय से सम्बन्ध स्थापित हो जाता है। हम जब उसका अध्ययन करते हैं तो वह विषय हमें विस्तार से अथवा सूक्ष्म रहस्यों सहित विदित हो जाता है। योगदर्शन में अष्टांग योग के अन्तर्गत नियमों में स्वाध्याय को स्थान दिया गया है। यदि कोई व्यक्ति स्वाध्याय नहीं करता तो फिर वह योगी सम्पूर्ण योगी नहीं हो सकता। यम व नियमों पर विचार करने पर हमें यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह, शौच, सन्तोष, तप, स्वाध्याय, ईश्वर-प्रणिधान में स्वाध्याय का महत्वपूर्ण स्थान है। स्वाध्याय से ही हम यम व नियमों के शेष 9 उप-अंगों को भी जानने में समर्थ होते हैं। अतः स्वाध्याय करके हम ईश्वर व उसके गुण, कर्म, स्वभाव सहित उसकी प्राप्ति के उपायों वा साधनों को जान सकते हैं और योगाभ्यास द्वारा समाधि की अवस्था को प्राप्त होकर ईश्वर का साक्षात्कार कर सकते हैं। ईश्वर साक्षात्कार ही मनुष्य जीवन का चरम लक्ष्य है। आवश्यकता से अधिक धनोपार्जन सहित अनैतिक कार्यों व आचरण से धन व सम्पति की प्राप्ति एवं संग्रह धर्मानुकूल न होने से पाप होता है जिससे मनुष्य का वर्तमान एवं भविष्य का जीवन दुःखमय बनता है।


वेद में यह भी कहा गया है कि मनुष्य ईश्वर के अत्यन्त समीप होने पर भी उसे देखता वा उसका अनुभव नहीं करता है। इस पर विचार करते हैं तो यह विदित होता है कि ईश्वर गुणी है। उसके गुणों को जानना तथा उन गुणों का सृष्टि में प्रत्यक्ष करना ही ईश्वर को देखना कहलाता है। वेदों के अनुसार ईश्वर सच्चिदानन्दस्वरूप है। इसका अर्थ है कि ईश्वर सत्य, चित्त एवं आनन्दस्वरूप है। इन गुणों को देखने के लिये हमें इस सृष्टि के कर्ता को जानना होता है। जब हम यह समझ लेते हैं कि यह सृष्टि ईश्वर के द्वारा इसके उपादान कारण प्रकृति से बनी है, तो हमें उसकी सत्ता सहित उसके चेतन, ज्ञान युक्त तथा कर्म की सामथ्र्य से युक्त होने का ज्ञान होता है। इतनी बड़ी सृष्टि को आनन्द से रहित चेतन सत्ता, जो जन्म-मरण में भी परतन्त्र है, इस वृहद सृष्टि का निर्माण नहीं कर सकती। यदि ईश्वर में आनन्द न हो तो वह आनन्द की प्राप्ति में प्रयत्नरत रहेगा जिससे वह सृष्टि का निर्माण नहीं कर सकता। सृष्टि का अतीत में निर्माण अवश्य ही हुआ है। सृष्टि हमें अपने नेत्रों से स्पष्ट दृष्टिगोचर हो रही है और विगत 1.96 अरब वर्षो से यह सृष्टि आदर्श रूप में संचालित भी हो रही है। अतः ईश्वर का आनन्द गुण से युक्त होना सिद्ध होता है।


