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Wednesday, November 11, 2020

जनवादी पत्रकार संघ

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*गद्दारी के आरोप के खिलाफ जनादेश*@राकेश अचल जी वरिष्ठ पत्रकार

Posted: 10 Nov 2020 05:25 PM PST


*गद्दारी के आरोप के खिलाफ जनादेश*@राकेश अचल जी वरिष्ठ पत्रकार 
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मध्यप्रदेश के राजनितिक इतिहास के सबसे बड़े उपचुनावों में भाजपा को मिली शानदार विजय ने कांग्रेस के बाग़ी ज्योतिरादित्य सिंधिया पर कांग्रेस द्वारा लगाए गए 'गद्दारी' के आरोपों को जनता ने अस्वीकार कर दिया है .प्रदेश में हुए २८ सीटों के उपचुनाव के नतीजे तमाम सर्वेस्खनों को धता  दिखते हुए सामने आये हैं .इन उपचुनावों में 'विकास कोई मुद्दा नहीं था.मुद्दा था 'गद्दारी'और ' खुद्दारी' .जनता ने खद्दारी को अपना समर्थन दिया .
सिंधिया डेढ़ साल पहले चुनी गयी कांग्रेस की सरकार को ठुकराते हुए अपने 22  समर्थकों के साथ भाजपा में आये थे ,उनके बाद तीन और कांग्रेसी विधायक भाजपा में आगये थे .ग्वालियर चंबल अंचल से 16  विधायक थे,शेष प्रदेश के दुसरे हिस्सों से थे .जनता ने बागियों में से कुछ को अस्वीकार किया लेकिन बाक़ी को अपना समर्थन दिया  और उन्हें दोबारा विधानसभा के लिए चुन दिखाया .भाजपा के टिकिट पर लाडे जो बाग़ी चुनाव हारे हैं उसके लिए वे खुद जिम्मेदार हैं,उनके नेता नहीं और जो जीते उसके लिए उनका जनाधार तथा उनके नेताओं की पुण्याई काम आयी .
मुझे लग रहा था की विधानसभा के ये चुनाव प्रदेश में सरकार के स्थायित्व के लिए संकट न बन जाये किन्तु चुनाव नतीजों ने मेरी इस आशंका को निर्मूल कर दिया है .अब आने वाले दिनों में भाजपा को सरकार चलाने के लिए किसी विधायक को अपने साथ रखने के लिए साम-दाम-दंड-भेद की जरूरत नहीं पड़ेगी.इन उपचुनावों के नतीजों ने ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और भाजपा के नए प्रदेशाध्यक्ष बीड़ी शर्मा को भी नवजीवन दिया है. ये चुनाव कांग्रेस के लिए आत्मघाती साबित हुए हैं .कांग्रेस को अपनी 25  सीटें बचना थीं लेकिन कांग्रेस बामुश्किल आधा दर्जन सीटें ही बचा सकी .
अब बेहतर हो की कांग्रेस आने वाले   दिनों में एक  मजबूत विपक्ष की भूमिका को स्वीकार कर लेना चाहिए .प्रदेश में कांग्रेस को बचने के लिए एक बार फिर जनता द्वारा खारिज किये जा चुके कमलनाथ और दिग्विजय को कांग्रेस कार्यालय से बाहर कर दिया जाना चाहिए .इन नेताओं की बदजुबानी ही कांग्रेस को भारी पड़ी है ..विधानसभा के ऐतिहासिक उप चुनाव प्रदेश की राजनीति में मील का एक नया पत्थर जैसे हैं क्योंकि ये चुनाव जहाँ बगावत को मान्यता दे रहे हैं वहीं  सिंधिया खानदान को गद्दारी के आरोपों से भी बरी भी कर रहे हैं .अब भविष्य में किसी राजनितिक दल के पास सिंधिया परिवार को 163  साल पहले के कथित अपराध के लिए  कोसने का अवसर नहीं बचता .बाक़ी इतिहास अपनी जगह है और वर्तमान अपनी जगह .जीते हुए प्रत्याशी बधाई के पात्र हैं .जो हारे हैं उन्हें भी निराश नहीं होना चाहिए .राजनीति में सब कुछ अस्थाई होता है .
@ राकेश अचल

