जनवादी पत्रकार संघ - 🌐

Breaking

Home Top Ad

Post Top Ad

Monday, July 27, 2020

जनवादी पत्रकार संघ

जनवादी पत्रकार संघ


*नेल्सन मंडेला किसके समकक्ष अंबेडकर या गांधी?*

Posted: 27 Jul 2020 01:22 AM PDT


ब्राह्मण लेखक इतिहासकार और पत्रकारों में नेल्सन मंडेला को गांधीवादी की उपाधि दी. नेल्सन मंडेला दक्षिण अफ्रीका के डॉ आंबेडकर हैं. शोषित वर्ग के अधिकारों के लिए संघर्ष करने वाला व्यक्ति गांधीवादी कैसे हो सकता है ?

नेल्सन मंडेला खुद अपने आप में एक विचारधारा है, उस सोच उस क्रांति का नाम मंडेलावाद है. वैसे बहुत कम लोग ही जानते है नेल्सन मंडेला मार्क्सवादी थे. संघर्ष के दिनों में वे गुप्त रूप से अफ़्रीकन कम्युनिस्ट पार्टी से भी जुड़े थे. यूरोपियन पॉवर ने उन्हें कम्युनिज्म को दक्षिण अफ्रीका में लागू करने नही दिया !

अल्पसंख्यक श्वेत समुदाय ने अपने वर्चस्व के लिए अलगाववाद नीति अपेरथेड लागू कर बहुसंख्यक ब्लैक आबादी से सारे मौलिक अधिकार छिन लिए. उनसे वोट डालने से लेकर धन संपत्ति भूमि रखने का भी अधिकार छीन लिया गया !

बहुसंख्यक आबादी की आवाज़ बनी अफ़्रीकन नेशनल कांग्रेस - ANC जिसके नेता थे नेल्सन मंडेला. 1960 में शार्पविल्ले नरसंहार में गोरी चमड़ी पुलिस ने 249 ब्लैक नागरिकों की गोली मारकर हत्या कर दी, जिसमे 29 मासूम बच्चे थे !

इस नरसंहार के बाद अफ़्रीकन नेशनल कांग्रेस ने मजबूर होकर स्वतंत्रता की लड़ाई के लिए सशस्त्र बल UMKHONTO WE SIZWE - MK का गठन किया जिसके डिप्टी कमांडर नेल्सन मंडेला बने. नेल्सन मंडेला को गिराफ्तार किया गया, उनपर कई झुठे मुक़दमे दायर कर केस चलाया गया !

नेल्सन मंडेला ने अपनी बात रखते हुए कोर्ट के कटघरे में खड़े होकर तीन घन्टे का प्रसिद्ध भाषण दिया " I AM PREPARED TO DIE" मैं मरने के लिए तैयार हूँ. न्यायालय ने उम्रकैद की सज़ा सुनाई. उन्हें कैदी बनाकर दक्षिण अफ्रीका की मुख्य भूमि से दूर रोबिन आइलैंड के जेल में रखा गया !

इस जेल में उन्हें बहुत यातना दी गयी. उनसे पत्थर तोड़वाया जाता. अधिक प्रताड़ना के लिए उन्हें चुने की खदान में भेझ दिया गया. उन्हें चश्मा पहनने नही दिया जाता, तपती धूप में चुने की चमक से उनकी आंखें ख़राब होने लगी !

जेल में सारा दिन काम करने के बाद रात को लॉ की पढ़ाई करते. उन्हें छह महीने में एक बार चिट्ठी लीखने और चिट्ठी पाने की आज़ादी थी. लेकिन उनकी लिखी चिट्ठी और उनके लिए आयी चिट्ठी बदल दी जाती ताकि अवसाद में जाकर वह पागल हो जाएं !

अंतरराष्ट्रीय दबाव और गृह युद्ध के डर से श्वेत सरकार ने 27 साल बाद 1990 में नेल्सन मंडेला को रिहा कर दिया. अपेरथेड कानून के अंत के बाद 1994 में नेल्सन मंडेला दक्षिण अफ्रीका के पहले राष्ट्रपति बने. सत्ता पूरी तरह ब्लैक समुदाय के पास आयी !

लेकिन समाज में आर्थिक आधार पर आज भी अघोषित अपेरथेड जारी है. 10% आबादी के पास 90% संपत्ति पर कब्ज़ा है. इस 10% में गोरों की संख्या 50% से अधिक है. देश के टॉप पांच अरबपति श्वेत समुदाय के हैं !

1994 के बाद से सिर्फ 10% भूमि अधिग्रहण कर जरूरतमंदों को दी गयी. 60% ब्लैक समुदाय गरीबी रेखा से नीचे जीवन व्यतीत कर रहे हैं. सत्ता ब्लैक समुदाय आबादी के पास जरूर आयी लेकिन पैसा आज भी गोरों के पास है !

कितने भी आप अपने नस्ल जाति के राष्ट्रपति प्रधानमंत्री मुख्यमंत्री बना दें, जब तक आर्थिक आधार पर विकास नही करते क्या फ़ायदा ऐसी सत्ता और ताक़त का ?

साभार :- Kranti Kumar सर कि वाल से

*दलित राजनैतिक क्रांति के जनक कांशी राम और दलित राजनीति की शुरुआत*

Posted: 27 Jul 2020 01:14 AM PDT




यह बात उन दिनों की है  जब  सन 1988 में वी पी सिंह एक बागी नेता थे, उन्होंने राजीव गाँधी की चूलें हिला दी थी बोफोर्स काण्ड को एक्सपोज़ कर के।
ना केवल राजीव बल्कि पूरा देश और पूरी दुनिया इंतज़ार में थी के वी पी सिंह क्या करेंगे राजीव का अगर सत्ता में आ गए तो !