मनुष्य चेतन, एकदेशी, ससीम और अल्पज्ञ सत्ता है। जब आत्मवान मनुष्य अस्वस्थ, सुख व आनन्द से रहित तथा दुःखी होता है तो यह अपने सामान्य कामों को भी नहीं कर सकता। ज्वर हो जाने पर मनुष्य को विश्राम करने की सलाह दी जाती है। अतः इस सृष्टि को बनाने व चलाने वाली सत्ता ईश्वर का सत्य होना, चेतन होना तथा आनन्द से युक्त होना अनिवार्य है। तभी यह सृष्टि बन व चल सकती है। इस प्रकार वेदाध्ययन के द्वारा हम ईश्वर के सत्यस्वरूप को जानकर उसको अपने भीतर व बाहर अनुभव कर सकते हैं। ईश्वर हमारे अत्यन्त निकट वा हमारी आत्मा के भीतर व बाहर विद्यमान है। उसको जानकर उसका प्रत्यक्ष करने के लिये ही योग में प्रथम छः अंगों के पालन सहित शेष दो अंगों ध्यान व समाधि में ईश्वर का साक्षात् अनुभव करने का अभ्यास किया जाता है। ध्यान व समाधि की साधना जब सिद्ध हो जाती है तब ईश्वर साधक की आत्मा में अपने स्वरूप का प्रकाश कर देता है। हम इसे इस प्रकार समझ सकते हैं कि ईश्वर साक्षात्कार से पूर्व हमारी स्थिति अन्धकार में विचरण करने वाले मनुष्य के समान होती है। हमें वहां उपस्थित वस्तुओं का ज्ञान नहीं होता अर्थात् मनुष्य उन्हें देख नहीं पाता है। जब वहां एक दीपक जला देते हैं तो इससे अन्धकार नष्ट हो जाता है और वहां उपस्थित सभी वस्तुयें निर्दोष रूप में स्पष्ट दिखाई देती हैं। इसी प्रकार से ध्यान व समाधि की सिद्धि होने पर आत्मा में प्रकाश उत्पन्न होता है जिससे ईश्वर का सत्यस्वरूप प्रत्यक्ष अनुभव होता है। योगियों द्वारा ईश्वर का साक्षात्कार होने पर वेद की यह बात सत्य सिद्ध होती है ईश्वर हमारे समीप अर्थात् हमारी आत्मा के भीतर व बाहर विद्यमान है।


वेदमन्त्र में तीसरी बात यह कही गई है कि हमें ईश्वर के वेद काव्य को देखना व जानना चाहिये। ईश्वर का वेद काव्य ऐसा है कि जिसको जान लेने पर ज्ञाता न मरता है और न ही जीर्ण होता है। अथर्ववेद के भाष्यकार पं0 विश्वनाथ विद्यालंकार जी ने लिखा है कि मनुष्य व साधक को ईश्वर के वेदकाव्य को देखना चाहिये, जिससे ज्ञात होगा कि इस के दर्शन के उपाय क्या हैं? दर्शन पाकर व्यक्ति मुक्त हो जाता है और बार-बार जन्म ले कर, बार-बार मरने और जीर्ण होने से उसे छुटकारा मिल जाता है। वेदों में एक मन्त्र आता है जिसमें कहा गया है कि मैं वेदों का अध्ययन करने वाला मनुष्य संसार के स्वामी ईश्वर को जानता हूं जो संसार में सबसे महान है। उसी को जानकर मनुष्य मृत्यु से पार जा सकता है। इसके अतिरिक्त जीवन जीने का अन्य कोई मार्ग नहीं है। इससे यह ज्ञात होता है कि वेद पढ़कर ही हम ईश्वर के यथार्थ स्वरूप को जान सकते हैं। ईश्वर और उसका काव्य वेद न कभी मरता है और न कभी जीर्ण होता है अर्थात् सृष्टि के आदि काल से प्रलयावस्था व कल्प-कल्पान्तरों में वेदज्ञान ही मनुष्यों को मृत्यु से पार ले जाकर उन्हें अमृत की प्राप्ति कराता है।


