जनवादी पत्रकार संघ |
| Posted: 18 Jul 2020 04:22 AM PDT
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| संपादकीय /*देश के जनतंत्र में अपवित्र मंसूबे* Posted: 17 Jul 2020 07:11 PM PDT १८ ०७ २०२० *देश के जनतंत्र में अपवित्र मंसूबे* यूँ तो हमारा भारत विश्व का सबसे बड़ा जनतंत्र है, पर सबसे बड़े और सबसे महान जनतंत्र में भारी अंतर है। महानता अर्जित करनी पड़ती है, दुर्भाग्य से, इस दिशा में हम अभी वहां नहीं पहुंचे हैं, जहां हमें होना चाहिए था।हर जनतंत्र की सफलता और महानता का पहला पैमाना यह है कि वहां विपक्ष कितना मज़बूत है। सरकार का मज़बूत होना, निस्संदेह, एक अच्छी स्थिति होती है, पर विपक्ष का कमजोर होना भी जनतंत्र की दृष्टि से एक चिंता की बात है।भारत में तो अनेक बार प्रतिपक्ष को समाप्त करने के निरंतर प्रयास हुए और अभी वे बदस्तूर जारी हैं | मध्य्प्रदेश तो अजब है, सबसे गजब है | राजनीतिक लाभ – हानि का गणित कोरोना के नाम पर विधानसभा का सत्र आहूत नहीं होने दे रहा है | इस जनतान्त्रिक व्यवस्था में सबके दायित्व निर्धारित है | विपक्ष का दायित्व है कि वह सरकार के कार्यों पर नज़र रखे, हर गलती पर पूरी दृढ़ता के साथ सवाल उठाए। शासक का दायित्व है कि वह जनता के प्रति उत्तरदायी हो| दुर्भाग्य से इस ओर दोनों तरफ से जो हो रहा है वो दायित्वों का निर्वहन तो कम से कम नहीं ही है | मध्यप्रदेश और राजस्थान में जो हुआ या हो रहा है, उसके लिए कोई नई परिभाषा गढना होगी | आज तो हर फैसला न्यायालय ही कर रहा है, जो उचित नहीं है इस संदर्भ में आदर्श स्थिति यह है कि जनता द्वारा चुना हुआ विपक्ष सत्तारूढ़ पक्ष को निरंकुश होने से रोकने में समर्थ हो। यह तभी हो सकता है जब दोनों पक्षों में एक संतुलन हो। न सत्तारूढ़ पक्ष इतना अधिक ताकतवर हो जाये कि वह विपक्ष को कुछ समझे ही नहीं और न ही विपक्ष से यह उम्मीद की जाती है की वह सिर्फ विरोध के लिए विरोध करता रहे। जनता सिर्फ सत्तारूढ़ पक्ष का चुनाव नहीं करती, विपक्ष को भी चुनती है। कलाबाजी करके मध्यप्रदेश की भांति भूमिका बदली जा सकती है , पर ऐसी सरकार की स्थिरता सदैव प्रश्न वाचक चिन्ह की जद में होती है| मोलभाव और भयादोहन तो जनतान्त्रिक अनुष्ठान के पहले मन्त्र बन जाते हैं |उभय पक्ष से मर्यादित आचरण की अपेक्षा भी तभी पूरी हो सकती है, जब विधायिका में संख्या की दृष्टि से एक उचित संतुलन हो। यहाँ हमारा जनतंत्र कुछ तो कमजोर है, और कुछ, इस तरफ से उस तरफ दौड़ते घोड़े कमजोर करते हैं । जरा इतिहास देखें | जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व वाली कांग्रेस का, शुरुआती दौर में, कुल मिलाकर एकछत्र शासन रहा। शासन की दृष्टि से तो यह स्थिति बुरी नहीं थी, पर इसमें निरंकुशता के बढ़ने का खतरा भी था। जनतांत्रिक मूल्यों में विश्वास करने वाले नेहरू ने इस खतरे को भांपा था। इसलिए, एक बार उन्होंने कांग्रेसी सांसदों से कहा था कि "संसद में हमारा विपक्ष कमज़ोर है, इसलिए यह दायित्व भी कांग्रेसी सदस्यों पर ही है कि वह विपक्ष की भूमिका भी निभायें, सरकार के काम पर नजर रखें।" आज तो प्रतिपक्ष को समाप्त करने के दिवास्वप्नो को साकार करने की पुरजोर कोशिशे करने से भी कोई गुरेज नहीं है | याद कीजिये १९६७ के चुनाव, तब डॉ़ राम मनोहर लोहिया ने जनतंत्र को बनाए रखने के लिए गैर कांग्रेसवाद का नारा दिया था। यह बताया था कि भारी बहुमत के कारण सत्तारूढ़ पक्ष मनमानी करने लगता है, यह मनमानी खतरे का निशान होती है। देश की जनता ने इस बात को समझा। देश में गैर-कांग्रेसी सरकारों का एक दौर आया। फिर आपातकाल के बाद संसद में भी गैर-कांग्रेसी सरकार बनने की प्रक्रिया शुरू हुई | आज जो उसका मौजूदा स्वरूप है वो उस कल्पना से इतर है | विधानसभाओं में, संसद में, सत्तारूढ़ पक्ष और विपक्ष में एक संतुलन की स्थिति जनतंत्र को मज़बूत बनाती है |यह संतुलन सत्तारूढ़ पक्ष को अक्सर रास नहीं आता। उसकी हमेशा कोशिश रहती है कि वह इतना ताकतवर बन जाये कि जो चाहे कर सके। आपातकाल सत्तारूढ़ पक्ष की इसी प्रवृत्ति का परिणाम था।आज भी ऐसी ही ध्वनि गूँज रही है जो जनतंत्र के हितों के लिए असंतुलन वाली है । इसी असंतुलन के चलते पहले कभी कांग्रेस को मनमानी करने का अवसर मिला था, और आज संयोग से, यह अवसर भाजपा के पास है। पिछले दो चुनावों में मिली भारी सफलता के प्रमाण और परिणाम भले ही हो, जनतंत्र के लिए ऐसी भारी सफलता एक बोझ बन जाती है। ऐसा बोझ कभी भी खतरा साबित हो सकता है। मध्य्प्रदेश अजब है, सबसे गजब है | राजनीतिक लाभ – हानि का गणित बहानेबाजी कर विधानसभा का सत्र आहूत नहीं होने दे रहा है | घोर कोरोना काल में सत्र चला, फिर पूरे ज्ञान, अनुमान, संज्ञान के २० जुलाई से सत्र बुलाया गया | अब सम्मति के नाम पर उपजे सम्यक ज्ञान ने सत्र आगे बढ़ा दिया | अब दूसरी बार अध्यादेश से बजट प्राप्ति की प्रक्रिया होने जा रही है विधि विशेग्य इसे विधि सम्मत नहीं मान रहे हैं | मध्यप्रदेश में जो हुआ या आज राजस्थान में जो कुछ हो रहा है, वह अंततः विपक्ष को ही कमज़ोर बनायेगा और कमज़ोर विपक्ष अंततः जनतंत्र को ही कमज़ोर बनाता है। | |
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