जनवादी पत्रकार संघ |
- *मनिया थाना इलाके के मेन बाजार में दोपहर को सुनार की दुकान पर आई तीन चार महिलाओं ने सुनार की दुकान से करीब 200 ग्राम सोना चुराया*@वीरेंद्र गोस्वामी
- ब्रेकिंग न्यूज़ मनिया धौलपुर@वीरेंद्र गोस्वामी
- * प्रतिशोध के शिकार कम्प्यूटर बाबा *@राकेश अचल वरिष्ठ पत्रकार
- संपादकीय/*परित्यक्त महिलाओं के हक में बड़ा फैसला*
- *कृषि विरोधी तीनों कानूनों के खिलाफ, 27 नवंबर को संसद पर होने वाले प्रदर्शन में सैकड़ों किसान ट्रैक्टरों से रैली में भागीदारी करेंगे * किसान सभा
Posted: 09 Nov 2020 05:47 AM PST *मनिया थाना इलाके के मेन बाजार में दोपहर को सुनार की दुकान पर आई तीन चार महिलाओं ने सुनार की दुकान से करीब 200 ग्राम सोना चुराया*@वीरेंद्र गोस्वामी दुकान मालिक ने बताया कि मैं दूसरे ग्राहकों को सामान दे रहा था जब भी मेरी निगाह इधर-उधर हुई महिला ने अलमारी को खोल कर करीब 200 सौ ग्राम सोना चुरा लिया। |
ब्रेकिंग न्यूज़ मनिया धौलपुर@वीरेंद्र गोस्वामी Posted: 09 Nov 2020 05:28 AM PST मनिया धौलपुर@वीरेंद्र गोस्वामी मनिया थानांतर्गत नेशनल हाईवे स्थित मांगरोल चौराहे पर ट्रक की चपेट में आने से युवक की मौत । युवक धौलपुर से अपने गांव मांगरोल आ रहा था । मांगरोल चौराहे पर रोड क्रॉस करते समय पीछे से आ रहे ट्रक से बुरी तरह कुचल गया । प्राप्त जानकारी के अनुसार मृतक का नाम बिलोपा पुत्र भगवान सिंह निवासी मांगरोल बताया जा रहा है |
* प्रतिशोध के शिकार कम्प्यूटर बाबा *@राकेश अचल वरिष्ठ पत्रकार Posted: 08 Nov 2020 08:24 PM PST ********************************* बीते आठ महीने से प्रदेश की सरकार काम करते दिखाई नहीं दी थी.लेकिन बीते रोज इंदौर में कम्प्यूटर बाबा के आश्रम पर बुलडोजर चलकर सरकार ने संकेत दिया है की सब हाथ पर हाथ रखकर नहीं बैठे हैं .कम्प्यूटर बाबा के खिलाफ कार्रवाई को भले ही प्रतिशोध पूर्वक उजाड़ा गया है किन्तु मुझे ये कार्रवाई साहसिक लगी .सरकार को ये साहस बहुत पहले दिखाना चाहिए था .पर साहस तो आते-आते ही आता है . प्रदेश में बाबा-बैरागियों को संरक्षण देने वाली सरकारें ही होती हैं. वे ही बाबाओं की समानांतर सरकारें स्थापित करती हैं और फिर उनके जरिये अपना उल्लू सीधा करती हैं.बाबाओं को सरकारों के शपथ ग्रहण समारोहों में मंच प्रदान करने वालों को सब जानते हैं .मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से पहले एक ज़माने में तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने बाबाओं को खुला सांरक्षण दिया था .वे बाबा देखते ही घुटनों पर बैठ जाते थे .बाबाओं के हर अतिक्रमण पर उन्होंने आँखें बंद कर रखीं थीं. हमारे ग्वालियर में एक महिला बाबा को उन्होंने रामसिया सरकार के रूप में मान्यता दे दी थी.इस महिला बाबा ने मप्र विद्युत मंडल की करोड़ों की जमीन घेर ली थी.. मौजूदा मुख्यमंत्री भी दिग्विजय सिंह के अनुयायी हैं,उनका बाबा प्रेम भी जगजाहिर है. कल उनकी सरकार ने जिस कम्प्यूटर बाबा के आश्रम को जमींदोज किया है उसे भी माननीय की सरकार ने पूर्व में कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया था ,लेकिन जब इस कम्प्यूटर बाबा ने पाला बदलकर दिग्विजय सिंह का दामन थाम लिया तो उसे उसका नतीजा भुगतना ही पड़ा .प्रदेश में एक कम्प्यूटर बाबा ही नहीं है जो सरकारी या वन भूमि पर अवैध रूप से कब्जा कर अपने आश्रम बनाकर रह रहे हैं,ऐसे सैकड़ों बाबा हैं. लेकिन उन पर अभी सरकार की कुदृष्टि नहीं पड़ी है क्योंकि वे सरकार के खिलाफ खड़े नहीं हुए हैं . बाबाओं को लेकर सरकार का रवैया संदिग्ध है. सरकार जिस बाबा पर फ़िदा होती है उसे तार देती है और जिससे खफा हो जाती है उसे बर्बाद कर देती है. देश के एक नामचिन्ह बाबा को चौहान साहब की सरकार पीथमपुर के पास नंबर एक में सैकड़ों बीघा जमीन देकर उपकृत कर चुकी है ,लेकिन चूंकि ये बाबा आज भी सरकारी बाबा है इसलिए किसी ने उससे नहीं पूछा कि उसने उस जमीन पर किसी ऋषि-मुनि के नाम से दवा कारखाना या विश्व विद्यालय बनाया या नहीं ? दरअसल प्रदेश में बाबाओं के प्रति जब से सरकार का प्रेम उमड़ना शुरू हुआ है तब से ही सारी गड़बड़ शुरू हुई है. भाजपा की पिछली सरकार ने बाबाओं की एक संतित बनाकर उसके प्रमुख को भी राज्य मंत्री का दर्जा देने का पाप किया था .सवाल ये है कि बाबाओं को बजीर बनाने की जरूरत क्या है ?अगर वे सचमुच बाबा हैं तो बजीर का दर्जा उनके सामने क्या मायने रखता है ?मुझे दुःख होता है कि बाबाप्रेमी सरकार जब प्रदेश में पुराने मठ -मंदिरों की जमीनों से अतिक्रमण हटाने के मामले में तो मौन साध लेती है लेकिन जब किसी बाबा का कम्प्यूटर सरकार के खिलाफ काम करने लगता है तो उसे सबक सीखा दिया जाता है . सरकार ने पिछले दिनों एक विधायक के अतिक्रमण के खिलाफ भी बुलडोजर का इस्तेमाल किया ,मुझे अच्छा लगा ,मै ऐसी हर कार्रवाई का समर्थक हूँ ,लेकिन ऐसी कार्रवाई करते समय सरकार को निष्पक्ष होना चाहिए .दुर्भाग्य ये है कि सरकारी बुलडोजर निष्पक्षता से परिचित नहीं है .प्रदेश की सरकार में ऐसे बहुत से विधायक और मंत्री हैं जो सरकारी जमीनें घेरकर बैठे हैं ,किन्तु सरकार का बुलडोजर उन्हें न पहचानता है और न पहचानना चाहता है .ये गलत बात है .मै तो कहता हूँ कि किसी बाबा-बैरागी या नेता को सरकारी जमीन न मुफ्त में और न रियायत से देना चाहिए .सबसे बाजार भाव लिया जाये .मुफ्त का माल खा-खाकर ये दोनों प्रजातियां गर्रा गयीं हैं . प्रदेश में सरकारी जमीनें केवल आश्रमों के नाम पर ही नहीं हड़पीं गयीं बल्कि गौशालाओं के नाम पर भी हड़पी गयीं हैं ,इन्हें भी मुक्त कराये जाने की जरूरत है .सरकार को भूमाफिया के खिलाफ ठीक वैसा ही अभियान चलना चाहिए जैसा कि कमलनाथ की सरकार ने चलाया था .दुर्भाग्य ये है कि कमलनाथ का बुलडोजर भी शिवराज सिंह के बुलडोजर की रह निष्पक्ष नहीं था .