वेदों की इस शिक्षा से मनुष्य को इस संसार का रहस्य ज्ञात हो जाता है। रहस्य यह है कि ईश्वर सृष्टिकर्ता है। वह हमारे अति निकट है। अति निकट होने पर भी हम उसे जानते नहीं है। ईश्वर को हम उसके काव्य वेद व उसके स्वाध्याय के द्वारा देख सकते वा जान सकते हैं। ईश्वर को जानना व उसका साक्षात्कार करना ही मनुष्य जीवन का मुख्य उद्देश्य व परम लक्ष्य है। हमें ईश्वर को जानने व उसे प्राप्त करने के अपने कर्तव्य की पूर्ति में तत्पर रहना चाहिये। इसके परिणाम अवश्य ही सुखदायक व मनुष्य जीवन के सभी दुःखों को समाप्त करने में सहायक होंगे। ओ३म् शम्।

-मनमोहन कुमार आर्य
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सन्यासी और मठ तथा धर्मनिर्णय

Posted: 28 Aug 2021 03:56 AM PDT

सन्यासी और मठ तथा धर्मनिर्णय

-प्रो. रामेश्वर मिश्र पंकज
आदि शंकराचार्य जीवनपर्यन्त ब्रह्मचारी रहे। उन्होंने सनातन धर्म के तत्वदर्शन के उत्कर्ष के लिये श्रृंगेरी, पुरी, द्वारका एवं बद्रीधाम में चार मठ स्थापित किये। परंतु बाद में देश में मठों की संख्या निरंतर बढ़ती रही।
पूर्व में, महाभारत में भी मठों और चैत्य के वर्णन आये हैं। वस्तुतः संस्कृत की ज्ञान परंपरा से अनभिज्ञ यूरो-ईसाई लोगों ने हिन्दू धर्म के विरूद्ध विशेष आग्रह के कारण चैत्य का अर्थ बौद्धों के मठ या विहार आदि कर दिया। जो कि पूरी तरह गलत है। चैत्य सनातन धर्म परंपरा में अत्यंत प्राचीनकाल से चले आये हैं और बौद्ध पंथ प्रारंभ में सनातन धर्म की एक शाखा होने के कारण उसमें भी चैत्य स्थापित किये जाते रहे। अनजान लोगों ने चैत्य को बौद्ध धर्म से जोड़ दिया तो इससे केवल उनका अज्ञान प्रकट होता है। सत्य का इससे कोई संबंध नहीं।
सन्यासियों की बहुत सी शाखायें हैं और बहुत से प्रकार हैं। अनुशासन पर्व में 4 प्रकार के सन्यासी बताये हैं - कुटीचक, बहूदक, हंस एवं परमहंस। कुटीचक सन्यासी वह है जो अपने घर के पास ही पुत्रों द्वारा बना दी गई कुटिया में रहता है और परिजनों से ही भिक्षा ग्रहण करता है। ऋषियोें के आश्रम में वह जाता-आता रहता है। बहूदक सन्यासी वे हैं जो सात पवित्र ब्राह्मणों के यहां से भिक्षा मांगकर भोजन लेते हैं। हंस लोग किसी ग्राम में एक रात से अधिक नहीं ठहरते और किसी नगर में पांच रात्रि से अधिक नहीं ठहरते। वे बीच-बीच में चान्द्रायण आदि कठिन व्रत करते रहते हैं। परमहंस सदा पेड़ के नीचे या श्मशान या किसी खाली पड़े मकान में रहते हैं और सभी वर्णों के यहां भिक्षा मांगते हैं तथा सबको एक समान मानते हैं। परमहंसो की भी कई श्रेणियां शास्त्रों में वर्णित हैं। अवधूत, तुरीयातीत आदि भी सन्यासियों के प्रकार हैं।
केवल अद्वैतदर्शन के अनुयायी सन्यासियों की ही दस शाखायें हैं - तीर्थ, आश्रम, वन, अरण्य, गिरि, पर्वत, सागर, सरस्वती, भारती एवं पुरी। अन्य दर्शनों - द्वैत, अद्वैताद्वैत, विशिष्टाद्वैत आदि की भी अनेक शाखायें हैं और अनेक मठ हैं। हिन्दुओं में इन सभी के अनुयायियों की भी बहुत बड़ी संख्या है। मठों के स्वामी महन्त कहलाते हैं। महन्तों की भी मंडलेश्वर, महामंडलेश्वर आदि श्रेणियां हैं।