अगला लोकसभा इलेक्शन अभी साल डेड साल दूर था, लेकिन चूंकि वी पी सिंह ने लोकसभा से इस्तीफ़ा दे दिया तो तो अभी री-इलेक्शन होना था अलाहबाद सीट पर।
कांग्रेस भी तैयार थी वी पी सिंह को हराने के लिए,
उन्होंने पूर्व प्रधानमन्त्री लाल बहादुर शास्त्री के बेटे को टिकट दे दी थी वी पी सिंह के खिलाफ।
टक्कर इन्ही दोनों में थी, और दांव पर थी हिंदुस्तान की सत्ता,
शास्त्री के बेटे जीतते तो वी पी सिंह की कहानी ख़त्म थी, पब्लिक में जो विद्रोह और जोश भरा हुआ था वो ठंडा हो लेता,
और वी पी जीतते तो वो हीरो बनने तय थे, एक जायंट किलर !
.

यानी दोनों ही तरफ बाहुबल और पैसे और पब्लिक सपोर्ट से लबरेज नेता लड़ रहे थे।
.

मगर,
.

ये लड़ाई अब त्रिकोणीय होने वाली थी,
एक पंजाब का दलित नेता भी इस मैदान में कूदने वाला था,
.

उस नेता का नाम था कांशी राम !
.

कांशीराम कई साल से देश में घूम रहे थे अपने मिशन को लेकर, लेकिन उन्हें अभी तक राजनितिक कामयाबी नहीं मिल पाई थी।
और उनका मिशन क्या था ?
.

कांशी राम असल में एक बागी दलित नेता थे।
उस समय तक की दलित पॉलिटिक्स कांग्रेस और उस से जुड़े कुछ दलों के आसपास चलती थी।
लेकिन ये बात कांशीराम को पसंद नहीं थी।
कांशीराम ने ऐसी राजनीती करने वाले जगजीवन राम और पासवान दोनों को चमचा बोला था।
उन्होंने एक किताब लिखी थी "The Chamcha Age" जिसमे उन्होंने पूर्व में हुए सभी दलित नेताओं की धज्जियाँ उड़ा रखी थी।
कांशीराम की फिलोसोफी थी के ऐसे नेताओं के पिछलग्गू बने रहने से दलितों को कभी सत्ता हासिल नहीं होनी।
उनका तर्क था की बाकी कास्टस के साथ जातीय हिंसा नहीं होती है क्यों उनमे समय समय पर नेतृत्व उभरता रहता है और सत्ता हासिल होती रहती है, जबकि दलितों में कभी सत्ता नहीं आती इसलिए उनके साथ जातीय हिंसा होती है ।
.

कांशीराम कितने दबंग नेता थे ये आजकल की बच्चा पार्टी नहीं जानती होगी, लेकिन हम बता देते हैं की कितने थे।
कांशी राम ने कहा था की अगर ये समाज उनको बैलेट से सत्ता नहीं लेने देगा तो वो बुलेट से ले लेंगे !
ऐसा बयान देने की हिम्मत उनके अलावा दो ही और लोग कर पाए थे आज़ाद हिंदुस्तान में, एक थे पंजाब के जरनैल सिंह भिंडरावाले, और दुसरे थे गोरखालैंड मूवमेंट वाले सुभाष घीसिंग।
.

कांशीराम का नारा था की "वोट हमारा राज तुम्हारा, नहीं चलेगा, नहीं चलेगा !"

कांशीराम के आप कोई भी बयान देख लीजिये, या उनका ऐटिटूड, आपको किसी दबंग से कम नहीं लगेंगे वो,
और दबंग थे भी वो, हर नेता को उसके मुंह पर औकात बता देते थे उसकी, और पत्रकारों को गाली से लेकर थप्पड़ तक सब रसीद कर चुके थे।
.

कांशी राम ने दलितों और OBC को साथ लाने का नारा दिया था के 85% पापुलेशन अगर सत्ता नहीं ले सकती तो उन्हें डूब मरना चाहिए।
उनसे जब पुछा गया की पैसा कहाँ से आएगा सत्ता परिवर्तन के लिए तो उनका जवाब था की 85% लोग अगर एक एक रुपया भी देंगे तो गिनों कितने हो जाएंगे !"
.

कांशी राम से जब एक पत्रकार ने पूछा के दलित परिवार में पैदा होकर आप में इस तरह का मिलिट्री वाला और दबंगई वाला ऐटिटूड कैसे रखते है ? उनसे पहले के किसी दलित नेता में ये ऐटिटूड नहीं था। उनके विरोधी उन्हें फासिस्ट और जातिवादी बुलाते थे, लेकिन कांशीराम विरोधियों को घंटा तवज्जो नहीं देते थे।
सवाल का उन्होंने जवाब दिया था की उनका परिवार कई पीढ़ी से फौज में है, उनके 8 पूर्वंज पहले विश्व युद्ध में लडे, और दो दुसरे में लड़े थे, और हमेशा से लड़ते आये हैं,
उनके दो भाई paracommando थे जो की ऑपरेशन ब्लू स्टार में शहीद हो गए थे। और कांशीराम खुद डिफेंस मिनिस्ट्री में कार्यरत थे। और डिफेन्स मिनिस्ट्री में भी रिसर्च एंड डेवलपमेंट में, और रिसर्च एंड डेवलपमेंट में भी हाई explosives की रिसर्च एंड डेवलपमेंट में !
उन के परिवार को लड़ने से या भिड़ने से कभी परहेज नहीं रहा था।
और कांशीराम की कद काठी देख के कोई भी कह सकता है की कांशीराम जवानी में अच्छे दबंग व्यक्ति रहे होंगे।
लेकिन वो अब 54 साल के हो चुके थे। क्या वो अब भी वही वारियर ऐटिटूड वाले होंगे ? और खासकर क्या वो देश के शायद सबसे हाई प्रोफाइल इलेक्शन में कुछ भी असर डाल पाएंगे ?
.

