दिव्य रश्मि न्यूज़ चैनल |
- अटल जी की कविता
- हिन्दी पूर्णत: एक वैज्ञानिक भाषा है |
- आमिर खान कितना खतरनाक और धूर्त है.
- जल जीवन है
- सार सार तो उड गया अब थोथा थोथा रसायन शास्त्र
- कणाद, डालटन, न्यूटन और 'की फर्क पैंदा है'
- अटल बिहारी बाजपेयी - जिनकी मौत से ठन गई!
- आतिशबाजी भारत की या चीन की? या फिर इंग्लिस्तान की?
- जाने माने इतिहासकार – कार्यविधि, दिशा और उनके छल
- बाढ़ से धीमी पड़ी मनरेगा की रफ्तार, 6376 पंचायतों में ही हो रहा काम
- प्री और पोस्ट मैट्रिक की छात्रवृत्ति के लिए 31 अक्टूबर तक दें आवेदन
- राजस्व मंत्री ने कहा- ऑनलाइन म्यूटेशन में जान-बूझकर देरी बर्दाश्त नहीं, विशेष सचिव को दी खराब प्रदर्शन करने वालों पर कार्रवाई की जिम्मेदारी
- आंदर में नहीं निकलेगा मोहर्रम का जुलूस, कोरोना के फैलते संक्रमण से बचने के लिए लिया गया निर्णय
- लैब टेक्नीशियनों की भर्ती पर हाईकोर्ट ने लगाई रोक, 12 सितंबर को होगी अगली सुनवाई
- पटना में गंगा 72 घंटे से खतरे के निशान के पार, फरक्का के सभी गेट खोले गए
- लोकसेवा केंद्र में लग रही भीड़, तहसीलदार ने बनाई व्यवस्था
- अवैध बालू उत्खनन को लेकर ग्रामीणों ने किया विरोध प्रदर्शन
- बेलहर विधायक वनवासियों और जनजातियों की समस्याओं से हुए अवगत
- नदी के जलस्तर में आई कमी, बाढ़ प्रभावित गांवों में अभी भी हालात बेकाबू, आज बढ़ सकता है जलस्तर
- प्रवासी कामगारों को मिली रोजगार ट्रेनिंग
- मांगों को लेकर किसान सलाहकारों ने काली पट्टी लगाकर जताया आक्रोश
- टेट शिक्षकाें ने नई सेवाशर्त की प्रतियों को जलाकर जताया आक्रोश, बोले, झुनझुना है
- चेतना फाउंडेशन ने बांटे पीपल और बरगद पौधे
- मारपीट की प्राथमिकी कराने आए लाेगाें के साथ पुलिस ने की बर्बरता
- सरकारी जमीन पर अतिक्रमित कर बनाए घर काे प्रशासन ने बुलडाेेजर से किया ध्वस्त
Posted: 19 Aug 2020 11:17 PM PDT अटल जी की कविताहिन्दू तन-मन, हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय मैं शंकर का वह क्रोधानल कर सकता जगती क्षार-क्षार। डमरू की वह प्रलय-ध्वनि हूं जिसमें नचता भीषण संहार। रणचण्डी की अतृप्त प्यास, मैं दुर्गा का उन्मत्त हास। मैं यम की प्रलयंकर पुकार, जलते मरघट का धुआंधारय। फिर अन्तरतम की ज्वाला से, जगती में आग लगा दूं मैं। यदि धधक उठे जल, थल, अम्बर, जड़, चेतन तो कैसा विस्मय? हिन्दू तन-मन, हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय! मैं आदि पुरुष, निर्भयता का वरदान लिए आया भू पर। पय पीकर सब मरते आए, मैं अमर हुआ लो विष पी कर। अधरों की प्यास बुझाई है, पी कर मैंने वह आग प्रखर। हो जाती दुनिया भस्मसात्, जिसको पल भर में ही छूकर। भय से व्याकुल फिर दुनिया ने प्रारंभ किया मेरा पूजन। मैं नर, नारायण, नीलकंठ बन गया न इस में कुछ संशय। हिन्दू तन-मन, हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय! मैं अखिल विश्व का गुरु महान्, देता विद्या का अमरदान। मैंने दिखलाया मुक्ति-मार्ग, मैंने सिखलाया ब्रह्मज्ञान। मेरे वेदों का ज्ञान अमर, मेरे वेदों की ज्योति प्रखर। मानव के मन का अंधकार, क्या कभी सामने सका ठहर? मेरा स्वर नभ में घहर-घहर, सागर के जल में छहर-छहर। इस कोने से उस कोने तक, कर सकता जगती सौरभमय। हिन्दू तन-मन, हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय! मैं तेज पुंज, तमलीन जगत में फैलाया मैंने प्रकाश। जगती का रच करके विनाश, कब चाहा है निज का विकास? शरणागत की रक्षा की है, मैंने अपना जीवन दे कर। विश्वास नहीं यदि आता तो साक्षी है यह इतिहास अमर। यदि आज देहली के खण्डहर, सदियों की निद्रा से जगकर। गुंजार उठे उंचे स्वर से 'हिन्दू की जय' तो क्या विस्मय? हिन्दू तन-मन, हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय! दुनिया के वीराने पथ पर जब-जब नर ने खाई ठोकर। दो आंसू शेष बचा पाया जब-जब मानव सब कुछ खोकर। मैं आया तभी द्रवित हो कर, मैं आया ज्ञानदीप ले कर। भूला-भटका मानव पथ पर चल निकला सोते से जग कर। पथ के आवर्तों से थक कर, जो बैठ गया आधे पथ पर। उस नर को राह दिखाना ही मेरा सदैव का दृढ़ निश्चय। हिन्दू तन-मन, हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय! मैंने छाती का लहू पिला पाले विदेश के क्षुधित लाल। मुझ को मानव में भेद नहीं, मेरा अंतस्थल वर विशाल। जग के ठुकराए लोगों को, लो मेरे घर का खुला द्वार। अपना सब कुछ लुटा चुका, फिर भी अक्षय है धनागार। मेरा हीरा पाकर ज्योतित परकीयों का वह राजमुकुट। यदि इन चरणों पर झुक जाए कल वह किरीट तो क्या विस्मय? हिन्दू तन-मन, हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय! मैं वीर पुत्र, मेरी जननी के जगती में जौहर अपार। अकबर के पुत्रों से पूछो, क्या याद उन्हें मीना बाजार? क्या याद उन्हें चित्तौड़ दुर्ग में जलने वाला आग प्रखर? जब हाय सहस्रों माताएं, तिल-तिल जलकर हो गईं अमर। वह बुझने वाली आग नहीं, रग-रग में उसे समाए हूं। यदि कभी अचानक फूट पड़े विप्लव लेकर तो क्या विस्मय? हिन्दू तन-मन, हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय! होकर स्वतंत्र मैंने कब चाहा है कर लूं जग को गुलाम? मैंने तो सदा सिखाया करना अपने मन को गुलाम। गोपाल-राम के नामों पर कब मैंने अत्याचार किए? कब दुनिया को हिन्दू करने घर-घर में नरसंहार किए? कब बतलाए काबुल में जा कर कितनी मस्जिद तोड़ीं? भूभाग नहीं, शत-शत मानव के हृदय जीतने का निश्चय। हिन्दू तन-मन, हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय! मैं एक बिंदु, परिपूर्ण सिन्धु है यह मेरा हिन्दू समाज। मेरा-इसका संबंध अमर, मैं व्यक्ति और यह है समाज। इससे मैंने पाया तन-मन, इससे मैंने पाया जीवन। मेरा तो बस कर्तव्य यही, कर दूं सब कुछ इसके अर्पण। मैं तो समाज की थाती हूं, मैं तो समाज का हूं सेवक। मैं तो समष्टि के लिए व्यष्टि का कर सकता बलिदान अभय। हिन्दू तन-मन, हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय!" दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com |
हिन्दी पूर्णत: एक वैज्ञानिक भाषा है | Posted: 19 Aug 2020 11:14 PM PDT हिन्दी पूर्णत: एक वैज्ञानिक भाषा है |आज के छात्रों को भी नहीं पता होगा कि भारतीय भाषाओं की वर्णमाला विज्ञान से भरी है। वर्णमाला का प्रत्येक अक्षर तार्किक है और सटीक गणना के साथ क्रमिक रूप से रखा गया है। इस तरह का वैज्ञानिक दृष्टिकोण अन्य विदेशी भाषाओं की वर्णमाला में शामिल नहीं है। जैसे देखें *क ख ग घ ड़* - पांच के इस समूह को "कण्ठव्य" *कंठवय* कहा जाता है क्योंकि इस का उच्चारण करते समय कंठ से ध्वनि निकलती है। उच्चारण का प्रयास करें। *च छ ज झ ञ* - इन पाँचों को "तालव्य" *तालु* कहा जाता है क्योंकि इसका उच्चारण करते समय जीभ तालू महसूस करेगी। उच्चारण का प्रयास करें। *ट ठ ड ढ ण* - इन पांचों को "मूर्धन्य" *मुर्धन्य* कहा जाता है क्योंकि इसका उच्चारण करते समय जीभ मुर्धन्य (ऊपर उठी हुई) महसूस करेगी। उच्चारण का प्रयास करें। *त थ द ध न* - पांच के इस समूह को *दन्तवय* कहा जाता है क्योंकि यह उच्चारण करते समय जीभ दांतों को छूती है। कोशिश करो *प फ ब भ म* - पांच के इस समूह को कहा जाता है *अनुष्ठान* क्योंकि दोनों होठ इस उच्चारण के लिए मिलते हैं। कोशिश करोदुनिया की किसी भी अन्य भाषा में ऐसा वैज्ञानिक दृष्टिकोण है? हमें अपनी भारतीय भाषा के लिए गर्व की आवश्यकता है, लेकिन साथ ही हमें यह भी बताना चाहिए कि दुनिया को क्यों और कैसे बताएं। |
आमिर खान कितना खतरनाक और धूर्त है. Posted: 19 Aug 2020 09:23 PM PDT आमिर खान कितना खतरनाक और धूर्त है.आमिर खान ने अपनी फिल्मों का दावा किया दंगल, सीक्रेट सुपरस्टार ने चीन में कमाए ढेर सारे पैसे दावा था दंगल ने चीन में इतना पैसा कमाया कि बाहुबली 2 से बड़ा हिट है और इसलिए भारत की सबसे बड़ी ब्लॉकबस्टर फिल्म है । बाहुबली 2 ने शायद ही चीन में पैसा कमाया । चीनी वितरण बहुत ही मजेदार है । हम नहीं जानते कि वे लोग कौन हैं, वे संग्रह की गणना कैसे करते हैं और वे इसे भारतीयों के साथ कैसे साझा करते हैं । आमिर खान ने कहा उनकी फिल्म ने चीन में 1500 करोड़ बनाए और हमें उनकी बात लेनी पड़ेगी । दंगल ने भारत में 387 करोड़ बनाए जबकि बाहुबली 2 ने भारत में 1429 करोड़ बनाए । आमिर ने अपने सीक्रेट सुपरस्टार का भी दावा किया, जहां उन्होंने अतिथि भूमिका निभाई, चीन में 863 करोड़ एकत्र किए, जबकि इसका भारत संग्रह सिर्फ 64 करोड़ है । तो इन संग्रहों के साथ वह भारत की तुलना में चीन में 20 गुना बड़ा सुपरस्टार है । आमिर बहुत समझदार ऑपरेटर है । सलमान खान या शाहरुख खान के विपरीत शुरुआत से बहुत अच्छा खेला । सरफरोश लगान और मंगल पाण्डेय जैसी सुपर देशभक्त फ़िल्में बनाईं और देशभक्त भारतीयों की स्वीकृति और विश्वास प्राप्त किया । फिर उन्होंने आत्मसमर्पण किया और अपनी फिल्मों में अपना एजेंडा डालना शुरू कर दिया । रंग दे बसंती की मिसाल लो । हर कोई जिसने इसे देखा, जॉर्ज फर्नांडीस और भाजपा सरकार से नफरत करता है, रक्षा सौदों में भ्रष्टाचार के साथ त्वरित बक बनाने के लिए । सोनिया गांधी ने तरुण तेजपाल की पसंद से तहलका घोटाले के साथ साबित करने की कोशिश की । और कौन जानता है कि कारगिल युद्ध में हारने वाले लोगों को अपने ही देश में बदनाम होते देख कर कितना अच्छा लगा होगा, जिन्होंने सैनिकों के ताबूत में पैसा कमाया था । आमिर ने फिर अपनी सोब कहानी सत्यमेव जयते में अपने हिंदू विरोधी एजेंडे को पैडल करना शुरू किया । उस श्रृंखला के माध्यम से एनजीओ के लिए लगभग सारा पैसा उसने मुसलमानों के लिए या भारत विरोधी एजेंडे पर काम करने वाले अपने पालतू एनजीओ के लिए चला गया । हम हिन्दू अपने दुश्मनों को उनकी सिसक कहानियों पर विश्वास करके वित्त पोषण करते हुए उतरे । सत्यमेव जयते में उनके हिंदू विरोधी एजेंडे की एक ही मिसाल दूँगा । हिन्दुओ को बेटी का हत्यारा दिखाया । और फिर, उसी एपिसोड में, दिखाया कि मुस्लिम बिना दहेज के शादी कैसे कर रहे हैं और इसलिए वे बच्ची को नहीं मारते हैं । क्या यह किसी हिन्दू महिला का खून नहीं खौलाएगा कि हमारे माता-पिता दहेज के लिए मार देते हैं जबकि मुस्लिम दहेज नहीं लेते और इसलिए उनकी लड़कियां सुरक्षित हैं? क्या यह गुस्सा मुसलमानों को लव जिहाद में मदद नहीं करेगा? ऐसा कोई एपिसोड नहीं था जहां आमिर ने इस्लामिक समाज में सामाजिक दुष्कर्म दिखाया था । उसने बुर्का या ट्रिपल तलाक या बहुविवाह या हलाला पर कोई एपिसोड नहीं बनाया या कम से कम कैसे किशोर लड़कियां हैदराबाद में मुथा विवाह (अस्थायी विवाह) में पुराने अरबों को बेची जाती हैं । अपने ही धर्म में सामाजिक दुष्टों पर एक भी एपिसोड नहीं । सत्यमेव जयते भारत और उसकी संस्कृति पर सबसे बड़ा हिट जॉब था । उन्होंने भारत में सब कुछ मारा - डॉक्टरों से लेकर वैज्ञानिकों तक पानी से हवा तक । और हम उस पर गुस्सा होने की बजाय इसके लिए ताली बजाते थे । मुझे यकीन है कि यह ब्रांड इंडिया को भारी नीचे लाया है । उसकी सावधानी से बनाई गई छवि इतनी ऊंची थी कि हमने उसके इरादों पर कभी शक नहीं किया । फिर आई PK, अब तक की सबसे खराब हिंदुफोबिक फिल्म । हम हिन्दू अपने ही देवताओं पर बने चुटकुले पर हँसे । हिन्दू लड़की से प्यार करने वाले पाकिस्तानी लड़के के लिए हमने आंसू बहाए । PK बन गया भारतीय सिनेमा में सबसे बड़ा ब्लॉकबस्टर जबकि हिन्दू अपने देवताओं पर हँसे । फिर नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद पत्नी भारत में रहने से डरती है, फिर उन्होंने अपना राजनीतिक बयान शुरू किया । आमिर की आलोचना की गई और वास्तव में, स्नैपडील सबसे बड़ा हारा हुआ था क्योंकि भारतीयों ने इसे अनइंस्टॉल कर दिया था । लेकिन उसकी फिल्मों ने अभी भी पैसा कमाया है । बहुसंख्यक हिन्दू आबादी का धन्यवाद जो असंवेदनशील होते रहे और बेवकूफ भी हिंदुत्व के खिलाफ आमिर का एजेंडा नहीं देखते । अगला दंगल आया और यह भी बड़ा हिट हो गया । इसने एक देशभक्त हिंदू परिवार को दिखाया जिसने कुश्ती में भारत के लिए पदक जीतने के लिए सभी सामाजिक ताबूज तोड़ दिए और वहां हरियाणा में एक पूरा खेल उद्योग बना कर । लेकिन आमिर ने अपनी हदें पार कर दी । उन्होंने चीन से दंगल के नकली संग्रह का दावा किया और फिर दावा किया कि उन्होंने भारत की सबसे बड़ी हिट फिल्म बनाई - बाहुबली से बड़ी । वह अपनी अगली फिल्म में फ्लैट गिर गया जहां उसने एक काल्पनिक शांतिपूर्ण राजाओं का बड़ा नायक बनाने की कोशिश की, जिन्हें स्वतंत्रता सेनानी दिखाया गया था । बिल्कुल टीपू सुल्तान की तरह । किसी ने भी इस बकवास पर विश्वास नहीं किया और यह दशक की सबसे खराब आपदा बन गई । अब, अपने नए अवतार में आमिर ने तुर्की तानाशाह से बहुत धूमधाम और शो के साथ मुलाकात की । वह इसे करीब से कर सकता था । ऐसा तमाशा क्यों बना रहा है? क्या वह अपने अनुयायियों को संदेश भेज रहा है कि तुर्की नया बॉस है और हमें इसका पालन करना होगा? या खलीफा तक पहुंचने में उनके सह-सुपरस्टार सलमान और शाहरुख को हराने की कोशिश कर रहे हैं? हम नहीं जानते कि उसका एजेंडा क्या है । लेकिन एक बात निश्चित है । उसे उसके चेहरे के मूल्य पर मत लो । वह बॉलीवुड के अपने सभी मुस्लिम सितारों को बड़ा खतरा है । लेखक सप्त्रिशी वसु राजनैतिक चिंतक एवं राष्ट्रवादी है दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com |