संपादकीय/*वर्तमान व्यवस्था से देश के चंद जरूरी सवाल*

Posted: 10 Nov 2020 05:20 PM PST


*०प्रतिदिन*        -राकेश दुबे
११    ११ २०२०
संपादकीय/*वर्तमान व्यवस्था से देश के चंद जरूरी सवाल*
देश में जो माहौल वर्तमान में बनता दिख रहा है, वह दुराव, दूसरों से घृणा करना, असहमति के लिए किसी तरह की सहिष्णुता न रखना जैसा है | मेरे कुछ मित्र जो संवेदनशील हैं और इस परिदृश्य को निरपेक्ष भाव से महसूस करते हैं,उनमे से ज्यादातर  पिछले कुछ सालों से परेशान हैं। समय-समय पर हम में से कुछेक ने एक-दूसरे से आशंकाएं सांझा की हैं, हम सबका निष्कर्ष राजनेताओं के भाषण-लेखों, धार्मिक और सांस्कृतिक अगुवाओं की बातें समाज को तोड़ने की दिखती प्रवृत्ति  के कारण ही बना हैं। यह सब हमें किस ओर ले जा रहा है? यह समय गहरा मनन करने का है कि वास्तव में हम आज क्या बनाने जा रहे हैं, किन शक्तियों और उनके निरंकुश स्वभाव को खुला छोड़ने जा रहे हैं?
आज, एक बार फिर से विघटनकारी शक्तियां ठीक वैसे ही राक्षस बनाना चाहती हैं जो समाज और देश को बांटती रही है और हम फिर इतिहास के उसी चौराहे पर पुनः आकर खड़े हो गए हैं, जिसका अंतिम परिणाम देश का एवं दिल का बंटवारा है | अधिसंख्य लोग नहीं जानते देश और ये प्रदेश किस रास्ते पर जाएगा। इस घड़ी में अब यह आपकी निगहबानी पर निर्भर है कि आप अपने दायित्वों के साथ देश के कानून के प्रति सही मायने में वफादार रहें ।यह मेरी, विशाल भारतीय समाज की और माने तो देश के संविधान की अपील है |
वर्तमान संदर्भ में महात्मा गांधी के चिंतन और विचारों की अहमियत और अधिक बढ़ जाती है। वह सांप्रदायिक विभाजन के खिलाफ लगातार संघर्ष करते रहे और स्थितियां कितनी ही कठिन क्यों न हों, उन्होंने कभी हार नहीं मानी। उनका सपना था स्वाधीन भारत में एकता, सद्भाव और सौहार्द। जब कभी उन्हें सांप्रदायिक तनाव की कोई सूचना मिलती थी तो वह बहुत विचलित हो जाते थे। सांप्रदायिक हिंसा के खिलाफ वह अक्सर अनशन का सहारा लेते थे और लोगों को यह समझाने में कामयाब हो जाते थे| आज यह अनशन सम्मान नहीं मजाक बन गया है, अब इन सामाजिक प्रयोग को घंटों और मिनटों के हिसाब से करने में राजनेता अपनी शान समझने लगे हैं |
महात्मा गाँधी ने आजादी की लड़ाई में जिस सामाजिक एकता की अहमियत को महसूस कर लिया था और वह इसे अपनी सबसे बड़ी शक्ति मानते थे,उसके विपरीत आचरण करते लोग अपने को गाँधी जी का अनुयायी कहने से भी गुरेज नहीं करते । गांधीजी का दृष्टिकोण यह था कि हम सभी एक परिवार की तरह है और हमें मिल-जुलकर शांतिपूर्ण तरीके से रहना चाहिए। उनके लिए सहिष्णुता सामाजिक एकता की कुंजी थी। दुर्भाग्य से आज हम अपने समाज में सबसे अधिक सहिष्णुता का अभाव ही देख रहे हैं और यही हमारी अनेक समस्याओं की जड़ है। कोई भी ऐसा समाज जिसमें सहनशीलता का गुण न हो, उससे प्रगति की आशा नहीं की जा सकती ।अब असहिष्णुता का आलम यह है कि विदेश में घटी घटना को केंद्र बना कर भोपाल में प्रदर्शन होता है और कुछ लोग इसका समर्थन भी करते हैं |
गांधीजी का स्पष्ट मत था कि सभी समुदायों के नेताओं को एक-दूसरे से संपर्क बनाए रखना चाहिए और ऐसे प्रयास करने चाहिए कि समाज में एकता कायम रहे।  आज यह सम्पर्क और एकता एक दूसरे के काले कारनामे ढंकने तक सीमित रह गई है |गाँधी  जी  हर स्तर पर सांप्रदायिक सोच को हतोत्साहित करने के पक्ष में थे। उनका विचार था कि हम अपने समाज में जिस एकता की कामना करते हैं वह तभी कायम रह सकती है जब हम दूसरे समुदाय के लोगों के प्रति सम्मान और उदारता का भाव रखें। यह लोकतंत्र के लिए भी आवश्यक है।
आज हमें अपने अंदर झांकने की जरूरत है। अपने समाज और अपनी राज्यसत्ता की ओर देखने की जरूरत है। दुख की बात है हम एक राष्ट्र की हैसियत से कोई कदम नहीं उठा पा रहे हैं? क्यों समाज और राज्यसत्ता के विभिन्न अंग अपने-अपने हित में कुछ न कुछ हलचल करते रहते हैं- और यह हलचल अधिकतर एक-दूसरे के विरोध में होती है । इनमें सामंजस्य की स्थापना करने वाला अंग राज्य अक्सर ऐसा ही काम करता पाया गया है जिससे वह कमजोर हुआ है। वह सभ्यता का वाहक बनने के स्थान पर बाधक बनकर उभरा है। भारतीय समाज की वर्तमान बीमारी को समझने के लिए राज्यतंत्र तथा उसके संचालक वर्ग के विषय में सोचना जरूरी है। राज्य बीमार हो तो समाज स्वस्थ कैसे रह सकता है । आज हमारे समाज के भीतर सद्भाव की जो कमी महसूस हो रही है उसके पीछे कहीं न कहीं राजसत्ता की विफलता ही जिम्मेदार है। यह विफलता चाहे नीतियों के स्तर पर हो अथवा प्रशासनिक तंत्र के कामकाज की। समाज में एक-दूसरे के प्रति दूरी बढ़ाने वाले तत्व अधिक से अधिक ताकतवर क्यों होते जा रहे हैं? आम जनता के मन में उसके प्रति एक असंतोष का भाव क्यों  उत्पन्न हो रहा है?  इससे महत्वपूर्ण बात यह है कि जिनसे समाज और राष्ट्र को दिशा देने की अपेक्षा की जाती है वे अपना काम सही तरह क्यों नहीं कर रहे हैं?
 