अलाहबाद की सीट पर 1/3 वोटर दलित थे। कांशीराम को बस उन्हें जगाना था।
तो कांशीराम साइकिल के जरिये घर घर जाकर प्रचार किया, और हर दलित परिवार से चंदा माँगा,
जिसपर की उनका कहना था की "मुझे फर्क नहीं पड़ता की आप मुझे कितने पैसे दे रहे हो, लेकिन चाहे मुझे आप 1 भी रुपया दो, लेकिन वो एक रुपया दिल से देना, और अगर आपने मुझे वो 1 रुपया दे दिया, तो दूसरा जो भी कैंडिडेट वोट मांगने आये तो उसके चप्पल फेंककर मारनी है !"
कांशीराम शास्त्री के बेटे और वी पी सिंह पर चप्पल फिंकवाना चाहते थे दलित बस्तियों में !
.

उनका तर्क था की क्या दूसरी जातियों वाले तुम्हे वोट देंगे ? क्या तुम उनके मोहल्ले में वोट भी मांगने जा सकते हो ? अगर नहीं तो उन्हें भी क्यों आने दे रहे हो ?
.

और वो युद्धकला इत्यादि में कितने महारत रखते थे वो ऐसे देखिये की उन्होंने ये इलेक्शन लड़ा कैसे था !
उन्होंने इलेक्शन मिलिट्री स्ट्रेटेजी से लड़ा था।
उन्होंने ना केवल विरोधियों के दलित इलाकों में घुसने पर हंगामे की हालात पैदा कर दी थी,
बल्कि उन्होंने पूरा सेटअप ही मिलिट्री वाला लगा दिया था।
.

एक होटल में उन्होंने 6 कमरे ले रखे थे, जिस से कण्ट्रोल रूम में सारी इनफार्मेशन पास हुआ करती थी।
कण्ट्रोल रूम था उन्हें फोल्लोवर जंग बहादुर पटेल का घर।
पूरी कोंस्टीटूएंसी को पांच गैरिसन में बांटा हुआ था,
हरेक में अपनी अलग गाड़ियों की स्कूटरों की साइकिल की सेना।
उन्होंने पंजाब के लंगर के कांसेप्ट को लागू किया था सभी पांच जगहों पर, और ये लंगर लोगों से लिए चंदे से ही लगाए गए थे।
.

इसके साथ ही उन्होंने अपनी टीम को 7 स्पेशल फोर्सेज में बांटा हुआ था, जिनको के लोगों को channelize करने का जिम्मा दिया हुआ था।
एक पेंटिंग स्क्वाड था, जिसका काम था पूरी कोंस्टीटूएंसी में नीले हाथी की दीवारों पर पेंटिंग बनानी !
एक इंटेलिजेंस स्क्वाड था जिसे अपने इलाके की पूरी इंटेलिजेंस कण्ट्रोल रूम तक पहुंचानी होती थी।
इस इंटेलिजेंस स्क्वाड को लीड करने के लिए उन्होंने दलितों के रिटायर्ड IB और RAW के अफसर चुने हुए थे !
उन्हें वी पी सिंह और शास्त्री के कैम्पस में क्या चल रहा है वो भी इनफार्मेशन इकट्ठी करनी होती थी, किस घर में पैसा पहुंचाया जा रहा है सब कुछ।
इसके अलावा एक चुटकुला स्क्वाड था, जिन्हे कुछ वी पी और राजीव पर बनाये चुटकुले अपने मोहल्लों में पॉपुलर करने थे ! ये चुटकुले पूरे चुनाव में बनते रहे थे !
.

और ये सब तैयारी इसलिए करनी पड़ रही थी, क्यूंकि शास्त्री के बेटे सत्ता में थे, जबकी वी पी उस समय देश के दिल की धड़कन थे। जरा भी कमज़ोर दिखाते और कांशीराम की एक भी वोट नहीं आनी थी !
.

अब कांशी राम को पैसा क्यों नहीं चाहिए था ?
क्यूंकि कांशीराम को दलित सरकारी अफसरों से ढेर सारा चंदा पहले से मिलता रहा था, वो देश के सभी दलितों के मसीहा बनकर उभर रहे थे उस दौर में।
और उनके आक्रामक तेवर जातीय प्रताड़ना से जूझ रहे युवाओं के लिए अमृत का काम किया करते थे, बहुत लोगों में विश्वास आने लग गया था की हमने लड़ना है, जीतना है।

कांशीराम कागज़ पर बहुजन नॉट छापते थे और दलित अफसरों को देते थे, और उसके बदले में अफसर उन्हें असली नोट देते थे। उस समय के नोट आज भी बहुत रिटायर्ड अफसरों ने सहेज कर रखे हुए हैं, चाहे वो आज बसपा में हो या कहीं और, कांशीराम के वो नोट और कांशीराम उनके दिल के टुकड़ों की तरह है। 

कांशीराम ने कहा की मैं वी पी सिंह की इज्जत करता हूँ, वो अच्छे नेता हैं, लेकिन मेरी लड़ाई उनसे नहीं है, मेरी लड़ाई कुछ और है, अलग स्केल पर है, अलग लड़ाई है। 

कांशीराम वो इलेक्शन हार गए,
तीसरे नंबर पर रहे। वी पी सिंह चुनाव जीत गए थे। 
लेकिन पता है उन्हें वोट कितने मिले थे ?
70 हज़ार !
ये 70 हज़ार वोट आज बसपा को मिलने वाले करोड़ों वोट से बहुत बहुत ज्यादा हैं। 
इन 70 हज़ार वोट का एक एक वोट एक एक कहानी छुपाये है अपने अंदर। एक क्रांति की कहानी, एक विद्रोह की कहानी, किसी के दर्द की कहानी, किसी के मरहम की। 