शस्त्रधारी मुसलमान फकीरों ने अपने-अपने मुसलमान जागीरदारों की जागीर बढ़ाने के लिये हिन्दुओं के विरूद्ध जेहाद की घोषणा करके या बिना घोषणा किये भी बड़ी संख्या में हिन्दुओं की हत्यायें कीं और हिंदू राजाओं का भी वध किया। हिन्दुओं की हत्या से दुखी मधुसूदन सरस्वती ने दस में से सात नामों वाले सन्यासियों को अस्त्र-शस्त्र से सुसज्जित किया और उन्हें मुसलमान फकीरों के अत्याचारों को रोकने के लिये खड़ा किया। अंग्रेजों ने दोनों को ही ठग एवं डकैत घोषित कर उनका दमन किया और उन्हें आपस में लड़ने को भी प्रेरित किया।
महत्वपूर्ण बात यह है कि 18वीं शताब्दी ईस्वी में प्रायश्चितेन्दुशेखर तथा प्रायश्चितनिर्णय के लेखक नागेश भट्ट या नागोजिभट्ट ने लिखा है कि वेदव्यासकृत सन्यास पद्धति के अनुसार जब कलियुग के 4400 वर्ष बीत जायें तो विवेकी ब्राह्मणों को सन्यास नहीं ग्रहण करना चाहिये। 14वीं शताब्दी ईस्वी के आरंभ में 4401 वर्ष बीत चुके थे। इस प्रकार इस व्यवस्था के अनुसार तो 14वीं शताब्दी ईस्वी के आरंभ से किसी को सन्यासी होना ही नहीं चाहिये। परंतु 14वीं शताब्दी ईस्वी के बाद हिन्दू धर्म में सन्यासियों की संख्या लगातार बढ़ती रही है। 17वीं शताब्दी ईस्वी में महान विद्वान कमलाकर भट्ट ने निर्णयसिन्धु नामक श्रेष्ठ ग्रंथ लिखा। उसके तृतीय परिच्छेद में कहा है कि सन्यास संबंधी वर्जना केवल त्रिदंडी सन्यासियों के लिये है। शेष सभी प्रकार के सन्यास के लिये कलियुग में लोग सन्यास ग्रहण की पात्रता रखतेे हैं।
धर्मनिर्णय और सन्यासी -
सन्यासी को लौकिक जीवन में किसी भी प्रकार की रति नहीं होनी चाहिये। अतः गृहस्थ जीवन के किसी भी कार्य में सन्यासी किसी प्रकार की रति नहीं रखते। ऐसी स्थिति में धर्मसंबंधी किसी विषय पर दुविधा या संशय की स्थिति में धर्मनिर्णय का अधिकारी कौन है, यह प्रश्न निरंतर उठता रहा है। इसका समाधान धर्मशास्त्रों ने यह किया है कि वस्तुतः ब्राह्मणों की सम्मति से राजा ही इस विषय में निर्णय कर सकता है। यह निर्णय विद्वान ब्राह्मणों की परिषद के परामर्श के अनुसार ही हो सकता है। अतः सन्यासी को धर्मनिर्णय के प्रसंग से दूर ही रखा गया है।
तैत्तिरीय उपनिषद में शिक्षावल्ली का 11वा अनुवाक है -
अथ यदि ते कर्मविचिकित्सा वा वृत्तविचिकित्सा वा स्यात्। ये तत्र ब्राह्मणाः सम्मर्शिनः। युक्ता आयुक्ताः। अलूक्षा धर्मकामाः स्युः। यथा ते तत्र वर्तेरन्। तथा तत्र वर्तेथाः। अथाभ्याख्यातेषु। ये तत्र ब्राह्मणाः सम्मर्शिनः। युक्ता आयुक्ताः। अलूक्षा धर्मकामाः स्युः। यथा ते तेषु वर्तेरन्। तथा तेषु वर्तेथाः। एष आदेशः। एष उपदेशः। एषा वेदोपनिषत्। एतदनुशासनम्। एवमुपासितव्यम्। एवम चैतदुपास्यम्।
अर्थात् यदि किसी कर्म के विषय में दुविधा उत्पन्न हो जाये अथवा किसी वृत्त यानी आचरण के विषय में दुविधा हो जाये तो ऐसी स्थिति में उत्तम विवेकवान तथा परामर्शपटु और सदाचार परायण एवं रूखेपन वाले स्वभाव से रहित ब्राह्मणों से परामर्श कर लेना चाहिये अथवा उनके आचरण को देखना चाहिये, जैसा-जैसा वे धर्माभिलाषी ब्राह्मण आचरण करते हों, वैसा ही वैसा आचरण तुम्हें करना चाहिये। यही गुरूजनों का उपदेश है और यही वेदरहस्य है तथा यही परंपरागत अनुशासन है। तुमको इसी प्रकार बर्ताव करना चाहिये, इसी प्रकार बर्ताव करना चाहिये।
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अधिवक्ता योगेश मिश्र बनाए गए विराट ब्राह्मण एकता परिषद के सचिव

