जनवादी पत्रकार संघ - 🌐

Breaking

Home Top Ad

Post Top Ad

Tuesday, August 25, 2020

जनवादी पत्रकार संघ

जनवादी पत्रकार संघ


कोरोना काल ने तो इनका सब लील लिया!@ प्रोफेसर चंद्रेश्वर लखनऊ उत्तर प्रदेश

Posted: 24 Aug 2020 09:41 AM PDT






बात पर बात और मेरा बलरामपुर

"दो जून की रोटी मयस्सर होती रहे ! "



ये शब्बीर और रिज़वान की दुकान है | सायकिल पंक्चर की | सिटी पैलेस के सामने | शब्बीर का बेटा है रिज़वान | रिज़वान की उम्र होगी कोई सत्ताईस साल की | शब्बीर पैंसठ या बासठ के होंगे | दोनों बाप-पूत मिलकर चलाते हैं सायकिल पंक्चर की दुकान | अपना शहर है बलरामपुर | इनका पुश्तैनी मकान है, छोटा-सा | भंडारखाने के पास | इनके पास इस स्वतंत्र रोज़गार के अलावा कमाई का कोई अन्य ज़रिया नहीं है | ये दिनभर में तीन -साढ़े तीन सौ रुपये कमा लेते हैं | इसी से इनका परिवार चलता है | इनमें अपनी मेहनत और पसीने की कमाई को लेकर संतोष बहुत है | इन्हें महल-अटारी और बैंक बैलेन्स की ज़रूरत ही नहीं है | इनको इतने बड़े -बड़े ख़्वाब नहीं दिखते | न दिन में, न रात में | अपनी दिनभर की कमाई में ही इनको बरक़त दिखाई देती है | शब्बीर का कहना है कि 'साहब, भले दो पैसे कम कमाई हो पर सुकून बचा रहे | अगर सुकून बचा रहेगा तो ज़िंदगी बची रहेगी | वो सलामत रहेगी | लोगबाग आजकल इसी का ख़्याल नहीं रखते हैं | जिसे देखो वो ही गंदी सियासत में लगा हुआ है ; पर दुनिया अगर नष्ट होने से बची है तो इसके पीछे ऐसे लोग ही हैं जो सुकून चाहते हैं और उनपर ही परवर दिगार की रहमत है |' बलरामपुर में मुझे ऐसे कई कामगार वर्ग के लोग मिल जाते हैं जो अपने स्वतंत्र रोज़गार से जुड़े हैं और सीमित कमाई में ही सुकून और ख़ुशहाली से हैं | उनको पता नहीं अपनी यथास्थिति से असंतोष है या नहीं ! मैंने लखनऊ और अन्य बड़े शहरों में ऐसे कामगार वर्ग के लोगों में भी ज़्यादा कमाने और साधन जुटाने के लिए बहुत बेताबी में और असंतोष में जीते देखा है | जो भी हो, ऐसे किरदार अभी बलरामपुर में मिल जाते हैं ; जैसे शब्बीर ; जैसे रिज़वान ! ये लोग सच बोल लेते हैं ; ईमान को जिलाए रखते हैं | गंदगी और गंदी सियासत से तौबा करते हैं | तनाव से दूरी और सुकून का साथ इनकी ज़िंदगी का मूलमंत्र या रहस्य है | ये लोग अपने मुहल्ले, अपने शहर,अपने जनपद, अपने प्रांत और देश से बेपनाह मुहब्बत करते हैं | दो जून की रोटी मयस्सर होती रहे, इनकी यही कामना है | लोग एक -दूसरे से मुहब्बत करें, ख़ुदा सबको रौशन ख़्याल रखें -- देश बस गंदी सियासत से बचा रहे | मैंने जब पूछा कि 'देश और प्रदेश में सरकार कैसा काम कर रही है ? ' तो रिज़वान के पहले तज़ुर्बेकार शब्बीर ही बोल पड़े कि ' साहब, जो हो रहा है वो अच्छा ही हो रहा है, जो आगे होगा वो भी अच्छा ही होगा | सब मालिक करता या कराता है, ऊपर वाला |'
अंत में जब मैंने बलरामपुर के पूर्व सांसद रिज़वान की याद दिलाई तो पंक्चर बनाते रिज़वान के चेहरे पर बरबस एक फीकी या हल्की मुस्कान फैल गयी! अब इसके आगे मैंने कोई सवाल करना मुनासिब नहीं समझा और बलरामपुर की इस सरज़मीन के बारे में कुछ देर सोचता रहा ...|

🔘

Post Bottom Ad

Pages