कमलनाथ के निशाने पर जितने माफिया थे दुर्भाग्य से वे सब अब नई सरकार के छाते के नीचे सुरक्षित खड़े हैं .ऐसे तो प्रदेश में माफियाराज का खत्मा नहीं हो सकता .इसके लिए साफ़ नीति और नीयत की जरूरत है .मुझे हंसी तब आती है जब कम्प्यूटर बाबा का आश्रम गिराने की कार्रवाई का समर्थन वे बड़े -बड़े बाबा करते हैं जो खुद भूमाफिया हैं . आने वाले दिनों में बात तब बनेगी जब सरकार बाबाओं को बजीरों का दर्जा देना बंद करे,बाबाओं को बाबा रहने दे,बाबा यदि कोई समाजिक कार्य कर रहे हैं तो उन्हें गुण-दोष के आधार पर संरक्षण दे ,उनका राजनीतिक इस्तेमाल न करे,उन्हें अपने समकक्ष न बैठाये ,उनके सामने सार्वजनिक रूप से नतमस्तक न हो ,उन्हें अतिविशिष्ट व्यक्ति का सम्मान न दे .लेकिन ऐसा हो नहीं सकता.क्योंकि बाबाओं के बिना किसी भी सरकार का काम चलता नहीं. जनता को मूर्ख बनाने के लिए बाबा ही अमोघ अस्त्र माने जाते हैं .हर दल के,हर सरकार के अपने-अपने बाबा हैं .कई बार तो बाबाओं के जलवे देखकर मेरे मन में भी आता है कि मै भी लेखकीय कर्म छोड़कर बाबा बन जाऊं ,फिर सोचता हूँ कि मुझे ईश्वर ने मुझे जिस काम के लिए चुना है ,मुझे वो ही करना चाहिए . मुझे पता है कि कम्प्यूटर बाबा के खिलाफ कार्रवाई से सरकार का कुछ बिगड़ने वाला नहीं है .कम्प्यूटर बाबा के पास श्राप देने की ताकत नहीं है .वे आह भी भरें तो भी सरकार का कुछ नहीं बिगड़ेगा .इसलिए सरकार बेफिक्र होकर अपनी बाबा विरोधी कार्रवाई जारी रखे और पुराने मठ-मंदिरों की सम्पत्ति को भी बचाने का अभियान चलाये तो उचित होगा .कोई बाबा किसी सरकार का कुछ नहीं बिगाड़ सकता .ये शक्ति केवल सरकार के पास होती है .मै तो कहूंगा कि सरकार में बैठे लोगों को बाबाओं का भगवा रंग भी त्याग देना चाहिए.सरकार का रंग भगवा होना भी नहीं चाहिए .सरकार सबरंग होना चाहिए,किसी इंद्रधनुष की तरह ..सरकार का भगवा रंग देखकर केवल एक समाज ही खुश हो सकता है . @ राकेश अचल |
संपादकीय/*परित्यक्त महिलाओं के हक में बड़ा फैसला* Posted: 08 Nov 2020 07:58 PM PST ०९ ११ २०२० *परित्यक्त महिलाओं के हक में बड़ा फैसला* बड़ी मुश्किल से समाज का यह मिथक टूटने लगा है कि जिस महिला का पति परिवार के योगक्षेम की सुचारू व्यवस्था करता हो उसे नौकरी के लिए घर से बाहर निकलने की जरूरत नहीं है | इसके विपरीत कई बार महिलाओं को अपने की कैरियर कुर्बानी परिवार संभालने के लिए देना होती है | आजकल परित्यक्त महिलाओं की संख्या में भी बढ़ोतरी हो रही है |परिवार और बच्चों के साथ घर की जिम्मेदारी का बोझ ढोनेवाली महिलाएं अक्सर प्रवीण और श्रेष्ठ कार्यबल का हिस्सा बनने से वंचित रह जाती हैं| अक्सर यह विषय पर चर्चा में महिलाओं का नकारात्मक चित्रण ही किया जाता रहा है | देश के सर्वोच्च न्यायालय ने पहली बार बच्चों की देखभाल के लिए अपने कैरियर को दांव पर लगानेवाली कामकाजी महिलाओं के हालातों का भी संज्ञान लिया है| न्याय मूर्ति इंदु मल्होत्रा और आरएस रेड्डी की