Posted: 19 Aug 2020 08:47 PM PDT जल जीवन हैजल जीवन का तत्व महान इसके बिना न रह पाये प्राण सभी प्राणियों को चाहिए जल पेड़ पौधे,पशु पक्षी,चाहे हो इन्सान पंच- तत्व से बना है जीवन, क्षिति,जल ,पावक,गगन, समीर वायु प्राण के लिए चाहिए पर, जल बिन हम होते अधीर, जल ही है मछली का जीवन , इसके बिना न वह रह पाए पृथ्वी रखती जल संजोकर कोई न गदला कर पाए , खुश हो कर आकाश पिता जब बादल से जल बरसातें है , छन- छन कर मिट्टी के अंदर अमृत कोष बन जाता है , प्रकृति तो जल देती है कभी न करना बर्बाद इसे पर्यावरण सुरक्षित रखकर रखना हरदम आबाद इसे !! ● ~~~~~~~~ स्वरचित एवं मौलिक रचना रचनाकार-डॉ .पुष्पा गुप्ता, मुजफ्फरपुर बिहार ~~ दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com |
सार सार तो उड गया अब थोथा थोथा रसायन शास्त्र Posted: 19 Aug 2020 08:45 PM PDT सार सार तो उड गया अब थोथा थोथा रसायन शास्त्रहम 'सलमान और कैटरीना' की कैमेस्ट्र्री में खुश रहने वाले लोग हैं। इससे क्या फर्क पडता है कि भारत की अपनी एक कैमेस्ट्री है, रसायनों का इतिहास है। देश में रसायानों का प्रयोग आधुनिक रसायन शास्त्र के उद्भव से शताब्धियों पहले होता रहा लेकिन हमारे ढाक के तीन पात हैं - हम पिछडे लोग, हमें कुछ न आया, हमें अंग्रेजों ने सभ्य बनाया। यह ठीक है कि एंटोनी लेवईज़िएयर रसायन विज्ञान के पिता मानें जाते हैं चूंकि उनकी पुस्तक ''तत्वों के रसायन'' में हाइड्रोजन और ऑक्सीजन तत्वों पता लगाने वर्णन हैं। तथापि तत्वों और रसायनों के मध्यकालीन पश्चिमी अंवेषणों और प्राचीन भारतीय अनुसंधानों की उनसे समानता अथवा विभिन्नता पर मौन क्यों पसरा रहता है? केमिस्ट्री शब्द की उत्पत्ति मिस्र देश के प्राचीन नाम कीमिया से हुई है इसका अर्थ है- कालारंग। भारतीय रस और रसायनों में जितना रंग-बिरंगापन है उसकी सुध लेना वाला कोई क्यों नहीं? औपनिवेशिक ब्रिटिश-भारत के दौर में कोलकाता के एक रसायान शास्त्री आचार्य प्रफुल्ल चन्द्र राय, ब्रिटेन के प्रेसिडेंसी कालेज में प्राध्यापन कर रहे थे। इसी दौरान उन्होंने फ्रांसीसी रसायन शास्त्री बर्थेलो की पुस्तक "द ग्रीक अल्केमी" पढी तो अनुभव हुआ कि भारतीय ज्ञान को दुनिया के समक्ष इसी प्रकार लाया जाना चाहिये। श्री राय ने अभिप्रेरित हो कर आचार्य नागार्जुन की कृति "रसेन्द्रसारसंग्रह" पर आधारित 'प्राचीन हिन्दू रसायन', विषयक लेख लिखकर बर्थेलो को भेजा। फ्रांसिसी वैज्ञानिक स्तब्ध रह गये, कितना अथाह ज्ञान भारतीय पुराग्रंथों में पसरा पड़ा है और उनकी कोई सुध लेने वाला भी नहीं? बर्थेलो ने आलेख की विस्तृत समीक्षा की जो जर्नल डे सावंट में प्रकाशित हुई और तब यूरोप भौचक्का रह गया कि रसायन शास्त्र के ज्ञान का वास्तविक आधार तो भारत के पुरा-शास्त्रों में हैं। अपनी इस उपलब्धि से उत्साहित आचार्य प्रफुल्ल चन्द्र राय ने "हिस्ट्री ऑफ हिन्दू केमिस्ट्री" नाम से पुस्तक लिखी जिसे तत्कालीन विद्वानों ने हाथो-हाथ लिया। भारतीय रसायनों की विकास कथा को सामने रखती कुछ बाद की पुस्तक - प्राचीन भारत में रसायन का विकास (लेखक - सत्यप्रकाश सरस्वती) भी उल्लेखनीय है जो हिंदुस्तानी होने के गर्व को बढाने में सक्षम है। कतिपय विद्वानों ने रसायनशास्त्र का जो प्राचीन ज्ञान सामने लाने का श्रम किया है उसका सार-संक्षेप प्रस्तुत कर रहा हूँ जो संभव है हमारी सुप्तेंद्रियों को झकझोर सके। आरम्भ, आधुनिक रसायनशास्त्र की परिभाषा के साथ करते है, जो कहता है कि - यह विज्ञान की वह शाखा है जिसमें हम विभिन्न प्रकार के द्रव्यों की सरंचना, उनको निर्मित करने की विधियाँ, गुण-धर्मों और उपयोगों का अध्ययन करते है। यदि इस आलोक में प्राचीन भारतीय ज्ञान को टटोलें तो हमें ईसा के जन्म से हजारों वर्ष पूर्व जा कर ठहरना होगा। सिन्धु घाटी की सभ्यता और उसकी लिपि समझ ली गयी तो क्या जानकारियाँ सामने आती हैं यह अलग पहलू है लेकिन उनकी अनेक धात्विक निर्मितियाँ असाधारण हैं। हमारे वेद-उपनिषद भी विभिन्न प्रकार की धातुओं के वर्णन से अटे पडे हैं। यजुर्वेद में उल्लेख है – "अश्मा च मे मृत्तिका च मे गिरयश्च मे पर्वताश्च मे सिकताश्च मे वनसोअतयश्च मे हिरण्यं च मेअयस्य मे श्यामं च मे लोहं च मे सीसं च मे त्रपु च मे यज्ञेन कल्पंताम"। इस एक श्लोक में पत्थर (अश्मन), मिट्टी (मृत्तिका), बालू (सिक्ता), हिरण्य (सोना), अयस (लोहा), स्याम (ताम्बा), लोह (लोहा), सीस (सीसा) और त्रपु (रांग/टिन) का उल्लेख है। यजुर्वेद के ही एक मंत्र में अयस्ताप (आईरन स्मेल्टर) का उल्लेख प्राप्त होता है (मन्यवे अयस्तापं)। तैत्तिरीय संहिता में कृष्णायस (काला लोहा) का उल्लेख है। ऋग्वेद में अनेक स्थानों पर अयस शब्द का प्रयोग मिलता है। अथर्ववेद में श्याम (ताम्बे), लोहित (लोहे) और हरित (सोने) के साथ त्रपु (राँगा) का भी प्रयोग मिकता है। अथर्ववेद में एक पूरा सूक्त "दधत्यं सीसम" है जो सीसे पर केंद्रित है – हम तुम्हे सीस से बेधते हैं जिससे तुम हमार प्रिय जनों को न मार सको। समझा जा सकता है कि सीस के बने छर्रे युद्ध में काम आते होंगे। रसायन शास्त्र का भारत में विकास किस तरह हुआ और कितनी बारीकियों का ध्यान रखा गया इसके लिये शतपथ ब्राम्हण से प्राप्त इस उल्लेख को समझना आवश्यक है – "स यद्वानस्पत्य: स्यात प्रदह्येत, यद्धिरण्यमय: स्यात प्रलीयेत, यल्लोहमय: स्यात प्रसिच्येत, यदयस्मय: स्यात प्रदहेत्परीशासावथेय्षाएवैतस्माअतिष्ठत तस्वादेतम्मृन्मयेनैव जुहोति" अर्थात यह प्रश्न उठाया गया है कि घृत की आहूति मृन्मय मात्र (मिट्टी के बर्तन) में क्यों दी जानी चाहिये। इसके उत्तर में युक्ति है कि यदि लकडी के पात्र में दोगे तो वह जल जायेगी, यदि सोने के पात्र में दोगे तो वह घुल जायेगा, यदि ताम्बे के पात्र में दोगे तो वह गल जायेगा और यदि अयस्मय पात्र में तो पात्र गर्म हो जायेगा अत: मिट्टी का मात्र ही उचित है। आज हम डिज्योल्यूशन पर चर्चा करें अथवा हीट कंडक्टेंस पर लेकिन ऐसे महत्व के उदाहरणों से कन्नी काट कर निकल जाते हैं। यह ठीक है कि चरक और सुश्रुत संहिताओं का उद्भव चिकित्सा शास्त्र की दिशा में महत्व का है तथापि इन शास्त्रों में औषधीय प्रयोगों के लिए पारद, जस्ता, तांबा आदि धातुओं एवं उनकी मिश्र धातुओं को शुद्ध रूप में प्राप्त करने की जानकारियाँ प्राप्त होती हैं। ये पुरा-शास्त्र औषधियों के विरचन में व्यवहृत रासायनिक प्रक्रियाओं जैसे द्रवण, आसवन, उर्ध्वपातन आदि का उसी तरह विस्तृत वर्णन प्रदान करते हैं जैसी कि आधुनिक रसायनशास्त्र की परिभाषा में अपेक्षा की गयी है। चरक ने अपनी कृति में लवणवर्ग के अंतर्गत विभिन्न पदार्थों को गिनाया जाता है। वे लिखते हैं - सैंधव-सौवर्चल-काल-विड-पाक्यानूप-कूप्य-वलुकैल-मौलक-सामुद्र-रोमकौदिभदौषरपाटेयक-पांशुजान्येवंप्रकाराणि चान्यानि लवणवर्गपरिसंख्यातानि अर्थात नमक के निम्नानुसार प्रकार हो सकते हैं - सैंधव (Rock Salt), सौवर्चल (Sanchal Salt), काल (Black Salt), बिड (Vida), पाक्य (Crystallised Salt), आनूप (Salt from Swamps), कूप्य (Salt from Well Water), वालुकैल (Salt from Sandy Deposits), मौलक (Crystallised Mixed Salt), सामुद्र (Salt from Sea Water), रोमक (Salt from Samber Lake), औदभिद (Salt from efflorescene), औषर (Salt from Alkaline land), पाटेयक (Poitou Salt), पंशुज (Salt from Ashes) आदि। चरक संहिता में विभिन्न रसायनों-रासायनिक प्रक्रियाओं का उल्लेख व आसवों को तैयार करने की विधि भी प्राप्त होती है। कुछ उदाहरण देखें कि "लेलीतकप्रयोगो रसेन जत्या: समाक्षिक: परम: सप्तदशकुष्ठघाती माक्षिकधातुश्च मूत्रेण" अर्थात कुष्ठ रोग के निवारन के लिये लेलीतक (गंधक) और माक्षिक (आयरन पायराईटीज) का प्रयोग उपकर माना जाता है। इसी प्रकार अंजन शब्द आजकल के एंटिमनी सलफाईड के लिये प्रयोग में आता था और नेत्रों को साफ करने में इसका उपयोग होता था। ग्रंथ में अनेक स्थान पर उल्लेखित शब्द कासीस वस्तुत: लोहे का सल्फेट है जो लोह-माक्षिक के उपचयन अथवा लोहे और सल्फ्यूरिक अम्ल के योग से बनाया जाता है। चरक द्वारा अमृतासंज्ञ (नीलाथोथा), गंधक और मन:शिला के साथ अनेक रोगों में गुणकारी बताया गया है। मोटे तौर पर चरक संहिता के पच्चीसवें अध्याय में आसवों के चौरासी विभेद बताये गये हैं अम्ल और क्षार के विषय में आज पुस्तकें विवेचानाओं से अटी पडी हैं। चरक ने क्षार का प्रयोग अनेक प्रकार की चिकित्सा में किया गया है। अनेक औषधियों से तैयार किये गये रसक्वाथ को सुखा कर और जला कर क्षार को तैयार किया जाता था। यहाँ जलाने की विधि के साथ अंतर्धूमं शनैर्दग्धवा शब्द का प्रयोग महत्वपूर्ण है जो बताता है कि धुँआ अंदर ही इस तरह बना रहना चाहिये जिससे तथा वायु का आना जाना कम हो (Air Tight Method) और इस प्रकर जलाने का कार्य धीरे धीरे किया जाना चाहिये। क्षार की उपयोगिता पर भी अनेक उल्लेख हैं जैसे – "क्षारो हि याति माधुर्यं शीघ्रमम्लोपसंहित: श्रेष्ठमम्लेषु मद्यं च यैर्गुणैस्तान परं श्रृणु" अर्थात क्षारों के प्रयोग से अम्लों का खट्टापन दूर हो जाता है, अम्ल से उपसंहित होने पर क्षार माधुर्य को प्राप्त होता है। इसी कडी में विष और उसके उपयोगों पर चरक के ज्ञान की संक्षिप्त विवेचना आवश्यक है। चिकित्सा स्थान के 23 अध्याय में चरक विष का विस्तार से वर्णन करते हैं। उनके अनुसार साधारणत: तीन प्रकार के विष होते है – जंगम विष (Animal Poison), स्थावर विष (Plant Poison) तथा संज्ञक विष (Slow Poison)। ग्रंथ में विष के निवारण की भी चौबोस विधियाँ बताई गयी हैं। आज का विज्ञान फ्लेम टेस्ट अथवा ज्वाला परीक्षण की बहुत सी विधियों का प्रयोग करता है। चरक ने भोजन में विष ज्ञात करने के लिये ज्वाला परीक्षण का उल्लेख किया है तथा उन्होंने जलाने पर उत्पन्न होने वाले विभिन्न रंगों से तत्वों की पहचान उल्लेखित की है। चरक के पश्चात सुश्रुत ने रसायन के ज्ञान में महति योगदान दिया है। पानी तथा उसकी गुणवत्ता को ले कर सुश्रुत का बोध देखें। वे लिखते हैं कि पानी में मिली हुई अशुद्धियों अथवा अपद्रव्यों को दूर करने का नाम कलुष प्रसादन है। जिस स्थान पर पानी पंक, शैवाल, हठ (जलकुम्भी), तृण, पद्मपत्र आदि से आच्छादित रहता है, चंद्रमा, सूर्य की किरणे तथा वायु जिस पानी का स्पर्श नहीं करते इस तरह के पानी में छ: प्रकार के दोष उत्पन्न होते हैं - स्पर्श, रूप, रस, गंध,वीर्य और विपाक्। ये सब दोष अंतरिक्ष जल (वर्षा जल) में नहीं होते। दूषित पानी को आग पर गरम करने से, अल्पदोष वाले पानी को सूर्य की धूप में गरम करने से, मध्यम दोषयुक्त पानी में लोहे की पिंडिला को, रेत को या मिट्टी के ढेले को अग्नि में गरम कर के बुझाने से पानी स्वच्छ हो जाता है। दुर्गंध को दूर करने के लिये नागकेसर, चम्पा, उत्पल (कमल), पाटला आदि के पुष्पों से आस्थापन करना चाहिये। सात वस्तुवें मलिन जल को शुद्ध करने वाली हैं – कतक (निर्मली), गोमेदक (गोमेद रत्न का तेजपात), विसग्रंधि (पद्ममूल), शैवालमूल (काई की जड), वस्त्रमुक्ता और मणि (फिटकरी)। हम चरक-सुश्रुत की बात करें तो लगभग इसी समय के महान विद्वान आचार्य विष्णुगुप्त कौटिल्य अथवा उनके ग्रंथ अर्थशास्त्र से अलग हो कर नहीं निकल सकते। ईसा पूर्व तीसरी सदी का यह उद्भट विद्वान अपनी कृति में धातु, अयस्कों, खनिजों एवं मिश्र धातुओं से संबंधित आश्चर्यजनक जानकारी तथा उनके खनन, विरचन, खानों के प्रबंधन तथा धातुकर्म की व्याख्या प्रस्तुत करता है। कौटिल्य के अर्थशास्त्र में चार प्रकार की सिक्का धातुएं वर्णित हैं-मशकम, अर्धमशकम, काकनी एवं अर्धकाकनी। ये सभी रजत, तांबा, लोहा, वंग और सीसा अथवा एंटिमनी को विभिन्न अनुपातों मंव मिलाकर बनाई जाती थीं। इसी प्रकार चांदी एवं पारद की भी कई वर्णों वाली मिश्र धातुएं बनाई जाती थीं। वंग की भी सोने के वर्ण वाली कई मिश्र धातुएं अभ्रक, तांबा, चांदी और पारे के संयोग से विरचित की जाती थीं। स्वर्ण की तो अनेक मिश्र धातुएं उनके ग्रंथ के माध्यम से ज्ञात होती हैं। रसायनशास्त्र से जुडे महत्व के अन्य ग्रंथों में नागार्जुन कृत 'रस रत्नाकार' महत्व की है। छठी शताब्दी में वराहमिहिर ने 'वृहत् संहिता' में अस्त्र-शस्त्रों को बनाने के लिए उच्च कोटि के इस्पात निर्माण की विधि का वर्णन किया है। भारतीय इस्पात की गुणवत्ता इतनी अधिक थी कि उनसे बनी तलवारों के फारस आदि देशों तक निर्यात किये जाने के ऐतिहासिक प्रमाण मिलते हैं। आठवीं शताब्दी से १२वीं शताब्दी के मध्य लिखी रसायन सम्बंधी कृतियों में प्रमुख हैं-वाग्भट्ट की अष्टांग हृदय, गोविंद भगवत्पाद की रस हृदयतंत्र व रसार्णव, सोमदेव की रसार्णवकल्प व रसेंद्र चूणामणि तथा गोपालभट्ट की रसेंद्रसार संग्रह। इन्हीं समयों की कुछ अन्य महत्वपूर्ण कृतियाँ हैं-रसकल्प, रसरत्नसमुच्चय, रसजलनिधि, रसप्रकाश सुधाकर, रसेंद्रकल्पद्रुम, रसप्रदीप तथा रसमंगल आदि। अष्टांग अंग्रह में दूषित जल का विवरण व इसे शुद्ध करने की विधि विस्तार पूर्वक दी गयी है। अष्टांगहृदय व अष्टांग संशय में धातु की भस्मों की निर्मिति पर जानकारी प्रदान की गयी है एवं ताम्र्रस, स्वर्नभस्म और लोहरज का आदि का प्रयोग दिया गया है। वृन्द (975 से 1000ई) और चक्रपाणि (1050 ई.) ने अनेक रसायन संदर्भित आयुर्वैदिक ग्रंथों की रचना की। वृन्द ने पर्पटीताम्र नामक एक योग में पारे, गंधक और ताम्बे को पीस कर इनका माक्षिक के साथ पुटपाक विधि द्वारा संयोग कराया गया है, शहद के साथ इनका उपयोग कई रोगों में गुणकारी होता है (रसग्न्धक ताम्राणां चूर्ण कृत्वा समाक्षिकम। पुटपाकविधौ पक्त्वा मधुनालोड्य संलिहेत्य्। सर्वरोगहर्ण्चैतत्पर्पताख्यं रसायनम्)। इन समयों में धातुशोधन तथा विभिन्न प्रकार की भस्मों के निर्माण में बहुत कार्य हुआ है। अपनी प्रयोगशाला में नागार्जुन ने पारे पर बहुत प्रयोग किये थे। विस्तार से उन्होंने पारे को शुद्ध करना और उसके औषधीय प्रयोग की विधियां बताई हैं। विषय में अनंत विमर्ष हो सकते हैं लेकिन क्या हम आगे बढते रहने के साथ साथ पिछले पन्ने भी पलटने के लिये तत्पर हैं? ध्यान देने योग्य तथ्य है कि शब्द बदल गये, माध्यम बदल गये, समय भी बदल गया लेकिन पुरातन अपनी जगह स्थिर आधुनिक नकल पर परिहास तो करता ही है। चरक-सुश्रुत वर्णित प्रयोग में लाये गये कतिपय उपकरणों को देखें जैसे - शूर्प (Winnowing basket), उलूखल (Mortar), मुशल (Pestle), अभ्रि (Spade), प्रोक्षणी (A Vessel for sprinkling water), शमी, शम्या (Wooden Pin), मंथनी, स्त्रुक (Offering Spoon), स्त्रुव (Dipping Spoon), उख (Boiler), दृषद-उपल (large and Small Mill Stones), आस्पात्र (Drinking Vessel), कुम्भ (Pitcher), कौलालचक्र (Potter's Wheel), ग्रह (Cup), पवित्रा (Filter), नेत्र, इघ्म (Fuel Wood), बर्हि (Straw), वेदि (Altar), घिष्ण्य (Lessar Altar), स्त्रुक (Spoons), चमस (Cups/ladle), ग्रावन (Pressing Stones), स्वरु (Chips), उपरव (Sounding Holes), अधिषवण (Pressing boards), द्रोण कलश (Wooden Tub), वायव्य (वायु व्याले), पूतभृत (Receiver of the filtrate), आघवनीय (Mixing Bowl), अग्नीघ्र (Agnidhs Altar), हविर्धान (Oblation Holder) आदि और मिलान करें कि ये सभी अपने मूल अथवा बदले हुए रूप में आधुनिक रसायनशालाओं में विद्यमान है। आधुनिकता ने चोरी-चोरी पुरातन का भरपूर उपयोग किया है किंतु श्रेय देने के समय मौन साध लिया गया है। भारत में यह स्थिति और भी गंभीर है चूंकि यहाँ सबकुछ अंग्रेजी शिक्षा और उनकी निर्धारित तिथियों के बाद आरम्भ होता है। दुर्भाग्य से हमें ऐसे इतिहासकार मिले जो विचारधारा की बीमारी से ऐसे ग्रसित थे, नकारात्मकताओं को उकेरते-खरोंचते उनका सारा जीवन बीत गया। आज यदि हम इस प्राचीन ज्ञान के पक्ष में खडे होते हैं तो लाल झंडा लिये कोई न कोई आपको भगवा आतंकवादी का लेबल देने अथवा शिक्षा का भगवाकरण वाला चिर-परिचित रोना-पीटना सुनाने के लिये खडा मिलेगा। हमने सार सार उडा दिया है और थोथा थोथा अपने लिये रख लिया है। ✍🏻राजीव रंजन प्रसाद, सम्पादक, साहित्य शिल्पी ई पत्रिकादिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com |
कणाद, डालटन, न्यूटन और 'की फर्क पैंदा है' Posted: 19 Aug 2020 08:43 PM PDT कणाद, डालटन, न्यूटन और 'की फर्क पैंदा है'न्यूटन के आगे सेब गिरा फिर उनके लिये सब यूरेका यूरेका हो गया। ऐसे ही एक बार महर्षि कणाद (लगभग छठी सदी ईसापूर्व) किसी फल को ले कर कुछ सोचते-विचारते जंगल में भटक रहे थे। गंभीर चिंतन में थे इसलिये नाखून से फल को कुरेदते हुए अपनी धुन में चले जा रहे थे। एकाएक ठिठक गये जब फल का छोटा सा ही अंश नाखून से चिपका रह गया। क्या इससे भी छोटा आकार संभव है, उन्होंने उस टुकडे को बारीक-बारीक कुरेद दिया लेकिन अब विचार आविष्कार में बदलने की तैयारी करने लगा था। सबसे लघुतम-सबसे सूक्षतम क्या होगा? वह जो सबसे सूक्ष्मतम होगा उसका आकार क्या होगा? क्या उसे नष्ट किया जा सकेगा? कणाद ने सिद्ध किया कि परमाणु किसी पदार्थ की सबसे छोटी इकाई है जिसे नग्न आँखों से नहीं देखा जा सकता है। उन्होंने बताय कि भौतिक जगत की उत्पत्ति सूक्ष्मातिसूक्ष्म कण परमाणुओं के संघनन से होती है। कणाद पर चर्चा से पूर्व उपलब्ध भारतीय ज्ञान और शास्त्रों के भीतर थोडा और गहरे उतरने की आवश्यकता है। "इतिहास में भारतीय परम्परायें" कृति में उल्लेखित गुरुदत्त के विवरणों के अनुसार अंग्रेज वैज्ञानिक जॉन डाल्टन (1766 - 1844) के उल्लेखों से पहले प्रकृति पाँच तत्वों की मानी जाती थी – जल, पृथ्वी, वायु, अग्नि और आकाश। डाल्टन ने पदार्थ की रचना सम्बन्धी सिद्धान्त का प्रतिपादन किया जो 'डाल्टन के परमाणु सिद्धान्त' के नाम से प्रचलित है। डाल्टन का विचार था कि सोना, लोहा, चाँदी, रागा, सीसा इत्यादि और ऑक्सीजन, हाईड्रोजन, नाईट्रोजन इत्यादि तत्व हैं। इनके बहुत छोटे छोटे कण होते हैं जो स्वयं में तत्व के गुण रखते हैं, इन्हे तोड कर और छोटा नही किया जा सकता। इन कणों का नाम एटम रखा गया। न्यूटन के दौर में मान्यता थी कि बीस-पच्चीस तत्वों से पृथ्वी के सभी पदार्थ बने हैं और संसार में इतने ही प्रकार के एटम हैं। इस समय के पश्चात पाश्चात्य वैज्ञानिकों के नये नये तत्वों का आविष्कार करना आरम्भ किया और वर्तमान में तत्वों की संख्या सौ से अधिक है। बीसवीं शताब्दी के आरम्भ में ज्ञात हुआ कि कुछ तत्वों के एटम स्वयं टूटते रहते हैं और उनमें से उससे भी बारीक कण निकलते हैं। डाल्टन के नियम अब बदल गये तथा समय के साथ एटम में तीन प्रकार के कणों ईलेक्ट्रोन, प्रोटोन तथा न्यूट्रोंन की खोज हो गयी। यह ज्ञान होने के पश्चात कि सभी प्रकार के एटमों में ज्ञात ईलेक्ट्रोन, प्रोटोन तथा न्यूट्रोंन एक समान ही भार और आकर के होते हैं, अब संसार मे केवल तीन तत्व रह गये। जब ये तत्व विनाश को प्राप्त होते हैं तब शक्ति में परिवर्तित हो जाते हैं। गुरुदत्त विभिन्न साक्ष्यों के माध्यम से इन एटॉमिक पार्टिकल्स की वैदिक ग्रंथों में ज्ञात साम्यता के आधार पर मित्र (इलेक्ट्रोन), वरुण (प्रोटोन) और अर्यमा (न्यूट्रॉन) के रूप में पहचान करते हैं। ऋग्वेद का यह श्लोक इस सम्बन्ध में उल्लेखनीय है कि - "अदर्शि गतुरुरवे वरीयसी पंथा। ऋतस्य समयंत रश्मिभिश्चक्षुर्भगस्य रश्मिभि:। द्युक्षं मित्रस्य सादनमर्यम्णो वरुणस्य च। अथा दधाते बृहदुक्थ्यं वय उपस्तुत्यं बृहद्वय:" अर्थात असाम्यावस्था में शक्तिशाली प्रकृति, प्राकृतिक नियमों का पालन करते हुए अपने भीतर की शक्ति से चमकने लगती है। तब मित्र, वरूण और अर्यमा अंतरिक्ष में बन जाते हैं। यह एक महान प्रकृति के भण्डार से बन रहे हैं। एटम की संरचना को ले कर हमारा आधुनिक ज्ञान कहता है - परमाणु के केन्द्र में नाभिक (न्यूक्लिअस) होता है जिसका घनत्व बहुत अधिक होता है। नाभिक के चारो ओर ऋणात्मक आवेश वाले एलेक्ट्रान चक्कर लगाते रहते हैं जिसको एलेक्ट्रान घन (एलेक्ट्रान क्लाउड) कहते हैं। नाभिक,धनात्मक आवेश वाले प्रोटानों एवं अनावेशित (न्यूट्रल) न्यूट्रानों से बना होता है। हमारा वैदिक ज्ञान कहता है कि महदीर्घवद्दा ह्रस्व परिमण्डलाभ्याम (ब्रम्हसूत्र) अर्थात हम मित्र (ईलेक्ट्रॉन) पर ऋण (-) विद्युत का आवेश, वरुण (प्रोटोन) पर धन (+) विद्युत का आवेश एवं अर्यमा (न्यूट्रॉन) को आवेश रहित अथवा न्यूट्रल मान सकते हैं। ऋग्वेद का यह उद्धरण देखें कि - अतिष्ठन्तीनामनिवेशनानां काष्ठानां मध्ये निहतं शरीरं। वृत्रस्य निण्यं विचरंत्यापो दीर्घंतम आशयदिंद्रशत्रु: अर्थात कि चारो ओर अस्थिर और बदलने वाले मार्गों से ह्रस्व (मित्र) परिधि में घूमने लगते हैं और उनके मध्य वरुणों के घेरे में शांत अर्यमा पडे रहते हैं (साईंस और वेद)। एटम की संरचना पर आधुनिक और पुरातन दोनो ही परिभाषायें मैंने एक साथ प्रस्तुत कर दी हैं और आप उनमे लेशमात्र का भी अंतर नहीं पायेंगे। महर्षि कणाद इस प्राचीन वैदिक अन्वेषण को अधिक वैज्ञानिकता से अपनी कृति वैशेषिक सूत्र में सामने लाते है और वे बाईनरी मॉलीक्यूल्स की बात करते हैं अर्थात एक प्रकार के दो परमाणु संयुक्त होकर 'द्विणुक' (बाईनरी मॉलीक्यूल) का निर्माण कर सकते हैं। कणाद रासायनिक बंधता के स्तर तक जाते हैं और उल्लेखित करते हैं कि भिन्न भिन्न पदार्थों के परमाणु भी आपस में संयुक्त हो सकते हैं। आज हम डाल्टन की थ्योरी को जानते हैं, कणाद को यह पीढी नहीं पहचानती। बिकलुल वैसे ही जैसे टपके हुए सेव से गुरुत्वाकर्षण खोजने वाले न्यूटन को कौन नहीं जानता लेकिन किसे जानकारी है कि बिलकुल यही सिद्धांत भास्काराचार्य ने भी प्रतिपादित किये थे। आज न्यूटन द्वारा प्रतिपादित गति के जो नियम हम जानते हैं उनसे पहले ही कणाद द्वारा विश्व के सामने रख दिये गये थे। आइजेक न्यूटन ने वर्ष - 1687 में अपनी पुस्तक प्रिंसीपिया में गति के जिन तीन नियमो ( Law of Motion ) को प्रतिपादित किया वे हैं - अ) यदि कोई बस्तु विरामावस्था में है तो वह तब तक विराम की अवस्था में ही रहेगी जब तक उसपर बाहरी बल