Posted: 28 Aug 2021 03:46 AM PDT

अधिवक्ता योगेश मिश्र बनाए गए विराट ब्राह्मण एकता परिषद के सचिव

अधिवक्ता योगेश मिश्र को विराट ब्राह्मण एकता परिषद के जिला सचिव बनाए जाने से औरंगाबाद का ब्राह्मण समाज अत्यंत ही हर्षित एवं उत्साहित है। श्री मिश्र की इस उपलब्धि पर पटेल नगर स्थित अंबे आश्रम में एक सम्मान समारोह आयोजित किया गया जिसकी अध्यक्षता डॉ सुरेंद्र प्रसाद मिश्र तथा संचालन धनंजय जयपुरी ने किया।
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डॉ भगवती शरण मिश्र पञ्चतत्व में विलीन : नम नयनों ने दी बिदाई !

Posted: 28 Aug 2021 03:12 AM PDT

डॉ भगवती शरण मिश्र पञ्चतत्व में विलीन : नम नयनों ने दी बिदाई !

दिल्ली से'भास्कर',दिल्ली केप्रवक्ता,  बिबेका नन्द मिश्र ने जानकारी दी कि प्रखर लेखनी, मृदुल स्वभाव व भव्य व्यक्तित्व के धनी पूर्व आई ए एस अधिकारी डॉ भगवती शरण मिश्र की अंत्येष्ठि पश्चिमी दिल्ली के निहाल विहार मुक्ति धाम में सम्पन्न हुई । इसप्रकार अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्यातिलब्ध साहित्यकार व शाकद्वीपीय जगत का एक मूर्धन्य नक्षत्र अब अपनी 'कीर्ति गाथा-ग्रन्थ' के स्वर्णिम पन्नों के विषय मे तब्दील हो गया । उनके पुत्र डॉ दुर्गा शरण मिश्र, दामाद लव कुमार मिश्र व अन्य परिजनों के सानिध्य में सम्पन्न दाह संस्कार में संस्था 'भास्कर दिल्ली' की ओर से अध्यक्ष प्रणव कुमार मिश्र की व मेरी उपस्थिति रही। भगवान भास्कर से प्रार्थना है कि दिवंगत महत् आत्मा को सद्गति प्राप्त हो ।
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प्री वेडिंग :: लाइफ टाईम गारन्टी वाली बीबी

