दिव्य रश्मि न्यूज़ चैनल - 🌐

Breaking

Home Top Ad

Post Top Ad

Sunday, April 24, 2022

दिव्य रश्मि न्यूज़ चैनल

दिव्य रश्मि न्यूज़ चैनल


जेठ की गर्मी

Posted: 24 Apr 2022 01:20 AM PDT

जेठ की गर्मी

चिलचिलाती धूप में, 
अंगारे बरस रहे। 
जेठ की दुपहरी में, 
बाहर ना जाइये।

गर्मी से बेहाल सब, 
सूरज उगले आग। 
तप रही धरा सारी, 
खुद को बचाइये।

त्राहि-त्राहि मच रही, 
प्रचंड गर्मी की मार।
नींबू पानी शरबत, 
सबको पिलाइये।

ठंडी ठंडी छांव मिले, 
चैन आ जाए मन को। 
गर्मी से राहत मिले, 
बचिये बचाइये।

मत निकलो धूप में, 
भीषण गर्मी जेठ की। 
प्यासे को पानी जरूर, 
राहत दिलाइये।

रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू राजस्थान
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag

बेटी की विदाई

Posted: 24 Apr 2022 01:05 AM PDT

बेटी की विदाई

बेटी की विदाई क्या होती है
एक बाप से पूछो । 
शान ए घर की विदाई क्या होती है
एक माँ से पूछो। 
साथ खड़ी रहने वाली की जुदाई 
क्या होती है परिवार वालो से पूछो। 
दादादादी भाईबहिन और दोस्तों से
बिछड़ना क्या होता है बेटी से पूछो।। 

बेटी क्यों प्यारी होती है माँ बाप को 
वो ही बता सकते है जिनकी बेटी है। 
हर बात को आसानी से समझती है
तभी तो घर की शान कहलाती है। 
खुद के दुख दर्द को छुपाकर 
सभी के साथ खड़ी हो जाती है। 
ये सब कुछ बेटी ही करती है
इसलिए परिवार का मान बढ़ती है।। 

बंद कर दो अब तो लोगों
भेदभाव लड़का लड़की में करना। 
अगर लड़के को हीरा कहते हो
तो लड़की भी मोती होती है। 
ये बात अपने दिल से तुम
आज के युग को देखकर सोचो। 
बेटीयां ज्यादा पढ़ी  लिखी और
समझदार है बेटो की अपेक्षा।। 

इसलिए बाबूल कहता है की
बेटी ह्रदय की धड़कन होती है। 
जो अनादिकाल से अपना धर्म
बिना स्वार्थ के निभाए जा रही है। 
और दो कुलो का मान सम्मान
अपने कामों से बढ़ाती है। 
बेटी होते हुये भी वो बेटा 
बनकर अपना धर्म निभा रही है।। 

जय जिनेंद्र
संजय जैन "बीना" मुंबई
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag

चलो फिर से बच्चा बन जायें,

Posted: 24 Apr 2022 01:00 AM PDT

चलो फिर से बच्चा बन जायें,

चलें गांव वापस खुशियां मनायें।
हो प्रकृति से सीधा अपना नाता,
सुबह खेत खलिहानों तक जायें।
घूमें गांव की उन पगडंडियों पर,
बचपन में स्कूल तक जाती जो राहें।
वो तालाब पोखर ठाकुर की कुईयां,
पनघट का उत्सव फिर देख आयें।
अमुवा की डाली पर झूले का डलना,
पे़गें बढ़ाकर फिर गीत मिलके गायें।
रहट का ठंडा पानी और बैलों की घंटी,
वहीं दोपहर में मट्ठे से रोटी भी खायें।
बहुत देख ली है शहर की भी जिन्दगी,
चलो फिर से गांव की ओर लौट जायें।
भूल गये स्वाद फूट कचरी सैंध का,
गांव में उगायें बच्चों को भी खिलायें।
नहीं जानते आज के बच्चे बेरी क्या,
खट्टे मीठे जंगली वो बेर भी खिलायें।
जिसके आंगन में पेड़ वो वाली ताई,
दो गाय वाली चाची से मिल आयें।
गांव जो है बस एक बड़ी सी हवेली,
रिश्तों से मिल फूलों से खिल जायें।
वो कमला बुआ आज भी याद आती,
रोटी पर मक्खन फिर खाकर आयें।
जो घुमाते थे मुझको कांधे पर बैठाकर,
बुढापे में काका को चलो हम घुमायें।
भले हों गयी गांव की गलियां भी पक्की,
दिल की कच्ची जमीं पर रिश्ते उगायें।
वो चुल्हे की रोटी, भूली बिसरी यादें,
बड़ी भाभी अब भी बनाकर खिलायें।
बहुत रह लिये शहर में परायों के बीच,
अपनों के बीच फिर गांव लौट जायें।

अ कीर्ति वर्द्धन
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag

Post Bottom Ad

Pages