लगाकर गतिशील नहीं किया जायेगा और यदि कोई वस्तु गतिशील है तो उस पर बाहरी बल लगाकर ही विरामावस्था में पहुँचाया जा सकता है। न्यूटन के प्रथम नियम को जड़त्व का नियम (Law Of Inertia) भी कहा जाता है। ब) वस्तु के संवेग (Momentum) में परिवर्तन की दर उस पर लगाये गये बल के अनुक्रमानुपाती (Directly Prepotional) होती है तथा संवेग परिवर्तन आरोपित बल की दिशा में ही होता है। स) प्रत्येक क्रिया के बराबर तथा विपरीत दिशा में प्रतिक्रिया होती है। अब कणाद ने क्या सिद्धांत दिये उसे समझते हैं। वे कहते हैं - इसके अलावा महर्षि कणाद ने ही न्यूटन से पूर्व गति के तीन नियम बताए थे। वे कहते हैं - वेगः निमित्तविशेषात कर्मणो जायते (change of motion is due to impressed force) वेगः निमित्तापेक्षात कर्मणो जायते नियतदिक क्रियाप्रबन्धहेतु (Change of motion is proportional to the motive force impressed and is made in the direction of the right line in which the force is impressed)। वेगः संयोगविशेषविरोधी (Every action there is always an equal and opposite reaction) (वैशेषिक दर्शन) अर्थात् वेग पांचों द्रव्यों पर निमित्त व विशेष कर्म के कारण उत्पन्न होता है तथा नियमित दिशा में क्रिया होने के कारण संयोग विशेष से नष्ट होता है या उत्पन्न होता है। वैशेषिक दर्शन में ही कणाद गति के प्रकार भी बताते हैं अर्थात - उत्क्षेपण (upward motion), अवक्षेपण (downward motion), आकुञ्चन (Motion due to the release of tensile stress), प्रसारण (Shearing motion) एवं गमन (General Type of motion)। सिद्धांतों में इतनी समानता? क्यों और कैसे मेरे लिखने का विषय नहीं है। मेरा प्रश्न यह है कि कणाद के गति सिद्धांत हमारी जानकारी से ओझल क्यों किये जा रहे हैं? क्या हमने यह तय कर लिया है, ज्ञान जितना प्राचीन होगा उतना ही उसे अविश्वसनीय करार देना चाहिये? क्या हमने तय कर लिया है कि बुद्धिमत्ता पाश्चात्य का ठेका है, पूर्व ने जो कुछ सोचा या खोजा उसे नकार दिया जाना चाहिये? क्या हमने तय कर लिया है कि उपनिवेश रहते हुए हमारी जो अवधारणायें थी वह स्वतंत्र भारत में भी जस का तस बनी रहेंगी? ज्ञान के अनपढे पन्ने उपेक्षित छोड देना नये किस्म की बौद्धिकता है अथवा उनका उल्लेख करना आज साम्प्रदायिकता की परिभाषा में रखा जाने लगा है। 'की फर्क पैंदा है' वाली मानसिकता में हमने अपने सारे प्रश्नों के उत्तर तलाश लिये हैं। ✍🏻राजीव रंजन प्रसाद, सम्पादक, साहित्य शिल्पी ई पत्रिका दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com |
अटल बिहारी बाजपेयी - जिनकी मौत से ठन गई! Posted: 19 Aug 2020 08:41 PM PDT अटल बिहारी बाजपेयी - जिनकी मौत से ठन गई!(25 दिसम्बर, 1924 - 16 अगस्त, 2018). 16 अगस्त, 2020 - भारत के दशवें प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी का परिनिर्वाण-दिवस, जब 15अगस्त, स्वाधीनता-दिवस की छुट्टी के चलते सारे अखबार बंद रहते हैं। यही बात उनके जन्म पर भी हुई थी- 25 दिसम्बर को जब क्रिस्मस डे के चलते छुट्टी थी। उस दिन भी सारे अखबार बंद रहते हैं और रहे भी! बिना अखबारी चर्चा के उनका जन्मदिन और निधनदिन भी बीत गया! लेकिन जिसके मन में अटल बिहारी वाजपेयीजी का मोल बचपन से ही एक आकर्षक वक्ता के रूप का था, उसके मन के अखबार ने उनके निधन का समाचार तो प्रकाशित कर ही लिया। सहसा आज अटल बिहारी याद आ गये! अगर वाजपेयी जी राजनेता न होते तो एक बड़े कवि होते! उनके जीवन-चरित को याद कर हिन्दी-मिडिया भी अपने कर्तव्य की पूर्ति करके ही मानता! चलो मैं भी अपनी कर्तव्यपूर्ति कर लेता हूँ! अटल बिहारी वाजपेयी जी एक कुशल वक्ता, एक दूरद्रष्टा, भारतीय संस्कृति के साथ चलनेवाले, अपने विचार से न डिगनेवाले और समय पर उचित सलाह देनेवाले, एक स्वाभिमानी व्यक्तित्व, एक जननायक, एक देशभक्त थे, जो भारत के दशवें प्रधानमंत्री बने और जो एक सहृदय कवि भी थे। प्रधानमंत्री वे 16 मई 1996 से 1,जून, 1996 तक पहलीबार रहे, फिर 19 मार्च, 1998 से 22 मई, 2004 की अवधि मेंं रहे। कविकुल भूषण अटल बिहारी वाजपेयी का 16 अगस्त, 2018 को दिल्ली में निधन हो गया। एक युग पुरुष अपने अवसान से भी नई रोशनी, नई उर्जा, नया युग दे गया; लेकिन वे सदा ही मौत से लड़ते रहे। उनकी यह कविता कितनी प्रासंगिक है। अटल जी की यह कविता बताती है कि वे मौत से कभी भयभीत नहीं हुए, वरन् मौत से उनकी ठन गई! "ठन गई! मौत से ठन गई। जूझने का इरादा न था, मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था, रास्ता रोक वह खड़ी हो गई, यों लगा जिन्दगी से बड़ी हो गई! मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं, जिन्दगी सिलसिला आजकल की नहीं, मैं जी भर जिया, मन से मरूँ! लौट कर आऊँगा, कूच से क्यों डरूँ? तूँ दबे पाँव, चोरी छिपे से न आ, सामने वार कर फिर मुझे आजमा। मौत से बेखबर, जिन्दगी का सफर, शाम हर सुरमई, रात बंसी का स्वर। बात ऐसी नहीं कि कोई गम ही नहीं, दर्द अपने पराये कुछ कम ही नहीं, प्यार इतना परायों से भी मुझको मिला, न अपनों से बाँकी है कोई गिला! हर चुनौती से दो हाथ, मैंने किये, आँधियों में जलाये हैं बुझते दिये। आज झकझोरता तेज तूफान है, नाव भँवरों की बाहों में मेहमान है। पार पाने का कायम मगर हौंसला, देख तेवर तूफाँ का, तेवरी तन गई। मौतसे ठन गई!" देश के लोकप्रिय जननेता, एक विस्मयकारी प्रधानमंत्री, भारतरत्न अटलबिहारी वाजपेयी के महाप्रयाण से एक विलक्षण नेतृत्व का विलोप हो गया। उनके जैसे देशनेता और हिन्दी-भाषा के प्रवर्तक के समय में भी हिन्दी राष्ट्रभाषा के पद पर प्रतिष्ठित नहीं हो सकी, जिसकी नितान्त आवश्यकता है। वैसे उन्होने सर्वप्रथम हिन्दी को संयुक्त राष्ट्रसंघ में विदेशमंत्री के अपने भाषण के क्रममें प्रतिष्ठित किया। वे श्रीमुरारजीभाई देसाई की सरकार (1977-1979) में विदेशमंत्री थे। उनके भाषण में गजब का जादू रहता था; जिसको सुनने के लिए हम जैसे लोग और विद्यार्थी खिंचे चले आते थे। बात शायद 1972 के आस-पास की होगी। उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में वे आए थे। इन्दिरा गांधी जैसी लौह-महिला भारत की प्रधानमंत्री थीं और विपक्ष के नेता अटल बिहारी बाजपेयी ने उन्हें दुर्गा का अवतार कह दिया था। अटल के मुँह से उनकी बात सुनने की सबको ललक थी। मैं भी अपवाद में नहीं था। उनका भाषण सुनकर मेरे मन में पूर्व पालित आस्था और दृढ़ हो गयी। भारतीय जनता पार्टी ने अन्य के मुकाबले उन्हें अपना प्रधानमंत्री का उम्मीदवार बनाया। अटल जी प्रधानमंत्री बने! जिसकी कहानी अलग है। अभी एक जनप्रिय कवि के रूप में! वाजपेयी जी एक जन्मजात कवि थे। उनके पिता श्री कृष्ण बिहारी वाजपेयी ग्वालियर रियासत में अपने जमाने के जाने-माने कवि थे। वे ब्रजभाषा और खड़ीबोली में रचना करते थे। पुत्र अटल में काव्य के गुण वंशानुगत परिपाटी से प्राप्त हुए। महात्मा रामचन्द्र 'वीर' द्वारा रचित अमर कृति 'विजय पताका' पढ़कर अटलजी के जीवन की दिशा ही बदल गई! 'वीर' हिन्दी में लिखनेवाले एक प्रसिद्ध कवि थे। अटलजी की प्रकाशित रचनाओं में 'काइडी कविराई' कुण्डलियाँ शामिल हैं, जो 1975-77 के आपात्काल की अवधि में, जब वे कैद किए गए थे, उस समय लिखी कविताओं का संग्रह है और अमर आग है। अपनी कविता के संबंध में उन्होंने लिखा 'मेरी कविता युद्ध की घोषणा है, हारने के लिए एक निर्वासन नहीं है। यह हारनेवाले सैनिक के निराशा की ड्रमबीट नहीं है, लेकिन युद्ध, योद्धा की जीत होगी। यह निराशा की इच्छा नहीं है, लेकिन जीत का हलचल, चिल्लाओ! अटल बिहारी वाजपेयी जी राजनीतिज्ञ होने के साथ-साथ एक कवि भी थे। 'मेरी इक्यावन कवीताएँ'' उनका का प्रसिद्ध काव्य-संग्रह है। उनकी सर्वप्रथम कविता ताजमहल थी। इसमें शृंगार-रस के प्रेम-प्रसून न चढ़ाकर "एक शहँशाह ने बनवाके हँसी ताजमहल, हम गरीबों की मोहब्बत का उड़ाया है मजाक!" की तरह उनका भी ध्यान ताजमहल के शोषित कारीगरों के शोषण पर ही गया। वास्तव में कोई भी कवि हृदय कभी कविता से वंचित नहीं रह सकता। अटलजी ने किशोर वय में ही अद्भुत कविता लिखी थी "हिदू तन-मन, हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय।" इससे यह पता चलता है कि बचपन से ही वे हिन्दुत्व-विचार के पक्के थे! राजनीति के साथ-साथ समष्टि एवं राष्ट्र के प्रति उनकी वैयक्तिक संवेदनशीलता सदैव प्रकट होती रही है। उनका संघर्षमय-जीवन, परिवर्तनशील परिस्थितियाँ, राष्ट्रवादी आन्दोलन, जेल-जीवन आदि अनेक आयामों के प्रभाव एवं अनुभूति ने उनके काव्य में सदैव ही अभिव्यक्ति पाई। उनकी कविताएँ संगीतबद्ध भी होनेवाली थीं, जिसे विख्यात गजल-गायक जगजीत सिंह ने (चुनिंदा कविताओं को) संगीत बद्ध करके एक एलबम अटलजी के जीवनकाल में ही निकाला था। अटलजी के बारे में अखण्ड भारत की जो बात थी, वह यहाँ मैं उद्धृत कर रहा हूँः "15 अगस्त 1947 को देश तो आजाद हो गया, दिन भर हर्षोल्लास भी रहा, लेकिन कहा जाता है कि कानपुर में डीएवी कॉलेज के हॉस्टल में अटलजी निराश थे. वो अखंड भारत की आजादी चाहते थे, बंटवारे के खिलाफ थे. तब उन्होंने एक कविता लिखी- 'स्वतंत्रता दिवस की पुकार'. अटल बिहारी वाजपेयी की यूं तो तमाम कविताएं उनके विरोधी भी गुनगुनाते हैं. लेकिन उनकी दो कविताएं ऐसी हैं, जो केवल राष्ट्रवादी खेमे को भाती हैं. उनकी इन दोनों कविताओं को लेकर विरोधी खेमे में खासी एलर्जी रही है, यहां तक कि पाकिस्तानियों को काफी चिढ़ होती है. इनमें से एक कविता है- 'तन मन हिंदू मेरा परिचय..' जबकि दूसरी कविता अटलजी ने उस वक्त लिखी थी, जब उन्हें कोई जानता तक नहीं था. ये कविता उन्होंने एक बड़े ही खास दिन लिखी थी. वो दिन था आजादी का, 15 अगस्त 1947 का दिन. देश तो आजाद हो गया, दिन भर हर्षोल्लास भी रहा, लेकिन कहा जाता है कि कानपुर में डीएवी कॉलेज के हॉस्टल में अटलजी निराश थे. वो अखंड भारत की आजादी चाहते थे, बंटवारे के खिलाफ थे. तब उन्होंने एक कविता लिखी- 'स्वतंत्रता दिवस की पुकार'. आप इस पूरी कविता को यहां पढ़ सकते हैं और पढ़ने के बाद आपको अंदाजा हो जाएगा कि पाकिस्तानी और टुकड़े-टुकड़े गैंग वाजपेयी की इस कविता से क्यों चिढ़ता है- 'पन्द्रह अगस्त का दिन कहता, आजादी अभी अधूरी है। सपने सच होने बाकी हैं, रावी की शपथ न पूरी है॥ जिनकी लाशों पर पग धर कर, आजादी भारत में आई। वे अब तक हैं खानाबदोश, गम की काली बदली छाई॥ कलकत्ते के फुटपाथों पर, जो आंधी-पानी सहते हैं। उनसे पूछो, पंद्रह अगस्त के बारे में क्या कहते हैं॥ हिन्दू के नाते उनका दुख सुनते, यदि तुम्हें लाज आती। तो सीमा के उस पार चलो, सभ्यता जहां कुचली जाती॥ इंसान जहां बेचा जाता, ईमान खरीदा जाता है। इस्लाम सिसकियाँ भरता है, डॉलर मन में मुस्काता है॥ भूखों को गोली, नंगों को हथियार पिन्हाए जाते हैं। सूखे कण्ठों से जेहादी नारे लगवाए जाते हैं॥ लाहौर, कराची, ढाका पर मातम की है काली छाया। पख़्तूनों पर, गिलगित पर है गमगीन गुलामी का साया॥ बस इसीलिए तो कहता हूं आजादी अभी अधूरी है। कैसे उल्लास मनाऊं मैं? थोड़े दिन की मजबूरी है॥ दिन दूर नहीं खंडित भारत को पुनः अखंड बनाएंगे। गिलगित से गारो पर्वत तक आजादी पर्व मनाएंगे॥ उस स्वर्ण दिवस के लिए आज से कमर कसें बलिदान करें। जो पाया उसमें खो न जाएं, जो खोया उसका ध्यान करें॥ " उनकी, नीचे लिखी इस कविता से लोग आज भी अणुप्राणित होते हैं और अपने जीवन का लक्ष्य निर्धारित करने में इसे दृष्टि-बिंदु के रूप में लेते हैं:- ''गीत' नया गाता हूँ टूटे हुए तारों से फूटे बासंती स्वर, पत्थर की छाती काल के कपाल पर लिखता मिटाता हूँ गीत नया गाता हूँ।' राजनीति के साथ-साथ समष्टि एवं राष्ट्र के प्रति उनकी वैयक्तिक संवेदनशीलता सदैव प्रकट होती रही है। उनका संघर्षमय जीवन, परिवर्तनशील परिस्थितियाँ, राष्ट्रव्यापी आन्दोलन, जेल-जीवन आदि अनेक आयामों के प्रभाव एवं अनुभूति ने काव्य में सदैव ही अभीव्यक्ति पाई। अटलजी एक महामानव थे, मानवता की बात जहाँ हो वे सदैव आगे रहते थे। अपने विचार किसी पर थोपते नहीं थे। यही कारण था कि जब बाबरीढाँचा का विध्वंश हो रहा था, अटलजी अयोध्या में नहीं दिल्ली में थे। जेल में रहे तो जमकर रचनाएँ की। दुनिया की बड़ी शक्तियां जब परमाणु प्रसार का विरोध कर रही थी, उन्होंने परमाणु-परीक्षण कर दुनिया को चौंका दिया। प्रधानमंत्री का पद छोड़ने के बाद वे एकदम एकान्त में हो गये। उन्होंने अपने घुटनों को बदलवाया, जो पूरा सफल नहीं रहा। स्वास्थ्य की लाचारी से वे अपने निवास में ही रहे, पर उनकी मृत्यु ने सोये हुओं को जगा दिया। अटलजी जन्मजात कवि तो थे ही, वे सच्चे अर्थों में देशभक्त थे और सच्चे स्वतंंत्रता-प्रेमी! उनके द्वितीय परिनिर्वाण दिवस पर हम उन्हें श्रद्धा-सुमन अर्पण करते हैं! - योगेन्द्र प्रसाद मिश्र (जे. पी. मिश्र) दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com |