Posted: 28 Aug 2021 01:56 AM PDT

प्री वेडिंग :: लाइफ टाईम गारन्टी वाली बीबी

छोटा बच्चा हाथ से खिलौना छीन लेने पर जैसे झल्ला उठता है, उसी तरह झल्लाते हुए भुलेटनभगत मॉल से बाहर निकले। एकदम से पुलिसिया अन्दाज़ में अपने नाती का हाथ जकड़ रखा था, जिसका तमतमाया हुआ चेहरा, ऊँची डंठल पर खिलकर मुरझाये हुए फूल की भाँति लटका हुआ था। संयोग से मैं वहीं से गुज़र रहा था। नजर पड़ जाने पर, हाल-हुलिया जाने-समझे वगैर चल देना भी तो ना इन्साफ़ी है। अतः पूछना पड़ा—क्या बात है भगतजी ! नाती ने मॉल में पॉकेटमारी की है क्या, जो इस कदर इसका हाथ उमेठे लिए जा रहे हैं? क्रोध में तो लोग कान उमेठते हैं, किन्तु आजकल तो 'चाइल्डटॉर्चर' में आता है, इस तरह की गार्जियनी। बच्चा नालायक निकल जाए, कोई बात नहीं, परन्तु गुरुजी या अभिभावक उसे शारीरिक दण्ड नहीं दे सकते। डांट-डपट भी ज्यादा करेंगे तो 'मेन्टलटॉर्चर' का मुकदमा हो जायेगा। अंग्रेजी कानून की फोटोकॉपी वाला अपना वाला कानून भी शिक्षा-व्यवस्था की तरह ही बिलकुल 'कॉन्वेंटी' हो गया है।
जैसा कि हम सब जानते ही हैं, भगतजी बोलने में माहिर हैं, सुनने में उन्हें बहुत कम दिलचश्पी है। किन्तु आज पहली बार ऐसा हुआ है कि मैं पहले इतना बोल गया और उन्हें बोलने का मौका न दिया। उनके सब्र की बाँध सरकारी 'डैम' की तरह बिन बरसात के ही भरभरा कर ढह गया और दांत पीसते हुए कहने लगे—
" ये कॉन्वेंटी व्यवस्था ने सब कुछ चौपट कर दिया है हमारा—लोक-लाज, नेत-धरम, मान-मर्यादा...। आज नतिया ने जिद्द की नये वाले मॉल से जीन्स-टॉप खरीदने के लिए। भले-चंगे कपड़े को फाड़-फूड़, बदरंग कर पहनने का फैशन चल पड़ा है। हमारे जमाने में तो भिखमंगा भी ऐसा ड्रेस पसन्द नहीं करता, जो आज के हीरो टाइप लड़के कर रहे हैं। मजे की बात ये है कि मॉल में बाकायदा 'ट्रायल रुम' बना हुआ है—कपड़े पसन्द करो, अन्दर जाकर पहन कर आईने के सामने दो-चार पोज़ मारो , फिट जँचा तो ओ.के., वरना चेंच...। 'टेस्ट एण्ड ट्रायल' वाजारवाद का नया ट्रेंड है, हर चीज जाँच-परख कर लेने वाली । एक के साथ एक 'फ्री' वाला मजा भी। बहुत सी चीजों में गारन्टी ही नहीं, 'वारंटी' भी। पछुआ वयार ने एक से एक नयी बीमारी लगा दी है। गन्धर्व विवाह और वरमाला का रिवाज़ तो पहले भी था, अँगूठियों की अदला-बदली पहले भी होती थी। किन्तु अब 'रिंग सेरेमनी' से भी पहले 'प्री वेडिंग' का एक नया रिवाज़ निकल पड़ा है—ओवर अल्ट्रामॉर्डेन सोशायटी में। तुम जानते ही हो कि अल्ट्रामॉर्डेन का मतलब ही होता है—औंधे मुंह गिरा हुआ आदमी। और उसमें भी 'ओवर' वाला एडजेक्टिव लग जाए तो सोचो क्या गति होगी...। "
मैं जरा चौंका—'रिंग सेरेमनी' तो सुना हूँ। देखा भी हूँ; किन्तु ये 'प्री वेडिंग' क्या होता है भगतजी ! आज पहली बार आपके मुँह से सुन रहा हूँ।