और कांशीराम का ये इलेक्शन बेकार नहीं गया। 
क्यूंकि अगले ही साल हुए लोकसभा चुनाव में वो इटावा लोकसभा सीट से चुनाव जीत गए थे !
इसके बाद उन्होंने 1993 में मुलायम की सरकार बनवाकर संघियों को बाबरी के बाद यूपी में जीतने से रोका था। 
और फिर 1995 में एक दलित लड़की को मुख्यमंत्री बनवाकर उन्होंने अपना और करोड़ों दलितों का सपना पूरा किया था। 
हालांकि उसके बाद वो ज्यादा राजनीती में सक्रिय नहीं रहे, लेकिन उनकी लिगेसी हमेशा हमेशा के लिए कायम हो चुकी थी। 

वो आंबेडकर नहीं थे तो आंबेडकर से कम भी नहीं थे दलितों के लिए।

साभार कृष्ण रूमी                                  प्रस्तुति नरेंद्र सिकरवार

अध्यात्म विशेष/* शिव तांडव स्त्रोत तम अर्थ सहित*

Posted: 26 Jul 2020 09:08 PM PDT




*"प्राचीन पुराणों में ऐंसा वर्णित हैं कि रावण जो कि लंका का राजा था औंर भगवान शिव का परम भक्त था।

*वह शिव को कैलाश पर्वत से अपने घर लंका ले जाने हेतु जिद पर अड़ गया औंर बलपूर्वक पूरें कैलाश पर्वत को हाथों से उठानें लगा।
*तब भगवान शिव ने अपनें पैंर के एक नाखून के दबाब से पूरें पर्वत के नीचें हीं रावण को दबा दिया। तब रावण रोने लगा......औंर
*तब रावण ने उस भयंकर संकट औंर अपनी दुष्टता कि भूल सुधार हेतु.......भगवान शिव की प्रशंसा हेतु एक दिव्य स्त्रोत गाया जिससे भगवान शिव प्रसन्न हुए औंर रावण को दंड मुक्त किया।

*रावण द्वारा रचित यह स्त्रोत #शिवतांडव_स्त्रोत कहलाता हैं।

*#स्त्रोत_अर्थसहित

*"जटा टवी गलज्जलप्रवाह पावितस्थले*
*गलेऽव लम्ब्यलम्बितां भुजंगतुंग मालिकाम्‌।*
*डमड्डमड्डमड्डमन्निनाद वड्डमर्वयं*
*चकारचण्डताण्डवं तनोतु नः शिव: शिवम्‌ ॥१॥*
.
उनके बालों से बहने वाले जल से उनका कंठ पवित्र हैं,
औंर उनके गले में साँप हैं जो हार की तरह लटका हैं,
औंर डमरू से डमट् डमट् डमट् की ध्वनि निकल रहीं हैं,
भगवान शिव शुभ तांडव नृत्य कर रहें हैं, वे हम सबकों संपन्नता प्रदान करें।

*जटाकटा हसंभ्रम भ्रमन्निलिंपनिर्झरी* *विलोलवीचिवल्लरी विराजमानमूर्धनि।*
*धगद्धगद्धगज्ज्वल ल्ललाटपट्टपावके*
*किशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम: ॥२॥*

मेरी शिव में गहरी रुचि हैं,
जिनका सिर अलौकिक गंगा नदी की बहती लहरों की धाराओं से सुशोभित हैं,
जो उनकी बालों की उलझी जटाओं की गहराई में उमड़ रहीं हैं?
जिनके मस्तक की सतह पर चमकदार अग्नि प्रज्वलित हैं,
औंर जो अपने सिर पर अर्ध-चंद्र का आभूषण पहनें हैं।

*धराधरेंद्रनंदिनी विलासबन्धुबन्धुर* *स्फुरद्दिगंतसंतति प्रमोद मानमानसे।*
*कृपाकटाक्षधोरणी निरुद्धदुर्धरापदि*
*क्वचिद्विगम्बरे मनोविनोदमेतु वस्तुनि ॥३॥*

मेरा मन भगवान शिव में अपनी खुशी खोजें,
अद्भुत् ब्रह्माण्ड के सारें प्राणी जिनकें मन में मौजूद हैं,
जिनकी अर्धांगिनी पर्वतराज की पुत्री पार्वती हैं,
जो अपनी करुणा दृष्टि से असाधारण आपदा को नियंत्रित करतें हैं, जो सर्वत्र व्याप्त हैं,
औंर जो दिव्य लोकों को अपनी पोशाक की तरह धारण करतें हैं।

*जटाभुजंगपिंगल स्फुरत्फणामणिप्रभा* *कदंबकुंकुमद्रव प्रलिप्तदिग्व धूमुखे।*
*मदांधसिंधु रस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुरे* *मनोविनोदद्भुतं बिंभर्तुभूत भर्तरि ॥४॥

मुझें भगवान शिव में अनोखा सुख मिलें, जो सारें जीवन के रक्षक हैं,
उनके रेंगते हुए साँप का फन लाल-भूरा हैं औंर मणि चमक रहीं हैं,
ये दिशाओं की देवियों के सुंदर चेहरों पर विभिन्न रंग बिखेंर रहा हैं,
जो विशाल मदमस्त हाथी की खाल से बने जगमगाते दुशालें से ढँका हैं।


*सहस्रलोचन प्रभृत्यशेषलेखशेखर* *प्रसूनधूलिधोरणी विधूसरां घ्रिपीठभूः।*
*भुजंगराजमालया निबद्धजाटजूटकः* *श्रियैचिरायजायतां चकोरबंधुशेखरः ॥५॥