आतिशबाजी भारत की या चीन की? या फिर इंग्लिस्तान की? Posted: 19 Aug 2020 08:37 PM PDT आतिशबाजी भारत की या चीन की? या फिर इंग्लिस्तान की?[हमारी शिक्षा और व्यवस्था]दीपावली के निकट आते ही प्रतिवर्ष भारत में जान-बूझ कर वैचारिक जहर फैलाया जाता है। पटाखे और उनसे होने वाले प्रदूषण जैसे विषय प्रत्यक्ष में होते हैं परंतु अधिकांश बहस साम्प्रदायिक रंग ले लेती है। दु:खद है कि वैचारिक उन्माद और भ्रम फैलाने में अग्रणी भूमिका कथित प्रगतिशीलों द्वारा निर्वहित की जाती है। इतिहास की आड ले कर एक रटा-रटाया तर्क है कि पटाखे क्यों, जबकि भारत में गोला-बारूद को ले कर सबसे पहले पहुँचने वाले मुगल थे। खाका खीचा जाता है कि वर्ष 1526 में जब बाबर ने दिल्ली के सुल्तान पर हमला किया तो उसकी बारूदी तोपें की आवाज़ सुन कर भारतीय सैनिकों के छक्के छूट गए। यदि मंदिरों और शहरों में पटाख़़े फोड़ने की परम्परा रही होती तो शायद ये वीर सिपाही तेज़ आवाज़ से इतना न डरते। इसी तर्क पर आधारित एक अवधारणा है कि पटाखे और आतिशबाज़ी की परम्परा भारत में मुग़लों के शासन स्थापित होने के बाद आरम्भ हुई थी। इतिहास की पुस्तकें छोडिये, कविता का दामन थामते हैं। कबीर दास लिखते हैं – "या तन की बारूद बनी है, सत्तनाम की तोप। मारा गोला भरमगढ टूटा, जीत लिया जम लोक"। यह दोहा फिर से पढिये इसमे तोप, गोला, बारूद वगैरह सब का उल्लेख है। संत कबीर दास का समय 1398 से 1494 ई. के मध्य माना जाता है। अब दो ही बातें हो सकती हैं या तो कबीर भविष्य देख सकते थे इसलिये उनकी कविता में अनेक बार बारूद शब्द आया है अथवा यह कि गोला-बारूद और आतिशबाजी का मुगलों से जुडा दावा झूठा है। अलबत्ता यह अवश्य हुआ कि वर्ष 1667 में औरंगजेब ने फरमान जारी करते हुए आतिशबाजी पर रोक लगा दी थी। एक अन्य मान्यता है कि आतिशबाजी 1400 ई. के आसपस चीन से भारत आयी। इस कथन के अन्वेषण से पूर्व बारूद अथवा किसी भी अन्य प्रकार के अग्निचूर्ण के आविष्कार को ले कर चीन के इतिहास की ओर एक विहंगम दृष्टि डालनी आवश्यक है। वर्ष 1948 में हावर्ड विश्वविद्यालय के प्रो. टी एल डेविस और प्रो. जेम्स आर वेयर के एक आलेख में विवरण मिलता है कि छठवी सदी में, चीन में यूपेह और हूँनान प्रेत बाधा मिटाने के उद्देश्य से आग में बांस जला कर तेज ध्वनि उत्पन्न की जाती थी। 603 से 617 ई में स्यू वंश के शासक यांगति द्वारा कतिपय अ-स्पष्ट साधनों से आतिशबाजी का उल्लेख है। ज्ञात होता है कि 938 ई. में यो-ई-फैंग ने शुंग राजाओं के लिये अग्निचूर्ण युक्त वाण बनाये। वर्ष 1044 ई. का एक उद्धरण है जिसके अनुसार चीन में गंधक, शोरा, कागज, कोयला, तुंग-तैल अदि पदार्थ मिला कर अग्निचूर्ण का निर्माण किया जाता था। कोल्म्बिया विश्वविध्यालय के प्रो. एल. कैरिंगटन गुड्रिच ने अपनी पुस्तक शॉर्ट हिस्ट्री ऑफ द चाईनीज पीपल में उल्लेख किया है कि शुंग राजवंश (930 से 1275 ई.) के शासनकाल में, युद्धों में बारूद/अग्निचूर्ण का प्रयोग होता था। तेरहवीं और चौदहवीं शती में मंगोलों ने भी अग्निचूर्ण का प्रयोग किया था। सबसे रुचिकर जानकारी है कि 1221 ई. में किनतातारो ने चीन के एक नगर पर तीह-ह्यो-पाओ (तुम्बी के आकार का दो इंच मोटे लोहे का बना एक गोला था, जिसमे बारूद भरी हुई थी) से आक्रमण किया। क्या इस समय तक भारत के उत्सव ध्वनि-धमाका विहीन थे? क्या इस समय तक भी भारतीय युद्धकला में अग्निचूर्ण अथवा आग्नेय पदार्थों के प्रयोग आरम्भ नहीं हुए थे? भारतीय संदर्भों पर चर्चा हो तो हमारे पूर्वाग्रह कैसे उछल-उछल कर सामने आते हैं इस कडी में बीबीसी हिंदी मे प्रकाशित (16/10/2017) एक आलेख "क्या भारत में मुगल पटाखे ले कर आये थे" अवश्य पठनीय है। आलेख के अनुसार - भारत के ऋगवेद में तो दुर्भाग्य लाने वाली निरृति को देवी माना गया है और दिकपाल (दिशाओं के 9 स्वामियों में से एक) का दर्जा दिया गया है। उससे प्रार्थना की जाती है कि हे देवी, अब जाओ, पलट कर मत आना, यह कहीं नहीं कहा गया कि उसे पटाख़ों की आवाज़ से डरा धमका कर भगाया जाए। इतना ज़रूर है कि भारत प्राचीन काल से ही विशेष रोशनी और आवाज़ के साथ फटने वाले यंत्रों से परिचित था। दो हज़ार से भी ज़्यादा साल पहले भारत के मिथकों में इस तरह के यंत्रों का वर्णन है"। आलेख की भाषा और नकार पर ध्यान दीजिये। भारत ध्वनि उत्पन्न करने वाले यंत्रों से परिचित भी था और वे मिथक भी थे? यदि ईसामसीह से जन्म से पहले से आपके पास ध्वनि उत्पन्न करने, लपटे पैदा करने और विस्फोट करने का ज्ञान है तो फिर चीन से आरम्भ वाली अवधारणा कहाँ से उत्पन्न हुई? ध्यान रहे कि प्राचीन शास्त्रों के अग्निवाणों और विविध आग्नेयास्त्रों के उल्लेखों को आप मिथक कह सकते हैं लेकिन कौटिल्य से आँख बचा कर निकला नहीं जा सकता। बीबीसी के इसी आलेख में आगे लिखा गया है कि ईसा पूर्व काल में रचे गए कौटिल्य के अर्थशास्त्र में एक ऐसे चूर्ण का विवरण है जो तेज़ी से जलता था, तेज़ लपटें पैदा करता था और यदि इसे एक नालिका में ठूंस दिया जाए तो पटाख़ा बन जाता था। मेरा प्रश्न है कि क्या बारहवी सदी से पूर्व चीन में पटाखा अथवा ध्वनि उत्पन्न करने वाले यंत्रों को इतने स्पष्ट विवरण मिलते हैं? शुक्रनीति एक प्रसिद्ध नीतिग्रन्थ है, कतिपय जानकार इसका रचनाकार शुक्रचार्य को मानते हैं। वस्तुत: इस ग्रंथ, उसके रचनाकार और उनके काल के के विषय में बहुत जानकारी नहीं मिलती अत: यदि महाभारत कालीन और उससे भी पुरातन होने के दावे को नकार भी दिया जाये तो अपनी विषयवस्तु और शैली के आधार पर यह कौटिल्य के समकालीन और निकट की रचना प्रतीत होता है। कुछ विद्वान शुक्रनीति को ईसापूर्व नहीं मानते तथापि सभी के विवरणों के सबसे आखिरी छोर अर्थात छठी से आठवी सदी भी मान लिया जाये तो भी यह ग्रंथ, चीन के "प्रथम हम" के दावे को झुठलाता प्रतीत होता है। शुक्रनीति का यह श्लोक देखें – "सीसस्य लघुनालार्थे ह्यन्यधातुभवोअपि वा। लोहसारमयं वापि नालास्त्रं त्वन्यधातुजम। नित्यसंमार्जनस्वच्छमस्त्रपातिभिरावृतम। अंगरस्यैव गंधस्य सुवर्चिलवनस्य च। शिलाया हरितालस्य तथा सीसमलस्य च। हिंगुलस्य तथा कांतरजस: कर्परस्य च"। बहुत स्पष्टता से यह नालिक (बंदूख जैसा कोई यंत्र) और बृहन्नालिक (तोप जैसा कोई यंत्र) जैसे यंत्रों का उल्लेख करता है। शास्त्र में अग्निचूर्ण बनाने की भी विधि प्रदान की गयी है जिसके अनुसार इसके लिये अंगार (कोयला), गंधक, सुवर्चि लवण, मन:शिला, हरताल, सीस-किट्ट, हिंगुल, कान्तलोह की रज, खपरिया, जतु (लाख), नील्य, सरल-निर्यास (रोजिन) - इन सब द्रव्यों की बराबर अथवा न्यूनाधिक उचित मात्रा उपयोग में ली जाती थी। ग्रंथ में अग्निसंयोग द्वारा अग्निचूर्ण से निर्मित गोलों को फेंके जाने के विषय में भी जानकारी प्रदान करता है। स्वामी सत्यप्रकाश सरस्वती की कृति "प्राचीन भारत में रसायन का विकास" प्राचीन और मध्यकालीन भारत में अग्निचूर्ण के निर्माण व इतिहास का विवरण प्रस्तुत करती है। ग्रंथ के अनुसार तंजौर के पुस्तकालय में आकाशभैरवकल्प (सम्भवत: विजयनगर 1336-1646 ई. के इतिहास से संबंधित ग्रंथ होना चाहिये।) नामक पुस्तक है जिसमें बंदूखों और अग्निक्रीडाओं का उल्लेख है। इस पुस्तक में वाण वृक्षों का निर्देश है जो बाँस के बने पिञर होत्ते थे, जिनसे अग्निवाण अंतरिक्ष में छोडे जाते थे। इन पिंज्नरों से ऐसी चिंगारियाँ निकलती थी कि वे चामर के तुल्य मालूम होती थीं। इन वाणों के छूटने पर अंत मे एक विशेष ध्वनि भी निकलती थी (तत: पश्येद्यारुयंत्रविशेषान स्यंदनाकृतीन। दिव्याभ्रांत्या कपयत: केनचित्तेजसा निशि। उच्चावचान वाणवृक्षान तत: पश्येज्जनेश्वर:। स्फुलिंगान चामराकारान तिर्यगुदगिरतो बहून। तत: प्र्लयकालोद्यद्घनग्र्जित्भीषणम। श्रृणुयाद बाणनिनदं विनोदावधिसूचकम। एवं प्र्तिदिनं राजा विनोदान पंचविंशतिम)। विजयनगर के दरबार में देवराय द्वित्रीय के समय आतिशबाजी किये जाने का जिक्र राजदूत अब्दुर्रज्जाक (1443 ई.) द्वारा किया गया है। कश्मीर में 1446 ई. में अग्निचूर्ण वाले आग्नेय शस्त्रों के प्रयोग का उल्लेख प्राप्त होता है। वरथीमा की यात्राओं का एक विवरण ट्रवेल्स, एर्गोनांट प्रेस, लंदन, 1928 में प्रकाशित हुआ है। उनकी ये यात्रायें भरत, मलक्का और सुमात्रा देश की हैं। विवरण में 1443 ई. की विजयनगर आतिशबाजी का उल्लेख है। अपने विवरण में उन्होंने लिखा है कि विजयनगर के हाथियों को अतिशबाजी से बडा डर लगाता था। एक अन्य यात्री बरबोसा ने अपनी सन 1518 ई. की एक यात्रा में गुजरात के एक विवाहोत्सव का उल्लेख किया है, जिसमें अग्निवाण छुडाये गये थे। इसी कडी में उडीसा के गजपति शासक प्रतापरुद्र देव (1497-1539 ई.) की एक पुस्तक कौतुकचिंतामणि है, जिसमें अग्नि-क्रीडाओं का उल्लेख किया गया है। उन्होंने अनेक प्रकार के वाण जैसे कल्पवृक्ष बाण, चामर बाण, चंद्रज्योतु, चम्पा बाण, पुष्पवर्ति, छुछुंदरी रस बाण, तीक्ष्ण नाल और पुष्प बाण आदि का विवरण प्रदान किया है। कौतुकचिंतामणि के अनुसार अग्निचूर्ण निर्माण के लिये प्रयोग में आने आली सामग्री हैं गंधक, यवक्षार (शोरा), अंगार (कोयला), तीक्ष्ण लोह चूर्ण (इस्पात चूर्ण), लोह चूर्ण, मरकत सी चविवाला जांगल नामक ताम्र से उत्पन्न द्रव (ताम्रोद्भवं जांगला ख्यं द्रवं मरकतच्छवि), तालक (पीली हरताल), यवान्या गैरिक, खदिर की लकडी (खादिरं दारु), नालक (बांस की पोली डंडी), आषु पषाण (चुम्बक), चिन्नुकात्रय, एरंडबीज मज्जा, सूत या पारा, अन्नपिष्ट (आंटे की पिष्टि), वंषनाल, नाग (सीसा), अर्कागार (मदार की लकडी का कोयला), गोमूत्र, हिंगुल और हरितालक। इस विवरण में दिये गये अनेक अवयवों को अब ठीक से पहचानना कठिन है तथापि इतिहास के जानने वालो के लिये यह कम महत्व की सामग्री नहीं। भारत और चीन की तुलना में यूरोप में बहुत देर से इसका प्रादुर्भाव हुआ। तेरहवीं सदी में यूरोप में गनपावडर खोजा गया। सत्रहवी सदी के पश्चात वहाँ आतिशबाजी की जानकारी प्राप्त होती है जिसके तब दो बडे केंद्र न्यूरेमबर्ग और इटली हुआ करते थे। यदि सभी विवरणों को बहुत ध्यान से देखा जाये तो भारत, चीन और यूरोप में समानान्तर तथा एक दूसरे से भिन्न प्रक्रियाओं द्वारा अग्निचूर्ण/ गनपावडर/ विस्फोटक/आग्नेयास्त्रों आदि का विकास हुआ है। केवल भारत और चीन की ही तुलना की जाये तो अग्निचूर्ण बनाने की जो विधि और सामग्री दोनो देशों में उपयोग में लाई गयी वह गंधक और कोयला जैसी कतिपय समानताओं के अतिरिक्त सर्वथा भिन्न है। ध्यान से पूरे पैटर्न को समझिये। आप दीपावली न मनायें क्योंकि पटाखे आपकी परम्परा का हिस्सा नहीं वे मुगलों के साथ अथवा चीनियों की माध्यम से यहाँ पहुँचे। सच्चाई उलट है कि मुगल शहजादा दाराशिकोह की शादी में जो आतिशबाजी हुई उसके बीज भारत में ही थे। वैचारिक वैमनस्य के कारण वामपंथियों-कथित प्रगतिशीलों द्वारा भारतीय परम्पराओं पर गहरी गहरी चोट करने का सतत प्रयास किया जाता है। प्रदूषण विकसित देशों की उपज है, केवल भारत को इंगित कर उससे इतिश्री नहीं हो सकती। महत्वपूर्ण बात यह भी है कि अलग अलग भौगिलिक परिवेश में एक जैसे शोध चलते रहते हैं। वे हमसे बेहतर, हम उनसे पीछे की मनोवृत्ति के साथ हम सबकुछ बाहर से आया क्यों मान लेना चाहते हैं? हमने यही मान लिया है, अपनी पाठ्यपुस्तकों को उलट-पलट कर तो देखिये। दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com |