भगतजी ने गिरगिट की तरह गर्दन हिलायी— "बड़े चतुर हो। सबकुछ हमारे ही मुँह से सुन-जान लेना चाहते हो। वो कार बेचने वाले 'टेस्ट ड्राईव' के लिए चाभी सौंपते हैं कुछ देर के लिए, कुछ-कुछ वैसा ही होता है ये नयी वाली वेडिंग-सेडिंग-सिस्टम में। वो जींस-टॉप मार्का जोड़ियाँ अपनी औकात मुताबिक टूर-प्रोग्राम बनाती हैं हिल-सिल या 'सी बिच' एरिया में। समुद्र की गहराई और पहाड़ की ऊँचाई से तुलना करती हैं अपने इश्क-वो-मुहब्बत का। जी भर कर मौज-मस्ती होती है प्री वेडिंग प्रोग्राम में । और जब जी भर जाता है, तो वापस आकर या तो रिंगसेरेमनी और वेडिंग प्रोग्राम बनता है या किसी नये टेस्ट-ड्राईव की तैयारी होने लगती है। टेस्ट ड्राईव के बीच कुछ ज्यादा गड़बड़-सड़बड़ हो गया यदि और नौसिखुआ ड्राईवर साफ मुक़र गया तो बहुत बार आत्महत्या की नौबत भी आ जाती है। हालाँकि आजकल 'डी.एन.सी.' के कलाबाजों के सजे-धजे नर्सिंगहोम सदा ऐसे अनाड़ी ड्राईवरों और गाड़ियों की तलाश में आश लगाये रहते हैं। ये सब कॉन्वेंटी सभ्यता की देन है बबुआ। मजे की बात तो ये है कि आधुनिक माँ-वाप अपने बच्चों को इस सभ्यता में सुशिक्षित करने के लिए जी-जान लगा देते हैं। सनातन गुरुकुल शिक्षा-व्यवस्था की समाधि पर कॉन्वेंटी शिक्षा-पद्यति की नींव डाली गयी है। कन्वेंटी का असली वाला अर्थ मालूम है न? "
मैंने हामी भरी—क्यों नहीं। आजकल तो विश्वभाषा अंग्रेजी का बोलबाला है न और अंग्रेजी की अच्छी शिक्षा तो कॉन्वेंट स्कूलों में ही मिल सकती है।
तेल चुक चुके दीए जैसा अचानक भभक पड़े भगतजी— "दुनिया के दो सौ तीस देशों में मात्र साढ़े तीन देश की भाषा को विश्वभाषा कहते शरम नहीं आती तुम्हें? अंग्रेजियत के दुम खुसे भारतीयों के अलावे कोई मूरख ही होगा, जो सबसे दरिद्र भाषा को विश्वभाषा का दर्जा दे। रही बात कॉन्वेंट की। लगता है तुम्हें इसका भी असली अर्थ नहीं मालूम। यस सर...यस सर का रट्ट लगाने वालों को न 'Sir' का अर्थ मालूम है और न कॉन्वेंट का। और भी बहुत से ऐसे प्रचलित शब्द हैं, जिनका हम प्रयोग तो धड़ल्ले से करते हैं दिन-रात, परन्तु असली अर्थ का कुछ अता-पता नहीं होता। हर सुसभ्य महिला खुद को 'मैडम' सम्बोधित होना पसन्द करती है। 'मिस्टर' और 'मिसेस' 'मिस्स' को आदर सूचक शब्दों में गिना जाता है। किन्तु सोचने वाली बात है कि ये सब यदि आदर सूचक शब्द हैं, तो फिर अनादर सूचक किसे कहा जाए ! 