खंडपीठ ने कहा है कि परित्यक्ता पत्नी के गुजारा-भत्ते को निर्धारित करते समय जरूरी तौर पर उसके करियर की कुर्बानी को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए, ताकि वह वैवाहिक घर जैसा ही जीवन जी सके|आमतौर पर परित्यक्ता पत्नी के लिए निर्वाह भत्ते को तय करते समय अदालतें केवल पति की आमदनी और संपत्तियों पर ही विचार करती हैं|आधुनिक समाज में कामकाजी महिलाओं के सामने अनेक तरह की चुनौतियां हैं| संबंधों में बिखराव के बाद जीवनयापन के लिए दोबारा नौकरी हासिल कर पाना आसान नहीं होता| सर्वोच्च न्यायालय का यह कथन स्वागतयोग्य है कि परित्यक्ता पत्नी के साथ रहनेवाले बच्चों की पढ़ाई के खर्च का भी कुटुंब अदालतों द्वारा संज्ञान लेना जरूरी है| आमतौर पर बच्चों की पढ़ाई का खर्च को विवाद का विषय बन दिया जाता है और पिता द्वारा कामकाजी माँ को आधा खर्च देने को विवश किया जाता रहा है| परित्यक्त महिलाओं को मांग के अनुरूप नये कौशल को प्राप्त करने लिए उन्हें कई बार दोबारा प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है, जो उम्र के किसी पड़ाव पर आसान नहीं होता है| यही वजह है कि वर्षों के अंतराल के बाद उम्रदराज महिलाएं बामुश्किल ही दोबाराअपने उस कामकाज का हिस्सा बन पाती हैं, परित्यक्त महिलाओं के साथ अपराधों की भी अपनी कहानी है| इन्हीं वजहों से कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी सीमित होती जाती है| सर्वोच्च न्यायालय का यह कथन अब नजीर हो गया है कि परित्यक्ता पत्नी के साथ रहनेवाले बच्चों की पढ़ाई के खर्च का भी कुटुंब अदालतों द्वारा संज्ञान लिया जाये | न्यायालय ने यह भी कहा है कि अगर पत्नी की पर्याप्त आमदनी है, तो बच्चों की पढ़ाई का खर्च दोनों पक्षों में अनुपातिक तौर पर साझा होना चाहिए| यद्यपि हिंदू विवाह अधिनियम और महिलाओं की घरेलू हिंसा से सुरक्षा अधिनियम गुजारा-भत्ता प्रदान करने की तारीख को तय नहीं करता है, यह पूरी तरह से कुटुंब अदालतों पर निर्भर होता है| इसके लिए न्यायालय का निर्देश है कि परित्यक्ता द्वारा अदालत में याचिका दाखिल करने की तिथि से गुजारा-भत्ता दिया जाना चाहिए| इसका भुगतान नहीं करने पर पति की गिरफ्तारी और संपत्तियों को जब्त भी किया जा सकता है. हालांकि, निर्वाह भत्ते की आस में तमाम याचिकाएं अदालतों में वर्षों से लंबित हैं| सम्पूर्ण समाज को इस बात को स्वीकार ही नहीं करना चाहिए बल्कि उस दृश्य को बदलने की दिशा में प्रयास करना चाहिए जिसमें नियम-कानून का सुनिश्चित हो | अभी कई नियम और कानून समुचित अनुपालन के आभाव मात्र कागज का पुलिंदा साबित हुए हैं |इस संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय के परित्यक्त महिलाओ के मामले दिए गये निर्देश बहुत ही मुनासिब है| इन निर्देशों में समयबद्ध निर्वाह भत्ते का भुगतान की बात भी की गई है| निर्वाह भत्ते का समयबद्ध भुगतान कई असहायों का जीवन दोबारा पटरी पर लौटा सकता है| |