जाने माने इतिहासकार – कार्यविधि, दिशा और उनके छल Posted: 19 Aug 2020 08:35 PM PDT जाने माने इतिहासकार – कार्यविधि, दिशा और उनके छलअपने उपनिवेश भारत के अतीत की ब्रिटिश शासकों के नियुक्त लेखकों ने कैसी व्याख्या की है इसे एडवर्ड थॉमसन के इस उल्लेख से समझें कि – "हमारे इतिहासकारों ने भारतीय इतिहास को एक विशेष दृष्टिकोण प्रदान किया है। उस दृष्टिकोण को बदलने के लिये जो साहसपूर्ण और सशक्त समीक्षाशक्ति अपेक्षित है, वह भारतीय इतिहासकार अभी बहुत समय तक नहीं दे सकेंगे" (आर्यों का आदि निवास मध्य हिमालय, भजन सिंह में संकलित)। पुस्तक "भारतीय इतिहास का विकृतिकरण, लेखक - रघुनंदन प्रसाद शर्मा" से उदाहरण उल्लेखनीय हैं - अलबरूनी के यात्रावृतांत में गुप्त संवत के उल्लेख वाले अंशों का फ्लीट ने बार बार अनुवाद करवाया, उसे वही अनुवाद चाहिये था जो उसके उद्देश्य की पूर्ति कर सके। इसी तरह पुस्तक "भारतीय इतिहास पर दासता की कालिमा लेखक - कोटावेंकटचलम" लिखते हैं - सुधाकर द्विवेदी ने आर्यभट्ट के ग्रंथ आर्यभट्टम के पद में छापते समय टी एस नारायणस्वामि के मना करने पर भी पाठ में परिवर्तन कर दिया जो कि अवांछित था। कोटावेंकटचलम ऐसा ही एक उल्लेख अपनी कृति "दि प्लांट इन इंडियन क्रोनोलॉजी" में जानकारी प्रदान करते हैं कि पार्जिटर तो स्वरचित एक पद पुराणों में घुसाना चाहते थे जबकि वे इसके अधिकारी नहीं थे। यह सब स्पष्टत: सामने आ जाने के बाद, क्या हमें ठहर कर यह नहीं सोचना चाहिये कि भारतीय इतिहास को मिथक सिद्ध करने के लिये सुनियोजित षडयंत्र के तहत अनवरत प्रयास होते रहे हैं? आज भी कमोबेश वही स्थिति है, वामपंथी नैरेटिव से आगे देखने-सोचने की समझ को हमने खो दिया है। सौ बार बोले गये झूठ को सच मान लिया गया है। हमारी पाठ्यपुस्तकों का सच क्या है इसे समझा या सकता है यदि विवेचना करें कि हमने अपने इतिहास को कितना हल्के में लिया है, रबड की तरह लचीला बना दिया है। अतीत के जिन सत्यों को ढका छिपाया गया है उसे सामने लाने के किसी भी यत्न पर लाल सलाम-लाल सलाम की कैसी चीख-पुकार मचती है, इसका उदाहरण इसी धारा की वेबसाईट "दि वायर" में दिनांक 2/05/2018 को प्रकाशित जावेद अनीस के आलेख "इतिहास को अपने अनुरूप गढ़ने और ऐतिहासिक तथ्यों से छेड़छाड़ की कोशिशें तेज़ हुई हैं" से समझा जा सकता है। जावेद का आलेख उज्जैन में आयोजित हुए अंतरराष्ट्रीय विराट गुरुकुल सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर के भाषणों पर आपत्ति दर्ज कराता है। आपत्तियों के विंदु हैं कि अ) शिक्षा को और सार्थक बनाये जाने के प्रयास किए जा रहे हैं, गुरुकुलों एवं आधुनिक शिक्षा के बीच समन्वय करने के प्रयास किए जायेंगे। ब) सरकार 11वीं और 12वीं कक्षा के छात्रों के लिए 'भारत बोध' पर एक विषय शुरू करने की योजना बना रही है जिसका मक़सद छात्रों को प्राचीन भारत के एस्ट्रोनॉमी, विज्ञान और एरोनॉटिक्स आदि में योगदान के बारे में बताना है। इन विन्दुओं के विरोध में लाल झंडे क्यों गाडे जाने चाहिये इसे "दि वायर" के इसी आलेख में आगे स्पष्ट किया है कि "इतिहास को अपने अनुरूप गढ़ने और ऐतिहासिक तथ्यों में फेरबदल की कोशिशें बहुत तेज़ हो गई है"। जावेद अनीस बहुत लाउड भाषा में लिखते हैं कि यह बहुत साफ़-तौर पर नज़र आ रहा है कि "सरकार की दिलचस्पी शिक्षा का स्तर सुधारने के बजाए शिक्षण संस्थानों में अपने हिंदुत्व के एजेंडे को लागू करना है।" क्या भारत बोध पर कोई भी विमर्श हिंदुत्व के एजेंडे की तरह ही देखा जायेगा? दि वायर अथवा जावेद इस बात का जिक्र भी क्यों करना चाहेंगे कि किस विचारधारा को भाजपा के सत्ता में आने से पूर्व शिक्षा व्यवस्था में अपने एजेंडे घुसेड देने का श्रेय जाता है? वो कौन सी विचारधारा है जो डाल्टन के एटम से तो सहमत है लेकिन कणाद के अणू से नहीं? वो कौन सी विचारधारा है जिसने आपत्ति उठाई कि पाईथागोरस की थ्योरम तो पढाई जाये लेकिन बोधायन का ठीक वही प्रमेय भी पढाया जाना भगवा एजेंडा है? यह तो एक उदाहरण भर है, कथित प्रगतिशीलता की साजिश बहुत गहरी और पुरानी है। विचारधारा ने इतिहास का किस तरह कूडा कर दिया है, इसकी परत दर परत खोलती है अरुण शौरी की वाणी प्रकाशन से प्रकाशित पुस्तक "जाने माने इतिहासकार – कार्यविधि, दिशा और उनके छल"। आप किसी भी धारा-विचारधारा के हों किंतु इतिहास को जानने समझने और लिखने से पहले इस पुस्तक को एक बार अवश्य पढा जाना चाहिये। भारतीय इतिहास की अब तक लिखी अधिकतम पुस्तकें या तो अंग्रेजों के दृष्टिकोण हैं अथवा वामपंथियों के। अंग्रेजों ने अपने उपनिवेश पर जब लिखा तो इस बात का ध्यान रखा कि ब्रिटिश श्रेठता का भाव बचा रह सके। वामपंथी इससे दो कदम आगे बढे और उन्होंने अतीत का विश्लेषण मार्क्स-लेनिन-माओ वाली अपनी थाती के इर्दगिर्द रह कर ही किया और इससे इतर जो कुछ भी देखा और पाया गया उसे फेंक-फांक दिया गया। अरुण शौरी की इस किताब और उनके निष्कर्षों को खारिज नहीं किया जा सकता क्योंकि एक एक नामचीन इतिहासकार का नाम ले कर उनके कार्यों, उनके लेखन की दिशा और छलों का सबूतो, संदर्भों और दस्तावेजों सहित खुलासा किया गया है। पुस्तक पढ कर सिहरन भर गयी चूंकि यह स-प्रमाण सिद्ध किया गया है कि किस तरह कथित वामपंथी इतिहासकारों ने मनगढंत कहानियाँ रची और उन्हें इतिहास कह कर आगे कर दिया। किस तरह प्रकाशन के वामपंथी अड्डों और मीडिया के लाल खेमों का बेहतरीन इस्तेमाल किया गया। इतिहास लेखन के नाम पर किस तरह बडे बडे नामचीन इतिहासकारों ने इस तुर्रे के साथ कि हम तो कोई तनख्वाह नहीं लेते, वे रिसर्च की आड में सरकारी खजाने में बडी सेंध लगाते रहे यहाँ तक कि आज भी अधिकांश के प्रोजेक्ट अधूरे हैं या उन्हें दी गयी समयावधि से कई गुना अधिक समय हो जाने के बाद भी पूरा कर हस्तगत नहीं किये गये। यह एक निश्चित घोटाले की ओर इशारा है और इस पर सरकार को कोई जांच बिठानी चाहिये। बौद्धिक घोटालों का उजागर होना इस दृष्टि से भी आवश्यक है कि नयी पीढी कतिपय स्थापित प्रतिमानों के लिखे को ही पत्थर की लकीर न मान बैठे। पश्चिम बंगाल में वाम शासन समय में पाठ्यपुस्तकों में किस तरह की छेडछाड की गयी तथा कैसे पूर्वाग्रहपूर्ण संशोधन जोडे गये वह आश्चर्य में डालते हैं। ध्यान रहे कि जब ये बदलाव किये जा रहे थे देश में कहीं भी शिक्षा के वामपंथीकरण अथवा लालकरण जैसे शोर-शराबे खडे नहीं हुए। पाठ्यक्रम में 28 अप्रैल 1989 के एक सर्कुलर से बदले अथवा हटा दिये गये कतिपय उदाहरण देखें कि इस तरह के अनेक अंश हटा दिये गये कि – "जो कुछ तर्कसंगत, दार्शनिक, भौतिकवादी मुजत्तिला था वह गायब हो गया। एक तरफ कुरान और हदीस पर आधारित रूढीवादी सोच.....", "सुल्तान मेहमूद ने व्यापक पैमाने पर हत्याओं, लूट, बरबादी और धर्मपरिवर्तन के लिये बल का प्रयोग किया" आदि। शौरी ऐसे सैंकडों अंशों को कटाये जाने के पीछे का मकसद लिखते हैं कि इस तरह स्थापित किया का सकता था कि "कोई धर्मपरिवर्तन नहीं कराये गये, कोई हत्या नहीं कराई गयी, कोई मंदिर नहीं ढाया गया। बस इतना ही था कि हिन्दु धर्म ने एक शोषक और जातिवादी समाज को जन्म दिया था। इस्लाम एक समतावादी मजहब था इसलिये उत्पीडित हिंदुओं ने इस्लाम मजहब को अपना लिया"। हर शासन समय का अपना पक्ष और विपक्ष है उसे ठीक उसी तरह सामने रखा क्यों नहीं जाता? वामपंथी ब्रेनवाश मेकेनिज्म को समझने के लिये यह भी जाने कि कक्षा पाँचवी की पाठ्यपुस्तक में जोडा गया "रूस, चीन, वियतनाम, क्यूबा और दूसरे पूर्वी यूरोपीय देशों में किसान और मजदूर हत्ता हथियाने के बाद देश पर शासन कर रहे हैं जबकि अमरीका, इंग्लैण्ड, फ्रांस और जर्मनी में मिलों के मालिक देश पर राज्य कर रहे हैं"। ध्यान रहे कि अब जो भी प्रश्न उठाये कि यह शिक्षा का ऐसा भयावह लालकरण क्यों, तो तत्काल ही उसका मुँह दबाने के लिये इंकलाबी लाल झंडे लहराने लगेंगे। अरुण शौरी की पुस्तक यह सिद्ध करती है कि भारतीय इतिहास वस्तुत: आज भी अनकहा, अधूरा और पूर्वाग्रहपूर्ण दस्तावेजीकरण है। यदि जाने-माने इतिहासकारों के लिखे को ताला लगा कर नये सिरे से कार्यारम्भ किया जाये तो ही कुछ बेहतर और सच के करीब पहुँचा-पाया जा सकता है। इस पुस्तक को पढते हुए अरुण शौरी पर इतिहास लेखन को दक्षिणपंथी दृष्टि से देखने के भी आरोप लग सकते हैं। इस बात को समझने की आवश्यकता है कि शौरी ने बहुत हिम्मत के साथ स्थापित मठों-मठाधीशों कर करारा प्रहार किया है। इस पुस्तक को समाप्त करने तक तथा उनके द्वारा प्रस्तुत संदर्भों, तर्कों का निजी तौर पर भी पडताल करने के बाद यह कहना चाहता हूँ कि भारतीय इतिहास को सही सोच, सही दृष्टिकोण, विचारधारा से अवमुक्ति एवं पुनर्लेखन की आवश्यकता है।......परंतु ऐसा हो सकेगा इसमें संदेह है। - ✍🏻राजीव रंजन प्रसाद, सम्पादक, साहित्य शिल्पी ई पत्रिका दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com |
बाढ़ से धीमी पड़ी मनरेगा की रफ्तार, 6376 पंचायतों में ही हो रहा काम Posted: 19 Aug 2020 06:22 PM PDT राज्य में बाढ़ और बरसात की वजह से मनरेगा की रफ्तार थम गई है। इस समय 16 जिलों में बाढ़ का प्रभाव है। वैसे तो बाढ़ के हिसाब से 1317 पंचायतों ही प्रभावित हैं, फिर भी 8386 पंचायतों में से फिलहाल 6376 पंचायतों में ही मनरेगा योजना के जरिए काम हो रहा है। इन पंचायतों में 2 लाख 54 हजार 125 योजनाएं जारी हैं। इसमें 3 लाख 64 हजार 90 मजदूर प्रतिदिन काम कर रहे हैं। राज्य में 4 जुलाई तक सभी पंचायतों में मनरेगा के जरिए बड़े पैमाने पर काम हो रहा था। नतीजा, जुलाई में 1 दिन में सर्वाधिक 21 लाख श्रमिक पूरे राज्य में कार्यरत थे। जिलों में भारी बारिश की वजह से नदियों में जैसे ही उफान आया, मनरेगा से होने वाले काम की संख्या धीरे-धीरे कम होने लगी। जुलाई तक मनरेगा के माध्यम से सभी जिलों के लिए 7 करोड़ 90 लाख मानव दिवस के सृजन का लक्ष्य रखा गया था। इसकी तुलना में 9 करोड़ 56 लाख 55 हजार 383 मानव दिवस का सृजन हुआ। लेकिन, अगस्त आते ही मनरेगा के लक्ष्य पर बाढ़ का असर दिखने लगा। राज्य में 18 अगस्त तक 10 करोड़ 6 लाख 90 हजार 931 मानव दिवस का सृजन हुआ, जबकि लक्ष्य 12 करोड़ 25 लाख 67 हजार 649 मानव दिवस सृजित करने का है। श्रवण कुमार ने कहा- इस साल मनरेगा में रिकॉर्ड काम हुआ Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today source https://www.bhaskar.com/local/bihar/patna/news/speed-of-mnrega-slowed-due-to-flood-work-being-done-in-6376-panchayats-127632399.html |
प्री और पोस्ट मैट्रिक की छात्रवृत्ति के लिए 31 अक्टूबर तक दें आवेदन Posted: 19 Aug 2020 06:22 PM PDT अल्पसंख्यक छात्र-छात्राओं को अल्पसंख्यक कल्याण छात्रवृत्ति यथा प्री मैटिक पोस्ट मैट्रिक एवं मेरिट कम मींस छात्रवृत्ति के लिए ऑनलाइन आवेदन करने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। यह छात्रवृत्ति वित्तीय वर्ष 2020 से 21 के लिए दिया जाएगा। पिछली कक्षाओं में कम से कम 50% अंक प्राप्त करने वाले छात्र छात्राओं इसके लिए आवेदन कर सकते है। इस संबंध में जानकारी देते हुए अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के सहायक निदेशक राकेश कुमार ने बताया कि इस योजना के तहत सरकारी एवं मान्यता प्राप्त शिक्षण संस्थानों में अध्ययनरत अल्पसंख्यक छात्र-छात्राओं को लाभान्वित कराया जाएगा। नेशनल स्कॉलरशिप पोर्टल के माध्यम से अल्पसंख्यक छात्र-छात्राओं संबंधित कागजातों के साथ आवेदन कर सकते हैं। विद्यार्थियों को ऑनलाइन ही करना होगा आवेदन Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today source https://www.bhaskar.com/local/bihar/patna/siwan/news/apply-for-pre-and-post-matric-scholarship-by-31-october-127633115.html |