भगवान शिव हमें संपन्नता दें,
जिनका मुकुट चंद्रमा हैं,
जिनकें बाल लाल नाग के हार से बंधे हैं,
जिनका पायदान फूलों की धूल के बहने से गहरें रंग का हो गया हैं,
जो इंद्र, विष्णु औंर अन्य देवताओं के सिर से गिरती हैं।


*ललाटचत्वरज्वल द्धनंजयस्फुलिंगभा*
*निपीतपंच सायकंनम न्निलिंपनायकम्‌।*
*सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं*
*महाकपालिसंपदे शिरोजटालमस्तुनः ॥६॥

शिव के बालों की उलझी जटाओं से हम सिद्धि की दौलत प्राप्त करें,
जिन्होंने कामदेव को अपने मस्तक पर जलने वाली अग्नि की चिंगारी से नष्ट किया था,
जो सारें देवलोकों के स्वामियों द्वारा आदरणीय हैं, जो अर्ध-चंद्र से सुशोभित हैं।

*करालभालपट्टिका धगद्धगद्धगज्ज्वल द्धनंजया* *धरीकृतप्रचंड पंचसायके।*
*धराधरेंद्रनंदिनी कुचाग्रचित्रपत्र* *कप्रकल्पनैकशिल्पिनी त्रिलोचनेरतिर्मम ॥७॥*

मेरी रुचि भगवान शिव में हैं, जिनके तीन नेत्र हैं, जिन्होंने शक्तिशाली कामदेव को अग्नि को अर्पित कर दिया,
उनके भीषण मस्तक की सतह डगद् डगद्… की ध्वनि से जलतीं हैं,
वे हीं एकमात्र कलाकार हैं जो पर्वतराज की पुत्री पार्वती के स्तन की नोक पर,
सजावटी रेखाएं खींचने में निपुण हैं।


*नवीनमेघमंडली निरुद्धदुर्धरस्फुर* *त्कुहुनिशीथनीतमः प्रबद्धबद्धकन्धरः।*
*निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिंधुरः*
*कलानिधानबंधुरः श्रियं जगंद्धुरंधरः ॥८॥

भगवान शिव हमें संपन्नता दें,
वे हीं पूरें संसार का भार उठातें हैं,
जिनकी शोभा चंद्रमा हैं,
जिनकें पास अलौकिक गंगा नदी हैं,
जिनकी गर्दन गला बादलों की पर्तो से ढँकी अमावस्या की अर्धरात्रि की तरह काली हैं।


*प्रफुल्लनीलपंकज प्रपंचकालिमप्रभा*
*विडंबि कंठकंध रारुचि प्रबंधकंधरम्‌।*
*स्मरच्छिदं पुरच्छिंद भवच्छिदं मखच्छिदं*
*गजच्छिदांधकच्छिदं तमंतकच्छिदं भजे॥९॥*

मैं भगवान शिव की प्रार्थना करता हूँ जिनका कंठ मंदिरों की चमक से बँधा हैं,
पूरें खिलें नीले कमल के फूलों की गरिमा से लटकता हुआ, जो ब्रह्माण्ड की कालिमा सा दिखता हैं।
जो कामदेव को मारने वालें हैं, जिन्होंने त्रिपुर का अंत किया,
जिन्होंने सांसारिक जीवन के बंधनों को नष्ट किया, जिन्होंने बलि का अंत किया,
जिन्होंने अंधक दैत्य का विनाश किया, जो हाथियों को मारने वालें हैं,
औंर जिन्होंने मृत्यु के देवता यम को पराजित किया।

*अखर्वसर्वमंगला कलाकदम्बमंजरी रसप्रवाह* *माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम्‌।*
*स्मरांतकं पुरातकं भावंतकं* *मखांतकं गजांतकांधकांतकं तमंतकांतकं भजे ॥१०॥

मैं भगवान शिव की प्रार्थना करता हूँ, जिनके चारों ओर मधुमक्खियाँ उड़ती रहतीं हैं
शुभ कदंब के फूलों के सुंदर गुच्छें से आने वाली शहद की मधुर सुगंध के कारण,
जो कामदेव को मारने वालें हैं, जिन्होंने त्रिपुर का अंत किया, जिन्होंने सांसारिक जीवन के बंधनों को नष्ट किया, जिन्होंने बलि का अंत किया, जिन्होंने अंधक दैत्य का विनाश किया, जो हाथियों को मारने वालें हैं,
औंर जिन्होंने मृत्यु के देवता यम को पराजित किया।

*जयत्वदभ्रविभ्रम भ्रमद्भुजंगमस्फुरद्ध* *गद्धगद्विनिर्गमत्कराल भाल हव्यवाट्।*
*धिमिद्धिमिद्धि मिध्वनन्मृदंग* *तुंगमंगलध्वनिक्रमप्रवर्तित: प्रचण्ड ताण्डवः शिवः ॥११॥

शिव, जिनका तांडव नृत्य नगाड़ें की ढिमिड़-ढिमिड़ तेज आवाज श्रृंखला के साथ लय में हैं, जिनकें महान मस्तक पर अग्नि हैं, वो अग्नि फैल रहीं हैं नाग की साँस के कारण, गरिमामय आकाश में गोल-गोल घूमती हुईं।


*दृषद्विचित्रतल्पयो र्भुजंगमौक्तिकमस्र* *जोर्गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः।*
*तृणारविंदचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः समं* *प्रवर्तयन्मनः कदा सदाशिवं भजे ॥१२॥

मैं भगवान सदाशिव की पूजा कब कर सकूँगा, शाश्वत शुभ देवता, जो रखतें हैं सम्राटों औंर लोगों के प्रति समभाव दृष्टि, घास के तिनके औंर कमल के प्रति, मित्रों औंर शत्रुओं के प्रति, सर्वाधिक मूल्यवान रत्न औंर धूल के ढेंर के प्रति, साँप औंर हार के प्रति औंर विश्व में विभिन्न रूपों के प्रति?