Posted: 08 Nov 2020 08:12 AM PST *कृषि विरोधी तीनों कानूनों के खिलाफ, 27 नवंबर को संसद पर होने वाले प्रदर्शन में सैकड़ों किसान ट्रैक्टरों से रैली में भागीदारी करेंगे * किसान सभा ============== कैलारस =कोविड-19 महामारी के प्रकोप के दौरान संसद ने मंडी व्यवस्था समाप्त करने, ठेका खेती लागू करने, आवश्यक वस्तुओं की जमाखोरी की छूट देने संबंधी तीन कानून पारित किए हैं। इसके अलावा बिजली की एक रेट घोषित करने निजीकरण करने का भी कानून बनाया है ।जिसके विरोध में और श्रम कानूनों को समाप्त करने के खिलाफ देशभर में किसान, मजदूर ,आमजन जबरदस्त आंदोलन कर रहे हैं । इसी कड़ी में 26 नवंबर को देश भर में केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के आव्हान पर काम बंद हड़ताल की जाएगी। अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति , अखिल भारतीय किसान सभा, की ओर से लगभग 400 से अधिक किसान संगठनों के द्वारा ग्राम बंद हड़ताल का भी आह्वान किया गया है। 27 नवंबर को दिल्ली में संसद पर विशाल मार्च आयोजित किया जा रहा है। इस मार्च में चंबल क्षेत्र से एक सैकड़ा से ज्यादा ट्रैक्टर लेकर किसान दिल्ली की ओर कूच करेंगे। इसमें सैकड़ों किसान शामिल होंगे। जिसमें तीनों कानूनों को समाप्त करने के साथ-साथ स्थानीय मुद्दे ग्राम समस्याएं ले कर के भी पीएमओ को प्रेषित की जाएगी। मध्य प्रदेश किसान सभा की जिला समिति की मीटिंग "बहादुर सिंह धाकड़ भवन" पर संपन्न हुई मीटिंग की अध्यक्षता जिला अध्यक्ष रामनिवास शर्मा ने की। तैयारी के संबंध में रिपोर्ट महासचिव मुरारी लाल धाकड़ द्वारा प्रस्तुत की गई। जिसमें ट्रैक्टर के जरिए सैकड़ों किसानों की रैली संसद के लिए ले जाने का निर्णय लिया गया है। इस मीटिंग को मध्यप्रदेश किसान सभा के प्रदेश उपाध्यक्ष अशोक तिवारी ने संबोधित किया। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार तीन कृषि कानून बनाकर देश की खेती व्यवस्था ,विपणन व्यवस्था को पूरी तरह से कॉरपोरेट्स के हाथों सौंपना चाहती है। उसी की तैयारी की जा रही है। देशभर में एक महीने से पंजाब में चक्काजाम आंदोलन चल रहा है। रेल बंद है । हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, राजस्थान सहित देश के कई क्षेत्रों में आंदोलन चलाए जा रहे हैं । यह सभी आंदोलन एकजुट होकर 27 नवंबर को संसद मार्च का आयोजन कर रहे हैं। उसी कड़ी में चंबल क्षेत्र के किसान भी सैकड़ों की संख्या में ट्रैक्टर लेकर चंबल की नदी से दिल्ली के लिए कूंच करेंगे ।उन्होंने तैयारी करने का सभी किसान सभा नेताओं से आग्रह किया। इसमें वरिष्ठ किसान नेता गयाराम सिंह धाकड़, ओमप्रकाश श्रीवास, श्री कृष्ण यादव, उदय राज सिंह, भंवर लाल, आदिराम आर्य, सियाराम सिंह, सरवन लाल ,बनवारी लाल रामखिलाड़ी माहौर अशोक कुमार आदि ने विचार व्यक्त किए। प्रेषक। |
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