Posted: 19 Aug 2020 06:22 PM PDT बेईमान और कामचोर अंचल अधिकारियों (सीओ) की अब खैर नहीं है। राजस्व एवं भूमि सुधार मंत्री ने विभाग को ऐसे अंचल अधिकारियों पर सख्ती बरतने और दंडित करने का निर्देश दिया है। विभाग ने ऐसे अधिकारियों की ऑनलाइन क्लास लेने की भी योजना बनायी है। मुख्यालय में बैठे वरीय अधिकारी क्लासरूम एवं जूम ऐप के जरिए अंचलाधिकारियों से ऑनलाइन जवाब तलब करेंगे। विशेषकर ऑनलाइन म्यूटेशन में उनके द्वारा जान-बूझकर की जा रही देरी को गंभीरता से लिया गया है। बैठक में यह बात सामने आयी कि सीओ बिना वाजिब कारण के ऑनलाइन म्यूटेशन को निरस्त कर देते हैं। कई मामलों में बिना कारण आवेदनों को लंबे समय तक लटकाए रखते हैं। विभाग के विशेष सचिव श्यामल किशोर पाठक को खराब प्रदर्शन करने वाले सीओ पर नकेल कसने की जिम्मेदारी दी गई है। राजस्व एवं भूमि सुधार मंत्री रामनारायण मंडल की अध्यक्षता में हुई समीक्षा बैठक में यह निर्णय लिया गया। बैठक में अपर मुख्य सचिव विवेक कुमार सिंह समेत अन्य आला अधिकारी भी मौजूद थे। मंत्री ने ऐसे अंचल अधिकारियों पर सख्ती बरतने का निर्देश देते हुए भूमि सुधार उप समाहर्ता को अंचल अधिकारियों के कार्यों की नियमित समीक्षा करने को कहा है। 4950 विशेष सर्वेक्षण अमीन व 550 विशेष सर्वेक्षण लिपिक की नियुक्ति एवं पदस्थापन 4 सितंबर तक निदेशालय ने विभाग से अलग बनवाया वेबसाइट आम लोग भी ऑनलाइन देख सकेंगे नक्शा Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today source https://www.bhaskar.com/local/bihar/news/revenue-minister-said-delay-willfully-not-tolerate-online-mutation-responsibility-given-to-special-secretary-for-taking-action-against-those-who-performed-poorly-127632377.html |
आंदर में नहीं निकलेगा मोहर्रम का जुलूस, कोरोना के फैलते संक्रमण से बचने के लिए लिया गया निर्णय Posted: 19 Aug 2020 06:22 PM PDT थाना परिसर में मंगलवार को शांति समिति की बैठक आयोजित की गई। इसमें सर्वसम्मति से मोहर्रम का जुलूस नहीं निकालने का निर्णय लिया गया। बैठक को बीडीओ सुलेखा कुमारी ने संबोधित किया। मौके पर अंचलाधिकारी रामेश्वर राम, थानाध्यक्ष कैप्टन शाहनवाज भी मौजूद रहे। Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today source https://www.bhaskar.com/local/bihar/patna/ander/news/moharrams-procession-will-not-come-in-decision-taken-to-avoid-spread-of-corona-infection-127633114.html |
लैब टेक्नीशियनों की भर्ती पर हाईकोर्ट ने लगाई रोक, 12 सितंबर को होगी अगली सुनवाई Posted: 19 Aug 2020 06:22 PM PDT पटना हाईकोर्ट ने लैब टेक्नीशियनों की नियुक्ति पर रोक लगाते हुए हलफनामा दाखिल करने का आदेश दिया है। न्यायमूर्ति डॉ. अनिल कुमार उपाध्याय की एकल पीठ ने कुमार प्रवीण प्रताप व अन्य की रिट याचिकाओं पर बुधवार को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया। याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ता विश्वजीत मिश्रा के अनुसार 84 याचिकाकर्ताओं के मामले में अदालत ने 30 जून 2016 को कहा था कि हायर यानी उच्च डिग्री इस मामले के रास्ते में नहीं आएगी। फिर भी उच्च डिग्री होने के कारण इनके मामले में विचार नहीं किया गया। वैसे, विज्ञापन के अनुसार लैब टेक्नीशियन के पद पर नियुक्ति के लिए योग्यता डीएमएलटी डिप्लोमा रखी गयी है। बिहार स्टेट स्टाफ सेलेक्शन कमीशन द्वारा 29 मई 2020 को प्रकाशित मेरिट लिस्ट में याचिकाकर्ताओं को नहीं रखा गया, जो गलत है। लैब टेक्नीशियन की नियुक्ति के लिए 21 जून 2015 को विज्ञापन (संख्या 05010115) प्रकाशित किया गया था। इस मामले में अगली सुनवाई 12 सितंबर को होगी। Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today source https://www.bhaskar.com/local/bihar/news/high-court-stays-the-recruitment-of-lab-technicians-next-hearing-will-be-held-on-september-12-127632353.html |
पटना में गंगा 72 घंटे से खतरे के निशान के पार, फरक्का के सभी गेट खोले गए Posted: 19 Aug 2020 06:22 PM PDT बाणसागर डैम से सोन नदी में 1 लाख 80 हजार क्यूसेक पानी छोड़े जाने के बाद बिहार में एलर्ट कर दिया गया है। रोहतास से लेकर पटना तक जिला प्रशासन को हाई अलर्ट किया गया है। यह पानी 5 दिन में रोहतास पहुंच जाएगा। बारिश की वजह से बाणसागर डैम लबालब है। वहां पानी का स्तर 341.21 मीटर तक पहुंच गयी है। यह अपने अधिकतम जलस्तर 341.64 मीटर से मात्र 40 सेंटीमीटर नीचे है। इसी के बाद वहां से सोन में पानी छोड़ा गया है। इस पानी के बाद सोन में पांच से दस फीट जलस्तर बढ़ने की संभावना है। उधर गंगा का जलस्तर तेजी से बढ़ रहा है। पटना में नदी पिछले 72 घंटे से खतरे के निशान के ऊपर है। गांधीघाट में नदी खतरे के निशान से 11 सेंटीमीटर जबकि हाथीदह में 27 सेंटीमीटर ऊपर है। नदी बीती रात कहलगांव में भी लाल निशान को पर कर गयी। जल संसाधन मंत्री बोले- हालात अभी नियंत्रण में Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today source https://www.bhaskar.com/local/bihar/news/in-patna-the-ganges-crossed-the-danger-mark-for-72-hours-all-the-gates-of-farakka-opened-127632330.html |
लोकसेवा केंद्र में लग रही भीड़, तहसीलदार ने बनाई व्यवस्था Posted: 19 Aug 2020 05:22 PM PDT इन दिनों लोक सेवा आयोग में लग रही भीड़ से वहां काम करने वाला स्टाफ घबराया हुआ है। बुधवार को दो घंटे के दौरान तीन बार वहां काम कर रहे कर्मचारी घबराकर बाहर निकल आए। लगातार मना किए जाने के बाद भी लोगों की भीड़ थमने का नाम नहीं ले रही है। तहसीलदार पिपरिया राजेश बोरासी ने जाकर किसी प्रकार भीड़ को कंट्रोल किया। उन्होंने लोगों से भीड़ लगाने के बजाए सोशल डिस्टेंस बनाए रखने और ऑनलाइन सुविधा का लाभ लेने के लिए कहा है। तहसीलदार से शिकायत करते हुए लोक सेवा आयोग के स्टाफ ने कहा कि दिन भर में अधिकतम 150 के आसपास आवेदन का काम हो पाता है। चार कंप्यूटर सेट काम कर रहे हैं लेकिन आने वाले लोगों की संख्या बहुत ज्यादा है। इन लोगों को रोकने के लिए अगर दरवाजे बंद किए जाते हैं तो यह लोग जोर-जोर से दरवाजा हिलाने लगते हैं। तहसीलदार बोरासी बुधवार को काफी देर लोक सेवा आयोग में जाकर भीड़ को व्यवस्थित करते नजर आए। इस समय लोक सेवा आयोग में जाति प्रमाण पत्र, मूल निवासी प्रमाण पत्र के साथ आधार कार्ड संशोधित कराने वाले लोगों की भीड़ लग रही है। Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today source https://www.bhaskar.com/local/bihar/bhagalpur/piparia/news/crowd-in-public-service-center-tehsildar-made-arrangements-127632893.html |
अवैध बालू उत्खनन को लेकर ग्रामीणों ने किया विरोध प्रदर्शन Posted: 19 Aug 2020 05:22 PM PDT बघोनियां बालू घाट पर अवैध बालू उत्खनन को लेकर ग्रामीणों ने विरोध प्रदर्शन करते हुए घंटों सड़क जाम कर दिया। जिससे थोड़ी देर के लिए घाट पर अफरा-तफरी मच गई। ग्रामीणों ने कहा कि सरकार के निर्देशानुसार जुलाई, अगस्त एवं सितंबर माह तक बालू उत्खनन सभी घाटों पर बंद रहता है। लेकिन इस घाट पर पेटी कांट्रेक्टर ने अवैध उत्खनन शुरू कर दिया है। जिसका हम सभी ग्रामीण विरोध करते हैं। उपरोक्त घाट पर क्षमता से अधिक बालू नदी से उत्खनन हो चुका है। जिससे नदी काफी गहरी हो गई है। सिंचाई में भी असुविधा हो रही है। बालू माफियाओं के द्वारा नदी किनारे स्थित सिंचाई का नाला भी बालू उठाव के दौरान भर दिया गया है। नदी किनारे स्थित खेल मैदान को बालू माफियाओं ने बालू भरकर जाम कर दिया। Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today source https://www.bhaskar.com/local/bihar/bhagalpur/banka/news/villagers-protest-against-illegal-sand-mining-127632878.html |
बेलहर विधायक वनवासियों और जनजातियों की समस्याओं से हुए अवगत Posted: 19 Aug 2020 05:22 PM PDT बेलहर विधायक रामदेव यादव ने आज बिरनियां पंचायत के प्राथमिक विद्यालय छबैला पहुंच कर वनवासियों एवं जनजातियों की समस्याओं को सुना। अपने समर्थकों और स्थानीय नेताओं के साथ पहुंचे विधायक ने वनवासियों और जनजातियों पर हो रहे अत्याचार की जमकर भर्त्सना की। उन्होंने कहा कि जब वन विभाग के पास डिमारकेसन से संबंधित कोई कागजात जिला मुख्यालय मे उपलब्ध नहीं है। तो फिर वनवासियों पर दमनात्मक कार्रवाई क्यों की जा रही है, जब तक विभाग इससे संबंधित कागजात उपलब्ध नहीं करा लेती तब तक मामले को ठंढे बस्ते मे डाल देना चाहिए। साथ ही उन्होंने कहा कि एक तरफ जहां सरकार उक्त जमीन का राजस्व वसूल रही है वहीं दूसरी तरफ वन विभाग वन वासियों को उखाड़ने पर तूली है। इस कठिन परिस्थिति मे अपने आपको वनवासियों और जनजातियों के साथ खड़े रहने की बातें कही। हालांकि इस दौरान उमड़ी भीड़ ने सोशल डिस्टेंसिंग की जमकर धज्जियां उडाई। इस मौके पर पूर्व प्रमुख पलटन प्र यादव, पूर्व पंसस बैजनाथ यादव, पूर्व राजद प्रखण्ड अध्यक्ष तुलसी रजक, गोविन्द यादव, आशुतोष कृपामूर्ति, युवा राजद के डब्लु यादव, शैलेन्द्र यादव, नितेश यादव सहित अन्य राजद कार्यकर्ता मौजूद थे। कोरोना काल मे इस प्रकार की भीड़ जुटाकर समर्थन देने के मुद्दे पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए सांसद प्रतिनिधि चन्द्र मोहन पाण्डेय ने कहा कि वन विभाग और प्रशासन द्वारा की जा रही कार्रवाई को लेकर वन वासियों और जन जातियों के प्रति मेरी गहरी संवेदना है, परंतु इस वैश्विक आपदा के समय भीड़ जुटाना और लोगों को कोरोना के दलदल मे ढकेलना कहीं से भी उचित नहीं है,जिसकी मैं निंदा करता हूँ l Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today source https://www.bhaskar.com/local/bihar/bhagalpur/chandan/news/belhar-mla-aware-of-problems-of-forest-dwellers-and-tribes-127632874.html |
नदी के जलस्तर में आई कमी, बाढ़ प्रभावित गांवों में अभी भी हालात बेकाबू, आज बढ़ सकता है जलस्तर Posted: 19 Aug 2020 05:22 PM PDT एक माह बाद गंडक के जलस्तर में मामूली कमी दिखी, लेकिन बाढ़ प्रभावित गांवों में इससे कोई फर्क नहीं पड़ा। बाढ़ ग्रस्त इलाकों के हालात अभी भी बेकाबू हैं। 130 गांवों में से 90 गांवों में 3 से 4 फीट पानी बह रहा है। बुधवार को बाल्मीकि नगर डैम से पानी का डिस्चार्ज 30 हजार क्यूसेक बढ़ गया है। हर घंटे डिस्चार्ज लेवल में उतार-चढ़ाव दर्ज किया गया। दोपहर 2 बजे सबसे ज्यादा 1 लाख 95 हजार 200 क्यूसेक डिस्चार्ज किया गया। इससे नदी के जलस्तर में आज रात फिर से उफान आ सकती है। हालांकि पिछले तीन दिनों से पानी का डिस्चार्ज घटने से गंडक का जलस्तर 33 सेमी कम हो गया था। हालांकि अभी भी नदी खतरे के निशान से 24 सेमी उपर बह रही है। बाढ़ से 135 स्कूलों में बह रहा पानी Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today source https://www.bhaskar.com/local/bihar/patna/gopalganj/news/the-decrease-in-the-water-level-of-the-river-the-situation-in-flood-affected-villages-is-still-uncontrollable-today-the-water-level-may-increase-127632873.html |