*कदा निलिंपनिर्झरी निकुंजकोटरे*
*वसन्‌ विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमंजलिं वहन्‌।*
*विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः शिवेति* *मंत्रमुच्चरन्‌ कदा सुखी भवाम्यहम्‌॥१३॥

मैं कब प्रसन्न हो सकता हूँ, अलौकिक नदी गंगा के निकट गुफा में रहतें हुए,
अपने हाथों को हर समय बाँधकर अपनें सिर पर रखें हुए, अपनें दूषित विचारों को धोकर दूर करके, शिव मंत्र को बोलते हुए,
महान मस्तक औंर जीवंत नेत्रों वालें भगवान को समर्पित?

*निलिम्प नाथनागरी कदम्ब मौलमल्लिका~
*निगुम्फनिर्भक्षरन्म धूष्णिकामनोहरः ।
*तनोतु नो मनोमुदं विनोदिनींमहनिशं
*परिश्रय परं पदं तदंगजत्विषां चयः ॥१४॥

देवांगनाओं के सिर में गूँथे पुष्पों की मालाओं के झड़तें हुए सुगंधमय पराग से मनोहर, परम शोभा के धाम महादेवजी के अंगों की सुंदरताएँ परमानंदयुक्त हमारें मन की प्रसन्नता को सर्वदा बढ़ातीं रहें।

*प्रचण्ड वाडवानल प्रभाशुभप्रचारणी
*महाष्टसिद्धिकामिनी जनावहूत जल्पना ।
*विमुक्त वाम लोचनो विवाहकालिकध्वनिः
*शिवेति मन्त्रभूषगो जगज्जयाय जायताम्‌॥१५॥

प्रचंड बड़वानल की भाँति पापों को भस्म करने में स्त्री स्वरूपिणी अणिमादिक अष्ट महासिद्धियों तथा चंचल नेत्रों वालीं देवकन्याओं से शिव विवाह समय में गान की गई मंगलध्वनि सब मंत्रों में परमश्रेष्ठ शिव मंत्र से पूरित, सांसारिक दुखों को नष्ट कर विजय पाएँ।

*इमं हि नित्यमेव मुक्तमुक्तमोत्तम
*स्तवं पठन्स्मरन्‌ ब्रुवन्नरो विशुद्धमेति संततम्‌।
*हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति *नान्यथागतिं विमोहनं हि देहिनां सुशंकरस्य चिंतनम्॥१६॥

इस स्तोत्र को, जो भी पढ़ता हैं, याद करता हैं औंर सुनाता हैं, वह सदैव के लिए पवित्र हों जाता हैं औंर महान गुरु शिव की भक्ति पाता हैं। इस भक्ति के लिए कोई दूसरा मार्ग या उपाय नहीं हैं। बस शिव का विचार हीं भ्रम को दूर कर देता हैं...!!!"

*पूजाऽवसानसमये दशवक्रत्रगीतं
*यः शम्भूपूजनमिदं पठति प्रदोषे ।
तस्य स्थिरां रथगजेंद्रतुरंगयुक्तां*
*लक्ष्मी सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भुः ॥१७॥

शिव पूजा के अंत में इस रावणकृत शिव तांडव स्तोत्र का प्रदोष समय में गान करने से या पढ़ने से लक्ष्मी स्थिर रहतीं हैं।
रथ गज-घोड़े से सर्वदा युक्त रहता हैं...!!!"