'Slave I Remain' के पहले अक्षरों को निकाल कर शब्द बना SIR जिसका प्रचलित अर्थ आदर सूचक शब्द महाशय लिया जाता है, जबकि असली प्रयोजन है ये स्वीकृति – मैं आपका सदा गुलाम रहूँगा। फिरंगी शासक यही चाहते थे—पूरी दुनिया उनकी गुलाम बनी रहे और इसी उद्देश्य से इस एब्रीवियेशन को प्रचारित किया गया था। तुम्हें मालूम होना चाहिए कि अंग्रेजों के यहाँ वाकायदा विवाह से कहीं अधिक प्रचलन है— ' लीव इन रिलेशनशिप ' का । और इस अधिकार-अनाधिकार की बात से प्राकृतिक प्रजनन-व्यवस्था को कुछ लेना देना नहीं। अनधिकृत जोड़े साथ-साथ रहेंगे तो भी बच्चे तो पैदा होंगे ही न ! और फिर उन बच्चों के परवरिश का दायित्व-बोझ कौन वहन करेगा—मौज में बहते पुरुष या स्त्री ! स्वतन्त्र मिज़ाज़ मन मौज़ियों को दायित्व-बोध कहाँ ! नतीजन एक समय ऐसा आया कि लावारिशों की कौम खड़ी हो गयी पश्चिम में। सत्रहवीं शती के शुरुआती दिनों में एक विचारक ने बड़े यत्न से एक परम्परा चलाई—कॉन्वेंट—यानी लावारिशों की परवरिश का स्थान नियत किया गया ईसाईयों के उपासना गृह— चर्चों में। फादर, मदर, सिस्टर सम्बोधन के साथ लावारिशों को तथाकथित माँ, वाप, बहन के रिश्तों का छद्म एहसास कराया जाने लगा। उन्नीसवीं शती के मध्य आते-आते अंग्रेज-शासित भारत में भी बड़े सुनियोजित ढंग से ये परम्परा पनपने लगी। और अब तो सबकुछ मेकाले और उसके तथाकथित औलादों के आबनूसी नियम-कायदों के शख्त गिरफ़्त में आ चुका है। मिस्टर का सही अर्थ कोई सभ्य आदमी नहीं होता और न मिसेस का अर्थ सभ्य महिला ही होता है। ये दोनों ही 'रखैल' बोधक अर्थ वाले हैं। एक से अधिक पुरुषों से सम्बन्ध बनाने वाली औरत को मिसेस कहा जाता है और अनेक स्त्रियों से सम्बन्ध बनाने वाले पुरुष को मिस्टर। यानी कि पति-पत्नी के पवित्र बन्धन से मुक्त है ये सम्बन्ध। अतः इस भ्रम में न रहो कि पत्नी को मिसेस कह कर आदर दिया जा रहा है और पति को मिस्टर कह कर। रही बात लाईफ टाईम गारन्टी वाली बीबी ढूढ़ने वाले सिरफिरों की, जो प्रीवेडिंग टेस्ट को अपना रहे है पागलों की भाँति, तो उन्हें जान लेना चाहिए कि ये गारन्टी सिर्फ और सिर्फ भारतीय विवाह पद्यति में ही मिल सकती है और न्याय-व्यवस्था के धोंधेबसन्तों को भी जान लेना चाहिए कि भारतीय विवाह पद्यति में 'तलाक' नाम की मर्ज़ नहीं है और 'डाइवोर्स' तो तलाक का ही भाषान्तर मात्र है। ये बात दिग़र है कि अंग्रेजों के सारे पोथड़ों को हमने ससम्मान सिर चढ़ा रखा है, उसी तरह हमारी स्मृति और धर्मशास्त्रों को धत्ताबता कर, 'होमोसेक्स' और 'लीव इन रिलेशन शिप' को भी कानूनी ज़ामा पहना दिया है तथाकथित बुद्धि विशारदों ने, जिन्हें बौद्धिक होने का भ्रम हो गया है सत्ता के गलियारों में टहलते-टहलते। प्रीवेडिंग एक अन्धकूप है, जिसमें युवा वर्ग औंधे मुँह गिरने को बेताब है। मजे की बात ये है कि पश्चिम इन असभ्यताओं से उब कर हमारी परम्पराओं को अपना रहा है और हम हैं कि उसी खाई में कूदने को सौभाग्य और सभ्यता समझ रहे हैं।

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