 

*गद्दारी के आरोप के खिलाफ जनादेश*@राकेश अचल जी वरिष्ठ पत्रकार

Posted: 10 Nov 2020 08:47 AM PST


*गद्दारी के आरोप के खिलाफ जनादेश*@राकेश अचल जी वरिष्ठ पत्रकार 
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मध्यप्रदेश के राजनितिक इतिहास के सबसे बड़े उपचुनावों में भाजपा को मिली शानदार विजय ने कांग्रेस के बाग़ी ज्योतिरादित्य सिंधिया पर कांग्रेस द्वारा लगाए गए 'गद्दारी' के आरोपों को जनता ने अस्वीकार कर दिया है .प्रदेश में हुए २८ सीटों के उपचुनाव के नतीजे तमाम सर्वेस्खनों को धता  दिखाते हुए सामने आये हैं .इन उपचुनावों में 'विकास कोई मुद्दा नहीं था.मुद्दा था 'गद्दारी'और ' खुद्दारी' .जनता ने खुद्दारी को अपना समर्थन दिया .
सिंधिया डेढ़ साल पहले चुनी गयी कांग्रेस की सरकार को ठुकराते हुए अपने 22  समर्थकों के साथ भाजपा में आये थे ,उनके बाद तीन और कांग्रेसी विधायक भाजपा में आगये थे .ग्वालियर चंबल अंचल से 16  विधायक थे,शेष प्रदेश के दुसरे हिस्सों से थे .जनता ने बागियों में से कुछ को अस्वीकार किया लेकिन बाक़ी को अपना समर्थन दिया  और उन्हें दोबारा विधानसभा के लिए चुन दिखाया .भाजपा के टिकिट पर लाडे जो बाग़ी चुनाव हारे हैं उसके लिए वे खुद जिम्मेदार हैं,उनके नेता नहीं और जो जीते उसके लिए उनका जनाधार तथा उनके नेताओं की पुण्याई काम आयी .
मुझे लग रहा था की विधानसभा के ये चुनाव प्रदेश में सरकार के स्थायित्व के लिए संकट न बन जाये किन्तु चुनाव नतीजों ने मेरी इस आशंका को निर्मूल कर दिया है .अब आने वाले दिनों में भाजपा को सरकार चलाने के लिए किसी विधायक को अपने साथ रखने के लिए साम-दाम-दंड-भेद की जरूरत नहीं पड़ेगी.इन उपचुनावों के नतीजों ने ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और भाजपा के नए प्रदेशाध्यक्ष बीड़ी शर्मा को भी नवजीवन दिया है. ये चुनाव कांग्रेस के लिए आत्मघाती साबित हुए हैं .कांग्रेस को अपनी 25  सीटें बचना थीं लेकिन कांग्रेस बामुश्किल आधा दर्जन सीटें ही बचा सकी .
अब बेहतर हो की कांग्रेस आने वाले   दिनों में एक  मजबूत विपक्ष की भूमिका को स्वीकार कर लेना चाहिए .प्रदेश में कांग्रेस को बचने के लिए एक बार फिर जनता द्वारा खारिज किये जा चुके कमलनाथ और दिग्विजय को कांग्रेस कार्यालय से बाहर कर दिया जाना चाहिए .इन नेताओं की बदजुबानी ही कांग्रेस को भारी पड़ी है ..विधानसभा के ऐतिहासिक उप चुनाव प्रदेश की राजनीति में मील का एक नया पत्थर जैसे हैं क्योंकि ये चुनाव जहाँ बगावत को मान्यता दे रहे हैं वहीं  सिंधिया खानदान को गद्दारी के आरोपों से भी बरी भी कर रहे हैं .अब भविष्य में किसी राजनितिक दल के पास सिंधिया परिवार को 163  साल पहले के कथित अपराध के लिए  कोसने का अवसर नहीं बचता .बाक़ी इतिहास अपनी जगह है और वर्तमान अपनी जगह .जीते हुए प्रत्याशी बधाई के पात्र हैं .जो हारे हैं उन्हें भी निराश नहीं होना चाहिए .राजनीति में सब कुछ अस्थाई होता है .
@ राकेश अचल

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