*॥ इति शिव तांडव स्तोत्रं संपूर्णम्‌॥
जय शिव शंकर साभार मंत्र साधना

*मुख्यमंत्री को मजाक बना दिया नौकरशाही ने*

Posted: 26 Jul 2020 07:22 PM PDT


मुख्यमंत्री को मजाक बनवा दिया नौकरशाही ने
********************************************
मध्य्प्रदेश के कोरोना पीड़ित मुख्यमंत्री शिवराज सिंह को उनके सलाहकारों और नौकरशाही ने मिलकर मजाक का पात्र बना दिया. चिरायु अस्पताल में भरती मुख्यमंत्री की प्रधानमंत्री के ' मन की बात' सुनते बिना मास्क की तस्वीरें जारी कर इस चौकड़ी ने सोचा कि ऐसा करने से मुख्यमंत्री की मोदी भक्ति में चार चाँद लग जायेंगे ,लेकिन हुआ उलटा .उनकी मोदी भक्ति में चार चाँद लगे या नहीं किन्तुउनके अनाड़ीपन में चार दाग जरूर लग गए .
कोरोना मरीजों के इलाज का एक निर्धारित प्रोटोकॉल है .इसके तहत उन्हें अस्पताल में भी मुंह पर मास्क लगाना अनिवार्य है साथ ही उनके वार्ड में बाहर का कोई व्यक्ति आ -जा नहीं सकता.लेकिन मुख्यमंत्री के वार्ड में न सिर्फ कोरोनाग्रास्त एक विधायक भेंट करने गए बल्कि सरकारी फोटोग्राफर को भी तस्वीरें लेने के लिए भेजा गया .इतना भी ठीक मुख्यमंत्री जी अपने पलंग पर बिना मास्क के बैठे टीवी देखते दिखाए गए .इन सबने उन्हें हास्य का पात्र बना दिया .
देश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अकेले कोरोना पीड़ित नहीं हैं .उनके जैसे अनेक वीवीआईपी कोरोनागरस्त हैं और इस समय भी इलाज करा रहे हैं लेकिन किसी की भी ऐसी तस्वीरें नहीं सामने आईं .देश के नंबर वन अभिनेता अमिताभ बच्चन वार्ड में एकांत का कष्ट अपने ब्लॉग पर लिख रहे हैं लेकिन शिवराज सिंह के वार्ड को तो सरकारी दफ्तर बना दिया .उन्हें बिना मास्क के देखकर कौन नहीं उनका अनुशरण करना चाहेगा .उनके गृहमंत्री डॉ नरोत्तम मिश्रा तो पहले से मास्क का इस्तेमाल नहीं करते .यानि बड़े मियाँ तो बड़े मियां ,छोटे मियां शुभानल्लाह .
प्रचार की भूख सभी नेताओं को होती है लेकिन इतनी भी नहीं जितनी की माननीय मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को है. वे क्या एक पखवाड़े तक मीडिया से अदृश्य नहीं रह सकते? क्या सचमुच उन्होंने कोरोना को एक मामूली सर्दी-जुकाम ही मान और समझ रखा है ? यदि ऐसा है तो फिर मुझे कुछ नहीं कहना अन्यथा न सिर्फ उन्हें अपने किये पर शर्मिंदगी होना चाहिए अपितु चिरायु अस्पताल के प्रबंधन को भी अपने लिजलिजेपन पर प्रदेश से माफी मांगना चाहिए .चिरायु अस्पताल प्रबंधन पहले से कोरोना के इलाज के लिए सरकार के साथ सांठगांठ के आरोपों से घिरा है ,ऊपर से ये नया किस्सा सामने आ गया है .
मुख्यमंत्री के सलाहकारों और नौकरशाहों की चौकड़ी ने गलती की,यदि वे मुख्यमंत्री जी को लगातार सुर्ख़ियों में बनाये रखना चाहते थे तो उन्होंने मुख्यमंत्री निवास में ही अस्पताल बना देना था,अन्यथा कोरोना का प्रोटोकॉल तो ये कहता है कि पूरे मुख्यमंत्री निवास को कुछ दिन के लिए सील कर दिया जाता लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ.अर्थात आमजन के लिए कोरोना प्रोटोकॉल अलग है और मुख्यमंत्री जी के लिए .अच्छा तो तब लगता जब मुख्यमंत्री जी चिरायु के बजाय हमीदिया अस्पताल में इलाज के लिए भर्ती होते .उन्हें वे सब सुविधाएं हमीदिया में भी मिल जातीं .
भाजपा के राज्यसभा सदस्य ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनकी माँ भी कोरोना का शिकार रह चुके हैं .उन्होंने इस रोग की तकलीफ को जाहिर करते हुए भाजपा की एक वर्चुअल रैली में कहा था कि-भगवान दुश्मन को भी ये रोग न दे "जाहिर है कि कोरोना एक संगीन रोग है और उसके साथ जैसा मजाक शिवराज सिंह ने किया है वैसा किसी और जन प्रतिनिधि को नहीं करना चाहिए .मुझे मालूम है कि शिवराज सिंह के बारे में लिखी गयी इन पंक्तियों को मजाक में ही लिया जाएगा लेकिन हकीकत ये है कि इस घटना की प्रतिध्वनि दूर तक ही नहीं बल्कि देर तक सुनाई देगी .
किसी मुख्यमंत्री का कोरोनाग्रास्त होना पूरी सरकार का बीमार होना माना जाता है. भले ही मुख्यमंत्री ने अपनी बीमारी के दौरान डॉ नरोत्तम मिश्र को रोजमर्रा के कामकाज के लिए प्रभार दे दिया हो लेकिन मुझे नहीं लगता की मुख्यमंत्री की मंशा और सहमति के बिना प्रदेश में कोई प्रशासनिक पत्ता हिल सकता है .इस समय मुख्यमंत्री जी की बीमारी को लेकर पूरी सरकार को गंभीर रहना चाहिए.मुख्यमंत्री जी बेहतर इलाज के जरिये जल्द ठीक होकर अस्पताल के बाहर आएं ये हम सबकी मुराद है ,लेकिन हम सब यानि प्रदेश की जनता ये भी चाहती है कि मुख्यमंत्री जी को मजाक का पात्र भी न बनाया जाये .
इस पूरी घटना को लेकर चूंकि तीर तो कमान से बाहर निकल गया है इसलिए कुछ किया नहीं जा सकता,यानि कुछ किया नहीं जाएगा लेकिन आने वाले दिनों में इसकी पुनरावृत्ति न हो इसका ध्यान अवश्य रखा जाना चाहिए ,अन्यथा प्रदेश में कोरोना को अपने पांव पसारने से कोई नहीं रोक सकता .राजनीति तो वैसे भी कोरोना से कम ही डरती है. कोरोना के कान भले ही सब कुछ स्थगित हीो किन्तु राजनीति स्थगित नहीं है .राजनितिक दलों की बैठकें,सभाएं जारी हैं .आपको याद रखना चाहिए की मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह समेत कोरोना के 26927 मामले हैं जबकि 799 की मौत हो चुकी है .18 हजार से ज्यादा ठीक भी हो चुके हैं .भगवान सबकी रक्षा करे.
@ राकेश अचल जी वरिष्ठ पत्रकार ग्वालियर की फेसबुक वॉल से साभार