प्रवासी कामगारों को मिली रोजगार ट्रेनिंग Posted: 19 Aug 2020 05:22 PM PDT वैश्विक महामारी कोविड-19 के कारण दूसरे राज्यों से लौटे प्रवासी मजदूरो का तीन दिवसीय प्रशिक्षण गरीब कल्याण रोजगार अभियान के तहत बुधवार को प्रोन्नत मध्य विद्यालय कठौन में संपन्न हो गया है। कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा मृदा परीक्षण कौशल विकास पर प्रशिक्षण के क्रम में प्रवासी कामगारों को स्वरोजगार प्रशिक्षण देकर निपुण किया गया। इस दौरान 35 प्रवासी कामगारों को प्रमाण पत्र सौंपा गया। प्रशिक्षण के क्रम में प्रवासी कामगारों को वर्मी कंपोस्ट से खेती करने के तौर-तरीके के बारे में जानकारी दी गई। इस मौके पर मृदा वैज्ञानिक ने प्रवासी कामगारों को कृषि से संबंधित किट उपलब्ध कराने की बात कही। इस मौके पर कृषि विज्ञान केंद्र के मृदा वैज्ञानिक डा. संजय कुमार मंडल, रंजन कुमार और मनीष कुमार मौजूद थे। प्रखंड राजद कार्यकारिणी का किया गया विस्तार बुधवार को प्रखंड राजद कार्यालय बाराहाट में राजद के प्रखंड अध्यक्ष देवेंद्र यादव की अध्यक्षता में हुई बैठक में आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर कार्यकारिणी विस्तार करते हुए सर्वसम्मति से कार्यकारिणी में चयनित पदाधिकारियों का गठन किया गया। जिसमें उपाध्यक्ष पद के लिए मोहम्मद शउद, दुर्गेश मिश्रा, राजाराम यादव, मोहम्मद अनवर, संजीव कुमार, महासचिव पद के लिए संटु यादव, मोहम्मद मुनव्वर, उषा देवी, सुबोध यादव, ज्योतिष पंडित, सचिव पद के लिए मोहम्मद मुबारक, मोहम्मद रहीम, नकुल यादव, शिवनारायण दास, कोषाध्यक्ष पद के लिए अशोक यादव, मीडिया प्रभारी पद के लिए जयप्रकाश यादव एवं कार्यकारिणी सदस्य के पद पर मनोज यादव यादव, युगल किशोर यादव, निरंजन यादव,अशोक चौहान, महेश कापरी, विकास यादव, अजय आजाद का मनाेनयन सर्वसम्मति से किया गया। राजद के प्रखंड अध्यक्ष देवेंद्र यादव के द्वारा बताया गया कि बैठक के दौरान सभी पदाधिकारियों का चयन सर्वसम्मति से कर लिया गया है। Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today source https://www.bhaskar.com/local/bihar/bhagalpur/banka/news/migrant-workers-get-employment-training-127632872.html |
मांगों को लेकर किसान सलाहकारों ने काली पट्टी लगाकर जताया आक्रोश Posted: 19 Aug 2020 05:22 PM PDT प्रखंड मुख्यालय स्थित कृषि कार्यालय में किसान सलाहकारों ने बुधवार को काली पट्टी लगाकर अपनी 4 सूत्री मांगों के समर्थन में सरकार के खिलाफ विरोध जताया। चार सूत्री मांगों में सम्मानजनक वेतन देने, डीएलडब्लू में समायोजन, पूर्ण कालीन संविदा कर्मी को कृषि कर्मी घोषित करने आदि शामिल है। किसान सलाहकार के प्रखंड अध्यक्ष चंद्रिका दास, कोषध्यक्ष मुकेश सिंह ने बताया कि कृषि विभाग के सौतेले व्यवहार एवं तानाशाही रवैया के विरुद्ध बिहार राज्य किसान सलाहकार संघ पटना के आह्वान पर 16 अगस्त से 20 अगस्त तक काली पट्टी लगाकर वे लोग कार्य करेंगे। अगर सरकार 20 अगस्त तक सभी मांगों को पूरा नहीं करेगी तो किसान सलाहकार अनिश्चित हड़ताल पर चले जाएंगे । किसान सलाहकार लगातार अपनी सेवा देकर सरकार के सभी तकनीकी एवं गैर तकनीकी कार्य में सहयोग कर रहे हैं। इसके बावजूद भी सरकार किसान सलाहकारों के प्रति उदासीन रवैया अपना रही है। इस मौके पर किसान सलाहकार दिलीप यादव, परशुराम दास संजय कुमार, अभय कुमार, रोशन कुमार, विकास कुमार, राजेश कुमार, सुनील कुमार, विनोद आलोक सहित अन्य उपस्थित थे। किसान सलाहकार ने मांगों को लेकर किया प्रदर्शन Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today source https://www.bhaskar.com/local/bihar/bhagalpur/dhoraiya/news/farmer-advisors-expressed-anger-over-black-demands-127632868.html |
टेट शिक्षकाें ने नई सेवाशर्त की प्रतियों को जलाकर जताया आक्रोश, बोले, झुनझुना है Posted: 19 Aug 2020 05:22 PM PDT राज्य सरकार द्वारा नियोजित शिक्षकों हित में नयी सेवाशर्त को लागू कर दिया है, लेकिन शिक्षक संघ नई सेवा शर्त से संतुष्ट नहीं है और अब विरोध करना शुरू कर दिया है। इसी कड़ी में बुधवार को टेट शिक्षक संघ के द्वारा डीइओ कार्यालय परिसर पहुंचकर सरकार द्वारा जारी किये गये नये सेवाशर्त की प्रतियों को जलाकर जमकर सरकार के निर्णय का विरुद्ध करते हुए प्रदर्शन किया। सेवाशर्त असंतुष्ट टेट शिक्षकों ने प्रदर्शन करते हुए कहा कि सरकार द्वारा जारी किया गया नयी सेवाशर्त केवल एक झुनझुना मात्र है, नीतीश सरकार हमेशा शिक्षा व शिक्षकों के विरोध में ही रही है। साथ ही प्रदर्शनकारी शिक्षकों ने कहा कि टेट शिक्षकों को सहायक शिक्षक का दर्जा न देकर इन्हें पूर्ण वेतनमान से भी राज्य सरकार ने वंचित कर दिया है, जो केंद्र सरकार के तय मानक के विरुद्ध भी है। शिक्षकों ने कहा कि उनलोगों अपनी सात सूत्री मांग को लेकर राज्यव्यापी आंदोलन तक किया था, लेकिन सरकार उनके सात सूत्री मांगों को सेवा शर्त में बिलकुल ही स्पष्ट नहीं किया है, जिसका वे नयी सेवाशर्त से संतुष्ट नहीं है। इस दाैरान जिलाध्यक्ष दिव्य प्रकाश आर्य, महासचिव अभिषेक कुमार पांडेय, मीडिया प्रभारी शंभू मंडल, काेषाध्यक्ष प्रताप भानू भाष्कर, मरकुर अालम, अाशुताेष शंकर, राजू बिंद, जसवीर, रमाशंकर ठाकुर सहित दर्जन टेट शिक्षक माैजूद थे। Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today source https://www.bhaskar.com/local/bihar/bhagalpur/banka/news/tate-teachers-have-burnt-copies-of-the-new-service-condition-expressed-anger-said-tingling-127632863.html |
चेतना फाउंडेशन ने बांटे पीपल और बरगद पौधे Posted: 19 Aug 2020 05:22 PM PDT चेतना फाउंडेशन के द्वारा प्रखंड क्षेत्र में लगातार पीपल, बरगद के संरक्षण करने हेतु बुधवार को भी पौधे का वितरण किया। अब तक फाउंडेशन के द्वारा 200 पीपल, बरगद,1500 महोगनी, सागवान व 500 फलदार पौधे के साथ ही कुल 2200 पौधा का वितरण किया गया है। फाउंडेशन के अध्यक्ष आलोक कुमार ने बताया कि पर्यावरण के प्रति समर्पित चेतना फाउंडेशन पिछले वर्ष से ही अनवरत पर्यावरण हेतु कार्य कर रही है। इस साल अधिक से अधिक लोगों को जागरूक कर पौधा लगाने हेतु प्रेरित किया जा रहा है। कहा कि सबसे पहले उनसे पीपल और बरगद का पौधा लगवाया जाता है जब उनका फोटो फाउंडेशन को प्राप्त होता है। तब उन्हें 21 पौधा मुफ्त में दिया जाता है। इसी क्रम में चेतना फाउंडेशन के पहल से धोरैया कॉलेज के पूर्व प्राचार्य डॉ अजय कुमार यादव के द्वारा मवेशी हाट पर 21 पौधे पीपल और बरगद का लगाया गया है। उन्होंने कहा कि इस वर्ष लगातार चेतना फाउंडेशन के द्वारा अब तक 300 पीपल और बरगद के पौधे लगवा दिया गया है। हर एक व्यक्ति को इसका संरक्षण का जिम्मा भी दिया गया है। मौके पर चेतना फाउंडेशन महासचिव अशोक कुमार सिंह, उपाध्यक्ष जितेंद्र कुमार, नीरज सिंह, सचिव मिथिलेश कुमार सिंह, कोषाध्यक्ष अभय निराला, अखिलेश कुमार मेहरा आदि मौजूद थे। Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today source https://www.bhaskar.com/local/bihar/bhagalpur/dhoraiya/news/chetna-foundation-distributed-peepal-and-banyan-plants-127632846.html |
मारपीट की प्राथमिकी कराने आए लाेगाें के साथ पुलिस ने की बर्बरता Posted: 19 Aug 2020 05:22 PM PDT जिनके कंधे पर लाॅ एण्ड अाॅर्डर काे बनाये रखने की जिम्मेवारी हाे, वहीं अगर लाेगाें के साथ बर्बरता पर उतर अाये ताे इसे क्या कहेंगे। एेसा ही बांका जिले के पंजवारा थाना की पुलिस द्वारा इनदिनाें किया जा रहा है, जब थाना पर मारपीट मामले की प्राथमिकी दर्ज कराये जाने के लाेगाें की भीड़ थाना पहुंची ताे उनपर ही पुलिस पदाधिकारी का अाक्राेश उमड़ पड़ा अाैर पुलिस पदाधिकारी द्वारा डंडे हाथ में थाम जमकर गाली-गलाैज करते हुए पिटाई कर दी। जिसका वीडियो इन दिनों सोशल साइट पर जमकर वायरल हो रहा है। जिसमें पंजवारा पुलिस का अमानवीय चेहरा सामने आया है। वायरल वीडियो रविवार की बताई जा रही है। जब थाना क्षेत्र के भतडीहा गांव में दो पक्षों के बीच मारपीट की घटना हो गई। जिसमें एक पक्ष वंचित तबके से थे। घटना के बाद काफी संख्या में महिला और पुरुष अपने ऊपर हुए अत्याचार की शिकायत करने पंजवारा थाना पहुंचे थे। जहां प्रभारी थानाध्यक्ष अरविंद सिंह द्वारा फरियादियों को लाठी लेकर गाली-गलौज करते हुए भगा दिया गया। वायरल वीडियो के ऊपर सोशल मीडिया पर लोगों अलग-अलग प्रतिक्रियाएं भी आ रही है। जिसमें से अधिकतर लोग इसे अमानवीय बताते हुए संबंधित अधिकारी पर कार्रवाई की मांग कर रहे हैं। हालांकि पुलिस ने पीड़ित पक्ष के आवेदन पर तीन लोगों के खिलाफ मारपीट के आरोप में प्राथमिकी दर्ज किया है। Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today source https://www.bhaskar.com/local/bihar/bhagalpur/banka/news/police-commits-vandalism-to-bring-an-fir-for-assault-127632844.html |
सरकारी जमीन पर अतिक्रमित कर बनाए घर काे प्रशासन ने बुलडाेेजर से किया ध्वस्त Posted: 19 Aug 2020 05:22 PM PDT घोघा-पंजवारा स्टेट हाईवे-84 काे प्रशासन ने अतिक्रमणमुक्त करने का कार्य बुधवार काे प्रारंभ कर दिया। इस सड़क काे चौड़ीकरण के लिए 376.855 करोड़ की लागत निर्माण कार्य किया जा रहा जिसकी लंबाई 43.35 किमी व चाैड़ाई 10 मीटर है। जिसके निर्माण को लेकर कुर्मा गांव में सड़क किनारे रैयती, सरकारी व केसर-ए-हिन्द जमीन पर बने पक्के मकान आड़े आ रहे। जिसके कारण कई महिनों से निर्माण कार्य कुर्मा गांव में बाधित था। वहीं जमीन खाली कराने को लेकर कई बार अंचाधिकारी द्वारा नाटिस करते हुए मकान में मार्किंग भी कर दिया गया था। बाबजूद लोग सरकारी व केसर-ए-हिन्द जमीन को खाली नही कर रहे थे। जिसे लेकर बुधवार को सरकारी जमीन को अतिक्रमण मुक्त कराने के लिए भारी संख्या में पुलिस बल के साथ जिला प्रशासन के अधिकारी कुर्मा गांव पहुंचे गये। एसडीओ मनोज कुमार चाैधरी, अपर एसडीएम संतोष कुमार व एसडीपीओ दिनेश चन्द्र श्रीवास्तव के नेतृत्व में कुर्मा में सड़क किनारे सरकारी जमीन को अतिक्रमण कर बनाये गये मकान को जेसीबी के सहयोग से हटाया गया। इस दौरान कई पक्के मकान को जेसीबी द्वारा ध्वस्त कर दिया गया। जानकारी देते हुए सीओ हंसनाथ तिवारी ने बताया कि कुर्मा गांव में सरकारी जमीन को अतिक्रमण कर घर बना लेने के कारण सड़क निर्माण कार्य में बाधा हो रही थी। वहीं सड़क चाैड़ीकरण के दौरान कुल 69 घर को तोड़ा जाना है। हलांकि निर्माण कार्य के दौरान 20 लोगों के रैयत मकान है। वहीं शेष 49 लोगों में से 21 लोगों ने रैयती जमीन को लेकर अपर समाहर्ता के पास मामला गया था जिसमें से तीन लोगों के दावे को स्वीकार करते हुए हुए शेष दावे को खारीज करते हुए अतिक्रमित माना गया। सीओ ने बताया कि इन 23 लोगों के जमीन को अधिग्रहण करने को लेकर सरकारी दर पर मुआवजा दिये जाने के बाद इनके मकान को तोड़ा जायेगा। शेष 46 लोग जो सरकारी व केसर-ए- हिन्द जमीन पर अतिक्रमण कर मकान बनाये है उसे हटाया जा रहा है। ताकि सुचारू रूप से सड़क चाैड़ीकरण का कार्य हो सके। इस कार्य में प्रतिनियुक्त मजिस्ट्रेट आईसीडीएस डीपीओ रिफत अंसारी, रजौन बीडीओ गुरुदेव प्रसाद गुप्ता, धोरैया बीडीओ अभिनव भारती, थानाध्यक्ष महेश्वर प्रसाद राय, इंस्पेक्टर राजेश कुमार, सहित अन्य पदाधिकारी उपस्थित थे। Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today source https://www.bhaskar.com/local/bihar/bhagalpur/dhoraiya/news/the-administration-demolished-the-house-with-trespassing-on-government-land-127632837.html |
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