संपादकीय/*स्टांपो में दर्ज पत्नी की अस्मत और ये मोन*

Posted: 26 Jul 2020 06:17 PM PDT


*० प्रतिदिन* -राकेश दुबे
२७ ०७ २०२०
*स्टाम्पों में दर्ज पत्नी की अस्मत और ये मौन ?*
इंदौर, जी हाँ मध्यप्रदेश का इंदौर और उसकी वणिक बस्ती अनूप नगर में जो घटा उससे पुलिस हैरान है | ११ लाख में पत्नी की अस्मत के सौदे के दस्तावेज उसके पास लेकर पति और पत्नी मौजूद है और किसी ने नहीं पति ने ही ३ घंटे के लिए पत्नी की अस्मत का सौदा स्टाम्प पर लिख कर किया | समाज मौन है, यह मौन स्वीकृति है या किसी भूचाल का संकेत अभी कहा नहीं जा सकता | जिस महिला के साथ यह सब बीता उसके पक्ष में खड़े होकर सोचिये क्या यही विवाह है ?
विवाह मानव समाज की अत्यंत महत्त्वपूर्ण प्रथा या संस्था है। यह समाज का निर्माण करने वाली सबसे छोटी इकाई परिवार का मूल है। इसे मानव जाति के अस्तित्व को बनाए रखने का प्रधान साधन माना जाता है। इस शब्द का प्रयोग मुख्य रूप से दो अर्थों में होता है। इसका पहला अर्थ वह क्रिया, संस्कार, विधि या पद्धति है जिससे पति-पत्नी के स्थायी संबंध का निर्माण होता है।
मनुस्मृति के टीकाकार मेधातिथि के शब्दों में 'विवाह एक निश्चित पद्धति से किया जाने वाला, अनेक विधियों से संपन्न होने वाला तथा कन्या को पत्नी बनाने वाला संस्कार है।' रघुनंदन के मतानुसार 'उस विधि को विवाह कहते हैं जिससे कोई स्त्री (किसी की) पत्नी बनती है।' वैस्टरमार्क ने इसे एक या अधिक पुरुषों का एक या अधिक स्त्रियों के साथ ऐसा संबंध बताया है, जो इस संबंध को करने वाले दोनों पक्षों को तथा उनकी संतान को कुछ अधिकार एवं कर्तव्य प्रदान करता है।
कुल मिलाकर विवाह का अर्थ समाज में प्रचलित एवं स्वीकृत विधियों द्वारा स्थापित किया जाने वाला दांपत्य संबंध और पारिवारिक जीवन भी होता है। इस संबंध से पति पत्नी को अनेक प्रकार के अधिकार और कर्तव्य प्राप्त होते हैं। इससे जहाँ एक ओर समाज पति पत्नी को कामसुख के उपभोग का अधिकार देता है, वहाँ दूसरी ओर पति पत्नी तथा संतान के पालन एवं भरणपोषण के लिए बाध्य करता है। संस्कृत में 'पति' का शब्दार्थ है पालन करने वाला तथा 'भार्या' का अर्थ है भरणपोषण की जाने योग्य नारी। पति के संतान और बच्चों पर कुछ अधिकार माने जाते हैं। विवाह प्राय: समाज में नवजात प्राणियों की स्थिति का निर्धारण करता है। संपत्ति का उत्तराधिकार अधिकांश समाजों में वैध विवाहों से उत्पन्न संतान को ही दिया जाता है।
इंदौर की इस कहानी में और भी कई राज है |जिसमे एक पति, पत्नी, साहूकार, नोटरी, समाज और अब पुलिस की भूमिका भी आ गई है | विवाह के प्रकार और पद्धति जो भारत में प्रचलित है यह उस सब से इतर मामला है और उस सब के प्रतिकूल है जिसे पाणिग्रहण संस्कार कहा जाता है
पाणिग्रहण को आप और हम विवाह के नाम से जानते हैं। शास्त्रों के अनुसार विवाह आठ प्रकार के होते हैं। ब्रह्म, दैव, आर्य, प्राजापत्य, असुर, गन्धर्व, राक्षस और पिशाच। नारद पुराण के अनुसार, सबसे श्रेष्ठ प्रकार का विवाह ब्रह्म ही माना जाता है। इसके बाद दैव विवाह और आर्य विवाह को भी बहुत उत्तम माना जाता है। प्राजापत्य, असुर, गंधर्व, राक्षस और पिशाच विवाह को बेहद अशुभ माना जाता है। कुछ विद्वानों के अनुसार प्राजापत्य विवाह भी ठीक है।ब्रह्म, दैव, आर्य और प्राजापत्य विवाह में शुभ मुहूर्त के बीच अग्नि को साक्षी बना कर मंत्रों के उच्चारण के साथ विवाह संपन्न कराया जाता है। इस तरह के विवाह के समय नाते-रिश्तेदार उपास्थित रहते हैं। आजकल जिस तरह से लड़के-लड़की के बीच प्रेम होता है और उसके बाद प्रेम विवाह होता है, उसे गंधर्व विवाह की श्रेणी में रखा जाता है। इसे हमारे ऋषि-मुनियों ने विवाह का सर्वश्रेष्ठ तरीका क्यों नही माना, यह अचरज की बात है। संभवत उस समय दहेज की समस्या इतनी विकराल नहीं रही होगी या फिर ज्योतिष के हिसाब से श्रेष्ठ मुहूर्त उपलब्ध नहीं होंगे।पैसा आदि लेकर या देकर विवाह करना असुर विवाह की श्रेणी में आता है। युद्ध के मैदान में विजय प्राप्त करने के बाद लड़की को घर में लाना राक्षस विवाह कहलाता है। लड़की को बहला-फुसला कर भगा ले जाना पिशाच विवाह कहलाता है। बलात्कार आदि के बाद सजा आदि से बचने के लिए विवाह करना, जैसा कि आजकल अखबारों में अक्सर पढ़ने को मिलता है, भी पिशाच विवाह की श्रेणी में आता है।
इंदौर में जो कुछ घटा उससे समाज अपरिचित नहीं है | प्रताड़ित महिला ने अपने नातेदारों और समाज में घटना, उसके परिणाम स्वरूप प्रसव, सन्तान उत्पत्ति का वर्णन और स्टाम्प पर लिखापढ़ी सब का वर्णन किया अब थाना और उसके बाद कचहरी होगी | समाज और उसके सारे संवेदनशील हिस्सों का मौन खतरनाक है |

Post Bottom Ad

Pages